Saturday, December 31, 2016

ड्रामा था या सच अखिलेश बड़े नेता बनकर उभरे

लाहाबाद में अखिलेश समर्थक एक पोस्टर
अंततः यह सब ड्रामा साबित हुआ. गुरुवार की रात एक अंदेशा था कि कहीं यह नूरा-कुश्ती तो नहीं थी? आखिर में यही साबित हुआ.
मुलायम परिवार के झगड़े का अंत जिस तरह हुआ है, उससे तीन निष्कर्ष आसानी से निकलते हैं. पहला, यह कि यह अखिलेश की छवि बनाने की एक्सरसाइज़ थी. दूसरा, मुलायम सिंह को बात समझ में आ गई कि अखिलेश की छवि वास्तव में अच्छी है. तीसरा, दोनों पक्षों को समझ में आ गया कि न लड़ने में ही समझदारी है.
कुल मिलाकर निष्कर्ष यह है कि अखिलेश यादव ज्यादा बड़े नेता के रूप में उभर कर सामने आए हैं. और शिवपाल की स्थिति कमजोर हो गई है. टीप का बंद यह कि रामगोपाल यादव ने 1 जनवरी को जो राष्ट्रीय प्रतिनिधि सम्मेलन बुलाया था, वह भी होगा.

Monday, December 26, 2016

मोदी बनाम मूडीज़

मोदी सरकार के ढाई साल पिछले महीने पूरे हो गए. अब ढाई साल बचे हैं. सन 2008-09 की वैश्विक मंदी के बाद से देश की अर्थ-व्यवस्था को पटरी पर वापस लौटाने की कोशिशें चल रहीं हैं. यूपीए सरकार मनरेगा, शिक्षा के अधिकार और खाद्य सुरक्षा जैसे लोक-लुभावन कार्यक्रमों के सहारे दस साल चल गई, पर भ्रष्टाचार के आरोप उसे ले डूबे. मोदी सरकार विकास के नाम पर सत्ता में आई है. अब उसका मध्यांतर है, जब पूछा जा सकता है कि विकास की स्थिति क्या है?  

Sunday, December 25, 2016

तिराहे पर खड़ा देश

भारत के लिए यह साल बेहद उथल-पुथल वाला साल रहा। इस साल देश के नाम तीन तरह के संदेश थे। पहला अपनी आर्थिक स्थिति को सुधारने का। दूसरा, अंतरराष्ट्रीय रिश्तों को ठीक करने का और तीसरा आंतरिक राजनीति और लोकतंत्र के नाम। तीनों मोर्चों पर जबर्दस्त जद्दो-जहद देखने को मिली। आर्थिक रूप से इस साल देश ने उदारीकरण की दिशा में दो बड़े फैसले किए। पहला था जीएसटी से जुड़े संविधान संशोधन को संसद की स्वीकृति। और दूसरा था 8 नवंबर को घोषित विमुद्रीकरण। दोनों के फायदे आने वाले वर्षों में देखने को मिलेंगे।

Thursday, December 22, 2016

कांग्रेस को भी घायल करेंगे राहुल के तीर

असर करे या न करे, पर राहुल गांधी के लिए सहारा का तीर चलाना मजबूरी बन गया था. दो हफ्ते पहले वे घोषणा कर चुके थे कि उनके पास ऐसी जानकारी है, जो भूचाल पैदा कर देगी. उसे छिपाकर रखना उनके लिए संभव नहीं था. 
देर से दी गई इस जानकारी से अब कोई भूचाल तो पैदा नहीं होगा, पर राजनीति का कलंकित चेहरा जरूर सामने आएगा. जिन दस्तावेजों का जिक्र किया जा रहा है, उनमें कांग्रेस को परेशान करने वाली बातें भी हैं. 

Tuesday, December 20, 2016

राहुल के तेवर इतने तीखे क्यों?

राहुल गांधी के तेवर अचानक बदले हुए नजर आते हैं। उन्होंने बुधवार को नरेंद्र मोदी पर सीधा हमला बोलकर माहौल को विस्फोटक बना दिया है। उन्हें विपक्ष के कुछ दलों का समर्थन भी हासिल हो गया है। इनमें तृणमूल कांग्रेस और एनसीपी शामिल हैं। हालांकि बसपा भी उनके साथ नजर आ रही है, जबकि दूसरी ओर यूपी में कांग्रेस और सपा के गठबंधन की अटकलें भी हैं। बड़ा सवाल फिलहाल यह है कि राहुल ने इतना बड़ा बयान किस बलबूते दिया और वे किस रहस्य पर से पर्दा हटाने वाले हैं? क्या उनके पास ऐसा कोई तथ्य है जो मोदी को परेशान करने में कामयाब हो? 
बहरहाल संसद का सत्र खत्म हो चुका है और राजनीति का अगला दौर शुरू हो रहा है। नोटबंदी के कारण पैदा हुई दिक्कतें भी अब क्रमशः कम होती जाएंगी। अब सामने पाँच राज्यों के चुनाव हैं। देखना है कि राहुल इस दौर में अपनी पार्टी को किस रास्ते पर लेकर जाते हैं।  

Sunday, December 18, 2016

नोटबंदी के बाद अब क्या हो?

नरेंद्र मोदी कोई बड़ा काम करना चाहते हैं। ऐसा उनकी शैली से पता लगता है। नोटबंदी का उनका फैसला बताता है कि इसके पीछे पूरी व्यवस्था के साथ व्यापक विमर्श नहीं किया गया होगा। विचार-विमर्श हुआ होता तो शायद दिक्कतें इस कदर नहीं होतीं। इसमें बरती गई गोपनीयता का क्या मतलब है अभी यह भी समझ में नहीं आया है। यह भी दिखाई पड़ रहा है कि अर्थ-व्यवस्था की गति इससे धीमी होगी और छोटे कामगारों को दिक्कतें होंगी। पर ये दोनों बातें लंबे समय की नहीं हैं। हालांकि अभी आँकड़े उपलब्ध नहीं हैं, पर अनुमान है कि दो से तीन लाख करोड़ रुपए तक की राशि एकाउंटिंग में आएगी। वास्तव में ऐसा होने के बाद ही बात करनी चाहिए। यदि ऐसा हुआ तो भविष्य में राजस्व में काफी वृद्धि होगी। इसके साथ ही दबाव में या समय की जरूरत को देखते हुए डिजिटाइजेशन की प्रक्रिया तेज होगी। डिजिटाइजेशन भी व्यवस्था को पारदर्शी बनाने में मददगार होगा। 
इस नोटबंदी ने व्यवस्था पर हावी ताकतों पर से भी पर्दा उठाया है। वकीलों, चार्टर एकाउंटेंटों, बैंक अफसरों, हवाला कारोबारियों, बिल्डरों, सर्राफों और कुल मिलाकर राजनेताओं की पकड़ और पहुँच का पता भी इस दौरान लगा है। भविष्य की व्यवस्था में इन बातों से बचने के रास्ते भी खोजने होंगे। व्यवस्था के दोष खुलते हैं तो उसे ठीक करने के रास्ते भी बनते हैं। ऐसा नहीं है कि अंधेर पूरी तरह अंधेर ही बना रहे। राजनीतिक दलों, धार्मिक ट्रस्टों और इसी प्रकार की संस्थाओं को मिली छूटों के बारे में ध्यान देने की जरूरत है। हम लोग शिकायतें बहुत करते हैं, पर जब संसदीय समितियाँ किसी सवाल पर आपकी राय माँगती हैं, तब आगे नहीं आते। फेसबुक और ट्विटर पर गालियाँ देते हैं। व्यवस्था में नागरिक की भागीदारी होगी तो अंधेर इतना आसान नहीं होगा। बाढ़ के वक्त नदी का पानी गंदला होता है, पर कुछ समय बाद वह साफ भी होता है। बदलाव की धारा का श्रेय केवल मोदी को नहीं दिया जाना चाहिए। यूपीए सरकार ने सन 2009 के बाद उदारीकरण की गति को धीमा कर दिया था। मोदी सरकार ने यूपीए के छोड़े कामों को ही पूरा करना शुरू किया है। उसकी हिम्मत भी दिखाई है। पर सच यह है कि हमारी राजनीति उदारीकरण को मुद्दा बना नहीं पाई है। 

शीत सत्र भी पूरी तरह धुल गया। लोकसभा ने मुकर्रर समय में से केवल 15 फीसदी और राज्यसभा ने 18 फीसदी काम किया। लोकसभा में 07 घंटे और राज्यसभा में 101 घंटे शोरगुल की भेंट चढ़े। राज्यसभा में प्रश्नोत्तर काल के लिए सूचीबद्ध 330 प्रश्नों में से केवल दो का जवाब मौखिक रूप से दिया जा सका। लोकसभा में केवल 11 फीसदी सूचीबद्ध सवालों के जवाब मौखिक रूप से दिए जा सके। संसदीय कर्म के सारे मानकों पर यह सत्र विफल रहा। वह भी ऐसे मौके पर जब देश अपने नेताओं का मुँह जोह रहा था कि वे रास्ता बताएं।

Friday, December 16, 2016

नोटबंदी पर बहस से दोनों पक्ष भाग रहे हैं

सरकार और विपक्ष किन सवालों को लेकर एक-दूसरे से पंजा लड़ा रहे हैं?

