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Monday, June 26, 2023

पीएम मोदी की अमेरिका-यात्रा से भारत की हाईटेक-क्रांति का रास्ता खुला


भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका-यात्रा को कम से कम तीन सतह पर देखने समझने की जरूरत है. एक सामरिक-तकनीक सहयोग. दूसरे उन नाज़ुक राजनीतिक-नैतिक सवालों के लिहाज से, जो भारत में मोदी-सरकार के आने के बाद से पूछे जा रहे हैं. तीसरे वैश्विक-मंच पर भारत की भूमिका से जुड़े हैं. इसमें दो राय नहीं कि भारतीय शासनाध्यक्षों के अमेरिका-दौरों में इसे सफलतम मान सकते हैं.  

प्रधानमंत्री मोदी ने अमेरिकी संसद के संयुक्त अधिवेशन में कहा, भारत-अमेरिका सहयोग का यह नया सूर्योदय है, भारत बढ़ेगा, तो दुनिया बढ़ेगी. यह एक नज़रिया है, जिसके अनेक अर्थ हैं. भारत में आया बदलाव तमाम विकासशील देशों में बदलाव का वाहक भी बनेगा.

राजनीति में आमराय

अमेरिकी राजनीति में भी भारत के साथ रिश्तों को बेहतर बनाने के पक्ष में काफी हद तक आमराय देखने को मिली है. वहाँ की राजनीति में भारत और खासतौर से नरेंद्र मोदी के विरोधियों की संख्या काफी बड़ी है. उनके कटु आलोचक भी इसबार अपेक्षाकृत खामोश थे. कुछ सांसदों ने उनके भाषण का बहिष्कार किया और एक पत्र भी जारी किया, पर उसकी भाषा काफी संयमित थी.

'द वाशिंगटन पोस्ट' ने लिखा, अमेरिकी सांसदों ने सदन में पीएम मोदी का गर्मजोशी से स्वागत किया और खड़े होकर उनका जोरदार अभिवादन किया. जब वे तो दीर्घा में कुछ लोग मोदी-मोदी के नारे लगाए.  कई सांसद उनसे हाथ मिलाने के लिए कतार में खड़े थे.

अखबार ने यह भी लिखा कि मोदी की इस चमकदार-यात्रा का शुक्रवार को इस धारणा के साथ समापन हुआ कि जब अमेरिका के सामरिक-हितों की बात होती है, तो वे मानवाधिकार और लोकतांत्रिक मूल्यों पर मतभेदों को न्यूनतम स्तर तक लाने के तरीके खोज लेते हैं.

वॉशिंगटन पोस्ट मोदी सरकार के सबसे कटु आलोचकों में शामिल हैं, पर इस यात्रा के महत्व को उसने भी स्वीकार किया है. मोदी के दूसरे कटु आलोचक 'द न्यूयॉर्क टाइम्स' ने अपने पहले पेज पर अमेरिकी कांग्रेस में 'नमस्ते' का अभिवादन करते हुए नरेंद्र मोदी फोटो  छापी है. ऑनलाइन अखबार हफपोस्ट ने लिखा कि नरेंद्र मोदी की अमेरिकी यात्रा की आलोचना करने के गंभीर परिणाम हो सकते हैं.

Thursday, October 6, 2022

भारत-अमेरिका: ‘तलवार की धार पर’ दौड़ते रिश्ते


हाल में भारत के विदेशमंत्री एस जयशंकर ने अपनी 11 दिन की अमेरिका के दौरान दो तरह के बयान दिए. विदेशमंत्री एंटनी ब्लिंकेन के साथ बातचीत में उन्होंने कहा, भारत-अमेरिका रिश्तों को लेकर मैं बहुत ज्यादा आशावान हूँ. उसके एक दिन पहले उन्होंने पत्रकारों से बातचीत के दौरान एफ-16 विमानों के रख-रखाव के सिलसिले में पाकिस्तान को दिए गए अमेरिकी पैकेज की आलोचना की.


