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Saturday, July 6, 2019

भविष्य के स्वप्नों की तस्वीर

मोदी सरकार के दूसरे दौर के पहले बजट में कुछ बातें अपने नएपन की वजह से ध्यान खींचती हैं। मसलन पहली बार वित्तमंत्री के हाथ में पश्चिमी परम्पराओं का प्रतीक चमड़े का काला बैग नहीं थी, बल्कि लाल रंग के मखमली कपड़े में लिपटा दस्तावेज था। दूसरे ऐसा पहली बार हुआ है कि वित्तमंत्री ने अपने भाषण में आँकड़ों को बहुत ज्यादा बताने से परहेज रखा। उन्होंने बड़े कार्यक्रमों की घोषणा भी नहीं की। नल से जल जैसी योजना को छोड़ दें, तो लोकलुभावन बातें भी नहीं थीं। इसके बावजूद बजट न केवल आकर्षक है, बल्कि भरोसा जगाता है।

इस बजट में भारतवर्ष के भविष्य की न केवल तस्वीर खींची गई है, उसे साकार बनाने के तरीकों की घोषणा की गई है। निर्मला सीतारमण का बजट भाषण सामान्य व्यक्ति को भी उतना ही समझ में आया, जितना कि विशेषज्ञों को। चूंकि बजट के ज्यादातर प्रावधान वही हैं, जो फरवरी में पेश किए गए बजट में थे। बल्कि फरवरी में ही यह भी कहा गया था कि हम भारत को पाँच साल में पाँच ट्रिलियन और आठ साल में दस ट्रिलियन डॉलर की अर्थ-व्यवस्था बनाएंगे। अलबत्ता निर्मला सीतारमण ने वहाँ तक जाने के रास्ते को स्पष्ट किया। इस साल की आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि यह काम तभी होगा, जब हमारी सालाना संवृद्धि कम से कम आठ फीसदी की दर से हो। इस बजट में उस दर को हासिल करने की दिशा नजर आती है।

वित्तमंत्री को भरोसा है कि हम इस साल तीन ट्रिलियन की सीमारेखा पार कर जाएंगे। वैश्विक अर्थव्यवस्था मंदी के दौर में है। हमारी उम्मीदों के तीन बड़े कारण हैं। पेट्रोलियम की कीमतों में गिरावट है, मुद्रास्फीति काबू में है और राजकोषीय घाटा 3.4 से घटकर 3.3 फीसदी पर आ गया है। यानी कि सरकार ने वित्तीय अनुशासन बनाए रखा। राजस्व के मामले में वित्तमंत्री ने आयकर में हो रही रिकॉर्ड वृद्धि का जिक्र किया है। जीएसटी पर अभी अंदेशे हैं। यों इस बजट का मुख्य जोर पूँजी निवेश और तरलता बढ़ाने पर है।

बजट में भविष्य के भारत की तस्वीर


मोदी सरकार के दूसरे दौर के पहले बजट में भविष्य की न केवल तस्वीर खींची गई है, उसे साकार बनाने के तरीकों की घोषणा की गई है. कई मायनों में निर्मला सीतारमण का बजट साफ-सुथरा और स्पष्ट है. फरवरी में पेश किए गए बजट में कहा गया था कि हम भारत को पाँच साल में पाँच ट्रिलियन और आठ साल में दस ट्रिलियन डॉलर की अर्थ-व्यवस्था बनाएंगे. पर इस साल की आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि यह काम तभी होगा, जब हमारी सालाना संवृद्धि कम से कम आठ फीसदी की दर से हो.

वित्तमंत्री को भरोसा है कि हम इस साल तीन ट्रिलियन की सीमारेखा पार कर जाएंगे. वैश्विक अर्थव्यवस्था मंदी के दौर में है. हमारी उम्मीदों के तीन बड़े कारण हैं. पेट्रोलियम की कीमतों में गिरावट है, मुद्रास्फीति काबू में है और राजकोषीय घाटा 3.4 से घटकर 3.3 फीसदी पर आ गया है. यानी कि सरकार ने वित्तीय अनुशासन बनाए रखा. राजस्व के मामले में वित्तमंत्री ने आयकर में हो रही रिकॉर्ड वृद्धि का जिक्र किया है. जीएसटी पर अभी अंदेशे हैं. वित्तमंत्री ने सार्वजनिक उद्यमों के विनिवेश के लिए इस साल का लक्ष्य एक लाख पाँच हजार करोड़ रुपये का रखा है. एयर इंडिया के विनिवेश का जिक्र भी उन्होंने किया. बीएसएनएल और एमटीएनएल के लिए बड़े पैकेज सरकार को देने हैं.

