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Wednesday, December 20, 2023

अमेरिकी राजनीति की लपेट में रद्द हुई बाइडेन की भारत-यात्रा


अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन 2024 के गणतंत्र दिवस समारोह में मुख्य अतिथि के तौर पर दिल्ली नहीं आएंगे. पहले यह बात केवल मीडिया रिपोर्टों के माध्यम से सुनाई पड़ी थी, पर अब आधिकारिक रूप से भी बता दिया गया है. यात्रा का इस तरह से रद्द होना, राजनयिक और राजनीतिक दोनों लिहाज से अटपटा है.

बाइडेन की यात्रा की बात औपचारिक रूप से घोषित भी नहीं की गई थी, पर भारत में अमेरिका के राजदूत एरिक गार्सेटी ने गत 20 सितंबर को उत्साह में आकर इस बात की जानकारी एक पत्रकार को दे दी थी. बहरहाल अब दोनों देशों के सूत्रों ने इस बात की पुष्टि की है कि प्रस्तावित यात्रा नहीं होगी.

गणतंत्र की प्रतिष्ठा

गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि बनना भारत की ओर से अतिथि को दिया गया बड़ा राजनयिक सम्मान है. भारत की राजनयिक गतिविधियों में अमेरिकी राष्ट्रपति की यात्रा को उच्चतम स्तर दिया जाता है. ऐसे कार्यक्रमों की घोषणा तभी की जाती है, जब हर तरफ से आश्वस्ति हो, ताकि बाद में शर्मिंदगी न हो.  

बताते हैं कि सितंबर में दिल्ली में जी-20 सम्मेलन के दौरान दोनों देशों के बीच हुई बैठक में प्रधानमंत्री मोदी ने बाइडेन को भारत-यात्रा की निमंत्रण दिया था. बैठक के बाद जारी संयुक्त वक्तव्य में इस निमंत्रण की जानकारी नहीं थी, पर अमेरिकी राजदूत ने एक भारतीय पत्रकार को बता दिया कि बाइडेन को गणतंत्र दिवस-2024 के लिए मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया है.

रिश्ते बिगड़ेंगे नहीं

अमेरिका के राष्ट्रीय रक्षा सलाहकार जेक सुलीवन ने अब कहा है कि जो बाइडेन अब भारत नहीं आ सकेंगे, पर भारत के साथ रिश्तों को प्रगाढ़ करने में उनकी निजी दिलचस्पी बदस्तूर बनी रहेगी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उनकी व्यक्तिगत दोस्ती है, जो आने वाले समय में भी जारी रहेगी.

यात्रा का रद्द होना उतनी बड़ी घटना नहीं है, जितनी उसके साथ जुड़ी दूसरी बातें हैं. भारत-अमेरिका संबंधों को प्रगाढ़ करने में भारत से ज्यादा अमेरिका की दिलचस्पी है. अमेरिका के दोनों राजनीतिक दल चीन के खिलाफ भारत को समर्थन देने के पक्षधर हैं, पर इस समय यात्रा रद्द होने के पीछे भी वहाँ की आंतरिक रस्साकशी की भूमिका है.

Wednesday, December 13, 2023

भारत-अमेरिका रिश्तों पर पन्नू-निज्जर प्रसंगों की छाया

दिल्ली में एनआईए के प्रमुख के साथ एफबीआई के प्रमुख 

अमेरिका में खालिस्तानी-अलगाववादी गतिविधियों और गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या की कथित साजिश से जुड़े एक मामलों को लेकर दोनों देशों के गुपचुप-मतभेद जरूर सामने आए हैं, पर इससे यह नहीं मान लेना चाहिए कि दोनों देशों के रिश्तों में खटास आ जाएगी. अलबत्ता इन मामलों से भारत की प्रतिष्ठा जुड़ी है.

बावजूद इसके बातें इतनी बड़ी नहीं हैं कि दोनों देशों के रिश्तों में बिगाड़ पैदा हो जाए. पन्नू-प्रसंग से मिलता-जुलता मामला कनाडा में हरदीप सिंह निज्जर की हत्या से जुड़ा है. इन दोनों मामलों को लेकर भारत की खुफिया एजेंसी की प्रतिष्ठा को लेकर सवाल खड़े हुए हैं. दूसरी तरफ भारत के सामने खालिस्तानी चरमपंथियों को काबू करने की चुनौतियाँ भी है.

