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Tuesday, February 11, 2025

अमेरिका के साथ सौदेबाज़ी का दौर

प्रधानमंत्री की इस हफ्ते की अमेरिका-यात्रा कई मायनों में पिछली यात्राओं से कुछ अलग होगी. इसकी सबसे बड़ी वजह है राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की ताबड़तोड़ नीतियों के कारण बदलते वैश्विक-समीकरण. उनके अप्रत्याशित फैसले, तमाम दूसरे देशों के साथ भारत को भी प्रभावित कर रहे हैं.

दूसरी तरफ यह भी लगता है कि शायद दोनों के रिश्तों का एक नया दौर शुरू होने वाला है, पर सामान्य भारतीय मन अमेरिका से निर्वासित लोगों के अपमान को लेकर क्षुब्ध है. हम समझ नहीं पा रहे हैं कि यह कैसा दोस्ताना व्यवहार है? 

ट्रंप मूलतः कारोबारी सौदेबाज़ हैं और धमकियाँ देकर सामने वाले को अर्दब में लेने की कला उन्हें आती है. शायद वे कुछ बड़े समझौतों की पृष्ठभूमि तैयार कर रहे है.

वर्चस्व का स्वप्न

ट्रंप का कहना है कि दुनिया ने अमेरिका की सदाशयता का बहुत फायदा उठाया, अब हम अपनी सदाशयता वापस ले रहे हैं. असल भावना यह है कि हम बॉस हैं और बॉस रहेंगे. इस बात से उनके गोरे समर्थक खुश हैं, जिन्हें लगता है कि देश के पुराने रसूख को ट्रंप वापस ला रहे हैं.   

Tuesday, February 4, 2025

आक्रामक-ट्रंप और भारत से रिश्तों का नया दौर


अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल में कहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फरवरी में अमेरिका की यात्रा पर आ सकते हैं. उसके बाद से अनुमान लगाया जा रहा है कि संभवतः अगले कुछ दिनों में उनकी यात्रा की तिथियाँ घोषित हो सकती हैं.  

यह यात्रा अभी हो या कुछ समय बाद, अमेरिकी-नीतियों में आ रहे बदलाव को देखते हुए यह ज़रूरी है. बेशक, दोनों मित्र देश हैं, पर अब जो पेचीदगियाँ पैदा हो रही हैं, उन्हें देखते हुए भारत को सावधानी से कदम बढ़ाने होंगे.  

पहला हमला

राष्ट्रपति ट्रंप ने पहला हमला कर भी दिया है, जिसका वैश्विक-व्यापार, विकास और मुद्रास्फीति पर प्रभाव पड़ेगा. शनिवार को उन्होंने अमेरिका के तीन सबसे बड़े व्यापारिक साझेदारों पर भारी टैरिफ लगाने वाले कार्यकारी आदेशों पर हस्ताक्षर किए हैं. 

अमेरिका मंगलवार 4 फरवरी से कनाडा और मैक्सिको से हो रहे आयात पर 25 प्रतिशत अतिरिक्त टैरिफ और चीन पर 10 प्रतिशत अतिरिक्त टैरिफ लगा रहा है. इन तीन देशों से अमेरिकी-आयात का लगभग 40 प्रतिशत हिस्सा आता है. 

यह फैसला इन देशों को हो रहे अवैध आव्रजन, जहरीले फेंटेनाइल और अन्य नशीले पदार्थों को अमेरिका में आने से रोकने और अपने वादों के प्रति जवाबदेह बनाने के लिए किया गया है. कनाडा और मैक्सिको ने इसपर जवाबी कार्रवाई की घोषणा भी की है, जबकि चीन ने कहा है कि हम विश्व व्यापार संगठन में जाएँगे. 

Wednesday, January 29, 2025

ट्रंप क्या यूक्रेन की लड़ाई भी रुकवा सकेंगे?


अमेरिका में राष्ट्रपति पद की कुर्सी पर डोनाल्ड ट्रंप के बैठने के बाद से दुनियाभर के मीडिया में सवालों की झड़ी लगी है. लगता है कि जियो-पोलिटिकल स्तर पर दुनिया में हाईटेक-दौर की शुरुआत होने जा रही है. 

‘अमेरिकी महानता’ की पुनर्स्थापना के लिए डोनाल्ड ट्रंप ने अवैध आप्रवासियों पर कड़ी कार्रवाई शुरू कर दी है. अपने चुनावी वादों को पूरा करने के लिए उन्होंने दर्जनों आदेशों पर हस्ताक्षर किए हैं. इनमें आप्रवासियों को हिरासत में लेना भी शामिल है. ह्वाइट हाउस के प्रेस सचिव के अनुसार यह ‘इतिहास का सबसे बड़ा निर्वासन अभियान’ है. 

भारत के नज़रिये से हिंद-प्रशांत और दक्षिण एशिया में अमेरिकी नीतियाँ महत्वपूर्ण होंगी. इस साल भारत में क्वॉड का शिखर सम्मेलन भी होगा, जिसमें ट्रंप आएँगे. अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट से तहव्वुर राणा के प्रत्यर्पण का रास्ता साफ होना भी बड़ी घटना है. 

ट्रंप ने रूस से यूक्रेन की लड़ाई रोकने का आग्रह किया है और खनिज तेल उत्पादक ओपेक देशों से कहा है कि वे पेट्रोलियम के दाम कम करें. आंतरिक रूप से वे अमेरिका पर भारी पड़ रहे अवैध आप्रवासियों के बोझ को दूर करना चाहते हैं.  

Wednesday, January 22, 2025

गज़ा में उम्मीदों की वापसी, फिर भी संदेहों के बादल

 

हमास की कैद से मुक्त हुई इसराइली लड़की रोनी गोनेन

पश्चिम एशिया में युद्ध-विराम हो तो गया है, पर इसे स्थायी-शांति नहीं माना जा सकता है. बावज़ूद इसके यह बड़ी सफलता है. पिछले 15 महीने से चली आ रही लड़ाई को रोकने में यह बड़ी कामयाबी है. 

युद्ध-विराम शांति नहीं है, बल्कि ऐसे संघर्ष के बाद ,जिसमें 46,000 से ज्यादा लोग मारे गए, उम्मीद की एक किरण है. सवाल हैं कि क्या यह समझौता इस इलाके में स्थायी-शांति का आधार बन सकेगा? 

अंदेशा है कि इसराइली सेना अभी भले ही हट जाय, पर एक-दो या छह-आठ महीने बाद, वह वापस भी आ सकती है. इसी तरह हमास के हाथ में कुछ ऐसे हथियार रहेंगे, जो भविष्य की सौदेबाज़ी में काम आएँगे.  