जयशंकर क्या संशय में थे? या इसे भारतीय डिप्लोमेसी का नया आक्रामक अंदाज़ मानें?  डिप्लोमेसी में कोई बात यों ही नहीं कही जाती. जयशंकर का यह दौरा बेहद व्यस्त रहा. उन्होंने न केवल अमेरिका के नेताओं से संवाद किया, साथ ही दूसरे देशों के कम से कम 40 महत्वपूर्ण व्यक्तियों के साथ बैठकें कीं.

यह बात भारत के महत्व को रेखांकित करती हैं. भू-राजनीतिक, सामरिक और आर्थिक परिस्थितियों को देखते हुए दुनिया को भारत की अहमियत को स्वीकार करना ही होगा, पर अंतर्विरोधों से भी इनकार नहीं किया जा सकता.

भारतीय कंपनी पर प्रतिबंध

जयशंकर की यात्रा के फौरन बाद अमेरिका ने पेट्रोलियम का कारोबार करने वाली मुंबई की एक कंपनी पर प्रतिबंध लगाए हैं, जिसपर आरोप है कि उसने ईरानी पेट्रोलियम खरीद कर चीन को उसकी सप्लाई की. हाल के वर्षों में यह पहला मौका है, जब अमेरिका ने किसी भारतीय कंपनी पर प्रतिबंध लगाए हैं.

हमारी विदेश-नीति अमेरिका और रूस के रिश्तों को लेकर तलवार की धार पर चलती नज़र आती है. कभी लगता है कि रूस और अमेरिका के बीच संतुलन बैठाने के फेर में नैया डगमगा रही है. दूसरी तरफ भारत के महत्व को रेखांकित करने, गुटों या देशों के दबाव से खुद को मुक्त करने और अपने हितों से जुड़ाव को व्यक्त करने की इस प्रवृत्ति को हम जयशंकर के बयानों में पढ़ सकते हैं.

Thursday, March 25, 2021

क्या ‘क्वाड’ बड़े क्षेत्रीय-सहयोग संगठन के रूप में विकसित होगा?


अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान और भारत के शीर्ष-नेताओं की 12 मार्च को हुई वर्चुअल बैठक को बदलते वैश्विक परिदृश्य में महत्वपूर्ण परिघटना के रूप में देखा गया है। क्वाड नाम से चर्चित इस समूह को चीन-विरोधी धुरी के रूप में देखा जा रहा है। खासतौर से भारत की विदेश-नीति को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं। क्या अब हमारी विदेश-नीति स्वतंत्र नहीं रह गई है? क्या हम अमेरिकी खेमे में शामिल हो गए हैं? क्या हम अपने दीर्घकालीन मित्र रूस का साथ छोड़ने को तैयार हैं? क्या पश्चिमी देशों की राजनीति नेटो से हटकर हिंद-प्रशांत क्षेत्र पर केंद्रित होने वाली है? ऐसा क्यों हो रहा है? इस सिलसिले में सबसे बड़ा सवाल चीन को लेकर है। क्या वह अमेरिका और पश्चिम को परास्त करके दुनिया की सबसे बड़ी ताकत के रूप में स्थापित होने जा रहा है?

चीन ने इस बैठक को लेकर अपनी आशंकाएं व्यक्त की हैं। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने बैठक से ठीक पहले कहा कि देशों के बीच विचार-विमर्श और सहयोग की प्रक्रिया चलती है, लेकिन इसका मकसद आपसी विश्वास और समझदारी बढ़ाने का होना चाहिए, तीसरे पक्ष को निशाना बनाने या उसके हितों को नुकसान पहुंचाने का नहीं। क्वाड की शिखर बैठक में इस बात का पूरा ध्यान रखा गया था कि उसे किसी खास देश के खिलाफ न माना जाए।

