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Sunday, December 31, 2023

विधानसभा चुनाव और 2024 के संकेत

तीन हिंदी भाषी राज्यों में जीत के बाद बीजेपी ने बड़ी तेजी से लोकसभा चुनाव की रणनीतियों पर काम शुरू कर दिया है। तीन राज्यों के नए मुख्यमंत्रियों के चयन से यह बात साफ हो गई है कि पार्टी ने लोकसभा चुनाव ही नहीं, उसके बाद की राजनीति पर भी विचार शुरू कर दिया है। विशेषज्ञों के कयासों को ग़लत साबित करते हुए बीजेपी ने राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में न सिर्फ जीत हासिल की, बल्कि नए मुख्यमंत्रियों के रूप में तीन नए चेहरों को आगे बढ़ाकर चौंकाया है। संभवतः पार्टी का आशय है कि हमारे यहाँ व्यक्ति से ज्यादा संगठन का महत्व है। हम नेता बना सकते हैं।

तीनों राज्यों में बीजेपी की सफलता के पीछे अनेक कारण हैं। मजबूत नेतृत्व, संगठन-क्षमता, संसाधन, सांस्कृतिक-आधार और कल्याणकारी योजनाएं वगैरह-वगैरह। इनमें शुक्रिया मोदीजी को भी जोड़ लीजिए। यानी मुसलमान वोटरों को खींचने के प्रयासों में भी उसे आंशिक सफलता मिलती नज़र आ रही है।  

राजस्थान में पहली बार विधायक बने भजनलाल शर्मा, मध्य प्रदेश में मोहन यादव और छत्तीसगढ़ में विष्णुदेव साय के नामों की दूर तक चर्चा नहीं थी। इनका नाम नहीं था, पर पार्टी अब इनके सहारे नएपन का आभास देगी। उसे कितनी सफलता मिलेगी, यह तो मई 2024 में ही पता लगेगा, पर इतना साफ है कि पार्टी पुरानेपन को भुलाना और नएपन को अपनाना चाहती है। पुराने नेताओं का कोई हैंगओवर अब नहीं है। दूसरी तरफ पार्टी को इस बात का भरोसा भी है कि वह लोकसभा चुनाव आसानी से जीत जाएगी। उसने इंड गठबंधन या इंडिया को चुनौती के रूप में लिया ही नहीं।

Sunday, December 10, 2023

सेमीफाइनल बीजेपी के नाम


बीजेपी की जीत के बाद दिल्ली स्थित बीजेपी मुख्यालय में पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने कहा, मैं लगातार कहता रहा हूं कि मेरे लिए देश में चार जातियां ही सबसे बड़ी जातियां हैं। मैं जब इन जातियों की बात करता हूं, तो इसमें स्त्रियाँ, युवा, किसान और गरीब परिवार हैं। इन चार जातियों को सशक्त करने से ही देश सशक्त होने वाला है। उन्होंने यह भी कहा कि कई लोग कह रहे हैं कि इस हैट्रिक ने लोकसभा चुनाव की हैट्रिक की गारंटी दे दी है।

तीन हिंदी भाषी राज्यों में जीत के बाद लगता है कि बीजेपी अब लोकसभा चुनाव की रणनीतियों पर काम करेगी। 2018 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी इन तीनों हिंदी भाषी राज्यों में हार गई थी, पर 2019 के लोकसभा चुनावों में इन्हीं राज्यों से पार्टी को जबर्दस्त सफलता मिली। इस लिहाज से वह पहले की तुलना में बेहतर स्थिति में है, पर उसके सामने इसबार इंडी या इंडिया गठबंधन होगा। सच यह भी है कि इंड गठबंधन खुद अंतर्विरोधों का शिकार है। बीजेपी की सफलता के पीछे अनेक कारण हैं। मजबूत नेतृत्व, संगठन-क्षमता, संसाधन, सांस्कृतिक-आधार और कल्याणकारी योजनाएं वगैरह-वगैरह। इनमें शुक्रिया मोदीजी को भी जोड़ लीजिए।

