Showing posts with label वंशवाद. Show all posts
Showing posts with label वंशवाद. Show all posts

Sunday, November 26, 2017

‘परिवार’ कोई जादू की छड़ी नहीं

हाल में मशहूर पहलवान सुशील कुमार तीन साल बाद राष्ट्रीय कुश्ती चैम्पियनशिप में उतरे और गोल्ड मेडल जीत ले गए। उन्हें यह मेडल एक के बाद एक तीन लगातार वॉकओवरों के बाद मिला। शायद उनके वर्ग के पहलवान उनका इतना सम्मान करते हैं कि उनसे लड़ने कोई आया ही नहीं। सुशील कुमार का चैम्पियन बनना मजबूरी थी। वैसे ही राहुल गांधी के पास अब कांग्रेस पार्टी की अध्यक्षता स्वीकार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। पर महत्वपूर्ण अध्यक्ष बनना नहीं, इस पद का निर्वाह है।
लगातार बड़ी विफलताओं के बावजूद राहुल गांधी को अध्यक्ष बनाने का आग्रह कांग्रेस पार्टी के हित में होगा या नहीं, इसे देखना होगा। राहुल गांधी जिस दौर में अध्यक्ष बनने जा रहे हैं, वह कांग्रेस का सबसे खराब दौर है। यदि वे यहाँ से कांग्रेस की स्थिति को बेहतर बनाने में कामयाब नहीं हुए तो यह कदम आत्मघाती भी साबित हो सकता है। दिक्कत यह है कि कांग्रेस केवल परिवार के सहारे राजनीति में बने रहना चाहती है।

Sunday, September 17, 2017

राहुल का पुनरागमन

राहुल गांधी ने अपने पुनरागमन की सूचना अमे‍रिका के बर्कले विश्वविद्यालय से दी है। पुनरागमन इसलिए कि सन 2012 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के वक्त उन्होंने भारतीय राजनीति में पूरी छलांग लगाई थी। पर उस चुनाव में वे विफल रहे। इसके बाद जनवरी 2013 में पार्टी के जयपुर चिंतन शिविर में उन्हें एक तरह से पार्टी की बागडोर पूरी तरह सौंप दी गई, जिसकी पूर्णाहुति 2014 की ऐतिहासिक पराजय में हुई। उसके बाद से उनका मेक-ओवर चल रहा है।

राहुल ने जिस मौके पर पार्टी के नेतृत्व की जिम्मेदारी हाथ में लेने का निश्चय किया है, वह बहुत अच्छा नहीं है। उनकी पहचान चुनाव जिताऊ नेता की नहीं है। हालांकि उन्होंने टेक्स्ट बुक स्टाइल में राजनीति की शुरुआत की थी, पर उनका पहला राउंड पूरी तरह विफल रहा है। अगले दौर में वे किस तरह सामने आएंगे, यह अभी स्पष्ट नहीं है।

कांग्रेसी तुरुप का आखिरी पत्ता

अमेरिका के बर्कले विश्वविद्यालय में राहुल गांधी ने पार्टियों में वंशवाद से जुड़े एक सवाल पर कहा कि पूरा देश ही इस रास्ते पर चलता है। उन्होंने इसके लिए अखिलेश यादव, डीएमके नेता स्टालिन से लेकर अभिनेता अभिषेक बच्चन तक के नाम गिनाए। यानी भारत में ज्यादातर पार्टियाँ वंशवाद पर चलती हैं, इसलिए हमें ही दोष मत दीजिए। अंबानी अपना बिजनेस चला रहे हैं और इन्फोसिस में भी यही चल रहा है।

राहुल गांधी ने तमाम सवालों के जवाब दिए। पर उनका उद्देश्य बीजेपी पर प्रहार करना था। उन्होंने कहा, देश ने बीते 70 साल में जितनी तरक्की हासिल की है, उसे सिर उठा रहे ध्रुवीकरण और नफरत की राजनीति रोकने का काम कर रही है। उदार पत्रकारों की हत्या की जा रही है, दलितों को पीटा जा रहा है, मुसलमानों और अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जा रहा है। अहिंसा का विचार खतरे में है।

उनकी बर्कले वक्तृता उन्हें राजनीतिक मंच पर लाने की अबतक की सबसे बड़ी कोशिश है। शायद वे जल्द ही पार्टी अध्यक्ष पद भी संभालें। सन 2004 में यानी अब से 13 साल पहले जब उन्हें लांच करने का मौका आया था, तब उनकी उम्र 34 साल थी। तब शायद यह लगा होगा कि उनके लिए समय उपयुक्त नहीं है। पर उसके बाद जब भी उन्हें लांच करने का मौका आया, उन्होंने खुद हाथ खींच लिए।

सवाल मेरिट की उपेक्षा का है

भाई-भतीजावाद, दोस्त-यारवाद, वंशवाद, परिवारवाद वगैरह का मतलब होता है मेरिट यानी काबिलीयत की उपेक्षा। यानी जो होना चाहिए, उसका न होना। जीवन में काम बनाने के लिए भी हमें रिश्ते चाहिए। गाड़ी का चालान हो गया, फलां के अंकल दरोगा हैं। जुगाड़ का पूरा तंत्र है, जिसे ‘नेटवर्किंग’ कहते हैं। जब हमारा काम नहीं बनता तब हमें शिकायत होती है कि किसी दूसरे का काम ‘भाई-भतीजावाद’ की वजह से हो गया। तब हमारा मन उदास होता है। काबिलीयत के प्रमाणपत्र लेकर हम घर वापस लौट आते हैं।

यह अंतिम सत्य नहीं है। अंतिम सत्य है काबिलीयत। ज्यादा महत्वपूर्ण वह व्यवस्था है, जो काबिलीयत की कद्र करे। पर दुनिया की अच्छी से अच्छी व्यवस्था में भी खानदान का दबदबा है। ‘पेडिग्री’ सिर्फ पालतू जानवरों की नहीं होती। इन दिनों फिल्म जगत में कँगना रनौत ने इस प्रवृत्ति के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। खानदान के सहारे जो ऊपर पहुँच जाते हैं, वे मानते हैं कि भारत में ऐसा ही चलता है। किसी के पास प्रतिभा हो और सहारा भी मिले तो आगे बढ़ने में देर नहीं लगती। पर खच्चर को अरबी घोड़ा नहीं बनाया जा सकता। यह सामाजिक अन्याय भी है, पर है। यह भी सच है कि प्रतिभा, लगन और धैर्य का कोई विकल्प नहीं है।