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Wednesday, July 13, 2022

दुनिया के सबसे बड़े युद्धाभ्यास ‘रिम्पैक’ में भारतीय नौसेना शामिल

यूक्रेन पर रूसी हमले के इस दौर में दुनिया का ध्यान यूरोप पर है, पर अंदेशा इस बात का भी है कि हिंद-प्रशांत में भी किसी भी समय टकराव की स्थितियाँ पैदा हो सकती हैं। हाल में चीन और रूस के विमानों ने जापान के आसपास के आकाश पर उड़ानें भरकर अपने इरादे जाहिर किए हैं। यूक्रेन में रूसी कार्रवाई की देखादेखी चीन भी ताइवान के खिलाफ कार्रवाई करने के संकेत दे रहा है। उधर जापान में पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे की हत्या के बाद इस बात की सम्भावना है कि जापान अपनी सुरक्षा को लेकर कुछ बड़े कदम उठा सकता है। इन सब बातों को देखते हुए रिम्पैक युद्धाभ्यास का महत्व है। इस युद्धाभ्यास में भारत भी शामिल होता है। ताइवान से लेकर पूर्वी लद्दाख तक अपने पड़ोसी देशों को आंखें दिखा रहे चीन को उसके घर में ही घेरने की तैयारी शुरू हो गई है।

भारतीय नौसेना के युद्धपोत आईएनएस सतपुड़ा और पी8आई टोही विमान ने अमेरिका के हवाई द्वीप स्थित पर्ल हार्बर पर इस युद्धाभ्यास में भाग लिया। इस अभ्यास के लिए सतपुड़ा 27 जून को और पी8आई विमान 2 जुलाई को हवाई पहुंचा था। कमांडर पुनीत डबास के नेतृत्व में पी8आई दस्ते का हिकम हवाई क्षेत्र पर एमपीआरए परिचालन के प्रमुख विंग कमांडर मैट स्टकलेस (आरएएएफ) ने स्वागत किया। पी8आई ने सात प्रतिभागी देशों के 20 एमपीआरए के साथ समन्वित बहुराष्ट्रीय पनडुब्बी भेदी युद्ध अभियान में हिस्सा लिया।

गत 29 जून से चल रहा और 4 अगस्त तक होने वाला रिम्पैक नौसैनिक-युद्धाभ्यास चीन के लिए गम्भीर चुनौती का काम करेगा। भारतीय नौसेना और क्वॉड के अन्‍य देशों के अलावा हमारे पड़ोस और दक्षिण चीन सागर से जुड़े, जो देश इसमें भाग ले रहे हैं उनमें फिलीपींस, ब्रूनेई, मलेशिया, इंडोनेशिया, सिंगापुर, थाईलैंड और श्रीलंका के नाम उल्लेखनीय हैं। दुनिया का यह सबसे बड़ा युद्धाभ्यास चीन को घेरने और उसे कठोर संदेश देने की यह कोशिश है। यह युद्धाभ्यास सन 1971 से हो रहा है। इस साल इसका 28वाँ संस्करण होगा, पर वैश्विक स्थितियों को देखते हुए इस साल अभ्यास का विशेष महत्व है।

रिम्पैक युद्धाभ्यास

रिम ऑफ द पैसिफिक एक्सरसाइज़ को संक्षेप में रिम्पैक कहते हैं। दो साल में एकबार होने वाला यह युद्धाभ्यास अमेरिका के पश्चिमी तट पर प्रशांत महासागर में होनोलुलु, हवाई के पास जून-जुलाई में होता है। इसका संचालन अमेरिकी नौसेना का प्रशांत बेड़ा करता है, जिसका मुख्यालय पर्ल हार्बर में है। इसका साथ देते हैं मैरीन कोर, कोस्ट गार्ड और हवाई नेशनल गार्ड फोर्स। हवाई के गवर्नर इसके प्रभारी होते हैं।

