Friday, November 30, 2012

बड़े राजनीतिक गेम चेंजर की तलाश

हिन्दू में सुरेन्द्र का कार्टून
 कांग्रेस पार्टी ने कंडीशनल कैश ट्रांसफर कार्यक्रम को तैयार किया है, जिसे आने वाले समय का सबसे बड़ा गेम चेंजर माना जा रहा है। सन 2004 में एनडीए की पराजय से सबक लेकर कांग्रेस ने सामाजिक जीवन में अपनी जड़ें तलाशनी शुरू की थी, जिसमें उसे सफलता मिली है। ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना ने उसे 2009 का चुनाव जिताया। उसे पंचायत राज की शुरूआत का श्रेय भी दिया जा सकता है। सूचना के अधिकार पर भी वह अपना दावा पेश करती है, पर इसका श्रेय विश्वनाथ प्रताप सिंह को दिया जाना चाहिए। इसी तरह आधार योजना का बुनियादी काम एनडीए शासन में हुआ था। सर्व शिक्षा कार्यक्रम भी एनडीए की देन है। हालांकि शिक्षा के अधिकार का कानून अभी तक प्रभावशाली ढंग से लागू नहीं हो पाया है, पर जिस दिन यह अपने पूरे अर्थ में लागू होगा, वह दिन एक नई क्रांति का दिन होगा। भोजन के अधिकार का मसौदा तो सरकार ने तैयार कर लिया है, पर उसे अभी तक कानून का रूप नहीं दिया जा सका है। प्रधानमंत्री ने हाल में घोषणा भी की है कि अगली पंचवर्षीय योजना से देश के सभी अस्पतालों में जेनरिक दवाएं मुफ्त में मिलने लगेंगी। सामान्य व्यक्ति के लिए स्वास्थ्य सबसे बड़ी समस्या है। कंडीशनल कैश ट्रांसफर योजना का मतलब है कि सरकार नागरिकों को जो भी सब्सिडी देगी वह नकद राशि के रूप में उसके बैंक खाते में जाएगी।

Wednesday, November 28, 2012

कुछ भी हो साख पत्रकारिता की कम होगी

ज़ी़ न्यूज़ के सम्पादक की गिरफ्तारी के बारे में सोशल मीडिया में कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। इसमें कई तरह की व्यक्तिगत बातें भी हैं। कुछ लोग सुधीर चौधरी से व्यक्तिगत रूप से खफा हैं। वे इसे अपनी तरह देख रहे हैं, पर काफी लोग हैं जो मीडिया और खासकर समूची  पत्रकारिता की साख को लेकर परेशान हैं। इन दोनों सवालों पर हमें दो अलग-अलग तरीकों से सोचना चाहिए।

एक मसला व्यावसायिक है। दोनों कारोबारी संस्थानों के कुछ पिछले विवाद भी हैं। हमें उसकी पृष्ठभूमि अच्छी तरह पता हो तब तो कुछ कहा भी जाए अन्यथा इसके बारे में जानने की कोशिश करनी चाहिए। फेसबुक में एक पत्रकार ने टिप्पणी की कि यह हिसार-युद्ध है। इसकी अनदेखी नहीं करनी चाहिए। जहाँ तक सीडी की सचाई के परीक्षण की बात है, यह वही संस्था है जहाँ से शांति भूषण के सीडी प्रकरण पर रपट आई थी और वह रपट बाद में गलत साबित हुई। फिर यह सीडी एक समय तक इंतज़ार के बाद सामने लाई गई। हम नहीं कह सकते कि कितना सच सामने आया है। पुलिस की कार्रवाई न्यायपूर्ण है या नहीं, यह भी नहीं कह सकते। बेहतर होगा इसपर अदालत के रुख का इंतज़ार किया जाए।

