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Wednesday, December 10, 2025

पुतिन की यात्रा और तलवार की धार पर भारत


पुतिन के भारत दौरे से भारत ने अपनी विदेश-नीति की स्वतंत्रता का परिचय दिया वहीं, रूस को अलग-थलग करने की कोशिशों को विफल करने में मदद भी की है. भारत को यह संदेश भी देना है कि हम किसी की दादागीरी के दबाव में नहीं आएँगे और अपनी स्वतंत्र सत्ता को बनाकर रखेंगे.

रूस को अलग-थलग करना इसलिए भी आसान नहीं है, क्योंकि विकासशील देशों के साथ उसके रिश्ते सोवियत-युग से बने हुए हैं. रूस ने बहुत लंबे समय तक इन देशों का साथ दिया है और अब ये देश उसका साथ दे रहे हैं.

इसका अर्थ यह भी नहीं है कि भारत ने अमेरिका से दूरी बनाई है या वह वैश्विक ध्रुवीकरण की प्रक्रिया में किसी एक पाले में जाकर बैठेगा. अलबत्ता यह संकेत ज़रूर दिया कि भारत और रूस की दोस्ती ख़ास है, जो समय की कसौटी पर परखी गई है.

भारत को अमेरिका से रिश्तों में बदलाव आने पर धक्का जरूर लगा है. पिछले दो दशक से भारत यह कोशिश कर रहा था कि अमेरिका के साथ रणनीतिक साझेदारी विकसित हो. डॉनल्ड ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में भारत का दर्जा रणनीतिक रूप से घटाया गया है.

ट्रंप प्रशासन ने इस हफ़्ते अपनी बहुप्रतीक्षित राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति जारी की है, जिसे देखते हुए लगता है कि अमेरिका ने एशिया में चीन से शत्रुता को कम करने और यूरोप में अपने प्रभाव को बढ़ाने का फैसला किया है.

शुरू होगा भारत-रूस सहयोग का एक नया दौर


 ऐसे मौके पर जब लग रहा है कि रूस ने यूक्रेन में लड़ाई को डिप्लोमैटिक-मोर्चे पर जीत लिया है, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भारत आ रहे हैं. दूसरी तरफ इसी परिघटना के आगे-पीछे भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौते की भी संभावना है.

इन दोनों खबरों को मिलाकर पढ़ें, तो भारत की दृष्टि से साल का समापन अच्छे माहौल में होने जा रहा है. यूक्रेन में लडाई खत्म हुई, तो एक और बड़ा काम होगा. वह है रूस पर आर्थिक-पाबंदियों में कमी. इनसे भी भारत का रिश्ता है.

दूसरी तरफ अमेरिका-रूस, अमेरिका-चीन और भारत-चीन रिश्ते भी नई शक्ल ले रहे हैं. अक्सर सवाल किया जाता है कि चीन से घनिष्ठता को देखते हुए क्या  रूस भारत के साथ न्याय कर पाएगा. क्यों नहीं? बल्कि रूस संतुलनकारी भूमिका निभा सकता है.

Wednesday, November 26, 2025

वैश्विक-राजनीति क्या जी-20 को विफल कर देगी?


हाल में जोहानेसबर्ग में हुए जी-20 शिखर सम्मेलन से वैश्विक व्यवस्था के लिए कुछ महत्वपूर्ण संदेश निकले हैं. भारत की दृष्टि से इस सम्मेलन का दो कारणों से महत्व है.

एक, भारत ग्लोबल साउथ के नेता के रूप में उभर रहा है, जिसमें अफ्रीका की बड़ी भूमिका है. 2023 में भारत की जी-20 की अध्यक्षता के दौरान, अफ्रीकी संघ जी-20 का सदस्य बनाने की घोषणा की गई थी. ग्लोबल साउथ में अफ्रीकी देशों की महत्वपूर्ण भूमिका है.

दूसरी तरफ अमेरिकी बहिष्कार के कारण यह सम्मेलन वैश्विक राजनीति का शिकार भी हो गया. कहना मुश्किल है कि आगे की राह कैसी होगी, क्योंकि जी-20 का अगला मेजबान अमेरिका ही है, जिसका कोई प्रतिनिधि अध्यक्षता स्वीकार करने के लिए सम्मेलन में उपस्थित नहीं था.

खाली कुर्सी की अध्यक्षता

अजीब बात है कि वह देश, जिसे अध्यक्षता संभालनी है, सम्मेलन में आया ही नहीं. ऐसे  दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा ने कहा कि हमें यह अध्यक्षता किसी ‘खाली कुर्सी’ को सौंपनी होगी.

दक्षिण अफ्रीका ने ट्रंप के स्थान पर कार्यभार सौंपने के लिए दूतावास के किसी अधिकारी को भेजने के अमेरिकी प्रस्ताव को प्रोटोकॉल का उल्लंघन बताते हुए अस्वीकार कर दिया. अब शायद किसी और तरीके से इस अध्यक्षता का हस्तांतरण होगा.

Wednesday, November 19, 2025

सेना की जागीर बनता पाकिस्तान


पाकिस्तान की संसद ने अपने थलसेना प्रमुख फील्ड मार्शल आसिम मुनीर को असाधारण शक्तियां देने तथा देश के सुप्रीम कोर्ट को दूसरे दर्जे पर रखने के इरादे से तुर्त-फुर्त एक संविधान संशोधन किया है, जो फौरन लागू भी हो गया.