देश नोटबंदी की वजह से परेशान है. दूसरी ओर एक के बाद एक कई जगहों से लाखों-करोड़ों के नोट बिल्डरों, दलालों और हवाला कारोबारियों के पास से मिल रहे हैं. तब सवाल उठता है कि सरकार और विपक्ष किन सवालों को लेकर एक-दूसरे से पंजा लड़ा रहे हैं?

नोटबंदी का फैसला अपनी जगह है, बैंकिंग प्रणाली कौन से गुल खिला रही है? वह कौन सी राजनीति है, जो जनता के सवालों से ऊपर चली गई है? अब सुनाई पड़ रहा है कि कांग्रेस बजट सत्र जल्द बुलाने का विरोध भी करेगी. दरअसल राजनीति की वरीयताएं वही नहीं हैं, जो जनता की हैं.

कांग्रेस बजट सत्र जल्द बुलाने का विरोध कर सकती है, क्योंकि चुनाव की घोषणा होने के बाद आदर्श आचार संहिता लागू हो जाएगी, जिससे सरकार के पास कई तरह की घोषणाएं करने का मौका नहीं बचेगा. 

हाल में सरकार ने संकेत किया है कि नोटबंदी के कारण आयकर की दरों में कमी की जा सकती है. सवाल नोटबंदी की अच्छाई या बुराई का नहीं, उसकी राजनीति का है. 

Wednesday, December 14, 2016

क्या राहुल के पास वास्तव में कुछ कहने को है?

राहुल गांधी ने विस्फोट भले ही नहीं किया, पर माहौल विस्फोटक जरूर बना दिया है. यह उनकी छापामार राजनीति की झलक है, जिसे उन्होंने पिछले साल के मॉनसून सत्र से अपनाया है. यह संजीदा संसदीय विमर्श का विकल्प नहीं है. वे क्या कहना चाहते हैं और क्या जानकारी उनके पास है, इसे स्पष्ट किया जाना चाहिए. उन्होंने जिस अंदाज में बातें की हैं, उनसे लगता है कि अब कुछ धमाके और होंगे.

Monday, December 12, 2016

भिंडी बाजार बनती राजनीति

राहुल गांधी ने कहा, नोटबंदी पर फैसले को चुनौती देने वाला मेरा भाषण तैयार है, लेकिन संसद में मुझे बोलने से रोका जा रहा है. मुझे बोलने दिया गया तो भूचाल आ जाएगा. सरकार की शिकायत है कि विपक्ष संसद को चलने नहीं दे रहा. उधर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा है, सांसद अपनी जिम्मेदारी निभाएं. आपको संसद में चर्चा करने के लिए भेजा गया है, पर आप हंगामा कर रहे हैं. उधर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को गुजरात के बनासकांठा में हुई किसानों की रैली में कहा, मुझे लोकसभा में बोलने नहीं दिया जाता, इसलिए मैंने जनसभा में बोलने का फैसला किया है.

Sunday, December 11, 2016

संसदीय गरिमा को बचाओ

राहुल गांधी कहते हैं, सरकार मुझे संसद में बोलने नहीं दे रही। मैं बोलूँगा तो भूचाल आ जाएगा। और अब प्रधानमंत्री भी कह रहे हैं कि मुझे बोलने नहीं दिया जाता। उधर पीआरएस के आँकड़ों के अनुसार संसद के शीत सत्र में लोकसभा में 16 और राज्यसभा में 19 फीसदी काम हुआ है। लोकसभा में जो भी काम हुआ उसका एक तिहाई प्रश्नोत्तर के रूप में है। राज्यसभा में प्रश्नोत्तर हो ही नहीं पाए। लोकसभा ने इस दौरान आयकर से जुड़ा एक संशोधन विधेयक पास किया, जो केवल 10 मिनट में पास हो गया। यह सत्र 16 दिसंबर तक चलना है। सोमवार और मंगल को अवकाश हैं। अब सिर्फ तीन दिन बचे हैं।
संसद के न चलने की वजह केवल विपक्ष नहीं है। इसमें सरकार की भी भूमिका है। संसदीय गरिमा की रक्षा करना दोनों की जिम्मेदारी है। सुनाई पड़ रहा है कि सरकार और विपक्ष के बीच बचे हुए समय के सदुपयोग पर सहमति बनी है, पर सच यह है कि काफी कीमती समय बर्बाद हो गया है। एक बौद्धिक तबक़ा कहता है कि राजनीति में शोर है तो उसे दिखाना और सुनाना भी चाहिए। सड़क पर शोर है तो संसद में क्यों नहीं? शोर के सांकेतिक अर्थ महत्वपूर्ण हैं। पर यदि वह पूरे के पूरे सत्र को बहा ले जाए तो उसका कोई मतलब भी नहीं रह जाता। और वह शोर निरर्थक हो जाता है और संसद भी।  

Saturday, December 10, 2016

अद्रमुक का दामन थामेगी कांग्रेस

जयललिता के निधन के बाद तमिलनाडु की राजनीति में पहला सवाल अद्रमुक की सत्ता-संरचना को लेकर है। यानी कौन होगा उसका नेता? कैसे चलेगा उसका संगठन और सरकार? फिलहाल ओ पन्‍नीरसेल्‍वम को मुख्यमंत्री बनाया गया है। सवाल है क्या वे मुख्यमंत्री बने रहेंगे? पार्टी संगठन का सबसे बड़ा पद महासचिव का है। अभी तक जयललिता महासचिव भी थीं। एमजीआर और जयललिता दोनों के पास मुख्यमंत्री और महासचिव दोनों पद थे। अब क्या होगा?

Friday, December 9, 2016

‘तीन तलाक’ यूपी ही नहीं, लोकसभा चुनाव तक को गरमाएगा

यूपी के चुनाव के ठीक पहले तीन तलाक के मुद्दे का गरमाना साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण को बढ़ाएगा. काफी कुछ इस बात पर भी निर्भर करता है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया क्या होती है. यदि सभी दल इसके पक्ष में आएंगे तो इसकी राजनीतिक गरमी बढ़ नहीं पाएगी. चूंकि पार्टियों के बीच समान नागरिक संहिता के सवाल पर असहमति है, इसलिए इस मामले को उससे अलग रखने में ही समझदारी होगी.

इस मामले पर इलाहाबाद हाईकोर्ट की टिप्पणी का बीजेपी और शिवसेना ने स्पष्ट रूप से समर्थन किया है. कांग्रेस ने भी उसका स्वागत किया है. लेकिन कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने अदालत से धर्म के मामले में दखलअंदाजी न करने की अर्ज की है. ऐसी टिप्पणियाँ आती रहीं तो बेशक यह मामला यूपी के चुनाव को गरमाएगा.

दिग्विजय सिंह ने ट्वीट किया है, "मैं बड़ी विनम्रतापूर्वक अदालतों से अनुरोध करना चाहूंगा कि उन्हें धर्म और धर्मों के रीति रिवाज में दखलंदाजी नहीं करना चाहिए.” दरअसल सवाल ही यही है कि यदि कभी मानवाधिकारों और सांविधानिक उपबंधों और धार्मिक प्रतिष्ठान के बीच विवाद हो, तब क्या करना चाहिए. दिग्विजय सिंह यदि कहते हैं कि धार्मिक प्रतिष्ठान की बात मानी जानी चाहिए, तब उन्हें इस सलाह की तार्किक परिणति को भी समझना चाहिए. इस प्रकार की टिप्पणियाँ करके वे बीजेपी के काम को आसान बना देते हैं.

