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Thursday, January 6, 2022

पंजाब में कांग्रेस का सिरदर्द बने सिद्धू


पंजाब में नवजोत सिंह सिद्धू अपनी ही पार्टी की सरकार के लिए समस्या बन गए हैं। राज्य में कांग्रेस की सरकार अपने ही प्रदेश अध्यक्ष के जुबानी हमलों का सामना कर रही है।

 नवजोत सिंह सिद्धू को जब से पंजाब कांग्रेस का प्रमुख बनाया गया है, तब से पार्टी के भीतर का विवाद बढ़ता ही जा रहा है। पार्टी के कार्यकर्ताओं के लिए मुश्किल स्थिति हो गई है कि वे अपनी वफ़ादारी मुख्यमंत्री के नेतृत्व के साथ रखें या प्रदेश अध्यक्ष के साथ।

 अंग्रेज़ी अख़बार हिन्दू ने इस ख़बर को प्रमुखता से जगह दी है। अख़बार ने लिखा है कि मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी लगातार मज़बूती से कांग्रेस का एजेंडा रख रहे हैं, जबकि सिद्धू लगातार अलग-अलग मुद्दों पर सरकार को कोस रहे हैं। सिद्धू 2015 में 'गुरु ग्रंथ साहिब' के अपमान और उससे जुड़ी हिंसा के साथ ड्रग्स के मुद्दे पर अपनी सरकार को लगातार घेर रहे हैं।

 अख़बार ने में लिखा है कि सिद्धू लगातार उन मुद्दों को उठा रहे हैं, जिनसे सिख वोटों को लामबंद किया जा सके। पार्टी के भीतर आमराय यह बन रही है कि सिख मुद्दों को हद से ज़्यादा उठाने के कारण कांग्रेस हिन्दू वोट बैंक के ठोस समर्थन को खो सकती है।

Wednesday, November 3, 2021

अमरिंदर ने कांग्रेस छोड़ी और पंजाब लोक कांग्रेस नाम से नई पार्टी बनाई


पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अंततः औपचारिक रूप से कांग्रेस पार्टी को छोड़ दिया है। मंगलवार को उन्होंने औपचारिक तौर पर कांग्रेस को छोड़ने और नई पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस को बनाने की घोषणा की। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को भेजे 7 पन्नों के इस्तीफे में उन्होंने अपने पूरे सियासी सफर का जिक्र किया है। अमरिंदर ने कांग्रेस हाईकमान के साथ नवजोत सिद्धू पर भी सवाल खड़े किए। दूसरी तरफ नवजोत सिंह सिद्धू और नए मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के बीच तनातनी बढ़ती जा रही है।

अमरिंदर ने 18 सितंबर को पंजाब के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया था। इसके बाद ही उन्होंने कांग्रेस छोड़ने की घोषणा कर दी थी। मंगलवार को उन्होंने अपनी नई पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस की घोषणा कर दी। अमरिंदर पहले ही राज्य की सभी 117 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुके हैं। इसके लिए पहले किसान आंदोलन का हल निकलवाएंगे, फिर भाजपा और अकाली दल के बागी नेताओं से गठजोड़ करेंगे। खबर है कि कांग्रेस ने कैप्टन को मनाने की कोशिश की थी, लेकिन वे नहीं माने।

अमरिंदर ने नवजोत सिद्धू को पंजाब कांग्रेस प्रधान बनाने पर भी बड़े सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि मेरे और पंजाब के सभी सांसदों के विरोध के बावजूद सिद्धू को जिम्मेदारी दी गई। उन्होंने सिद्धू को पाक-परस्त करार देते हुए कहा कि उन्होंने सार्वजनिक तौर पर पाकिस्तान के आर्मी चीफ और प्रधानमंत्री इमरान खान को गले लगाया। यह दोनों ही भारत में आतंकवाद फैलाने के लिए जिम्मेदार हैं।

चन्नी-सिद्धू के बीच ठनी

पंजाब में नवजोत सिंह की नए मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी से फिर ठन गई है। पंजाब सरकार पर सिद्धू के हमले जारी हैं। हाल में सिद्धू की आलोचना के कारण राज्य के एडवोकेट जनरल एपीएस देओल ने इस्तीफा दे दिया था, जिसे मुख्यमंत्री ने नामंजूर कर दिया है। सियासी गलियारों में यह चर्चा है कि नवजोत सिद्धू ने जिस तरह से अपनी ही पार्टी की सरकार पर फिर से हमला बोला है उसी के जवाब में मुख्यमंत्री ने यह क़दम उठाया है।

Wednesday, October 20, 2021

अमरिंदर सिंह नई पार्टी बनाएंगे


जिस बात की उम्मीद काफी दिन से थी, वह मूर्त रूप लेती दिखाई पड़ रही है। पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह अपनी पार्टी बनाने जा रहे हैं। हालांकि पार्टी का नाम, ध्वज और चिह्न अभी सामने नहीं आए हैं, पर इरादे साफ हैं। वे कांग्रेस छोड़ेंगे और नई पार्टी बनाएंगे। मंगलवार की शाम उन्होंने घोषणा की कि मैं नई पार्टी बनाऊँगा और सम्भवतः अकाली दल के एक धड़े और बीजेपी के साथ गठबंधन भी करूँगा। इस गठजोड़ में शिरोमणि अकाली दल (बादल) से अलग हो चुके सुखदेव सिंह ढींढसा और रणजीत ब्रह्मपुरा के गुट को भी जोड़ेंगे।

कैप्टेन का कहना है कि बीजेपी के साथ गठबंधन के पहले किसान आंदोलन का सही समाधान निकलना जरूरी है। किसान आंदोलन का समाधान उनके हित में हो जाता है तो पंजाब में भाजपा के साथ समझौते को लेकर भी वे विचार करेंगे। मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा देने के बाद कैप्टन ने गृहमंत्री अमित शाह से दिल्ली में मुलाकात की थी। तब लग रहा था कि शायद वे भाजपा में शामिल होंगे। अमरिंदर के बयान पर नवजोत सिंह सिद्धू के करीबी नेता और पंजाब के मंत्री परगट सिंह ने कहा कि मैं पहले से कहता रहा था कि उनकी बीजेपी और शिरोमणि अकाली दल के साथ साठगाँठ है। यह बात अब खुलकर सामने आ रही है।

