Sunday, December 31, 2017

सुलगते सवाल सा साल

भारत के लिए 2017 का साल बेहद जोखिम भरा साबित हुआ है। आंतरिक राजनीति की गहमा-गहमी, सांस्कृतिक टकरावों, आर्थिक उतार-चढ़ाव और विदेश नीति के गूढ़-प्रश्नों पर निगाह डालें तो पता लगेगा कि हमने एक साल में कई साल की यात्रा पूरी की है। इसकी शुरुआत उसके पिछले साल यानी 2016 के अंत में नोटबंदी और सर्जिकल स्ट्राइक जैसी दो बड़ी घटनाओं से हुई थी। साथ ही 2017 की शुरूआत पाँच राज्यों के विधानसभा चुनाव के शोर और आम बजट की तारीख में बदलाव से जुड़ी बहस के साथ हुई। इस साल तमाम सवालों के जवाब मिले, फर भी अपने पीछे यह अनेक गूढ़-प्रश्न छोड़ गया है, जिनके जवाब आने वाला साल देगा।
राष्ट्रीय राजनीति के लिहाज से साल का आगाज़ उत्तर प्रदेश में सत्ता परिवर्तन से और समापन गुजरात के जनादेश के साथ हुआ। गुजरात का परिणाम अपने पीछे एक पहेली छोड़ गया है कि जीत किसकी जीत हुई और किसकी हार? इस पहेली को बूझने के लिए अगले साल कर्नाटक, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के अलावा मेघालय, त्रिपुरा और नगालैंड जैसे पूर्वोत्तर के तीन राज्यों के चुनाव होने हैं। ये चुनाव पूरे साल को सरगर्म बनाकर रखेंगे और सन 2019 के लोकसभा चुनाव की पृष्ठपीठिका तैयार करेंगे।

Wednesday, December 27, 2017

आइए आज गीत ग़ालिब का गाएं

27 दिसम्बर 1797 को मिर्ज़ा असद-उल्लाह बेग ख़ां उर्फ ग़ालिब” का जन्म आगरा मे एक सैनिक पृष्ठभूमि वाले परिवार में हुआ था। वे उर्दू और फ़ारसी के महान शायर थे। उन्हें उर्दू के सार्वकालिक महान शायरों में गिना जाता है। ग़ालिब (और असद) नाम से लिखने वाले मिर्ज़ा मुग़ल काल के आख़िरी शासक बहादुर शाह ज़फ़र के दरबारी कवि भी रहे थे। 1850 मे शहंशाह बहादुर शाह ज़फर द्वितीय ने मिर्ज़ा गालिब को "दबीर-उल-मुल्क" और "नज़्म-उद-दौला" के खिताब से नवाज़ा। बाद मे उन्हे "मिर्ज़ा नोशा" का खिताब भी मिला। आगरादिल्ली और कलकत्ता में अपनी ज़िन्दगी गुजारने वाले ग़ालिब को मुख्यतः उनकी ग़ज़लों को लिए याद किया जाता है। 15 फरवरी 1869 को उनका निधन हुआ। सन 1969 में भारत सरकार ने महात्मा गांधी की जन्मशती मनाई। संयोग से उसी साल ग़ालिब की पुण्यतिथि की शताब्दि थी। भारत सरकार ने ग़ालिब की शताब्दी भी मनाई। कहना मुश्किल है कि स्वतंत्र भारत में महात्मा गांधी से लेकर हिन्दी और उर्दू का सम्मान कितना बढ़ा, पर उर्दू के शायर साहिर लुधयानवी के मन में उर्दू को लेकर ख़लिश रही। इस मौके पर मुम्बई में हुए एक समारोह में साहिर ने उर्दू को लेकर जो नज़्म पढ़ी उसे दुबारा पढ़ाने को मन करता है। शायद आप में से बहुत से लोगों ने इसे पढ़ा हो।

इक्कीस बरस गुज़रे, आज़ादी-ए-कामिल को
तब जाके कहीं हमको, ग़ालिब का ख़याल आया
तुर्बत है कहाँ उसकीमसकन था कहाँ उसका
अब अपने सुख़नपरवर ज़हनों में सवाल आया
आज़ादी-ए-कामिल: संपूर्ण स्वतंत्रता         तुर्बत: क़ब्रमज़ार
मसकन: घर             सुख़नपरवर ज़हनों: शायरी के संरक्षकख़यालों