Monday, November 26, 2012

यथा राजनीति, तथा व्यवस्था


जब हम राजनीति में सक्रिय होते हैं तो जाने-अनजाने सिस्टम से जुड़े संवेदनशील सवालों से भी रूबरू होते हैं। टू-जी घोटाले के कारण पिछले दो साल से भारतीय राजनीति में भूचाल आया है। यह भूचाल केवल राजनीति तक सीमित रहता तब ठीक भी था, पर इसने हमारी सांविधानिक संस्थाओं को प्रभावित करना शुरू कर दिया है। संसद के कई सत्र परोक्ष या अपरोक्ष रूप से पूरी तरह या आंशिक रूप से ठप हो गए। यह व्यवस्था की विसंगति है और राजनीति की भी। सीएजी दफ्तर के पूर्व महानिदेशक आरपी सिंह के बयान के बाद और कुछ हो या न हो, इतना ज़रूर झलक रहा है कि सीएजी की रपटें भी राजनीति के रंग से रंग सकती हैं। टू-जी के स्पेक्ट्रम आबंटन की कीमत किस आधार पर तय होनी चाहिए थी और संभावित नुकसान कितना हुआ, उसे लेकर लोक लेखा समिति के अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी का नाम जुड़ गया है। इससे सीएजी विनोद राय विवादास्पद हो गए हैं। इसके पहले कपिल सिब्बल, दिग्विजय सिंह और मनीष तिवारी इस बात को कह रहे थे, पर अब कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी इस बात को रेखांकित किया है। अनुमान लगाया जा सकता है कि आने वाले समय में यह विवाद किस दिशा में जाएगा। इसके पहले पीएमओ में राज्यमंत्री वी नारायणसामी ने सीएजी की कार्यशैली पर टिप्पणी की थी और कहा था कि सरकार सीएजी को एक के बजाय अनेक सदस्यों का बनाने पर विचार करेगी। इस बयान के फौरन बाद प्रधानमंत्री ने सफाई दी कि ऐसा कोई विचार नहीं है, पर सीएजी को लेकर सरकार के मन में कड़वाहट ज़रूर है।

Sunday, November 25, 2012

कांग्रेस का बढ़ता आत्मविश्वास

हिन्दू में केशव का कार्टून
कांग्रेस पार्टी ने सिर्फ चार महीने में राजनीति बदल कर रख दी है। राष्ट्रपति चुनाव के पहले लगता था कि कांग्रेस पार्टी अपने प्रत्याशी को जिता ही नहीं पाएगी। जिताना तो दूर की बात है अपना प्रत्याशी घोषित ही नहीं कर पाएगी। ऐन मौके पर ममता बनर्जी ने ऐसे हालात पैदा किए कि कांग्रेस ने आनन-फानन प्रणव मुखर्जी का नाम घोषित कर दिया। कांग्रेस के लिए ममता बनर्जी का साथ जितना कष्टकर था उतना ही उसे फिर से जगाने में काम आया। ममता बनर्जी ने पहले तीस्ता पर, फिर एफडीआई, फिर रेलमंत्री, फिर एनसीटीसी और फिर राष्ट्रपति प्रत्याशी पर हठी रुख अख्तियार करके खुद को अलोकप्रिय बनाया। कांग्रेस ने उनकी पार्टी को सही समय पर हैसियत बताकर दो तीर एक साथ चलाए। एक तो ममता को किनारे किया, दूसरे एकताबद्ध होकर भविष्य की रणनीति तैयार की। पार्टी ने अपने आर्थिक सुधार के एजेंडा पर वापस आकर कुछ गलत नहीं किया। यह बात चुनाव के वक्त पता लगेगी।

Saturday, November 24, 2012

किन खबरों का गुड डे?

मीडिया ब्लॉग सैंस सैरिफ ने इनोवेटिव विज्ञापन की विसंगतियों की ओर ध्यान दिलाया है। शुक्रवार के टाइम्स ऑफ इंडिया के पहले सफे पर मास्टहैड के बीच में अंग्रेजी के अक्षर ओ की जगह पीले रंग के गोले में गुडडे लिखा था। नीचे कुछ खबरों के बीच में यही गोला आयलैंड के रूप में था। बेस पर गुडडे बिस्कुट का विज्ञापन था। हर घंटे, एक तोला सोना खांके। आप गुडडे बिस्कुट खरीदें तो रैपर में 12 अंकों का कोड मिलेगा। बिस्कुट कम्पनी हर घंटे 10 ग्राम सोने का सिक्का इनाम में देगी। ग्राहक को दिए गए नम्बरों पर यह नम्बर एसएमएस करना है।