Wednesday, January 15, 2025

भारत-अफगान रिश्तों में बड़ा मोड़


एक तरफ भारत-बांग्लादेश के रिश्तों में कड़वाहट आ रही है, वहीं अफगानिस्तान के साथ रिश्तों में अप्रत्याशित सुधार दिखाई पड़ रहा है. पिछली 8 जनवरी को भारत के विदेश-सचिव विक्रम मिस्री और तालिबान सरकार के विदेशमंत्री आमिर खान मुत्तकी के बीच हुई बैठक से एक साथ कई तरह के संदेश गए हैं. 

अब तक संयुक्त सचिव स्तर के एक भारतीय अधिकारी मुत्तकी और रक्षामंत्री मोहम्मद याकूब सहित तालिबान के मंत्रियों से मिलते रहे हैं. लेकिन विदेश सचिव की इस मुलाकात से रिश्तों को एक नया आयाम मिला है. भारत के इस कदम को राष्ट्रीय-सुरक्षा की दृष्टि से उठाया गया कदम माना जा रहा है.

इस मुलाकात के पहले भारत ने पाकिस्तानी वायुसेना द्वारा अफगानिस्तान के पक्तिका प्रांत में किए गए हमलों की निंदा करके प्रतीक रूप में संकेत दे दिया था कि वह किसी बड़ी राजनयिक-पहल के लिए तैयार है. 

हाल में पाकिस्तानी वायुसेना के हमले में महिलाओं और बच्चों सहित 46 अफगान नागरिकों की जान गई थी. इससे बिगड़ते पाक-अफगान रिश्तों पर रोशनी पड़ी, वहीं भारत के बयान से इसका दूसरा पहलू भी उजागर हुआ.

स्थिति में सुधार

भारत की दिलचस्पी इस बात में रही है कि अफगानिस्तान में आतंकवाद का  पनपना बंद हो जाए. सभी अनुमानों के अनुसार, स्थिति में सुधार हुआ है. यह भी सच है कि वहाँ महिलाओं के अधिकारों को कुचला गया है, जो भारत के लिए परेशानी की बात है. 

पर्यवेक्षक मानते हैं कि भारत के इस समय बातचीत करने के पीछे कुछ बड़े कारण इस प्रकार हैं: एक, तालिबान का हितैषी और सहयोगी पाकिस्तान उसका विरोधी बन गया है, ईरान काफ़ी कमज़ोर हो गया है, रूस अपनी लड़ाई में फँसा है और अमेरिका ट्रंप की वापसी देख रहा है. 

Wednesday, January 8, 2025

म्यांमार के फौजी-शासन के खिलाफ बगावत और देश टूटने का खतरा

 

बांग्लादेश के सत्ता-परिवर्तन और मणिपुर तथा पूर्वोत्तर के अन्य क्षेत्रों में चल रही गतिविधियों के बरक्स म्यांमार में चल रहे संघर्ष पर ध्यान देने की जरूरत आन पड़ी है. वहाँ बड़ी तेजी से स्थितियाँ बदल रही हैं. 

गत 9 दिसंबर को, अराकान आर्मी (एए) ने महत्वपूर्ण पश्चिमी शहर माउंगदाव में आखिरी चौकियों पर कब्जा करके बांग्लादेश के साथ 271 किलोमीटर लंबी सीमा पर पूर्ण नियंत्रण प्राप्त कर लिया. माउंगदाव, म्यांमार के अराकान राज्य का उत्तरी इलाका है और बांग्लादेश के कॉक्स बाजार इलाके से सटा हुआ है. 

रखाइन में अराकान आर्मी की यह जीत म्यांमार से अलग स्वतंत्र देश बनाने की दिशा में भी बढ़ सकती है. इस प्रांत में 17 में से 14 शहरों-कस्बों पर उसका कब्जा हो गया है. देश के लगभग बीस प्रतिशत कस्बों और कस्बों पर उनका नियंत्रण है. 

यह घटनाक्रम भारत को भी प्रभावित करेगा. भारत की ‘एक्ट ईस्ट नीति’ की देहरी पर म्यांमार पहला देश है. वहाँ की गतिविधियाँ हमारे पूर्वोत्तर को भी प्रभावित करती हैं. इस इलाके पर चीन के प्रभाव को देखते हुए भी वहाँ की आंतरिक गतिविधियों पर निगाहें रखना जरूरी है. 

दुनिया की बेरुखी

अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने भी अब म्यांमार में दिलचस्पी लेना कम कर दिया है. केवल आसियान कोशिश करता है, पर वह भी बहुत सफल नहीं है. कुछ साल पहले तक अमेरिका की सरकार, म्यांमार में लोकतंत्र की प्रबल समर्थक नज़र आती थी. उसने पिछले एक दशक में लोकतंत्र समर्थक समूहों को 1.5 अरब  डॉलर से अधिक दिए हैं. पर अब उसने भी अपने हाथ खींच लिए हैं. 

Wednesday, December 25, 2024

चीन से रिश्ते बनाने में धैर्य और समझदारी की परीक्षा


भारत की सुदूर-पूर्व विदेश-नीति के मद्देनज़र दो घटनाओं ने हाल में खासतौर से ध्यान खींचा है. दोनों चीन और उत्तरी कोरिया से जुड़ी हैं. ये दोनों प्रसंग ध्रुवीकरण से जुड़ी वैश्विक-राजनीति के दौर में भारत की स्वतंत्र विदेश-नीति की ओर भी इशारा कर रहे हैं. 

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने गत 18 दिसंबर को बीजिंग में चीनी विदेश मंत्री वांग यी से मुलाकात की. इस बैठक के परिणामों से लगता है कि दोनों देश भारत पिछले चार साल से चले आ रहे गतिरोध को दूर करके सहयोग के नए रास्ते तलाश करने पर राजी हो गए हैं. 

चीन-भारत सीमा प्रश्न के लिए विशेष प्रतिनिधियों की यह 23वीं बैठक थी. संवाद की इस प्रक्रिया की शुरुआत 2003 में दशकों से चले आ रहे भारत-चीन सीमा विवाद का संतोषजनक समाधान खोजने के लिए की गई थी. 