संविधान में 27वाँ संशोधन गुरुवार 13 नवंबर को राष्ट्रपति के दस्तखत होने के बाद कानून बन गया, जिससे देश की व्यवस्था बुनियादी तौर पर बदल गई है. पहले कहा जाता था कि दुनिया में पाकिस्तान की सेना ऐसी है, जो एक देश की मालिक है. अब कहा जा सकता है कि आसिम मुनीर ऐसे सेनाध्यक्ष हैं, जो पाकिस्तान के मालिक हैं.

पाकिस्तानी सेना ने लंबे समय से देश की वास्तविक सत्ता भोगी, कभी तख्तापलट के माध्यम से सत्ता पर कब्जा किया है तो कभी पर्दे के पीछे से प्रभाव डाला है. पर अब जो हुआ है, वह हैरतंगेज़ है.

सेना का नया पद

नेशनल असेंबली ने बुधवार 12 नवंबर को हंगामे से भरे सत्र के दौरान दो-तिहाई बहुमत से विवादास्पद 27वें संविधान संशोधन विधेयक को पास कर दिया. इस संशोधन का उद्देश्य रक्षा बलों के प्रमुख का एक नया पद सृजित करना और एक संवैधानिक न्यायालय की स्थापना करना है.

अब वहाँ के सेनाध्यक्ष देश के सबसे ताकतवर व्यक्ति बन गए हैं. एक और संशोधन के कारण सुप्रीम कोर्ट अब संविधान से जुड़े मुकदमों की सुनवाई नहीं कर सकेगा. उसकी जगह एक नए संघीय संवैधानिक न्यायालय का गठन शुरू हो गया है.  

Wednesday, November 12, 2025

बांग्लादेश के चुनाव से जुड़े हैं भारत से रिश्ते


बांग्लादेश में फरवरी में चुनाव कराए जाने की घोषणा के बाद से घटनाक्रम तेजी से बदल रहा है. वहाँ के राजनीतिक अंतर्विरोध तेजी से खुल रहे हैं. यह स्पष्ट हो रहा है कि वहाँ के समाज और राजनीति में कई धाराएँ एक साथ बहती हैं.

बुनियादी सवाल अब भी अपनी जगह है. चुनाव होंगे या नहीं और हुए तो परिणाम क्या होगा, कैसी सरकार बनेगी? अंतरिम सरकार को जो आर्थिक और सामाजिक कठिनाइयाँ विरासत में मिली हैं, वे अब और बढ़ गई हैं, जो आने वाली सरकार के मत्थे मढ़ी जाएँगी. भारत के साथ रिश्ते भी इन चुनाव-परिणामों पर निर्भर करेंगे.

नई सरकार को राजनीतिक असंतोष, ऊँची मुद्रास्फीति और राजनीतिक-समूहों के तूफान का सामना करना होगा. देश की अर्थव्यवस्था भारत के साथ संबंधों पर भी निर्भर करती है. ये संबंध बिगड़े हुए हैं और कहना मुश्किल है कि नई सरकार का इस मामले में नज़रिया क्या होगा.

बढ़ती अराजकता

डॉ यूनुस की अंतरिम सरकार ने चुनाव की तारीख की घोषणा पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा ज़िया की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) और इस्लामी जमात-ए-इस्लामी के साथ विचार-विमर्श के बाद की है. फिर भी अधूरे सुधारों और बिगड़ती सुरक्षा व्यवस्था के कारण चुनाव की समय-सीमा खिसक जाए, तो हैरत नहीं होगी.

भीड़ की हिंसा बेरोकटोक जारी है, दिन-दहाड़े गोलीबारी और लिंचिंग की खबरें आ रही हैं. अवामी लीग को निशाना बनाकर राजनीतिक स्वतंत्रता पर भी अंकुश लगाए जा रहे हैं. ह्यूमन राइट्स वॉच ने अपनी मई 2025 की रिपोर्ट में, इसे लेकर चिंता व्यक्त की है.

Wednesday, November 5, 2025

बदलती भू-राजनीति और भारत-अमेरिका-चीन त्रिकोण


अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के बयानों और टैरिफ को लेकर भारत और अमेरिका के बीच चलती तनातनी के दौरान दो-तीन घटनाएँ ऐसी हुई हैं, जो इस चलन के विपरीत हैं.

एक है, दोनों देशों के बीच दस साल के रक्षा-समझौते का नवीकरण और दूसरी चाबहार पर अमेरिकी पाबंदियों में छह महीने की छूट. इसके अलावा दोनों देश एक व्यापार-समझौते पर बात कर रहे हैं, जो इसी महीने होना है.

इन बातों को देखते हुए पहेली जैसा सवाल जन्म लेता है कि एक तरफ दोनों देशों के बीच आर्थिक-प्रश्नों को लेकर तीखे मतभेद हैं, तो सामरिक और भू-राजनीतिक रिश्ते मजबूत क्यों हो रहे हैं? उधर अमेरिका और चीन का एक-दूसरे के करीब आना भी पहेली की तरह है.

डॉनल्ड ट्रंप और शी चिनफिंग के बीच मुलाकात के बाद कुछ दिनों के भीतर  अमेरिकी युद्धमंत्री (या रक्षामंत्री) पीट हैगसैथ ने रविवार को बताया कि उन्होंने चीन के रक्षामंत्री एडमिरल दोंग जून से मुलाकात की और दोनों ने आपसी संपर्क को मजबूत करने और सैनिक-चैनल स्थापित करने पर सहमति व्यक्त की है.