Wednesday, December 7, 2016

गरीबनवाज़ जयललिता

जयललिता जयराम को जबर्दस्त जुझारू और जीवट वाली राजनेता के रूप में याद किया जाएगा. उन्होंने सत्ता का भरपूर इस्तेमाल किया, शानदार जीवन जिया, अपने विरोधियों का दमन किया और बड़े-बड़े अप्रत्याशित फैसले किए. फिल्मों के ग्लैमरस संसार से आईं जयललिता को राजनीति में प्रवेश करने के पहले कई प्रकार के अवरोधों, अपमानों और दुर्व्यवहारों का सामना भी करना पड़ा. शायद उनके अप्रत्याशित व्यवहार के पीछे यह भी एक बड़ा कारण था. पर उनकी गरीबनवाज़ छवि ने उनके सारे दोषों को धो दिया.
उनके ऐसे व्यक्तित्व को विकसित करने में तमिलनाडु की विलक्षण व्यक्ति-पूजा का भी योगदान है. भारतीय राजनीति में बड़े-बड़े कटआउटों की संस्कृति तमिलनाडु में ही विकसित हुई थी, जिसे रोकने का काम भी दक्षिण से आए टीएन शेषन ने ही किया था. इस राज्य में जीवित समकालीन नेताओं, फिल्मी सितारों और खिलाड़ियों के मंदिर बनते हैं. उनकी पूजा होती है. दक्षिण की पुरुष-प्रधान राजनीति में जयललिता जैसा होना भी अचंभा है. उन्होंने साधारण परिवार में जन्म लिया, कठिन परिस्थितियों का सामना किया और एक बार सत्ता की सीढ़ियों पर चढ़ीं तो चढ़ती चली गईं.

Tuesday, December 6, 2016

बेहद अप्रत्याशित और अपने आप में अचंभा थीं जयललिता जयराम

जयललिता जयराम को आधुनिक लोकतंत्र के जबर्दस्त अंतर्विरोधी व्यक्तित्व और भारतीय राजनीति की विस्मयकारी बातों के रूप में लंबे समय तक याद किया जाएगा. इसमे दो राय नहीं कि वे जीवट वाली नेता रहीं हैं. यह भी सच है कि तमिलनाडु देश के सबसे प्रगतिशील राज्यों में शामिल है. कार्य संस्कृति और उत्पादकता के मामले में दक्षिण के इस राज्य का जवाब नहीं.

Sunday, December 4, 2016

कहीं उल्टा न पड़े ममता का तैश और तमाशा

ममता बनर्जी की छवि तैश में रहने वाली नेता की है। मूलतः वे स्ट्रीट फाइटर हैं। उन्हें इस बात का श्रेय जाता है कि उन्होंने वाम मोर्चा के मजबूत गढ़ को गिरा कर दिखा दिया। और यही तथ्य उन्हें लगातार उत्तेजित बनाकर रखता है। वाम मोर्चा अब सत्ता से बाहर है, पर ममता स्टाइल ऑफ पॉलिटिक्स की साख बनाए रखने के लिए उन्हें कुछ न कुछ करते रहना पड़ता है। केंद्र सरकार के नोटबंदी कार्यक्रम ने उन्हें इसका मौका दिया है।

Saturday, December 3, 2016

ड्रामा बनाम ड्रामा, आज मुरादाबाद में होगी आतिशबाजी

बीजेपी की परिवर्तन यात्राओं और नरेंद्र मोदी की रैलियों ने उत्तर प्रदेश में चुनाव कार्यक्रम की घोषणा के पहले ही माहौल को रोचक और रंगीन बना दिया है. इन रैलियों की मदद से नरेंद्र मोदी एक ओर वोटर का ध्यान खींच रहे हैं, वहीं दिल्ली के रंगमंच पर तलवारें भाँज रहे अपने विरोधियों को जवाब भी दे रहे हैं.
ये रैलियाँ इंदिरा गांधी की रैलियों की याद दिलाती हैं, जिनमें वे अपने विरोधियों की धुलाई करती थीं. इस बात की उम्मीद है कि आज की मुरादाबाद रैली में मोदी अपने विरोधियों के नाम कुछ करारे जवाब लेकर आएंगे. पहले सर्जिकल स्ट्राइक और फिर नोटबंदी को लेकर पार्टी पर हुए हमलों का जवाब मोदी अपनी इन रैलियों में दे रहे हैं.

Sunday, November 27, 2016

आम आदमी ने तो सहन किया...

नोटबंदी के खिलाफ विरोधी दलों ने आंदोलन खड़ा कर दिया है। उनका कहना है कि इस फैसले से आम आदमी की मुश्किलें बढ़ गईं हैं। मोटे तौर पर यह बात सच भी है। पर ये मुश्किलें किस प्रकार की हैं और कितनी हैं तथा कब तक चलेंगी, इसके बारे में भी विचार किया जाना चाहिए। देवोत्थान एकादशी के बाद शादियाँ शुरू हो जाती हैं। जिन लोगों ने पहले से पैसे जमा करके रखे थे, उनके सामने दिक्कतें खड़ी हो गईं। जनवासे का इंतजाम, बैड की व्यवस्था, हलवाई का खर्चा और जेवरों की खरीदारी सारे काम नकदी से होते हैं। नेग-शगुन, पंडित जी को भी पैसे देने होते हैं।

Saturday, November 26, 2016

कांग्रेस एक पायदान नीचे

नोटबंदी के दो हफ्ते बाद राष्ट्रीय राजनीति में विपक्ष की भावी रणनीति भी सामने आने लगी है। इसमें सबसे ज्यादा तेजी दिखाई है ममता बनर्जी ने, जिन्होंने जेडीयू, सपा, एनसीपी और आम आदमी पार्टी के साथ सम्पर्क करके आंदोलन खड़ा करने की योजना बना ली है। इसकी पहली झलक बुधवार को दिल्ली में दिखाई दी। जंतर-मंतर की रैली के बाद अचानक ममता बनर्जी का कद मोदी की बराबरी पर नजर आने लगा है। पर ज्यादा महत्वपूर्ण है कांग्रेस का विपक्षी सीढ़ी पर एक पायदान और नीचे चले जाना। नोटबंदी के खिलाफ एक आंदोलन ममता ने खड़ा किया है और दूसरा आंदोलन कांग्रेस चला रही है। बावजूद संगठनात्मक लिहाज से ज्यादा ताकतवर होने के कांग्रेस के आंदोलन में धार नजर नहीं आ रही है। राहुल गांधी अब मुलायम सिंह, मायावती और नीतीश कुमार के बराबर के नेता भी नजर नहीं आते हैं।

Friday, November 25, 2016

विपक्ष के लिए एक मौका

नोटबंदी के दो हफ्ते बाद उसकी राजनीति ने अँगड़ाई लेना शुरू कर दिया है. बुधवार को संसद भवन में गांधी प्रतिमा के पास तकरीबन 200 सांसदों ने जमा होकर अपनी नाराजगी को व्यक्त किया. वहीं तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी ने अपने सहयोगी दलों के साथ मिलकर जंतर-मंतर पर रैली की. गुरुवार को संसद के दोनों सदनों में कांग्रेस, सीपीएम तथा बसपा ने सरकार की घेराबंदी की. कांग्रेस ने पूर्व प्रधानमंत्री को इस फैसले के खिलाफ खड़ा किया, जबकि अमूमन मनमोहन सिंह बोलते नहीं हैं. कांग्रेस मनमोहन की विशेषज्ञता का लाभ लेना चाहती थी. पर मनमोहन सिंह ने इस फैसले की नहीं, उसे लागू करने वाली व्यवस्था की आलोचना की, उधर मायावती ने कहा कि हिम्मत है तो लोकसभा भंग करके चुनाव करा लो. पता लग जाएगा कि जनता आपके साथ है या नहीं. उम्मीद थी कि संसद के इस सत्र पर सर्जिकल स्ट्राइक हावी होगा, पर नोटबंदी ने विपक्ष की मुराद पूरी कर दी.

Sunday, November 20, 2016

नोटबंदी साध्य नहीं, साधन है

नरेन्द्र मोदी ने 8 नवम्बर के संदेश और उसके बाद के भाषणों में इस बात को कहा है कि सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार के खिलाफ मैं बड़ी लड़ाई लड़ना चाहता हूँ। बहुत से लोगों को उनकी बात पर यकीन नहीं है, पर जिन्हें यकीन है उनकी तादाद भी कम नहीं है। मोदी ने कहा है कि मुझे कम से कम 50 दिन दो। भारतीय जनता के मूड को देखें तो वह उन्हें पचास दिन नहीं पाँच साल देने को तैयार है, बशर्ते उस काम को पूरा करें, जिसका वादा है। सन 1971 और 1977 में देश की जनता ने सत्ताधारियों को ताकत देने में देर नहीं लगाई थी।
नोटबंदी की घोषणा होने के बाद से कांग्रेस सहित ज्यादातर विरोधी दलों ने आंदोलन का रुख अख्तियार किया है। वे जनता की दिक्कतों को रेखांकित कर रहे हैं। भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले अरविन्द केजरीवाल भी इस फैसले के खिलाफ हैं। उनका कहना है कि यह फैसला खुद में बड़ा स्कैम है। कहा यह भी जा रहा है कि बीजेपी ने नोटबंदी की चाल अपने राजनीतिक प्रतिस्पर्धियों को यूपी में मात देने के लिए चली है। बीजेपी ने अपना इंतजाम करने के बाद विरोधियों को चौपट कर दिया है।

Monday, November 14, 2016

नेहरू को बिसराना भी गलत है

पिछले साल जब सरकार ने योजना आयोग की जगह ‘नेशनल इंस्टीट्यूशन फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया’ (राष्ट्रीय  भारत परिवर्तन संस्थान) यानी ‘नीति’ आयोग बनाने की घोषणा की थी तब कुछ लोगों ने इसे छह दशक से चले आ रहे नेहरूवादी समाजवाद की समाप्ति के रूप में लिया. यह तय करने की जरूरत है कि वह राजनीतिक प्रतिशोध था या भारतीय रूपांतरण के नए फॉर्मूले की खोज. वह एक संस्था की समाप्ति जरूर थी, पर क्या योजना की जरूरत खत्म हो गई? नेहरू का हो या मोदी का विज़न या दृष्टि की जरूरत हमें तब भी थी और आज भी है.