सौ साल से जो तुर्बत, चादर को तरसती थी
अब उसपे अक़ीदत के, फूलों की नुमाइश है
उर्दू के तअल्लुक़ से, कुछ भेद नहीं खुलता
यह जश्न यह हंगामा, ख़िदमत है कि साज़िश है
अक़ीदत: श्रद्धानिष्ठा         तअल्लुक़: प्रेमसेवापक्षपात

जिन शहरों में गूँजी थी, ग़ालिब की नवा बरसों
उन शहरों में अब उर्दू, बेनाम-ओ-निशाँ ठहरी
आज़ादी-ए-कामिल का, ऐलान हुआ जिस दिन
मअतूब ज़ुबाँ ठहरी, ग़द्दार ज़ुबाँ ठहरी
नवा: आवाज़                    बेनाम-ओ-निशाँ: गुमनाम
मअतूब: दुखदाईघृणा योग्यअभागी

जिस अहद-ए-सियासत ने, यह ज़िंदा ज़ुबाँ कुचली
उस अहद-ए-सियासत को, मरहूमों का ग़म क्यों है
ग़ालिब जिसे कहते हैंउर्दू ही का शायर था
उर्दू पे सितम ढाकर, ग़ालिब पे करम क्यों है
अहद-ए-सियासत: सरकार के काल          मरहूमों: मृतकस्वर्गीय
ग़ालिब: श्रेष्ठ व्यक्तिमिर्ज़ा ग़ालिब            करम: कृपाउदारतादयादान

यह जश्न यह हंगामे, दिलचस्प खिलौने हैं
कुछ लोगों की कोशिश हैकुछ लोग बहल जाएँ
जो वादा-ए-फ़र्दा पर, अब टल नहीं सकते हैं
मुमकिन है कि कुछ अरसा, इस जश्न पे टल जाएँ
वादा-ए-फ़र्दा: आनेवाले कल के वादे

यह जश्न मुबारक हो, पर यह भी सदाक़त है
हम लोग हक़ीक़त के, एहसाह से आरी हैं
गांधी हो कि ग़ालिब होइन्साफ़ की नज़रों में
हम दोनों के क़ातिल हैंदोनों के पुजारी हैं
सदाक़त: वास्तविकतासच्चाई        आरी: रिक्तमहरूम

Sunday, December 24, 2017

भ्रष्टाचार का पहाड़ खोदने पर चूहे ही क्यों निकलते हैं?

सीबीआई की विशेष अदालत के फैसले से क्या निष्कर्ष निकालें कि टू-जी घोटाला हुआ ही नहीं था? या अभियोजन पक्ष घोटाला साबित नहीं कर पाया? इधर लालू यादव को चारा घोटाले से जुड़े एक और मामले में दोषी पाया गया है। आपराधिक मामलों को राजनीतिक मोड़ कैसे दिया जाता है, वह इस मामले में देखें। उनके समर्थकों ने उन्हें नेलसन मंडेला घोषित कर दिया है। कांग्रेस पार्टी ने भी लालू का समर्थन जारी रखने का फैसला किया है।उधर डीएमके ने ए राजा का शॉल पहनाकर अभिनंदन करना शुरू कर दिया है। लगता है उन्होंने कोई बड़ा पवित्र कार्य कर दिया है। अनुभव बताता है कि हमारे देश में जब कोई बड़ा आदमी फँसता है तो पूरी कायनात उसे बचाने को व्याकुल हो जाती है। 
इसके विपरीत टू-जी फैसले के कुछ दिन पहले दिल्ली की स्पेशल सीबीआई कोर्ट ने कोयला घोटाले का फैसला सुनाया था। इसमें कोयला झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा को तीन साल की सजा सुनाई गई। कोड़ा के अलावा पूर्व कोयला सचिव एच सी गुप्ता, झारखंड के पूर्व मुख्य सचिव अशोक कुमार बसु और एक अन्य को आपराधिक षडयंत्र और धारा 120 बी के तहत दोषी माना गया और तीनों को तीन-तीन साल की सजा सुनाई गई है। सच यह है कि इसमें फँसे लोग राजनीति के लिहाज से कम प्रभावशाली हैं। उनसे छोटे लोग और आसानी से सिस्टम में फँसते हैं और सबसे छोटे लोग देश की जेलों के आम-निवासी हैं। 

Tuesday, December 19, 2017

बीजेपी ने गुजरात बचा तो लिया, पर...