बहरहाल यह कारोबार का मामला है। अखबारों में इनोवेटिव विज्ञापनों के नाम पर अब ऐसे विज्ञापनों की भरमार है। इनमें इनोवेशन भी अब दिखाई नहीं पड़ता। पर एक बात ध्यान खींचती है। जैसा कि बिस्कुट का नाम है, उसे अपने गुड डे के साथ पाठक और समाज का गुड डे देखने की कोशिश भी करनी चाहिए थी। कम से कम ये सोने के बिस्कुट ऐसी खबरों के बीच लगते जो गुड न्यूज़ होतीं।

बहरहाल टाइम्स ऑफ इंडिया के दिल्ली संस्करण में सबसे ऊपर की जिस खबर के बीच से यह बिस्कुट झाँक रहा है वह है पाकिस्तानी तालिबान ने कसाब की मौत का बदला लेने की धमकी दी। मुम्बई में यह बिस्कुट हत्या की खबर के बीच में है और बेंगलुरु में जिस खबर क साथ है वह कहती है कि एमबीए के प्रति छात्रों का आकर्षण खत्म हो रहा है। कोलकाता में एनएसजी कमांडो की, जिसे उसके देय नहीं मिले हैं, खबर के साथ हैं। 
खबरें सभी रोचक हैं, पर गुड न्यूज़ नहीं हैं। सैंस सैरिफ में पढ़ें

Friday, November 23, 2012

टू-जी नीलामी के पेचो-खम

हिन्दू में सुरेन्द्र का कार्टून

“मिस्टर सीएजी कहाँ हैं एक लाख छिहत्तर हजार करोड़ रुपए?” सूचना-प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी के इस सवाल के पीछे सरकार की हताशा छिपी है। सरकार की समझ है कि सीएजी ने ही टू-जी का झमेला खड़ा किया है। यानी टू-जी नीलामी में हुई फ़ज़ीहत के ज़िम्मेदार सीएजी हैं। दूरसंचार मंत्री कपिल सिब्बल को लगता है कि ट्राई ने नीलामी के लिए जो रिज़र्व कीमत रखी, वह बहुत ज़्यादा थी। हम उस पर चलते तो परिणाम और भयावह होते। उनके अनुसार नीतिगत मामलों में सरकार को फैसले करने की आज़ादी होनी चाहिए।

कपिल सिब्बल की बात जायज़ है। पर सीएजी सांविधानिक संस्था है। उसकी आपत्ति केवल राजस्व तक सीमित नहीं थी। अब नीलामी में तकरीबन उतनी ही रकम मिलेगी, जितनी ए राजा ने हासिल की थी। इतने से क्या राजा सही साबित हो जाते हैं? सवाल दूसरे हैं, जिनसे मुँह मोड़ने का मतलब है राष्ट्रीय हितों की अनदेखी करना। सन 2007 या 2008 में नीलामी हुई होती तो क्या उतनी ही कीमत मिलती, जितनी अब मिल रही है? यह भी कि सीएजी 1.76 लाख करोड़ के फैसले पर कैसे और क्यों पहुँचे? यह सवाल भी है कि प्राकृतिक सम्पदा का व्यावसायिक दोहन सरकार और उपभोक्ता के हित में किस तरीके से किया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले भी कहा है कि नीलामी अनिवार्य नहीं है। दूसरे तरीकों का इस्तेमाल भी होना चाहिए।

Thursday, November 22, 2012

सज़ा-ए-मौत


एमनेस्टी इंटरनेशनल के अनुसार इस समय दुनिया का 58 देशों में मृत्युदंड ज़ारी है। इनमें भारत का नाम भी है। सबसे ज्यादा मौत की सजाएं सम्भवतः चीन में दी जाती हैं, जहाँ हर साल हजारों लोग मौत के घाट उतारे जाते हैं। उसके बाद ईरान, सऊदी अरब, इराक और अमेरिका का स्थान है। नीचे एमनेस्टी इंटरनेशनल के कुछ तथ्य हैं। 


ABOLITIONIST AND RETENTIONIST COUNTRIES
More than two-thirds of the countries in the world have now abolished the death penalty in law or practice. The numbers are as follows:

Abolitionist for all crimes: 97
Abolitionist for ordinary crimes only: 8
Abolitionist in practice: 35