अमेरिका को चीनी चुनौती का सामना करने के लिए भारत की जरूरत है. एशिया में भारत ही अमेरिका के काम आ सकता है. ऐसा भारत की भौगोलिक स्थिति के अलावा आर्थिक और सामरिक मजबूती की वजह से भी है. भारत को भी अमेरिका की जरूरत है, क्योंकि वह दो ऐसे देशों से घिरा है, जो उसे अज़ली दुश्मन मानते हैं.

Sunday, September 26, 2021

मोदी की अमेरिका-यात्रा के निहितार्थ

क्वॉड सम्मेलन

प्रधानमंत्री की अमेरिका-यात्रा के मोटे तौर पर क्या निहितार्थ हैं, इसे समझने के लिए देश के कुछ प्रमुख पत्रकारों-विशेषज्ञों और मीडिया-हाउसों की राय जानने का प्रयास करना होगा। पिछले सात साल में मोदी जी की यह सातवीं अमेरिका यात्रा थी। इसके पहले वे 2014,2015 के बाद 2016 में दो बार और फिर 2017 और 2019 में अमेरिका गए थे। इन यात्राओं के दौरान तीन अलग-अलग राष्ट्रपतियों से उन्होंने मुलाकात की। बराक ओबामा, डोनाल्ड ट्रंप और अब जो बाइडेन। आज के हिन्दू में प्रकाशित सुहासिनी हैदर के निष्कर्ष सबसे पहले पढ़ें। उनके अनुसार यह यात्रा खास थी, क्योंकि:

1.कोविड के कारण करीब दो साल बाद (बांग्लादेश की एक यात्रा को छोड़कर) यह उनकी पहली और बड़ी विदेश-यात्रा थी।

2.राष्ट्रपति के रूप में जो बाइडेन से यह उनकी पहली रूबरू मुलाकात थी।

3.वे क्वॉड के व्यक्तिगत उपस्थिति वाले पहले शिखर सम्मेलन में भी शामिल हुए। यह सम्मेलन इसलिए भी महत्वपूर्ण था, क्योंकि इसके एक हफ्ते पहले ही अमेरिका ने हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में ऑकस नाम के एक नए गठबंधन की घोषणा की थी।

4.कमला हैरिस के साथ पहली मुलाकात हुई, जो कुछ समय पहले तक मोदी सरकार की कश्मीर-नीतियों की आलोचक थीं। सन 2019 में विदेशमंत्री एस जयशंकर ने अमेरिकी सांसद प्रमिला जयपाल से मुलाकात के साथ एक बैठक का बहिष्कार किया था, उसकी भी कमला हैरिस ने आलोचना की थी।

5.नरेंद्र मोदी अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के साथ हाउडी-मोदी कार्यक्रम में शामिल होने के बाद पहली बार अमेरिका-यात्रा पर गए हैं।

अमेरिका की बैठकों के कुछ सामान्य विषय इस प्रकार थे:

हिन्द-प्रशांत क्षेत्र पर फोकस। हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय नियम-आधारित व्यवस्था की स्थापना को लेकर प्रायः सभी बैठकों में चर्चा हुई। हालांकि चीन का नाम नहीं लिया गया, जिससे लगता है कि बाइडेन-प्रशासन सावधानी बरत रहा है।

चीन-पाक दुरभिसंधि पर वार


प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अमेरिका-यात्रा का साफ संदेश पाकिस्तान और चीन की दुरभिसंधि के नाम है। राष्ट्रपति जो बाइडेन के साथ आमने-सामने की मुलाकात और क्वॉड के शिखर सम्मेलन और संयुक्त राष्ट्र महासभा में मोदी के भाषण को जोड़कर देखें, तो चीन और पाकिस्तान दोनों के लिए स्पष्ट संदेश है। आने वाले दिनों में भारत की हिंद-प्रशांत क्षेत्र में बड़ी भूमिका का इशारा भी इनमें देखा जा सकता है। बाइडेन से मुलाकात के पहले उपराष्ट्रपति कमला हैरिस से मुलाकात का भी विदेश-नीति के लिहाज से महत्व है।