Sunday, November 13, 2016

काले धन पर वार तो यह है

काफी लोगों को समझ में नहीं आ रहा है कि नोटों को बदल देने से काला धन कैसे बाहर आ जाएगा। अक्सर हम काले धन का मतलब भी नहीं जानते हैं। कुछ लोगों को लगता है कि बड़ी मात्रा में  किसी के पास कैश हो तो वह काला धन है। कैश का मतलब हमेशा काला धन नहीं है। पर प्रायः कैश के रूप में काला धन होता है। यदि नकदी का विवरण किसी के पास है और वह व्यक्ति उसमें से उपयुक्त राशि टैक्स वगैरह के रूप में जमा करता है तो वह काला धन नहीं है। 
फिलहाल दुनिया में समझ यह बन रही है कि लेन-देन को नकदी के बजाय औपचारिक रिकॉर्डेड तरीके से करना सम्भव हो तो 'काले धन' का बनना कम हो जाएगा। इनफॉर्मेशन तकनीक ने इसे सम्भव बना दिया है। भारत में गरीबी, अशिक्षा और तकनीकी नेटवर्क के अधूरे विस्तार के कारण दिक्कतें हैं। उन्हें दूर करने की कोशिश तो करनी ही होगी। 

Thursday, November 10, 2016

ट्रम्प से ज्यादा महत्वपूर्ण है अमेरिकी सिस्टम


अमेरिकी मीडिया के कयास के विपरीत डोनाल्ड ट्रम्प का जीतना कुछ लोगों को विस्मयकारी लगा, जिसकी जरूरत नहीं है। अमेरिकी चुनाव की प्रक्रिया ऐसी है कि ज्यादा वोट जीतने वाला भी हार सकता है। यदि वे हार भी जाते तो उस विचार की हार नहीं होती, जो इस चुनाव के पीछे है। लगभग कुछ दशक की उदार अमेरिकी व्यवस्था के बाद अपने राष्ट्रीय हितों की फिक्र वोटर को हुई है। कुछ लोग इसे वैश्वीकरण की पराजय भी मान रहे हैं। वस्तुतः यह अंतर्विरोधों का खुलना है। इसमें किसी विचार की पूर्ण पराजय या अंतिम विजय सम्भव नहीं है। अमेरिका शेष विश्व से कुछ मानों में फर्क देश है। यह वास्तव में बहुराष्ट्रीय संसार है। इसमें कई तरह की राष्ट्रीयताएं बसती हैं। हाल के वर्षों में पूँजी के वैश्वीकरण के कारण चीन और भारत का उदय हुआ है। इससे अमेरिकी नागरिकों के आर्थिक हितों को भी चोट लगी है। ट्रम्प उसकी प्रतिक्रिया हैं। क्या यह प्रतिक्रिया गलत है? गलत या सही दृष्टिकोण पर निर्भर है। पर यह प्रतिक्रिया अस्वाभाविक नहीं है। दुनिया के ऐतिहासिक विकास की यह महत्वपूर्ण घड़ी है। अमेरिकी चुनाव की खूबसूरती है कि हारने के बाद प्रत्याशी विजेता को समर्थन देने का वायदा करता है और जीता प्रत्याशी अपने आप को उदार बनाता है। ट्रम्प ने चुनाव के बाद इस उदारता का परिचय दिया है। अमेरिकी प्रसासनिक व्यवस्था में राष्ट्रपति बहुत ताकतवर होता है, पर वह निरंकुश नहीं हो सकता। अंततः वह व्यवस्था ही काम करती है। 
अमेरिका में राष्ट्रपति पद का जैसा चुनाव इस बार हुआ है, वैसा कभी नहीं हुआ। दोनों प्रत्याशियों की तरफ से कटुता चरम सीमा पर थी। अल्ट्रा लेफ्ट और अल्ट्रा राइट खुलकर आमने-सामने थे। डोनाल्ड ट्रम्प के बारे में अभी कुछ भी कहना मुश्किल है, सिवाय इसके कि वे धुर दक्षिणपंथी और राष्ट्रवादी राष्ट्रपति साबित होंगे। पर सबसे बड़ा खतरा यह है कि उनके ही कार्यकाल में अमेरिका की अर्थ-व्यवस्था पहले नम्बर से हटकर दूसरे नम्बर की बनने जा रही है।

Wednesday, November 9, 2016

काले धन पर सरकार का ‘सर्जिकल स्ट्राइक’

2014 के चुनाव के पहले भारतीय जनता पार्टी ने कहा था कि विदेश में 400 से 500 अरब डॉलर का भारतीय कालाधन विदेशों में जमा है. विदेश में जमा काला धन अंतरराष्ट्रीय कानूनों के मकड़जाल में फंस कर रह गया. इस वजह से मोदी सरकार को जवाब देते नहीं बनता है. काले धन का मसला राजनीति और गवर्नेंस दोनों से जुड़ा है. हाल में भारत सरकार ने अघोषित आय को घोषित करने की जो योजना 1 जून 2016 से लेकर 30 सितंबर 2016 तक के लिए चलाई थी वह काफी सफल रही.

योजना की समाप्ति के बाद वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बताया कि अघोषित आय घोषणा योजना के माध्यम से 64,275 लोगों ने 65 हजार 250 करोड़ रुपए की संपत्ति घोषित की. सवाल है कि क्या 64 हजार लोगों के पास ही अघोषित आय है? फिर भी ये अब तक की सबसे बड़ी अघोषित आय थी. पर अनुमान है कि इससे कहीं बड़ी राशि अभी अघोषित है. नोटों को बदलने की योजना आजादी के बाद काले धन को बाहर निकालने की शायद सबसे बड़ी कोशिश है. इसके मोटे निहितार्थ इस प्रकार हैं-

Tuesday, November 8, 2016

क्या सरकार ने घबराकर एनडीटीवी का बैन हटाया?

एनडीटीवी इंडिया को एक दिन के लिए ऑफ-एयर करने के सरकारी आदेश का अनुपालन रोकने की खबर 7 नवम्बर को आने के बाद से दो तरह की बातें सामने आ रही हैं। एनडीटीवी पर पाबंदी लगाने के समर्थकों का कहना है कि सरकार ने यह कदम गलत उठाया है। सवाल है कि क्या सरकार ने यह कदम एनडीटीवी पर कृपा करके उठाया है या इसलिए उठाया है कि चैनल अदालत चला गया था और सरकार घबरा गई थी?

एनडीटीवी इंडिया की वैबसाइट पर खबर में कहा गया है कि इस फैसले की चौतरफा आलोचना के बाद बैन सम्बंधी आदेश को स्थगित किया गया।  यह फैसला तब आया जब सुप्रीम कोर्ट मंगलवार को इस बैन पर स्‍टे संबंधी याचिका पर सुनवाई के लिए तैयार हो गया।

इस संबंध में सोमवार की दोपहर NDTV के प्रतिनिधियों ने सूचना और प्रसारण मंत्री से मुलाकात की। उन्‍होंने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि एनडीटीवी इंडिया ने जनवरी में पठानकोट के एयरफोर्स बेस पर हमले के संबंध में संवेदनशील ब्‍यौरे का प्रसारण नहीं किया। साथ ही कहा कि चैनल को अपनी तरफ से साक्ष्‍य पेश करने का उपयुक्‍त मौका नहीं दिया। चैनल ने ऐसी कोई सूचना प्रसारित नहीं की जो उस वक्‍त बाकी चैनलों और अख़बारों से भिन्‍न रही हो।

Monday, November 7, 2016

अखिलेश और पीके की मुलाकात तो हुई

कांग्रेस के चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर उर्फ पीके की रविवार की यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से सोमवार 7 नवम्बर को आखिरकार मुलाकात हो गई। इसके पहले खबरें थीं कि अखिलेश ने उनसे मिलने से मना कर दिया है। बहरहाल इस मुलाकात के बाद समाजवादी पार्टी के साथ कांग्रेस के गठबंधन के कयासों को और हवा मिल गई है।