हालांकि यह युद्धाभ्यास अमेरिकी नौसेना का है, पर वह दूसरे देशों की नौसेनाओं को भी इसमें शामिल होने का निमंत्रण देते हैं। इसमें प्रशांत महासागर से जुड़े इलाके के देशों के अलावा दूर के देशों को भी बुलाया जाता है। पहला रिम्पैक अभ्यास सन 1971 में हुआ था, जिसमें ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, युनाइटेड किंगडम, और अमेरिका की नौसेनाओं ने भाग लिया। ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और अमेरिका ने तबसे अबतक हरेक अभ्यास में हिस्सा लिया है। इसमें शामिल होने वाले अन्य नियमित भागीदार देश हैं, चिली, कोलम्बिया, फ्रांस, इंडोनेशिया, जापान, मलेशिया, नीदरलैंड्स, पेरू, सिंगापुर, दक्षिण कोरिया, और थाईलैंड। न्यूजीलैंड की नौसेना 1985 तक नियमित रूप से इसमें शामिल होती रही। एक विवाद के कारण कुछ साल तक वह अलग रही, फिर 2012 के बाद से उसकी वापसी हो गई। पिछले कई वर्षों से भारतीय नौसेना भी इसमें शामिल होती है। चीन की नौसेना ने भी 2014 में रिम्पैक अभ्यास में पहली बार हिस्सा लिया था, लेकिन 2018 में अमेरिका ने चीनी नौसेना को इसमें शामिल होने का निमंत्रण नहीं दिया। अमेरिका ने कहा कि चीन दक्षिण चीन सागर में विवादित द्वीपों पर तेजी से फौजी तैयारी कर रहा है।

Sunday, May 22, 2022

ब्रिक्स और क्वॉड के अंतर्विरोध और भारत


वैश्विक-घटनाक्रम के लिहाज से यह समय गहमागहमी से भरपूर है। जून के महीने में ब्रिक्स और जी-7 के शिखर सम्मेलन होने वाले हैं। जी-7 का शिखर सम्मेलन 26 से 28 जून तक बवेरियन आल्प्स में श्लॉस एल्मौ में होने वाला है। ब्रिक्स का शिखर सम्मेलन भी उसी के आसपास होगा। दोनों सम्मेलनों में भारत की उपस्थिति और दृष्टिकोण पर दुनिया का ध्यान केंद्रित रहेगा। इन दोनों सम्मेलनों से पहले इसी हफ्ते जापान में हो रहे क्वॉड शिखर सम्मेलन का भी राजनीतिक महत्व है। ये सभी सम्मेलन यूक्रेन-युद्ध की छाया में हो रहे हैं। दुनिया में नए शीतयुद्ध और वैश्विक खाद्य-संकट का खतरा पैदा हो गया है। पूर्वी लद्दाख में गतिरोध के कारण भारत-चीन रिश्तों की कड़वाहट को देखते हुए भी खासतौर से ब्रिक्स सम्मेलन बेहद महत्वपूर्ण हैं।

चीन के साथ रिश्ते

मार्च के महीने में चीन के विदेशमंत्री वांग यी की अचानक हुई भारत-यात्रा से ऐसा संकेत मिला कि चीन चाहता है कि भारत के साथ बातचीत का सिलसिला फिर से शुरू किया जाए। दोनों देशों के बीच कड़वाहट इतनी थी कि दो-तीन महीने पहले तक इस बात को लेकर संशय था कि चीन में होने वाले ब्रिक्स शिखर-सम्मेलन में भारत शामिल होगा भी या नहीं। पर अब यह साफ है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस सम्मेलन में शामिल होंगे। अलबत्ता शिखर सम्मेलन की तैयारी के सिलसिले में 19 मई को हुए ब्रिक्स विदेशमंत्री सम्मेलन में एस जयशंकर ने भारत के दृष्टिकोण को काफी हद तक स्पष्ट कर भी दिया है। उन्होंने क्षेत्रीय सुरक्षा को लेकर परोक्ष रूप में चीन की आलोचना की और यह भी कहा कि समूह को पाकिस्तान-प्रेरित सीमा पार आतंकवाद को किसी कीमत पर बर्दाश्त नहीं करना चाहिए।

