Saturday, February 29, 2020

राजनीतिक कर्म की कमजोरी का नतीजा है दिल्ली की हिंसा


दिल्ली के फसाद का पहला संदेश है कि राजनीतिक दलों के सरोकार बहुत संकीर्ण हैं और वे फौरी लाभ उठाने से आगे सोच नहीं पाते हैं। वे जनता से कट रहे हैं और ट्विटर के सहारे जग जीतना चाहते हैं। सन 2014 के लोकसभा चुनाव के पहले मुजफ्फरनगर दंगों ने चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। उन दंगों का असर अबतक कम हो जाना चाहिए था, पर किसी न किसी वजह से वह बदस्तूर है और गाहे-बगाहे सिर उठाता है। अब दिल्ली में सिर उठाया है। बताते हैं कि फसादी पश्चिमी उत्तर प्रदेश से आए थे, जो अपना काम करके फौरन भाग गए।
फसाद को लेकर कई तरह की थ्योरियाँ सामने आ रही हैं। इसमें पूरी तरह से नहीं, तो आंशिक रूप से पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सामाजिक उथल-पुथल का भी हाथ है। सवाल यह भी है कि ट्रंप की भारत यात्रा के दौरान फसाद भड़कने के पीछे क्या कोई राजनीतिक साजिश है? तमाम सवाल अभी आएंगे। भारत की राजनीति को अपनी राजधानी से उठे इन सवालों के जवाब देने चाहिए।

Thursday, February 27, 2020

दिल्ली की हिंसा: पहले सौहार्द फिर बाकी बातें


दिल्ली की हिंसा को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शांति की अपील की है. अपील ही नहीं नेताओं की जिम्मेदारी बनती है कि वे इस इलाके में जाकर जनता के विश्वास को कायम करें. शनिवार से जारी हिंसा के कारण मरने वालों की संख्या 20 हो चुकी है. इनमें एक पुलिस हैड कांस्टेबल शामिल है. दिल्ली पुलिस के एक डीसीपी गंभीर रूप से घायल हुए हैं. कहा जा रहा है कि दिल्ली में 1984 के दंगों के बाद इतने बड़े स्तर पर हिंसा हुई है. यह हिंसा ऐसे मौके पर हुई है, जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत के दौरे पर आए हुए थे और एक दिन वे दिल्ली में भी रहे.
हालांकि हिंसा पर काफी हद तक काबू पा लिया गया है, पर उसके साथ कई तरह के सवाल उठे हैं. क्या पुलिस के खुफिया सूत्रों को इसका अनुमान नहीं था? क्या प्रशासनिक मशीनरी के सक्रिय होने में देरी हुई? सवाल यह भी है कि आंदोलन चलाने वालों को क्या इस बात का अनुमान नहीं था कि उनकी सक्रियता के विरोध में भी समाज के एक तबके के भीतर प्रतिक्रिया जन्म ले रही है? यह हिंसा नागरिकता कानून के विरोध में खड़े हुए आंदोलन की परिणति है. आंदोलन चलाने वालों को अपनी बात कहने का पूरा अधिकार है, पर उसकी भी सीमा रेखा होनी चाहिए.