अभी कहना मुश्किल है कि इस रास्ते पर सफलता कितनी मिलेगी, पर इतना स्पष्ट है कि स्थितियों में बुनियादी बदलाव दिखाई पड़ रहा है. इस समझौते से सीमा-विवाद सुलझ नहीं जाएँगे, पर रास्ता खुल सकता है, बशर्ते सब ठीक रहे. पाँच साल बाद दोनों देशों के विशेष प्रतिनिधियों के बीच यह पहली औपचारिक बैठक द्विपक्षीय संबंधों में बर्फ पिघलने जैसी है. 

भारत-बांग्ला रिश्ते कब और कैसे पटरी पर वापस आएँगे?


भारतीय सेना की गौरव-गाथा से जुड़ा एक ऐसा दिन है, जिसे दोनों देश ‘विजय दिवस’ के रूप में मनाते हैं. यह 16 दिसम्बर को 1971 की लड़ाई में पाकिस्तान पर भारत की जीत के कारण मनाया जाता है, जिसके बाद बांग्लादेश का जन्म हुआ. 

अब शेख हसीना के पराभव के बाद अंदेशा था कि इस साल दोनों देशों का संयुक्त समारोह होगा या नहीं. यह अंदेशा गलत साबित हुआ. 16 दिसंबर को यह समारोह कोलकाता में पूर्वी कमान मुख्यालय में मनाया गया, जिसमें बांग्लादेश की सेना के अधिकारी भी शामिल हुए.  

इस समारोह को मनाने के बारे में निर्णय गत 9 दिसंबर को ढाका में भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिस्री और बांग्लादेश के मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस तथा  बांग्लादेशी विदेश मामलों के सलाहकार तौहीद हुसैन और विदेश सचिव मोहम्मद जशीम उद्दीन के बीच उच्च स्तरीय वार्ता के बाद हुआ था. 

तूफान के बाद 

एक तरफ बांग्लादेश की राजनीति में उफान आने के बाद स्थितियाँ सामान्य होने की दिशा में बढ़ रही हैं, वहीं भारत के साथ रिश्ते नई परिस्थितियों में परिभाषित हो रहे हैं. शेख हसीना के पराभव के बाद से दोनों देशों के रिश्तों में जो तल्ख़ी आई है, उसे अब दूर करने के प्रयास हो रहे हैं. 

Wednesday, December 11, 2024

सीरिया में असद के पराभव का संदेश और उभरते नए ख़तरे


सीरिया में 2011 से चल रहे गृहयुद्ध में करीब चार साल के ठहराव के बाद हाल में अचानक फिर से लड़ाई शुरू हुई और देखते ही देखते वहाँ बशर अल-असद की सरकार का पतन हो गया. गौरतलब है कि सत्ता-परिवर्तन सहज और शांतिपूर्ण हुआ है. यानी कि असद की सेना ने किसी प्रकार का प्रतिरोध नहीं किया. 

इतनी तेजी से हुए इस सत्ता-परिवर्तन से पश्चिम एशिया के हालात में बड़े बदलावों की उम्मीद की जा रही है. इसके पहले लक्षण इसराइल-सीरिया सीमा पर दिखाई पड़े, जहाँ इसराइली सेना ने विसैन्यीकृत बफर जोन पर कब्ज़ा कर लिया. अभी तक वहाँ संयुक्त राष्ट्र की सेना गश्त करती थी. इसराइली प्रधानमंत्री ने कहा है कि दोनों देशों के बीच 50 साल पुराना समझौता भंग हो गया है. 

रूस में शरण

रविवार को रूस के विदेश मंत्रालय ने कहा कि बशर अल-असद ने अन्य प्रतिभागियों के साथ बातचीत के बाद पद और देश छोड़ दिया और सत्ता के शांतिपूर्ण हस्तांतरण के आदेश दिए हैं. इसके बाद देर रात रूसी समाचार एजेंसियों ने क्रेमलिन के एक सूत्र का हवाला देते हुए बताया कि असद और उनका परिवार रूस पहुँच गया है और उन्हें वहाँ शरण दी गई है. 

Wednesday, November 13, 2024

दक्षिण एशिया की प्रगति के लिए ज़रूरी है ‘आपसी संपर्क’

भारत और पाकिस्तान के रिश्तों को लेकर हाल में दो खबरों ने ध्यान खींचा है. पहली है लाहौर के पर्यावरण के संबंध में पाकिस्तान के पंजाब राज्य की कोशिशें और दूसरी दोनों देशों के बीच व्यापारिक रिश्तों को फिर से कायम करने के सुझाव से जुड़ी है. एक और खबर भारत-अफगानिस्तान रिश्तों को लेकर भी है.

भारत और पाकिस्तान के बीच दशकों से तनावपूर्ण संबंध हैं, लेकिन जैसे-जैसे ज़हरीली हवा का मुद्दा सामने आ रहा है, दोनों पड़ोसियों को अपनी साझा जिम्मेदारी पर भी विचार करना पड़ रहा है.

Tuesday, October 8, 2024

पश्चिम एशिया में लड़ाई की पहली भयावह-वर्षगाँठ


गज़ा में एक साल की लड़ाई ने इस इलाके में गहरे राजनीतिक, मानवीय और सामाजिक घाव छोड़े हैं. इन घावों के अलावा भविष्य की विश्व-व्यवस्था के लिए कुछ बड़े सवाल और ध्रुवीकरण की संभावनाओं को जन्म दिया है. इस प्रक्रिया का समापन किसी बड़ी लड़ाई से भी हो सकता है.

यह लड़ाई इक्कीसवीं सदी के इतिहास में महत्वपूर्ण मोड़ साबित होगी. कहना मुश्किल है कि इस मोड़ की दिशा क्या होगी, पर इतना स्पष्ट है कि इसे रोक पाने में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय से लेकर संरा सुरक्षा परिषद तक नाकाम हुए हैं. लग रहा है कि यह लड़ाई अपने दूसरे वर्ष में भी बिना किसी समाधान के जारी रहेगी, जिससे इसकी पहली वर्षगाँठ काफी डरावनी लग रही है.

इस लड़ाई के कारण अमेरिका, ब्रिटेन और इसराइल की आंतरिक-राजनीति भी प्रभावित हो रही है, बल्कि दुनिया के दूसरे तमाम देशों की आंतरिक-राजनीति पर इसका असर पड़ रहा है.

Wednesday, September 18, 2024

विश्व-शांति के प्रयास और भारत की बढ़ती भूमिका


इस हफ्ते भारतीय विदेश-नीति का फोकस अमेरिका पर रहेगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका की यात्रा पर जा रहे हैं. पिछले साल जून की उनकी अमेरिका-यात्रा ने राजनीतिक और राजनयिक दोनों मोर्चों पर कुछ बड़ी परिघटनाओं को जन्म दिया था. इसबार हालांकि भारत-अमेरिका रिश्ते पूरी तरह विमर्श के केंद्र में नहीं होंगे, पर होंगे जरूर. साथ ही भारत और शेष-विश्व के रिश्तों पर रोशनी भी पड़ेगी.

