Wednesday, April 30, 2025

पाकिस्तान के खिलाफ ‘कठोर-कार्रवाई’ की तैयारी


पहलगाम-हमले के बाद पाकिस्तान को सबसे अच्छा जवाब यही होगा कि हम कश्मीर में शांति और सुरक्षा का माहौल बनाकर रखें. दुनिया का अनुभव है कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई लंबी चलती है. सवाल है कि इस आतंकी हमले की योजना क्यों बनाई गई और यही समय क्यों चुना गया?

फिलहाल कश्मीर में सबसे बड़ी ज़रूरत वहाँ के निवासियों का भरोसा जीतने की और पाकिस्तानी हरकतों का जवाब देने की है. सीमा पार से एटम बम दागने की धमकियाँ दी जा रही हैं. हमें ऐसी रणनीति बनानी होगी, जो कम से कम जोखिम उठाकर पाकिस्तान को ज्यादा से ज्यादा बड़ी सज़ा दे सके. 

हालात जिस मोड़ पर आ गए हैं, उसमें भारत को कार्रवाई करनी ही होगी.  पानी रोकने के अलावा हमारे पास आतंकी केंद्रों पर हमले का विकल्प भी है. सरकार के एक शीर्ष सूत्र ने दिल्ली के एक राष्ट्रीय दैनिक से कहा है कि सैनिक कार्रवाई होगी. हम तैयार हैं और हमले के तरीके पर चर्चा कर रहे हैं. 

सवाल है कि क्या हमारी सेना एलओसी पार करके पीओके में प्रवेश कर सकती है? क्या नौसेना कराची बंदरगाह की नाकेबंदी करेगी? एलओसी पर गोलाबारी रोकने को लेकर 2021 में जो समझौता हुआ था, वह भी अब टूटता हुआ लग रहा है. 

सबसे बड़ा खतरा बैक-चैनल संपर्क टूटने का है. इसे टूटना नहीं चाहिए और उन्मादी बयानों से बचना भी चाहिए. 

Thursday, April 24, 2025

पहलगाम का पहला सबक, पाकिस्तान को कड़वी दवाई


पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद यह स्पष्ट है कि भारत ने अब पाकिस्तान को करारा जवाब देने का फैसला कर लिया है. यह जवाब भविष्य में सैनिक-कार्रवाइयों के रूप में भी हो सकता है, पर इसकी शुरुआत राजनयिक रिश्तों को न्यूनतम स्तर पर पहुँचाते हुए हुई है. सेना को हाई अलर्ट कर दिया गया है. 

पीएम मोदी की अध्यक्षता में बुधवार की शाम हुई सीसीएस की बैठक में कुछ बड़े फैसले हुए हैं. विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने इन फैसलों की जानकारी देते हुए कहा कि 1960 की सिंधु जल संधि को तत्काल प्रभाव से स्थगित तब तक रखा जाएगा, जब तक पाकिस्तान सीमा पार आतंकवाद के लिए अपने समर्थन को त्याग नहीं देता. 

सीमा पार सभी तरह की आवाजाही के लिए अटारी चेक पोस्ट को भी बंद कर दिया है और पाकिस्तानी नागरिकों के लिए सार्क वीजा यात्रा विशेषाधिकारों को निलंबित कर दिया है. सार्क ढांचे के तहत भारत में मौजूद पाकिस्तानी नागरिकों को देश छोड़ने के लिए 48 घंटे का समय दिया गया है. 

भारत-अमेरिका ‘न्यूक्लियर-डील’ से ‘होल्टैक-डील’ तक


वैश्विक व्यापार-युद्ध के बीच भारत और अमेरिका के रिश्तों को लेकर कई तरह के किंतु-परंतु इन दिनों हवा में हैं. ये रिश्ते केवल आर्थिक सतह पर ही नहीं हैं, बल्कि सामरिक और तकनीकी-सहयोग, तथा राजनय और वैश्विक राजनीति की सतह पर भी हैं. 

इन संपर्कों-संबंधों के समानांतर भारत-रूस, भारत-चीन, भारत-ईयू औऱ भारत तथा पश्चिम एशिया के देशों के रिश्ते भी हैं. बहरहाल 2008 का सिविल न्यूक्लियर-डील याददाश्त से मिटता जा रहा था कि हाल में हाल में स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टरों (एसएमआर) को लेकर हुई गतिविधि ने कई बातें एकदम ताज़ा कर दी हैं. 