किसान आंदोलन

अमरिंदर ने एक इंटरव्यू में संकेत दिए हैं कि दिल्ली में सिंघु, टिकरी और गाजीपुर बॉर्डर पर चल रहा किसान आंदोलन जल्दी ही एक प्रस्ताव की तरफ आगे बढ़ सकता है। इसमें केन्द्र सरकार किसानों से बात करेगी। उन्होंने कहा कि कृषि सुधार कानूनों का मसला हल होने के बाद ही हम बीजेपी के साथ गठबंधन करेंगे। किसान आंदोलन से पहले पंजाब में मोदी सरकार का कोई विरोध नहीं था। उन्होंने खुलासा किया कि किसान आंदोलन खत्म करवाने के लिए भी कोशिशें चल रही हैं।

अमरिंदर ने कहा कि उनका फोकस 2022 के विधानसभा चुनाव में जीत हासिल कर पंजाब में सरकार बनाने पर रहेगा। भाजपा से किसी तरह के वैचारिक दिक्कत के मामले में अमरिंदर सिंह ने कहा कि मैं पंजाब के साथ खड़ा हूँ और मेरे लिए पंजाब का हित सबसे ऊपर हैं। साथ ही यह भी कहा कि बीजेपी सांप्रदायिक पार्टी नहीं है। उन्होंने भाजपा के एंटी मुस्लिम होने को भी गलत करार दिया।

Sunday, October 3, 2021

पंजाब में कांग्रेस का पराभव

पंजाब से पैदा हुआ कांग्रेस पार्टी का संकट बड़ी शक्ल लेता जा रहा है। नवजोत सिंह सिद्धू और अमरिंदर सिंह के विवाद को देखते हुए समझ में नहीं आ रहा है कि पार्टी के भीतर समुद्र-मंथन जैसी कोई योजना है या हालात नेतृत्व के काबू के बाहर हैंयह संकट पंजाब में होने वाले विधानसभा चुनाव के ठीक पहले खड़ा हुआ है, इसलिए यह सवाल बनता है कि क्या नेतृत्व को इसका अंदेशा नहीं था? उसे सिद्धू से बड़ी उम्मीदें थीं, तो उन्हें राज्य का मुख्यमंत्री क्यों नहीं बनाया गया? कैप्टेन अमरिंदर सिंह जैसे बड़े नेता को हाशिए पर डालने की कोशिश क्यों की गई?

सब कुछ सोचकर हुआ है, तो देखना होगा कि आगे होता क्या है। अमरिंदर सिंह एक नई पार्टी बनाने की सोच रहे हैं। यह पार्टी पंजाब-केन्द्रित होगी या राष्ट्रीय स्तर पर नई कांग्रेस खड़ी होगी? कांग्रेस के एक और विभाजन की यह बेला तो नहीं? फिलहाल कुछ लोग कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक की उम्मीद कर रहे हैं, पर उस बैठक में क्या होगा? अगस्त 2020 में जब पहली बार जी-23 के पत्र का विवाद उछला था, तब कार्यसमिति की बैठक में क्या हुआ था? उस बैठक का निष्कर्ष था कि भाजपा से हमदर्दी रखने वालों का यह काम है। उसके बाद से राहुल गांधी इशारों में कई बार कह चुके हैं कि भाजपा से हमदर्दी रखने वाले जाएं और उससे लड़ने वालों का स्वागत है।

सिद्धू के हौसले

पंजाब के नए मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के फैसलों से नाराज नवजोत सिद्धू ने पहले इस्तीफा दिया और बाद में दोनों के बीच समझौता हो गया। पर इससे संदेश क्या गया? क्या सिद्धू किसी परिवर्तनकारी राजनीति को लेकर सामने आए हैं? मोटे तौर पर समझ में आता है कि कैप्टेन को बाहर करने के लिए बहानों की तलाश थी। सिद्धू जी ने खुद को कुछ ज्यादा वजनदार समझ लिया। बाद में उन्हें अपने वजन का सही अंदाज़ हो गया। पर क्या पार्टी ने अमरिंदर के वजन को सही आँका था?

नई कांग्रेस

कहा जा रहा है कि पार्टी विचारधारा और संगठन के स्तर पर नई शक्लो-सूरत के साथ सामने आने वाली है। इस शक्लो-सूरत को वीआईपी सलाहकार प्रशांत किशोर की सहायता से तैयार किया गया है। नौजवान छवि और वामपंथी जुमलों से भरे क्रांतिकारी विचार के साथ पार्टी मैदान में उतरने वाली है। कन्हैया कुमार के शामिल होने से भी इसका आभास होता है। पर क्या अपनों को धक्का देकर और बाहर वालों का स्वागत करके कोई पार्टी अपने प्रभाव को बढ़ा सकेगी? हाल के वर्षों में कांग्रेस की चुनावी विफलताएं कार्यकर्ता के कारण मिलीं हैं या नेतृत्व की वैचारिक धारणाओं के कारण? नए लोगों का स्वागत करके पार्टी जहाँ नई खिड़कियाँ खोल रही है, वहीं पुराने दरवाजे भी बन्द कर रही है। यह रणनीति उसपर भारी पड़ेगी।

Tuesday, September 28, 2021

कन्हैया कुमार का कांग्रेस में आगमन और सिद्धू का मिसगाइडेड मिसाइल


कन्हैया कुमार और जिग्नेश मेवाणी के आगमन से कांग्रेस को खुशी होगी, क्योंकि उदीयमान युवा नेता उसके साथ आ रहे हैं, पर उसी रोज नवजोत सिद्धू की कलाबाज़ी एक परेशानी भी पैदा करेगी। सिद्धू के इस्तीफे की खबर मिलने के कारण दिल्ली में हो रहे कार्यक्रम को दो-तीन बार स्थगित करना पड़ा। दोनों परिघटनाएं पार्टी के केन्द्रीय नेतृत्व की दृढ़ता, समझदारी और दूरदर्शिता को लेकर सवाल खड़े करने वाली हैं। कम्युनिस्ट पार्टी का साथ छोड़ने वाले कन्हैया कुमार और गुजरात के दलित कार्यकर्ता-विधायक जिग्नेश मेवाणी कांग्रेस में शामिल हो गए हैं। दिल्ली में हुए कार्यक्रम में जब इन दोनों का पार्टी में स्वागत किया जा रहा था, गुजरात के पाटीदार नेता हार्दिक पटेल भी मौजूद थे।

माना जा रहा है कि कई राज्यों में बागियों से परेशान कांग्रेस युवाओं पर दांव खेलेगी। सवाल है कि क्या उसके भीतर युवा नेता नहीं हैं? क्या वजह है कि उसके अपने युवा नेता परेशान हैं? सवाल कई प्रकार के हैं। एक सवाल पार्टी की युवा छवि का है, पर ज्यादा बड़ा सवाल पार्टी के नैरेटिव या राजनीतिक-दृष्टिकोण का है। पार्टी किस विचार पर खड़ी है?

