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Thursday, August 2, 2018

असम के सवाल पर संयम की जरूरत

असम में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) को लेकर तीन तरह की प्रतिक्रियाएं हैं. इनमें दो प्रतिक्रियाएं राजनीतिक हैं. तीसरी इस समस्या के समाधान को लेकर चिंतित नागरिकों की है. हालांकि गृहमंत्री राजनाथ सिंह और असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल  ने स्पष्ट किया है कि जिन 40 लाख लोगों के नाम इस सूची में नहीं हैं, उन्हें चिंतित होने की जरूरत नहीं है, पर राजनीतिक स्तर पर हो रही बयानबाजी के कारण बेवजह का तनाव फैल रहा है. यह सब 2019 के चुनाव की पृष्ठपीठिका है. इससे ज़ाहिर यह हो रहा है कि राष्ट्रीय महत्व के सवालों पर भी राजनीति कितने निचले स्तर पर जा सकती है. अब तक की आधिकारिक स्थिति यह है कि सूची में नाम नहीं होने के कारण किसी को विदेशी नागरिक या घुसपैठिया नहीं माना जाएगा. सम्भव है कि आने वाले समय में कुछ नाम अलग हो जाएं, तब हम क्या करेंगे, इसपर विचार करना चाहिए. दिक्कत इस मसले के राजनीतिकरण के कारण खड़ी हो रही है. आग में में घी डालने का काम अमित शाह और ममता बनर्जी दोनों ने किया है. 
अभी तक किसी भी स्तर पर यह तय नहीं हुआ है कि असम में कितने अवैध नागरिक हैं. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट के निर्देशन में चल रही है. मंगलवार को अदालत ने एनआरसी से बाहर रह गए 40 लाख से ज्यादा लोगों से कहा है कि उन्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है. अदालत ने केंद्र को निर्देश दिया है इन लोगों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होनी चाहिए. बाहर रह गए लोगों की आपत्तियां निष्पक्ष रूप से दर्ज करें और इसके लिए मानक परिचालन प्रक्रिया (एसओपी) का पालन किया जाना चाहिए. अदालत के सामने 16 अगस्त तक एसओपी की रूपरेखा पेश कर दी जाएगी. सांविधानिक दायरे में और मानवीय प्रश्नों को सामने रखकर ही अंततः कोई फैसला होगा.