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Wednesday, September 1, 2021

तालिबान से भारत का सम्पर्क

शेर मोहम्मद स्तानिकज़ाई

अफगानिस्तान से अमेरिका की वापसी पूरी तरह से होने के साथ 31 अगस्त को दो खबरें और भारतीय मीडिया में थीं। पहली यह कि दोहा में भारतीय राजदूत और तालिबान के एक प्रतिनिधि की बातचीत हुई है और दूसरी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव संख्या 2593 में तालिबान से कहा गया कि भविष्य में अफगान जमीन का इस्तेमाल आतंकी गतिविधियों में नहीं होना चाहिए। इन तीनों खबरों को एकसाथ पढ़ने और उन्हें समझने की जरूरत है, क्योंकि निकट भविष्य में तीनों के निहितार्थ देखने को मिलेंगे।

अफगानिस्तान में सरकार बनने में हो रही देरी को लेकर भी कुछ पर्यवेक्षकों ने अटकलें लगाई हैं, पर इस बात को मान लेना चाहिए कि देर-सबेर सरकार बन जाएगी। ज्यादा बड़ा सवाल उस सरकार की नीतियों को लेकर है। वह अपने पुराने नजरिए पर कायम रहेगी या कुछ नया करेगी? 15 अगस्त को काबुल पर कब्जे के बाद तालिबान प्रतिनिधि ने जो वायदे दुनिया से किए हैं, क्या वे पूरे होंगे? और क्या वे वायदे तालिबान के काडर को पसंद हैं?  

तीन बातें

इसके बाद अब यह देखें कि नई सरकार के बारे में वैश्विक-राय क्या है, दूसरे भारत और अफगानिस्तान रिश्तों का भविष्य क्या है और तीसरे पाकिस्तान की भूमिका अफगानिस्तान में क्या होगी। इनके इर्द-गिर्द ही तमाम बातें हैं। फिलहाल हमारी दिलचस्पी इन तीन बातों में है। मंगलवार को संरा सुरक्षा परिषद में भारत की अध्यक्षता का अंतिम दिन था।

Tuesday, August 31, 2021

अफगानिस्तान पर सुरक्षा परिषद में महाशक्तियों के मतभेद उभर कर सामने आए

संरा सुरक्षा परिषद की बैठक में अध्यक्ष की कुर्सी पर भारत के विदेश सचिव हर्ष श्रृंगला

अफगानिस्तान से अमेरिका की वापसी पूरी तरह हो चुकी है और अब यह देश स्वतंत्र अफगान इस्लामिक अमीरात है। हालांकि यहाँ की सरकार भी पूरी तरह बनी नहीं है, पर मानकर चलना चाहिए कि जल्द बनेगी और यह देश अपने नागरिकों की हिफाजत, उनकी प्रगति और कल्याण के रास्ते जल्द से जल्द खोजेगा और विश्व-शांति में अपना योगदान देगा। अब कुछ बातें स्पष्ट होनी हैं, जिनका हमें इंतजार है। पहली यह कि इस व्यवस्था के बारे में वैश्विक-राय क्या है, दूसरे भारत और अफगानिस्तान रिश्तों का भविष्य क्या है और तीसरे पाकिस्तान की भूमिका अफगानिस्तान में क्या होगी। इनके इर्द-गिर्द ही तमाम बातें हैं।

जिस दिन अफगानिस्तान से अमेरिकी वापसी पूरी हुई है, उसी दिन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने एक प्रस्ताव पास किया है, जिसमें तालिबान को याद दिलाया गया है कि अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद पर लगाम लगाने के अपने वायदे पर उन्हें दृढ़ रहना होगा। मंगलवार को संरा सुरक्षा परिषद में भारत की अध्यक्षता का अंतिम दिन था। भारत की अध्यक्षता में पास हुआ प्रस्ताव 2593 भारत की चिंता को भी व्यक्त करता है। यह प्रस्ताव सर्वानुमति से पास नहीं हुआ है। इसके समर्थन में 15 में से 13 वोट पड़े। इन 13 में भारत का वोट भी शामिल है। विरोध में कोई मत नहीं पड़ा, पर चीन और रूस ने मतदान में भाग नहीं लिया।

इस अनुपस्थिति को असहमति भले ही न माना जाए, पर सहमति भी नहीं माना जाएगा। अफगानिस्तान को लेकर पाँच स्थायी सदस्यों के विचार एक नहीं हैं और भविष्य के लिए अच्छा संकेत नहीं है। दूसरे यह भी स्पष्ट है कि रूस और चीन के साथ भारत की सहमति नहीं है। सवाल है कि क्या है असहमति का बिन्दु? इसे सुरक्षा परिषद की बैठक में रूसी प्रतिनिधि के वक्तव्य में देखा जा सकता है। उन्होंने कहा कि इस प्रस्ताव के लेखक, यानी अमेरिका ने, अफगानिस्तान में आतंकवादियों को हमारे और उनके (अवर्स एंड देयर्स) के खानों में विभाजित किया है। इस प्रकार उसने तालिबान और उसके सहयोगी हक्कानी नेटवर्क को अलग-अलग खाँचों में रखा है। हक्कानी नेटवर्क पर ही अफगानिस्तान में अमेरिकी और भारतीय ठिकानों पर हमले करने का आरोप लगता रहा है।