Total abolitionist in law or practice: 140
Retentionist: 58

Wednesday, November 21, 2012

अब फाँसी की सजा खत्म होनी चाहिए


अजमल खां कसाब को फाँसी होने के बाद यह बहस फिर शुरू होगी कि फाँसी की सजा खत्म होनी चाहिए या नहीं। दुनिया के 140 देशों ने मृत्यु दंड खत्म कर दिया है। अब केवल 58 देशों में मृत्यु दंड दिया जाता है। पर भारत में भी सुप्रीम कोर्ट की व्यवस्था है कि फाँसी रेयर ऑफ द रेयरेस्ट केस में दी जानी चाहिए। इस वक्त लगभग 300 मृत्युदंड प्राप्त कैदी जेलों में हैं। इनमें राजीव गांधी की हत्या से जुड़े तीन व्यक्ति भी हैं।  कसाब को दी गई फाँसी पिछले पिछले सत्रह साल में दी गई पहली फाँसी है। ऐसा लगता है कि भारतीय व्यवस्था फाँसी को खत्म करने की दिशा में बढ़ रही है। पर कसाब का मामला गले की हड्डी था। यदि उसे फाँसी नहीं दी जाती तो सरकार के लिए राजनीतिक रूप से यह खुद को फाँसी देने की तरह होता। वरिष्ठ वकील राम जेठमलानी  ने शुरू में ही कहा था कि कसाब को फाँसी देने से उसे क्या सजा मिलेगी? उसे जीवित रखने से ही वह अपनी गलती को समझेगा।

हम यह समझते हैं कि फाँसी की सजा डिटरेंट हैं। दूसरे अपराधियों को अपराध करने से रोकती है तो यह भी गलत फहमी है। जिन देशों में फाँसी की सजा नहीं है, वहाँ हमारे देश के मुकाबले कम अपराध होते हैं। हमारे यहाँ भी फाँसी की सजा जिन्हें होती है उनमें से ज्यादातर साधनहीन, गरीब लोग होते हैं, जो न्याय हासिल करने के लिए वकीलों को फीस नहीं दे सकते।

Tuesday, November 20, 2012

सोशल मीडिया और शाहीन की गिरफ्तारी



जस्टिस मार्कंडेय काटजू के फेसबुक वॉल से
Letter to Maharashtra CM on arrest of the young girl for her facebook status.

To,
The Chief Minister
Maharashtra
Dear Chief Minister,
I am forwarding an email I have received stating that a woman in Maharashtra has been arrested for protesting on Facebook against the shut down in Mumbai on the occasion of the death of Mr. Bal Thackeray. It is alleged that she has been arrested for
allegedly hurting religious sentiments.

To my mind it is absurd to say that protesting against a bandh hurts religious sentiments. Under Article 19(1)(a) of our Constitution freedom of speech is a guaranteed fundamental right . We are living in a democracy, not a fascist dictatorship. In fact this arrest itself appears to be a criminal act since under sections 341 and 342 it is a crime to wrongfully arrest or wrongfully confine someone who has committed no crime.

Hence if the facts reported are correct, I request you to immediately order the suspension, arrest, chargesheeting and criminal prosecution of the police personnel (however high they may be) who ordered as well as implemented the arrest of that woman, failing which I will deem it that you as Chief Minister are unable to run the state in a democratic manner as envisaged by the Constitution to which you have taken oath, and then the legal consequences will follow

Regards
Justice Katju
(Chairman, Press Council of India, and former Judge, Supreme Court of India)


Second Letter to Maharashtra CM

Dear Chief Minister,

You have not replied to my email but only forwarded it to someone called Amitabh Rajan, whom I do not know, and who has not had the courtesy to respond to me. Please realize that the matter is much too serious to be taken in this cavalier manner, because the principle of liberty is at stake.The entire nation wants to know what action you ha
ve taken. I would therefore request you to immediately let me know what you are doing in this matter.

Are we living in a democracy or not ? How can a person be arrested for objecting to the shutdown in Mumbai on Thackeray's death ? Article 21 of the Constitution, to uphold which you have taken an oath, states that no one can be deprived of his life or liberty except in accordance with law. Does Article 21 not exist in Maharashtra ? Does freedom of speech guaranteed by Article 19(1)(a) also not exist in your state ?