दृष्टिकोण या विचारधारा

कांग्रेस के नेतृत्व को बेहतर समझ होगी, पर मुझे लगता है कि उसने अपने नैरेटिव पर ध्यान नहीं दिया है, या जानबूझकर जनता की भावनाओं की तरफ से मुँह मोड़ा है। शायद नेतृत्व का अपने जमीनी कार्यकर्ता के साथ संवाद भी नहीं है, अन्यथा उसे जमीनी धारणाओं की समझ होती। कन्हैया कुमार के शामिल होने के ठीक पहले पार्टी के वरिष्ठ नेता मनीष तिवारी ने ट्वीट किया कि कुछ कम्युनिस्ट नेताओं के कांग्रेस में शामिल होने की खबरें हैं। ऐसे में शायद 1973 में लिखी गई किताब 'कम्युनिस्ट्स इन कांग्रेस' को फिर से पढ़ा जाना चाहिए। चीजें जितनी बदलती हैं, उतनी ही बदस्तूर भी रहती हैं। मैंने आज इसे फिर पढ़ा है।

Monday, September 20, 2021

गहमा-गहमी के बाद तय हुआ चन्नी का नाम

पाँच महीने का मुख्यमंत्री? इंडियन
एक्सप्रेस में उन्नी का कार्टून

चुनाव के पाँच महीने पहले मुख्यमंत्री बदलने के कारण तो समझ में आए, पर वैकल्पिक मुख्यमंत्री के नाम पर विचार करने में पार्टी ने देरी की। दूसरे जिस व्यक्ति का चयन किया गया है, उससे जुड़े विवादों पर विचार करने का मौका भी पार्टी को नहीं मिला। चरणजीत सिंह चन्नी की दो बातें उनके पक्ष में गईं। एक तो उनका दलित आधार और दूसरे नवजोत सिंह की जोरदार पैरवी।

अब राज्य में पार्टी और सरकार के बीच दूरी नहीं रहेगी। पर मुख्यमंत्री के चयन के दौरान कई नामों के विरोध से यह बात भी सामने आई है कि पार्टी के भीतर आपसी टकराव काफी हैं। पार्टी सर्वानुमति से फैसला नहीं कर पाई। फैसला हुआ भी तो भीतरी टकराव सामने आया। पार्टी के भीतर सिख बनाम हिन्दू की अवधारणा का टकराव भी देखने को मिला।

नए मुख्यमंत्री का नाम तय होने के बाद भी यह विवाद खत्म होने वाला नहीं है, क्योंकि पंजाब के प्रभारी हरीश रावत ने किसी चैनल पर कह दिया कि चुनाव के बाद मुख्यमंत्री नवजोत सिंह सिद्धू बनेंगे। इस बात पर सुनील जाखड़ ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। सिद्धू समर्थक भी इस बात से नाराज है कि उनके नेता को मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया। अब प्रतिक्रियाएं श्रृंखला की शक्ल लेंगी और उनके जवाब आएंगे। शायद नेतृत्व ने इन बातों पर विचार नहीं किया था।

राज्य में 32 फीसदी दलित आबादी है और इन्हें अपनी तरफ खींचने की कोशिश सभी पार्टियाँ कर रही हैं। शिरोमणि अकाली दल ने बहुजन समाज पार्टी के साथ पहले ही गठबंधन कर लिया है और पहले से कहा है कि यदि उनकी सरकार बनी तो दलित उप-मुख्यमंत्री बनेगा। आम आदमी पार्टी भी दलित वोटबैंक के पीछे है। भारतीय जनता पार्टी ने कहा है कि हमारी सरकार बनी तो दलित को मुख्यमंत्री बनाएंगे। बहरहाल कांग्रेस ने बना दिया। सवाल है कि यदि पार्टी को सरकार बनाने का मौका मिला, तब भी क्या वह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाएगी?

Sunday, September 19, 2021

राहुल-प्रियंका नेतृत्व की परीक्षा की घड़ी


पंजाब में जो राजनीतिक बदलाव हुआ है, उसका श्रेय राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को दिया जा रहा है। पिछले कुछ समय से दोनों पार्टी को दिशा दे रहे हैं, इसलिए आने वाले समय में इन दोनों की परीक्षा होगी। पंजाब में नेतृत्व का सवाल हल होने के बाद चुनाव और उसके बाद की परिस्थितियों से जुड़े फैसले अब उन्हें ही करने होंगे। उसके साथ-साथ पर्यवेक्षक यह भी कह रहे हैं कि राजस्थान और छत्तीसगढ़ के मसले भी सिर उठाएंगे।

ऐसा लगता है कि कांग्रेस हाईकमान सबसे पहले अपने ऊपर लगे कमजोर-नेतृत्व के विशेषण को हटाना चाहती है। इसके लिए जरूरी है कि फैसले होने चाहिए। सही या गलत का निर्णय समय करेगा। पंजाब के फैसले को लेकर पार्टी के भीतर और बाहर बहस शुरू हो गई है, पर ज्यादातर लोग मानते हैं कि राहुल और प्रियंका ने अपनी उपस्थिति को दिखाना शुरू किया है। एक तरह से यह जी-23 के नाम भी संदेश है।

लगता यह भी है कि पार्टी ने होमवर्क किए बगैर अमरिंदर को हटाने का फैसला कर लिया गया है। अन्यथा अबतक नए मुख्यमंत्री का नाम सामने आ जाता। तार्किक रूप से नवजोत सिद्धू को यह पद दिया जाना चाहिए।  