माना जाता है कि राज्यों के चुनावों में स्थानीय नेतृत्व की प्रतिष्ठा और राज्य से जुड़े दूसरे मसले भी होते हैं, पर लोकसभा चुनाव में मोदी का जादू काम करता है। बहरहाल इसबार के विधानसभा चुनावों में भी मोदी की गारंटी ने काम किया है। मध्य प्रदेश में लोकसभा की 29, राजस्थान में 25, छत्तीसगढ़ में 11, तेलंगाना में 17 और मिज़ोरम में एक सीट है। इन सीटों को जोड़ दिया जाए तो इनका योग 83 हो जाता है। इन परिणामों के निहितार्थ और 2024 के चुनावों पर पड़ने वाले असर के लिहाज से देखने के लिए यह समझना जरूरी है कि बीजेपी की इस असाधारण सफलता के पीछे के कारण क्या हैं।

बीजेपी की जीत में ‘शुक्रिया मोदीजी’ की भूमिका


बीजेपी की जीत के बाद दिल्ली स्थित बीजेपी मुख्यालय में पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने कहा, मैं लगातार कहता रहा हूं कि मेरे लिए देश में चार जातियां ही सबसे बड़ी जातियां हैं. मैं जब इन जातियों की बात करता हूं, तो इसमें स्त्रियाँ, युवा, किसान और गरीब परिवार हैं. इन चार जातियों को सशक्त करने से ही देश सशक्त होने वाला है. उन्होंने यह भी कहा कि कई लोग कह रहे हैं कि इस हैट्रिक ने लोकसभा चुनाव की हैट्रिक की गारंटी दे दी है.

तीन हिंदी भाषी राज्यों में जीत के बाद लगता है कि बीजेपी अब लोकसभा चुनाव की रणनीतियों पर काम करेगी. उसे बेशक सफलता मिल गई, पर नहीं मिलती तब भी वह निराश नहीं होती. 2018 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी इन तीनों हिंदी भाषी राज्यों में हार गई थी, पर 2019 के लोकसभा चुनावों में इन्हीं राज्यों से पार्टी को जबर्दस्त सफलता मिली. बीजेपी की सफलता के पीछे अनेक कारण हैं. मजबूत नेतृत्व, संगठन-क्षमता, संसाधन, सांस्कृतिक-आधार और कल्याणकारी योजनाएं वगैरह-वगैरह. इनमें शुक्रिया मोदीजी को भी जोड़ लीजिए.

माना जाता है कि राज्यों के चुनावों में स्थानीय नेतृत्व की प्रतिष्ठा और राज्य से जुड़े दूसरे मसले भी होते हैं, पर लोकसभा चुनाव में मोदी का जादू काम करता है. बहरहाल इसबार के विधानसभा चुनावों में भी मोदी की गारंटी ने काम किया है. चुनाव-परिणामों के निहितार्थ और 2024 के चुनावों पर पड़ने वाले असर के लिहाज से देखने के लिए यह समझना जरूरी है कि बीजेपी की इस असाधारण सफलता के पीछे के कारण क्या हैं.

Wednesday, December 6, 2023

इंडिया गठबंधन की उलझनें बढ़ीं


पाँच राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव परिणाम आने के बाद कांग्रेस पार्टी की परेशानियाँ बढ़ गई हैं। 2018 में जिन तीन हिंदीभाषी राज्यों में उसे जीत मिली थी, उनमें हार से उसके 2024 का गणित उलझ गया है। कम से कम एक राज्य में भी उसे जीत मिलती, तो उसके पास कहने को कुछ था, पर मामूली नहीं मिली, अच्छी-खासी हार मिली है। कांग्रेस इससे बेहतर परिणाम की उम्मीद कर रही थी।

विपक्ष का ‘इंडिया’ गठबंधन बनने के बाद यह बड़ा चुनाव था, जिसमें एक साथ पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे थे। इसका असर इंडी या इंडिया गठबंधन पर पड़ेगा, जिसके केंद्र में हिंदीभाषी राज्य ही हैं। बहरहाल अब गठबंधन की अगली बैठक का इंतज़ार है, जिसमें सीटों के बँटवारे पर बात होगी। सपा ने फैसला किया है कि घटक दलों के पास मजबूत प्रत्याशी होने पर ही वह कोई भी सीट छोड़ेगी।

सीटों के बंटवारे के लिए तृणमूल, सपा और डीएमके जैसी क्षेत्रीय पार्टियां समान फॉर्मूला अपनाने पर सहमत हैं। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने 6 दिसंबर को घटक दलों के नेताओं की बैठक बुलाई थी, जिसे स्थगित कर दिया गया, पर संसद में विपक्ष के नेता दिल्ली में खरगे के आवास पर डिनर में शामिल हो रहे हैं। डिनर के माध्यम से खटास दूर करने की कोशिश होंगी और अगली बैठक के लिए संभावित तारीखों पर विचार भी किया जाएगा।

