Tuesday, March 31, 2020

क्या तालिबानी हौसले फिर बुलंद होंगे?


पिछली 29 फरवरी को दोहा में अमेरिका, अफ़ग़ान सरकार और तालिबान के बीच हुए क़तर दोहा में हुए समझौते में इतनी सावधानी बरती गई है कि उसे कहीं भी 'शांति समझौता' नहीं लिखा गया है। इसके बावजूद इसे दुनियाभर में शांति समझौता कहा जा रहा है। दूसरी तरफ पर्यवेक्षकों का मानना है कि अफ़ग़ानिस्तान अब एक नए अनिश्चित दौर में प्रवेश करने जा रहा है। अमेरिका की दिलचस्पी अपने भार को कम करने की जरूर है, पर उसे इस इलाके के भविष्य की चिंता है या नहीं कहना मुश्किल है।
फिलहाल इस समझौते का एकमात्र उद्देश्य अफ़ग़ानिस्तान में तैनात 12,000 अमेरिकी सैनिकों की वापसी तक सीमित नज़र आता है। यह सच है कि इस समझौते के लागू होने के बाद अमेरिका की सबसे लंबी लड़ाई का अंत हो जाएगा, पर क्या गारंटी है कि एक नई लड़ाई शुरू नहीं होगी? मध्ययुगीन मनोवृत्तियों को फिर से सिर उठाने का मौका नहीं मिलेगा? दोहा में धूमधाम से हुए समझौते ने तालिबान को वैधानिकता प्रदान की है। वे मान रहे हैं कि उनके मक़सद को पूरा करने का यह सबसे अच्छा मौक़ा है। वे इसे अपनी विजय मान रहे हैं।

Monday, March 30, 2020

पास-पड़ोस का पहला मददगार भारत


भले ही दुनिया राजनीतिक कारणों से एक-दूसरे की दुश्मन बनती हो, पर प्राकृतिक आपदाएं हमें जोड़ती हैं। ऐसा सुनामी के समय देखा गया, समुद्री तूफानों का यही अनुभव है और अब कोरोनावायरस का भी यही संदेश है। भारत इस आपदा का सामना कर रहा है, पर इसके विरुद्ध वैश्विक लड़ाई में भी बराबर का भागीदार है। इस सिलसिले में नवीनतम समाचार यह है कि भारत कोरोनावायरस के इलाज के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन के नेतृत्व में तैयार की जारी औषधि के विकास में भी भागीदार है।
इस सहयोग की शुरुआत अपने पास-पड़ोस से होती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 13 मार्च को सार्क देशों से अपील की थी कि हमें मिलकर काम करना चाहिए। इसकी पहल के रूप में उन्होंने शासनाध्यक्षों के बीच एक वीडियो कांफ्रेंस का सुझाव दिया। अचानक हुई इस पेशकश पर इस क्षेत्र के सभी देशों ने सकारात्मक प्रतिक्रिया दी थी, केवल पाकिस्तान की हिचक थी। उसकी ओर से फौरन कोई प्रतिक्रिया नहीं आई, पर बाद में कहा गया कि प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के स्वास्थ्य संबंधी विशेष सलाहकार डॉक्टर ज़फ़र मिर्ज़ा इसमें शामिल होंगे।
वीडियो कांफ्रेंस से शुरुआत
इस वीडियो कांफ्रेंस में नरेंद्र मोदी के अलावा श्रीलंका के राष्ट्रपति गौतबाया राजपक्षे, मालदीव के राष्ट्रपति इब्राहीम मोहम्मद सोलिह, नेपाल के प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली, भूटान के प्रधानमंत्री लोटे शेरिंग, बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना और अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी शामिल हुए। नेपाल के प्रधानमंत्री ने तो खराब स्वास्थ्य के बावजूद इसमें हिस्सा लिया। संकट अभी बना हुआ है, कोई यह बताने की स्थिति में नहीं है कि कब तक रहेगा, पर इतना कहा जा सकता है कि इस आपदा ने भारत की सकारात्मक भूमिका को रेखांकित जरूर किया है।