प्रशांत इससे पहले दिल्ली में और फिर लखनऊ में मुलायम सिंह यादव और शिवपाल यादव से मुलाकात कर चुके हैं। वहीं पीके को लेकर कांग्रेस के भीतर असमंजस है। दिल्ली में राहुल गांधी को पार्टी का अध्यक्ष बनाने की तैयारियाँ हो रहीं है। उधर खबरें हैं कि कांग्रेस के प्रदेश सचिव सुनील राय समेत कई पदाधिकारियों ने उपाध्यक्ष राहुल गांधी को लिखे पत्र में यूपी में गठजोड़ का विरोध किया है।

अब तलवार तो अखिलेश के हाथ में है

समाजवादी पार्टी ने अपना रजत जयंती समारोह मना लिया और यूपी में बिहार जैसा महागठबंधन बनाने की सम्भावनाओं को भी जगा दिया, पर उसकी घरेलू कलह कालीन के नीचे दबी पड़ी है। जैसे ही मौका मिलेगा बाहर निकल आएगी। पार्टी साफ़ तौर पर दो हिस्सों में बंट चुकी है। पार्टी सुप्रीमो ने एक को पार्टी दी है और दूसरे को सरकार। पार्टी अलग जा रही है और सरकार अलग। मुलायम सिंह असहाय खड़े दोनों को देख रहे हैं। बावजूद बातों के अभी यह मान लेना गलत होगा कि उत्तर प्रदेश में महागठबंधन बनने वाला है। धीरे-धीरे साफ हो रहा है कि तलवार अब अखिलेश के हाथ में है।

Sunday, November 6, 2016

क्या एनडीटीवी को एकतरफा घेरा गया?

एनडीटीवी प्रकरण को लेकर यह बात कही जा रही है कि देश की सुरक्षा सर्वोपरि है। उस मामले में कोई समझौता नहीं किया जा सकता। केबल टीवी नेटवर्क्स रूल्स, 1994 में पिछले साल संशोधन करके आतंकी हमलों के समय की लाइव कवरेज को लेकर कड़ाई की व्यवस्था। इस संशोधन को लेकर भी आपत्तियाँ हैं। इसके अलावा एनडीटीवी के प्रसंग में कहा जा रहा है कि ऐसा कुछ नहीं हुआ जिसके आधार पर कहा जा सके कि देश की सुरक्षा संकट में पड़ गई। इस सिलसिले में वैबसाइट द वायर ने अपने सम्पादकीय में कहा है कि ऐसी पाबंदी, भले ही एक दिन के लिए लगाई जाए, खतरनाक है और इससे राजनेताओं और उनके चुनींदा नौकरशाहों के हाथ में एक हथियार आ जाएगा। द वायर का सम्पादकीय इस सिलसिले में एक दिशा को बताता है वहीं ब्लॉग Angry Lok में अमित सेन के नाम से प्रकाशित आलेख में घटनाक्रम का विस्तार से विवरण देते हुए बताया गया है कि एनडीटीवी को दूसरे चैनलों से अलग करते हुए खासतौर से निशाना बनाया गया है। पढ़ें द वायर का सम्पादकीय और ब्लॉग Angry Log का आलेख

Ever since the chaotic and unseemly media spectacle which unfolded in downtown Mumbai during the 26/11 attacks, government managers, the courts – and journalists – have been especially mindful of the need for restraint and sensitivity in news coverage of ongoing security operations against terrorists. After the Mumbai attack ended, it emerged that some of the terrorists had planned their next moves on the basis of instructions received by telephone from handlers in Pakistan who learned about impending commando deployments from the live coverage several Indian TV channels were providing. Last year, the Modi government amended the Cable TV Network Rules, 1994, to add a new clause, 6(1) p, prohibiting TV channels from carrying content  “which contains live coverage of any anti-terrorist operation by security forces, wherein media coverage shall be restricted to periodic briefing by an officer designated by the appropriate Government, till such operation concludes.”

उम्मीद की किरण है जीएसटी

लम्बे अरसे से टलती जा रही जीएसटी व्यवस्था आखिरकार शक्ल लेने लगी है। पिछले गुरुवार को जीएसटी कौंसिल ने आम सहमति से टैक्स की चार दरों पर सहमति कायम करके एक बड़ा मुकाम हासिल कर लिया है। अब जो सबसे जटिल मसला है वह यह कि इस राजस्व के वितरण का फॉर्मूला क्या होगा। चूंकि इसे 1 अप्रैल 2017 से लागू होना है, इसलिए यह काम जल्द से जल्द निपटाना होगा। चूंकि इस साल बजट भी अपेक्षाकृत जल्दी आ रहा है, इसलिए यह उत्सुकता बनी है कि यह सब कैसे होगा।

Friday, November 4, 2016

चिंता का विषय है एनडीटीवी को मिली सजा

एडिटर्स गिल्ड का वक्तव्य
 भारत सरकार ने टीवी चैनल एनडीटीवी इंडिया को एक दिन के लिए ऑफ-एयर करने को कहा है. यह आदेश भारत के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने भेजा है और यह मामला पठानकोट हमलों की कवरेज़ से जुड़ा है. पठानकोट हमलों के दौरान टीवी चैनलों की कवरेज़ को लेकर एक उच्च स्तरीय पैनल का गठन हुआ था. इस बैन को लेकर अधिकतर पत्रकार नाराज हैं, पर इसे उचित बताने वाले भी हैं. वस्तुतः इसके पीछे वही सामाजिक ध्रुवीकरण दिखाई पड़ रहा है, जो मोदी सरकार की देन बताया जाता है. 

कुछ लोगों ने इसे विनाशकाले विपरीत बुद्धि बताया है और कुछ ने इसे इमर्जेंसी की पुनरावृत्ति कहा है. पर क्या यह राजनीतिक सवाल है? क्या एनडीटीवी को राजनीतिक कारणों से सजा दी गई है? इस किस्म की पाबंदी अच्छे लक्षण नहीं हैं. एक दिन के लिए ही सही, पर यह रोक चिंता का विषय है. पर चिंता का विषय यह भी है कि मीडिया कवरेज के कारण रक्षा से जुड़ी संवेदनशील विवरणों पर रोशनी पड़ी. मीडिया की जिम्मेदारी भी बनती है. अलबत्ता सरकार को स्पष्ट करना ही चाहिए कि वे कौन सी बातें हैं, जिनके कारण यह कदम उठाया है. मीडिया हाउस कहता है कि हमारी तरफ से गलती नहीं हुई है, पर यह तय कौन करेगा कि गलत हुआ या नहीं. लगता यह है कि चैनल अब अदालत के दरवाजे खटखटाएगा. यही सबसे अच्छा रास्ता है.  

Thursday, November 3, 2016

इनोवेटिव विज्ञापन अखबारों की बिगड़ती साख के प्रतीक न बनें

नवभारत टाइम्स, दिल्ली के 3 नवम्बर के अंक में विज्ञापनदाता का जैकेट है। जैकेट इस तरह डिजाइन किया गया है, जिससे बाहर से देखने पर अख़बार का नाम न्यूट्रीचार्ज टाइम्स नजर आता है। अखबारों के चलन को देखते हुए यह बात विस्मयकारी नहीं लगती, पर अखबारों की बिगड़ती साख पर यह प्रतीकात्मक टिप्पणी जरूर है। यह कारोबार का मामला है। अखबारों में इनोवेटिव विज्ञापनों के नाम पर ऐसे विज्ञापनों की भरमार है। इनमें कभी-कभार इनोवेशन नजर आता है, पर जो बात सबसे ज्यादा दिखाई पड़ती है वह है विज्ञापनों को वहाँ जगह दिलाना जहाँ पहले वे नजर नहीं आते थे। भारतीय भाषाओं के कुछ अखबारों ने अब सम्पादकीय पेज पर विज्ञापन देने शुरू कर दिए हैं।

Wednesday, November 2, 2016

पाकिस्तानी उच्चायोग में जासूसी

 1 नवम्बर के डॉन में खबर थी कि पाकिस्तान सरकार सम्भवतः अपने चार राजनयिकों को वापस बुलाएगी। ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि जिस राजनयिक को भारत ने जासूसी के आरोप में वापस भेजा है उसने पुलिस से पूछताछ के दौरान कुछ नाम बताए हैं, जिन्हें वापस लेने पर भारत सरकार दबाव बना रही है। खबर यह भी है कि इन्हें वापस बुलाने के साथ-साथ पाकिस्तान भारत के कुछ और राजनयिकों को भारत वापस भेजेगी। इस प्रकार राजनयिकों का यह जवाबी संग्राम अब शुरू हुआ है। 3 नवम्बर के डॉन में भारतीय उच्चायोग के आठ सदस्यों को अंडरकवर जासूस बताया गया। उधर भारतीय मीडिया में खबरें थीं कि भारत ने पाकिस्तान के छह राजनयिकों को वापस उनके देश भेजा है। 

डॉन के अनुसार  
The government is considering pulling out from India four of its officers posted in Pakistan’s High Commission in New Delhi, days after Indian authorities declared one official persona non grata.