पांच राज्यों के चुनाव के दौरान ही राजद और जदयू समेत इंडिया के कई घटक दल न सिर्फ एक बड़ी रैली का आयोजन करना चाहते थे, बल्कि सीटों के बंटवारे के फॉर्मूले पर वार्ता करने की भी उनकी योजना थी। लेकिन कांग्रेस ने पांच राज्यों के चुनाव के नतीजों के बाद इस पर विचार करने की बात कहते हुए मामले को टाल दिया था। अब क्षेत्रीय पार्टियों का कांग्रेस पर दबाव बढ़ जाएगा।

Wednesday, July 26, 2023

आम चुनाव की तरफ कदम बढ़ाता पाकिस्तान


पाकिस्तान, बांग्लादेश और भारत तीनों देश, अब आम-चुनावों की ओर बढ़ रहे हैं. इनमें सबसे पहले होगा पाकिस्तान, जो करीब पंद्रह महीने की राजनीतिक गहमा-गहमी के बाद चुनावी रंग में रंगने वाला है. शहबाज़ शरीफ के नेतृत्व में काम कर रही वर्तमान सरकार अब किसी भी वक्त  नेशनल असेंबली को भंग करने की घोषणा करने वाली है. वे कह चुके हैं कि सरकार नेशनल असेंबली का कार्यकाल 12 अगस्त को खत्म होने के पहले हट जाएगी.

इस घोषणा के बावजूद चुनाव के समय को लेकर असमंजस हैं. एक और बड़ा असमंजस इमरान खान और उनकी पार्टी तहरीके इंसाफ को लेकर है. उसे चुनाव चिह्न का इस्तेमाल करने दिया जाएगा या नहीं. चुनाव आयोग का कहना है कि मामला अदालत में है और वहीं से निर्देश आएगा.

इमरान खान के संवाददाता सम्मेलन की खबरों के प्रकाशन पर रोक लगा दी गई है. इमरान खान पर इतने केस चला दिए गए हैं कि वे उनमें उलझ गए हैं, फिर भी उनकी राजनीतिक शक्ति बनी हुई है. उनकी पार्टी के दर्जनों नेता उन्हें छोड़कर चले गए हैं. इसके पीछे सेना का दबाव बताया जाता है.

हालांकि उनकी पार्टी तकरीबन तोड़ दी गई है, फिर भी यह साफ है कि अवाम के बीच वे लोकप्रिय हैं. अपनी बदहाली के लिए इमरान खान खुद भी जिम्मेदार हैं, क्योंकि उन्होंने अपने आप को खुद-मुख्तार मान लिया था, जबकि वे सेना की कठपुतली मात्र थे.   

Wednesday, May 31, 2023

‘राष्ट्रीय-अस्मिता’ ने एर्दोगान को फिर से राष्ट्रपति बनाया

तुर्की की सुप्रीम इलेक्शन कौंसिल ने इस बात की पुष्टि की है कि रजब तैयब एर्दोगान ने राष्ट्रपति पद के चुनाव में कामयाबी हासिल कर ली है. वे एकबार फिर से तुर्की के सदर मुंतख़ब हो गए हैं. इस साल तुर्की अपने लोकतांत्रिक इतिहास की 100वीं वर्षगाँठ मना रहा है. इनमें एर्दोगान के नेतृत्व के 21 साल शामिल हैं.

हालांकि इन पंक्तियों के लिखे जाने तक परिणाम पूरी तरह आए नहीं हैं, पर उन्हें 52 फीसदी से ज्यादा वोट मिल चुके हैं और उनके प्रतिस्पर्धी कमाल किलिचदारोलू को 47 फ़ीसदी से कुछ ज्यादा वोट मिले हैं.

करीब-करीब सभी बैलट बॉक्स खुल चुके हैं और अब परिणाम में बदलाव की कोई गुंजाइश नहीं बची है. बाकी सभी वोट भी यदि किलिचदारोलू के खाते में चले जाएं, तब भी परिणाम पर फर्क नहीं पड़ेगा.

चुनाव-परिणाम आने के बाद एर्दोगान ने कहा कि यह तुर्की की जीत है. वे अभी चुनाव की मुद्रा में ही हैं, क्योंकि अब वे आगामी मार्च में होने वाले स्थानीय निकाय चुनावों की तैयारी में जुट जाएंगे.

