तालिबान के साथ सांस्कृतिक-अंतर्विरोधों की थोड़ी देर के लिए अनदेखी कर दें, तब भी भारत-अफगानिस्तान रिश्ते हमेशा से दोस्ती के रहे हैं. इस दृष्टि से देखें, तो पिछले हफ्ते तालिबान के विदेशमंत्री अमीर ख़ान मुत्तकी की भारत-यात्रा अचानक नहीं हो गई.
इसकी पृष्ठभूमि दो-तीन साल से बन रही थी. भविष्य
की ओर देखें, तो लगता है कि यह संपर्क बढ़ेगा. पिछले कुछ दिनों में पाक-अफगान सीमा
पर टकराव को देखते हुए कुछ लोगों ने इसे भारत-पाक रिश्तों की तल्ख़ी से भी जोड़ा
है, पर बात इतनी ही नहीं है. अफगान-पाक रिश्तों की तल्ख़ी के पीछे दूसरे कारण
ज्यादा बड़े हैं.
पिछले हफ्ते भारतीय विदेश-नीति के सिलसिले में
कुछ ऐसी घटनाएँ हुई हैं, जो नए राजनयिक-परिदृश्य की ओर इशारा कर रही हैं. मुत्तकी
की यह यात्रा ऐसे समय में हुई, जब ब्रिटेन के प्रधानमंत्री सर कीर स्टार्मर भी
भारत में थे.
इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और डॉनल्ड
ट्रंप के बीच एक बार फोन पर बातचीत भी हुई है. इसके बाद ट्रंप ने प्रधानमंत्री
मोदी को सोमवार को गाज़ा पर मिस्र में हुए ‘शांति सम्मेलन’ में शामिल होने के लिए
आमंत्रित किया. हालाँकि मोदी इसमें गए नहीं, पर यह एक संकेत ज़रूर है.
वे वहाँ जाते, तो ट्रंप से मुलाकात का मौका बनता
था. शायद अब यह मौका आसियान सम्मेलन में मिलेगा. बहरहाल भारत-अमेरिका
व्यापार-वार्ता अब अपेक्षाकृत बेहतर तरीके से आगे बढ़ रही है. फिलहाल हम
भारत-अफ़गान रिश्तों पर ही ध्यान केंद्रित करेंगे.
पिछले साल बांग्लादेश में तख्तापलट होने के बाद
से भारत को शिद्दत से अपने इलाके में अच्छे मित्रों की तलाश है. भारत सरकार ने
श्रीलंका, मालदीव और म्यांमार के साथ काफी हद तक रिश्तों को बेहतर किया है. उसी
शृंखला में अफगानिस्तान को भी रखा जाना चाहिए.
मान्यता का मसला
भारत यह संकेत भी नहीं देना चाहता कि हम तालिबान
को राजनयिक रूप से मान्यता दे रहे हैं. मान्यता तभी दी जाएगी, जब अंतरराष्ट्रीय समुदाय
ऐसा करेगा, फिलहाल सहयोग-संबंध बनाने के लिए एक प्लेटफॉर्म की ज़रूरत होगी, इसलिए
वहाँ दूतावास को फिर से खोलना सही कदम है.
हालाँकि इससे तालिबान को कुछ निराशा होगी, पर
भारत अमेरिका समेत पश्चिमी खेमे को यह संकेत भी नहीं देगा कि हम ‘रूस-चीन’ खेमे में शामिल हो गए हैं. बल्कि ऐसा करके पश्चिम के साथ भारत एक पुल की
तरह भी काम कर सकता है.
औपचारिक राजनयिक मान्यता नहीं होते हुए भी मुत्तकी को पूरे प्रोटोकॉल के साथ विदेशमंत्री का सम्मान दिया गया. इन बातों को अंतर्विरोधों और व्यावहारिकता की रोशनी में पढ़ा जाना चाहिए.