लद्दाख का गतिरोध

चीन के प्रति भारत के सख्त रवैये की पहली झलक गत 25 मार्च को चीनी विदेशमंत्री वांग यी की अघोषित दिल्ली-यात्रा में देखने को मिली। दिल्ली में उन्हें वैसी गर्मजोशी नहीं मिली, जिसकी उम्मीद लेकर शायद वे आए थे। भारत ने उनसे साफ कहा कि पहले लद्दाख के गतिरोध को दूर करें। इतना ही नहीं वे चाहते थे कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से उनकी मुलाकात हो, जिसे शालीनता से ठुकरा दिया गया। दोनों देशों की सेनाओं के बीच 15 दौर की बातचीत के बाद भी कोई समाधान नहीं निकला है। अब खबर है कि पैंगोंग झील के पास अपने कब्जे वाले क्षेत्र में चीन दूसरे पुल का निर्माण कर रहा है। इन सभी बातों के मद्देनज़र शिखर सम्मेलन से पहले इस हफ्ते हुई विदेशमंत्री स्तर की बैठक काफी महत्वपूर्ण थी।   

विदेशमंत्री-सम्मेलन

गत 19 मई को ब्रिक्स-विदेशमंत्रियों की डिजिटल बैठक के एक दिन पहले खबर आई थी कि पूर्वी लद्दाख में पैंगोंग झील के पास चीन दूसरा पुल बना रहा है। उसके पहले दोनों देशों के बीच 15वें दौर की बातचीत में भी लद्दाख के गतिरोध का कोई हल नहीं निकला। इस पृष्ठभूमि में विदेशमंत्री एस जयशंकर ने संप्रभुता और अखंडता की बात करते हुए चीनी नीति पर प्रहार भी किए। उन्होंने यूक्रेन संघर्ष का जिक्र करते हुए चीन की ओर भी इशारा किया। उन्होंने कहा, ब्रिक्स ने बार-बार संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता, अंतरराष्ट्रीय कानून का सम्मान किया है। हमें उन प्रतिबद्धताओं पर खरा उतरना चाहिए।’ इस बैठक के उद्घाटन सत्तर में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी शामिल हुए। उन्होंने इस मौके पर कहा कि इतिहास और वास्तविकता दोनों हमें बताते हैं कि दूसरों की कीमत पर अपनी सुरक्षा की तलाश करना केवल नए तनाव और जोखिम पैदा करेगा।

सुरक्षा-परिषद सुधार

बैठक में, विदेश मंत्री जयशंकर ने 8-प्रमुख बिंदुओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि हमें न केवल कोरोना महामारी से सामाजिक-आर्थिक सुधार की तलाश करनी चाहिए, बल्कि लचीला और विश्वसनीय आपूर्ति श्रृंखला भी बनानी चाहिए। यूक्रेन युद्ध के असर से ऊर्जा, भोजन और वस्तुओं की लागत में तेज वृद्धि हुई है। विकासशील दुनिया की खातिर इसे कम किया जाना चाहिए। ब्रिक्स ने बार-बार संप्रभु समानता, क्षेत्रीय अखंडता और अंतर्राष्ट्रीय कानून के प्रति सम्मान की पुष्टि की है। हमें इन वादों पर खरा उतरना चाहिए। ब्रिक्स को सर्वसम्मति से और विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार का समर्थन करना चाहिए। उन्होंने जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद, डिजिटल दुनिया और संधारणीय विकास की अवधारणाओं पर भी अपने विचार व्यक्त किए।

Sunday, September 26, 2021

मोदी की अमेरिका-यात्रा के निहितार्थ

क्वॉड सम्मेलन

प्रधानमंत्री की अमेरिका-यात्रा के मोटे तौर पर क्या निहितार्थ हैं, इसे समझने के लिए देश के कुछ प्रमुख पत्रकारों-विशेषज्ञों और मीडिया-हाउसों की राय जानने का प्रयास करना होगा। पिछले सात साल में मोदी जी की यह सातवीं अमेरिका यात्रा थी। इसके पहले वे 2014,2015 के बाद 2016 में दो बार और फिर 2017 और 2019 में अमेरिका गए थे। इन यात्राओं के दौरान तीन अलग-अलग राष्ट्रपतियों से उन्होंने मुलाकात की। बराक ओबामा, डोनाल्ड ट्रंप और अब जो बाइडेन। आज के हिन्दू में प्रकाशित सुहासिनी हैदर के निष्कर्ष सबसे पहले पढ़ें। उनके अनुसार यह यात्रा खास थी, क्योंकि:

