Showing posts with label सांस्कृतिक-संपदा. Show all posts
Showing posts with label सांस्कृतिक-संपदा. Show all posts

Friday, October 28, 2022

भारतीय सांस्कृतिक संपदा की वापसी

ब्रिटिश ताज में कोहिनूर

पिछले साल सितंबर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका के दौरे के बाद स्वदेश लौटते समय अपने साथ 157 प्राचीन कलाकृतियाँ और पुरा-वस्तुएँ लेकर आए। इन कलाकृतियों में सांस्कृतिक पुरावशेष, हिंदू, बौद्ध, जैन धर्मों से संबंधित प्रतिमाएं वगैरह शामिल थीं, जिन्हें अमेरिका ने उन्हें सौंपा। इनमें 10वीं शताब्दी की डेढ़ मीटर की पत्थर पर नक्काशी से लेकर 12वीं शताब्दी की उत्कृष्ट 8.5 सेंटीमीटर ऊँची नटराज की कांस्य-प्रतिमा शामिल थी।

एक मोटा अनुमान है कि भारत की लाखों वस्तुएँ अलग-अलग देशों में मौजूद हैं। इनमें बड़ी संख्या में छोटी-मोटी चीजें हैं, पर ऐसी वस्तुओं की संख्या भी हजारों में है, जो सैकड़ों-हजारों साल पुरानी हैं। इन्हें आक्रमणकारियों ने लूटा या चोरी करके या तस्करी के सहारे बाहर ले जाया गया। अब भारत सरकार अपनी इस संपदा को वापस, लाने के लिए प्रयत्नशील है।

यह केवल भारत की संपदा से जुड़ा मामला नहीं है। साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद की इस लूट का प्रतिकार उन सभी देशों की पुरा-संपदा की वापसी से जुड़ा है, जिन्हें अतीत में लूटा गया। पर यह लूट सबसे ज्यादा भारत में हुई है। दुनिया के काफी देश अब इन्हें वापस करने को तैयार भी हैं, पर कुछ देशों में अब भी हिचक है। मसलन ब्रिटेन में एक तबके का कहना है कि हम सब लौटा देंगे, तो हमारे संग्रहालय खाली हो जाएंगे।

हमारा दायित्व

पीएम मोदी ने गत 27 फरवरी को मन की बात में देश की प्राचीन मूर्तियों का जिक्र किया था। उन्होंने कहा कि देश एक-से-बढ़कर एक कलाकृतियाँ बनती रहीं। इनके पीछे श्रद्धा थी, सामर्थ्य और कौशल भी था। इन प्रतिमाओं को वापस लाना, भारत माँ के प्रति हमारा दायित्व है। मोदी सरकार आने के बाद से यह प्रक्रिया तेज हुई है। 2015 में जर्मनी की तत्कालीन चांसलर एंजेला मर्केल भारत आईं, तो उन्होंने दसवीं सदी की मां दुर्गा के महिषासुर मर्दनी अवतार वाली प्रतिमा लौटाने की घोषणा की थी। यह प्रतिमा जम्मू-कश्मीर के पुलवामा से 1990 के दशक में गायब हो गई थी। बाद में यह जर्मनी के स्टटगार्ट के लिंडन म्यूज़ियम में पाई गई।