Sunday, March 29, 2020

इस त्रासदी का जिम्मेदार चीन


अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने विश्व स्वास्थ्य संगठन पर कोरोना वायरस को लेकर चीन की तरफदारी का आरोप लगाया है। उधर अमेरिकी सीनेटर  मार्को रूबियो और कांग्रेस सदस्य माइकल मैकॉल कहा कि डब्ल्यूएचओ के निदेशक टेड्रॉस एडेनॉम गैब्रेसस की निष्ठा और चीन के साथ उनके संबंधों को लेकर अतीत में भी बातें उठी हैं। एक और अमेरिकी सांसद ग्रेग स्टीव का कहना ही कि डब्ल्यूएचओ चीन का मुखपत्र बन गया है। ट्रंप ने कहा है कि इस महामारी पर नियंत्रण पाने के बाद डब्ल्यूएचओ और चीन दोनों को ही इसके नतीजों का सामना करना होगा। पर चीन इस बात को स्वीकार नहीं करता। उसके विदेश विभाग के प्रवक्ता झाओ लिजियन ने ट्विटर पर कुछ सामग्री पोस्ट की है, जिसके अनुसार अमेरिकी सेना इस वायरस की ईजाद की है।
अमेरिका में ही नहीं दुनिया के तमाम देशों में अब कोरोना को चीनी वायरस बताया जा रहा है। डब्लूएचओ के नियमों के अनुसार बीमारियों के नाम देशों के नाम पर नहीं रखे जाने चाहिए। खबरें हैं कि कोरोना मामले को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में उठाने की कोशिशें भी हो रही हैं, जिनका चीन ने विरोध किया है। इस सिलसिले में चीन ने भारत से भी सम्पर्क साधा है। चीनी विदेशमंत्री वांग यी ने पिछले सप्ताह भारत के विदेशमंत्री एस जयशंकर के साथ फोन पर बात की और राजनयिक समर्थन माँगा। भारत ने खुद को इस विवाद से फिलहाल अलग रखा है और केवल वायरस से लड़ने के लिए विश्व समुदाय के सहयोग की कामना की है, पर आने वाले समय में यह विवाद बढ़ेगा।

Friday, March 27, 2020

‘सोशल डिस्टेंसिंग’ यानी हमारी परीक्षा की घड़ी


कोरोना वायरस के बढ़ते खतरे के कारण देश में लॉकडाउन के साथ लोगों को सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने की सलाह भी दी गई है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि ये नियम मुझपर भी लागू होते हैं. बुधवार को प्रधानमंत्री आवास पर बुलाई गई केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में सभी मंत्री करीब एक-एक मीटर की दूरी पर बैठे. विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशा निर्देशों के अनुसार सोशल डिस्टेंसिंग यानी रोजमर्रा के कार्य-व्यवहार में हम एक-दूसरे से कम से कम एक मीटर या तीन फुट की दूसरी बनाकर रखें.
कैबिनेट बैठक के अलावा गुजरात की कुछ दुकानों की तस्वीरें भी सोशल मीडिया पर वायरल हुईं हैं, जिनमें दुकानदारों ने एक-एक मीटर की दूरी पर गोले बना दिए हैं. ग्राहकों से कहा गया है कि वे उनके भीतर खड़े रहें और जब उनसे आगे वाला बढ़े, तो उसकी जगह ले लें. हालांकि करीब एक अरब 30 करोड़ लोगों के देश में इस किस्म के अनुशासन को स्थापित कर पाना आसान नहीं है, पर जब उन्हें लगेगा कि जान पर बन आई है, तो वे इसे स्वीकार भी करेंगे.  