Tuesday, October 14, 2025

भारत-तालिबान के बीच बढ़ती गर्मजोशी और कुछ असमंजस


तालिबान के साथ सांस्कृतिक-अंतर्विरोधों की थोड़ी देर के लिए अनदेखी कर दें, तब भी भारत-अफगानिस्तान रिश्ते हमेशा से दोस्ती के रहे हैं. इस दृष्टि से देखें, तो पिछले हफ्ते तालिबान के विदेशमंत्री अमीर ख़ान मुत्तकी की भारत-यात्रा अचानक नहीं हो गई.

इसकी पृष्ठभूमि दो-तीन साल से बन रही थी. भविष्य की ओर देखें, तो लगता है कि यह संपर्क बढ़ेगा. पिछले कुछ दिनों में पाक-अफगान सीमा पर टकराव को देखते हुए कुछ लोगों ने इसे भारत-पाक रिश्तों की तल्ख़ी से भी जोड़ा है, पर बात इतनी ही नहीं है. अफगान-पाक रिश्तों की तल्ख़ी के पीछे दूसरे कारण ज्यादा बड़े हैं.

पिछले हफ्ते भारतीय विदेश-नीति के सिलसिले में कुछ ऐसी घटनाएँ हुई हैं, जो नए राजनयिक-परिदृश्य की ओर इशारा कर रही हैं. मुत्तकी की यह यात्रा ऐसे समय में हुई, जब ब्रिटेन के प्रधानमंत्री सर कीर स्टार्मर भी भारत में थे.

इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और डॉनल्ड ट्रंप के बीच एक बार फोन पर बातचीत भी हुई है. इसके बाद ट्रंप ने प्रधानमंत्री मोदी को सोमवार को गाज़ा पर मिस्र में हुए ‘शांति सम्मेलन’ में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया. हालाँकि मोदी इसमें गए नहीं, पर यह एक संकेत ज़रूर है.

वे वहाँ जाते, तो ट्रंप से मुलाकात का मौका बनता था. शायद अब यह मौका आसियान सम्मेलन में मिलेगा. बहरहाल भारत-अमेरिका व्यापार-वार्ता अब अपेक्षाकृत बेहतर तरीके से आगे बढ़ रही है. फिलहाल हम भारत-अफ़गान रिश्तों पर ही ध्यान केंद्रित करेंगे.

पिछले साल बांग्लादेश में तख्तापलट होने के बाद से भारत को शिद्दत से अपने इलाके में अच्छे मित्रों की तलाश है. भारत सरकार ने श्रीलंका, मालदीव और म्यांमार के साथ काफी हद तक रिश्तों को बेहतर किया है. उसी शृंखला में अफगानिस्तान को भी रखा जाना चाहिए.

मान्यता का मसला

भारत यह संकेत भी नहीं देना चाहता कि हम तालिबान को राजनयिक रूप से मान्यता दे रहे हैं. मान्यता तभी दी जाएगी, जब अंतरराष्ट्रीय समुदाय ऐसा करेगा, फिलहाल सहयोग-संबंध बनाने के लिए एक प्लेटफॉर्म की ज़रूरत होगी, इसलिए वहाँ दूतावास को फिर से खोलना सही कदम है.

हालाँकि इससे तालिबान को कुछ निराशा होगी, पर भारत अमेरिका समेत पश्चिमी खेमे को यह संकेत भी नहीं देगा कि हम रूस-चीन खेमे में शामिल हो गए हैं. बल्कि ऐसा करके पश्चिम के साथ भारत एक पुल की तरह भी काम कर सकता है.

औपचारिक राजनयिक मान्यता नहीं होते हुए भी मुत्तकी को पूरे प्रोटोकॉल के साथ विदेशमंत्री का सम्मान दिया गया. इन बातों को अंतर्विरोधों और व्यावहारिकता की रोशनी में पढ़ा जाना चाहिए.

Wednesday, October 8, 2025

गज़ा शांति-योजना, सपना है या सच?


29 सितंबर को अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू के साथ खड़े होकर गज़ा में ‘शाश्वत शांति’ के लिए 20-सूत्री योजना पेश की थी. ट्रंप को यकीन है कि अब गज़ा में शांति स्थापित हो सकेगी, पर एक हफ्ते के भीतर ही इसकी विसंगतियाँ सामने आने लगीं हैं.

असल बात यह कि अभी यह योजना है, समझौता नहीं. योजना के अनुसार,  दोनों पक्ष सहमत हुए, तो युद्ध तुरंत समाप्त हो जाएगा. बंधकों की रिहाई की तैयारी के लिए इसराइली सेना आंशिक रूप से पीछे हट जाएगी. इसराइल की ‘पूर्ण चरणबद्ध वापसी’ की शर्तें पूरी होने तक सभी सैन्य अभियान स्थगित कर दिए जाएँगे और जो जहाँ है, वहाँ बना रहेगा.

कुल मिलाकर यह एक छोटे लक्ष्य की दिशा में बड़ा कदम है. इससे पश्चिम एशिया या फलस्तीन की समस्या का समाधान नहीं निकल जाएगा, पर यदि यह सफल हुई, तो इससे कुछ निर्णायक बातें साबित होंगी. उनसे टू स्टेट समाधान का रास्ता खुल भी सकता है, पर इसमें अनेक किंतु-परंतु जुड़े हैं.