संयुक्त राष्ट्र महासभा में नरेन्द्र मोदी ने जलवायु परिवर्तन, महामारी, वैक्सीन और मानव कल्याण के तमाम सवालों को उठाते हुए बहुत संयत शब्दों में अफगानिस्तान की स्थिति का जिक्र किया और चेतावनी दी कि वे उस जमीन का इस्तेमाल आतंकी हमलों के लिए न करें। प्रकारांतर से यह चेतावनी पाकिस्तान के नाम है। समुद्री मार्गों की स्वतंत्रता बनाए रखने के संदर्भ में उन्होंने चीन को भी चेतावनी दी। उन्होंने संरा की साख बढ़ाने का सुझाव भी दिया, जिसमें उन्होंने दूसरी बातों के साथ कोविड-संक्रमण के मूल का जिक्र भी किया।

व्यापक निहितार्थ

अमेरिका में हुई चर्चाओं को जोड़कर पढ़ें, तो कोविड, क्लाइमेट और क्वॉड के अलावा अफगानिस्तान पर विचार हुआ। पाकिस्तान को आतंकवाद और कट्टरपंथ पर कठोर संदेश मिले, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान के नेतृत्व के साथ प्रधानमंत्री मोदी की चीन से उपजे खतरों पर विस्तृत चर्चा हुई। साथ ही ऑकस से जुड़ी आशंकाओं को भी दूर किया गया। इन सबके अलावा प्रधानमंत्री ने बड़ी अमेरिकी कम्पनियों के सीईओ के साथ बैठकें करके भारतीय अर्थव्यवस्था के तेज विकास का रास्ता भी खोला है। द्विपक्षीय बैठकों में अफगानिस्तान का मुद्दा भी हावी रहा। भारत ने बताया है कि कैसे तालिबान को चीन और पाकिस्तान की शह मिल रही है, जिससे भारत ही नहीं दुनिया की मुश्किलें बढ़ेंगी। अमेरिका ने भारत के इस दृष्टिकोण को स्वीकार किया है।

Wednesday, July 28, 2021

अफगानिस्तान में चीनी प्रवेश की तैयारी



तीन खबरों को एकसाथ मिलाकर पढ़ें। तालिबान के संस्थापकों में से एक और अमेरिका के साथ हुई बातचीत में मुख्य वार्ताकार मुल्ला अब्दुल ग़नी बारादर अपने दल-बल के साथ पहुँचे हैं। उनके चीन आगमन के ठीक पहले पाकिस्तान के विदेशमंत्री महमूद शाह कुरैशी सोमवार को चीन आए थे। इन दो खबरों के समांतर मंगलवार 27 जुलाई की शाम अमेरिकी विदेशमंत्री भारत एंटनी ब्लिंकेन दो दिन के दौरे पर दिल्ली पहुँचे। इसके पहले से खबरें हैं कि चीन और पाकिस्तान ने अफ़ग़ानिस्तान को 'आतंकवाद का गढ़' नहीं बनने देने के लिए वहाँ 'संयुक्त कार्रवाई' करने का फ़ैसला किया है।

इस संयुक्त कार्रवाई की भनक अमेरिका को भी है। हालांकि अमेरिका की दिलचस्पी अब अफगानिस्तान में बहुत ज्यादा नहीं लगता है, पर चीन की दिलचस्पी पर उसकी निगाहें हैं और ब्लिंकेन के दिल्ली दौरे के पीछे यह भी एक महत्वपूर्ण कारण है। उधर पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी ने चीन के विदेश मंत्री वांग यी से मुलाक़ात की है। तालिबान नेता बारादर की मुलाकात भी चीनी विदेशमंत्री से हुई है। हाल में तालिबान के प्रवक्ता सुहेल शाहीन ने कहा था कि हम चीन को अफ़ग़ानिस्तान के एक दोस्त के रूप में देखते हैं। खबरें हैं कि अफगानिस्तान में तालिबान का नियंत्रण चीन के शिनजियांग प्रांत से लगी सीमा-क्षेत्र में हो गया है।

तालिबानी टीम चीन में

तालिबान नेता बारादर से चीनी विदेशमंत्री वांग की मुलाकात बुधवार 28 जुलाई को चीन के उत्तरी नगर तियानजिन में हुई। उधर अफगानिस्तान में तालिबान की बढ़त लगातार जारी है, पर हाल में अमेरिकी वायुसेना के हवाई हमलों से स्थिति में बदलाव आया है। इन हमलों को लेकर तालिबान ने कहा है कि यह दोहा में हुए समझौते का उल्लंघन है। ज़ाहिर है कि दिल्ली में भारत और अमेरिका के विदेशमंत्रियों की बातचीत का विषय भी अफगानिस्तान और वहाँ चीन की बढ़ती दिलचस्पी है।