Wednesday, February 26, 2020

अमेरिका से रिश्तों की नई ऊँचाई


अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दौरे के बाद भारत-अमेरिका संबंध एक नई ऊँचाई पर पहुँचे हैं। इन रिश्तों का असर दूर तक और देर तक देखने को मिलेगा। बेशक राजनयिक संबंध इंस्टेंट कॉफी की तरह नहीं होते कि किसी एक यात्रा से रिश्तों में नाटकीय बदलाव आ जाए, पर ऐसी यात्राएं मील के पत्थर का काम जरूर करती हैं। दोनों देशों ने मंगलवार को तीन समझौतों पर हस्ताक्षर किए। उम्मीद है आने वाले वर्षों में ऐसे तमाम समझौते और होंगे। इस यात्रा से यह निष्कर्ष जरूर निकाला जा सकता है कि आने वाले वर्षों में यह गठबंधन क्रमशः मजबूत होता जाएगा।
ट्रंप की यात्रा के पहले दिन अहमदाबाद और आगरा में ये रिश्ते सांस्कृतिक धरातल पर थे और दिल्ली में दूसरे दिन के कार्यक्रमों में इनका राजनयिक महत्व खुलकर सामने आया। दोनों नेताओं की संयुक्त प्रेस वार्ता में ट्रंप ने घोषणा की कि अमेरिका ने तीन अरब डॉलर के रक्षा समझौतों पर मुहर लगाई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बताया कि ट्रेड डील को लेकर दोनों देशों के बीच बातचीत जारी रखने पर सहमति बनी है। इसके अलावा पेट्रोलियम और नाभिकीय ऊर्जा से जुड़े तथा अंतरिक्ष अनुसंधान और स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी कुछ समझौते हुए हैं। अमेरिका भारत को 5-जी से भी आगे की टेली-तकनीक से जोड़ना चाहता है।

Monday, February 24, 2020

अफगान समझौते की पृष्ठभूमि में ट्रंप की यात्रा का महत्व


अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की इस सप्ताह होने वाली भारत-यात्रा काफी हद तक केवल चाक्षुष (ऑप्टिकल) महत्व है। चुनाव के साल में ट्रंप अपने देशवासियों को दिखाना चाहते हैं कि मैं देश के बाहर कितना लोकप्रिय हूँ। उनके स्वागत की जैसी व्यवस्था अहमदाबाद में की गई है, वह भी यही बताती है। दोनों नेताओं का यह अब तक का सबसे बड़ा मेगा शो होगा। अमेरिका में हुए 'हाउडी मोदी' कार्यक्रम में जहां 50 हजार लोग शामिल हुए थे वहीं अहमदाबाद में लाखों का दावा किया जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ ट्रंप वहाँ मोटेरा क्रिकेट स्टेडियम का उद्घाटन भी करेंगे, जो दुनिया का सबसे बड़ा क्रिकेट स्टेडियम है। अहमदाबाद हवाई अड्डे से साबरमती आश्रम तक 10 किलोमीटर तक के मार्ग पर रोड शो होगा।
इस स्वागत-प्रदर्शन से हटकर भी भारत और अमेरिका के रिश्तों के संदर्भ में इस यात्रा का महत्व है। आमतौर पर ट्रंप द्विपक्षीय यात्राओं पर नहीं जाते। उनकी दिलचस्पी या तो बहुपक्षीय शिखर सम्मेलनों में होती है या ऐसी द्विपक्षीय बैठकों में, जिनमें किसी समस्या बड़े समाधान को हासिल करने की कोशिश हो। पिछले साल के गणतंत्र दिवस पर भारत आने का प्रस्ताव ठुकरा कर वे भारत को हमें एक राजनयिक झटका लगा चुके हैं। बहरहाल नाटकीयता अपनी जगह है, दोनों देशों के रिश्तों का महत्व है। ऐसे मौके पर जब अमेरिका ने तालिबान के साथ समझौता करके अफगानिस्तान से अपनी सेना हटाने का फैसला कर लिया है, यह यात्रा बेहद महत्वपूर्ण हो गई है।