इतना ही नहीं, इसे अब सुरक्षा-व्यवस्था की जगह आपसी सहयोग का मंच बनाने की कोशिशें भी हो रही हैं। अब वह केवल सुरक्षा-समूह जैसा नहीं है, बल्कि उसके दायरे में आर्थिक और सामाजिक सहयोग से जुड़े कार्यक्रम भी शामिल हो गए हैं। क्वाड देशों के नेताओं ने शिखर-वार्ता में जिन विषयों पर विचार किया, उनमें वैक्सीन की पहल और अन्य संयुक्त कार्य समूहों के साथ महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकी और जलवायु परिवर्तन पर सहयोग करना शामिल था।

Wednesday, October 28, 2020

भारत-अमेरिका के बीच हुए ‘बेका’ समझौते का व्यावहारिक अर्थ क्या है?


भारत और अमेरिका के बीच रक्षा से जुड़े निम्नलिखित
समझौते हुए हैं। इनमें GSOMIA, LEMOA और COMCASA के बाद BECA चौथा सबसे महत्वपूर्ण समझौता है। सैनिक गतिविधियाँ बारहों महीने और चौबीसों घंटे चलती हैं। सारी दुनिया सो जाए, पर सेना कहीं न कहीं जागती रहती है। बेका उसी जागते रहने का समझौता है। जिस तरह हमारी सेना जागती है, उसी तरह अमेरिकी सेना भी जागती रहती है।

अभी तक हमारे जागने से जो जानकारियाँ हासिल होती थीं, वे हमारे पास रहती थीं और अमेरिका की जानकारियाँ अमेरिका के पास। हो सकता है कि हम बाद में जानकारियों का आदान-प्रदान भी करते रहे हों, पर यह रियल टाइम में निरंतर चलने वाली गतिविधि नहीं थी। अब यह रियल टाइम में निरंतर चलने वाली गतिविधि बन गई है।

मसलन अमेरिकी नौसेना ने दक्षिण चीन सागर से रवाना हुई किसी चीनी पनडुब्बी को डिटेक्ट किया, तो उसी वक्त भारतीय नौसेना को भी पता लग जाएगा कि एक पनडुब्बी चली है। यदि वह हिंद महासागर की ओर आ रही होगी, तो भारत के पी-8आई विमान अपनी गश्त के दायरे में आने पर उसका पीछा करने लगेंगे। इस तरह अमेरिकी नौसेना हिंद महासागर में भी उसपर निगाहें रख सकेगी। यह केवल एक उदाहरण है। सैनिक गतिविधियाँ जमीन, आसमान, अंतरिक्ष और समुद्र के अलावा अब सायबर स्पेस में भी चलती हैं। इसलिए इस निगहबानी का दायरा बहुत बड़ा है।

Tuesday, October 27, 2020

भारत-अमेरिकी रक्षा सहयोग का नया दौर


जैसी कि उम्मीद थी भारत और अमेरिका के बीच टू प्लस टू वार्ता के दौरान बेसिक एक्सचेंज एंड कोऑपरेशन एग्रीमेंट (बेका) हो गया। यह समझौता सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसमें दोनों देश सामरिक दृष्टि से बेहद गोपनीय जानकारियाँ एक-दूसरे को उपलब्ध कराएंगे। हालांकि यह समझौता भारत और चीन के बीच खराब होते रिश्तों की पृष्ठभूमि में हुआ है, पर इसका तात्कालिक कारण यह नहीं है। इस समझौते की रूपरेखा वर्षों से तैयार हो रही थी और 2002 में इसकी शुरुआत हो गई थी। भारत का धीरे-धीरे अमेरिका के करीब जाना पाकिस्तान-चीन के आपसी रिश्तों की निकटता से भी जुड़ा है।  