राजनीतिक दृष्टि

नेतृत्व की उपस्थिति साबित होने के अलावा देखना यह भी होगा कि इसके पीछे की राजनीतिक-दृष्टि क्या है और दूरगामी विचार क्या है। बताते हैं कि कांग्रेस के महामंत्री अजय माकन ने चंडीगढ़ में पार्टी के ऑब्ज़र्वर के रूप में जाने के पहले शुक्रवार की शाम को राहुल गांधी से भेंट की।

इसके बाद वे अभिषेक सिंघवी से भी मिले और यह जानकारी ली कि यदि अमरिंदर सिंह विधानसभा भंग करने की सिफारिश करें या केंद्रीय नेतृत्व का निर्देश मानने के बजाय इस्तीफा देने से इनकार कर दें, तब क्या होगा। उस समय तक 60 से ज्यादा विधायकों के हस्ताक्षरों से एक पत्र हाई कमान के पास आ चुका था। यानी पार्टी ने कानूनी व्यवस्थाएं भी कर ली थीं।

Saturday, September 18, 2021

अमरिंदर सिंह के इस्तीफे से खत्म नहीं होगा कांग्रेस का पंजाब-द्वंद्व



 अब यह करीब-करीब साफ है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह के इस्तीफे के पीछे कांग्रेस हाईकमान की भूमिका है। नवजोत सिंह सिद्धू का इस्तेमाल किया गया है। कहा जा रहा है कि आलाकमान ने कैप्टन पर विधायकों के कहने पर दबाव बनाया, पर कांग्रेस पार्टी के भीतर विधायकों को जब हाईकमान की इच्छा समझ में आ जाती है, तब उनका व्यवहार उसी हिसाब से बदलता है। बहरहाल अब मुख्यमंत्री कौन बनेगा, यह बात महत्वपूर्ण नहीं है। देखना यह होगा कि पार्टी अब आगे की राजनीति का संचालन किस प्रकार करेगी।

अलबत्ता यह सवाल जरूर पूछा जाएगा कि हाईकमान को कैप्टेन से क्या शिकायत हो सकती है। एक बात कही जा रही है कि राज्य में सरकार के खिलाफ जबर्दस्त एंटी-इनकम्बैंसी है। इसलिए नए चेहरे के साथ चुनाव में जाना बेहतर होगा। ऐसी बात थी, तो इतने टेढ़े तरीके से बदलाव की जरूरत क्या थी? महीनों पहले हाईकमान को अमरिंदर को यह बात बता देनी चाहिए थी। अब विधानसभा चुनाव नए मुख्यमंत्री, नवजोत सिद्धू और गांधी परिवार के नेतृत्व में लड़ा जाएगा। श्रेय भी उन्हें मिलेगा। 

अमरिंदर सिंह का कहना है कि दो महीने में तीन-तीन बार विधायकों की बैठक बुलाने का मतलब क्या था? कल रात अचानक घोषणा हुई कि शनिवार की शाम पांच बजे विधायकों की बैठक होगी।

सूत्रों का कहना है कि 80 में से 50 से अधिक विधायकों ने सोनिया गांधी को पत्र लिखकर मांग की थी कि अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री के पद से हटाया जाए, जिसके कारण विधायकों की आपात बैठक बुलानी पड़ी। विचित्र बात है कि हाईकमान ने विधायकों से सवाल पूछने की कोशिश नहीं की और मुख्यमंत्री से भी बात नहीं की।

Saturday, August 28, 2021

उलझन में कांग्रेस


पंजाब, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के घटनाक्रम को देखने से निष्कर्ष कुछ निकाले जा सकते हैं। या तो कांग्रेस पार्टी में उच्च स्तर किसी प्रकार का भ्रम है, या नेतृत्व की पकड़ पार्टी पर कम होती जा रही है या फिर संगठन को मजबूत बनाने का कोई नया प्रयोग है, जिसे हम समझ नहीं पा रहे हैं। छत्तीसगढ़ में यह स्थिति उतनी चिंताजनक नहीं थी, जितनी पंजाब में हो गई थी। नवजोत सिंह खुलेआम किसकी ईंट से ईंट बजाने की धमकी दे रहे थे, यह समझ में नहीं आया। यह अजब राज्य है, जहाँ का पार्टी ध्यक्ष अपनी ही सरकार की बाजा बजाने पर तुला था और केंद्रीय नेतृत्व सो रहा था।

सिद्धू ने कहा कि अगर मुझे फैसले करने की आजादी नहीं दी गई तो मैं ईंट से ईंट बजा दूँगा। सिद्धू के इस बयान पर बवाल मचा तो पंजाब कांग्रेस के प्रभारी हरीश रावत ने कहा कि सभी लोग सभ्य हैं और उन्हें मालूम है कि उन्हें क्या करना है। सबके बोलने का तरीका होता है इसलिए विद्रोही नहीं कहा जा सकता। पर कहीं न कहीं बात गम्भीर है, इसलिए उन्होंने कल सोनिया गांधी से और आज राहुल गांधी मुलाकात करके उन्हें स्थिति से अवगत कराया। बाद में उन्होंने मीडिया से चर्चा में कहा कि मैंने राहुल गांधी को हालात से अवगत करा दिया है। यह बहुत ही संक्षिप्त बैठक थी। आज उनका व्यस्त शिड्यूल है।

रावत ने कहा कि मैं उत्तराखंड पर ज्यादा ध्यान देना चाहता हूं, लेकिन पंजाब पर जो पार्टी फैसला करेगी, मैं उसका पालन करूंगा। रावत ने गुरुवार को कहा था कि मैं चाहता हूँ कि उत्तराखंड के विधानसभा चुनाव पर पूरा ध्यान लगाने के लिए मुझे पंजाब प्रदेश कांग्रेस की जिम्मेदारी से मुक्त कर दिया जाए। साथ में उन्होंने यह भी कहा कि पार्टी कहती है, पंजाब की जिम्मेदारी जारी रखें तो मैं इस जिम्मेदारी का निर्वहन करता रहूंगा। पंजाब और उत्तराखंड में अगले साल फरवरी-मार्च में विधानसभा चुनाव होने हैं। रावत के करीबियों का कहना है कि पंजाब कांग्रेस में विवाद को सुलझाने के प्रयास में उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री अपने राज्य में पूरा ध्यान नहीं दे पा रहे हैं, जबकि वह कांग्रेस की ओर से उत्तराखंड के सबसे बड़े चेहरे हैं।