हालाँकि हमास ने इसराइली बंधकों को रिहा करने पर सहमति व्यक्त की है, लेकिन वे कुछ मुद्दों पर चर्चा करना चाहते हैं. ट्रंप ने हमास के बयान को सकारात्मक माना है, लेकिन अभी तक उनकी बातचीत की माँग के बारे में कुछ नहीं कहा है.

इसराइल ने कहा है कि ट्रंप की योजना के पहले चरण के तहत गज़ा में सैन्य अभियान सीमित रहेंगे, लेकिन उसने यह नहीं कहा है कि हमले पूरी तरह से बंद हो जाएंगे या नहीं.

इसराइली प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू का कहना है कि यह योजना इसराइल के युद्ध उद्देश्यों के अनुरूप है, वहीं अरब और मुस्लिम नेताओं ने इस पहल का शांति की दिशा में एक कदम के रूप में स्वागत किया है. लेकिन एक महत्वपूर्ण आवाज़ गायब है-वह है फ़लस्तीनी लोगों के किसी प्रतिनिधि की.

Thursday, October 2, 2025

इन नौ रावणों का भी अंत होना चाहिए


रामायण और महाभारत जैसे ग्रंथों के लेखन का उद्देश्य वेद के गूढ़ ज्ञान को सरल करना था. कोशिश यह थी कि आम लोगों को ये बातें कहानियों के रूप में सरल भाषा में समझाई जाएँ, ताकि उन्हें उनके कर्तव्यों की शिक्षा दी जा सके.

भारतीय संस्कृति के प्राचीन सूत्रधारों ने ज्ञान को कहानियों, अलंकारों और प्रतीकों की भाषा में लिखा. ऐसी घटनाएँ और ऐसे पात्र हर युग में होते हैं. उनके नाम और रूप बदल जाते हैं, इसलिए इनके गूढ़ार्थ को आधुनिक संदर्भों में भी देखने की ज़रूरत है.

तुलसी के रामचरित मानस और वाल्मीकि की रामायण में रावण को दुष्ट व्यक्ति के रूप में दिखाया गया है, जिसका वध राम ने किया. यह कहानी प्रतीक रूप में है, जिसके पीछे व्यक्ति और समाज के दोषों से लड़ने का आह्वान है.

हमारे पौराणिक ग्रंथों में वर्णित रावण के दस सिरों की अनेक व्याख्याएँ हैं. मोटे तौर पर वे दस नकारात्मक प्रवृत्तियों के प्रतीक हैं. ये प्रवृत्तियाँ हैं काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर, घृणा, ईर्ष्या, द्वेष एवं भय. इन प्रवृत्तियों के कारण व्यक्ति रावण है.

रावण के पुतले का दहन इन बुराइयों को दूर करने और अच्छाई के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है. एक परिभाषा से नौ प्रकार के रावण नौ प्रकार की दुष्प्रवृत्तियों के प्रतिनिधि हैं, जिन्हें रावण के दस सिरों से समझा जा सकता है. ऐसा भी माना जाता है कि रावण का एक सिर सकारात्मक ज्ञान का प्रतीक है, और शेष नौ नकारात्मक प्रवृत्तियों के प्रतिनिधि.  

सैकड़ों साल से रावण के पुतलों का हम दहन करते आए हैं, क्या उसी रावण को हम आज भी मारना चाहते हैं? क्या उन्हीं प्रवृत्तियों से हम लड़ते रहेंगे? क्या हमें उन नई प्रवृत्तियों के विरुद्ध लड़ाई नहीं लड़नी चाहिए, जो आज के संदर्भ में प्रासंगिक हैं.

रामायण बताती है कि रावण विद्वान व्यक्ति था और नीति का विशेषज्ञ, पर उसके अवगुण उसे दुष्ट व्यक्ति बनाते थे. उसके दस सिरों में केवल एक सकारात्मक ज्ञान का प्रतीक था, शेष नौ अवगुणों के. प्रश्न है आज की परिस्थितियों में हम कौन से अवगुणों से युक्त नौ रावणों को मारना चाहेंगे? ऐसे नौ रावण, जिनका मरना देश और मानवता के हित में जरूरी है?

Wednesday, October 1, 2025

बिगड़ती विश्व-व्यवस्था और संयुक्त राष्ट्र


सितंबर के महीने में हर साल होने वाले संरा महासभा के सालाना अधिवेशन का राजनीतिक-दृष्टि से कोई विशेष महत्व नहीं होता. अलबत्ता 190 से ऊपर देशों के शासनाध्यक्ष या उनके प्रतिनिधि सारी दुनिया से अपनी बात कहते हैं, जिसमें राजनीति भी शामिल होती है.

भारत के नज़रिए से देखें, तो पिछले कई दशकों से इस दौरान भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्तों की कड़वाहट सामने आती रही है. भारत भले ही पाकिस्तान का ज़िक्र न करे पर पाकिस्तानी नेता किसी न किसी तरीके से भारत पर निशाना लगाते हैं.

यह अंतर दोनों देशों के वैश्विक दृष्टिकोण को रेखांकित करता है. दोनों देशों के नेताओं के पिछले कुछ वर्षों के भाषणों का तुलनात्मक अध्ययन करें, तो पाएँगे कि पाकिस्तान का सारा जोर कश्मीर मसले के अंतरराष्ट्रीयकरण और उसकी नाटकीयता पर होता है और भारत का वैश्विक-व्यवस्था पर.