नब्बे का दशक और इक्कीसवीं सदी का प्रारम्भ भारतीय विदेश-नीति के लिए बहुत महत्वपूर्ण रहा है। नब्बे के दशक की शुरुआत कश्मीर में पाकिस्तान के आतंकी हमले से हुई थी, जिसकी पृष्ठभूमि 1989 में तैयार हो गई थी। इसके कुछ वर्ष बाद ही भारत और इसरायल के राजनयिक संबंध स्थापित हुए। इसी दौर में नई आर्थिक नीति के भारत सहारे तेज आर्थिक विकास की राह पर बढ़ा था।

Friday, October 23, 2020

भारत-अमेरिका रिश्तों का एक और कदम

 विदेशी मामलों को लेकर भारत में जब बात होती है, तो ज्यादातर पाँच देशों के इर्द-गिर्द बातें होती हैं। एक, पाकिस्तान, दूसरा चीन। फिर अमेरिका, रूस और ब्रिटेन। इन देशों के आपसी रिश्ते हमें प्रभावित करते हैं। देश की आंतरिक राजनीति भी इन रिश्तों के करीब घूमने लगती है। आर्थिक मसलों को लेकर अमेरिका और चीन के रिश्ते बिगड़ते जा रहे हैं। भारत और अमेरिका के सामरिक रिश्ते एक नई शक्ल ले रहे हैं। हाल में जापान में हुई विदेशमंत्रियों की बैठक में हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चतुष्कोणीय सुरक्षा यानी क्वाड को लेकर भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के बीच सहमति बनी हैं। इसके साथ ही मालाबार युद्धाभ्यास में ऑस्ट्रेलिया के और शामिल हो जाने के बाद यह सहयोग पूरा हो गया है। वस्तुतः यह अमेरिकी पहल है और भारत के बगैर यह पूरी नहीं हो सकती थी। दोनों देशों के बीच लगातार टल रही टू प्लस टू वार्ता अंततः सितंबर 2018 में शुरू हो गई, जिसमें कम्युनिकेशंस, कंपैटिबिलिटी, सिक्योरिटी एग्रीमेंट (कोमकासा) समझौता हुआ। और अब 27 अक्तूबर को होने वाली टू प्लस टू वार्ता में एक और महत्वपूर्ण समझौता होने वाला है, जिसका नाम है 'बेसिक एक्सचेंज एंड कोऑपरेशन एग्रीमेंट फॉर जियो-स्पेशियल कोऑपरेशन(बेका)। टू प्लस टू वार्तामें दोनों देशों के विदेशमंत्री और रक्षामंत्री शामिल होते हैं। ऐसी ही वार्ता भारत और जापान के बीच भी होती है।

भारत और अमेरिका के बीच कम्युनिकेशंस, कंपैटिबिलिटी, सिक्योरिटी एग्रीमेंट (कोमकासा) होने से लगता है कि दोनों देश आगे बढ़े हैं। इसे दोनों देशों के रिश्तों में मील का पत्थर बताया गया है। कोमकासा उन चार समझौतों में से एक है जिसे अमेरिका फौजी रिश्तों के लिहाज से बुनियादी मानता है। इसके पहले दोनों देशों के बीच जीएसओएमआईए और लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ़ एग्रीमेंट (लेमोआ) पर दस्तखत हो चुके हैं। इन तीन समझौतों के बाद अब 'बेसिक एक्सचेंज एंड कोऑपरेशन एग्रीमेंट फ़ॉर जियो-स्पेशियल कोऑपरेशन (बेका) की दिशा में दोनों देश बढ़ेंगे। दोनों देशों ने अपने रक्षा और विदेश मंत्रियों के बीच हॉटलाइन स्थापित करने का फैसला भी किया है। सितंबर 2018 में अमेरिकी विदेशमंत्री माइक पोम्पिओ ने संयुक्त ब्रीफिंग में कहा था कि हम वैश्विक शक्ति के रूप में भारत के उभरने का पूरी तरह से समर्थन करते हैं तथा हम अपनी साझेदारी के लिए भारत की समान प्रतिबद्धता का स्वागत करते हैं। कोमकासा के तहत भारत को अमेरिका से महत्वपूर्ण रक्षा संचार उपकरण हासिल करने का रास्ता साफ हो गया और अमेरिका तथा भारतीय सशस्त्र बलों के बीच अंतर-सक्रियता के लिए महत्वपूर्ण संचार नेटवर्क तक उसकी पहुंच होगी।