लग यह भी रहा है कि भारत और अमेरिका के बीच व्यापार का प्रारंभिक समझौता अगले कुछ महीनों में हो जाएगा, पर उसके नाभिकीय ऊर्जा के क्षेत्र में हुई गतिविधि ने लहरें पैदा की हैं.

Wednesday, April 16, 2025

तहव्वुर राणा नहीं, ‘मास्टरमाइंड’ है पाकिस्तानी सेना


तहव्वुर राणा के प्रत्यर्पण के बाद भारत में उसपर मुकदमा चलाने की तैयारियाँ शुरू हो गई हैं, पर अब जो काम है, वह उसे सज़ा दिलाने तक सीमित नहीं है, बल्कि मुंबई हमले कि साज़िश के पीछे पाकिस्तानी-भूमिका का पर्दाफाश करना है. 

सज़ा से ज्यादा महत्वपूर्ण वे तथ्य हैं, जिनसे पता लगेगा कि मुंबई में निर्दोष लोगों की हत्या क्यों की गई. हमारा मीडिया तहव्वुर राणा को उस हमले का ‘मास्टरमाइंड’ बता रहा है, पर गौर से देखेंगे, तो पता लगेगा कि उसकी भूमिका ‘प्यादे’ की थी. 

असली ‘मास्टरमाइंड’ पाकिस्तानी सेना है, जिसकी छत्रछाया में वह हमला हुआ. सवाल यह है कि क्या भारत में मुकदमे के दौरान पाकिस्तान और 26/11 की साज़िश के बीच सीधा संबंध स्थापित किया जा सकेगा? अजमल कसाब और जबीउद्दीन अंसारी उर्फ अबू जुंदाल के बाद यह भारत में इस प्रकरण का यह तीसरा व्यक्तिगत मुकदमा है. 

डेविड कोलमैन हेडली (दाऊद गिलानी) और तहव्वुर हुसैन राणा को अमेरिकी संघीय जाँच ब्यूरो (एफबीआई) द्वारा गिरफ्तार किए जाने और भारत में राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (एनआईए) द्वारा उनके खिलाफ एफआईआर और आरोप-पत्र दायर करने के सोलह साल बाद, राणा को प्रत्यर्पित किया गया है. 

Saturday, April 12, 2025

संघीय-कशमकश और तमिल राजनीति


तमिलनाडु विधानसभा से पास होने के बावज़ूद दस विधेयकों को रोक कर रखने के राज्यपाल आरएन रवि के फैसले को अवैध करार देते हुए उच्चतम न्यायालय ने एक संवैधानिक पेच को दुरुस्त ज़रूर किया है, पर इससे केंद्र-राज्य संबंधों और राज्यपालों की भूमिका से जुड़ी पहेलियों का हल पूरी तरह अब भी नहीं होगा। हाल के वर्षों में कुलपतियों की नियुक्ति, राज्य विधान परिषदों में नामांकन और राज्यपाल द्वारा पारंपरिक अभिभाषण के संपादन या सदन को बुलाने पर दुर्भाग्यपूर्ण रस्साकशी तो हुई ही है, विधानमंडलों से पारित विधेयकों को मंजूरी देने में देरी या इनकार जैसे कार्य भी हुए हैं। 

इस बार के फैसले से राज्यों की प्रशासनिक स्वायत्तता बढ़ेगी और संवैधानिक पदों का कामकाज नियंत्रित होगा, जिसका प्रभाव पूरे देश पर पड़ेगा। यह न्यायिक-हस्तक्षेप ऐसे समय में हुआ है, जब गैर-भाजपा दलों द्वारा शासित राज्यों में राज्यपालों और सरकारों के बीच तनाव चरम पर है। इस संवैधानिक सफलता का राजनीतिक श्रेय एमके स्टालिन की डीएमके सरकार को जाता है, पर वहीं मेडिकल प्रवेश के लिए राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा ‘नीट’ से छूट हासिल करने में तमिलनाडु सरकार को मुँह की खानी पड़ी है।

Wednesday, April 9, 2025

श्रीलंका-यात्रा और बिमस्टेक सम्मेलन के निहितार्थ


भारत और पड़ोसी देशों के रिश्तों के लिहाज से पिछले हफ्ते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की थाईलैंड और श्रीलंका-यात्रा काफी महत्वपूर्ण रही. भारत का उद्देश्य पड़ोसियों के साथ संबंधों को मजबूत करना है. इस यात्रा में देश की ‘एक्ट-ईस्ट’ और दक्षिण-एशिया नीतियों की झलक मिलती है.