चीन ने अफगानिस्तान में ज्यादा बड़ी भूमिका निभाने का वायदा किया है। रॉयटर्स के अनुसार चीनमी विदेशमंत्री ने तालिबान प्रतिनिधियों से कहा कि उम्मीद है आप ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमंट (ईटीआईएम) के खिलाफ कार्रवाई करेंगे, क्योंकि यह संगठन चीन की सुरक्षा के लिए खतरा है। जून में चीनी विदेशमंत्री ने अफगानिस्तान और पाकिस्तान के विदेशमंत्रियों के साथ बातचीत में कहा था कि हम तालिबान को मुख्यधारा में वापस लाएंगे और अफगानिस्तान के सभी पक्षों के बीच मध्यस्थता करने को तैयार हैं। तालिबान नेताओं ने इशारा किया है कि उन्हें उम्मीद है कि चीन से अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में निवेश करने पर बातचीत होगी। एक तरह से यह चीन के बीआरआई कार्यक्रम से जुड़ने की मनोकामना है, जिसका एक हिस्सा पाकिस्तान-चीन आर्थिक कॉरिडोर यानी सीपैक है। 

Tuesday, May 25, 2021

भारत-अमेरिका रिश्तों में मजबूती का दौर


विदेशमंत्री एस जयशंकर रविवार को अमेरिका के दौरे पर पहुंचे। इस दौरान वे संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंतोनियो गुटेरेश से आज सुबह (भारतीय समय से शाम) मुलाकात करेंगे और उसके बाद वॉशिंगटन डीजी जाएंगे जहां अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन से उनकी भेंट होगी। इस साल जनवरी में राष्ट्रपति जो बाइडेन के कार्यभार संभालने के बाद भारत के किसी वरिष्ठ मंत्री का अमेरिका का यह पहला दौरा है। 1 जनवरी 2021 को भारत के संरा सुरक्षा का सदस्य बनने के बाद जयशंकर का पहला दौरा है। दौरे का समापन 28 मई को होगा।

भारत-चीन सम्बन्धों में आती गिरावट, पश्चिम एशिया में पैदा हुई गर्मी, अफगानिस्तान से अमेरिका की वापसी और भारत-पाकिस्तान रिश्तों को लेकर कई तरह के कयासों के मद्देनज़र यह दौरा काफी महत्वपूर्ण है। इन बातों के अलावा वैश्विक महामारी और खासतौर से वैक्सीन वितरण भी इस यात्रा के दौरान महत्वपूर्ण विषय होगा। शायद सबसे महत्वपूर्ण कारोबारी मसले होंगे, जिनपर आमतौर पर सबसे कम चर्चा होती है।

कुल मिलाकर भारत-अमेरिका के बीच द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक रिश्तों का यह सबसे महत्वपूर्ण दौर है। चतुष्कोणीय सुरक्षा-व्यवस्था यानी क्वॉड ने एकसाथ तीनों आयामों पर रोशनी डाली है। दोनों देशों के बीच जो नई ऊर्जा पैदा हुई है, उसके व्यावहारिक अर्थ अब स्पष्ट होंगे। विदेशी मामलों के विशेषज्ञ सी राजा मोहन ने आज के इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है कि अभी तक उपरोक्त तीन विषयों को अलग-अलग देखा जाता था।

भारत की वैश्विक अभिलाषाओं के खुलने और राष्ट्रपति जो बाइडेन द्वारा ट्रंप प्रशासन के एकतरफा नजरिए को दरकिनार करने के कारण ये तीनों मसले करीब आ गए हैं। दूसरी तरफ वैश्विक मामलों में पश्चिम के विरोध की भारतीय नीति अब अतीत की बात हो गई है। अब हम यूरोपियन गठबंधन और अमेरिका के साथ हैं।

Tuesday, February 9, 2021

बाइडेन-मोदी वार्ता में चीनी दादागिरी रोकने पर सहमति


अमेरिका के राष्‍ट्रपति जो बाइडेन ने पद संभालने के बाद पहली बार भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से फोन पर जो बात की, उसमें केंद्रीय विषय हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्‍वतंत्र और मुक्‍त आवागमन और चीनी दादागिरी था। दोनों नेताओं ने कहा कि क्वॉड के जरिए हिंद-प्रशांत क्षेत्र में क्षेत्रीय अखंडता और मजबूत क्षेत्रीय ढांचे को समर्थन दिया जाएगा। 

