अब करीब-करीब साफ होता जा रहा है कि डोनाल्ड ट्रंप यह चुनाव हार चुके हैं। इस बात को भी पहले से कहा जा रहा था कि इसबार परिणाम आने में देर लगेगी, क्योंकि डाक से आए मतपत्रों की गिनती करने में देर होगी। अमेरिका में डाक से मतपत्र भेजने की व्यवस्था अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग है। ट्रंप का आरोप है कि मतदान पूरा हो जाने के बाद डाक से आए मतपत्रों को लेना बंद कर देना चाहिए।
उन्होंने पेंसिल्वेनिया, मिशीगन और जॉर्जिया तीन
राज्यों की अदालतों में देर से आए मतपत्रों को गणना में शामिल किए जाने की
शिकायत की है। उन्हें मिशीगन और जॉर्जिया में सफलता नहीं मिली, पर पेंसिल्वेनिया में
मिली है। इस मिश्रित
सफलता से भी निर्णायक लाभ उन्हें नहीं मिलेगा, क्योंकि मतगणना रोकने की नहीं
परिणाम उनके पक्ष में घोषित किए जाने से ही कुछ हासिल हो सकेगा। नेवादा, जॉर्जिया,
पेंसिल्वेनिया और नॉर्थ कैरलीना के परिणाम आने हैं।
मुझे लगता है कि ट्रंप चार-छह वोट से हारेंगे। बिडेन जीत
जाएंगे, पर यह जीत बेहद मामूली होगी। इससे साबित यह भी होता है कि अमेरिकी मीडिया
अभी तक जो दावे कर रहा था, वे आंशिक रूप से ही सही थे। कहाँ, बिडेन को तीन सौ से
ऊपर के दावे थे, कहाँ एकदम निर्णायक रेखा पर जाकर रेस खत्म हो रही है। इनमें
मिशीगन, जहाँ ट्रंप काफी समय तक आगे थे, उन्हें मिल जाता, तो ट्रंप की जीत हो
जाती।
बहरहाल जीत और हार राजनीति का हिस्सा है। चुनाव केवल राष्ट्रपति
पद का ही नहीं हुआ है। प्रतिनिधि सदन और सीनेट का भी हुआ है। लगता है कि सीनेट में
रिपब्लिकन पार्टी की बढ़त बनी रहेगी और प्रतिनिधि सदन में डेमोक्रेट्स की। बिडेन के
राष्ट्रपति बन जाने के बाद सीनेट में उन्हें दिक्कतें होंगी।
इन सब बातों से ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह है कि इस चुनाव ने
अमेरिका के ध्रुवीकरण को बढ़ाया है। डेमोक्रेट्स को केवल राजनीतिक सफलता मिली है।
इसे नैतिक सफलता नहीं कह सकते। देखना होगा कि वे अमेरिका के उन तमाम नागरिकों को
क्या संदेश देते हैं, जो ट्रंप का समर्थन कर रहे थे। देश के चुनाव में इसबार जैसा
भारी मतदान हुआ है, वह ध्रुवीकरण की ओर भी इशारा कर रहा है। चुनाव परिणाम फिलहाल
बीरबल की खिचड़ी की तरह आ रहे हैं। पूरे परिणाम आने के बाद हम इनके निहितार्थ पर
ज्यादा अच्छे तरीके से बात कर पाएंगे।
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