1.कोविड के कारण करीब दो साल बाद (बांग्लादेश की एक यात्रा को छोड़कर) यह उनकी पहली और बड़ी विदेश-यात्रा थी।

2.राष्ट्रपति के रूप में जो बाइडेन से यह उनकी पहली रूबरू मुलाकात थी।

3.वे क्वॉड के व्यक्तिगत उपस्थिति वाले पहले शिखर सम्मेलन में भी शामिल हुए। यह सम्मेलन इसलिए भी महत्वपूर्ण था, क्योंकि इसके एक हफ्ते पहले ही अमेरिका ने हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में ऑकस नाम के एक नए गठबंधन की घोषणा की थी।

4.कमला हैरिस के साथ पहली मुलाकात हुई, जो कुछ समय पहले तक मोदी सरकार की कश्मीर-नीतियों की आलोचक थीं। सन 2019 में विदेशमंत्री एस जयशंकर ने अमेरिकी सांसद प्रमिला जयपाल से मुलाकात के साथ एक बैठक का बहिष्कार किया था, उसकी भी कमला हैरिस ने आलोचना की थी।

5.नरेंद्र मोदी अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के साथ हाउडी-मोदी कार्यक्रम में शामिल होने के बाद पहली बार अमेरिका-यात्रा पर गए हैं।

अमेरिका की बैठकों के कुछ सामान्य विषय इस प्रकार थे:

हिन्द-प्रशांत क्षेत्र पर फोकस। हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय नियम-आधारित व्यवस्था की स्थापना को लेकर प्रायः सभी बैठकों में चर्चा हुई। हालांकि चीन का नाम नहीं लिया गया, जिससे लगता है कि बाइडेन-प्रशासन सावधानी बरत रहा है।

चीन-पाक दुरभिसंधि पर वार


प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अमेरिका-यात्रा का साफ संदेश पाकिस्तान और चीन की दुरभिसंधि के नाम है। राष्ट्रपति जो बाइडेन के साथ आमने-सामने की मुलाकात और क्वॉड के शिखर सम्मेलन और संयुक्त राष्ट्र महासभा में मोदी के भाषण को जोड़कर देखें, तो चीन और पाकिस्तान दोनों के लिए स्पष्ट संदेश है। आने वाले दिनों में भारत की हिंद-प्रशांत क्षेत्र में बड़ी भूमिका का इशारा भी इनमें देखा जा सकता है। बाइडेन से मुलाकात के पहले उपराष्ट्रपति कमला हैरिस से मुलाकात का भी विदेश-नीति के लिहाज से महत्व है।

संयुक्त राष्ट्र महासभा में नरेन्द्र मोदी ने जलवायु परिवर्तन, महामारी, वैक्सीन और मानव कल्याण के तमाम सवालों को उठाते हुए बहुत संयत शब्दों में अफगानिस्तान की स्थिति का जिक्र किया और चेतावनी दी कि वे उस जमीन का इस्तेमाल आतंकी हमलों के लिए न करें। प्रकारांतर से यह चेतावनी पाकिस्तान के नाम है। समुद्री मार्गों की स्वतंत्रता बनाए रखने के संदर्भ में उन्होंने चीन को भी चेतावनी दी। उन्होंने संरा की साख बढ़ाने का सुझाव भी दिया, जिसमें उन्होंने दूसरी बातों के साथ कोविड-संक्रमण के मूल का जिक्र भी किया।