विरोधी परास्त

एर्दोगान की विजय के साथ पश्चिमी देशों में लगाई जा रही अटकलें ध्वस्त हो गई हैं कि तुर्की की व्यवस्था में बदलाव होगा, बल्कि एर्दोगान अब ज्यादा ताकत के साथ अगले पाँच या उससे भी ज्यादा वर्षों तक अपने एजेंडा को पूरा करने की स्थिति में होंगे.

एर्दोगान की पार्टी का नाम एकेपी (जस्टिस एंड डेवलपमेंट पार्टी) है. उनके मुकाबले छह विरोधी दलों ने संयुक्त रूप से चुनाव लड़ने का फैसला किया था और पीपुल्स रिपब्लिकन पार्टी (सीएचपी) के कमाल किलिचदारोलू को अपना प्रत्याशी बनाया था, जिन्हें कुर्द-पार्टी एचडीपी का भी समर्थन हासिल था.

Sunday, May 14, 2023

कांग्रेस की जीत और भविष्य के संकेत


कर्नाटक में संशयों से घिरी भारतीय जनता पार्टी को दक्षिण भारत में अपने एकमात्र दुर्ग में पराजय का सामना करना पड़ा है। यह आलेख लिखे जाने तक पूरे परिणाम आए नहीं थे, पर यह लगभग साफ है कि कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत मिलेगा। गौर से देखें, तो पाएंगे कि कांग्रेस का वोट करीब 5 प्रतिशत बढ़ा है। 2018 में वह 38 प्रश था, जो अब 43 प्रश हो गया है। बीजेपी का मत कमोबेश वही 36 प्रश है, जितना 2018 में था। जेडीएस का मत 18.4 से घटकर 13.3 प्रतिशत हो गया है। उसमें करीब पाँच फीसदी की गिरावट है। जेडीएस का घटा वोट कांग्रेस को मिला और परिणामों में इतना अंतर आ गया। इन परिणामों में कांग्रेस और बीजेपी दोनों के लिए महत्वपूर्ण संदेश छिपे हैं। बीजेपी के लिए इस हार से उबरना मुश्किल नहीं है, पर कांग्रेस हारती, तो उसका उबरना मुश्किल था। उसने स्पष्ट बहुमत हासिल करके मुकाबले को ही नहीं जीता, यह जीत उसके लिए निर्णायक मोड़ साबित होगी। ऐसा भी कहा जा रहा है कि कांग्रेस ने चुनाव में सफलता का टेंपलेट हासिल कर लिया है, जिसे वह अब दूसरे राज्यों में दोहरा सकती है। पर यह नहीं मान लेना चाहिए कि 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी के प्रति जनता के बदले हुए मूड का यह संकेत है। लोकसभा चुनाव के मुद्दे अलग होते हैं। साल के अंत में तेलंगाना, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और मिजोरम विधानसभाओं के चुनाव भी होंगे। मिजोरम को छोड़ दें, तो शेष सभी राज्य महत्वपूर्ण हैं। रणनीति में धार देने के कई मौके बीजेपी को मिलेंगे।   

स्थानीय नेतृत्व

इस जीत के बाद कांग्रेस का जैकारा सुनाई पड़ा है कि यह राहुल गांधी की जीत है। उनकी भारत-जोड़ो यात्रा की विजय है। यह बात मल्लिकार्जुन खड़गे से लेकर सिद्धरमैया तक ने कही है। ध्यान से देखें, यह स्थानीय नेतृत्व की विजय है। राज्य के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे का पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर होना महत्वपूर्ण साबित हुआ, पर कांग्रेस की जीत के पीछे राष्ट्रीय नेतृत्व की भूमिका सीमित है। खड़गे को भी कन्नाडिगा के रूप में देखा गया। वे राज्य के वोटरों से कन्नड़ भाषा में संवाद करते हैं। कांग्रेस ने कन्नड़-गौरव, हिंदी-विरोध नंदिनी-अमूल और उत्तर-दक्षिण भावनाओं को बढ़ाने का काम भी किया। इन बातों का असर आप देख सकते हैं। दूसरी तरफ बीजेपी के नेतृत्व की भूमिका देखें। 2021 में येदियुरप्पा को जिस तरह हटाया गया, वह क्या बताता है?