Sunday, March 22, 2020

कोरोना-युद्ध और राष्ट्रीय संकल्प


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ से किए गए रविवार के 'जनता कर्फ्यू' के आह्वान का देश और विदेश में बड़ी संख्या में लोगों ने समर्थन किया है। इस अपील को राष्ट्रीय ‘संकल्प और संयम’ के रूप में देखा जा रहा है। करीब-करीब ऐसी ही अपीलें महात्मा गांधी ने स्वतंत्रता आंदोलन के दौर में की थीं। गांधी के चरखा यज्ञ की सामाजिक भूमिका पर आपने ध्यान दिया है? देशभर के लाखों लोग जब चरखा चलाते थे, तब कपड़ा बनाने के लिए सूत तैयार होता था साथ ही करोड़ों लोगों की ऊर्जा एकाकार होकर राष्ट्रीय ऊर्जा में तब्दील होती थी। ऐसी ही प्रतीकात्मकता का इस्तेमाल लाल बहादुर शास्त्री ने ‘जय जवान, जय किसान’ के नारे के साथ किया था।  
यह एकता केवल संकटों का सामना करने के लिए ही नहीं चाहिए, बल्कि राष्ट्रीय निर्माण के लिए भी इसकी जरूरत है। स्वच्छ भारत और बेटी बचाओ जैसे अभियानों को राष्ट्रीय संकल्प के रूप में देखना चाहिए और रविवार के ‘जनता कर्फ्यू’ को भी। यह कार्यक्रम पूरे देश के संकल्प और मनोबल को प्रकट करेगा। प्रधानमंत्री के राष्ट्र के नाम संदेश के बाद ज्यादातर प्रतिक्रियाएं सकारात्मक रही हैं। इनमें शशि थरूर और पी चिदंबरम जैसे राजनेता, शेहला रशीद जैसी युवा नेता, सागरिका घोष, राजदीप सरदेसाई और ट्विंकल खन्ना जैसे पत्रकार और लेखक तथा शबाना आज़मी और महेश भट्ट जैसे सिनेकर्मी भी शामिल हैं, जो अक्सर मोदी के खिलाफ टिप्पणियाँ करते रहे हैं।

