खबरें मिल रहीं हैं कि इस
साल के अंत में होने वाले कुछ राज्यों के विधानसभा चुनाव के साथ लोकसभा चुनाव भी
कराए जा सकते हैं। चालू बजट सत्र के पहले दिन अपने अभिभाषण में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद
ने भी इस बात का संकेत किया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी इस बात का समर्थन
किया। कांग्रेस सहित प्रमुख विरोधी दल इस बात के पक्ष में नजर नहीं आते हैं।
कांग्रेस की कोशिश है कि अगले लोकसभा चुनाव के पहले समान विचारधारा वाले दलों की
एकता कायम कर ली जाए, ताकि बीजेपी को हराया जा सके। पिछले साल राष्ट्रपति के चुनाव
के पहले पार्टी ने इस एकता को कायम करने की कोशिश की थी। उसमें सफलता भी मिली, पर
उसी दौर में बिहार का महागठबंधन टूटा और जेडीयू फिर से वापस एनडीए के साथ चली गई।
देश की राजनीति में सबसे
लम्बे अरसे तक कांग्रेस का वर्चस्व रहा है। गठबंधन की राजनीति उसकी दिलचस्पी का
विषय तभी बनता है जब वह गले-गले तक डूबने लगती है। तीन मौकों पर उसने गठबंधन
सरकारें बनाईं। दो मौकों पर उसने बाहर से गठबंधन सरकारों को समर्थन दिया। हर बार
सहयोगी दलों को कांग्रेस से शिकायतें रहीं। जब उसने बाहर से समर्थन दिया तो बैमौके
समर्थन वापस लेकर सरकारें गिराईं। सन 2004 में पहली बार यूपीए बना, तो 2008 में
वामदलों के हाथ खींच लेने के कारण सरकार गिरते-गिरते बची। यूपीए-2 के दौर में उसे
लगातार ममता बनर्जी, शरद पवार और करुणानिधि के दबाव में रहना पड़ा।