घरों की सफाई में काम आने वाली ‘फूल-झाड़ू’ राजनीतिक रूपक बनकर उभरी है। पाँच राज्यों के चुनाव परिणामों से तीन बातें दिखाई पड़ रही हैं। भारतीय जनता पार्टी के लिए यह असाधारण विजय है, जिसकी उम्मीद उसके बहुत से समर्थकों को नहीं थी। वहीं, कांग्रेस की यह असाधारण पराजय है, जिसकी उम्मीद उसके नेतृत्व ने नहीं की होगी। तीसरे, पंजाब में आम आदमी पार्टी की असाधारण सफलता ने ध्यान खींचा है। चार राज्यों में भाजपा की असाधारण सफलता साल के अंत में होने वाले गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनावों को भी प्रभावित और अंततः 2024 के लोकसभा चुनाव को भी। इस परिणाम को मध्यावधि राष्ट्रीय जनादेश माना जा सकता है, खासतौर से उत्तर प्रदेश में। पंजाब में आम आदमी पार्टी के पक्ष में आए इतने बड़े जनादेश के कारण राष्ट्रीय राजनीति में उसकी भूमिका बढ़ेगी। वहीं पुराने राजनीतिक दलों से निराश जनता के सामने उपलब्ध विकल्पों का सवाल खड़ा हुआ है। पंजाब में तमाम दिग्गजों की हार की अनदेखी नहीं की जा सकती। पर आम आदमी पार्टी अपेक्षाकृत नई पार्टी है। क्या वह पंजाब के जटिल प्रश्नों का जवाब दे पाएगी?
उत्तर प्रदेश का ध्रुवीकरण
हालांकि पार्टी को चार राज्यों में सफलता मिली
है, पर उत्तर प्रदेश की सफलता इन सब पर भारी है।
उत्तर प्रदेश से लोकसभा की कुल 80 सीटें हैं, जो
कई राज्यों की कुल सीटों से भी ज्यादा बैठती हैं। उसे यह जीत तब मिली है, जब भाजपा-विरोधी राजनीति ने पूरी तरह कमर कस रखी थी। उसकी विफलता,
बीजेपी की सफलता है। महामारी की तीन लहरों, शाहीनबाग
की तर्ज पर उत्तर प्रदेश के शहरों में चले नागरिकता-कानून विरोधी आंदोलन, किसान आंदोलन, लखीमपुर-हिंसा और आर्थिक-कठिनाइयों से
जुड़ी नकारात्मकता के बावजूद योगी आदित्यनाथ सरकार को लगातार दूसरी बार फिर से
गद्दी पर बैठाने का फैसला वोटर ने किया है। पिछले तीन-चार दशक में ऐसा पहली बार
हुआ है। बीजेपी को मिली सीटों की संख्या में पिछली बार की तुलना में करीब 50 की
कमी आई है। बावजूद इसके कि वोट प्रतिशत बढ़ा है। 2017 में भाजपा को जो वोट प्रतिशत
39.67 था, वह इसबार 41.3 है। समाजवादी पार्टी का वोट
प्रतिशत भी बढ़ा है। उसे 32.1 प्रतिशत वोट मिले हैं, जो
2017 में 21.82 प्रतिशत थे। यह उसके राजनीतिक जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है। इसकी
कीमत बीएसपी और कांग्रेस ने दी है। कांग्रेस का वोट प्रतिशत इस चुनाव में 2.33
प्रतिशत है, जो 2017 में 6.25 प्रतिशत था। बसपा का वोट
प्रतिशत इस चुनाव में 12.8 है, जो 2017 में 22 से ज्यादा था।
राष्ट्रीय लोकदल का प्रतिशत 3.36 प्रतिशत है, जो
2017 में 1.78 प्रतिशत था। ध्रुवीकरण का लाभ सपा+ को मिला जरूर, पर वह इतना नहीं है कि उसे बहुमत दिला सके।
पंजाब का गुस्सा
उत्तर प्रदेश के अलावा उत्तराखंड में भी बीजेपी को लगातार दूसरी बार सफलता मिली है, जो इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि यहाँ सीधे दो दलों के बीच मुकाबला होता है। इसे कांग्रेस के पराभव के रूप में भी देखना होगा, क्योंकि पिछले साल केरल में वाम मोर्चा ने कांग्रेस को हराकर लगातार दूसरी बार जीत हासिल की थी। इसी क्रम में पंजाब, मणिपुर और गोवा में कांग्रेस की पराजय को देखना चाहिए, जहाँ वह या तो सत्ताच्युत हुई है या उसने सबसे बड़े दल की हैसियत को खोया है। आम आदमी पार्टी ने पंजाब की 117 सीटों में से 92 पर जीत हासिल की है। कांग्रेस 18 सीट के साथ दूसरे स्थान पर रही। मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी दो सीटों से लड़े थे। दोनों में हार गए। उनके प्रतिस्पर्धी नवजोत सिंह सिद्धू भी हार गए। वहीं पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल, अमरिंदर सिंह और राजिंदर कौर भट्टल को भी हार का सामना करना पड़ा। लगता है कि पंजाब की जनता परम्परागत राजनीति को फिर से देखना नहीं चाहती। आम आदमी पार्टी नई पार्टी है। फिलहाल उसकी स्लेट साफ है, पर अब उसकी परख होगी।