Sunday, February 23, 2020

ट्रंप-यात्रा का राजनयिक महत्व


अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की इस हफ्ते हो रही भारत-यात्रा का पहली नजर में विशेष राजनीतिक-आर्थिक महत्व नजर नहीं आ रहा है, क्योंकि आधिकारिक रूप से कहा गया है कि दोनों देशों के बीच बहु-प्रतीक्षित व्यापार समझौते पर दस्तखत अभी नहीं होंगे, बल्कि इस साल हो रहे राष्ट्रपति चुनाव के बाद होंगे। अहमदाबाद और आगरा की यात्रा का कार्यक्रम जिस प्रकार से तैयार किया गया है, उससे लगता है कि यह सैर-सपाटे वाली यात्रा ज्यादा है। ट्रंप चाहते हैं कि इसका जमकर प्रचार किया जाए। चुनाव के साल में वे दिखाना चाहते हैं कि मैं देश के बाहर कितना लोकप्रिय हूँ। 
बावजूद इसके यात्रा के राजनयिक महत्व को कम नहीं किया जा सकता। अंततः यह अमेरिकी राष्ट्रपति की ‘स्टैंड एलोन’ यात्रा है। आमतौर पर ट्रंप द्विपक्षीय यात्राओं पर नहीं जाते। उनके साथ वाणिज्य मंत्री बिलबर रॉस, ऊर्जा मंत्री डैन ब्रूले, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रॉबर्ट सी ओ’ब्रायन और ह्वाइट हाउस चीफ ऑफ स्टाफ मिक मलवेनी भी आ रहे हैं। वे वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल, पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल से मुलाकात करेंगे। कुछ समझौते तो होंगे ही, जिनमें आंतरिक सुरक्षा, आतंकवाद के खिलाफ साझा मुहिम, ऊर्जा सुरक्षा और रक्षा तकनीक से जुड़े मसले शामिल हैं।

Wednesday, February 19, 2020

सेना में नारी-शक्ति की बड़ी विजय


करीब दो दशक की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद थलसेना में महिलाओं को बराबरी का हक मिलने का रास्ता साफ हो गया है. सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक अहम फैसले में कहा कि उन सभी महिला अफसरों को तीन महीने के अंदर सेना में स्थायी कमीशन दिया जाए, जो इस विकल्प को चुनना चाहती हैं. इसका लाभ सेना की 10 शाखाओं में काम कर रही महिलाओं को मिलेगा. अदालत ने केंद्र की उस दलील को निराशाजनक बताया, जिसमें महिलाओं को कमांड पोस्टिंग न देने के पीछे शारीरिक क्षमताओं और सामाजिक मानदंडों का हवाला दिया गया था.
अभी तक सेना में 14 साल तक शॉर्ट सर्विस कमीशन (एसएससी) में सेवा दे चुके पुरुष अफसरों को ही स्थायी कमीशन का विकल्प मिल रहा था, महिलाओं को यह हासिल नहीं था. वायुसेना और नौसेना में महिला अफसरों को पहले से स्थायी कमीशन मिल रहा है. यह केस पहली बार सन 2003 में दिल्ली हाईकोर्ट में दाखिल किया गया था और 2010 में हाईकोर्ट ने महिलाओं के पक्ष में फैसला सुनाया था, पर उस आदेश का पालन नहीं किया गया और उसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी.

Sunday, February 16, 2020

‘आप’ की जीत पर कांग्रेस की कैसी खुशी?


दिल्ली में आम आदमी पार्टी की भारी जीत के बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम ने ट्वीट किया, 'आप की जीत हुई, बेवकूफ बनाने तथा फेंकने वालों की हार। दिल्ली के लोग, जो भारत के सभी हिस्सों से हैं, ने बीजेपी के ध्रुवीकरण, विभाजनकारी और खतरनाक एजेंडे को हराया है। मैं दिल्ली के लोगों को सलाम करता हूं जिन्होंने 2021 और 2022 में अन्य राज्यों के लिए, जहां चुनाव होंगे मिसाल पेश की है।' इस ट्वीट के निहितार्थ को समझने के पहले कांग्रेस प्रवक्ता और पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की पुत्री शर्मिष्ठा मुखर्जी के दो ट्वीट पर भी ध्यान देना चाहिए।
चिदंबरम के ट्वीट के पहले उन्होंने ट्वीट किया, ''हम फिर से एक भी सीट नहीं जीत पाए. आत्ममंथन बहुत हो गया अब एक्शन लेने की ज़रूरत है। शीर्ष के नेताओं ने फ़ैसले लेने में बहुत देरी की। हमारे पास कोई रणनीति नहीं थी और न ही एकता थी। कार्यकर्ताओं में निराशा थी और ज़मीन से कोई जुड़ाव नहीं था। कांग्रेस पार्टी के संगठन का हिस्सा होने के नाते मेरी भी ज़िम्मेदारी है।''