पंजाब अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू की खींचतान के दायरे में मनीष तिवारी भी आ गए हैं। मनीष तिवारी ने ट्विटर हैंडल पर सिद्धू का वह वीडियो शेयर किया है, जिसमें वह कह रहे हैं कि अगर कांग्रेस हाईकमान उन्हें फैसले लेने की आजादी नहीं देती है तो फिर मैं ईंट से ईंट बजा दूँगा। इस वीडियो के कैप्शन में मनीष तिवारी ने लिखा- हम आह भी भरते हैं तो हो जाते हैं बदनाम, वो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता।

 

 

Wednesday, June 30, 2021

पंजाब में कांग्रेस आत्मघात की ओर


सम्भव है कि कांग्रेस के पास भविष्य की कोई रणनीति हो, पर वह कम से कम मुझे नजर नहीं आ रही है। पंजाब में जिस तरीके से नवजोत सिंह सिद्धू को स्थापित करने की कोशिश की जा रही है और उसका प्रचार भी जोर-शोर से किया जा रहा है, उससे नेतृत्व की नासमझी ही दिखाई पड़ रही है। वह भी चुनाव के ठीक पहले। पार्टी यदि सिद्धू के नेतृत्व में चुनाव लड़ना चाहती है, तो उसे इसे स्पष्ट करना चाहिए और खुलकर सामने आना चाहिए। इस तरीके से तो न तो कैप्टेन अमरिंदर सिंह का भला होगा और न सिद्धू को कुछ मिलेगा। हाँ, यह हो सकता है कि यह पंछी उड़कर किसी और जहाज पर जाकर न बैठ जाए।

कुछ दिन पहले अमरिंदर सिंह दिल्ली आए और दो दिन यहाँ रहे। उनकी मुलाकात गांधी परिवार के किसी से नहीं हो पाई, तो उसमें विस्मय की बात नहीं थी। पर सिद्धू के साथ 30 जून को पहले प्रियंका गांधी के साथ और शाम को राहुल गांधी के साथ हुई मुलाकातें और फिर उसका प्रचार साफ बता रहा है कि हाईकमान के सोच की दिशा क्या है। हाल में पार्टी की तरफ से पार्टी के पंजाब प्रभारी हरीश रावत ने कहा था कि पार्टी अध्यक्ष जुलाई के पहले या दूसरे हफ्ते तक इस मामले में कोई फैसला करेंगी। अलबत्ता पार्टी ने मुख्यमंत्री से 18 मामलों पर काम करने को कहा है। मुख्यमंत्री इस विषय पर प्रेस कांफ्रेंस करके जानकारी देंगे।

Thursday, June 24, 2021

पंजाब में कांग्रेस का संशय


कांग्रेस हाईकमान ने पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह से 18 चुनावी वायदों को एक समय-सीमा में पूरा करने को कहा है। वायदों को पूरा करने के निर्देश में कुछ गलत नहीं है, पर इस बात की सार्वजनिक घोषणा के मायने हैं। दूसरे अमरिंदर सिंह दिल्ली आए, दो दिन रहे और सोनिया गांधी या राहुल गांधी से उन्हें मिलने का अवसर नहीं मिला। बुधवार को राहुल गांधी ने हरीश रावत, पंजाब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुनील जाखड़, सांसदों मनीष तिवारी और प्रताप सिंह बाजवा, राज्य के वित्तमंत्री मनप्रीत बादल और विधायक इंदरबीर बुलारिया से मुलाकात की।

ऐसा लगता है कि पार्टी हाईकमान पंजाब को लेकर सक्रिय जरूर है, पर समाधान आसान नहीं है। कैप्टेन की अनदेखी नहीं हो सकती और सिद्धू की महत्वाकांक्षाओं को रोका नहीं जा सकता। दूसरी तरफ राजस्थान में सचिन पायलट के खेमे की सुनवाई उस स्तर पर नहीं हो रही है, जिस स्तर पर नवजोत सिद्धू खेमे की है। सिद्धू प्रदेश के पार्टी अध्यक्ष बनना चाहते हैं, ताकि अगले चुनाव में ज्यादा से ज्यादा विधायक उनके समर्थक हों। पर वे बाहर से पार्टी में आए हैं और संगठन में मामूली पैठ और सीमित जानकारी ही उनके पास है। यह स्पष्ट है कि वे राहुल गांधी के सम्पर्क से पार्टी में आए हैं और उनका वह बयान प्रसिद्ध है, जिसमें उन्होंने कहा था, कौन कैप्टेन, मेरे कैप्टेन राहुल गांधी हैं।

पार्टी के पंजाब प्रभारी हरीश रावत ने कहा है कि पार्टी अध्यक्ष जुलाई के पहले या दूसरे हफ्ते तक इस मामले में कोई फैसला करेंगी। अलबत्ता पार्टी ने मुख्यमंत्री से 18 मामलों पर काम करने को कहा है। मुख्यमंत्री इस विषय पर प्रेस कांफ्रेंस करके जानकारी देंगे। दूसरी तरफ हाईकमान ने सिद्धू के हाल के बयानों को लेकर भी अपनी अप्रसन्नता व्यक्त की है। मल्लिकार्जुन खड़गे के नेतृत्व में बनी तीन सदस्यीय समिति ने सिद्धू को दिल्ली बुलाया है और अपनी स्थिति स्पष्ट करने को कहा है।

सूत्रों के मुताबिक हाईकमान ने माना है कि सिद्धू को किसी भी तरह के मतभेद की बात पार्टी फोरम में ही रखनी चाहिए थी पार्टी के पैनल ने अमरिंदर सिंह को ही 2022 के विधानसभा चुनावों के लिए कैप्टन बनाए रखने पर सहमति जताई है और उन्हें टीम चुनने के लिए फ्री-हैंड दिया है।