विश्‍लेषकों का मानना है कि भारतीय प्रधानमंत्री के साथ पहली ही बातचीत में क्‍वॉड पर जोर देकर अमेरिकी राष्‍ट्रपति जो बाइडेन ने अपने इरादे साफ कर दिए हैं। क्‍वॉड एक ऐसा समूह है जिसे लेकर चीन परेशान है। वह कई बार भारत को इससे दूर रहने के लिए धमका चुका है। 

द क्वॉड्रिलैटरल सिक्‍यॉरिटी डायलॉग में भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं और इसमें ब्रिटेन के भी शामिल होने की बात चल रही है। कनाडा ने भी इस संगठन की ओर सकारात्‍मक रुख दिखाया है। वहीं चीन की आक्रामकता झेल रहे कई दक्षिण पूर्वी एशियाई देश जैसे वियतनाम भी इस संगठन में जुड़ सकते हैं। 

Thursday, January 21, 2021

जो बाइडेन का आगमन और रिश्तों का नया दौर

 


अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के पराभव के साथ नए राष्ट्रपति जो बाइडेन के प्रशासन ने कार्यभार संभाल लिया है और उसके साथ ही यह सवाल पूछा जा रहा है कि भारत के साथ अमेरिका के रिश्ते कैसे रहेंगे। बहरहाल शुरुआत अच्छी हुई है और संकेत मिल रहे हैं कि भारत और अमेरिका की मैत्री प्रगाढ़ ही होगी। उसमें किसी किस्म की कमी आने के संकेत नहीं हैं। अलबत्ता नए प्रशासन की आंतरिक और विदेश नीति में काफी बड़े बदलाव देखने में आ रहे हैं। जो बाइडेन ने जो फैसले किए हैं, उनमें भारत को लेकर सीधे कोई बात नहीं है, पर उनके रक्षामंत्री लॉयड ऑस्टिन ने जो कहा है, वह जरूर महत्वपूर्ण है।

जैसा कि पहले से ही माना जा रहा था कि बाइडेन शपथ लेने के बाद डोनाल्ड ट्रंप के कुछ फैसले पलट देंगे, वैसा ही हुआ। कामकाज संभालते ही बाइडेन एक्शन में आ गए और कम से कम नए आदेश एक झटके में दे डाले। उन्होंने कई ऐसे आदेशों पर दस्तखत किए हैं, जिनकी लंबे समय से मांग चल रही थी। खासतौर से कोरोना वायरस, आव्रजन और जलवायु परिवर्तन के मामले में उनके आदेशों को अमेरिका की नीतियों में बड़ा बदलाव माना जा सकता है।

Monday, January 4, 2021

जो बाइडेन की प्राथमिकताओं पर भारत की निगाहें


आगामी 20 जनवरी को जो बाइडेन अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में अपना काम संभाल लेंगे। वे कहते रहे हैं कि मेरा सबसे पहला काम कोविड-19 की महामारी को रोकने का होगा। यह काम स्वाभाविक है, पर वे इसके साथ ही कुछ दूसरी बड़ी घोषणाएं अपने काम के पहले दिन कर सकते हैं। अपने चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने दर्जनों और महत्वाकांक्षी कार्यक्रमों को गिनाया है। इनमें आर्थिक और पर्यावरण से जुड़े मसले हैं, सामाजिक न्याय, शिक्षा तथा सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़ी बातें हैं।

डोनाल्ड ट्रंप की कुछ नीतियों को वापस लेने या उनमें सुधार के काम भी इनमें शामिल कर सकते हैं। उन्होंने अपने पहले 100 दिन के जो काम घोषित किए हैं उनमें आप्रवास से जुड़ी कोई दर्जन भर बातें हैं, जिन्हें लागू करना आसान भी नहीं है। सबसे बड़ी परेशानी संसद में खड़ी होगी। प्रतिनिधि सदन में डेमोक्रेटिक पार्टी का बहुमत जरूर है, पर वहाँ भी रिपब्लिकन पार्टी ने अपनी स्थिति बेहतर बनाई है। सीनेट की शक्ल जनवरी में जॉर्जिया की दो सीटों पर मतदान के बाद स्पष्ट होगी।