Wednesday, February 26, 2020

अमेरिका से रिश्तों की नई ऊँचाई


अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दौरे के बाद भारत-अमेरिका संबंध एक नई ऊँचाई पर पहुँचे हैं। इन रिश्तों का असर दूर तक और देर तक देखने को मिलेगा। बेशक राजनयिक संबंध इंस्टेंट कॉफी की तरह नहीं होते कि किसी एक यात्रा से रिश्तों में नाटकीय बदलाव आ जाए, पर ऐसी यात्राएं मील के पत्थर का काम जरूर करती हैं। दोनों देशों ने मंगलवार को तीन समझौतों पर हस्ताक्षर किए। उम्मीद है आने वाले वर्षों में ऐसे तमाम समझौते और होंगे। इस यात्रा से यह निष्कर्ष जरूर निकाला जा सकता है कि आने वाले वर्षों में यह गठबंधन क्रमशः मजबूत होता जाएगा।
ट्रंप की यात्रा के पहले दिन अहमदाबाद और आगरा में ये रिश्ते सांस्कृतिक धरातल पर थे और दिल्ली में दूसरे दिन के कार्यक्रमों में इनका राजनयिक महत्व खुलकर सामने आया। दोनों नेताओं की संयुक्त प्रेस वार्ता में ट्रंप ने घोषणा की कि अमेरिका ने तीन अरब डॉलर के रक्षा समझौतों पर मुहर लगाई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बताया कि ट्रेड डील को लेकर दोनों देशों के बीच बातचीत जारी रखने पर सहमति बनी है। इसके अलावा पेट्रोलियम और नाभिकीय ऊर्जा से जुड़े तथा अंतरिक्ष अनुसंधान और स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी कुछ समझौते हुए हैं। अमेरिका भारत को 5-जी से भी आगे की टेली-तकनीक से जोड़ना चाहता है।

Monday, February 24, 2020

अफगान समझौते की पृष्ठभूमि में ट्रंप की यात्रा का महत्व


अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की इस सप्ताह होने वाली भारत-यात्रा काफी हद तक केवल चाक्षुष (ऑप्टिकल) महत्व है। चुनाव के साल में ट्रंप अपने देशवासियों को दिखाना चाहते हैं कि मैं देश के बाहर कितना लोकप्रिय हूँ। उनके स्वागत की जैसी व्यवस्था अहमदाबाद में की गई है, वह भी यही बताती है। दोनों नेताओं का यह अब तक का सबसे बड़ा मेगा शो होगा। अमेरिका में हुए 'हाउडी मोदी' कार्यक्रम में जहां 50 हजार लोग शामिल हुए थे वहीं अहमदाबाद में लाखों का दावा किया जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ ट्रंप वहाँ मोटेरा क्रिकेट स्टेडियम का उद्घाटन भी करेंगे, जो दुनिया का सबसे बड़ा क्रिकेट स्टेडियम है। अहमदाबाद हवाई अड्डे से साबरमती आश्रम तक 10 किलोमीटर तक के मार्ग पर रोड शो होगा।
इस स्वागत-प्रदर्शन से हटकर भी भारत और अमेरिका के रिश्तों के संदर्भ में इस यात्रा का महत्व है। आमतौर पर ट्रंप द्विपक्षीय यात्राओं पर नहीं जाते। उनकी दिलचस्पी या तो बहुपक्षीय शिखर सम्मेलनों में होती है या ऐसी द्विपक्षीय बैठकों में, जिनमें किसी समस्या बड़े समाधान को हासिल करने की कोशिश हो। पिछले साल के गणतंत्र दिवस पर भारत आने का प्रस्ताव ठुकरा कर वे भारत को हमें एक राजनयिक झटका लगा चुके हैं। बहरहाल नाटकीयता अपनी जगह है, दोनों देशों के रिश्तों का महत्व है। ऐसे मौके पर जब अमेरिका ने तालिबान के साथ समझौता करके अफगानिस्तान से अपनी सेना हटाने का फैसला कर लिया है, यह यात्रा बेहद महत्वपूर्ण हो गई है।

