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Sunday, December 25, 2022

उथल-पुथल के दौर में गुजरता साल


देश की राजधानी में 2022 की शुरुआत ‘यलो-अलर्ट’ से हुई थी। साल का समापन भी कोविड-19 के नए अंदेशों के साथ हो रहा है। यों भी साल की उपलब्धियाँ महामारी पर विजय और आर्थिक पुनर्निर्माण से जुड़ी हैं। वह ज़माना अब नहीं है, जब हम केवल भारत की बात करें और दुनिया की अनदेखी कर दें। हमारी राजनीति, अर्थव्यवस्था और समाज पर यूक्रेन-युद्ध का भी उतना ही असर हुआ, जितना दो साल पहले कोविड-19 का हुआ था। कोविड-19, जलवायु-परिवर्तन और आर्थिक-मंदी वैश्विक बीमारियाँ हैं, जो हमारे जीवन और समाज को प्रभावित करती रहेंगी। खासतौर से तब, जब हमारी वैश्विक-उपस्थिति बढ़ रही है।

साल के आखिरी महीने की पहली तारीख को भारत ने जी-20 की अध्यक्षता ग्रहण करने के बाद 2023 की इस कहानी के पहले पन्ने पर दस्तखत कर दिए हैं। भारत को लेकर वैश्विक-दृष्टिकोण में बदलाव आया है। इसका पता इस साल मई में मोदी की यूरोप यात्रा के दौरान लगा। यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद भारत ने दोनों पक्षों से दूरी बनाने का रुख अपनाया। इसकी अमेरिका और पश्चिमी देशों ने शुरू में आलोचना की। उन्हें यह समझने में समय लगा कि भारत दोनों पक्षों के बीच महत्वपूर्ण कड़ी साबित हो सकता है। यह बात हाल में बाली में हुए जी-20 शिखर सम्मेलन में भी स्पष्ट हुई, जहाँ नौबत बगैर-घोषणापत्र के सम्मेलन के समापन की थी। भारतीय हस्तक्षेप से घोषणापत्र जारी हो पाया।

यह साल आजादी के 75वें साल का समापन वर्ष था। अब देश ने अगले 25 साल के कुछ लक्ष्य तय किए हैं, जिन्हें प्रधानमंत्री ने ‘अमृतकाल’ घोषित किया है। इस साल 13 से 15 अगस्त के बीच हर घर तिरंगा अभियान के जरिए राष्ट्रीय चेतना जगाने का एक नया अभियान चला, जिसके लिए 20 जुलाई को एक आदेश के जरिए इस राष्ट्रीय-ध्वज कोड में संशोधन किया गया। 

राजनीतिक-दृष्टि से इस साल के चुनाव परिणाम काफी महत्वपूर्ण साबित हुए हैं। राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पद के अलावा सात राज्यों के विधानसभा चुनावों ने राजनीति की दशा-दिशा का परिचय दिया। एक यक्ष-प्रश्न का उत्तर भी इस साल मिला और कांग्रेस ने गैर-गांधी अध्यक्ष चुन लिया। जम्मू-कश्मीर में पिछले एक साल में सुधरी कानून-व्यवस्था ने भी ध्यान खींचा है। पंडितों को निशाना बनाने की कुछ घटनाओं को छोड़ दें, तो लंबे अरसे से वहाँ हड़तालों और आंदोलनों की घोषणा नहीं हो रही है।

देश के 15वें राष्ट्रपति के रूप में श्रीमती द्रौपदी मुर्मू का चुनाव कई मायनों में ऐतिहासिक था। जनजातीय समाज से वे देश की पहली राष्ट्रपति बनीं। इसके अलावा वे देश की दूसरी महिला राष्ट्रपति हैं। यह चुनाव राजनीतिक-स्पर्धा भी थी। उनकी उम्मीदवारी का 44 छोटी-बड़ी पार्टियों ने समर्थन किया था, पर ज्यादा महत्वपूर्ण था, विरोधी दलों की कतार तोड़कर अनेक सांसदों और विधायकों का उनके पक्ष में मतदान करना। यह चुनाव बीजेपी का मास्टर-स्ट्रोक साबित हुआ, जिसका प्रमाण क्रॉस वोटिंग।