Saturday, February 15, 2020

केजरीवाल की चतुर रणनीति


दिल्ली के चुनाव परिणामों ने आम आदमी पार्टी को एकबार फिर से सत्तानशीन कर दिया है, साथ ही भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस को आत्ममंथन का एक मौका दिया है। इसके अलावा इन परिणामों का एक और संदेश है। वह है शहरी वोटर की महत्वपूर्ण होती भूमिका। बीजेपी और कांग्रेस के अलावा उसमें आप के लिए भी कुछ संदेश छिपे हैं। यों तो आप और बीजेपी दोनों सफलता क दाव कर सकती हैं, पर यह केजरीवाल की चतुर रणनीति की जीत है।  
बेशक आप की सरकार लगातार तीसरी बार बनेगी और केजरीवाल मुख्यमंत्री बनेंगे, पर उसकी सीटें कम हुई हैं और वोट प्रतिशत भी कुछ घटा है। ऐसा तब हुआ है, जब कांग्रेस का काफी वोट आप को ट्रांसफर हुआ। बीजेपी की सीटों और वोट प्रतिशत दोनों में वृद्धि हुई है, पर वह आप को अपदस्थ करने में विफल हुई है। सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस का हुआ है, जो वोट प्रतिशत के आधार पर इतिहास के सबसे निचले स्तर पर आ गई है। कुछ पर्यवेक्षक मानते हैं कि कांग्रेस ने बीजेपी को हराने के लिए जानबूझकर खुद को मुकाबले से अलग कर लिया। ऐसा है, तो यह आत्मघाती सोच है।

Thursday, February 13, 2020

दिल्ली चुनाव का राजनीतिक संदेश


दिल्ली विधानसभा चुनाव परिणाम आने के एक दिन पहले आम आदमी पार्टी के सोशल मीडिया सेल की एक कार्यकर्ता ने ट्वीट किया, जिसका भावार्थ था कि अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली में जो शुरुआत की है, उसपर दूसरे राज्यों ने भी चलना शुरू कर दिया है। इस ट्वीट को अरविंद केजरीवाल ने रिट्वीट किया और अपनी टिप्पणी लगाई जिसका आशय था कि दिल्ली ने सस्ती बिजली ने राष्ट्रीय राजनीतिक विमर्श को दिशा दी है और साबित किया है कि इससे वोट भी मिलते हैं।
इस ट्वीट श्रृंखला की शुरुआत इस खबर के साथ हुई थी कि केजरीवाल के फॉर्मूले से प्रभावित होकर मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने महाराष्ट्र में सस्ती बिजली देने का कार्यक्रम बनाया है। दिल्ली में फिर से भारी विजय के बाद आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता फिर से कहने लगे हैं कि हमें राष्ट्रीय राजनीति में फिर से प्रवेश करना चाहिए। पार्टी की प्रवक्ता प्रीति शर्मा मेनन ने कहा है कि हम आने वाले समय में महाराष्ट्र के सभी चुनाव लड़ेंगे। सन 2022 में बृहन्मुम्बई महानगरपालिका के चुनाव हैं।

Wednesday, February 12, 2020

राष्ट्रीय राजनीति को बदलेंगे दिल्ली के परिणाम


दिल्ली के चुनाव परिणाम के अनेक संकेत हैं, पर सबसे बड़ा संदेश है शहरी गरीब वोटर की महत्वपूर्ण होती भूमिका. मोटे तौर पर इन परिणामों में बीजेपी, कांग्रेस और आप तीनों के लिए कुछ संदेश छिपे हैं. आप और बीजेपी दोनों अपनी सफलता का दावा कर सकती हैं. बेशक आप की सरकार लगातार तीसरी बार बनेगी और केजरीवाल मुख्यमंत्री बनेंगे, पर उसकी सीटें कम हुई हैं और वोट प्रतिशत भी घटा है. ऐसा तब हुआ है, जब कांग्रेस का काफी वोट आप को ट्रांसफर हुआ.
बीजेपी की सीटों और वोट प्रतिशत दोनों में वृद्धि हुई है, पर वह आप को अपदस्थ करने में विफल हुई है. सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस का हुआ है, जो वोट प्रतिशत के आधार पर इतिहास के सबसे निचले स्तर पर आ गई है. बहरहाल इतना तय है कि ये परिणाम आने वाले समय में राष्ट्रीय राजनीति की धारा को बदलेंगे जरूर.

