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Friday, January 29, 2021

मुंशी सदासुखलाल और उनका योगदान

 

जॉन गिलक्राइस्ट, हिन्दी-उर्दू के भेद के सूत्रधार 
जब सन 1800 में फोर्ट विलियम कालेज (कलकत्ता) के अध्यापक जॉन गिलक्राइस्ट ने देशी भाषा की गद्य पुस्तकें तैयार कराने की व्यवस्था की, तब उन्होंने उर्दू और हिन्दी दोनों के लिए अलग-अलग प्रबंध किया। फोर्ट विलियम कॉलेज से जुड़े हिन्दी लेखकों से संभवतः कहा गया था कि वे ऐसी भाषा लिखें, जिसमें फारसी के शब्द नहीं हों। मुंशी सदासुखलाल 'नियाज' (1746-1824) का नाम उन चार प्रारंभिक गद्य लेखकों में शामिल है, जिन्हें नई शिक्षा से जुड़ी किताबें लिखने का काम मिला। पर उन्होंने गिलक्राइस्ट के निर्देश पर नहीं स्वतः प्रेरणा से लिखा था। बुनियादी तौर पर वे फारसी और उर्दू में लिखते थे। उन्होंने खड़ी बोली के उस रूप में लिखना शुरू किया, जिसे उन्होंने खुद भाखा बताया। संस्कृत के तत्सम शब्दों का प्रयोग करके उन्होंने इस भाखा के जिस रूप को पेश किया, उसमें खड़ी बोली के भावी साहित्यिक रूप का आभास मिलता है। उन्होंने आगरा से बुद्धि प्रकाश नामक पत्र निकाल, जिसमें उनकी भाषा के नमूने खोजे जा सकते हैं। मुंशी सदासुखलाल के संपादन में यह पत्र पत्रकारिता की दृष्टि से ही नहीं, अपितु भाषा व शैली की दृष्टि से भी ख़ास स्थान रखता है। रामचंद्र शुक्ल ने इस पत्र की भाषा की प्रशंसा करते हुए लिखा है कि "बुद्धि प्रकाश की भाषा उस समय की भाषा को देखते हुए बहुत अच्छी होती थी।"

दिल्ली निवासी मुंशी सदासुखलाल 1793 के आसपास कंपनी सरकार की नौकरी में चुनार के तहसीलदार थे। बाद में नौकरी छोड़कर प्रयाग निवासी हो गए और अपना समय कथा वार्ता एवं हरिचर्चा में व्यतीत करने लगे। उन्होंने श्रीमद्भागवद् का अनुवाद 'सुखसागर' नाम से किया। अलबत्ता इस ग्रंथ की कोई प्रति उपलब्ध नहीं हैं। शायद वह पुस्तक अधूरी रही। उन्होंने 'मुतख़बुत्तवारीख' में अपना जीवन-वृत्त लिखा है।

Thursday, January 28, 2021

लल्लू लाल का गद्य और प्रेमसागर

 

आगरा निवासी लल्लू लाल की नियुक्ति 1800 में फोर्ट विलियम कॉलेज में ’भाखा मुंशी’ के पद पर हिंदी-ग्रंथ रचना के लिए हुई थी। ’काजम अली जवां’ और ’मजहर अली विला’ इनके दो सहायक थे। इनकी महत्त्वपूर्ण रचनाएँ आमतौर पर संस्कृत या ब्रजभाषा से खड़ी बोली में अनुवाद हैं। 1. सिंहासन बत्तीसी, 2. बैताल पचीसी (इसकी भाषा को रेख्ता कहा गया), 3. शकुंतला नाटक, 4. प्रेमसागर या नागरी दशम, 5. राजनीति (ब्रजभाषा में,1809), 6. सभा विलास, 7. माधव विलास, 8. लाल चंद्रिका नाम से बिहारी-सतसई की टीका।

लल्लू लाल के बारे में कुछ और बातें

इन्होंने संस्कृत प्रेस की स्थापना (कलकत्ता, फिर आगरा में) की थी।

वे उर्दू को ’यामिनी भाषा’ कहते थे। प्रेमसागर की रचना करते वक्त इन्होंने यामिनी भाषा छोड़ने की ओर संकेत किया था।

लल्लूलाल ने ’बजुवान-इ-रेख्ता’ शब्द का प्रयोग ’लताइफ-ए-हिंदी’ के लिए किया था।

इनकी राजनीति (1802) शीर्षक कृति हितोपदेश की कहानियों से संबंधित ब्रजभाषा गद्य में अनूदित रचना है।’लताइफ-ए-हिंदी’ खङीबोली, ब्रज और हिंदुस्तानी की 100 लघु कथाओं का संग्रह है।