“This is under consideration. A final decision would be taken shortly,” a source at the Foreign Office said on Monday.

The names of the officers — commercial counsellor Syed Furrukh Habib and first secretaries Khadim Huss­ain, Mudassir Cheema and Shahid Iqbal — were made public after Indian officials released to media a recorded statement of a high commission staffer Mehm­ood Akhtar, who was expelled from India after being declared persona non grata.
डॉन में पढ़ें पूरी खबर

उधर आज भारत के अखबार डीएनए ने खबर दी है कि दूतावास में पाकिस्तान के कॉमर्शियल काउंसलर सैयद फर्रुख हबीब आईएसआई के एजेंट हैं। उनके अलावा भी दूतावास के कई कर्मचारी केवल जासूसी का काम कर रहे हैं।
डीएनए के अनुसार
The reverberations of the Pakistani spy ring saga continue to impact New Delhi and Islamabad. What has baffled intelligence agencies in India is that the person in-charge of India-Pakistan trade relations has turned out to be a top Inter-Services Intelligence (ISI) officer and chief of intelligence operations in India.

This came to light after the interrogation of Mehmood Akhtar last week. Akhtar, an ISI officer and Pakistani High Commission staffer, was part of the spy ring.
Intelligence officers said that the top ISI officer, Syed Furrukh Habib, was posted as Commercial Counsellor in the Pakistani High Commission. This is a big worry for India's intelligence officials as it shows that Pakistan has even made trade as a means to gather intelligence.
डीएनए में पढ़ें पूरी खबर

Tuesday, November 1, 2016

सिमी एनकाउंटर से जुड़े सवाल

रविवार और सोमवार के बीच यानी 30-31 अक्तूबर की आधी रात प्रतिबंधित संगठन सिमी (स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया) से जुड़े आठ युवक भोपाल के केन्द्रीय कारागार से भाग निकले। सरकारी जानकारी के अनुसार जेल की चारदीवारी को फांदने के लिए इन कैदियों ने चादरों का इस्तेमाल किया। जाते-जाते उन्होंने एक हैड कॉन्स्टेबल की हत्या भी कर दी। इन कैदियों के भागने की खबर सुबह भारतीय मीडिया में प्रसारित होने के कुछ देर बाद ही आठों के मारे जाने की खबर आई। यह खबर ज्यादा विस्मयकारी थी। इतनी तेजी से यह कार्रवाई किस तरह हुई, यह जानने की इच्छा मन में है। 
जितनी तेजी में एनकाउंटर की खबर आई उतनी तेजी से तमाम सवाल भी उठने लगे। देखते ही देखते कुछ वीडियो भी सोशल मीडिया में अपलोड हो गए। भोपाल के आईजी योगेश चौधरी के मुताबिक जेल से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ईंटखेड़ी गांव में इन आठों ‘आतंकियों’ को पुलिस मुठभेड़ में मार गिराया गया। पुलिस के मुताबिक इन कैदियों के पास हथियार मौजूद थे, जिनकी वजह से यह एनकाउंटर लगभग एक घंटे तक चला। कैदियों और पुलिस के बीच क्रॉस-फायरिंग में पुलिस के दो जवान भी घायल हुए हैं।
जो कैदी फरार हुए उनके नाम हैं : अमज़द, ज़ाकिर हुसैन सादिक़, मुहम्मद सालिक, मुजीब शेख, महबूब गुड्डू, मोहम्मद खालिद अहमद, अक़ील और मजीद। मध्य प्रदेश सरकार ने पुलिस की पीठ थपथपाई है,  साथ ही जेल से भागने की घटना की जांच कराने की घोषणा भी की है। फिलहाल लगता है कि यह मामला तूल पकड़ेगा। इसका राजनीतिक निहितार्थ जो भी हो, देश की पुलिस और न्याय-व्यवस्था से जुड़े सवाल अब उठेंगे। कोई आश्चर्य नहीं कि मामला सबसे ऊँची अदालत तक जाए। कांग्रेस इस मामले को राजनीतिक नजरिए से उठा रही है, पर यह केवल बीजेपी-कांग्रेस का मामला नहीं है। यह हमारी पुलिस व्यवस्था से जुड़ा मसला है। इस बात को नहीं भुलाना चाहिए कि एनकाउंटरों की यह शैली कांग्रेसी शासन में ही विकसित हुई है। यदि प्रशासन ने उसी वक्त पुलिस के खिलाफ कार्रवाई की होती तो यह इतनी नहीं बढ़ती। 

Monday, October 31, 2016

सपा के तम्बू में वर्चस्व का संग्राम

कुछ दिन पहले तक समाजवादी पार्टी पर वंशवाद का आरोप था। अब उसके भीतर प्रति-वंशवाद जन्म ले रहा है। बारह दूने आठ का यह नया पहाड़ा  वंशवाद का बाईप्रोडक्ट है। सवाल उत्तराधिकार का है। समझना यह होगा कि सन 2012 में जब मुलायम सिंह ने अखिलेश को अपना उत्तराधिकारी बनाया था तब वजह क्या थी और आज उन्हें अपने किए पर पछतावा क्यों है?

Sunday, October 30, 2016

बिहार के रास्ते पर यूपी की राजनीति?

क्या उत्तर प्रदेश बिहार के रास्ते जाएगा?

प्रमोद जोशी
वरिष्ठ पत्रकार, बीबीसी हिंदी डॉटकॉम के लिए

उत्तर प्रदेश के राजनीतिक आकाश पर जैसे शिकारी पक्षी मंडराने लगे हैं. चुनाव नज़दीक होने की वजह से यह लाज़िमी था. लेकिन समाजवादी पार्टी के घटनाक्रम ने इसे तेज़ कर दिया है. हर सुबह लगता है कि आज कुछ होने वाला है.

प्रदेश की राजनीति में इतने संशय हैं कि अनुमान लगा पाना मुश्किल है कि चुनाव बाद क्या होगा. कुछ समय पहले तक यहाँ की ज्यादातर पार्टियाँ चुनाव-पूर्व गठबंधनों की बात करने से बच रही थीं.

भारतीय जनता पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने दावा किया था कि वे अकेले चुनाव में उतरेंगी. लेकिन अब उत्तर प्रदेश अचानक बिहार की ओर देखने लगा है. पिछले साल बिहार में ही समाजवादी पार्टी ने 'महागठबंधन की आत्मा को ठेस' पहुँचाई थी. इसके बावजूद ऐसी चर्चा अब आम हो गई है.

बहरहाल, अब उत्तर प्रदेश में पार्टी संकट में फँसी है तो महागठबंधन की बातें फिर से होने लगीं हैं.
सवाल है कि क्या यह गठबंधन बनेगा? क्या यह कामयाब होगा?

सपा और बसपा के साथ कांग्रेस के तालमेल की बातें फिर से होने लगी हैं. इसके पीछे एक बड़ी वजह है 'सर्जिकल स्ट्राइक' के कारण बीजेपी का आक्रामक रुख.

उधर कांग्रेस की दिलचस्पी अपनी जीत से ज्यादा बीजेपी को रोकने में है, और सपा की दिलचस्पी अपने को बचाने में है. कांग्रेस, सपा, बसपा और बीजेपी सबका ध्यान मुस्लिम वोटरों पर है. बीजेपी का भी...

मुस्लिम वोट के ध्रुवीकरण से बीजेपी की प्रति-ध्रुवीकरण रणनीति बनती है. 'बीजेपी को रोकना है' यह नारा मुस्लिम मन को जीतने के लिए गढ़ा गया है. इसमें सारा ज़ोर 'बीजेपी' पर है.

बीबीसी हिन्दी डॉट कॉम पर पढ़ें पूरा लेख

वक्त के साथ रूप बदलती दीवाली!

प्रेम से बोलो, जय दीवाली!