Friday, July 5, 2019

आर्थिक सूझबूझ और राजनीतिक चतुराई की परीक्षा


बजट पेश होने के ठीक पहले मोटर वाहनों की बिक्री में आ रही लगातार गिरावट की खबरों से सरकार परेशान थी कि यह खबर आई कि जून के महीने में सर्विस सेक्टर में भी गिरावट नजर आई है। निक्की पर्चेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स (पीएमआई) के मुताबिक बिक्री कमजोर रहने और टैक्स की ऊँची दरों की वजह से ऐसा हुआ है। जून महीने में पीएमआई गिरकर 49.6 अंक पर पहुंच गया, जो मई में 50.2 था। सूचकांक का 50 से ऊपर रहना विस्तार के संकेत देता है और 50 से नीचे जाने का मतलब होता है कि अर्थव्यवस्था में गिरावट है।
हालांकि हाल में रोजगार की स्थिति बेहतर हुई है, पर लगता है कि उसका असर अभी नजर नहीं आया है। विनिर्माण के लिए पीएमआई में भी गिरावट आई है। मई में यह 52.7 था, जो जून में 52.1 रह गया है। विनिर्माण और सेवा का कंपोजिट पीएमआई आउटपुट इंडेक्स मई के 51.7 की तुलना में 50.8 रह गया है, जो इस साल का न्यूनतम स्तर है। 

Sunday, February 3, 2019

सीमांत किसान और मध्यवर्ग का बजट

http://epaper.haribhoomi.com/?mod=1&pgnum=1&edcode=75&pagedate=2019-02-03
इसमें दो राय नहीं कि मोदी सरकार का चुनावी साल का बजट लोक-लुभावन बातों से भरपूर है, पर इसके पीछे सामाजिक-दृष्टि भी है। इस बजट से तीन तबके सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे। एक सीमांत किसान, दूसरे असंगठित क्षेत्र के श्रमिक और तीसरे वेतन भोगी वर्ग। छोटे किसानों और मध्यवर्ग के लिए की गई घोषणाओं पर करीब एक लाख करोड़ रुपये (जीडीपी करीब 0.5 फीसदी) के खर्च की घोषणा सरकार ने की है, पर राजकोषीय अनुशासन बिगड़ा नहीं है। इस सरकार की उपलब्धि है, टैक्स-जीडीपी अनुपात को 2013-14 के 10.1 फीसदी से बढ़ाकर 11.9 फीसदी तक पहुंचाना। यानी कि कर-अनुपालन में प्रगति हुई है। आयकर चुकता करने वालों की तादाद से और जीएसटी में क्रमशः होती जा रही बढ़ोत्तरी से यह बात साबित हो रही है।

सरकार ने छोटे और सीमांत किसानों को आय समर्थन के लिए करीब 75,000 करोड़ रुपये की योजना की घोषणा की है। यह धनराशि कृषि उपज के मूल्य में कमी की भरपाई करेगी। सरकार का यह कदम कल्याणकारी राज्य की स्थापना की दिशा में एक कदम है। तेलंगाना में यह कार्यक्रम पहले से चल रहा है। केन्द्र सरकार इसका श्रेय चाहती है, तो इसमें गलत क्या है? दूसरी कल्याण योजना है असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए पेंशन। कल्याण योजनाओं के लिए संसाधन मौजूदा कार्यक्रमों में कमी करके उपलब्ध कराए गए हैं। यह भी सच है कि आयकर-दाताओं के सबसे निचले स्लैब को राहत देने से राजनीतिक लाभ मिलेगा। इस लिहाज से यह बजट विरोधी-दलों को खटक रहा है। अंतरिम बजट में बड़े नीतिगत फैसले को लेकर उनकी आपत्ति है, पर पहली बार अंतरिम बजट में बड़ी घोषणाएं नहीं हुईं हैं।

Saturday, February 2, 2019

बजट में सपने हैं, जुमले और जोश भी!