Thursday, March 19, 2020

सफलता के नए आकाश पर तेजस और सारस


मंगलवार 17 मार्च को स्वदेशी लड़ाकू विमान तेजस ने वायुसेना के बेड़े में शामिल होने के आखिरी पड़ाव को भी पार कर लिया. इस विमान के एफओसी मानक संस्करण एसपी-21 ने सफलता के साथ उड़ान भरी. अब इस वित्त वर्ष में एचएएल ऐसे 15 विमान और बनाएगा. इस सफलता के चार दिन पहले एचएएल और सीएसआईआर-नेशनल एयरोस्पेस लैबोरेटरीज़ ने सारस मार्क-2 विमान के डिजाइन, विकास, उत्पादन और मेंटीनेंस के एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. 19 सीटों वाले इस विमान को वायुसेना खरीदेगी. इसका इस्तेमाल नागरिक उड्डयन के क्षेत्र में भी होगा. साथ ही इसके निर्यात की संभावनाएं भी काफी अच्छी हैं.
ये दोनों विमान दो तरह की संभावनाओं बता रहे हैं. तेजस लड़ाकू विमानों के मामले में और सारस परिवहन विमानों की दिशा में पहला कदम है. दोनों अपनी श्रेणियों के हल्के विमान हैं, पर दोनों कार्यक्रमों के विस्तार की संभावनाएं हैं. हमारी एयरलाइंस बोइंग या एयरबस के विमानों के सहारे हैं, जबकि चीन ने अपना नागरिक उड्डयन विमान विकसित कर लिया है. उपरोक्त दोनों घटनाएं बढ़ते भारतीय आत्मविश्वास को व्यक्त करती हैं.
स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (सिपरी) ने हाल में ‘शस्त्रास्त्र के वैश्विक हस्तांतरण रुझान-2019’ रिपोर्ट जारी की है, जिसके अनुसार भारत अब भी दुनिया में हथियारों के दूसरा सबसे बड़ा आयातक है. गत 9 मार्च को जारी सिपरी के आँकड़ों के अनुसार सऊदी अरब इस सूची में सबसे ऊपर है. एक समय में चीन और भारत इस सूची में सबसे ऊपर रह चुके हैं. चीन ने इस दौरान अपने औद्योगिक विस्तार पर काफी बड़े स्तर पर निवेश किया और अब वह पाँचवें नम्बर का शस्त्र निर्यातक देश है.
पिछले कुछ वर्षों से भारत ने इस दिशा में सोचना शुरू किया है और उसके परिणाम भी सामने आ रहे हैं. सिपरी की इस रिपोर्ट को गौर से पढ़ें तो पाएंगे कि भारत का आयात भी कम होता जा रहा है और निर्यात में वृद्धि हो रही है. विश्व के शीर्ष 25 निर्यातक देशों में भारत का नाम भी शामिल हो गया है. इनमें भारत का स्थान 23वाँ है. इससे हालांकि हमारी तस्वीर बड़े शस्त्र निर्यातक की नहीं बनती, पर आने वाले समय में देश के रक्षा उद्योग की तस्वीर जरूर उभर कर आती है. सिपरी के आँकड़े बता रहे हैं कि सन 2015 के बाद से भारतीय रक्षा आयात में 32 फीसदी की कमी आई है. इसका अर्थ है कि ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम को सफलता मिल रही है.
भारत सरकार अब खुलकर शस्त्र निर्यात के क्षेत्र में उतरने का निश्चय कर चुकी है. इसके लिए प्रशासनिक प्रक्रियाओं में बदलाव भी किया गया है. हाल में रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि हमने सन 2025 तक स्वदेशी एयरोस्पेस, रक्षा-उपकरणों और सेवाओं के कारोबार को 26 अरब डॉलर के स्तर तक पहुँचाने का निश्चय कर रखा है. इसमें से पाँच अरब डॉलर के शस्त्रास्त्र का हम निर्यात करेंगे. रक्षा उद्योग पर 10 अरब डॉलर के अतिरिक्त निवेश की व्यवस्था की जा रही है, जिससे 20 से 30 लाख लोगों को रोजगार भी मिलेगा.
वैश्विक शस्त्र बाजार में विक्रेता के रूप में भारत की भागीदारी इस समय केवल 0.2 प्रतिशत की है. भारत ने म्यांमार, श्रीलंका और मॉरिशस को मुख्यतः हथियार बेचे हैं. अब वियतनाम और फिलीपींस के अलावा अफ्रीकी देशों के साथ कुछ बड़े सौदे संभव हैं. भारत सरकार अगले पाँच वर्षों में कुछ मित्र देशों की क्रेडिट लाइन बढ़ाने जा रही है. हाल में रक्षामंत्री ने बताया कि भारत 18 देशों को बुलेटप्रूफ जैकेटों की सप्लाई कर रहा है. देश के रक्षा अनुसंधान संगठन ने बुलेटप्रूफ जैकेटों की बेहतर तकनीक विकसित की है. निजी क्षेत्र की 15 कंपनियों को इस कार्य के लिए लाइसेंस दिए गए हैं. मोटे तौर पर डीआरडीओ ने कई प्रकार की तकनीकों के करीब 900 लाइसेंस निजी कम्पनियों को दिए हैं. इस तकनीकी हस्तांतरण से ये कंपनियाँ स्वदेशी माँग को पूरा करने के साथ-साथ निर्यात आदेशों को भी पूरा करेंगी.
हथियारों का सौदा सरल नहीं होता. हथियार बेचने के पहले सम्बद्ध देश के साथ अपने रिश्तों को भी देखना होता है. सरकार ने हाल में संसद को बताया कि भारत 42 देशों को रक्षा-उपकरणों की आपूर्ति कर रहा है. इस दिशा में कुछ तकनीक भारत में ही विकसित की जा रही है और कुछ के लिए हमें विकसित देशों की मदद लेनी होगी. अमेरिका की लॉकहीड मार्टिन और बोइंग जैसी कम्पनियाँ अंतरराष्ट्रीय बाजार के लिए भारत में कारखाने लगा चुकी हैं. फ्रांस और रूस की दिलचस्पी भारत में है.
हाल में खबर थी कि बाजार खोजने की दिशा में एचएएल मलेशिया, वियतनाम, इंडोनेशिया और श्रीलंका जैसे देशों में अपने लॉजिस्टिक बेस बनाने पर विचार कर रहा है. इसके पीछे मूलतः तेजस विमान के लिए वैश्विक सम्भावनाएं तलाश करने की कामना है. भारत की दिलचस्पी तेजस, अटैक हेलिकॉप्टर रुद्र और एडवांस्ड लाइट हेलिकॉप्टर ध्रुव के लिए दक्षिण पूर्व एशिया, पश्चिम एशिया और उत्तरी अफ्रीका में बाजार की तलाश करने में है. हमारी ब्रह्मोस मिसाइलों, हवाई रक्षा प्रणाली आकाश और हवा से हवा में मार करने वाली अस्त्र मिसाइल पर भी दुनिया की नजरें हैं.
पिछले साल मलेशिया ने तेजस में दिलचस्पी दिखाई थी और उसका विशेष हवाई प्रदर्शन भी मलेशिया के आकाश पर हुआ था. हाल में आर्मेनिया ने भारत से चार स्वाति वैपन लोकेटिंग रेडार खरीदने का निश्चय किया है. इस सौदे का उत्साहवर्धक पहलू यह है कि आर्मेनिया की सेना ने रूस और पोलैंड के रेडारों से साथ स्वाति का भी परीक्षण किया था और उसे बेहतर पाया. आर्मेनियाई की दिलचस्पी भारत के मल्टी बैरल रॉकेट सिस्टम पिनाक में भी है. भारतीय डॉकयार्ड अब मित्र देशों के लिए युद्धपोत भी बना रहे हैं.