Friday, June 11, 2021

चुनावी पृष्ठभूमि में पंजाब और उत्तर प्रदेश में राजनीतिक गतिविधियाँ तेज हुईं


अगले साल के फरवरी-मार्च महीनों में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर में विधान सभा चुनाव होंगे। उसके पहले इन सभी राज्यों में राजनीतिक गतिविधियाँ तेज हो गई हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ दिल्ली में हैं। गुरुवार को उनकी मुलाकात गृहमंत्री अमित शाह से हुई है और आज वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलेंगे। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से भी उनकी मुलाकात होगी। कयास हैं कि केंद्रीय नेतृत्व के साथ उन्होंने मंत्रिमंडल विस्तार, पंचायत चुनाव समेत कई अन्य मुद्दों पर चर्चा की है। कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए जितिन प्रसाद से भी उनकी मुलाकात हुई है।

उधर पंजाब में तेज गतिविधियाँ चल रही हैं। कांग्रेस पार्टी घोषणा कर चुकी है कि हम मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के चेहरे के साथ चुनाव मैदान में उतरेंगे, पर प्रदेश के नेतृत्व में विकल्प की भी तलाश हो रही है। इस तलाश के पीछे कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू के बीच चल रहे टकराव की भूमिका भी है। दोनों नेताओं के बीच राज्य में पोस्टर युद्ध चल रहा है। लगता यह भी है कि सिद्धू को बढ़ावा देने में हाईकमान की भूमिका भी है।

Tuesday, December 22, 2020

भारी औद्योगीकरण की अनुपस्थिति की देन है पंजाब का किसान आंदोलन


दिल्ली के आसपास चल रहे किसान आंदोलन के संदर्भ में सोमवार 21 दिसंबर के इंडियन एक्सप्रेस में धनमंजिरी साठे का ऑप-एड लेख प्रकाशित हुआ है, जिसमें लेखिका का कहना है कि यह आंदोलन पंजाब में हरित-क्रांति के बावजूद वहाँ औद्योगीकरण न हो पाने के कारण जन्मा है। लेखिका सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र की प्राध्यापक हैं।

इन्होंने लिखा है, मुख्यतः पंजाब के किसानों के इस आंदोलन ने विकासात्मक-अर्थशास्त्र (डेवलपमेंट-इकोनॉमिक्स) से जुड़े प्रश्नों को उभारा है। विकास-सिद्धांत कहता है कि किस तरह से एक पिछड़ी-खेतिहर अर्थव्यवस्था औद्योगिक (जिसमें सेवा क्षेत्र शामिल है) अर्थव्यवस्था बन सकती है। इसके अनुसार औद्योगिक-क्रांति की दिशा में बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था में कृषि-क्रांति होनी चाहिए। यानी कि खेती का उत्पादन और उत्पादकता इतनी बड़ी मात्रा में होने लगे कि खेती में लगे श्रमिक उद्योगों में लग सकें और औद्योगिक श्रमिकों को खेतों में हो रहे अतिरिक्त उत्पादन से भोजन मिलने लगे।  

पंजाब में साफ तौर पर कृषि-क्रांति (हरित-क्रांति) हो चुकी है। वहाँ काफी मात्रा में अतिरिक्त अन्न उपलब्ध है। यदि पंजाब स्वतंत्र देश होता, तो कृषि-क्रांति के बाद समझदारी इस बात में थी कि पहले दौर में आयात पर रोक लगाकर, औद्योगीकरण को प्रोत्साहन दिया जाता। ऐसे में खेती के काम में लगे अतिरिक्त श्रमिकों को उद्योगों में लगाया जा सकता था। पर पंजाब एक बड़े देश का हिस्सा है। इसलिए उसकी खेती के लिए देश के दूसरे क्षेत्रों में आसान बाजार उपलब्ध है। पंजाब न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर भारतीय खाद्य निगम को गेहूँ बेचता रहा है। पंजाब में एमएसपी और एपीएमसी मंडियों के विकास के कारण वहाँ के किसानों की स्थिति देश के दूसरे इलाकों के किसानों से काफी बेहतर है। एमएसपी और बेहतर तरीके से चल रही मंडियाँ केंद्र की एक सुनियोजित योजना के तहत विकसित हुई हैं, जिसका उद्देश्य है देश में पहले खाद्य-उत्पादन के क्षेत्र में आत्म-निर्भरता और उसके बाद अतिरिक्त अनाज भंडारण की स्थिति हासिल की जाए, ताकि साठ के मध्य-दशक जैसी स्थिति फिर पैदा न हो। यह स्थिति वृहत स्तर पर कुछ समय पहले हासिल की जा चुकी है। हालांकि इसका मतलब यह नहीं कि देश में कुपोषण की स्थिति नहीं है।

खेती की आय बढ़ने से औद्योगिक-उत्पादों की माँग बढ़ी। जैसे कि ट्रैक्टर, कार, वॉशिंग मशीन वगैरह। ये चीजें उन राज्यों में तैयार होती हैं, जिन्होंने अपने यहाँ औद्योगिक हब तैयार कर लिए हैं। जैसे कि तमिल नाडु, महाराष्ट्र और कर्नाटक। संक्षेप में पंजाब में कृषि-क्रांति हुई, पर चूंकि उसके अनाज के लिए देश का बड़ा बाजार खुला हुआ था, इसलिए वह औद्योगिक-क्रांति की दिशा में नहीं बढ़ा। 

एक अर्थव्यवस्था के भीतर एक प्रकार का भौगोलिक-विशेषीकरण होना चाहिए, जो प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता और जमीन की उर्वरता वगैरह से जुड़ा हो। जैसे कि सहज रूप से खानें झारखंड में हैं। इसी आधार पर पंजाब को हरित-क्रांति के लिए चुना गया था। इस बात की उम्मीद नहीं करनी चाहिए कि हरेक राज्य, हरेक सामग्री के उत्पादन में कुशल होगा। पर पंजाब का मामला विस्मयकारी है। सवाल है कि विकास की इकाई क्या हो?