Please realize that silence is not an option for you in the matter. The entire nation is furious at this apparently illegal arrest. Therefore I once again request you to tell me, and through me the entire nation, why this arrest of a woman was made in Mumbai just for putting up an apparently innocuous material on the Facebook, and what action you have taken against the delinquent policemen and others involved in this high handedness and blatant misuse of state machinery
Regards
Justice Katju


फेसबुक में आलोक दीक्षित की वॉल से 
भारत में अभिव्यक्ति की आजादी कितनी सुरक्षित है इसका एक नमूना देखिये. बाला साहब ठाकरे के निधन पर एक फेसबुक यूजर Shaheen Dhada ने फेसबुक स्टेटस लिखा और उसकी दोस्त Renu Srinivasan ने उसे शेयर कर दिया. शिवसैनिक भड़क उठे और लड़की को जबरन पुलिस स्टेशन ले आए. साथ ही शाहीन के चाचा के अस्पताल पर धावा बोल दिया और हास्पिटल को बुरी तरह से बर्बाद कर दिया. शाहीन और रेनू को सारी रात पुलिस स्टेशन में बैठना पड़ा. 
सुबह कोर्ट में पेशी हुई और दोनो को 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. बाद में दबाव पड़ने पर 15,000 रूपये की जमानत पर दोनों को छो़ड़ दिया गया.

लड़की और उनके घर वाले बुरी तरह से घबराए हुए हैं. शाहीन तो इस कदर डरी हुई है कि उसने कभी किसी सोशल नेटवर्किग प्लेटफार्म पर नहीं जाने की कसम खा ली है. शाहीन के अंकल के हास्पिटल को 10 लाख से भी ज्यादा का नुकसान हुआ है.

अब आप नीचे शाहीन के लिखे स्टेटस को पढ़िये और बताइये कि उसकी गलती क्या है. आखिर हमारी फ्रीडम आफ स्पीच आज कितनी सुरक्षित है?

"With all respect, every day, thousands of people die, but still the world moves on. Just due to one politician died a natural death, everyone just goes bonkers. They should know, we are resilient by force, not by choice. When was the last time, did anyone showed some respect or even a two-minute silence for Shaheed Bhagat Singh, Azad, Sukhdev or any of the people because of whom we are free-living Indians? Respect is earned, given, and definitely not forced. Today, Mumbai shuts down due to fear, not due to respect."


फर्स्ट पोस्ट में रपट का अंश

The most bizarre thing about the arrest of Shaheen Dhada and Renu Srinivasan on Monday over  a Facebook post that questioned the wisdom of a bandh to mark Shiv Sena leader Bal Thackeray‘s death is that no laws were actually violated by the post. In tone and in content, the post is remarkably restrained, particularly when compared to the rather more incendiary messages that  are commonplace on social media platforms. Nor was it even halfways defamatory in the way that many rants on Twitter and Facebook have unfortunately come to be.
पूरी रपट यहाँ

Tweets

Tiny Klout Flag63Malini Parthasarathy ‏@MaliniP
I'm heartened by civil society's vigorous defence of freedom of speech, be it cartoonist Trivedi or girls posting on FB. Way to go, India!


Tiny Klout Flag82barkha dutt ‏@BDUTT
Two young girls in Mumbai arrested for online posts against Thakeray. Will the social media champions of free speech speak up for them?


Tiny Klout Flag73Kiran Bedi ‏@thekiranbedi
How many police old/new personnel being made aware of IT Act+power/variety of social media? Is police in step? Worth a sample check!

Monday, November 19, 2012

दिल्ली धमाका! तैयारी विंटर सेल की!


यह हफ्ता काफी नाज़ुक साबित होने वाला है। कांग्रेस पार्टी ने देर से, लेकिन अपेक्षाकृत व्यवस्थित तरीके से महीने की शुरूआत की है, पर 22 तारीख से शुरू हो रहे संसद के सत्र में साफ हो जाएगा कि अगले लोकसभा चुनाव 2014 में होंगे या 2013 में। मनमोहन सिंह ने डिनर पर मुलायम सिंह से और लंच पर मायावती से मुलाकात कर ली है। किसी को भी समझ में आता है कि बात लोकसभा के फ्लोर मैनेजमेंट को लेकर हुई होगी। मतदान की नौबत आई तो क्या करेंगे? संगठन के स्तर पर भी बात हुई होगी। पर प्रधानमंत्री की मुलाकात का मतलब समझ में आता है। उन्होंने सरकारी नीतियों को स्पष्ट किया होगा या गलतफहमियों को दूर करने की कोशिश की होगी। सपा और बसपा पर दारोमदार है। सहयोगी दलों के अलावा बीजेपी के साथ भी कांग्रेस का बैकरूम संवाद चल रहा है। आर्थिक उदारीकरण के सवाल पर दोनों पार्टियों में वैचारिक सहमति है।