Sunday, February 23, 2020

ट्रंप-यात्रा का राजनयिक महत्व


अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की इस हफ्ते हो रही भारत-यात्रा का पहली नजर में विशेष राजनीतिक-आर्थिक महत्व नजर नहीं आ रहा है, क्योंकि आधिकारिक रूप से कहा गया है कि दोनों देशों के बीच बहु-प्रतीक्षित व्यापार समझौते पर दस्तखत अभी नहीं होंगे, बल्कि इस साल हो रहे राष्ट्रपति चुनाव के बाद होंगे। अहमदाबाद और आगरा की यात्रा का कार्यक्रम जिस प्रकार से तैयार किया गया है, उससे लगता है कि यह सैर-सपाटे वाली यात्रा ज्यादा है। ट्रंप चाहते हैं कि इसका जमकर प्रचार किया जाए। चुनाव के साल में वे दिखाना चाहते हैं कि मैं देश के बाहर कितना लोकप्रिय हूँ। 
बावजूद इसके यात्रा के राजनयिक महत्व को कम नहीं किया जा सकता। अंततः यह अमेरिकी राष्ट्रपति की ‘स्टैंड एलोन’ यात्रा है। आमतौर पर ट्रंप द्विपक्षीय यात्राओं पर नहीं जाते। उनके साथ वाणिज्य मंत्री बिलबर रॉस, ऊर्जा मंत्री डैन ब्रूले, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रॉबर्ट सी ओ’ब्रायन और ह्वाइट हाउस चीफ ऑफ स्टाफ मिक मलवेनी भी आ रहे हैं। वे वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल, पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल से मुलाकात करेंगे। कुछ समझौते तो होंगे ही, जिनमें आंतरिक सुरक्षा, आतंकवाद के खिलाफ साझा मुहिम, ऊर्जा सुरक्षा और रक्षा तकनीक से जुड़े मसले शामिल हैं।

Saturday, September 8, 2018

भारत-अमेरिका रिश्तों का अगला कदम

विदेशी मामलों को लेकर भारत में जब बात होती है, तो ज्यादातर पाँच देशों के इर्द-गिर्द बातें होती हैं। एक, पाकिस्तान,दूसरा चीन। फिर अमेरिका, रूस और ब्रिटेन। इन देशों के आपसी रिश्ते हमें प्रभावित करते हैं। देश की आंतरिक राजनीति भी इन रिश्तों के करीब घूमने लगती है। पिछले कुछ हफ्तों की गतिविधियाँ इस बात की गवाही दे रहीं हैं। कश्मीर में घटनाक्रम तेजी से बदला है। उधर पाकिस्तान में इमरान खान की नई सरकार समझ नहीं पा रही है कि करना क्या है। इस बीच न्यूयॉर्क टाइम्स ने खबर दी है कि पाकिस्तानी सेना ने भारत के साथ रिश्तों को बेहतर बनाने की कोशिशें शुरू कर दी हैं। आर्थिक मसलों को लेकर अमेरिका और चीन के रिश्ते बिगड़ते जा रहे हैं। भारत और अमेरिका के रिश्तों में भी कुछ समय से कड़वाहट है। दोनों देशों के बीच लगातार टल रही टू प्लस टू वार्ता अंततः इस हफ्ते हो जाने के बाद असमंजस के बादल हटे हैं।