केजरीवाल की गुगली से भ्रमित भाजपा

केजरीवाल की चतुर रणनीति, लोकसभा चुनाव परिणामों से आत्म मुग्ध भारतीय जनता पार्टी की अंतिम क्षणों में हड़बड़ी और सदा की भांति कांग्रेस की आत्मघाती राजनीति, जिसे इस बात पर संतोष होगा कि बीजेपी भी तो हारी। इस चुनाव ने आम आदमी पार्टी को फिर से सत्तानशीन कर दिया है, साथ ही भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस को आत्ममंथन का मौका दिया है।

इन परिणामों का एक बड़ा संदेश है कि अब आप शहरी गरीब वोटर पर भी ध्यान दें। बीजेपी की लोकसभा चुनाव में भारी विजय के पीछे पुलवामा वगैरह के अलावा ग्रामीण गरीबों के कल्याण की गई उसकी योजनाएं भी थीं। पर वे योजनाएं ग्राम केंद्रित थीं। अब शहरों पर भी ध्यान देना होगा। अगले एक दशक में ग्रामीण आबादी का भारी पलायन शहरों की ओर होगा या बड़े गाँव शहरों की शक्ल लेंगे। दिल्ली में मुफ्त बिजली-पानी का जादू सबने देख लिया है।

Sunday, February 9, 2020

क्या बताने वाले हैं दिल्ली के परिणाम?


दिल्ली विधानसभा चुनाव का शोर-शराबा खत्म हो चुका है, अब परिणाम का इंतजार है। पहली उत्सुकता परिणामों को लेकर ही है। किसकी जीत होगी और किसकी हार? एक्ज़िट पोल बता रहे हैं कि परिणाम कमोबेश 2015 जैसे होंगे, शायद बीजेपी कुछ सीटें बढ़ाने में कामयाब होगी। चुनाव की घोषणा के पहले से कहा जा रहा था कि आम आदमी पार्टी की बढ़त है, पर अंतिम क्षणों में खबरें आईं कि परिणाम आश्चर्यजनक होंगे। वे उतने एकतरफा नहीं होंगे, जितने समझे जा रहे हैं। यानी कि भारतीय जनता पार्टी भी मुकाबले में है। उधर कांग्रेस पार्टी सायास या अनायास इस मुकाबले से बाहर नजर आ रही है। वह मुकाबले में क्यों नहीं है?
तमाम सवालों के जवाब इन परिणामों में छिपे हैं, पर ज्यादा बड़ा सवाल है कि क्या नागरिकता कानून के कारण साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण हुआ है? क्या 2024 के लोकसभा चुनाव का यह प्रस्थान-बिंदु है? दिल्ली पूरी तरह राज्य भी नहीं है। राष्ट्रीय राजनीति में उसकी कोई महत्वपूर्ण भूमिका नहीं है, फिर भी पिछले कुछ वर्षों से किसी न किसी वजह से दिल्ली की राजनीति राष्ट्रीय चर्चा में रहती है। इसका एक बड़ा कारण सन 2011 का अन्ना आंदोलन है, जिसने भ्रष्टाचार को राष्ट्रीय राजनीति के केंद्र में खड़ा कर दिया था। उसकी परिणति आम आदमी पार्टी के रूप में एक राजनीतिक दल में हुई, जिसे 2013 के चुनाव में पहले आंशिक सफलता मिली और फिर 2015 में भारी। इन दोनों परिघटनाओं के बीच आम आदमी पार्टी और उसकी राजनीति के अंतर्विरोध सामने आते चले गए।