Sunday, November 18, 2012

बाल ठाकरे के बारे में कुछ बातें


नीचे कुछ पैराग्राफ अभय कुमार दुबे की किताब बाल ठाकरे से लिए हैं। यह किताब 1999 में प्रकाशित हुई थी। सात किताबों की सीरीज़ का यह हिस्सा थी। सीरीज़ का नाम था आज के नेता/आलोचनात्मक अध्ययनमाला। यह वह दौर था, जब भारतीय राजनीति में क्षेत्रीय नेताओं का उठान शुरू हुआ था। इसकी प्रस्तावना में कहा गया था, 'ये लोग आज के नेता तो हां लेकिन आज़ादी के आंदोलन से निकले नेताओं की तरह सभी भारतीयों के नेता नहीं हैं। वे कुछ तबकों, जाति समूहों या किसी एक प्रवृत्ति के प्रतिनिधि नज़र आते हैं।...इनमें से अधिकांश नेताओं का आगमन साठ के दशक के आसपास हुआ था और इसी किस्म के जो नेता सत्तर और अस्सी के दशक में उभरे उनके लिए अनुकूल इतिहास बनाने की शुरूआत भी साठ के ज़माने ने ही कर दी थी।...निश्चय ही ये नेता ज़मीन के जिस टुकड़े से जुड़े हुए हैं उसमें उनकी जड़ें बहुत गहरी हैं।...इनका सौन्दर्यबोध, राजनीति से इतर विषयों की जानकारी और दिलचस्पी नेहरू युग के नेताओं के मुकाबले हीन प्रतीत होती है।...यही नेता हमारी राजनीति के वर्तमान हैं और ये भविष्य का ठीक-ठीक प्रतिनिधित्व नहीं करते, तो भी भविष्य इन्हीं के बीच से निकलने वाला है।' इस सीरीज़ में जिन नेताओं को कवर किया गया था वे थे मुलायम सिंह, ज्योति बसु, लालू यादव,  कांसीराम, कल्याण सिंह, बाल ठाकरे और मेधा पाटकर। यह सीरीज़ आगे बढ़ी या नहीं, मेरे लिए कहना मुश्किल है। बहरहाल बाल ठाकरे का संदर्भ शुरू हुआ है, तो उनसे जुड़ी किताब के कुछ अंश पढ़ें--

Saturday, November 17, 2012

मुलायम क्या जल्दी चुनाव चाहते हैं?

उत्तर प्रदेश की 80 में से 55 लोकसभा सीटों के लिए प्रत्याशी घोषित करके क्या मुलायम सिंह ने चुनाव का बिगुल बजा दिया है? हालांकि यह बात उनकी राजनीति से असंगत नहीं है और इस साल विधानसभा चुनाव में विजय पाने के बाद उन्होंने कहा था कि जल्द ही लोकसभा चुनाव के लिए तैयार रहें। ऐसा माना जाता है कि आने वाले लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, अन्ना द्रमुक, अकाली दल जैसे क्षेत्रीय दलों को फायदा मिलेगा। पर जल्द चुनाव के  माने क्या हैं? क्या लोकसभा के इसी सत्र में यह फैसला होगा? या सरकार बजट पेश करने के बाद चुनाव की घोषणा करेगी? करेगी भी तो क्यों करेगी? क्या जल्दी चुनाव कराने से कांग्रेस का कुछ भला होने वाला है?