गुजरात और हिमाचल के परिणामों से पहली बात यह साबित हुई कि नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता अभी कायम है और बीजेपी 2019 के चुनावों को अपनी मुट्ठी में रखने को कृतसंकल्प है. तमाम कोशिशों के बावजूद कांग्रेस पार्टी के लिए गुजरात सबसे बड़ा काँटा साबित हुआ है. राहुल गांधी के पदारोहण के बाद पहली खबर अच्छी नहीं आई है. उन्हें संतोष हो सकता है कि लम्बे अरसे बाद कांग्रेस ने एक ऐसे राज्य में अपनी स्थिति सुधारी है, जो बीजेपी का गढ़ माना जाता है. पर इस सुधार का श्रेय कांग्रेस पार्टी या संगठन को नहीं जाता. श्रेय जाता है हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवाणी और अल्पेश ठाकोर की तिकड़ी को या गुजरात के ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों के बीच बढ़ते असंतोष को.

Sunday, December 17, 2017

राहुल के सामने चुनौतियों के पहाड़

राहुल गांधी 16 दिसंबर को औपचारिक रूप से पार्टी अध्यक्ष का पद संभाल लिया। उसके एक दिन पहले  सोनिया गांधी ने सक्रिय राजनीति से हट जाने की घोषणा की है। उन्होंने यह भी कहा कि राहुल पिछले तीन साल से राजनीति में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। कांग्रेस का सबसे बड़ा क्षय इन्हीं तीन साल में हुआ है। लगता नहीं कि वे अपना हाथ पार्टी से पूरी तरह खींच पाएंगी। सोनिया गांधी के बयान के बाद पार्टी के कांग्रेस संचार प्रमुख रणदीप सुरजेवाला ने ट्वीट किया, ‘श्रीमती सोनिया गांधी कांग्रेस के अध्यक्ष पद से रिटायर हुईं हैं राजनीति से नहीं। उनका आशीर्वाद, ज्ञान और कांग्रेस की विचारधारा के प्रति उनका समर्पण पार्टी को हमेशा मिलता रहेगा। वे पार्टी के लिए हमेशा पथ प्रदर्शक बनी रहेंगी।

सी-प्लेन पर सवार सियासत

गुजरात विधानसभा के चुनाव-प्रचार के आखिरी दिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने साबरमती नदी से मेहसाणा जिले के धरोई बांध तक सी-प्लेन में सफर करके एक नया राजनीतिक मोर्चा खोल दिया। भारतीय जनता पार्टी दिखाना चाहती है कि जिस विकास को कांग्रेस पार्टी पागल कहकर बदनाम कर रही है, वह जल,थल और आकाश तीनों जगह जा रहा है। यह है हमारा विकास। मोदी की इस यात्रा को तमाशा कहें या विकास, उम्मीद स बात की है कि 2019 की चुनाव सभाओं में नेतागण सी-प्लेन से यात्रा करते नजर आएँगे।  
प्रधानमंत्री ने सोमवार को अहमदाबाद में रोड शो की इजाज़त नहीं मिलने पर एक चुनावी रैली में ऐलान किया था कि आपने साबरमती नदी देखी होगी। पहले वहां सर्कस होता था, अब वहां रिवरफ्रंट है। यह विकास है, लेकिन कांग्रेस के लिए विकास केवल वही जिससे वो पैसे बना सकें। उन्होंने कहा, हर जगह एयरपोर्ट्स नहीं बना सकते, इसलिए अब जलमार्गों पर फोकस करेंगे।

Monday, December 11, 2017

अस्पताल बंद करने से क्या हो जाएगा?