Sunday, February 2, 2020

निराशा दूर करने की कोशिश


अर्थव्यवस्था में सुस्ती आने और गाँवों से लेकर शहरों तक फैली निराशा के बीच वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने बड़ी घोषणाएं करके बताने की कोशिश की है कि सरकार देश की आर्थिक समस्याओं का समाधान करने की पुरजोर कोशिश कर रही है. इस बजट में उन्होंने कोई सेक्टर नहीं छोड़ा. उन्होंने इंफ्रास्ट्रक्चर और कृषि में निवेश घोषणाएं की हैं, साथ ही आय के नए तरीके भी खोजने का प्रयास किया है. मध्य वर्ग और ग्रामीण उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति बढ़ाने के नए तरीके खोजे गए हैं, ताकि वे खर्च करें और उपभोक्ता वस्तुओं का माँग बढ़े. करदाताओं और कम्पनियों को परेशान न किया जाए, इसके लिए कम्पनी कानून में बदलाव होगा, वहीं टैक्स-पेयर चार्टर बनाने की घोषणा भी की गई है.
सरकार ने धनार्जन को उचित मानते हुए कारोबारियों को संतुष्ट करने की कोशिश की है. खर्च बढ़ाने के बावजूद सरकार ने अगले वित्तवर्ष में राजस्व घाटे को जीडीपी के 3.8 फीसदी तक रखने का वायदा किया है. यह वायदा पूरा होगा या नहीं, यह अगले साल ही पता लगेगा. अलबत्ता सरकार पूरे हौसले के साथ मैदान में उतरी है. वित्तमंत्री ने जो बड़ी घोषणाएं की हैं, उनमें जीवन बीमा निगम और रेलवे के आंशिक निजीकरण से जुड़े फैसले हैं. आयकर और कम्पनी कर ढाँचे में व्यापक सुधार और स्टार्टअप्स को बढ़ावा देने की घोषणा की गई है. जीएसटी के और सरलीकरण का वायदा है. सूक्ष्म, लघु और मझोले उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए पाँच करोड़ तक के कारोबारियों को लेखा परीक्षा से छूट देने की घोषणा की है.

पुरज़ोर इरादों का बजट


पहली नजर में निर्मला सीतारमण का बजट अर्थव्यवस्था की जड़ता और निराशा को दूर करने का प्रयास करता नजर आता है। इसमें जीडीपी की सुस्ती तोड़ने के सभी फॉर्मूलों को एकसाथ लागू करने की कोशिश की गई है। इसमें उपभोक्ता की क्रय शक्ति को बढ़ाने, बाजार में उपलब्ध की माँग बढ़ाने, कारोबारियों को निवेश बढ़ाने और आयात तथा निर्यात दोनों की माँग बढ़ाने का प्रयास है। सरकार चाहती है कि मेक इन इंडिया के साथ-साथ असेम्बल इन इंडिया की अवधारणा को अपना संबल बनाया जाए। विदेशी माल खरीदें और मूल्य-वर्धन कर उसका निर्यात करें। यह उम्मीदों भरा बजट है, फिर भी सवाल अपनी जगह है कि तब शेयर बाजार ने डुबकी क्यों लगाई? शायद शेयर बाजार की दिलचस्पी रियलिटी और विनिर्माण सेक्टर के सिलसिले में बड़ी घोषणाओं तक सीमित थी।
बजट का सकारात्मक प्रभाव होगा, तो सोमवार के बाद शेयर बाजार में भी बदलाव नजर आने लगेगा। बजट को दो नजरियों से देखना चाहिए। एक, सामान्य आर्थिक गतिविधियों और नीतियों के संदर्भ में और दूसरे अर्थव्यवस्था के दीर्घकालीन स्वास्थ्य को पुष्ट करने में इसके योगदान के नजरिए से। छह महीनों से देश में आर्थिक संवृद्धि को लेकर बहस है। पिछली दो तिमाहियों में जीडीपी के आंकड़ों में तेज गिरावट है। अब इस बजट में अगले साल जीडीपी की निवल (नॉमिनल) संवृद्धि 10 फीसदी होने का अनुमान है। आर्थिक समीक्षा में सकल संवृद्धि 6 से 6.5 फीसदी होने का अनुमान बताया गया है। वापसी हुई, तो मतलब होगा कि सरकार नैया को मँझधार से बाहर निकालने में कामयाब हुई है।