इस वर्ष इस अधिवेशन पर हालिया सैनिक-टकराव की छाया भी थी। ऐसे में इन भाषणों पर सबकी निगाहें थी, पर इस बार अमेरिका के राष्ट्रपति के भाषण ने भी हमारा ध्यान खींचा, जिसपर आमतौर पर हम पहले ध्यान नहीं देते थे.

दक्षिण एशिया

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ और भारत के विदेशमंत्री एस जयशंकर के भाषणों में उस कड़वाहट का ज़िक्र था, जिसके कारण दक्षिण एशिया दुनिया के सबसे पिछड़े इलाकों में बना हुआ है. अलबत्ता जयशंकर ने भारत की वैश्विक भूमिका का भी ज़िक्र किया.

इससे पहले पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने मई में तनाव बढ़ने के दौरान पाकिस्तान को राजनयिक समर्थन देने के लिए चीन, तुर्की, सऊदी अरब, क़तर, अजरबैजान, ईरान, संयुक्त अरब अमीरात और संयुक्त राष्ट्र महासचिव सहित पाकिस्तान के ‘मित्रों और साझेदारों’ को धन्यवाद दिया.

उन्होंने एक से ज्यादा बार भारत का नाम लिया और यहाँ तक कहा कि पाकिस्तान ने भारत के साथ युद्ध जीत लिया है और अब हम शांति जीतना चाहते हैं.

उनके इस दावे के जवाब में भारत के स्थायी मिशन की फ़र्स्ट सेक्रेटरी पेटल गहलोत ने 'राइट टू रिप्लाई' का इस्तेमाल करते हुए कहा, ‘तस्वीरों को देखें, अगर तबाह रनवे और जले हैंगर जीत है, तो पाकिस्तान आनंद ले सकता है.’

उन्होंने कहा, इस सभा ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री की बेतुकी नौटंकी देखी, जिन्होंने एक बार फिर आतंकवाद का महिमामंडन किया, जो उनकी विदेश नीति का मूल हिस्सा है.’

Wednesday, September 24, 2025

सऊदी-पाक समझौते ने बदला प.एशिया का परिदृश्य

 

सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच हाल में हुए आपसी सुरक्षा के समझौते पर हस्ताक्षर होने के बाद इसके निहितार्थ को लेकर कई तरह की अटकलें हैं. खासतौर से हमारे लिए सबसे महत्वपूर्ण हैं भारतीय-सुरक्षा से जुड़े सवाल.

समझौता होने का समय उतना ही महत्वपूर्ण है, जितनी कि उसकी विषयवस्तु है. इसकी घोषणा इसराइल के क़तर पर हुए हमले के बमुश्किल एक हफ़्ते बाद हुई है. इससे खाड़ी देशों की असुरक्षा व्यक्त हो रही है, वहीं पश्चिम एशिया में पाकिस्तान की बढ़ती भूमिका दिखाई पड़ रही है.

समझौते के साथ एक गीत भी जारी किया गया है. अरबी में लिखे इस गीत में कहा गया है, पाकिस्तान और सऊदी अरब, आस्था में भाई-भाई. दिलों का गठबंधन और मैदान में एक तलवार.’

मोटे तौर पर सऊदी अरब अपनी सुरक्षा मज़बूत करना चाहता है और पैसों की तंगी से जूझ रहे पाकिस्तान को अपनी सैन्य शक्ति के कारण सुरक्षा-प्रदाता के रूप में पेश करने और अपने आर्थिक-आधार को पुष्ट करने का मौका मिल रहा है.

Thursday, August 21, 2025

भारत को लंबा खेल ही खेलना होगा

इकोनॉमिस्ट में कैल का कार्टून

भारत-अमेरिका व्यापार समझौते पर बातचीत फिलहाल रोक दी गई है. वहीं अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच पिछले शुक्रवार को हुई बातचीत से ऐसा कोई समाधान नहीं निकला है, जिससे भारत की उम्मीदें बढ़ें.

व्यापार वार्ता के विफल होने से भारत की चिंताएँ इसलिए बढ़ी हैं, क्योंकि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने भारतीय उत्पादों पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगाने की घोषणा की है, जो दुनिया में किसी भी देश पर लगा सबसे ज़्यादा टैरिफ है.

25 प्रतिशत टैरिफ पहले ही लागू है, रूस के तेल व्यापार पर 25 प्रतिशत का अतिरिक्त टैरिफ भू-राजनीतिक घटनाक्रम पर निर्भर करेगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस भाषण में कहा कि हम अपने किसानों, मछुआरों और पशुपालकों की भलाई के साथ कोई समझौता नहीं करेंगे.  

रोचक बात यह है कि ट्रंप का झुकाव रूस की तरफ है, और अलास्का वार्ता कमोबेश रूस के पक्ष में ही रही है. ट्रंप की कोशिश अब यूक्रेन पर दबाव डालने की होगी. दूसरी तरफ वे भारत को धमका रहे हैं.

Wednesday, July 23, 2025

भारत-अमेरिका रिश्तों में ‘पाकिस्तानी’ ख़लिश


पिछले कुछ महीनों में भारत और पाकिस्तान के रिश्तों के बीच में अमेरिका की एक अटपटी सी भूमिका सामने आ रही है. इसमें सबसे ज्यादा ध्यान खींच रहा है, अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप का बार-बार दावा करना कि मैंने लड़ाई रुकवा दी.