जून के तीसरे हफ्ते मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के इस्तीफा देने के बाद से कश्मीर में घटनाक्रम तेजी से बदला है। इसके फौरन बाद कश्मीर में एक दशक से जमे जमाए राज्यपाल रहे एनएन वोहरा का कार्यकाल समाप्त हो गया। उनकी जगह अगस्त के तीसरे हफ्ते में सतपाल मलिक ने राज्य के राज्यपाल का पदभार ग्रहण किया। सतपाल मलिक इसके पहले बिहार के राज्यपाल थे। राज्य के पुलिस प्रमुख भी बदल दिए गए हैं। नए राज्यपाल के आने के पहले ही राज्य के शहरी और ग्रामीण निकाय चुनाव इस अक्तूबर और नवम्बर में कराने की घोषणा हो गई थी। उस घोषणा की प्रतिक्रिया में राजनीतिक लहरें बनने लगी हैं।
सवाल है कश्मीर को लेकर सरकार क्या कोई बड़ा फैसला करने वाली है? उधर लोकसभा चुनाव करीब हैं। चुनाव के पहले क्या कोई बड़ा फैसला करना सम्भव है?पर मन यह भी कहता है कि चुनाव के पहले बड़े नाटकीय फैसले सम्भव भी हैं। इस सिलसिले में दिल्ली में गुरुवार को भारत और अमेरिका के रक्षा और विदेश मंत्रियों की बहुप्रतीक्षित टू प्लस टू वार्ताके निहितार्थों को समझने की कोशिश भी करनी चाहिए। भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण तथा अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पियो और रक्षा मंत्री जेम्स मैटिस ने इस वार्ता में हिस्सा लिया।

Sunday, February 1, 2015

आक्रामक डिप्लोमेसी का दौर

मोदी सरकार के पहले नौ महीनों में सबसे ज्यादा गतिविधियाँ विदेश नीति के मोर्चे पर हुईं हैं। इसके दो लक्ष्य नजर आते हैं। एक, सामरिक और दूसरा आर्थिक। देश को जैसी आर्थिक गतिविधियों की जरूरत है वे उच्चस्तरीय तकनीक और विदेशी पूँजी निवेश पर निर्भर हैं। भारत को तेजी से अपने इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास करना है जिसकी पटरियों पर आर्थिक गतिविधियों की गाड़ी चले। अमेरिका के साथ हुए न्यूक्लियर डील का निहितार्थ केवल नाभिकीय ऊर्जा की तकनीक हासिल करना ही नहीं था। असली बात है आने वाले वक्त की ऊर्जा आवश्यकताओं को समझना और उनके हल खोजना है।

Thursday, January 29, 2015

ओबामा यात्रा, खुशी है खुशहाली नहीं

ओबामा की यात्रा के बाद भारत आर्थिक उदारीकरण के काम में तेजी से जुट गया है. सरकार विदेशी निवेशकों से उम्मीद कर रही है. इसके लिए वोडाफोन के मामले पर हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील नहीं करने का फैसला कैबिनेट ने किया है. ओबामा यात्रा मूलतः भारतीय विदेश नीति की दिशा तय करके गई है. भारत कोशिश कर रहा है कि अमेरिका के साथ बनी रहे और रूस और चीन के साथ भी. हमारी कोशिश होनी चाहिए कि दुनिया एक और शीतयुद्ध की ओर न बढ़े. इस रविवार को सुषमा स्वराज चीन जा रही हैं. यह बैलेंस बनाने का काम ही है. फिलहाल मोदी सरकार के सामने सबसे बड़ा काम है देश की अर्थव्यवस्था को ढर्रे पर लाना. 

