जैसे जैसे-जैसे महामारी का असर कम हो रहा है दुनियाभर की कम्पनियाँ अपने यहाँ की व्यवस्थाओं में बड़े बदलाव कर रही है। ज्यादातर बदलावों के पीछे ‘वर्क फ्रॉम होम’ की अवधारणा है, जिसने केवल कर्मचारियों की सेवा-शर्तों में ही बदलाव नहीं किया है, बल्कि कम्पनियों के दफ्तरों के आकार, फर्नीचर और तकनीक तक को बदल डाला है। एक नया ‘हाइब्रिड मॉडल’ उभर कर सामने आ रहा है। केवल कम्पनियों को ही नहीं, कर्मचारियों को भी ‘घर से काम’ की व्यवस्था पसंद आ रही है। अलबत्ता वे कामकाज के तरीकों में बदलाव भी चाहते हैं।
कंपनियों के दफ्तर ऑफिस
खुलते जा रहे हैं, लेकिन उन्होंने वर्क फ्रॉम होम के विकल्प खुले रखे हैं। इसका मकसद प्रतिभावान
कर्मचारियों को कंपनी में बनाए रखना है। इस समय कर्मचारियों के नौकरी छोड़ने की दर
(एट्रिशन रेट) बहुत ज्यादा है। हाल में रिक्रूटमेंट एंड स्टाफिंग सर्विसेज फर्म
सीआईईएल एचआर सर्विसेज ने एक सर्वे प्रकाशित किया है, जिसके अनुसार बड़ी संख्या
में कर्मचारी घर से काम करना चाहते हैं। यह सर्वे 620 कंपनियों के करीब 2,000 कर्मचारियों के बीच कराया गया। वे ऑफिस जाकर
काम करने के बजाय वेतन-वृद्धि और नौकरी तक छोड़ने को तैयार हैं।
घर बैठेंगे
सर्वे में शामिल 10 में से छह कर्मचारियों ने कहा कि ऑफिस जाने के बजाय
नौकरी छोड़ना पसंद करेंगे। आईटी, आउटसोर्सिंग, टेक्नोलॉजी स्टार्टअप्स, कंसल्टिंग, बीएफएसआई (बैंकिंग, फाइनेंशियल सर्विसेज और इंश्योरेंस सेक्टर)
और दूसरे कई सेक्टरों
में यह धारणा है। काफी कर्मचारियों को लगता है कि घर या रिमोट वर्किंग से उन्हें
निजी जिंदगी और नौकरी के बीच बेहतर संतुलन बनाने का मौका मिला है। सर्वे में शामिल
620 में से 40 फीसदी कम्पनियाँ
पूरी तरह घर से काम कर रही हैं जबकि 26 फीसदी हाइब्रिड मोड
में काम कर रही हैं।
ऐसे सर्वे दुनियाभर में हो रहे हैं। वर्क फ्रॉम
होम की अवधारणा नई नहीं है। महामारी के दौर में बड़े स्तर पर इसे जबरन लागू करना
पड़ा। पर उसके पहले अमेरिका के स्टैनफर्ड विवि ने 2015 में एक चीनी कम्पनी में दो
साल तक इस विषय पर अध्ययन किया और पाया था कि इससे उत्पादकता बढ़ती है। हाल में स्टैनफर्ड में आउल लैब्स ने करीब 16 हजार कर्मचारियों पर एक अध्ययन किया और पाया कि घर से
काम करने पर कर्मचारियों की दक्षता में 13 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। शिकागो विवि के
बेकर फ्रीडमैन इंस्टीट्यूट फॉर द इकोनॉमिक्स ने करीब 10,000 कर्मचारियों के सर्वे
से इसी आशय के निष्कर्ष निकाले।
बड़े दफ्तरों
से छुटकारा
इससे एक और सकारात्मक सम्भावना ने जन्म लिया है। कम्पनियाँ कुछ खास कार्यों को एक खास समयावधि में पूरा करने की जिम्मेदारी देकर बहुत से सुपरवाइजरी पदों पर नियुक्तियाँ करने से बच सकती हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि ऑफिस के लिए बड़ी इमारतों को खरीदने या किराए पर लेने की जरूरत कम हो रही है। इसका साथ बिजली का खर्च और टेक्नोलॉजी पर बड़े निवेश से बचने की सम्भावनाएं भी बन रही हैं। बहरहाल इस पद्धति के नफे-नुकसान का अध्ययन हारवर्ड से लेकर मैकेंजी तक कर रहे हैं।