ट्रंप ने यहाँ तक कहा था कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान को व्यापार बंद करने की धमकी दी थी, जिसके बाद दोनों देश संघर्ष-विराम के लिए राज़ी हुए. इतना ही काफी नहीं था, हाल में उन्होंने एक से ज्यादा बार कहा है कि इस लड़ाई में पाँच जेट विमान गिराए गए.

शुरू में साफ-साफ कहा कि भारत के जेट गिराए गए, पर नवीनतम वक्तव्य में यह स्पष्ट नहीं किया है कि ये किसके विमान थे, पर इशारा साफ है. सवाल यह नहीं है कि यह सच है या नहीं, सवाल यह है कि ट्रंप बार-बार ऐसा क्यों बोल रहे हैं.

नीतिगत बदलाव

पर्यवेक्षकों को अब कुछ और बातें नज़र आने लगी हैं. एक तो यह कि एक दशक पहले अमेरिका ने भारत और पाकिस्तान को डिहाइफनेट करने की जो नीति बनाई थी, वह खत्म हो रही है. दक्षिण एशिया को लेकर अमेरिकी नीति में बदलाव हो रहा है.

इस बदलाव का मतलब यह नहीं है कि अमेरिका के भारत से रिश्तों में खिंचाव आएगा. शायद वह पाकिस्तान को अपने हाथ से बाहर नहीं जाने देना चाहता, जो हाल के वर्षों में पूरी तरह चीन की गोदी में जाकर बैठ गया है.

Wednesday, July 16, 2025

चीन के आंतरिक-मंथन को लेकर अफवाहें


चीन को लेकर आमतौर पर हमेशा ही कुछ खबरें हवा में रहती हैं. इन दिनों भी दो-तीन खबरें चर्चा में हैं. एक, अमेरिका के साथ व्यापार समझौते पर है, जिसके पीछे सनसनी नहीं है, पर उसका राजनीतिक महत्व ज़रूर है.

दूसरी चीन की आंतरिक-राजनीति को लेकर है. हाल में वहाँ सेना के कुछ महत्वपूर्ण अधिकारियों की तनज़्ज़ुली या बर्खास्तगी हुई है, वहीं कुछ समय से राष्ट्रपति शी चिनफिंग की सार्वजनिक-कार्यक्रमों में अनुपस्थिति ने ध्यान खींचा है. हाल में ब्राज़ील में हुए ब्रिक्स के शिखर सम्मेलन में उन्होंने शामिल न होने का फ़ैसला किया, जिससे अटकलें बढ़ीं.

उनके 13 साल के शासनकाल में ऐसी ही अफवाहें बार-बार उड़ी हैं, और हर बार झूठी साबित हुई हैं. शायद इसबार की चर्चाएँ भी निराधार हैं, पर लगता है कि वहाँ शी चिनफिंग के उत्तराधिकार को लेकर कुछ चल रहा है. शायद वे खुद उत्तराधिकार की व्यवस्था को कोई शक्ल दे रहे हैं.

विश्लेषकों का कहना है कि सत्ता में बने रहने या सत्ता साझा करने की उनकी योजना 2027 में होने वाली पार्टी की अगली पाँच-वर्षीय कांग्रेस से पहले या उसके दौरान लागू हो जाएगी, तब तक उनका तीसरा कार्यकाल समाप्त हो जाएगा.

व्यवस्था-परिवर्तन

बात केवल नेतृत्व परिवर्तन की नहीं है, बल्कि व्यवस्था-परिवर्तन या उसमें संशोधन की भी है. शी ने 2022 में अपने तीसरे और संभवतः आजीवन कार्यकाल की शुरुआत लोहे के दस्ताने पहन कर की थी. उस वक्त उन्होंने देश की आर्थिक, विदेश और सैनिक नीतियों में बदलाव का इशारा भी किया था.

देश की अर्थव्यवस्था के विस्तार ने विसंगतियों को जन्म दिया है. असमानता का स्तर बढ़ा है. एक तरफ तुलनात्मक गरीबी है, वहीं एक नया कारोबारी समुदाय तैयार हो गया है, जो सरकारी नीतियों के बरक्स दबाव-समूहों का काम करने लगा है.

Saturday, July 12, 2025

दक्षिण एशिया में प्रवेश की चीनी कोशिशें


हाल में भारतीय सेना के उप प्रमुख ने बताया कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान चीन और तुर्की ने पाकिस्तान का खुलकर साथ दिया. हम एक सीमा पर दो विरोधियों या असल में तीन से जंग लड़ रहे थे. पाकिस्तान अग्रिम मोर्चे पर था और चीन उसे हर संभव सहायता प्रदान कर रहा था.

यह बात बरसों से कही जा रही है कि भारत को अब दो मोर्चों पर एकसाथ लड़ाई लड़नी होगी. अभी यह परोक्ष सहयोग है, बाद में प्रत्यक्ष लड़ाई भी हो सकती है. इस खबर के पहले एक और खबर आई थी, जो बताती है कि दक्षिण एशिया में चीन की दिलचस्पी बढ़ती जा रही है.

गत 19 जून को चीन, बांग्लादेश और पाकिस्तान ने चीन के युन्नान प्रांत के कुनमिंग में विदेश कार्यालय स्तर पर अपनी पहली त्रिपक्षीय बैठक की. वैकल्पिक संगठन के लिए चीन-पाकिस्तान की योजना कोई आश्चर्य की बात नहीं है.