Sunday, March 15, 2020

अपनी बखिया उधेड़ती कांग्रेस


ज्योतिरादित्य सिंधिया के पलायन पर शुरुआती चुप्पी रखने के बाद गुरुवार को राहुल गांधी ने कहा, ज्योतिरादित्य भले ने अलग विचारधारा का दामन थाम लिया है, पर वास्तविकता यह है कि वहां उनको न सम्मान मिलेगा न संतोष मिलेगा। वे जल्द ही इसे समझ भी जाएंगे। राहुल ने एक और बात कही कि यह विचारधारा की लड़ाई है। सिंधिया को अपने राजनीतिक भविष्य का डर लग गया। इसीलिए उन्होंने अपनी विचारधारा को जेब में रख लिया और आरएसएस के साथ चले गए।
राहुल गांधी की इस बात से कुछ निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं। पहला यह कि सिंधिया को कांग्रेस में कुछ मिलने वाला था नहीं। आने वाले खराब समय को देखते हुए उन्होंने पार्टी छोड़ दी। दूसरा यह कि कांग्रेस पार्टी विचारधारा की लड़ाई लड़ रही है। तीसरी बात उन्होंने यह कही कि बीजेपी में (भी) उन्हें सम्मान और संतोष नहीं मिलेगा। राहुल के इस बयान के अगले रोज ही भोपाल में ज्योतिरादित्य ने कहा, मैंने अतिथि विद्वानों की बात उठाई, मंदसौर में किसानों के ऊपर केस वापस लेने की बात उठाई। मैंने कहा कि अगर इनके मुद्दे पूरे नहीं हुए तो मुझे सड़क पर उतरना होगा, तो मुझसे कहा गया उतर जाओ। जब सिंधिया परिवार को ललकारा जाता है तो वह चुप नहीं रहता।

Friday, March 13, 2020

राजनीति में बड़ा मोड़ साबित होगा सिंधिया प्रकरण


ज्योतिरादित्य सिंधिया का कांग्रेस पार्टी को छोड़कर जाना पहली नजर में एक सामान्य राजनीतिक परिघटना लगती है. इसके पहले भी नेता पार्टियाँ छोड़ते रहे हैं. पर इसका कांग्रेस और बीजेपी दोनों के लिए विशेष महत्व है. वे कांग्रेस के महत्वपूर्ण चेहरों में शामिल रहे और अब बीजेपी की अगली कतार में होंगे. वे देश के महत्वपूर्ण भावी नेताओं में से एक हैं. यह एक नेता का पलायन भर नहीं है. पार्टी के भीतर एक अरसे से सुलग रही आग इस बहाने से भड़क सकती है. उसके भीतर के झगड़े अब खुलकर सामने आ सकते हैं. 
दूसरी तरफ बीजेपी के अंतर्विरोध भी खुलेंगे. ग्वालियर क्षेत्र में उसकी राजनीति केंद्र-बिंदु राजमहल का विरोध था. अब उसे सिंधिया परिवार के महत्व को स्थापित करना होगा. इतना ही नहीं मध्य प्रदेश के स्थानीय क्षत्रप एक नए शक्तिशाली नेता के साथ कैसे सामंजस्य बैठाएंगे, यह भी देखना होगा. एक अंतर है. बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व, कांग्रेस के नेतृत्व की तुलना में ज्यादा ताकतवर है. सवाल है, कितना और कब तक? 
अब सवाल केवल मध्य प्रदेश की सरकार का नहीं है, बल्कि कांग्रेस की समूची सियासत और उसके नेतृत्व का है. यह कहना जल्दबाजी होगी कि सत्ता के लोभ में सिंधिया पार्टी छोड़कर भागे हैं. वास्तव में वे पार्टी में खुद को अपमानित महसूस कर रहे थे. यह प्रकरण इस बात को भी रेखांकित कर रहा है कि कुछ और युवा नेता भी ऐसा ही महसूस कर रहे हैं. इस स्तर के नेता को इस कदर हाशिए पर डालकर नहीं चला जा सकता था.
लोकसभा के लगातार दूसरे चुनाव में भारी पराजय से पीड़ित कांग्रेस जब इतिहास के सबसे बड़े संकट का सामना कर रही थी, इतने बड़े नेता का साथ छोड़ना बड़ा हादसा है. यह पलायन बता रहा है कि पार्टी के भीतर बैठे असंतोष को दूर नहीं किया गया, तो ऐसा ही कुछ और भी हो सकता है. अपनी इस दुर्दशा पर पार्टी अब चिंतन नहीं करेगी, तो कब करेगी?  वह नेतृत्व के सवाल को ही तय नहीं कर पाई है और एक अंतरिम व्यवस्था करके बैठी है.  