Sunday, August 29, 2021

तालिबान के प्रति भारत के रुख में नरमी


अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर कब्जा करने के दो सप्ताह बाद ही तालिबान को लेकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का रुख बदलता दिखाई पड़ रहा है। सुरक्षा परिषद ने अफगानिस्तान मसले पर अपने ताजा बयान में आतंकी गतिविधियों से तालिबान का नाम हटा दिया है। काबुल पर कब्जे के एक दिन बाद यानी 16 अगस्त को सुप की तरफ से अफगानिस्तान को लेकर एक बयान जारी किया गया था, जिसमें तालिबान से अपील की गई थी कि वह अपने क्षेत्र में आतंकवाद का समर्थन न करे, मगर अब इसी बयान से तालिबान का नाम हटा दिया गया है। बावजूद इसके तालिबान सरकार को अमेरिका या दूसरे देशों की मान्यता देने की सम्भावना फौरन नजर नहीं आ रही है। ह्वाइट हाउस की प्रवक्ता जेन साकी का कहना है कि हमें अभी मान्यता देने की जल्दी नहीं है।

सुरक्षा परिषद में इस महीने का अध्यक्ष भारत है, जो पहली बार पूरे अध्यक्षता कर रहा है और इस बयान पर भारत के भी हस्ताक्षर हैं। भारत ने 26 अगस्त को काबुल एयरपोर्ट पर हुए आतंकी हमले की निंदा की है। इस आतंकी हमले में करीब 170 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी, जिनमें अमेरिका के 13 जवान भी शामिल थे। इस आतंकी हमले की जिम्मेदारी इस्लामिक स्टेट खुरासान ने ली थी।

काबुल हमले के एक दिन बाद 27 अगस्त को भारत के स्थायी प्रतिनिधि टीएस तिरुमूर्ति ने बतौर यूएनएससी अध्यक्ष परिषद की ओर से एक बयान जारी किया, जिसमें 16 अगस्त को लिखे गए एक पैराग्राफ को फिर से दोहराया गया। पर इसबार पैराग्राफ में लिखा था-‘सुरक्षा परिषद के सदस्यों ने अफगानिस्तान में आतंकवाद का मुकाबला करने के महत्व को फिर से व्यक्त किया, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि अफगानिस्तान के क्षेत्र का इस्तेमाल किसी भी देश को धमकी देने या हमला करने के लिए नहीं किया जाए। किसी भी अफगान समूह या व्यक्ति को किसी भी देश के क्षेत्र में सक्रिय आतंकवादियों का समर्थन नहीं करना चाहिए।'

यह पैराग्राफ इसलिए चौंकाने वाला है, क्योंकि इसमें तालिबान का नाम नहीं है। अलबत्ता काबुल पर तालिबान राज होने के बाद 16 अगस्त को यूएनएससी ने जो बयान जारी किया था, उसके पैराग्राफ में तालिबान का नाम था। 16 अगस्त का बयान कहता है, 'सुरक्षा परिषद के सदस्यों ने अफगानिस्तान में आतंकवाद का मुकाबला करने के महत्व का जिक्र किया, ताकि यह सुनिश्चित किया जाए कि अफगानिस्तान के क्षेत्र का इस्तेमाल किसी देश को धमकी देने या हमला करने के लिए नहीं किया जाना चाहिए और तालिबान और किसी अन्य अफगान समूह या व्यक्ति को किसी अन्य देश के क्षेत्र में सक्रिय आतंकवादियों का समर्थन नहीं करना चाहिए। यानी 27 को जो बदला हुआ पैराग्राफ था, उसमें से तालिबान शब्द को हटा लिया गया। इसका एक अर्थ यह है कि तालिबान को अब स्टेट एक्टर या वैधानिक राज्य के रूप में देखा जा रहा है।

संरा में भारत के पूर्व स्थायी प्रतिनिधि सैयद अकबरुद्दीन ने ट्वीट किया कि राजनय में एक पखवाड़ा लम्बा समय होता है। टी शब्द हट गया। अधिकारियों का कहना है कि यह बदलाव जमीनी स्थितियों को देखते हुए हुआ है। तालिबान ने अफगानिस्तान में फँसे लोगों को निकालने में सहायता की है। हालांकि भारत ने तालिबान के साथ वैसा ही सम्पर्क नहीं बनाया है, जैसा सुरक्षा परिषद के दूसरे सदस्यों का है, पर इस वक्तव्य पर दस्तखत करने से पता लगता है कि भारतीय दृष्टिकोण में बदलाव हुआ है।