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Saturday, December 3, 2022

केरल के विझिंजम बंदरगाह की परियोजना के कारण बढ़ा सामुदायिक विद्वेष


केरल में बन रहे देश के सबसे बड़े बंदरगाह अडानी पोर्ट को लेकर विवाद पैदा हो गया है। ऐसे विवाद बंदरगाहों, कारखानों, नाभिकीय बिजलीघरों, बाँधों, राजमार्गों और ऐसे ही दूसरे कार्यक्रमों को लेकर होते रहे हैं, पर यह विवाद एक अलग कारण से चर्चित हो रहा है। कारण है इसे लेकर दो प्रकार के आंदोलनों का शुरू होना। एक आंदोलन इसके विरोध में है और दूसरा इसके समर्थन में। दोनों आंदोलनों के पीछे सांप्रदायिक आधार है।

7500 करोड़ रुपये के विझिंजम इंटरनेशनल सीपोर्ट लिमिटेड प्रोजेक्ट जिसे अडानी पोर्ट के नाम से जाना जाता है, गत 16 अगस्त से संकट से जूझ रहा है और विरोध के कारण परियोजना का काम रोक दिया गया है। पिछले हफ्ते शनिवार को बंदरगाह के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन हिंसक हो गया। आंदोलनकारियों ने एक पुलिस स्टेशन पर हमला करके वहां तोडफोड़ की। इससे पहले पुलिस ने उन प्रदर्शनकारियों को गिरफ़्तार किया था, जिन्होंने ग्रेनाइट ला रहे ट्रकों का रास्ता रोका था। इससे नाराज़ प्रदर्शनकारियों ने पुलिस स्टेशन पर हमला कर दिया।

राज्य के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन का कहना है, यह सरकार के खिलाफ़ प्रदर्शन नहीं है, बल्कि राज्य के विकास को रोकने की कोशिश है। उनके मंसूबों को कामयाब नहीं होने दिया जाएगा। दूसरी तरफ इसके विरोधी मानते हैं कि बंदरगाह बनने से न केवल आसपास के, बल्कि तिरुवनंतपुरम से लेकर कोल्लम तक पूरे तट पर मछुआरों की आजीविका को नुकसान पहुंचेगा। इसका सांप्रदायिक रूप इसलिए उभरा क्योंकि तटवर्ती मछुआरे लैटिन कैथलिक चर्च के सदस्य हैं और चर्च उनका नेतृत्व कर रहा है। वे

इस परियोजना के तहत ऐसा निर्माण किया जाएगा, जिससे भारतीय तट पर बड़े मालवाहक जहाज़ आ सकेंगे। अभी छोटे भारतीय जहाज़ों के लिए भी कोलंबो, सिंगापुर या दुबई के बंदरगाह इस्तेमाल करने पड़ते हैं और आयात निर्यात के लिए वहाँ सामग्री का लदान होता है।

केरल सरकार की कंपनी वीआईएसएल के प्रबंध निदेशक के गोपालकृष्णन ने बीबीसी हिंदी को बताया, हम हर 20-फ़ुट के कंटेनर के लिए 80 अमेरिकी डॉलर का भुगतान करते हैं क्योंकि हम भारत में कहीं भी बड़ा जहाज़ (मदर शिप) पार्क नहीं कर सकते। इससे सात दिनों का नुकसान तो होता ही है साथ-साथ बहुत पैसों की भी बरबादी होती है। यह छोटी रकम नहीं है। 2016-17 के आंकड़ों के मुताबिक हम अकेले इस काम के लिए 1,000 करोड़ रुपये का भुगतान करते हैं। इसके अलावा हम माल ढुलाई पर 3,000-4,000 करोड़ रुपये खर्च करते हैं। कोविड के बाद ये सभी शुल्क चार से पांच गुना बढ़ गए हैं। 20-फुट के कंटेनर में (जिसे टीईयू यानी ट्वेंटी इक्विपमेंट यूनिट कहते हैं) लगभग 24 टन माल लदता है। मदर शिप में 10,000 से 15,000 टीईयू तक भेजा जा सकता है।

भारतीय राजनीति की वैचारिक-विसंगतियाँ


केरल में अडानी पोर्ट द्वारा विकसित की जा रही विझिंजम अंतरराष्ट्रीय बंदरगाह परियोजना के खिलाफ लैटिन कैथलिक चर्च के नेतृत्व में स्थानीय मछुआरों का आंदोलन भारतीय राजनीति की एक विसंगति की ओर इशारा कर रहा है। लैटिन कैथलिक चर्च के आंदोलन के विरोध में सीपीएम और बीजेपी कार्यकर्ता एक साथ आ गए हैं। यह एक रोचक परिस्थिति है। ऐसा ही इन दिनों पश्चिम बंगाल के ग्रामीण इलाकों में स्थानीय निकाय में देखने को मिल रहा है। पिछले दिनों नंदकुमार इलाके में हुए कोऑपरेटिव चुनाव में सीपीएम और बीजेपी ने मिलकर तृणमूल के प्रत्याशियों को परास्त कर दिया था। यह चुनाव पार्टी आधार पर नहीं था, जिससे सीपीएम को यह कहने का मौका मिला है कि निचले स्तर पर क्या हो रहा है, हम कह नहीं सकते। अलबत्ता यह स्पष्ट है कि निचले स्तर पर वैचारिक टकराव वैसा नहीं है, जैसा ऊँचे स्तर पर है। 

भारत-जोड़ो यात्रा के महाराष्ट्र में प्रवेश के दौरान राहुल गांधी के सावरकर से जुड़े बयान को लेकर जो विवाद खड़ा हुआ है, वह विरोधी दलों की एकता के सिलसिले में एक महत्वपूर्ण तथ्य को रेखांकित कर रहा है। भारतीय जनता पार्टी के विरोध में अनेक राजनीतिक दल एक-दूसरे के करीब आना तो चाहते हैं, पर सबके अपने हित भी हैं, जो उन्हें करीब आने से रोकते हैं। इन अंतर्विरोधों के पीछे ऐतिहासिक परिस्थितियाँ और इन दलों के सामाजिक आधार भी हैं।

सबसे बड़ी बात यह है कि बड़े स्तर ज़मीनी स्तर पर राजनीतिक कार्यकर्ता विचारधारा के नहीं, निजी हितों के आधार पर काम करते हैं। कुछ लोग बेशक विचारधारा को महत्व देते हैं, पर सब पर यह बात लागू नहीं होती है। दल-बदल कानून के कड़े उपबंधों के बावजूद कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और पूर्वांचल के कुछ राज्यों में हुए सत्ता-परिवर्तनों का क्या संदेश है?

राहुल गांधी के वक्तव्य के संदर्भ में शिवसेना के वरिष्ठ नेता संजय राउत ने शुक्रवार 18 नवंबर को कहा कि राहुल गांधी को सावरकर पर टिप्पणी करने की कोई वजह नहीं थी। इससे महाविकास आघाड़ी (एमवीए) में दरार पड़ सकती है, क्योंकि हम वीर सावरकर को आदर्श मानते हैं। इतिहास को कुरेदने के बजाय राहुल को नया इतिहास रचना चाहिए। उनके इस बयान के बाद कांग्रेस के जयराम रमेश के साथ उनकी विमर्श भी हुआ, ताकि इस प्रकरण की क्षतिपूर्ति की जा सके।