ढाका में बीएनपी की रैली
पड़ोसी बांग्लादेश की आंतरिक राजनीति के साथ
भारत और बांग्लादेश के रिश्तों की बुनियाद भी टिकी है। ऐसा माना जाता है कि जब तक
बांग्लादेश में शेख हसीना और अवामी लीग का शासन है, तब तक भारत के साथ रिश्ते
बेहतर बने रहेंगे। अभी तक अवामी लीग का शासन चलता रहा। अब अगले साल वहाँ चुनाव
होंगे, जिसमें बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) उसे चुनौती देने के लिए तैयार
हो रही है। इस सिलसिले में शनिवार 10 दिसंबर को ढाका में रैली करके बीएनपी ने
बिगुल बजा दिया है। रैली की सफलता को लेकर अलग-अलग धारणाएं
हैं, पर इतना स्पष्ट है कि अगले साल होने वाले चुनाव के पहले वहाँ की राजनीति ने
गरमाना शुरू कर दिया है। बीएनपी का दावा है कि सैकड़ों बाधाओं के बावजूद इतनी बड़ी
संख्या में लोगों का जुटना पार्टी के लिए बड़ी उपलब्धि है।
भारत से रिश्ते
बांग्लादेश में अगले साल के अंत में आम चुनाव
हैं और उसके तीन-चार महीने बाद भारत में। दोनों चुनावों को ये रिश्ते भी प्रभावित
करेंगे. दोनों सरकारें अपनी वापसी के लिए एक-दूसरे की सहायता करना चाहेंगी। कुछ महीने
पहले बांग्लादेश के विदेशमंत्री अब्दुल मोमिन ने एक रैली में कहा था कि भारत को
कोशिश करनी चाहिए कि शेख हसीना फिर से जीतकर आएं, ताकि
इस क्षेत्र में स्थिरता कायम रहे. दो राय नहीं कि शेख हसीना के कारण दोनों देशों
के रिश्ते सुधरे हैं और आज दक्षिण एशिया में भारत का सबसे करीबी देश बांग्लादेश है।
पिछले पचास साल से ज्यादा का अनुभव है कि
बांग्लादेश जब उदार होता है, तब भारत के करीब होता है. जब कट्टरपंथी
होता है, तब भारत-विरोधी। पिछले 13 वर्षों में अवामी लीग
की सरकार ने भारत के पूर्वोत्तर में चल रही देश-विरोधी गतिविधियों पर रोक लगाने
में काफी मदद की है। अवामी लीग सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि है आर्थिक-विकास, पर
पिछले कुछ समय से वैश्विक मंदी का प्रभाव बांग्लादेश पर भी पड़ा है। इसका फायदा भी
शेख हसीना-विरोधी उठाना चाहेंगे।
बीएनपी की रैली
बीएनपी ने ढाका की इस रैली से 24 दिसंबर को जन
मार्च का आह्वान किया। विश्लेषकों का कहना है कि बीएनपी ने अपनी पिछली गलतियों से
सीखा है और लगता है कि वह सरकार के डरे बगैर दबाव बनाने में समर्थ है। बीएनपी के
सात सांसदों ने जनसभा में घोषणा की कि वे राष्ट्रीय संसद से इस्तीफे दे रहे हैं। साथ
ही उन्होंने संसद को भंग करने, कार्यवाहक सरकार के तहत चुनाव समेत 10
सूत्रीय मांगें भी उठाईं।
चूंकि रैली ने केवल विरोध और जन मार्च का आह्वान किया है, इसलिए सवाल हैं कि पार्टी उस उम्मीद को कितना पूरा कर सकती है। कुछ पर्यवेक्षक मानते हैं कि बीएनपी शांतिपूर्ण रास्ते पर चल रही है, क्योंकि हड़ताल और हड़ताल जैसे प्रमुख कार्यक्रमों का पहले भी राजनीति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। इसके विपरीत, सरकार जिस तरह से विपक्ष को दबाने की कोशिश कर रही है, उसकी अनदेखी कर इस रैली को कर पाना एक बड़ी उपलब्धि है।