Sunday, November 8, 2020

भारतीय दृष्टि में जो बिडेन

 


डेमोक्रेटिक पार्टी के जो बिडेन अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव जीत चुके हैं। अब उनकी टीम और उनकी नीतियों को लेकर बातें हो रही हैं। हमारी दृष्टि से पहला सवाल यह बनता है कि वे भारत के लिए कैसे राष्ट्रपति साबित होंगे? हमारे देश के ज्यादातर लोग समझना चाहते हैं कि भारत के प्रति उनका नजरिया कैसा होगा। क्या वे हमारे मित्र साबित होंगे? इस सवाल का सीधा जवाब है कि वे साबित होंगे या नहीं, यह दीगर बात है, वे पहले से भारत के मित्र माने जाते हैं।

वे बराक ओबामा के कार्यकाल में उप राष्ट्रपति थे और भारत के साथ अच्छे रिश्ते बनाने के जबर्दस्त समर्थक थे। उन्होंने पहले सीनेट की विदेशी मामलों की समिति के अध्यक्ष के रूप में और बाद में उप राष्ट्रपति के रूप में अमेरिका की भारत-समर्थक नीतियों को आगे बढ़ाया। वस्तुतः उपराष्ट्रपति बनने के काफी पहले सन 2006 में उन्होंने कहा था, मेरा सपना है कि सन 2020 में अमेरिका और भारत दुनिया में दो निकटतम मित्र देश बनें।

Friday, May 3, 2013

अमेरिका जाने का शौक है तो उसे झेलना भी सीखिए


अमेरिका के हवाई अड्डों से अक्सर भारतीय नेताओं या विशिष्ट व्यक्तियों के अपमान की खबरें आती हैं। अपमान से यहाँ आशय उस सामान्य सुरक्षा जाँच और पूछताछ से है जो 9/11 के बाद से शुरू हुई है। आमतौर पर यह शिकायत विशिष्ट व्यक्तियों या वीआईपी की ओर से आती है। सामान्य व्यक्ति एक तो इसके लिए तैयार रहते हैं, दूसरे उन्हें उस प्रकार का अनुभव नहीं होता जिसका अंदेशा होता है। मसलन एक पाकिस्तानी नागरिक ने अपने ब्लॉग में लिखा है कि मुझसे तकरीबन 45 मिनट तक पूछताछ की गई, पर किसी वक्त अभद्र शब्दों का इस्तेमाल नहीं हुआ। मेरी पत्नी को मैम और मुझे सर या मिस्टर सिद्दीकी कहकर ही सम्बोधित किया गया। उन्होंने सवाल भी मामूली पूछे, जिनमें मेरा कार्यक्रम क्या है, मैं करता क्या हूँ, अमेरिका क्यों आया हूँ वगैरह थे। दरअसल हमारे देश के नागरिक अपने देश की सुरक्षा एजेंसियों के व्यवहार से इतने घबराए होते हैं कि उन्हें अमेरिकी एजेंसियों के बर्ताव को लेकर अंदेशा बना रहता है।

Tuesday, February 15, 2011

सं रा सुरक्षा परिषद में बदलाव


हाल में ग्रुप-4 के देशों की न्यूयॉर्क में हुई बैठक के बाद जारी वक्तव्य में उम्मीद ज़ाहिर की गई है कि इस साल जनरल असेम्बली के सत्र में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सुधारों की दिशा में कोई ठोस कदम उठा लिया जाएगा। जी-4 देशों में भारत, जर्मनी, जापान और ब्राजील आते हैं। ये चार देश सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के दावेदार हैं।

Sunday, November 7, 2010

ओबामा का पहला दिन

ओबामा की यात्रा के पहले ही दिन भाजपा की आपत्ति समझ में नहीं आई। मुम्बई में सबसे महत्वपूर्ण कार्यक्रम  भारत के उद्योग-व्यापार जगत के साथ संवाद का था। इसके लिए काफी पहले से तैयार फैसलों की घोषणा की गई है। ताज होटल से ओबामा की यात्रा का प्रारम्भ प्रतीक रूप में आतंकवाद-विरोधी वक्तव्य है। राजनैतिक वक्तव्य दिल्ली आने पर ही होना चाहिए। ओबामा बचना भी चाहेंगे तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कहीं यह बात उठाएंगे। सुषमा स्वराज खुद ओबामा से मुलाकात करने वाली हैं। किसी विदेशी यात्री की यात्रा शुरू होने के पन्द्रह मिनट के भीतर आलोचनात्मक वक्तव्य जारी करना मुझे बचकाना लगता है।