कृषि-क्रांति से जो दूसरी परिघटना होती है, वह है खेती से मुक्त हुए मजदूरों को उद्योगों में लगाया जा सकता है। पर पंजाब में खास औद्योगीकरण नहीं हुआ। पंजाब कृषि-प्रधान राज्य बना रहा और दुर्भाग्य से उसे इस बात पर गर्व है। बुनियादी तौर पर वर्तमान आंदोलन, औद्योगीकरण की कमी को व्यक्त कर रहा है। बिहार में भी औद्योगीकरण नहीं हुआ है, इसलिए वहाँ के सीमांत और छोटे किसान दूसरे राज्यों में जा रहे हैं। पर पंजाब में इस वर्ग के लोग उतने गरीब नहीं हैं, जितने बिहार के प्रवासी हैं, पर वे उतने अमीर भी नहीं हैं, जितने पंजाब के किसान हैं।

कोई वजह नहीं है जो पंजाब को औद्योगिक-क्रांति से रोके। पर पंजाब की नीतियों में ठहराव है। जब तक किसानों को उनके अनाज की एमएसपी के सहारे उचित कीमत मिल रही है और लोग पर्याप्त संतुष्ट और सम्पन्न हैं, वहाँ की राज्य सरकार पर वर्षों से कुछ करने का दबाव नहीं है। 

उम्मीद है कि वर्तमान संकट का संतोषजनक समाधान निकल आएगा, पर बुनियादी दरार बनी रहेगी। पंजाब में शहरी आबादी करीब 40 फीसदी है। वृहत स्तर पर औद्योगीकरण के सहारे यह संख्या बढ़नी चाहिए।

वर्तमान आंदोलन एक तरह से पंजाब के नीति-निर्धारकों को जगाने की कोशिश है। भारतीय अर्थव्यवस्था खाद्य-संकट के स्तर से उबर कर कुछ फसलों में अतिरिक्त उपज के स्तर पर आ चुकी है। जाहिर है कि कोई भी सरकार हरेक उपज (यहाँ गेहूँ) के लिए खुली एमएसपी जारी नहीं रख सकती। वस्तुतः अस्सी के दशक में शरद जोशी और वीएम दांडेकर के बीच इसी बिन्दु पर बहस थी।

कुछ बड़े किसान स्थायी सरकारी कर्मचारी की तरह बन चुके हैं और वे अपनी आय को सुरक्षित बनाकर रहना चाहते हैं-यह उनका अधिकार है। यह स्पष्ट नहीं है कि बीजेपी ने इन कानूनों को पास करने में जल्दबाजी क्यों की। भारत में आमतौर पर उम्मीद की जाती है कि सरकारें अलोकप्रिय बदलावों को खामोशी के साथ करती हैं, घोषणा करके नहीं करतीं।

बहरहाल सरकार को बफर स्टॉक बनाए रखने और सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए कुछ अनाज एमएसपी पर खरीदना होगा। इसलिए पंजाब में और इसी किस्म की खेती वाले दूसरे राज्यों में किसानों और सरकार को बीच का रास्ता खोजना होगा। इसके साथ ही जैसा कि दुनिया के दूसरे देशों में सरकारें करती हैं, सब्सिडी देनी होगी, पर निजी क्षेत्र के विस्तार को भी बढ़ावा देना होगा। बड़े किसानों की क्षमता है और वे गैर-गेहूँ, गैर-धान फसलों की ओर जा सकते हैं।

पंजाब का औद्योगीकरण मुश्किल नहीं है। वहाँ कानून-व्यवस्था की बेहतरीन स्थिति है। लोग उद्यमी, मेहनती, शिक्षित और स्वस्थ हैं। पंजाब को बांग्लादेश और वियतनाम से सीखना चाहिए और ऐसे औद्योगीकरण की ओर जाना चाहिए, जिसमें श्रमिकों की खपत हो। पंजाब ही नहीं पूरे देश को उनसे सीखने की जरूरत है। सरकार छोटे और मध्यम दर्जे के उद्योगों की दिशा में काफी कुछ कर सकती है। इन्हीं उद्योगों को बड़ा बनने का मौका दिया जाए। पंजाब इस मामले में रास्ता दिखा सकता है।

 


Friday, December 11, 2020

लोकतंत्र की आहट


 इंडियन एक्सप्रेस में आज किसान-आंदोलन के सिलसिले में सुहास पालशीकर ने लिखा है कि देखना होगा कि इस आंदोलन के बारे में उन लोगों की राय क्या बनती है, जो किसान नहीं हैं। पिछले साल इसी वक्त हुए सीएए एनआरसी विरोधी आंदोलन को मुसलमानों का आंदोलन साबित कर दिया गया। अब सरकार और किसानों के बीच बातचीत में से समझौता नहीं निकल पा रहा है। क्या बीजेपी इन माँगों को स्वीकार करेगी या पलटकर वार करेगी? इस दौरान ऐसी बातें भी सुनाई पड़ रही हैं कि आर्थिक सुधारों को लोकतांत्रिक प्रक्रियाएं रोक रही हैं।  

पालशीकर ने लिखा है कि किसानों का आंदोलन शुरू होने के कुछ दिन बाद सरकार ने उनसे संवाद शुरू कर दिया। ऐसा सरकार करती नहीं रही है। इस वार्ता ने राजनीतिक लचीलेपन को स्थापित किया है। खेती से जुड़े कानूनों को बोल्ड आर्थिक सुधार के रूप में स्थापित किया गया है। वर्तमान प्रधानमंत्री गुजरात में भी ऐसे ही दावे करते रहे हैं। वे इस बात को कभी नहीं मानते कि सुधारों को लेकर मतभेद हो सकते हैं और ऐसे मामलों को मिलकर सुलझाना चाहिए।

Tuesday, December 8, 2020

पंजाब की ग्रामीण संरचना पर भी नजर डालिए

 


दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन ने अंततः राजनीतिक शक्ल अख्तियार कर ली है। इसमें किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए। हमारे देश में खेती-किसानी से बड़ा राजनीतिक मुद्दा है भी नहीं। इससे राजनीति को अलग नहीं कर सकते। शायद ही कोई चुनाव जाता होगा, जिसमें किसानों का राजनीतिक दलों के घोषणापत्रों में उल्लेख नहीं होता हो। दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन में सबसे ज्यादा किसान पंजाब और हरियाणा से आए हैं। इनमें उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश और कुछ दूसरे राज्यों के किसान भी हैं, पर सबसे ज्यादा पंजाब और हरियाणा से हैं। अलबत्ता इसमें देशभर के किसान संगठन जुड़े हैं।