हाल में बांग्लादेश में हुए सत्ता-परिवर्तन के बाद इस क्षेत्र में अमेरिका की भूमिका की ओर अभी तक हमारा ध्यान गया नहीं है. अमेरिकी विदेश विभाग में दक्षिण और मध्य एशिया के लिए सहायक विदेशमंत्री डोनाल्ड लू भारत का दौरा पूरा करके सोमवार तक बांग्लादेश में थे.

बताया जा रहा है कि उनकी इस यात्रा का उद्देश्य बांग्लादेश के ताजा हालात की समीक्षा करने के अलावा भारत और बांग्लादेश के बीच के मसलों को समझना भी है. शायद कड़वाहट को दूर करना भी. इस दौरान वे भारत-अमेरिका टू प्लस टू अंतर-सत्र वार्ता में भी शामिल हुए. दोनों देशों के बीच छठी वार्षिक टू प्लस टू वार्ता इस साल किसी वक्त वॉशिंगटन में होनी है.

टू प्लस टू

दोनों देशों के बीच 2018 से शुरू हुई ‘टू प्लस टू’ स्तर की वार्ता ने कई स्तर पर रिश्तों को पुष्ट किया है. पिछली वार्ता नवंबर में हुई थी, जिसमें भारत के विदेशमंत्री एस जयशंकर और रक्षामंत्री राजनाथ सिंह और अमेरिका के विदेशमंत्री एंटनी ब्लिंकन व रक्षामंत्री लॉयड ऑस्टिन ने भाग लिया.

Wednesday, September 11, 2024

भारत की भू-राजनीतिक भूमिका और पाकिस्तान से रिश्ते


विदेश-नीति के मोर्चे पर एकसाथ कई बातें हो रही हैं, जिनमें भारत-पाकिस्तान रिश्तों को लेकर शुरू हुई सुगबुगाहट शामिल है. अगले महीने पाकिस्तान में होने वाली शंघाई सहयोग संगठन की शिखर बैठक में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आमंत्रित किया गया है. सवाल है कि क्या मोदी, पाकिस्तान जाएंगे?

उनका जाना और नहीं जाना, दोनों बातें दोनों देशों के रिश्तों के लिहाज से महत्वपूर्ण होंगी. उनपर बात जरूर होनी चाहिए, पर उसके पहले वैश्विक-राजनीति में भारत की बढ़ती भूमिका से जुड़ी कुछ बातों पर रोशनी डालने की जरूरत भी है.

पिछले दिनों पीएम मोदी की यूक्रेन-यात्रा के बाद संभावनाएं बढ़ी हैं कि रूस और यूक्रेन के बीच बातचीत में भारत की भूमिका हो सकती है. अब खबर है कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ब्रिक्स के एनएसए सम्मेलन में भाग लेने के लिए रूस जा रहे हैं. 10-12 सितंबर को सेंट पीटर्सबर्ग में हो रहा, यह सम्मेलन प्रकारांतर से उसी उद्देश्य से आयोजित किया जा रहा है।

इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी ने शनिवार को कहा कि भारत और चीन जैसे देश यूक्रेन के संघर्ष को सुलझाने में भूमिका निभा सकते हैं. उसके एक दिन पहले रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने भारत जैसे दोस्तों की तारीफ की थी, जो मौजूदा संघर्ष का हल निकालना चाहते हैं.

व्लादीवोस्तक में ईस्टर्न इकोनॉमिक फोरम में एक पैनल चर्चा के दौरान पुतिन ने कहा कि भारत, ब्राजील और चीन संघर्ष का हल निकालने में भूमिका निभा सकते हैं. उनकी यह टिप्पणी उन संभावित देशों के बारे में पूछे गए प्रश्न के उत्तर में आई जो रूस और यूक्रेन के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभा सकते हैं.

Wednesday, September 4, 2024

तालिबानी कानून और वैश्विक-मान्यता से जुड़ी राजनीति


अफगानिस्तान में तालिबान ने 19 अगस्त को अपनी विजय की तीसरी और स्वतंत्रता की 105वीं वर्षगाँठ मनाई. दोनों समारोहों की तुलना में ज्यादा सुर्खियाँ एक तीसरी खबर को मिलीं.

तालिबान ने 21 अगस्त को 35 अनुच्छेदों वाले एक नए कानून की घोषणा की  है, जिसमें शरिया की उनकी कठोर व्याख्या के आधार पर जीवन से जुड़े कार्य-व्यवहार और जीवनशैली पर प्रतिबंधों का विवरण है. नए क़ानून को सर्वोच्च नेता हिबातुल्ला अखुंदज़ादा ने मंज़ूरी दी है, जिसे लागू करने की ज़िम्मेदारी नैतिकता मंत्रालय की है.

दुनियाभर में आलोचना के बावजूद अफगानिस्तान के शासक इन नियमों को उचित बता रहे हैं. तालिबान सरकार के मुख्य प्रवक्ता जबीहुल्ला मुजाहिद ने एक बयान में उन लोगों के अहंकारके खिलाफ चेतावनी दी है, जो इस्लामी शरिया से परिचित नहीं हैं, फिर भी आपत्ति व्यक्त कर रहे हैं.

वे मानते हैं कि बिना समझ के इन कानूनों को अस्वीकार करना, अहंकार है. दूसरी तरफ मुस्लिम देशों के संगठन ओआईसी तक का विचार है कि अफगानिस्तान में मानवाधिकारों और स्त्रियों के अधिकारों की रक्षा की जरूरत है.

Thursday, August 29, 2024

यूरोप में बढ़ती भारतीय भूमिका


भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यूक्रेन-यात्रा ने भारतीय विदेश-नीति की स्वतंत्रता को पुष्ट करने के साथ यूरोप में नई भूमिका को भी रेखांकित किया है. यूक्रेन में मोदी ने दृढ़ता से कहा, हम तटस्थ नहीं, युद्ध के विरुद्ध और शांति के पक्ष में हैं. यह बात हमने राष्ट्रपति पुतिन से भी कही है कि यह दौर युद्ध का नहीं है.   

उनके इस दौरे से यूरोप में भारत के दृष्टिकोण को बेहतर और साफ तरीके से समझने का आधार तैयार हुआ है. इससे वैश्विक-राजनीति में भारत का कद ऊँचा होगा और यूक्रेन के साथ हमारे द्विपक्षीय-संबंध सुधरेंगे, जो युद्ध के बाद कटु हो गए थे.