अस्पताल का लाइसेंस रद्द करने से क्या अस्पताल सुधर जाएगा? ऐसा होता तो देश के तमाम सरकारी अस्पताल अबतक बंद हो चुके होते। जनता नाराज है और उसकी नाराजगी का दोहन करने में ऐसे फैसलों से कुछ देर के लिए मदद मिल सकती है, पर यह बीमारी का इलाज नहीं है, बल्कि उससे दूर भागना है। सरकारी हों या निजी अस्पतालों के मानकों को मजबूती से लागू कराइए, पर उन्हें बंद मत कीजिए, बल्कि नए अस्पताल खोलिए। जनता को इस बात की जानकारी भी होनी कि देश में अस्पताल और स्कूल खोलने और उन्हें चलाने के लिए कितने लोगों की जेब भरनी पड़ती है। 

शिक्षा, स्वास्थ्य और न्याय तीन ऐसी सुविधाएं हैं, जो खरीदने वाली वस्तुएं बन गईं हैं, जबकि इन्हें हासिल करने का समान अवसर नागरिकों के पास होना चाहिए। हमारी व्यवस्थाएं चुस्त होतीं, तो अस्पताल खुली लूट नहीं मचा पाते। मेरा इरादा अस्पतालों के मैनेजमेंट की मदद करना नहीं है। वास्तव में यह धंधा है, जिसपर बड़ी पूँजी लगी है। पर यह धंधा क्यों बन गया, इसपर हमें विचार करना चाहिए? हमारा देश सार्वजनिक स्वास्थ्य के मामले में दुनिया के सबसे खराब देशों में शामिल किया जाता है। बावजूद इसके हमारे यहाँ तमाम दूसरे देशों से लोग इलाज कराने आ रहे हैं। हमारे तौर-तरीकों में अंतर्विरोध हैं। ऐसा भी नहीं है कि डॉक्टरों ने हत्या करने का काम शुरू कर दिया है। कोई डॉक्टर सायास किसी की हत्या नहीं करेगा। वह उपेक्षा कर सकता है, लापरवाही बरत सकता है और वह अकुशल भी हो सकता है, पर यदि हम उसके इरादे पर शक करेंगे तो चिकित्सा व्यवस्था को चलाना मुश्किल हो जाएगा। 
नवजात शिशु को मृत बताने वाले मैक्स शालीमार बाग अस्पताल का दिल्ली सरकार ने लाइसेंस रद्द कर दिया है। सरकार का कहना है कि इस किस्म की लापरवाही स्वीकार नहीं की जा सकती। एक महिला ने दो बच्चों को जन्म दिया था। अस्पताल ने दोनों को मृत बताकर उन्हें पॉलिथीन में लपेटकर परिजनों को सौंप दिया था। अंतिम संस्कार के लिए ले जाते वक्त परिजनों ने एक बच्चे में हरकत देखी, जिसके बाद नवजात को एक दूसरे हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया। कुछ दिन बाद उस शिशु की भी मौत हो गई। यह खबर प्राइवेट अस्पताल से आई है, पर कुछ महीने ऐसी ही घटना दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में भी हुई थी। क्या उसे बंद करना चाहिए?

Sunday, December 10, 2017

बैंक दीवालिया होंगे तो क्या आपका पैसा डूब जाएगा?

इन दिनों सोशल मीडिया पर इस मसले पर खबरें खूब शेयर की जा रही हैं. इस तरह की खबरों के आने से बैंकिंग सिस्टम से अनजान हम जैसे मिडिल क्लास लोग परेशान होने लगते हैं, क्योंकि हमारी छोटी सी जमा-पूंजी बैंकों में ही रहती है. सोशल मीडिया में इन मसलों को लेकर लगातार लिखने वाले शरद श्रीवास्तव ने इस संबंध में वैबसाइट 'बिहार कवरेज' तथ्यपरक आलेख लिखा है, जिसमें उन्होंने इस बिल से जुड़े तमाम छोटे-बड़े मसले की ओर इशारा किया है.
शरद श्रीवास्तव
जब तक रुपया हमारी जेब में रहता है, हमारी तिजोरी पर्स में रहता है. वो हमारा होता है, हम उसके मालिक होते हैं. लेकिन जब यही पैसा हम बैंक में जमा करते हैं तो हम बैंक की बुक्स में एक सनड्राई क्रेडिटर हो जाते हैं. एक अनसिक्योर्ड क्रेडिटर. एक नाम. सिक्योर्ड क्रेडिटर होते हैं अन्य बैंक, सरकार. अगर एक बैंक दिवालिया होता है तो बैंक में जो पैसा बचा होता है, उस पर पहला हक़ सिक्योर्ड क्रेडिटर्स का होता है. उनका पैसा चुकाने के बाद जो बचा खुचा होता है वो अनसिक्योर्ड क्रेडिटर्स यानी डिपॉजिटर्स यानी की आम आदमी को मिलता है.