कल की घोषणाओं में इसरो, भारत डायनैमिक्स और डीआरडीओ पर से टेक्नॉलजी ट्रांसफर की पाबंदियाँ हटने की खबर महत्वपूर्ण है। अब अणु-ऊर्जा विभाग की पाबंदियाँ रह गईं हैं। शायद वे भी खत्म हो जाएंगी। भारत को  न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप में प्रवेश मिलने पर इस दिशा में एक कदम और आगे बढ़ेंगे। हालांकि इन सब बातों का फायदा अमेरिका को भी है, पर हमें भी तो है। इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय समुदाय में हमारी जगह पहले के मुकाबले बेहतर होती जा रही है। अब से दस साल बाद हमारी पोजीशन आज के चीन से बेहतर होगी।

इस बात पर भी ध्यान दें कि हमारी प्रतियोगिता पाकिस्तान से नहीं है। हालांकि पाकिस्तान हमें निरंतर अपने बराबर खड़ा करने की कोशिश कर रहा है, पर अमेरिका उसे इस्लामी देशों का फ्रंटल स्टेट होने तक का ही महत्व देता है। भारत की उसे आर्थिक-सहयोग के लिए ज़रूरत है। इस रास्ते पर हम चले तो शायद पाकिस्तान भारत के साथ सामरिक प्रतियोगिता की जगह आर्थिक सहयोग के रास्ते पर आए। पाकिस्तान ने युद्धोन्माद और जेहादी राजनीति के कारण अपना काफी नुकसान कर लिया है।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के मामले में अमेरिका हमारा सीधे समर्थन नहीं करेगा। सुरक्षा परिषद के सुधार की ज़रूरत आने वाले समय में महसूस की जाएगी। बेशक कुछ विशेषाधिकार-प्राप्त देशों का अलग समूह बनाने की बात समझ में नहीं आती। पर विश्व समुदाय उतना अच्छा समुदाय नहीं है, जितना शब्दकोश का समुदाय शब्द है। भारत और पाकिस्तान हर स्तर पर समान नहीं हैं। और पाकिस्तान भी खुद को मालदीव के बराबर नही गिनेगा। श्रीलंका भी अपने आप को भूटान के बराबर नहीं रखेगा। बहरहाल देखते हैं आगे क्या होता है।

नीचे मैने अनिता जोशुआ की हिन्दू में प्रकाशित रपट को रखा है, जो आज ही छपी है।

From The Hindu 7.11.2010
Don't endorse Indian bid for UNSC seat, says Pakistan

Anita Joshua
ISLAMABAD: Ahead of U. S. President Barack Obama's India visit, Pakistan on Friday warned that any endorsement of the Indian bid for a permanent seat in the United Nations Security Council (UNSC) would have a negative impact on issues relating to peace and security in South Asia.

“Existing anomalies”

This view was articulated by the Foreign Office before the Special Committee of the Parliament on Kashmir. Asked about India's prospects in acquiring a permanent seat in the UNSC and possible U. S. endorsement for such a position, the Foreign Office representatives sought to point out that Pakistan was opposed to expansion in the permanent category and “further perpetuation of existing anomalies.”

Against Charter

Pakistan's contention is that endorsing the candidacy of any one of more States for a permanent seat on the UNSC would be at variance with the spirit of the U.N.Charter and infringes upon the principles of sovereign equality.

“Creating a new class of privileged members, with or without veto, is not an option. The issue of the UNSC's expansion cannot be divorced from the broader questions relating to the restructuring of the global system.”

Consensus

According to the Foreign Office, Pakistan has been consistent on this position. “Such decisions that impact on the global system of inter-State relations based on the Charter require consensus. The spirit and the principles of the Charter should not be compromised, and sovereign equality is a cardinal principle.”

Counter-productive

While the Committee endorsed the government's position that India like any other sovereign State was entitled to develop its own bilateral relations in a manner it deems fit, the Foreign Office — in its briefing on the Obama visit to India — said the U. S. was informed about the need to maintain regional balance in South Asia.

“It is Pakistan's considered view that anything that militates against the regional balance is counter-productive and not in the interest of the region and the world.”