Thursday, March 12, 2020

राजनीतिक भँवर में घिरी कांग्रेस


ज्योतिरादित्य सिंधिया के हटने के बाद कांग्रेस के सामने दो बड़े सवाल हैं। एक, पहले से ही जर्जर नेतृत्व की साख को फिर से स्थापित कैसे होगी और दूसरा पार्टी के युवा नेताओं को भागने से कैसे रोका जाएगा? हताशा बढ़ रही है। उत्तर भारत के तीन और महत्वपूर्ण नेता पार्टी छोड़ने की फिराक में हैं। बार-बार मिलती विफलता और मध्य प्रदेश के ड्रामे ने कमर तोड़ दी। ज्योतिरादित्य के साथ 20 से ज्यादा विधायकों ने पार्टी छोड़ी है। राजनीतिक भँवर में घिरी कांग्रेस को यह जबर्दस्त धक्का और चेतावनी है। इस परिघटना का डोमिनो प्रभाव होगा। उधर बैकफुट पर नजर आ रही बीजेपी को मध्य भारत में फिर से पैर जमाने का मौका मिल गया है।
मध्य प्रदेश में सरकार बनाने के अलावा भाजपा राज्यसभा की एक अतिरिक्त सीट झटकने में भी कामयाब हो सकती है। राजनीतिक दृष्टि से केंद्र में युवा और प्रभावशाली मंत्री के रूप में ज्योतिरादित्य के प्रवेश का रास्ता खुला है। प्रभावशाली व्यक्तित्व के स्वामी सिंधिया अच्छे वक्ता हैं और समझदार राजनेता। पन्द्रह महीने पहले मध्य प्रदेश और राजस्थान ने कांग्रेस के पुनरोदय की उम्मीदें जगाई थीं, पर अब दोनों राज्य नकारात्मक संदेश भेज रहे हैं। पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व पर सवालिया निशान हैं। इस परिघटना ने कुछ और युवा नेताओं के पलायन की भूमिका तैयार कर दी है। ज्यादातर ऐसे नेता राहुल गांधी के करीबी हैं, जो किसी न किसी वजह से अब नाराज हैं।

Sunday, March 8, 2020

संसदीय मर्यादा को बचाओ


गुरुवार को कांग्रेस के सात लोकसभा सदस्यों के निलंबन के बाद संसदीय मर्यादा को लेकर बहस एकबार फिर से शुरू हुई है। सातों सदस्यों को सदन का अनादर करने और ‘घोर कदाचार' के मामले में सत्र की शेष अवधि के लिए निलंबित किया गया है। इस निलंबन को कांग्रेस ने बदले की भावना से उठाया गया कदम करार दिया और दावा किया,यह फैसला लोकसभा अध्यक्ष का नहीं, बल्कि सरकार का है। जबकि पीठासीन सभापति मीनाक्षी लेखी ने कहा कि कांग्रेस सदस्यों ने अध्यक्षीय पीठ से बलपूर्वक कागज छीने और उछाले। ऐसा दुर्भाग्यपूर्ण आचरण संसदीय इतिहास में संभवतः पहली बार हुआ है।

