Showing posts with label सुभाष बोस. Show all posts
Showing posts with label सुभाष बोस. Show all posts

Monday, January 23, 2023

नेताजी के रहस्य पर से परदा क्यों नहीं उठता?

भारत सरकार ने पिछले साल फैसला किया था कि अब से हर साल नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती के साथ गणतंत्र दिवस समारोहों का सिलसिला शुरू होगा। आज उनकी 126 वीं जयंती है। हम उनकी जयंती मनाते हैं, पर इस बात को निश्चित रूप से नहीं जानते कि 18 अगस्त, 1945 के बाद उनका क्या हुआ। उनके जीवन का अंतिम-अध्याय आधुनिक भारत के सबसे अनसुलझे रहस्यों में एक है। इस सिलसिले में भारत सरकार के तीन जाँच आयोगों की पड़ताल के बाद भी रहस्य बना हुआ है। देश-विदेश की दस से ज्यादा जाँचों और पत्रकारों-लेखकों के सैकड़ों विवरणों के बाद भी रहस्य पर पड़ा परदा उठ नहीं पाया है।

रहस्य बना रहना शायद व्यवस्था और राजनीति के अनुकूल बैठता है। ज्यादातर जाँचों का निष्कर्ष है कि नेताजी का निधन विमान-दुर्घटना के बाद 18 अगस्त, 1945 को हो गया, पर किसी भी सरकार ने पूरे विश्वास के साथ घोषित नहीं किया कि ऐसा ही हुआ था। सरकारी गोपनीय-फाइलों में दर्ज विवरणों को शोधकर्ताओं ने छान मारा। अब एक महत्वपूर्ण साक्ष्य शेष रह गया है। वह है तोक्यो के रेंकोजी मंदिर में रखी नेताजी की अस्थियाँ। इन अस्थियों के डीएनए परीक्षण से पहचान हो सकती है। सवाल है कि क्या ऐसा होगा? इसमे दिक्कत क्या है?

माना जाता है कि इस सिलसिले में सभी गोपनीय फाइलें खोली जा चुकी हैं, पर जिन्हें संदेह है, वे मानते हैं कि आज भी कहीं कुछ छिपा है। 1997 में ब्रिटिश सरकार ने भारत की पोलिटिकल इंटेलिजेंस से जुड़ी सभी फाइलें सार्वजनिक अध्ययन के लिए ब्रिटिश लाइब्रेरी में रखवा दीं। उसमें फिग्स रिपोर्ट नहीं थी, जो ब्रिटिश सरकार की पहली पड़ताल थी। अलबत्ता उस रिपोर्ट का पूरा विवरण अस्सी के दशक से आम जानकारी में है।

Tuesday, September 22, 2015

नेताजी को लेकर इतनी ‘गोपनीयता’ ठीक नहीं


हो सकता है कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस को लेकर जो संदेह व्यक्त किए जा रहे हैं वे निर्मूल साबित हों, पर यह बात समझ में नहीं आती कि सत्तर साल बाद अब वे कौन से रहस्य हैं जिनके सामने आने से हमारे रिश्ते दूसरे देशों से बिगड़ जाएंगे। पारदर्शिता का तकाजा है कि गोपनीयता के वर्ष तय होने चाहिए। तीस-चालीस या पचास साल क्या इतिहास पर पर्दा डालने के लिए काफी नहीं होते? यदि ऐसा रहा तो दुनिया का इतिहास लिखना मुश्किल हो जाएगा। दूसरी ओर अतिशय गोपनीयता कई तरह की अफवाहों को जन्म देती है, जो हमारे हित में नहीं है।

अब जब पश्चिम बंगाल सरकार ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जीवन से जुड़ी फाइलों को सार्वजनिक रूप से प्रस्तुत कर दिया है, भारत सरकार पर इस बात का दबाव बढ़ेगा कि वह अपनी फाइलों को भी गोपनीयता के दायरे से बाहर लाए। यह बात इसलिए जरूरी लगती है क्योंकि बंगाल की फाइलों की शुरुआती पड़ताल से यह संदेह पुख्ता हो रहा है कि नेताजी का निधन 18 अगस्त 1945 को हुआ भी था या नहीं। फाइलों के 12,744 पृष्ठ पढ़ने और उनका निहितार्थ समझने में समय लगेगा, पर राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा है कि मैंने उसमें से कुछ फाइलें पढ़ीं। उन फाइलों के अनुसार 1945 के बाद नेताजी के जिंदा होने की बात सामने आई है।