Thursday, June 19, 2025

कोई बड़ा मोड़ ही रोक पाएगा ईरान-इसराइल टकराव


ईरान पर हुए इसराइली हमलों और जवाब में ईरानी हमलों ने दो बातों की ओर ध्यान खींचा है. क्या वजह है कि इसराइल ने इस वक्त हमलों की शुरुआत की है? दूसरे, ईरान इनका किस हद तक जवाब देगा, और अब यह टकराव कहाँ जाकर रुकेगा?

इसबार अमेरिका और इसराइल फौजी और डिप्लोमेसी के मिले-जुले हथियार का इस्तेमाल कर रहे हैं. इसराइली हमले के साथ ही ट्रंप ने ईरान से कहा है कि हमारी शर्तों को मान जाओ, वर्ना तबाही आपके सिर पर मंडरा रही है.

अमेरिका और इसराइल चाहते हैं कि ईरान अपना परमाणु कार्यक्रम छोड़ दे. ईरानी नेतृत्व 2015 की तरह कार्यक्रम रोकने को तैयार है, त्यागने को नहीं. अमेरिका के साथ ओमान में चल रही ईरान की वार्ता का छठा दौर 15 जून को होना था, जो रद्द हो गया.

ईरान का कहना है कि वार्ता का अब कोई मतलब नहीं है. पता नहीं कि भविष्य में क्या होगा. युद्ध भी एक किस्म की डिप्लोमेसी है और डिप्लोमेसी कभी खत्म नहीं होती. युद्ध जारी रहते हुए भी नए सिरे से बातचीत की संभावनाओं को नकारा भी नहीं जा सकता.

अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की ईरान को कड़ी चेतावनी और इसराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू द्वारा सर्वोच्च नेता को खत्म करने की बात कहने के बाद, ईरान के सर्वोच्च नेता आयतुल्ला अली खामनेई ने एक्स पर पोस्ट में चेतावनी दी है, महान हैदर के नाम पर, लड़ाई शुरू होती है.

उधर ईरान के अर्ध-सरकारी मीडिया मेहर समाचार एजेंसी ने एक्स पर पुष्टि की है कि ईरानी सेना ने बुधवार को तेल अवीव पर फत्तह-1 मिसाइल दागी है. फत्तह एक हाइपरसोनिक मिसाइल है जो मैक 5, या ध्वनि की गति से पाँच गुना अधिक (लगभग 3,800 मील प्रति घंटा, 6,100 किलोमीटर प्रति घंटा) से यात्रा करती है.

बीबीसी ने सरकारी प्रेस टीवी के हवाले से बताया, इस्लामिक रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स कोर (आईआरजीसी) ने ऑपरेशन के नवीनतम चरण को एक 'टर्निंग पॉइंट' बताया है और कहा है कि पहली पीढ़ी की फत्तह मिसाइलों की तैनाती ने इसराइल की 'काल्पनिक' मिसाइल रक्षा प्रणालियों के लिए 'अंत की शुरुआत' को चिह्नित किया है.

Wednesday, June 11, 2025

कनाडा का निमंत्रण और विदेश-नीति का राजनीतिकरण


अमेरिका में डॉनल्ड ट्रंप और एलन मस्क के बीच चल रहा वाग्युद्ध भारतीय मीडिया की दिलचस्पी का विषय साबित हुआ है, पर इस दौरान भारतीय विदेश-नीति के दृष्टिकोण से कुछ दूसरी घटनाएँ ज्यादा महत्वपूर्ण हुई हैं.

इनमें सबसे महत्वपूर्ण है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कनाडा-यात्रा को लेकर चल रहे संदेहों का दूर होना. अब 15-17 जून के बीच जी-7 देशों की कनाडा के कैनानैस्किस में होने वाली शिखर बैठक में, पीएम मोदी भी शामिल होंगे. 2019 से जी-7 की हरेक शिखर-बैठक में पीएम मोदी को भी आमंत्रित किया जाता रहा है, पर इसबार के निमंत्रण को लेकर संदेह था.

बहुत कम भारतीय प्रधानमंत्रियों ने कनाडा की यात्रा की है. बतौर पीएम कनाडा की दो बार यात्रा करने वाले मोदी पहले भारतीय प्रधानमंत्री होंगे. उनसे पहले पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह 2010 में कनाडा गए थे. बावजूद इसके भारत-कनाडा रिश्ते रूखे ही रहे.

Friday, May 23, 2025

आईएमएफ की सदाशयता या पाखंड?


पहलगाम हत्याकांड के बाद जिस समय भारत ऑपरेशन सिंदूर चला रहा था, उसी समय अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) पाकिस्तान को एक अरब डॉलर के कर्ज क स्वीकृति दे रहा था. भारत के विरोध के बावज़ूद आईएमएफ के एक्ज़िक्यूटिव बोर्ड ने इसे मंज़ूरी दे दी.

आईएमएफ़ के नियम किसी प्रस्ताव के ख़िलाफ़ वोट करने का अधिकार नहीं देते इसलिए बोर्ड के सदस्य या तो पक्ष में वोट दे सकते हैं या अनुपस्थित रह सकते हैं. जो भी फ़ैसले हैं वे बोर्ड में आम सहमति के आधार पर किए जाते हैं.