Thursday, March 5, 2020

मोदी का ट्वीट और उससे उपजी एक बहस


सोशल मीडिया की ताकत, उसकी सकारात्मक भूमिका और साथ ही उसके नकारात्मक निहितार्थों पर इस हफ्ते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक ट्वीट ने अच्छी रोशनी डाली. हाल में दिल्ली के दंगों को लेकर सोशल मीडिया पर कड़वी, कठोर और हृदय विदारक टिप्पणियों की बाढ़ आई हुई थी. ऐसे में प्रधानमंत्री  के एक ट्वीट ने सबको चौंका दिया. उन्होंने लिखा, 'इस रविवार को सोशल मीडिया अकाउंट फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब छोड़ने की सोच रहा हूं.' उनके इस छोटे से संदेश ने सबको स्तब्ध कर दिया. क्या मोदी सोशल मीडिया को लेकर उदास हैं?   क्या वे जनता से संवाद का यह दरवाजा भी बंद करने जा रहे हैं? या बात कुछ और है?
इस ट्वीट के एक दिन बाद ही प्रधानमंत्री ने अपने आशय को स्पष्ट कर दिया, पर एक दिन में कई तरह की सद्भावनाएं और दुर्भावनाएं बाहर आ गईं. जब प्रधानमंत्री ने अपना मंतव्य स्पष्ट कर दिया है, तब भी जो टिप्पणियाँ आ रही हैं उनमें सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह के दृष्टिकोण शामिल हैं. उनके समर्थक हतप्रभ थे और उनके विरोधियों ने तंज कसने शुरू कर दिए. इनमें राहुल गांधी से लेकर कन्हैया कुमार तक शामिल थे. कुछ लोगों ने अटकलें लगाईं कि कहीं मोदी अपना मीडिया प्लेटफॉर्म लांच करने तो नहीं जा रहे हैं? क्या ऐसा तो नहीं कि अब उनकी जगह अमित शाह जनता को संबोधित करेंगे? 

Monday, March 2, 2020

किसका दंगा, किसकी साजिश?


शुक्रवार को सुप्रीम के एक पीठ ने उत्तराखंड हाईकोर्ट में वकीलों की हड़ताल से जुड़े एक मामले में टिप्पणी की कि संविधान विरोध और असंतोष व्यक्त करने का अधिकार सबको देता है, पर यह अधिकार दूसरे नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन नहीं कतर सकता। हालांकि इस टिप्पणी का दिल्ली की हिंसा से सीधा रिश्ता नहीं है, पर प्रकारांतर से है। पिछले ढाई महीने से एक सड़क रोककर शाहीनबाग का आंदोलन चल रहा है। इस आंदोलन की भावना को लेकर अलग बहस है, पर इसे चलाने वालों के अधिकार को लेकर किसी को आपत्ति नहीं है। आखिरकार यह हमारे उस लोकतंत्र की ताकत है, जिसकी बुनियाद में आंदोलनों का लंबा इतिहास है।
महात्मा गांधी ने इन आंदोलनों का संचालन किया और चौरीचौरा की तरह जब भी मर्यादा का उल्लंघन हुआ, उन्होंने आंदोलन वापस ले लिया। सवाल है कि क्या आधुनिक राजनीति उन नैतिक मूल्यों के साथ खड़ी है? इन दंगों ने दिल्ली को दहला कर रख दिया है। एक से एक अमानवीय क्रूर-कृत्यों की कहानियाँ सामने आ रही हैं। लंबे समय से सामाजिक जीवन में घुलता जा रहा जहर बाहर निकलने को आतुर था, और वह निकला। स्थानीय कारणों ने उसे भड़कने में मदद की। मस्जिद पर हमले हुए और स्कूल भी जलाए गए। कई तरह की पुरानी रंजिशों को भुनाया गया। निशाना लगाकर दुकानें फूँकी गईं, गाड़ियाँ जलाई गईं। यह सब अनायास नहीं हुआ। क्रूरता की कहानियाँ इतनी भयानक हैं कि उन्हें सुनकर किसी का भी दिल दहल जाएगा।