जहां में यारो अजब तरह का है ये त्यौहार।
किसी ने नकद लिया और कोई करे उधार।। 
खिलौने, खीलों, बताशों का गर्म है बाज़ार
हरेक दुकान में चिरागों की हो रही है बहार।।
मिठाइयों की दुकानें लगा के हलवाई।
पुकारते हैं कह--लाला दीवाली है आई।।
बतासे ले कोई, बरफी किसी ने तुलवाई।
खिलौने वालों की उन से ज्यादा है बन आई।।

नज़ीर अकबराबादी ने ये पंक्तियाँ अठारहवीं सदी में कभी लिखी थीं. ये बताती हैं कि दीवाली आम त्यौहार नहीं था. यह हमारे सामाजिक दर्शन से जुड़ा पर्व था. भारत का शायद यह सबसे शानदार त्यौहार है. जो दरिद्रता के खिलाफ है. अंधेरे पर उजाले, दुष्चरित्रता पर सच्चरित्रता, अज्ञान पर ज्ञान की और निराशा पर आशा की जीत. यह सामाजिक नजरिया है, ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय.’ ‘अंधेरे से उजाले की ओर जाओ’ यह उपनिषद की आज्ञा है. यह एक पर्व नहीं है. कई पर्वों का समुच्चय है. हम इसे यम और नचिकेता की कथा के साथ भी जोड़ते हैं. नचिकेता की कथा सही बनाम गलत, ज्ञान बनाम अज्ञान, सच्चा धन बनाम क्षणिक धन आदि के बारे में बताती है. पर क्या हमारी दीवाली वही है, जो इसका विचार और दर्शन हैआसपास देखें तो आप पाएंगे कि आज सबसे गहरा अँधेरा और सबसे ज्यादा अंधेर है। आज आपको अपने समाज की सबसे ज्यादा मानसिक दरिद्रता दिखाई पड़ेगी। अविवेक, अज्ञान और नादानी का महासागर आज पछाड़ें मार रहा है।

Thursday, October 27, 2016

अंतरिक्ष के इस रहस्यमय सितारे पर नजर

ग्रीनबैंक टेलिस्कोप
नक्षत्र KIC 8462852, जिसे अनौपचारिक रूप से टैबीस स्टार कहा जा रहा है, इस वक्त अंतरिक्षविज्ञानियों की दिलचस्पी का विषय बना हुआ है। इसके असाधारण व्यवहार के कारण अनुमान लगाया जा रहा है कि यहाँ किसी अत्यधिक विकसित सभ्यता का निवास है, जो अंतरिक्ष की समस्त इंजीनियरी को समझती है या उसका निर्धारण करने में समर्थ है। दूसरी ओर अनुमान यह भी है कि इसकी चमक में आने वाली तेजी या कमी धूमकेतुओंं या किसी दूसरी प्राकृतिक परिघटना का परिणाम है, जिसे हमारे वैज्ञानिक अभी समझ नहीं पाए हैं।

वैज्ञानिक अभी इस बात पर सहमत नहीं हो पाए हैं कि धरती से 1,480 प्रकाश वर्ष दूर किसी बुद्धिमान प्राणी ने नक्षत्र की रोशनी को रोकने वाली कोई विशाल संरचना बना ली है। अलबत्ता अंतरिक्ष में बुद्धिमान प्राणी की खोज में लगी The Breakthrough Listen SETI (Search for Extraterrestrial Intelligence) परियोजना अपने सबसे ताकतवर रेडियो टेलिस्कोप इस काम में लगा रही है।

यह परियोजना रूसी उद्यमी यूरी मिल्नर और ब्रिटिश सैद्धांतिक भौतिकविज्ञानी स्टीफन हॉकिंग और फेसबुक के जन्मदाता मार्क जुकेनबर्ग का मिला-जुला प्रयास है। बुधवार 26 अक्तूबर से अमेरिका के पश्चिमी वर्जीनिया में लगे 100 मीटर के ग्रीन बैंक टेलिस्कोप (साथ का चित्र) के साथ वैज्ञानिकों की एक टीम ने इसके ऑब्जर्वेंशन का काम शुरू किया है। अगले दो महीने तक तीन-तीन रातें आठ-आठ घंटे टैबीस स्टार की गतिविधियों पर नजर रखने का काम किया जाएगा।

The Breakthrough Listen SETI कार्यक्रम के पास धरती का सबसे बड़ा टेलिस्कोप है। यह उपकरण बेहतर तरीके से इस परिघटना पर नजर रख सकता है। इस अध्ययन की खासियत है कि इस बार केवल एक सितारे पर नजर है।

http://www.seeker.com/alien-megastructure-tabbys-star-seti-intelligent-civilization-dyson-sp-2064947450.html

पूरा विवरण पढ़ें यहाँ
इससे पहले की मेरी यह पोस्ट भी पढ़ें

Wednesday, October 26, 2016

कश्मीर में ट्रैक-टू वार्ता

पिछले दो दिनों से खबरें हैं कि यशवंत सिन्हा के नेतृत्व में पाँच सदस्यों की एक टीम इन दिनों कश्मीर में अलगाववादियों के साथ बातचीत कर रही है। इस शिष्टमंडल ने कट्टरपंथी हुर्रियत नेता सैयद अली शाह गिलानी और मीरवाइज उमर फारूक से श्रीनगर में मुलाकात की। सिन्हा के नेतृत्व में शिष्टमंडल ने हैदरपोरा इलाका स्थित गिलानी के घर पर उनसे मुलाकात की। गिलानी के साथ बैठक से पहले सिन्हा ने संवाददाताओं को बताया कि वे यहां किसी शिष्टमंडल के रूप में नहीं आए। उन्होंने कहा, ‘हम लोग सद्भावना और मानवता के आधार पर यहां आए हैं। इसका लक्ष्य लोगों के दुख दर्द और कष्टों को साझा करना है। अगर हम ऐसा कर सके तो खुद को धन्य महसूस करेंगे।’ मीरवाइज उमर फारूक और मोहम्मद यासिन मलिक जैसे अन्य अलगाववादी नेताओं से मिलने के बारे में पूछे जाने पर सिन्हा ने कहा कि वे हर किसी से मिलने की कोशिश कर रहे हैं। शिष्टमंडल के राज्य में अलगाववादी नेताओं से मिलने पर सरकारी सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि न तो सरकार और न ही पार्टी (बीजेपी) का इससे कुछ लेना-देना है। यह उनका निजी दौरा है। गृहराज्य मंत्री किरण रिजीजू ने शिष्टमंडल के इस दौरे पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि कुछ भी अगर स्वेच्छा से किया गया हो तो उसे रोका नहीं जा सकता है। रिजीजू ने कहा कि इसके आगे मेरे पास बोलने के लिए कुछ भी नहीं है। वहीं, यूपीए शासनकाल में रक्षा मंत्री रहे एके एंटनी ने कहा कि प्रतिष्ठा का ख्याल रखे बिना सरकार को हर किसी से बातचीत करनी चाहिए। बातचीत से समस्या का समाधान तलाशिए। सरकार को कश्मीर के युवाओं के मिजाज को समझना होगा।

Monday, October 24, 2016

बादशाह अकबर के खिलाफ खड़े हैं 'सलीम' अखिलेश

मुलायम 'अकबर' के सामने 'सलीम' अखिलेश?
सलमान रावी
बीबीसी संवाददाता, दिल्ली

समाजवादी पार्टी में हालात कुछ मुग़लिया सल्तनत के उस दौर जैसे हैं जब अकबर हिन्दुस्तान के शहंशाह हुआ करते थे और सलीम को ख़ुद की पहचान के लिए बग़ावत करनी पड़ी थी.

राजनीतिक विश्लेषक समाजवादी पार्टी की बैठक के दौरान अखिलेश यादव के तेवर में बग़ावत की बू पाते हैं.
बैठक के दौरान पार्टी सर्वेसर्वा मुलायम सिंह यादव द्वारा पुत्र को सार्वजनिक फटकार, और अखिलेश यादव की चाचा शिवपाल यादव से हुई नोक झोंक से समझ साफ है कि समाजवादी पार्टी में सबकुछ ठीक नहीं है.

राजनीतिक विश्लेषक प्रमोद जोशी कहते हैं कि अखिलेश यादव का राजनीतिक भविष्य उनकी बग़ावत में ही है.

प्रमोद जोशी कहते हैं, "अखिलेश यादव की बग़ावत उसी तरह की है जैसी शहज़ादे सलीम ने अकबर के ख़िलाफ़ की थी. अगर वो झुक जाते हैं तो उनका राजनीतिक भविष्य ख़त्म हो जाएगा."