व्यापक निहितार्थ

अमेरिका में हुई चर्चाओं को जोड़कर पढ़ें, तो कोविड, क्लाइमेट और क्वॉड के अलावा अफगानिस्तान पर विचार हुआ। पाकिस्तान को आतंकवाद और कट्टरपंथ पर कठोर संदेश मिले, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान के नेतृत्व के साथ प्रधानमंत्री मोदी की चीन से उपजे खतरों पर विस्तृत चर्चा हुई। साथ ही ऑकस से जुड़ी आशंकाओं को भी दूर किया गया। इन सबके अलावा प्रधानमंत्री ने बड़ी अमेरिकी कम्पनियों के सीईओ के साथ बैठकें करके भारतीय अर्थव्यवस्था के तेज विकास का रास्ता भी खोला है। द्विपक्षीय बैठकों में अफगानिस्तान का मुद्दा भी हावी रहा। भारत ने बताया है कि कैसे तालिबान को चीन और पाकिस्तान की शह मिल रही है, जिससे भारत ही नहीं दुनिया की मुश्किलें बढ़ेंगी। अमेरिका ने भारत के इस दृष्टिकोण को स्वीकार किया है।

Sunday, September 19, 2021

दुशान्बे और ‘ऑकस’ के निहितार्थ


वैश्विक-राजनीति और भारतीय विदेश-नीति के नज़रिए से इस हफ्ते की तीन घटनाएं ध्यान खींचती हैं। इन तीनों परिघटनाओं के दीर्घकालीन निहितार्थ हैं, जो न केवल सामरिक और आर्थिक घटनाक्रम को प्रभावित करेंगे, बल्कि वैश्विक-स्थिरता और शांति के नए मानकों को निर्धारित करेंगे। इनमें पहली घटना है, ताजिकिस्तान की राजधानी दुशान्बे में हुआ शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) का शिखर सम्मेलन। दूसरी परिघटना है ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और अमेरिका के बीच हुआ सामरिक समझौता ऑकस

तीसरी परिघटना और है, जिसकी तरफ मीडिया का ध्यान अपेक्षाकृत कम है।ऑकसघोषणा के अगले ही दिन चीन ने ट्रांस पैसिफिक पार्टनरशिप में शामिल होने की अर्जी दी है। अब दुनिया का और खासतौर से भारतीय पर्यवेक्षकों का ध्यान अगले सप्ताह अमेरिका में क्वॉड के पहले रूबरू शिखर सम्मेलन और फिर संयुक्त राष्ट्र महासभा की सालाना बैठक पर होगा। इस बैठक का महत्व प्रचारात्मक होता है, पर हाशिए पर होने वाला मेल-मिलाप महत्वपूर्ण होता है।

अफगान समस्या

दुनिया के सामने इस समय अफगानिस्तान बड़ा मसला है। इस लिहाज से दुशान्बे सम्मेलन का महत्व है। एससीओ का जन्म 2001 में 9/11 के कुछ सप्ताह पहले उसी साल हुआ था, जिस साल अमेरिका ने तालिबान के पिछले शासन के खिलाफ कार्रवाई की थी। इसके गठन के पीछे चीन की बुनियादी दिलचस्पी मध्य एशिया के देशों और रूस के साथ अपनी सीमा के प्रबंधन को लेकर थी। खासतौर से 1991 में सोवियत संघ का विघटन होने के बाद मध्य एशिया के नवगठित देशों में स्थिरता की जरूरत थी। पर अब उसका दायरा बढ़ रहा है। इस समय अफगानिस्तान में स्थिरता कायम करने में इसकी भूमिका देखी जा रही है।

Sunday, September 12, 2021

भारत ऑस्ट्रेलिया टू प्लस टू

टू प्लस टू वार्ता में शामिल भारत और ऑस्ट्रेलिया के रक्षा और विदेशमंत्री

भारत ने शनिवार को ऑस्ट्रेलिया के साथ नई दिल्ली में पहली बार 2+2 मंत्रिस्तरीय संवाद की मेजबानी की। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह और विदेशमंत्री एस. जयशंकर ने ऑस्ट्रेलिया के रक्षामंत्री पीटर ड्यूटन और विदेशमंत्री मैरिस पाइन
 के साथ अफगानिस्तान के राजनीतिक बदलाव पर चर्चा की।

जून 2020 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन के बीच वर्चुअल वार्ता के दौरानभारत-ऑस्ट्रेलिया व्यापक साझेदारी पर बातचीत हुई थी। दोनों देशों के बीच यह साझेदारी एक मुक्तखुलेसमावेशी और नियम-आधारित हिंद-प्रशांत क्षेत्र के साझा दृष्टिकोण पर आधारित थी। इस क्षेत्र में शांतिविकास और व्यापार के मुक्त प्रवाहनियम-आधारित व्यवस्था और आर्थिक विकास में ऑस्ट्रेलिया और भारत दोनों का अहम योगदान है।