इस आंदोलन को लेकर कई तरह की बातें हैं। इसमें आए लोगों की कारों के मॉडलों और जींस पहने नौजवानों तथा अंग्रेजी बोलने वालों का जिक्र भी हो रहा है। इन बातों का कोई मतलब नहीं है। अलबत्ता यह सवाल जरूर है कि इसमें सबसे ज्यादा लोग पंजाब-हरियाणा से ही क्यों आए हैं और बाकी राज्यों में यह बड़ा आंदोलन क्यों नहीं है? सवाल यह भी है कि उत्तर प्रदेश और हरियाणा की भाजपा सरकारों ने आंदोलन का समर्थन नहीं किया है, पर पंजाब सरकार आंदोलन की समर्थक है। दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार ने भी आंदोलन का समर्थन किया है। जाहिर है कि बड़ा कारण पंजाब की राजनीति है। इस राजनीति की ध्वनि आपको ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और ब्रिटेन से भी सुनाई पड़ रही है, तो उसके पीछे के कारणों को भी समझना होगा।

Sunday, November 29, 2020

लाठी से नहीं, प्रेम से बात करें

हरियाणा और दिल्ली में पुलिस के साथ हुए दो दिन के संघर्ष के बाद आखिरकार शुक्रवार को केंद्र सरकार ने किसानों को राष्ट्रीय राजधानी में प्रवेश करने और अपने आंदोलन-प्रदर्शन को जारी रखने की अनुमति दे दी। पर यह अनुमति बुराड़ी से आंदोलन चलाने की है। प्रदर्शनकारी बुराड़ी के बजाय रामलीला मैदान तक जाना चाहते हैं, जहाँ शहर की मुख्यधारा है। इस बीच गृहमंत्री अमित शाह ने कहा है कि आप बुराड़ी चले जाएं, हम आपसे फौरन बात करने को तैयार हैं। इससे कुछ देर के लिए टकराव टल गया है, पर समस्या का समाधान नहीं निकला है। इस पेशकश पर किसानों की प्रतिक्रिया अभी मिली नहीं है। शायद आज आए। 

यह कहना ठीक नहीं होगा कि बीजेपी को राजनीति की सही समझ नहीं है, पर यह बात भी जाहिर हो रही है कि बीजेपी की राजनीति पंजाब में सफल नहीं है। गौर से देखें तो पाएंगे कि सन 2014 और 2019 में और बीच में हुए पंजाब के विधानसभा चुनावों में उत्तर भारत के दूसरे राज्यों के विपरीत पंजाब में मोदी की लहर नहीं चली। पहली नजर में लगता है कि केंद्र सरकार ने बहुत गलत मोड़ पर, गलत समय पर और गलत तरीके से किसान आंदोलन से निपटने की कोशिश की है। इसे जल्द से जल्द दुरुस्त किया जाना चाहिए। संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा कि दिल्ली में शांतिपूर्ण विरोध की अनुमति देने के केंद्र के कदम से यह संकेत मिलता है कि सरकार हमारी मांगें मानने के लिए भी तैयार होगी। किसान अब भी उद्वेलित हैं, पर कम से कम कहा जा सकता है कि उनकी भावनाओं का सम्मान किया गया।

Monday, September 7, 2015

पंजाब में 'आप' की जीत सम्भव बशर्ते...

पंजाब में जोखिम से जूझती 'आप'

  • 2 घंटे पहले

अरविंद केजरीवालImage copyrightAP

भ्रष्टाचार-विरोधी आंदोलन के सहारे बनी आम आदमी पार्टी अपने गठन के समय से ही अंतर्विरोधों की शिकार है. वह सत्ता और आंदोलन की राजनीति में अंतर नहीं कर पा रही है.
पार्टी 'एक नेता' और 'आंतरिक लोकतंत्र के अंतर्विरोध' को सुलझा नहीं पा रही है. इसके कारण वह देश के दूसरे इलाक़ों में प्रवेश की रणनीति बना नहीं पा रही है.
पार्टी की पंजाब शाखा इसी उलझन में है, जहाँ हाल में उसके केंद्रीय नेतृत्व ने (दूसरे शब्दों में अरविंद केजरीवाल) दो सांसदों को निलंबित करके अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली है.

पढ़ें विस्तार से

दिल्ली के बाद पंजाब में पार्टी का अच्छा प्रभाव है. संसद में उसकी उपस्थिति पंजाब के कारण ही है, जहाँ से लोक सभा में चार सदस्य हैं.
पंजाब में कांग्रेस, शिरोमणि अकाली दल और बीजेपी के नेता मानते हैं कि उन्हें सबसे बड़ा ख़तरा 'आप' से है.

'आप' का सेल्फ गोल

पंजाब की जनता को भी 'आप' में विकल्प नज़र आता है.
उम्मीद थी कि अकाली सरकार के ख़िलाफ़ 'एंटी इनकम्बैंसी' को देखते हुए वहाँ कांग्रेस पार्टी अपने प्रभाव का विस्तार करेगी, पर वह भी धड़ेबाज़ी की शिकार है.
ऐसे में 'आप' की संभावनाएं बेहतर हैं, पर लगता है कि यह पार्टी भी सेल्फ़ गोल में यक़ीन करती है.
पार्टी ने हाल में पटियाला के सासंद धर्मवीर गांधी और फ़तेहगढ़ साहिब से जीतकर आए हरिंदर सिंह ख़ालसा को अनुशासनहीनता के आरोप में निलंबित किया है. दोनों का मज़बूत जनाधार है.

मनमुटाव की शुरुआत


प्रशांत भूषणImage copyrightPTI

केजरीवाल और प्रशांत भूषण के टकराव के दौरान इस मनमुटाव की शुरुआत हुई थी. तब से धर्मवीर गांधी योगेंद्र यादव के साथ हैं. शुरू में हरिंदर सिंह खालसा का रुख़ साफ़ नहीं था, पर अंततः वे भी केंद्रीय नेतृत्व के ख़िलाफ़ हो गए.
इन दोनों नेताओं को समझ में आता है कि प्रदेश में लहर उनके पक्ष में है. दूसरी ओर पार्टी नेतृत्व को लगता है कि पार्टी से अलग होने के बाद किसी नेता की पहचान क़ायम नहीं रहती.