पूरा आलेख पढ़ें बीबीसी हिन्दी डॉट कॉम पर 

अंतरिक्ष से मिल रहे हैं संकेत


ब्रिटिश अख़बार इंडिपेंडेंट की खबर है कि दुनिया के अंतरिक्ष विज्ञानियों को अंतरिक्ष से संदेश मिल रहे हैं, जो सम्भव है कि एलियंस यानी दूसरे ग्रहों के प्राणियों के हों। अख़बार की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि ये संदेश अब काफी बड़े स्तर पर मिलने लगे हैं। अंतरिक्ष के एक खास हिस्से से मिल रहे इन संकेतों के विश्लेषण से लगता है कि इनके पीछे बुद्धिमान प्राणियों का हाथ है। और वे अपने अस्तित्व को प्रकट करना चाहते हैं।

यह नया अध्ययन तकरीबन उन 25 लाख नक्षत्रों में से 234 से प्राप्त संकेतों का है, जिनका पर्यवेक्षण वैज्ञानिक कर रहे हैं। इस विश्लेषण से पता लगता है कि इनमें से कुछ का व्यवहार असामान्य है। चूंकि उसके पीछे के कारणों को वैज्ञानिक स्पष्ट नहीं कर पा रहे हैं, इसलिए उनका अनुमान है कि ये संकेत एलियंस के हो सकते हैं। पर कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि सम्भव है हम नक्षत्र की चमक में आए असाधारण बदलावों के प्रकाृतिक कारणों को समझ नहीं पाए हैं। या हमारी जानकारी में अभी कमी हो। इसे किसी बुद्धिमान प्राणी के संकेत मान लेना जल्दबाजी होगी।

Sunday, October 23, 2016

रीता नहीं, राहुल की फिक्र कीजिए

रीता बहुगुणा जोशी के कांग्रेस से पलायन का निहितार्थ क्या है? एक विशेषज्ञ का कहना है कि इससे न तो भाजपा को फायदा होगा और न कांग्रेस को कोई नुकसान होगा। केवल बहुगुणा परिवार को नुकसान होगा। उनकी मान्यता है कि विजय बहुगुणा और रीता बहुगुणा का राजनीतिक प्रभाव बहुत ज्यादा नहीं है। यह प्रभाव है या नहीं इसका पता उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के चुनावों में लगेगा। मेरी समझ से फिलहाल इस परिघटना को राहुल गांधी के कमजोर होते नेतृत्व के संदर्भ में देखना चाहिए। पार्टी छोड़ने के बाद रीता बहुगुणा ने कहा, कांग्रेस को विचार करना चाहिए कि उसके बड़े-बड़े नेता नाराज़ क्यों हैं? क्या कमी है पार्टी में? क्या कांग्रेस की कार्यशैली में बदलाव आ गया है? यह बात केवल एक नेता की नहीं है। समय बताएगा कि कितने और नेता इस बात को कहने वाले हैं।

Wednesday, October 19, 2016

चीनी मीडिया : व्यापार असंतुलन पर भारत को भौंकने दो

चीन के सरकारी अंग्रेजी अखबार 'ग्लोबल टाइम्स' के कुछ लेखों ने भारत में पाठकों का ध्यान खींचा है। इस हफ्ते यह तीसरा लेख है जिसपर मेरा ध्यान गया है। इसके लेखक गौरव त्यागी हैं जो भारतीय मूल के हैं, जो चीन में ही रहते हैं। उनके बारे में मुझे ज्यादा जानकारी नहीं है, पर उनके लेख की टोन बताती है कि वे चीन को व्यापारिक परामर्श दे रहे हैं। इसका शीर्षक है 'चीनी कम्पनियों को भारत में निवेश करने के बजाय आंतरिक साधनों पर ध्यान देना चाहिए।'  यह  लेख 18 अक्तूबर को प्रकाशित हुआ है।इसमें 'भारतीय अधिकारियों को भौंकने दो' जैसे शब्द संदोह पैदा करते हैं। हैरत होती है कि इतना सतही किस्म का लेख इस तरह की भाषा के साथ चीन के राष्ट्रीय मीडिया में जगह बनाए। हो सकता है कि यह वास्तव में किसी भारतीय ने लिखा हो, पर मुझे संदेह है। इस लेख में गहराई नहीं है और सतही सी जानकारी या खामखयाली पर आधारित लगता है। फिर भी इसे पढ़िए। इससे यह जरूर समझ में आता है कि विदेशी पाठकों को सम्बोधित करने वाले चीन के सरकारी मीडिया का रुख क्या है और क्यों है। लेख के मुख्य अंशों का हिन्दी अनुवाद नीचे पेश हैः-

हाल में भारतीय मीडिया और सोशल मीडिया में चीनी उत्पादों के बॉयकॉट की बातें काफी प्रकाशित हुई हैं, पर मुझपर यकीन कीजिए मुझे भारतीय समझ से वाकिफ हूँ। यह सिर्फ लफ्फाजी है। कई वजह से भारतीय उत्पाद, चीनी माल से टक्कर नहीं ले सकते।

एक बात साफ है कि भारत इंफ्रास्ट्रक्चर के मामले में पिछड़ा है। पूरे देश को जोड़ने के लिए अब भी  सड़कों और राजमार्गों की जरूरत है। भारत बिजली और पानी की भारी किल्लत है। सबसे खराब यह कि देश के हरेक सरकारी विभाग में ऊपर से नीचे तक भ्रष्टाचार भरा पड़ा है। देश के राजनेता बजाय चीन से रिश्ते बेहतर करने के पश्चिमी देशों पर निहाल हो रहे हैं। अमेरिका किसी का दोस्त नहीं है। चूंकि अमेरिका को चीन के विकास और उसके वैश्विक शक्ति बनने से ईर्ष्या है, इसलिए वह भारत को इस्तेमाल कर रहा है।

चीनी लेखक के अनुसार मोदी ने भारत को सक्रिय किया

India uses BRICS to outmaneuver Pakistan
By Shi Lancha Source:Global Times Published: 2016/10/18 21:13:39

Over the weekend, the 8th BRICS summit was held in the Indian seaside resort state Goa. The leaders of Brazil, Russia, India, China and South Africa met to discuss issues ranging from regional security, to financial infrastructure, to global economic and financial governance. India, which assumed BRICS chairmanship on February 15 this year, hosted the summit with the core theme "building responsive, inclusive and collective solutions."

During the summit, India presented itself as a bright spot in a bloc whose other members have been buffeted by economic headwinds to varying degrees. With a GDP growth rate of 7.5 percent in 2015 against a rather gloomy global backdrop, India has replaced China as the world's fastest-growing large economy.

Only three years ago, India was still labeled as one of the "RIBS," whose feeble and volatile growth contrasted sharply to China's robust performance. Nowadays, the Russian and Brazilian economies have deteriorated into recession, South Africa struggles to avoid the same fate, and China's decades-long economic boom has geared down. But India finds confidence in talking about economic matters. After all, the setbacks undergone by its fellow countries made India's recent economic achievements shine even brighter in comparison.

Although India's domestic reforms have only made limited inroads in key areas such as land acquisition and labor regulation, an aspirant Modi equipped with newly gained confidence on India's growth prospects has clearly made the country more proactive. For India, this BRICS summit has been a wonderful platform to coordinate efforts in reforming current global economic and finance governance.

ग्लोबल टाइम्स : भारतीय बॉयकॉट से चीनी सामान पर फर्क नहीं पड़ा

India boycott hasn’t hurt China goods
By Zhen Bo Source:Global Times Published: 2016-10-13 19:28:39
 
Diwali, one of the most important Hindu festivals and one of the biggest shopping seasons in India, is coming at the end of October, but encouragement to boycott Chinese goods has been spreading in the last few days on Indian social media, and even a few Indian politicians are exaggerating facts.

Chinese products are often the victim when regional situations get tense, and this phenomenon has been existing for quite a few years.

There have been at least two prominent Indian boycotts of Chinese goods in the past few months.

The first happened in April. It was caused by dissatisfaction over China's stand on the issue of Maulana Masood Azhar, leader of the militant group Jaish-e-Mohammed active in Kashmir, who is accused of committing terrorist acts in India. The second was in July and because of China's lack of support for India's bid to join the Nuclear Suppliers Group.

Now Chinese goods are on the stage again due to the Kashmir issue.

विधि आयोग की प्रश्नावली

विधि आयोग ने समान सिविल कोड से जुड़े मामलों पर जो प्रश्ननावली जारी की है उसे यदि आप पढ़ना चाहते हैं तो वह यहाँ पेश है। इस प्रश्नावली को लेकर भी बहस शुरू हो गई है। यानी कि क्या यह प्रश्नावली खुद में पूर्वग्रही है? या क्या यह दूसरे जरूरी सवालों को नहीं उठा रही है? इस बहस को भी मैं पाठकों के सामने रखना चाहूँगा। पर उसके पहले इस प्रश्नावली को पढ़ें।







इस बहस को भी देखें
NDTV
 https://www.youtube.com/watch?time_continue=1192&v=jB4gArF8Iuk

https://www.youtube.com/watch?v=vYmQPdQx5_A

https://www.youtube.com/watch?v=arWMtHckv2E

ABP News
https://www.youtube.com/watch?v=3bH5mlWmlKU
https://www.youtube.com/watch?v=ewAcaCbhjmk