राजनीति के गटर में गंदी भाषा

गुजरात चुनाव का पहला दौर पूरा हो चुका है। जैसाकि अंदेशा था आखिरी दो दिनों में पूरे राज्य का माहौल जहरीला हो गया। मणिशंकर अय्यर अचानक कांग्रेस के लिए विलेन की तरह बनकर उभरे और पार्टी से निलंबित कर दिए गए। उनके बयानों पर गौर करें तो लगता है कि वे अरसे से अपने निलंबन की कोशिशों में लगे थे। इस वक्त उनके निलंबन के पीछे पार्टी की घबराहट ने भी काम किया।  उन्हें इस तेजी से निलंबित करने और ट्विटर के मार्फत माफी माँगने का आदेश देने से यह भी जाहिर होता है कि पार्टी अपने अनुशासन-प्रिय होने का संकेत दे रही है। वह अपनी छवि सुधारना चाहती है। ठीकरा मणिशंकर अय्यर के सिर पर फूटा है। सवाल है कि क्या पार्टी अब नरेन्द्र मोदी को इज्जत बख्शेगी? दूसरी ओर बीजेपी पर दबाव होगा कि क्या वह भी अपनी पार्टी के ऐसे लोगों पर कार्रवाई करेगी, जो जहरीली भाषा का इस्तेमाल करते हैं।

Saturday, December 9, 2017

बारह घोड़ों वाली गाड़ी पर राहुल

गुजरात विधानसभा चुनाव का पहला दौर शुरू होने के डेढ़ दिन पहले मणिशंकर के बयान और उसपर राहुल गांधी की प्रतिक्रिया और पार्टी की कार्रवाई को राहुल गांधी के नेतृत्व में आए सकारात्मक बदलाव के रूप में देखा जा सकता है। राहुल ने हाल में कई इस कहा है कि हम अपनी छवि अनुशासित और मुद्दों और मसलों पर केंद्रित रखना चाहते हैं। सवाल है कि मणिशंकर अय्यर को इतनी तेजी से निलंबित करना और उन्हें ट्विटर के मार्फत माफी माँगने का आदेश देना क्या बताता है? क्या यह पार्टी के अनुशासन-प्रिय होने का संकेत है या चुनावी आपा-धापी का?
राहुल गांधी के नेतृत्व की परीक्षा शुरू हो चुकी है। कांग्रेस बारह घोड़ों वाली गाड़ी है, जिसमें गर क्षण डर होता है कि कोई घोड़ा अपनी दिशा न बदल दे। बहरहाल गुजरात राहुल की पहली परीक्षा-भूमि है और मणिशंकर एपिसोड पहला नमूना। पार्टी के भीतर तमाम स्वर हैं, जो अभी सुनाई नहीं पड़ रहे हैं। देखना होगा कि वे मुखर होंगे या मौन रहेंगे। गुरुवार की शाम जैसे ही राहुल गांधी का ट्वीट आया कांग्रेसी नेताओं के स्वर बदल गए। जो लोग तबतक मणिशंकर अय्यर का समर्थन कर रहे थे, उन्होंने रुख बदल लिया।

Friday, December 8, 2017

स्थानीय निकाय चुनाव से तो साबित नहीं हुए ईवीएम-संदेह

इन दिनों उत्तर प्रदेश के शहरी निकायों के हाल में हुए चुनावों के राजनीतिक निहितार्थ खोजने की कोशिशें हो रहीं हैं. लम्बे अरसे तक पार्टियों के बीच इस बात पर सहमति रही है कि स्थानीय निकाय चुनावों को व्यक्तिगत आधार पर ही लड़ना चाहिए, क्योंकि उनके मुद्दे अलग होते हैं. निचले स्तर पर वोटर और जन-प्रतिनिधि के बीच दूरी कम होती है. इन परिणामों पर नजर डालें तो यह बात साफ नजर आती है. इसबार के चुनाव परिणाम इसलिए महत्वपूर्ण थे, क्योंकि यह माना गया कि इनसे योगी सरकार के बारे में वोटर की राय सामने आएगी. अलबत्ता इस चुनाव ने ईवीएम को लेकर खड़े किए संदेहों को पूरी तरह ध्वस्त किया है.