बैठक के बाद संयुक्त बयान के अनुसार मंत्रियों ने आतंकवाद और हिंसक उग्रवाद का मुकाबला करनेआतंकवाद के वित्तपोषण का मुकाबला करनेआतंकवाद और हिंसक उग्रवाद के लिए इंटरनेट के शोषण को रोकनेकानून प्रवर्तन सहयोग को मजबूत करने सहित आतंकवाद के क्षेत्र में सहयोग जारी रखने पर सहमति व्यक्त की। बयान में कहा गया है कि दोनों पक्षों ने संयुक्त राष्ट्रजी20जीसीटीएफएआरएफआईओआरए और एफएटीएफ जैसे बहुपक्षीय मंचों के साथ-साथ क्वॉड परामर्श में आतंकवाद का मुकाबला करने में सहयोग को आगे बढ़ाने के लिए अपनी प्रतिबद्धता दोहराई।

मालाबार अभ्यास

भारत और ऑस्ट्रेलिया ने रक्षा संबंधों के महत्व को दोहराया। साथ ही मंत्रियों ने दोनों देशों के बीच बढ़ते रक्षा सहयोग को स्वीकार किया और रक्षा जुड़ाव बढ़ाने की पहल पर चर्चा की. बयान में कहा गया कि दोनों पक्षों ने हाल ही में संपन्न मालाबार अभ्यास 2021 की सफलता का भी स्वागत किया। मंत्रियों ने मालाबार अभ्यास में ऑस्ट्रेलिया की निरंतर भागीदारी का स्वागत किया। इस बात की सम्भावना व्यक्त की जा रही है कि ऑस्ट्रेलिया अब मालाबार अभ्यास में स्थायी रूप से भाग लेगा। ऑस्ट्रेलिया ने भारत को भविष्य के तलिस्मान सैबर युद्धाभ्यास में भाग लेने के लिए आमंत्रित कियाजो अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के बीच हरेक दो साल में आयोजित होता है।

Thursday, December 3, 2020

हिंद-प्रशांत क्षेत्र, क्वाड और भारत की भूमिका

 


भारतीय विदेश और रक्षा-नीतियों के संदर्भ में इन दिनों काफी हलचल है। पहली बार भारत ने चीन के खिलाफ साफ शब्दों में बोलना शुरू किया है। देश के पूर्व विदेश सचिव और पूर्व रक्षा सलाहकार श्याम सरन इसे 'ऐतिहासिक हिचकिचाहट' से निजात पाना कहते हैं। देश की इस नीति की आने वाले समय में परीक्षा होगी। देखना होगा कि चीन किस हद तक ताकतवर देश बनता है और हिंद महासागर क्षेत्र में कितने देशों को अपने साथ जोड़ पाता है। पिछले कुछ सप्ताह के घटनाक्रम पर गौर करें, तो पाएंगे कि नेपाल और बांग्लादेश में भारत ने चीनी प्रभाव के बरक्स अपनी पकड़ को बेहतर बनाया है।

हिंद महासागर के बदलते सुरक्षा परिदृश्य पर श्याम सरन ने बिजनेस स्टैंडर्ड में हिंद-प्रशांत क्षेत्र, क्वाड और भारत की भूमिका शीर्षक आलेख में कहा है कि कम से कम इस बात के लिए चीन का शुक्रिया अदा करना चाहिए कि उसने भारत को 'ऐतिहासिक हिचकिचाहट' से निजात पाने में मदद की और वह क्वाड (अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत के बीच सुरक्षा संवाद का अनौपचारिक रणनीतिक मंच) को अपनी हिंद-प्रशांत नीति के केंद्र में ला सका। चीन ने पूर्वी लद्दाख में जो आक्रामकता दिखाई उसने भारत को प्रोत्साहित किया कि वह क्वाड के रूप में चारों देशों के गठजोड़ को संस्थागत स्वरूप प्रदान करे।