यूक्रेन और रूस के युद्ध पर इस यात्रा के पूरे असर को देखने और समझने के लिए हमें कुछ समय इंतज़ार करना होगा. लड़ाई की जटिलताएं आसानी से सुलझने वाली भी नहीं हैं. पहले इस बात को अच्छी तरह समझ लें कि यह झगड़ा यूक्रेन और रूस के अलावा परोक्षतः अमेरिका और रूस के बीच का भी है.

Thursday, August 22, 2024

दक्षिण एशिया में भारत पर बढ़ता दबाव


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को भारत की ओर से ‘ग्लोबल साउथ' के लिए कुछ पहलों की घोषणाएं की हैं, वहीं कुछ पर्यवेक्षक बांग्लादेश की परिघटना का हवाला देते हुए कह रहे हैं कि भारत की भूमिका, दक्षिण एशिया में कमतर हो रही हैं, ऐसे में ‘ग्लोबल साउथ' को कैसे साध पाएंगे

चीन के ‘बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव' (बीआरआई) के तहत कई देशों के ‘ऋण-जाल' में फँसने की चिंताओं के बीच पीएम मोदी ने भारत द्वारा आयोजित तीसरे ‘वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ' सम्मेलन में ‘कॉम्पैक्ट' (वैश्विक विकास समझौते) की घोषणा की.

शिखर सम्मेलन के समापन सत्र में उन्होंने कहा, मैं भारत की ओर से एक व्यापक वैश्विक विकास समझौतेका प्रस्ताव रखना चाहूंगा. इस समझौते की नींव भारत की विकास यात्रा और विकास साझेदारी के अनुभवों पर आधारित होगी.

भारत की पहल

शिखर सम्मेलन में भारत समेत 123 देशों ने हिस्सा लिया और ग्लोबल साउथ की साझा चिंताओं और प्राथमिकताओं पर विचार-विमर्श किया. उल्लेखनीय है कि चीन और पाकिस्तान इस सम्मेलन में शामिल नहीं थे. बांग्लादेश के शासनाध्यक्ष डॉ यूनुस ने इसमें भाग लिया.

सम्मेलन के वैचारिक-पक्ष को विदेशमंत्री डॉ एस जयशंकर ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में स्पष्ट करते हुए कहा कि इसकी टाइमिंग महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसके बाद न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र का समिट ऑफ द फ्यूचर होगा. जिन मुद्दों पर यहां चर्चा हुई है, उन पर वहाँ भी चर्चा होगी.

फिलहाल यह सम्मेलन भारत की पहल और विकासशील देशों के बीच उसकी आवाज़ को रेखांकित करता है. चीन भी इस दिशा में सक्रिय है. ग्लोबल साउथ से ज्यादा इस समय बड़े सवाल दक्षिण एशिया को लेकर पूछे जा रहे हैं.

विस्मृत दक्षिण एशिया

एक विशेषज्ञ ने तो यहाँ तक माना है कि दक्षिण एशिया जैसी भौगोलिक-राजनीतिक पहचान अब विलीन हो चुकी है. जैसे पश्चिम एशिया या दक्षिण पूर्व एशिया की पहचान है, वैसी पहचान दक्षिण एशिया की नहीं है. इसका सबसे बड़ा कारण है भारत-पाकिस्तान गतिरोध.

बांग्लादेश में शेख हसीना के पराभव और आसपास के ज्यादातर देशों में भारत-विरोधी राजनीतिक ताकतों के सबल होने के कारण पूछा जाने लगा है कि क्या इस दक्षिण एशिया में भारत का रसूख पूरी तरह खत्म हो गया है? इस इलाके के सर्वाधिक प्रभावशाली देश के रूप में क्या अब चीन स्थापित हो गया है, या हो जाएगा?

ऐसे सवालों का जवाब देने की घड़ी अब आ रही है. जवाब संयुक्त राष्ट्र के सुधार कार्यक्रमों और भारतीय अर्थव्यवस्था के बदलते आकार में छिपे हैं. ये दोनों बातें एक-दूसरे से जुड़ी हुई भी हैं.

नेबरहुड फर्स्ट

2014 में नरेंद्र मोदी ने जब पहली बार भारत के प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ली थी तो उन्होंने पड़ोसी देशों के शासनाध्यक्षों को भारत आने का न्योता देकर चौंकाया था. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ भी उसमें शामिल हुए थे.

मोदी सरकार पहले दिन से कहती रही है कि भारत की विदेश नीति में पड़ोसी देशों को सबसे ज़्यादा महत्व मिलेगा. इसे 'नेबरहुड फ़र्स्ट' का नाम दिया गया है. मतलब यह कि दूर के देशों की तुलना में भारत, पड़ोसी देशों को ज़्यादा अहमियत देगा.

कोरोना महामारी के समय सहायता पहुँचाने और खासतौर से वैक्सीन देते समय ऐसा दिखाई भी पड़ा. बावजूद इसके दक्षिण एशिया में कारोबारी सहयोग का वैसा माहौल नहीं है, जैसा दक्षिण पूर्व एशिया सहयोग संगठन आसियान में है.

वैश्विक राजनीति

इस दौरान भारत ने अपने आर्थिक और सामरिक-संबंधों के लिए अमेरिका, रूस, जापान और इसराइल जैसे देशों को वरीयता दी. दक्षिण एशिया की तुलवा में उसके पश्चिम एशिया में यूएई, सऊदी अरब और ईरान के साथ रिश्ते बेहतर हैं. मोदी सरकार के पहले छह वर्षों में चीन से रिश्ते सुधारने की कोशिशें भी हुई थीं.

प्रधानमंत्री के रूप में मोदी के नेपाल (अगस्त, 2014), श्रीलंका (मार्च, 2015) और बांग्लादेश (जून, 2015) में गर्मजोशी से स्वागत किया गया था. पाकिस्तान के साथ भी कुछ समय तक यह गर्मजोशी रही, पर जनवरी 2016 में पठानकोट हमले के बाद वह बात खत्म हो गई और फरवरी 2019 में पुलवामा और बालाकोट जैसी घटनाओं के बाद बड़े युद्ध की आशंकाओं ने जन्म भी दिया.

अगस्त, 2019 में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 की वापसी ने दोनों देशों के रिश्तों को ऐसा सीलबंद किया है कि उसके खुलने का अबतक इंतज़ार है. पाकिस्तान ने तो औपचारिक रूप से भारत के साथ व्यापारिक रिश्ते बंद ही कर रखे हैं.