कांग्रेस की उपलब्धि

हिमाचल जीतने के बाद कर्नाटक में भी विजय हासिल करना कांग्रेस की उपलब्धि है। अब वह राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के चुनावों में ज्यादा उत्साह के साथ उतरेगी। मल्लिकार्जुन खड़गे को इस बात का श्रेय मिलेगा कि उन्होंने अपने गृहराज्य में पार्टी को जीत दिलाई। कांग्रेस के पास यह आखिरी मौका था। कर्नाटक जाता, तो बहुत कुछ चला जाता। राहुल और खड़गे के अलावा कर्नाटक में कांग्रेस के सामाजिक-फॉर्मूले की परीक्षा भी थी। यह फॉर्मूला है अल्पसंख्यक, दलित और पिछड़ी जातियाँ। इसकी तैयारी सिद्धरमैया ने सन 2015 से शुरू कर दी थी, जब उन्होंने राज्य की जातीय जनगणना कराई। उसके परिणाम घोषित नहीं हुए, पर सिद्धरमैया ने पिछड़ों और दलितों को 70 फीसदी आरक्षण देने का वादा जरूर किया। आरक्षण 50 फीसदी से ज्यादा नहीं किया जा सकता था, पर उन्होंने कहा कि हम इसे 70 फीसदी करेंगे। ऐसा तमिलनाडु में हुआ है, पर इसके लिए संविधान के 76 वां संशोधन करके उसे नवीं अनुसूची में रखा गया, ताकि अदालत में चुनौती नहीं दी जा सके। कर्नाटक में यह तबतक संभव नहीं, जबतक केंद्र की स्वीकृति नहीं मिले।

कांग्रेसी महत्वाकांक्षा

लोकसभा चुनाव के पहले कांग्रेस मज़बूत पार्टी के रूप में उभरना चाहती है। इसी आधार पर वह विरोधी गठबंधन का राष्ट्रीय स्तर पर नेतृत्व करना चाहती है। साथ ही वह इसे बीजेपी के पराभव की शुरूआत के रूप में भी देख रही है। इस विजय से उसके कार्यकर्ताओं का उत्साहवर्धन हुआ है। राज्य में पार्टी सिद्धरमैया और डीके शिवकुमार दोनों शीर्ष नेता अपने चुनाव जीत गए हैं, जबकि भारतीय जनता पार्टी के कई मंत्री परास्त हुए हैं। निवृत्तमान मुख्यमंत्री बासवराज बोम्मई जरूर जीत गए हैं। अंतिम समय में बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में गए जगदीश शेट्टार हार गए हैं, जबकि लक्ष्मण सावडी को जीत मिली है। देखना यह भी होगा कि इस विजय से क्या बीजेपी-विरोधी राष्ट्रीय गठबंधन की संभावनाएं बेहतर होंगी? क्या शेष विरोधी दल कांग्रेस का नेतृत्व स्वीकार करेंगे? इस प्रश्न का उत्तर लोकसभा चुनाव के ठीक पहले ही मिलेगा। अभी चार राज्यों के चुनाव परिणामों का इंतजार और करें।  

Saturday, December 31, 2022

2023 में होने वाले चुनाव


भारत के विभिन्न राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव

·      फरवरी-त्रिपुरा जहाँ इस समय भारतीय जनता पार्टी की सरकार है
·      फरवरी-मेघालय जहाँ इस समय नेशनल पीपुल्स पार्टी की सरकार है
·      फरवरी-नगालैंड जहाँ नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक पार्टी और बीजेपी के गठबंधन की सरकार है
·      मई-कर्नाटक जहाँ भारतीय जनता पार्टी की सरकार है
·      नवंबर-छत्तीसगढ़ जहाँ कांग्रेस की सरकार है
·      नवंबर-मध्य प्रदेश जहाँ भारतीय जनता पार्टी की सरकार है
·      नवंबर-मिज़ोरम जहाँ मिज़ो नेशनल फ्रंट की सरकार है
·      दिसंबर-राजस्थान जहाँ कांग्रेस की सरकार है
·      दिसंबर-तेलंगाना जहाँ तेलंगाना राष्ट्र समिति की सरकार है

संभव है कि इस साल जम्मू-कश्मीर विधानसभा के चुनाव भी किसी समय हो जाएं

विदेशी चुनाव: कुछ ऐसे देश जहाँ के चुनावों पर नजर रखनी चाहिए

·      25 फरवरी-नाइजीरिया
·      18 जून-तुर्की, जिसका नाम अब तुर्किये हो गया है
·      अगस्त से अक्तूबर-पाकिस्तान
·      29 अक्तूबर-अर्जेंटीना
·      दिसंबर-बांग्लादेश