जब पाकिस्तान को, जिसके आंगन में कभी कुख्यात ओसामा बिन लादेन रहता था, अपने विशाल पड़ोसी भारत के साथ तनाव के चरम पर एक अरब डॉलर का पैकेज दिया जाता है, तो इसके पीछे के कारणों पर गंभीरता से विचार करने की ज़रूरत है.

भारत के विरोध को देखते हुए मुद्राकोष ने अगली किस्त जारी करने के लिए पाकिस्तान पर 11 नई शर्तें भी लगाई हैं. आईएमएफ ने पाकिस्तान को चेताया है कि भारत के साथ तनाव से योजना के राजकोषीय, वाह्य और सुधार लक्ष्यों के लिए जोखिम बढ़ सकते हैं.

पाकिस्तान पर लगाई गई नई शर्तों में 17,600 अरब रुपये के नए बजट को संसद की मंजूरी, बिजली बिलों पर ऋण भुगतान अधिभार में वृद्धि और तीन साल से अधिक पुरानी कारों के आयात पर प्रतिबंध को हटाना शामिल है.

सवाल है कि वैश्विक-व्यवस्था ने पाकिस्तान की आतंकी-गतिविधियों की अनदेखी क्यों की और आईएमएफ के फैसले के पीछे कोई संज़ीदा दृष्टि है या शुद्ध-पाखंड? इस सवाल का जवाब देने के पहले हमें वर्तमान स्थितियों पर नज़र डालनी होगी.  

Thursday, May 15, 2025

अमेरिकी कोशिशों का स्वागत है, मध्यस्थता का नहीं


दक्षिण एशिया का दुर्भाग्य है कि जिस समय दुनिया के देश, जिनमें भारत भी शामिल है, डॉनल्ड ट्रंप की आक्रामक आर्थिक-नीतियों के बरक्स अपनी नीतियों के निर्धारण में लगे हैं, हमें लड़ाई में जूझना पड़ रहा है. 

इस लड़ाई की पृष्ठभूमि को हमें दो परिघटनाओं से साथ जोड़कर देखना और समझना चाहिए. एक, शनिवार के युद्धविराम की घोषणा भारत या पाकिस्तान के किसी नेता ने नहीं की, बल्कि डॉनल्ड ट्रंप ने की. दूसरे हाल में भारत और ब्रिटेन के बीच मुक्त-व्यापार समझौता हुआ है, जिसकी तरफ किसी ने ध्यान नहीं दिया.  

इसके अलावा हाल के दिनों की भू-राजनीति में महत्वपूर्ण नए मोड़ आए हैं, जिनका भारत पर भी असर पड़ेगा. खबरों के मुताबिक तुर्की और चीन ने पाकिस्तान का एकतरफा समर्थन किया है. 

पाकिस्तान ने आतंकवाद को एक अघोषित नीति के रूप में इस्तेमाल किया है. दूसरी तरफ यह साबित करते हुए कि आतंकवादी हमले की स्थिति में हम पाकिस्तान में घुसकर कार्रवाई कर सकते हैं, मोदी सरकार ने प्रभावी रूप से एक नए सुरक्षा सिद्धांत की घोषणा की है. पाकिस्तान को निर्दोष लोगों की हत्या करने और आतंकवाद को बढ़ावा देने की अनुमति नहीं दी जाएगी. 

ट्रंप की घोषणा

ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर घोषणा की कि भारत और पाकिस्तान ‘पूर्ण और तत्काल संघर्ष विराम’ पर सहमत हो गए हैं. ट्रंप ने अपनी आदत के अनुरूप या शायद जल्दबाज़ी में ऐसा किया. वे साबित करना चाहते हैं कि लड़ाइयों को रोकना उन्हें आता है. 

Wednesday, May 14, 2025

ऑफेंसिव डिफेंस यानी ‘गोली की जवाब गोला’


'ऑपरेशन सिंदूर' के तहत तीन दिन चली लड़ाई के पहले दिन ही भारतीय सेना का लक्ष्य पूरा हो गया था, जब 21 में से नौ ठिकानों पर ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ करके सौ से ज्यादा आतंकियों को मार गिराया गया. 

भारतीय सफलताओं की कहानियाँ सामने आती जाएँगी, पर रविवार की शाम हमारे डीजीएमओ (डायरेक्टर जनरल मिलिट्री ऑपरेशंस) और तीनों सेनाओं के अधिकारियों ने सप्रमाण जो विवरण पेश किए हैं, उन्हें देखते हुए हम आश्वस्त हो सकते हैं कि भविष्य में कोई भी गलत हरकत करने के पहले दस बार सोचेगा. 

ऑपरेशन जारी है

भारत की दिलचस्पी लंबी लड़ाई में थी ही नहीं और पाकिस्तान में लड़ने की कुव्वत नहीं थी. ऐसे में लड़ाई का रुकना सकारात्मक गतिविधि है, पर इसका मतलब यह नहीं है कि अब हम कोई कार्रवाई करेंगे ही नहीं. रविवार को भारतीय वायुसेना ने स्पष्ट कर दिया कि हमारा ऑपरेशन खत्म नहीं हुआ है. 

डीजीएमओ लेफ्टिनेंट जनरल राजीव घई ने बताया कि युद्धविराम के बाद पाकिस्तानी सेना ने कुछ ही घंटों में उसका उल्लंघन शुरू कर दिया था. इसके बाद शनिवार रात और रविवार सुबह तक पश्चिमी सीमा के विस्तार में ड्रोन घुसपैठ हुई.