श्रीलंका और मालदीव

भारी आर्थिक संकट के दौर में भारत ने श्रीलंका की काफी मदद की थी, वहां की सरकार ने भी दिल्ली की टेढ़ी निगाहों को नज़रंदाज़ किया और चीन के जासूसी जहाज को अपने बंदरगाह पर लंगर डालने की अनुमति दी थी. ऐसा ही मालदीव में हुआ, जहाँ इंडिया आउट जैसा अभियान चला.

इस आंदोलन के सहारे भारत-समर्थक सरकार को सत्ता से हटा कर राष्ट्रपति बने मोहम्मद मुइज़्ज़ू ने अपने देश से भारतीय सैन्यकर्मियों को हटाया और चीनी जासूसी जहाज को लंगर डालने की अनुमति दी, जबकि श्रीलंका तक ने उस जहाज को आने से रोक दिया है.

नेपाल में नए संविधान को लागू करने के दौरान भारत के मौन समर्थन से चलाए गए 'आर्थिक नाकेबंदी' कार्यक्रम को लेकर जो बदमज़गी पैदा हुई थी, वह दोनों देशों की सीमा को लेकर विवाद में बदल चुकी है. नेपाल ने अपने नए आधिकारिक नक्शे के रूप में उस कड़वाहट को स्थायी रूप दे दिया है.

इस क्षेत्र का सबसे शांत देश भूटान सामरिक, विदेशी और आर्थिक, लगभग तमाम मामलों में भारत पर निर्भर है, उसने भी अकेले अपने दम पर चीन के साथ सीमा पर बातचीत शुरू कर दी है. केवल बातचीत ही शुरू नहीं की है, बल्कि राजनयिक स्तर पर रिश्ते बनाने की शुरुआत भी कर दी है.

हसीना का पराभव

इतने देशों के साथ कड़वाहट के बावज़ूद भारत-बांग्लादेश रिश्ते बेहतर स्थिति में थे. अब वहाँ शेख हसीना को अपदस्थ होना पड़ा है और वहाँ ऐसी राजनीतिक शक्तियाँ सक्रिय हो गई हैं, जिन्हें भारत का मित्र नहीं कहा जा सकता.

क्या यह बात भारत की विदेश नीति के दोषों की ओर इशारा कर रही है या ऐसी वैश्विक-परिस्थितियों की ओर इशारा कर रही हैं, जिनमें चीन-अमेरिका और यूरोपीय देशों की भूमिका है? या यह मानें कि दक्षिण एशिया के सामाजिक-सांस्कृतिक इतिहास और इस क्षेत्र की भू-राजनीतिक संरचना के कारण इस इलाके के देश भारत की केंद्रीयता को स्वीकार करने में हिचकते हैं?

पहले यह स्वीकार करना होगा कि दक्षिण एशिया दुनिया का सबसे कम एकीकृत क्षेत्र है. यहां एक देश से दूसरे देश में आवाजाही या अंतरराष्ट्रीय सीमा संबंध जितने कठिन और जटिल हैं, उतना दुनिया के किसी और इलाक़े में नहीं हैं.

कारोबार की बात करें तो ग़रीब अफ़्रीकी देशों के बीच जितना आपसी व्यापार होता है उसकी तुलना में भी दक्षिण एशिया के देशों का आपसी व्यापार नहीं होता है, जबकि इस क्षेत्र में 200 करोड़ से ज़्यादा लोग रहते हैं.

भारत की केंद्रीयता

इन देशों के केंद्र में भारत जैसा देश है, जो इस समय दुनिया की सबसे तेज गति से विकसित होती अर्थव्यवस्था है. फिर भी इस इलाके में एकीकरण की भावना गायब है. दक्षिण एशिया सहयोग संगठन (दक्षेस) संभवतः दुनिया का सबसे निष्क्रिय संगठन है. दक्षिण एशिया में पाकिस्तान के साथ निरंतर टकराव के कारण भारत ने दक्षेस के स्थान पर बंगाल की खाड़ी से जुड़े पाँच देशों के संगठन बिम्स्टेक पर ध्यान देना शुरू किया है.

भारत के पड़ोस के राजनीतिक माहौल पर एक नज़र डालें. 2021 में म्यांमार और अफगानिस्तान में सत्ता परिवर्तन हुए. 2022 में पाकिस्तान में इमरान सरकार का पराभव हुआ. उसी साल श्रीलंका में भीड़ ने राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षा को भागने को मज़बूर किया. 2023 में मालदीव में सत्ता परिवर्तन हुआ.

नेपाल में लगातार राजनीतिक अस्थिरता चल रही है. और अब बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन हुआ है. यह सब शांतिपूर्ण और सुव्यवस्थित लोकतांत्रिक तरीके से हुआ होता, तब अलग बात थी. इस बात का श्रेय भारत को मिलना चाहिए, जिसने इस इलाके में अराजकता को फैसले से रोक रखा है. 

अराजक राजनीति

दक्षिण एशिया की आर्थिक बदहाली की वजह को खोजने के लिए भारत की नीतियों के अलावा इन सभी देशों की आंतरिक-परिस्थितियों पर भी नज़र डालनी चाहिए. हमारे सभी पड़ोसी देशों में जबर्दस्त उथल-पुथल चल रही है, जिसकी अभिव्यक्ति लगातार बदलते रिश्तों के रूप में होती है. इसके सबसे अच्छे उदाहरण श्रीलंका और मालदीव हैं.

जिस समय बांग्लादेश की उथल-पुथल की खबरें आ रही थी, हमारे विदेशमंत्री एस जयशंकर मालदीव के दौरे पर थे. वहां उन्हें राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज़्ज़ू  का जैसा दोस्ताना रवैया दिखा, वह भी विस्मय की बात थी.

पिछले एक साल में मालदीव को भी कई प्रकार के अनुभव हुए हैं, पर भारत ने धैर्य के साथ परिस्थितियों के अनुरूप खुद को बदला और लगता है कि उसे सफलता मिली है. और अब ऐसा ही बांग्लादेश में भी देखने को मिल सकता है.

कुछ दूसरी बातों की ओर भी हमें ध्यान देना होगा. भारत के साथ इन देशों के क्षेत्रफल, सैनिक और आर्थिक शक्ति तथा वैश्विक प्रभाव में भारी अंतर है. केवल पाकिस्तान ही एक बड़ा देश है, जो ऐतिहासिक और सामाजिक कारणों से भारत के साथ अच्छे रिश्ते बनाने से घबराता है.

