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Friday, December 4, 2020

भारत में भी मिलने वाली है वैक्सीन को मंजूरी

 


सब कुछ ठीक रहा तो इस महीने के अंत या जनवरी की शुरुआत में देश की नियामक संस्था कोरोनावायरस टीके के आपात इस्तेमाल की मंजूरी दे देगी।  देश में विभिन्न टीकों का परीक्षण अभी अंतिम चरण में चल रहा है। इसकी जानकारी अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया ने बुधवार को दी। (उधर प्रधानमंत्री ने आज सर्वदलीय बैठक में भी इस बात की पुष्टि की कि भारत में वैक्सीन को मंजूरी मिलने वाली है)।

गुलेरिया ने कहा कि आंकड़ों से पता चलता है कि अल्पावधि में टीका सुरक्षित है। उन्होंने कहा, 'कई आंकड़े उपलब्ध हैं जो इसकी पुष्टि करते हैं कि टीका बेहद सुरक्षित है। टीके से संबंधित सुरक्षा और असर से किसी तरह का समझौता नहीं किया गया है। परीक्षण के दौरान तकरीबन 70 से 80 हजार स्वयंसेवकों को टीका लगाया गया है लेकिन अब तक कोई गंभीर प्रतिकूल प्रभाव नहीं दिखा है।'

रूस दुनिया का पहला देश है जिसने इस साल अगस्त में कोरोनावायरस के टीके स्पूतनिक-5 के आपात इस्तेमाल की मंजूरी दी थी। हालांकि तब तक स्पूतनिक के तीसरे चरण का परीक्षण भी पूरा नहीं हुआ था। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अपनी सरकार को अगले हफ्ते से व्यापक स्तर पर देश में टीकाकरण शुरू करने का आदेश दिया है।

Tuesday, November 24, 2020

वैक्सीन-प्रभावोत्पादकता की बहस में अभी पड़ना उचित नहीं


भारत में बन रही एस्ट्राजेनेका-ऑक्सफोर्ड विवि की वैक्सीन की प्रभावोत्पादकता को लेकर आज एक खबर दो तरह से पढ़ने को मिली। आज के टाइम्स ऑफ इंडिया की लीड है कि यह वैक्सीन 70 फीसदी तक प्रभावोत्पादक है। टाइम्स के हिंदी संस्करण नवभारत टाइम्स ने भी यह बात लिखी है, जबकि उसी प्रकाशन समूह के अखबार इकोनॉमिक टाइम्स ने लिखा है कि यह वैक्सीन 90 फीसदी के ऊपर प्रभावोत्पादक है। खबरों को विस्तार से पढ़ें, तो यह बात भी समझ में आती है कि एस्ट्राजेनेका की दो खुराकें लेने के बाद उसकी प्रभावोत्पादकता 90 फीसदी के ऊपर है। केवल एक डोज की प्रभावोत्पादकता 70 फीसदी है। तमाम टीके एक से ज्यादा खुराकों में लगाए जाते हैं। छोटे बच्चों को चार पाँच साल तक टीके और उनकी बूस्टर डोज लगती है। इसकी डोज कितनी होगी, इसके बारे में इंतजार करें। इसमें दो राय नहीं कि एस्ट्राजेनेका-ऑक्सफोर्ड विवि की वैक्सीन पर्याप्त कारगर होगी। अभी उसके पूरे विवरण तो आने दें। इस वैक्सीन का निष्कर्ष है कि यह छोटी डोज़ में दो बार देने पर बेहतर असरदार है। जो परिणाम मिले हैं, उनसे पता लगा है कि जिन लोगों को पहली डोज कम और दूसरी डोज पूरा दी गई उनके परिणाम 90 फीसदी के आसपास हैं और जिन्हें दोनों डोज पूरी दी गईं उनका असर 62 फीसदी के आसापास है। इसके पीछे के कारणों का पता तब लगेगा, जब इसके पूरे निष्कर्ष विस्तार से प्रकाशित होंगे। भारत में तो अभी तीसरे चरण के परीक्षण चल ही रहे हैं। 
बहरहाल महत्वपूर्ण खबर यह है कि भारत में वैक्सीन की पहली खुराक एक करोड़ स्वास्थ्य कर्मियों को दी जाएगी। मुझे इन खबरों के पीछे हालांकि साजिश कोई नहीं लगती, पर कुछ लोगों के मन में संदेह पैदा होता है कि फायज़र की वैक्सीन तो 95 फीसदी और मॉडर्ना की वैक्सीन 94.5 फीसदी असरदार है, तो यह कम असरदार क्यों हो? पहले तो यह समझना चाहिए कि यह दवा के असर से जुड़ी खबर नहीं है, बल्कि उस डेटा का विश्लेषण है, जो टीके के दूसरे और तीसरे चरण के बाद जारी हुआ है। इसमें देखा यह जाता है कि कुल जितने हजार लोगों को टीके लगे, उनमें से कितनों को कोरोना का संक्रमण हुआ। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के अनुसार टीका यदि 50 फीसदी या उससे ज्यादा लोगों को बीमारी से रोकता है, तो उसे मंजूरी मिल जानी चाहिए।