Friday, November 16, 2012

चीन एक वैकल्पिक मॉडल भी है

चीनी व्यवस्था को लेकर हम कितनी भी आलोचना करें, दो बातों की अनदेखी नहीं कर सकते। एक 1949 से, जब से नव-चीन का उदय हुआ है, उसकी नीतियों में निरंतरता है। यह भी सही है कि लम्बी छलांग और सांस्कृतिक क्रांति के कारण साठ के दशक में चीन ने भयानक संकटों का सामना किया। इस दौरान देश ने कुछ जबर्दस्त दुर्भिक्षों का सामना भी किया। सत्तर के दशक में पार्टी के भीतर वैचारिक मतभेद भी उभरे। देश के वैचारिक दृष्टिकोण में बुनियादी बदलाव आया। माओ के समवर्ती नेताओं में चाऊ एन लाई अपेक्षाकृत व्यावहारिक थे, पर माओ के साथ उनका स्वास्थ्य भी खराब होता गया। माओ के निधन के कुछ महीने पहले उनका निधन भी हो गया। उनके पहले ल्यू शाओ ची ने पार्टी की सैद्धांतिक दिशा में बदलाव का प्रयास किया, पर उन्हें कैपिटलिस्ट रोडर कह कर अलग-थलग कर दिया गया और अंततः उनकी 1969 में संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई। उसके बाद 1971 में लिन बियाओ माओ के खिलाफ बगावत की कोशिश में मारे गए। 1976 में माओ जेदुंग के निधन के बाद आए हुआ ग्वो फंग और देंग श्याओ फंग पर ल्यू शाओ ची की छाप थी। कम से कम देंग देश को उसी रास्ते पर ले गए, जिस पर ल्यू शाओ ची जाना चाहते थे। चीन का यह रास्ता है आधुनिकीकरण और समृद्धि का रास्ता। कुछ लोग मानते हैं कि चीन पूँजीवादी देश हो गया है।  वे पूँजीवाद का मतलब निजी पूँजी, निजी कारखाने और बाजार व्यवस्था को ही मानते हैं। पूँजी सरकारी हो या निजी इससे क्या फर्क पड़ता है? यह बात सोवियत संघ में दिखाई पड़ी जहाँ व्यवस्था का ढक्कन खुलते ही अनेक पूँजीपति घराने सामने आ गए। इनमें से ज्यादातर या तो पुरानी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता हैं या कम्युनिस्ट शासन से अनुग्रहीत लोग। चीनी निरंतरता का दूसरा पहलू यह है कि 1991 में सोवियत संघ के टूटने के बावजूद चीन की शासन-व्यवस्था ने खुद को कम्युनिस्ट कहना बंद नहीं किया। वहाँ का नेतृत्व लगातार शांतिपूर्ण तरीके से बदलता जा रहा है। इसका मतलब यह हुआ कि वहाँ पार्टी का बड़ा तबका प्रभावशाली है, केवल कुछ व्यक्तियों की व्यवस्था नहीं है।

Thursday, November 15, 2012

चीन में नया नेतृत्व

General Secretary of the Central Committee of the Communist Party of China (CPC) Xi Jinping (C) and the other newly-elected members of the Standing Committee of the 18th CPC Central Committee Political Bureau Li Keqiang (3rd R), Zhang Dejiang (3rd L), Yu Zhengsheng (2nd R), Liu Yunshan (2nd L), Wang Qishan (1st R), Zhang Gaoli (1st L) meet with journalists at the Great Hall of the People in Beijing, capital of China, Nov. 15, 2012. Photo: Xinhua 


चीन के पोलित ब्यूरो की स्थायी समिति के सात सदस्यों की घोषणा हो गई है। जैसा अनुमान था इसके सदस्यों की संख्या नौ से घटकर सात हो गई है। ऊपर के चित्र से आपको नेतृत्व के वरिष्ठता क्रम का पता भी लग जाएगा। केन्द्रीय समिति के नेताओं में से तकरीबन आधे सेवा-निवृत्त हो गए  हैं। वर्तमान राष्ट्रपति हू जिंताओ और प्रधानमंत्री वेन जियाओ बाओ के नाम इसमें नहीं हैं। चीनी अखबरा ग्लोबल टाइम्स की खबर के अंश पढ़ें

The Constitution of the Communist Party of China (CPC) has enshrined the "Scientific Outlook on Development," a political guideline that puts people first and calls for balanced and sustainable development, the 18th CPC National Congress announced as the week-long event concluded on Wednesday.

Some 2,270 Party delegates cast votes Wednesday, electing the new CPC Central Committee and the new Central Commission for Discipline Inspection.

Nearly 50 percent of the new Central Committee are newcomers, indicating that the CPC, with 91 years of history and more than 82 million members, has again completed its leadership transition.
Other members of 17th Party leadership, Hu Jintao, Wu Bangguo, Wen Jiabao, Jia Qinglin, Li Changchun, He Guoqiang and Zhou Yongkang, are not in the new Central Committee. 