पाकिस्तान की भूमिका

पाकिस्तानी शासक मानते हैं कि भारत के साथ रिश्ते बेहतर बनाने का मतलब है विभाजन की निरर्थकता को स्वयंसिद्ध मान लेना. उनके अंतर्विरोध लगातार टकराव के रूप में व्यक्त होते हैं, जो उनके लिए ही घातक साबित होते हैं. पाकिस्तान की आर्थिक बदहाली में इसी नज़रिए का हाथ है.

भारत और पाकिस्तान के रिश्ते सुधरेंगे, तो दक्षिण एशिया का न केवल रूपांतरण होगा, बल्कि उस भू-राजनीतिक पहचान का महत्व भी रेखांकित हो सकेगा, जो हजारों वर्षों में विकसित हुई है. इस बात को स्वीकार करना होगा कि भारतीय भूखंड का सांप्रदायिक आधार पर हुआ कृत्रिम राजनीतिक-विभाजन तमाम समस्याओं के लिए जिम्मेदार है.

अमेरिका समेत ज्यादातर पश्चिमी देशों ने भारत के उभार को स्वीकार नहीं किया, बल्कि उसके स्थान पर चीन को महत्व दिया. वहीं भारतीय राजव्यवस्था ने खुली अर्थव्यवस्था को अपनाने में कम से कम चीन-चार दशक की देरी की. अब चीन हमारे पड़ोस में बड़े निवेश करने की स्थिति में है, जिससे उसे सामरिक लाभ भी मिलता है.

हिंदू-देश की छवि

दक्षिण एशिया का इतिहास भी रह-रहकर बोलता है. शक्तिशाली-भारत की पड़ोसी देशों के बीच नकारात्मक छवि बनाई गई है. मालदीव और बांग्लादेश का एक तबका भारत को हिंदू-देश के रूप में देखता है. पाकिस्तान की पूरी व्यवस्था ही ऐसा मानती है और भारत को दुश्मन की तरह पेश करती है.

इन देशों में प्रचार किया जाता है कि भारत में मुसलमान दूसरे दर्ज़े के नागरिक हैं. श्रीलंका में भारत को बौद्ध धर्म विरोधी हिंदू-व्यवस्था माना जाता है. हिंदू-बहुल नेपाल में भी भारत-विरोधी भावनाएं बहती हैं. वहाँ मधेशियों, श्रीलंका में तमिलों और बांग्लादेश में हिंदुओं को भारत-हितैषी माना जाता है.

दूसरी तरफ चीन ने इन देशों को बेल्ट रोड इनीशिएटिव (बीआरआई) और इंफ्रास्ट्रक्चर में भारी निवेश का लालच दिया है. पाकिस्तान और चीन ने भारत-विरोधी भावनाओं को बढ़ाने में कसर नहीं छोड़ी है.

चीनी सहयोग

कुछ पर्यवेक्षकों को लगता है कि भारत को चीन के साथ मिलकर अपने पड़ोस के साथ रिश्ते बेहतर बनाने चाहिए. शायद मोदी सरकार का पहला इरादा ऐसा ही था, पर 2020 के गलवान प्रकरण के बाद इस रास्ते पर बढ़ना देश की आंतरिक राजनीति के दृष्टिकोण से व्यावहारिक नहीं रहा. 

दक्षिण एशिया का आर्थिक और लोकतांत्रिक विकास तभी संभव है, जब भारत की केंद्रीयता को स्वीकार किया जाएगा. यदि भारत के विरुद्ध चीनी-पाकिस्तानी कार्ड खेले जाते रहेंगे. तब तक इस इलाके में स्थिरता आ भी नहीं पाएगी. यह बात पड़ोसी देशों की समझ में भी आनी चाहिए.

आवाज़ द वॉयस में प्रकाशित

Tuesday, August 13, 2024

बांग्लादेश का नया निज़ाम और भारत से रिश्ते


बांग्लादेश में डॉ मुहम्मद यूनुस ने अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार पद की शपथ लेने के बाद देश की कमान संभाल ली है. उन्हें मुख्य सलाहकार कहा गया है, पर व्यावहारिक रूप से यह प्रधानमंत्री का पद है. उनके साथ 13 अन्य सलाहकारों ने भी शपथ ली है. पहले दिन तीन सलाहकार शपथ नहीं ले पाए थे. शायद इन पंक्तियों के प्रकाशित होने तक ले चुके होंगे.

इन्हें प्रधानमंत्री या मंत्री इसलिए नहीं कहा गया है, क्योंकि संविधान में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है. देश में अब जो हो रहा है, उसे क्या कहेंगे, यह कुछ समय बाद स्पष्ट होगा. पर ज्यादा बड़े सवाल सांविधानिक-संस्थाओं से जुड़े हैं, मसलन अदालतें.   

पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा ज़िया को राष्ट्रपति के आदेश से रिहा कर दिया गया. क्या यह संविधान-सम्मत कार्य है? इसी तरह एक अदालत ने मुहम्मद यूनुस को आरोपों से मुक्त कर दिया. क्या यह न्यायिक-कर्म की दृष्टि से उचित है? ऐसे सवाल आज कोई नहीं पूछ रहा है, पर आने वाले समय में पूछे जा सकते हैं.  

न्यायपालिका

आंदोलनकारियों की माँग है कि सुप्रीम कोर्ट के जजों को बर्खास्त किया जाए. यह माँग केवल सुप्रीम कोर्ट तक सीमित रहने वाली नहीं है. अदालतें, मंडलों और जिलों में भी हैं और शिकायतें इनसे भी कम नहीं हैं.

सरकारी विधिक अधिकारियों यानी कि अटॉर्नी जनरल वगैरह को राजनीतिक पहचान के आधार पर नियुक्त किया जाता है. बड़ी संख्या में विधिक अधिकारियों ने इस्तीफा दे दिया है, पर अदालतों और जजों का क्या होगा?

डॉ यूनुस की सरकार को कानून-व्यवस्था कायम करने के बाद राजनीति, अर्थव्यवस्था और विदेश-नीति को सुव्यवस्थित करना होगा. हमारे पड़ोसी पाकिस्तान, अफगानिस्तान, नेपाल, मालदीव, श्रीलंका और बांग्लादेश कमोबेश मिलती-जुलती समस्याओं के शिकार हैं. यही हाल पड़ोसी देश म्यांमार का भी है.

इन सभी देशों में क्रांतियों ने यथास्थिति को तोड़ा तो है, पर सब के सब असमंजस में हैं. इन ज्यादातर देशों में मालदीव और बांग्लादेश के इंडिया आउट जैसे अभियान चले थे. और अब सब भारत की सहायता भी चाहते हैं. 