‘फूल-झाड़ू’ इस साल का राजनीतिक रूपक है। आम आदमी पार्टी बीजेपी की प्रतिस्पर्धी है, पूरक है या बी टीम है? इतना स्पष्ट है कि वह कांग्रेस की जड़ में दीमक का काम कर रही है। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और गुजरात में भारतीय जनता पार्टी की विजय भविष्य की राजनीति के लिहाज से महत्वपूर्ण रही। उत्तर प्रदेश में जिस किस्म की जीत मिली, उसकी उम्मीद उसके बहुत से समर्थकों को नहीं थी। वहीं, पंजाब में कांग्रेस की ऐसी पराजय की आशंका उसके नेतृत्व को भी नहीं रही होगी। आम आदमी पार्टी की असाधारण सफलता ने भी ध्यान खींचा। इससे पार्टी का हौसला बढ़ा और उसने गुजरात में बड़ी सफलता की घोषणाएं शुरू कर दीं। पार्टी को करीब 13 फीसदी वोट मिले, जिनके सहारे अब वह राष्ट्रीय पार्टी बन गई है। कांग्रेस को दिलासा के रूप में हिमाचल प्रदेश में सफलता मिली। एक बात धीरे-धीरे स्थापित हो रही है कि आम आदमी पार्टी को कांग्रेस के क्षय का लाभ मिल रहा है।

Sunday, January 2, 2022

उम्मीदों पर हावी असमंजस


नए साल की शुरुआत वैष्णो देवी परिसर में हुई दुखद दुर्घटना के साथ हुई है। कुछ समय पहले लगता था कि 2022 का साल संभावनाओं और समाधानों को लेकर आएगा, पर आज यह कोहरे में लिपटी धूप जैसा है। खट्टा-मीठा या गुनगुना सा एहसास है। शुरुआत एक नए वैश्विक-असमंजस के साथ हुई है। वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के इंस्टीट्यूट फॉर हैल्थ मीट्रिक्स एंड इवैल्युएशन (आईएचएमई) का अनुमान है कि अगले दो महीने में कोविड-19 के नए वेरिएंट ओमिक्रॉन से संक्रमित लोगों की संख्या तीन अरब के ऊपर पहुँच जाएगी। तीन अरब यानी दुनिया की आधी आबादी से कुछ कम। यह संख्या पिछले दो साल में संक्रमित लोगों की कुल-संख्या से कई-कई गुना ज्यादा है।

तीन चुनौतियाँ

भारत के सामने इस साल तीन बड़ी चुनौतियाँ हैं। ओमिक्रॉन, अर्थव्यवस्था और चुनाव। महामारी का तीनों से रिश्ता है। पिछले साल अप्रेल-मई में दूसरी लहर का जैसा कहर बरपा हुआ, उसे याद करके डर लगता है। भारत को इस बात का श्रेय भी जाता है कि उसने हालात का काबू में करके दिखाया, पर क्या आगामी चुनौती का सामना हम कर पाएंगे?   

भारत की आजादी के 75वें साल का समापन इस साल होगा। यह ऐतिहासिक वर्ष है। अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष और विश्वबैंक की भविष्यवाणी है कि इस साल भारत की पूरे वेग के साथ वापसी होने वाली है। दुनिया की सबसे तेज अर्थव्यवस्था। 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि 2024-25 तक हम देश को पाँच ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बना देंगे। फिलहाल ऐसा होता लग नहीं रहा है। दस फीसदी या उससे भी ज्यादा की वार्षिक दर हो, तब भी नहीं। फिर भी, शायद इस साल अर्थव्यवस्था तीन ट्रिलियन पार कर लेगी

ओमिक्रॉन का खतरा

ओमिक्रॉन पहेली बनकर सामने आया है। यह जबर्दस्त तेजी से फैलने वाला वैरिएंट है, इसलिए खतरनाक है। पर, इसका असर काफी हल्का है, साधारण फ्लू का दशमांश। इसलिए खतरनाक नहीं है। शायद वह दुनिया को कोविड-19 से बाहर निकालने के लिए आया है। इसके बाद यह बीमारी साधारण फ्लू बनकर रह जाएगी। पर क्या यह शायद सच होगा? 