लल्लू लाल रचित प्रेमसागर का  नीचे दिया गया अंश केवल उस गद्य से परिचित कराने के लिए है, जो उन्नीसवीं सदी के पूर्वार्ध में शक्ल ले रहा था। फोर्ट विलियम कॉलेज दौर के चार लेखकों से पहले भी खड़ी बोली के गद्य का विवरण मिलता है। इस बार मैंने काफी छोटा अंश लिया है। उसे पढ़ने के पहले इन चारों लेखकों के गद्य की झलक देखने से भाषा का स्वरूप समझ में आएगा। मेरी दिलचस्पी हिन्दी-उर्दू के विकास में ज्यादा है। दोनों में किस प्रकार की एकता है और क्या फर्क है। इसमें उत्तर भारत के सांप्रदायिक अलगाव की पृष्ठभूमि भी मिलेगी।  

Wednesday, January 27, 2021

चन्द्रावती अथवा नासिकेतोपाख्यान

 

 
खड़ी बोली के गद्य का प्रारंभिक रूप उपस्थित करने वाले चार प्रमुख गद्य लेखकों में सदल मिश्र का विशिष्ट स्थान है। इनमें से दो गद्य लेखकों लल्लूलाल और सदल मिश्र ने फोर्ट विलियम कालेज में रहकर कार्य किया और मुंशी सदासुखलाल तथा सैयद इंशा अल्ला खाँ ने स्वतंत्र रूप से गद्य रचना की। फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना सन 1800 में हुई थी। सदल मिश्र ने 1803 में लिखित 'नासिकेतोपाख्यान' में अपनी भाषा को 'खड़ी बोली' लिखा है। उस समय यह नाम प्रचलित हो चुका था। उन्होंने लिखा है, अब संवत्‌ 1860 में नासिकेतोपाख्यान को जिसमें चंद्रावली की कथा कही गई है, देववाणी में कोई समझ नहीं सकता। इसलिए खड़ी बोली से किया। मेरा उद्देश्य उस खड़ी बोली के गद्य से आपका परिचय कराना है, जो उन्हीं दिनों शुरू हुआ ही था। लल्लूलाल के साथ फोर्ट विलियम कालेज में इनकी नियुक्ति प्रचलित भाषा में गद्य ग्रंथों के निर्माण के लिए हुई थी। ईसाई धर्मप्रचारकों एवं शासकों को गद्य के ऐसे स्वरूप एवं साहित्य की आवश्यकता थी, जिनके माध्यम से वे जनसाधारण में अपना धर्म-प्रचार कर सके, अपने स्थापित स्कूलों के लिये पाठ्य पुस्तकों का निर्माण कर सकें तथा अपना शासकीय कार्य चला सकें अत: जॉन गिलक्राइस्ट की अध्यक्षता में फोर्ट विलियम कालेज में इस कार्य का सूत्रपात किया गया। यहीं अपने कार्यकाल में लल्लूलाल ने अपने प्रमुख ग्रंथ 'प्रेमसागर' और सदल मिश्र ने 'नासिकेतोपाख्यान' तथा 'रामचरित्र' लिखा। ये मूल ग्रंथ न होकर अनुवाद ग्रंथ हैं। फोर्ट विलियम कालेज के विवरणों में इनके पद 'भाखा मुंशी' के लिखे गए हैं।

 

चन्द्रावती अथवा नासिकेतोपाख्यान (भाग-1)

सदल मिश्र


सकल सिद्धिदायक वो देवतन में नायक गणपति को प्रणाम करता हूँ कि जिनके चरण कमल के स्मरण किए से विघ्न दूर होता है औ दिन दिन हिय में सुमति उपजती वो संसार में लोग अच्छा अच्छा भोग बिलास कर सबसे धन्य धन्य कहा अन्त में परम-पद को पहुँचते हैं कि जहाँ इन्द्र आदि देवता सब भी जाने को ललचाते हैं।

दोहा

 

गणपति चरण सरोज द्वौ, सकल सिद्धि की राश ।

 

बन्दन करि सब होत है, पूरण मन की आश ।।

 

चित्र विचित्र सुन्दर सुन्दर बड़ी बड़ी अटारिन से इन्द्रपुरी समान शोभायमान, नगर कलिकत्ता महा प्रतापी बीर नृपति कम्पनी महाराज के सदा फूला फला रहे, कि जहां उत्तम उत्तम लोग बसते हैं औ देश देह से एक से एक गुणी जन आय आय अपने अपने गुण को सुफल करि बहुत आनन्द में मगन होते हैं।