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पानी में खड़े होकर पीटीसी |
अखबारों को अब एक नई बीट बनानी चाहिए। चैनल बीट। इसमें रिपोर्टर का काम सिर्फ यह होना चाहिए कि आज दिन भर में किस चैनल ने क्या किया। आप देखिएगा हर रोज उसमें रोचक खबरें होगी।
चैनलों की दिलचस्पी बाढ़ की वजह से होती तो अच्छी बात थी। आखिर जनता की परेशानियों की फिक्र करना अच्छा है। पर इस फिक्र की दो वजहें थीं। एक यह बाढ़ दिल्ली में थी। वहाँ तक जाना आसान था। दिल्ली में टीवी देखने वाले भी ज्यादा हैं। मुम्बई वाले अपनी बाढ़ को लेकर इतनी अच्छी कवरेज करा सकते हैं, तो दिल्ली पीछे क्यों रहे? हाल में हरियाणा और पंजाब की बाढ़ को इतने जबर्दस्त ढंग से कवर नहीं किया गया। बिहार में कोसी की बाढ़ पर तो मीडिया का ध्पयान तब गया, जब बाढ़ उतर रही थी।
बाढ़ हो या सूखा, बात सनसनीखेज न हो तो हमारी कवरेज से क्या फायदा? इसलिए इंटरेस्टिंग बनाने में ही हमारा कौशल है। सो हर रिपोर्टर जुट गया नया एंगिल तलाशने में। टीवी की न्यूज़ में रिपोर्टर को यों तो करना कुछ नहीं होता। काम तो कैमरामैन को करना होता है। रिपोर्टर का आकर्षण है पीटीसी। यानी पीस टु कैमरा। यह पीटीसी जितनी रोचक हो जाए कवरेज उतनी ही सफल है।
कोई छत से लटक कर पीटीसी कर रहा है तो कोई गाय का सींग पकड़ कर। गनीमत है किसी ने गले तक पानी में डूबकर पीटीसी नहीं दिया। पीटीसी मे रिपोर्टर सारे तनाव अपने उपर लेकर ऐसा जाहिर करता है जैसे इस बाढ़ का पूरी जिम्मा उसका था। काम पूरा होते ही वह ऐसे खिसक लेता है जैसे नत्था के गायब होते ही पीपली से सारी टीमे निकल गईं थीं।