Saturday, January 1, 2022

राजनीतिक सागर-मंथनों और कोविड-पहेलियों का साल

देश की राजधानी में नए साल की शुरुआत यलो-अलर्ट से हुई है। नेपथ्य से आवाजें सुनाई पड़ रही हैं, सावधान, आगे खतरनाक मोड़ है। इक्कीसवीं सदी के बाईसवें साल की शुरुआत एक नए विश्वयुद्ध के साथ रही है, जो शुरू तो दो साल पहले हुआ था, पर अब निर्णायक मोड़ पर है। वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के इंस्टीट्यूट फॉर हैल्थ मीट्रिक्स एंड इवैल्युएशन (आईएचएमई) का अनुमान है कि अगले दो महीने में कोविड-19 के नए वेरिएंट ओमिक्रॉन से संक्रमित लोगों की संख्या तीन अरब के ऊपर पहुँच जाएगी। तीन अरब यानी दुनिया की आधी आबादी से कुछ कम। यह संख्या पिछले दो साल में संक्रमित लोगों की कुल-संख्या से कई-कई गुना ज्यादा है। क्या ऐसा होगा?  

ओमिक्रॉन पहेली बनकर सामने आया है। इसे दो तरह से बूझ सकते हैं। एक तरफ यह जबर्दस्त तेजी से फैसले वाला वेरिएंट है, इसलिए खतरनाक है। दूसरे, इसका असर काफी हल्का है, साधारण फ्लू का दशमांश। इसलिए खतरनाक नहीं है। शायद वह दुनिया को कोविड-19 से बाहर निकालने के लिए आया है। इसके बाद यह बीमारी साधारण फ्लू बनकर रह जाएगी। पर क्या यह शायद सच होगा?  

भारत की आजादी के 75वें साल का समापन इस साल होगा। यह ऐतिहासिक वर्ष है। अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष और विश्वबैंक की भविष्यवाणी है कि इस साल भारत की पूरे वेग के साथ वापसी होने वाली है। दुनिया की सबसे तेज अर्थव्यवस्था। 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि 2024-25 तक हम देश को पाँच ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बना देंगे। फिलहाल ऐसा होता लग नहीं रहा है। दस फीसदी या उससे भी ज्यादा की वार्षिक दर हो, तब भी नहीं। फिर भी, शायद इस साल अर्थव्यवस्था तीन ट्रिलियन पार कर लेगी

समुद्र-मंथन

इस समुद्र-मंथन के देवता और दानव आप तय करें, पर यह साल बेहद रोचक और रोमांचक होने वाला है। विरोधियों को एकसाथ आने के मौके मिलेंगे, वहीं मोदी के प्रभामंडल का विस्तार होने के प्रचुर-अवसर भी हैं। इस साल चुनाव ही चुनाव हैं, जिनमें ताकत और हैसियतों का पता लगेगा। राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पद के अलावा सात या आठ राज्यों के विधानसभा चुनाव और तीन बड़े महानगरों के नगर निकाय चुनावों से बहुत बातें स्पष्ट हो जाएंगी। इस साल का यक्ष-प्रश्न है, क्या कांग्रेस नए अध्यक्ष की घोषणा करेगी? पार्टी ने कहा है कि अगस्त-सितंबर तक अध्यक्ष का चुनाव करा लेंगे। वह खानदानी होगा या बाहर का? ममता बनर्जी क्या विपक्ष की एकछत्र नेता बनकर उभरेंगी? योगी आदित्यनाथ क्या उत्तर प्रदेश के नए लोह-पुरुष साबित होंगे? ऐसे तमाम सवालों के जवाब इस साल की झोली में हैं।  

रामनाथ कोविंद क्या फिर से प्रत्याशी बनेंगे? या किसी नए प्रत्याशी, मसलन वेंकैया नायडू को, पार्टी चुनाव लड़ाएगी? केवल राजेंद्र प्रसाद ही ऐसे राष्ट्रपति हुए हैं, जो दो बार इस पद पर रहे हैं। फरवरी मार्च में उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर के चुनाव होंगे। नवंबर-दिसंबर में गुजरात और हिमाचल प्रदेश में। हालात ठीक रहे तो जम्मू-कश्मीर में भी चुनाव हो सकते हैं।

फरवरी में बृहन्मुम्बई नगर महापालिका और महाराष्ट्र के कई शहरों के नगर निगम के चुनाव महाराष्ट्र के राजनीतिक स्वास्थ्य की जानकारी देंगे। बीजेपी और महाराष्ट्र विकास अघाड़ी के बीच सीधा मुकाबला होगा या अलग-अलग पार्टियाँ उतरेंगी? अप्रेल में दिल्ली के तीन नगर निगमों के चुनाव होंगे। क्या आम आदमी पार्टी विधानसभा के साथ-साथ नगर निगमों पर भी कब्जा करने में कामयाब होगी? पश्चिम बंगाल में भी नगर निगमों के चुनाव हैं।