पाँच महीने का मुख्यमंत्री? इंडियन एक्सप्रेस में उन्नी का कार्टून |
चुनाव के पाँच महीने पहले मुख्यमंत्री बदलने के
कारण तो समझ में आए, पर वैकल्पिक मुख्यमंत्री के नाम पर विचार करने में पार्टी ने
देरी की। दूसरे जिस व्यक्ति का चयन किया गया है, उससे जुड़े विवादों पर विचार करने
का मौका भी पार्टी को नहीं मिला। चरणजीत सिंह चन्नी की दो बातें उनके पक्ष में
गईं। एक तो उनका दलित आधार और दूसरे नवजोत सिंह की जोरदार पैरवी।
अब राज्य में पार्टी और सरकार के बीच दूरी नहीं
रहेगी। पर मुख्यमंत्री के चयन के दौरान कई नामों के विरोध से यह बात भी सामने आई
है कि पार्टी के भीतर आपसी टकराव काफी हैं। पार्टी सर्वानुमति से फैसला नहीं कर
पाई। फैसला हुआ भी तो भीतरी टकराव सामने आया। पार्टी के भीतर सिख बनाम हिन्दू की
अवधारणा का टकराव भी देखने को मिला।
नए मुख्यमंत्री का नाम तय होने के बाद भी यह विवाद खत्म होने वाला नहीं है, क्योंकि पंजाब के प्रभारी हरीश रावत ने किसी चैनल पर कह दिया कि चुनाव के बाद मुख्यमंत्री नवजोत सिंह सिद्धू बनेंगे। इस बात पर सुनील जाखड़ ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। सिद्धू समर्थक भी इस बात से नाराज है कि उनके नेता को मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया। अब प्रतिक्रियाएं श्रृंखला की शक्ल लेंगी और उनके जवाब आएंगे। शायद नेतृत्व ने इन बातों पर विचार नहीं किया था।
राज्य में 32 फीसदी दलित आबादी है और इन्हें अपनी तरफ खींचने की कोशिश सभी पार्टियाँ कर रही हैं। शिरोमणि अकाली दल ने बहुजन समाज पार्टी के साथ पहले ही गठबंधन कर लिया है और पहले से कहा है कि यदि उनकी सरकार बनी तो दलित उप-मुख्यमंत्री बनेगा। आम आदमी पार्टी भी दलित वोटबैंक के पीछे है। भारतीय जनता पार्टी ने कहा है कि हमारी सरकार बनी तो दलित को मुख्यमंत्री बनाएंगे। बहरहाल कांग्रेस ने बना दिया। सवाल है कि यदि पार्टी को सरकार बनाने का मौका मिला, तब भी क्या वह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाएगी?