राफेल विमान सौदे
को लेकर दायर किए गए मामले में सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला सुनाया है, उसके बाद इस विवाद को खत्म हो जाना चाहिए या कम से कम इसे
राजनीतिक विवाद का विषय नहीं बनाना चाहिए। पर फैसले के बाद आई कुछ प्रतिक्रियाओं
से लगता है कि ऐसा होगा नहीं। इस मामले में न तो किसी प्रकार की धार बची और न जनता
की दिलचस्पी इसके पिष्ट-पेषण में है। अदालत ने कहा कि हमें ऐसा नहीं लगता है कि इस
मामले में कोई एफआईआर दर्ज होनी चाहिए या फिर किसी तरह की जांच की जानी चाहिए।
अदालत ने केंद्र
सरकार के हलफनामे में हुई एक भूल को स्वीकार किया है, पर उससे कोई महत्वपूर्ण निष्कर्ष नहीं निकाला है। बुनियादी
तौर पर कांग्रेस पार्टी की दिलचस्पी लोकसभा कि पिछले चुनाव में थी। चुनाव में यह
मुद्दा सामने आया ही नहीं। इस मामले में उच्चतम न्यायालय के 14 दिसंबर 2018 के
आदेश पर प्रशांत भूषण समेत अन्य लोगों की ओर से पुनर्विचार के लिए याचिका दाखिल की
गई थी।
याचिका में कुछ 'लीक' दस्तावेजों के हवाले से
आरोप लगाया गया था कि डील में पीएमओ ने रक्षा मंत्रालय को बगैर भरोसे में लिए अपनी
ओर से बातचीत की थी। कोर्ट ने अपने पिछले फैसले में कहा था कि बिना ठोस सबूतों के
हम रक्षा सौदे में कोई भी दखल नहीं देंगे। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस एसके कौल और जस्टिस केएम जोसफ ने पाया कि पुनर्विचार
याचिकाओं में मेरिट यानी कि दम नहीं है।