उन्होंने थाईलैंड में बिमस्टेक सम्मेलन में भाग लेने के अलावा वहाँ बांग्लादेश की कार्यवाहक सरकार के मुख्य सलाहकार डॉ मुहम्मद यूनुस, म्यांमार की सैन्य सरकार के प्रमुख मिन आंग ह्लाइंग और नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली से भी मुलाकात की. 

ढाका में सत्ता परिवर्तन के बाद युनुस के साथ उनकी यह पहली बैठक थी. इसी तरह पिछले वर्ष नेपाल में ओली के फिर से प्रधानमंत्री बनने के बाद यह पहली मुलाकात थी. उन्होंने भूटान के राष्ट्रपति शेरिंग तोब्गे से भी मुलाकात की.

हालांकि थाईलैंड भारत के पूर्व में बंगाल की खाड़ी और अंडमान सागर से जुड़ा देश है, पर उसे भारतीय विदेश-नीति के नक्शे पर वह महत्व नहीं मिला, जिसका वह हकदार है. दक्षिण पूर्व एशिया में इंडोनेशिया और सिंगापुर के बाद तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है थाईलैंड. 

दोनों देशों के बीच फ्री-ट्रेड एग्रीमेंट 2010 में हो गया था. भारतीय यात्रियों के लिए वीज़ा-मुक्त प्रवेश के कारण थाईलैंड, भारतीय मध्यम वर्ग की सैर का प्रमुख गंतव्य बन चुका है. दोनों देश अब रक्षा, हाईटेक और स्पेस रिसर्च में सहयोग पर सहमत हुए हैं. 

अस्थिरता का दौर

यह यात्रा ऐसे समय में हुई, जब एक तरफ बांग्लादेश और म्यांमार में अराजकता है और इलाके में चीन का प्रभाव बढ़ रहा है. पिछले साल अगस्त से बांग्लादेश के साथ रिश्तों में तनाव है.

हाल में डॉ यूनुस ने अपनी पहली राजकीय यात्रा के लिए चीन को चुनकर इतना प्रकट जरूर कर दिया कि बांग्लादेश अब हमारा वैसा मित्र नहीं है, जैसा शेख हसीना के कार्यकाल में था. . 

Sunday, April 6, 2025

भारत के रोम-रोम में बसे राम

भारत की विविधता में एकता को देखना है, तो उसके पर्वों और त्योहारों पर नज़र डालनी होगी। इनका देश की संस्कृति, अर्थव्यवस्था  और समाज के साथ भौगोलिक परिस्थितियों और मौसम के साथ गहरा रिश्ता है। जिस तरह साल के उत्तरार्ध में पावस की समाप्ति और शरद के आगमन के साथ पूरे देश में त्योहारों और पर्वों का सिलसिला शुरू होता है, उसी तरह सर्दियाँ खत्म होने और गर्मियों की शुरुआत के बीच वसंत ऋतु के पर्व हैं। वसंत पंचमी, मकर संक्रांति, होली, नव-संवत्सर, वासंतिक-नवरात्र, रामनवमी और गंगा दशहरा इन पर्वों का समुच्चय है। 

यों तो हमारा हर दिन पर्व है और यह खास तरह की जीवन-शैली है, जो परंपरागत भारतीय-संस्कृति की देन है। जैसा उत्सव-धर्मी भारत है, वैसा शायद ही दूसरा देश होगा। आप भारत और भारतीयता की परिभाषा समझना चाहते हैं, तो इस बात को समझना होगा कि किस तरह से इन पर्वों और त्योहारों के इर्द-गिर्द हमारी राष्ट्रीय-एकता काम करती है। कश्मीर से कन्याकुमारी तक और अटक से कटक तक कुछ खास तिथियों पर अलग-अलग रूप में मनाए जाने वाले पर्वों के साथ एक खास तरह की अद्भुत एकता काम करती है। वह मकर संक्रांति, नव संवत्सर, पोइला बैसाख, पोंगल, ओणम, होली हो या दीपावली और छठ। 