Wednesday, November 14, 2012

चीन में राजनीतिक बदलाव




चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की एक हफ्ते से चल रही कांग्रेस खत्म हो गई है और नए नेताओं की घोषणा भी हो गई है। इसके निहितार्थ क्या हैं, इसके बारे में अब कुछ समय तक अटकलें लगेंगी। पहला चुनाव पार्टी की नई केंद्रीय समिति का हुआ है, जिसमें में देश की सर्वोच्च नीति निर्धारण संस्था पोलित ब्यूरो और उसकी स्थायी समिति का गठन किया गया है। अगले राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और दूसरे नीति निर्धारकों के नाम भी स्पष्ट हो गए हैं।

चीन में हर दस साल में नेतृत्व परिवर्तन होता है। अठारहवीं कांग्रेस केवल नेतृत्व परिवर्तन के कारण महत्वपूर्ण नहीं है। महत्व है राजनीतिक, आर्थिक और संवैधानिक सुधारों का। पार्टी कांग्रेस के उदघाटन भाषण में राष्ट्रपति हू ने भ्रष्टाचार को बड़ी चुनौती बताया था, जिससे अगर नहीं निपटा गया तो उसके घातक परिणाम हो सकते हैं। कांग्रेस के समापन भाषण में उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने पुराने नेताओं की जगह नए युवा नेताओं को चुन लिया है और ऐतिहासिक महत्व के फैसले किए हैं। अनुमान है कि पार्टी की केन्द्रीय समिति में चीन के सबसे अमीर लियांग वेनजेन इस संस्था में शामिल होने वाले पहले प्राइवेट बिजनेसमैन होंगे।

Monday, November 12, 2012

डूडल फॉर गूगल प्रतियोगिता


चंडीगढ़ के छात्र अरुण कुमार यादव ने इस साल बाल दिवस का Doodle4Google पुरस्कार जीता है। इसके पहले भी मैने डूडल फॉर गूगल के बारे में लिखा है। गूगल ने अपने लोगो के सहारे रचनात्मक आंदोलन खड़ा कर दिया है। एक और गूगल अपने तईं दुनियाभर के देशों में अलग-अलग मौकों पर लोगो ज़ारी करता है। इन लोगो के माध्यम से जीवन के विविध क्षेत्रों की जानकारी हमें मिलती है। साथ ही गूगल को दुनिया भार से जुड़ने का मौका मिलता है। इस साल भारत के गूगल अभियान का विषय था 'विविधता में एकता'। इसके लिए 1000 से ज्यादा स्कूलों से 2,00,000 से ज्यादा प्रविष्टियाँ आईं थीं। प्रतियोगिता के निर्णायकों में अभिनेता बोमन ईरानी और कार्टूनिस्ट अजित नायनन थे। 

National Winner

Arun Kumar Yadav, Kendriya Vidyalaya, Chandigarh
Arun Kumar Yadav

India : A prism of multiplicity
India has diverse cultures, religions, languages, customs and traditions. This diversity can be witnessed in enthusiasm for sports; unique folk culture; extraordinary remarkable handicrafts; wide range of flora and fauna; agricultural practices with worldwide farming output; unparalleled spices and cuisines... Such colossal diversities represent Indias oneness.


Category Winners
Vasudevan DeepakClass 1-3
Vasudevan Deepak, Devgiri CMI Public School, Calicut
The Great Banyan
India is like a large banyan tree that shelters and protects everyone who comes to it. It brings different kinds of living things together under the same roof.



Shravya ManjunathClass 4-7
Shravya Manjunath, Mitra Academy, Bangalore
Unity in dance disperses vibrant colours
The Google Doodle portrayed by me represents the different dance forms of India. Dance, being the common topic in my doodle has many sub-divisions. Hence the different dances performed by Indians come under a united category dance. So my doodle represents the topic, "Unity in Diversity"


Class 8-10
S. Preetham Paul, Sri Prakash Vidyaniketan, T.P.T. Branch, Vishakhapatnam
Striding Forward the Unity
S. Preetham PaulIndia is the home to a wide variety of languages, crops, religions, architectural masonry, music and dance forms, and so on, with blurred boundaries between them. Despite such immense diversity of culture across the country, Indians tend to be together, and take the nation forward, towards progress.

गूगल लोगो पर मेरी पिछली पोस्ट