नरेन्द्र मोदी को सपनों का सौदागर कहा जा सकता है और उनके विरोधियों की भाषा में जुमलेबाज़ भी। उनका अंतरिम बजट पूरे बजट पर भी भारी है। वैसा ही लुभावना और उम्मीदों से भरा, जैसा सन 2014 में उनका पहला बजट था। इसमें गाँवों और किसानों के लिए तोहफों की भरमार है और साथ ही तीन करोड़ आय करदाताओं के लिए खुशखबरी है। कामगारों के लिए पेंशन है। उन सभी वर्गों का इसमें ध्यान रखा गया है, जो जनमत तैयार करते हैं। यानी की कुल मिलाकर पूरा राजनीतिक मसाला है। इसे आप राजनीतिक और चुनावोन्मुखी बजट कहें, तो आपको ऐसा कहने का पूरा हक है, पर आज की राजनीति में क्या यह बात अजूबा है? वोट के लिए ही तो सारा खेल चल रहा है। ऐसा भी नहीं कि इन घोषणाओं से खजाना खाली हो जाएगा, बल्कि अर्थ-व्यवस्था बेहतरी का इशारा कर रही है। इस अंतरिम बजट में सरकार ने सन 2030 तक की तस्वीर भी खींची है। यह वैसा ही बजट है, जैसा चुनाव के पहले होना चाहिए।

इस तस्वीर का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है पाँच साल में पाँच ट्रिलियन और आठ साल में दस ट्रिलियन की अर्थ-व्यवस्था बनना। इस वक्त हमारी अर्थ-व्यवस्था करीब ढाई ट्रिलियन डॉलर की है। अगले 11 साल में भारत के रूपांतरण का जो सपना यह सरकार दिखा रही है, वह भले ही बहुत सुहाना न हो, पर असम्भव भी नहीं है। 

उड़ानें भरता बजट


http://inextepaper.jagran.com/2007752/Kanpur-Hindi-ePaper,-Kanpur-Hindi-Newspaper-InextLive/02-02-19#page/8/1
मोदी सरकार का अंतिम बजट वैसा ही लुभावना और उम्मीदों से भरा है, जैसा सन 2014 में इस सरकार का पहला बजट था. इसमें गाँवों और किसानों के लिए तोहफों की भरमार है और साथ ही तीन करोड़ आय करदाताओं के लिए खुशखबरी है. कामगारों के लिए पेंशन है. उन सभी वर्गों का इसमें ध्यान रखा गया है, जो जनमत तैयार करते हैं. ऐसा भी नहीं कि इन घोषणाओं से खजाना खाली हो जाएगा, बल्कि अर्थ-व्यवस्था बेहतरी का इशारा कर रही है.

दो हेक्टेयर से कम जोत वाले किसानों सालाना छह हजार रुपये की मदद देने की जो घोषणा की गई है, उसे सार्वभौमिक न्यूनतम आय कार्यक्रम की शुरूआत मान सकते हैं. बेशक यह चुनाव से जुड़ा है, पर इस अधिकार से सरकार को वंचित नहीं कर सकते. अलबत्ता पूछ सकते हैं कि इसे लागू कैसे करेंगे? व्यावहारिक रूप से इन्हें लागू करने में कोई दिक्कत नहीं आएगी. बल्कि आने वाले वर्षों में ये स्कीमें और ज्यादा बड़े आकार में सामने आएंगी, क्योंकि अर्थ-व्यवस्था इन्हें सफलता से लागू करने की स्थिति में है.

पिछले साल जिस तरह से आयुष्मान भारत कार्यक्रम की घोषणा की गई थी, उसी तरह यह एक नई अवधारणा है, जो समय के साथ विकसित होगी. किसान सम्मान निधि से करीब 12 करोड़ छोटे किसानों का भला होगा. इन्हीं परिवारों को उज्ज्वला, सौभाग्य और आयुष्मान भारत जैसी योजनाओं का लाभ मिलेगा. यह स्कीम 1 दिसम्बर 2018 से लागू हो रही है. यानी कि इसकी पहली किस्त चुनाव के पहले किसानों को मिल भी जाएगी.