धार्मिक दृष्टि

यह सप्ताह नव संवत्सर और नवरात्र का था, जिसका समापन रामनवमी के साथ होगा। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। हिंदू धर्मशास्त्रों के अनुसार इस दिन मर्यादा-पुरुषोत्तम भगवान श्री राम का जन्म पुनर्वसु नक्षत्र तथा कर्क लग्न में हुआ था। इस पर्व के साथ ही माँ दुर्गा के नवरात्र का समापन भी होता है। धार्मिक-दृष्टि से देखें, तो भगवान श्री राम ने भी देवी दुर्गा की आराधना की थी। उनकी शक्ति-पूजा ने उन्हें युद्ध में विजय प्रदान की। इन दो महत्वपूर्ण पर्वों का एक साथ होना उसकी महत्ता को बढ़ा देता है। इसी दिन गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ भी किया था। रामनवमी का व्रत पापों का क्षय करने वाला और शुभ फल प्रदान करने वाला होता है।

धर्मशास्त्रों के अनुसार त्रेतायुग में रावण के अत्याचारों को समाप्त करने तथा धर्म की पुनर्स्थापना के लिए भगवान विष्णु ने मृत्यु लोक में श्री राम के रूप में अवतार लिया था। यह धार्मिक-दृष्टि है, पर विश्व-साहित्य में शायद ही कोई ऐसा दूसरा पात्र होगा, जिसकी राम से तुलना की जा सके। यह बहस का विषय है कि राम, ऐतिहासिक पात्र हैं या नहीं, पर इसमें दो राय नहीं कि साहित्य, संस्कृति और समाज में राम अतुलनीय हैं। 

Thursday, April 3, 2025

टैरिफ-संग्राम के साथ शुरू हुआ, वैश्विक-चुनौतियों का एक नया दौर


अमेरिका का टैरिफ-युद्ध इस हफ्ते पूरी तरह शुरू हो गया, उसका असर अब चीन, कनाडा और मैक्सिको से आगे निकलकर विश्वव्यापी होगा, जिसमें भारत भी शामिल है. वैश्विक-अर्थव्यवस्था के लिए यह एक नया संधिकाल है. 

भारत के मामले में, 5 अप्रैल को सार्वभौमिक 10 प्रतिशत टैरिफ के पहले चरण के प्रभावी होने के बाद, 9 अप्रैल के बाद 17 प्रतिशत टैरिफ लागू होगा, जिससे कुल शुल्क 27 प्रतिशत हो जाएगा.

भारत पर 27 प्रतिशत की यह दर चीन पर लगाए गए 34 प्रतिशत, वियतनाम पर 46 प्रतिशत, बांग्लादेश पर 37 प्रतिशत और थाईलैंड पर 36 प्रतिशत की तुलना में बहुत कम है, ये सभी भारतीय निर्यातकों के लिए प्रतिस्पर्धी हैं, जबकि वे किसी न किसी कमोडिटी सेगमेंट में अमेरिकी बाजार तक पहुँचते हैं.

भारत पर टैरिफ अन्य एशियाई प्रतिस्पर्धियों की तुलना में भी कम है, जिसमें थाईलैंड पर प्रस्तावित 36 प्रतिशत और इंडोनेशिया पर 32 प्रतिशत शामिल हैं.

मामला केवल आर्थिक-रिश्तों तक सीमित नहीं है. सामरिक, पर्यावरणीय और अंतरराष्ट्रीय-प्रशासन से जुड़े मसले भी इससे जुड़े हैं. अमेरिका की नीतियों को बदलते वैश्विक-संबंधों के लिहाज से देखने की ज़रूरत है, खासतौर से हमें भारत-अमेरिका रिश्तों के नज़रिए से इसे देखना होगा. 

केवल 2 अप्रैल की घोषणाओं से ही नहीं, बल्कि उससे पैदा होने वाली अनुगूँज से भी बहुत कुछ बदलेगा. ट्रंप-प्रशासन ने इसे ‘लिबरेशन डे’ कहा है. रेसिप्रोकल यानी पारस्परिक टैरिफ का मतलब यह कि दूसरे देशों से अमेरिका आने वाले माल पर वही शुल्क वसूला जाएगा, जो वे देश अमेरिकी वस्तुओं पर लगाते हैं. 

अमेरिकी पराभव 

बीसवीं सदी के उत्तरार्ध में सोवियत संघ पर अमेरिकी विजय के पीछे केवल भौतिक-शक्ति ही जिम्मेदार नहीं थी. अमेरिकी संस्कृति की कई आकर्षक विशेषताओं ने उसे सफलता दिलाई थी. 

इसमें सबसे भूमिका थी अमेरिकी समाज के राजनीतिक खुलेपन की. नोम चॉम्स्की जैसे अमेरिका के सबसे बड़े आलोचक भी वहीं रहते हैं, और आदर पाते हैं. अब लगता है कि अमेरिका की उस सॉफ्ट पावर का भी क्षरण हो रहा है.