Wednesday, August 7, 2024

शेख हसीना का पराभव और अराजकता भारत के लिए अशुभ संकेत


बांग्लादेश एकबार फिर से 2007-08 के दौर में वापस आ गया है. प्रधानमंत्री शेख हसीना को अपने कार्यकाल के आठवें महीने में ही न केवल इस्तीफा देना पड़ा है, देश छोड़कर भी जानापड़ा है. वे दिल्ली आ गई हैं, पर शायद यह अस्थायी मुकाम है.

पहले सुनाई पड़ रहा था कि संभवतः वे लंदन जाएंगी, पर अब सुनाई पड़ रहा है कि ब्रिटेन को कुछ हिचक है. फिलहाल उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी भारत पर है. उनके पराभव से बांग्लादेश की राजनीति में किस प्रकार का बदलाव आएगा, इसका पता नहीं, पर इतना साफ है कि दक्षिण एशिया के निकटतम पड़ोसी देशों में भारत के सबसे ज्यादा दोस्ताना रिश्ते उनके साथ थे.

अब हमें उनके बाद के परिदृश्य के बारे में सोचना होगा. इसके लिए बांग्लादेश के राजनीतिक दलों के साथ संपर्क बनाकर रखना होगा. कम से कम उन्हें भारत-विरोधी बनने से रोकना होगा.

आशा थी कि शेख हसीना के नेतृत्व में देश एक स्थिर और विकसित लोकतंत्र के रूप में उभर कर आएगा, पर वे ऐसा कर पाने में सफल नहीं हुईं. देश का राजनीतिक भविष्य अभी अस्पष्ट है, पर फिलहाल कुछ समय तक यह सेना के हाथ में रहेगा.

सेना के हाथ में सत्ता बनी रही, तो उससे नई समस्याएं पैदा होंगी और यदि असैनिक सरकार आई, तो उसे लोकतांत्रिक-पारदर्शिता और कट्टरपंथी आक्रामकता के बीच से गुजरना होगा. आंदोलन के एनजीओ टाइप छात्र नेता जैसी बातें कर रहे हैं, उन्हें देखते हुए लगता है कि भविष्य की राह आसान नहीं है.

व्यवस्था या अराजकता?

देश के विभिन्न स्थानों और प्रतिष्ठानों में शेख मुजीबुर रहमान की तस्वीरों और प्रतिमाओं को तोड़ा गया, अवामी लीग के कार्यालय में आग लगाई गई. सोमवार की दोपहर, बीएनपी, जमाते इस्लामी आंदोलन सहित विभिन्न राजनीतिक दलों के शीर्ष नेता और नागरिक समाज के प्रतिनिधि ढाका छावनी से एक सशस्त्र बल वाहन में राष्ट्रपति के निवास बंगभवन गए.

राष्ट्रपति, सेना प्रमुख के साथ बंगभवन में हुई इस बैठक में अंतरिम सरकार को लेकर कई फैसले किए गए. बैठक के बाद बीएनपी महासचिव मिर्जा फखरुल इस्लाम आलमगीर ने कहा कि संसद जल्द ही भंग कर दी जाएगी और अंतरिम सरकार की घोषणा की जाएगी.

Wednesday, July 31, 2024

इसराइल के दोनों तरफ लगी आग, फलस्तीनी गुटों की एकता और इस्माइल हानिये की हत्या

30 जुलाई को तेहरान में ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेज़ेश्कियान के साथ हमास के चीफ इस्माइल हानिये।

एक तरफ इसराइली प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने अमेरिकी संसद में जाकर घोषणा की है कि गज़ा में लड़ाई जारी रहेगी, वहीं फलस्तीनियों की दृष्टि से अच्छी खबर यह है कि उनके दो सबसे महत्वपूर्ण गुटों हमास और फतह के बीच गज़ा में 'सुलह सरकार (यूनिटी गवर्नमेंट)' बनाने करने पर सहमति हो गई है. पर इसके एक हफ्ते बाद ही हमास के प्रमुख इस्माइल हानिये की हत्या के निहितार्थ को भी समझना होगा.

यह सहमति 14 गुटों के बीच हुई है, पर इन दो गुटों का एक-दूसरे के करीब आना सबसे महत्वपूर्ण हैं. सुलह इसलिए मायने रखती है, क्योंकि आने वाले समय में यदि विश्व समुदाय टू-स्टेट समाधान की दिशा में आगे बढ़ा, तो वह कोशिश इन गुटों के आपसी टकराव की शिकार न हो जाए.

फिर भी इस समझौते को अंतिम नहीं माना जा सकता. इसमें कई किंतु-परंतु हैं, फिलहाल यह फलस्तीनियों की आंतरिक एकता की दृष्टि से महत्वपूर्ण है. यह सहमति चीन की मध्यस्थता से हुई है, इसलिए इसे चीन की बढ़ती भूमिका के रूप में भी देखना होगा.

Wednesday, July 24, 2024

बांग्लादेश का छात्र-आंदोलन यानी खतरे की घंटी


बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी नौकरियों के आरक्षण में भारी कटौती करके देश में लगी हिंसा की आग को काफी हद तक शांत कर दिया है. अलबत्ता इस दौरान बांग्लादेश की विसंगतियाँ भी उजागर हुई हैं. इस अंदेशे की पुष्टि भी कि देश में ऐसी ताकतें हैं, जो किसी भी वक्त सक्रिय हो सकती हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने कोटा बहाली पर हाईकोर्ट के 5 जून के आदेश को खारिज करते हुए आरक्षण को पूरी तरह खत्म जरूर नहीं किया है, पर उसे 54 फीसदी से घटाकर केवल 7 फीसदी कर दिया है. अदालत ने कहा है कि सरकारी नौकरियों में 93 फीसदी भर्ती योग्यता के आधार पर होगी.

शेष सात में से पाँच प्रतिशत मुक्ति-योद्धा कोटा, एक प्रतिशत अल्पसंख्यक कोटा और एक प्रतिशत विकलांगता-तृतीय लिंग कोटा होगा. सरकार चाहे तो इस कोटा को बढ़ा या घटा सकती है.

अदालत में छात्रों का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील शाह मंजरुल हक़ ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 104 के अनुसार, इस कोटा व्यवस्था के लिए अंतिम समाधान दे दिया है. सुनवाई के दौरान सरकारी वकील ने भी हाईकोर्ट के फ़ैसले को रद्द करने की माँग की थी.