प्रदेश के राजनीतिक मिजाज की बात करें, तो प्रदेश के महानगरों के परिणाम बता रहे हैं कि बीजेपी की पकड़ कायम है, पर जैसे-जैसे नीचे जाते हैं वह कमजोर होती दिखाई पड़ती है. पर यह बीजेपी की कमजोरी नहीं है, बल्कि इस बात की पुष्टि है कि छोटे शहरों में राजनीतिक पहचान वैसी ही नहीं है, जैसी महानगरों में है.

Sunday, December 3, 2017

अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेत

पिछले एक साल से आर्थिक खबरें राजनीति पर भारी हैं। पहले नोटबंदी, फिर जीएसटी और फिर साल की पहली तिमाही में जीडीपी का 5.7 फीसदी पर पहुँच जाना सनसनीखेज समाचार बनकर उभरा। उधर सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इकोनॉमी (सीएमआईई) ने अनुमान लगाया कि नोटबंदी के कारण इस साल जनवरी से अप्रेल के बीच करीब 15 लाख रोजगार कम हो गए। इन खबरों का विश्लेषण चल ही रहा था कि जुलाई से जीएसटी लागू हो गया, जिसकी वजह से व्यापारियों को शुरूआती दिक्कतें होने लगीं।

गुजरात का चुनाव करीब होने की वजह से इन खबरों के राजनीतिक निहितार्थ हैं। कांग्रेस पार्टी ने गुजरात में अपने सारे घोड़े खोल दिए हैं। राहुल गांधी ने ‘गब्बर सिंह टैक्स’ के खिलाफ अभियान छेड़ दिया है। उनका कहना है कि अर्थ-व्यवस्था गड्ढे में जा रही है। क्या वास्तव में ऐसा है? बेशक बड़े स्तर पर आर्थिक सुधारों की वजह से झटके लगे हैं, पर अर्थ-व्यव्यस्था के सभी महत्वपूर्ण संकेतक बता रहे हैं कि स्थितियाँ बेहतर हो रहीं है।

Friday, December 1, 2017

आम हो गई आप

आम आदमी पार्टी ने अपने जन्म के लिए 26 नवम्बर का दिन इसलिए चुना, क्योंकि सन 1949 में भारत की संविधान सभा ने उस दिन संविधान को स्वीकार किया था। पार्टी राष्ट्रीय प्रतीकों और चिह्नों को महत्व देती है। उसकी कोई तयशुदा विचारधारा नहीं है। सन 2013 में अरविंद केजरीवाल ने वरिष्ठ पत्रकार मनु जोसफ को सार्वजनिक मंच पर दिए एक इंटरव्यू में कहा, हम विचारधाराओं की राह पर नहीं चलेंगे, बल्कि व्यवस्था परिवर्तन करेंगे। यदि समधान वामपंथ में हुआ तो उसे स्वीकार करेंगे और दक्षिणपंथ में मिला तो उसे भी मानेंगे। आयडियोलॉजी से पेट नहीं भरता। हम आम आदमी हैं।  
केजरीवाल की उस साफगोई में उनके अंतर्विरोध भी छिपे थे। पार्टी का स्वराजनाम का दस्तावेज विचारधारा के नजरिए से अस्पष्ट है। अलबत्ता उसका नाम गांधी की मशहूर किताब हिंद स्वराज और राजाजी की पत्रिका स्वराज्यसे मिलता जुलता है। शुरू में वे मध्यवर्गीय शहरी समाज के सवालों को उठाते थे, फिर उन्होंने दुनियाभर के सवालों को उठाना शुरू कर दिया। हाल में तमिलनाडु में कमलहासन की राजनीतिक सम्भावनाएं नजर आईं तो वे चेन्नई जाकर उनसे मिले। रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन को राज्यसभा की सदस्यता स्वीकार करने का अनुरोध किया, जिसे उन्होंने विनम्रता से अस्वीकार कर दिया।