ओबामा यात्रा के बाद वैश्विक मंच पर भारत का रसूख बढ़ेगा, पर क्या यह हमारी बुनियादी समस्याओं के हल करने में भी मददगार होगी? शायद नहीं.  जिस बड़े स्तर पर पूँजी निवेश की हम उम्मीद कर रहे हैं वह अभी आता नजर नहीं आता. उसके लिए हमें कुछ व्यवस्थागत बदलाव लाने होंगे, जिसमें टाइम लगेगा. आर्थिक गतिविधियों को बढ़ाने के लिए के लिए इस इलाके में शांति का माहौल चाहिए. इस यात्रा पर पाकिस्तान और चीन की जो प्रतिक्रियाएं आईं हैं उनसे संदेह पैदा होता है कि यह इलाका भावनाओं के भँवर से बाहर निकल भी पाएगा या नहीं. डर यह है कि हम नए शीतयुद्ध की ओर न बढ़ जाएं.  

Monday, January 26, 2015

यह ‘परेड-डिप्लोमेसी’ कुछ कहती है


बराक ओबामा को गणतंत्र दिवस की परेड का मुख्य अतिथि बनाने का कोई गहरा मतलब है? एक ओर सुरक्षा व्यवस्था का दबाव पहले से था, ओबामा की यात्रा ने उसमें नाटकीयता पैदा कर दी. मीडिया की धुआँधार कवरेज ने इसे विशिष्ट बना दिया है. यात्रा के ठीक पहले दोनों देशों के बीच न्यूक्लियर डील के पेचीदा मसलों का हल होना भी सकारात्मक है. कई लिहाज से यह गणतांत्रिक डिप्लोमेसी इतिहास के पन्नों में देर तक याद की जाएगी.    

दोनों के रिश्तों में दोस्ताना बयार सन 2005 से बह रही है, पर पिछले दो साल में कुछ गलतफहमियाँ भी पैदा हुईं. इस यात्रा ने कई गफलतों-गलतफहमियों को दूर किया है और आने वाले दिनों की गर्मजोशी का इशारा किया है. पिछले 65 साल में अमेरिका को कोई राजनेता इस परेड का मुख्य अतिथि कभी नहीं बना तो यह सिर्फ संयोग नहीं था. और आज बना है तो यह भी संयोग नहीं है. वह भी भारत का एक नजरिया था तो यह भी हमारी विश्व-दृष्टि है. ओबामा की यह यात्रा एक बड़ा राजनीतिक वक्तव्य है.

Sunday, September 28, 2014

मोदी का ‘ग्लोबल कनेक्ट’

यह लेख नरेंद्र मोदी के संयुक्त राष्ट्र महासभा के भाषण के पहले लिखा गया था। महासभा के भाषणों का व्यावहारिक महत्व कोई खास नहीं होता। भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर को लेकर कहा-सुनी चलती है। भारत मानता है कि यह द्विपक्षीय प्रश्न है, इसे अंतरराष्ट्रीय मंच पर उठाया नहीं जाना चाहिए। पर सच है कि इसे भारत ही अंतरराष्ट्रीय मंच पर लेकर गया था। पाकिस्तान ने हमेशा इसका फायदा उठाया और पश्चिम के साथ अच्छे सम्पर्कों का उसे फायदा मिला। पश्चिमी देश भारत को मित्र मानते हैं पर सामरिक कारणों से पाकिस्तान को वे अपने गठबंधन का हिस्सा मानते हैं। सीटो और सेंटो का जब तक वजूद था, पाकिस्तान उनका गठबंधन सहयोगी था भी। आने वाले वर्षों में भारत को अपने आकार और प्रभावशाली अर्थ-व्यवस्था का लाभ मिलेगा। पर देश की आंतरिक राजनीति और हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था को प्रौढ़ होने में समय लग रहा है। हमारी विकास की गति धीमी है। फैसले करने में दिक्कतें हैं। बहरहाल नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत दुनिया से कुछ खरी बातें कहने की स्थिति में आ गया है। यह बात धीरे-धीरे ज्यादा साफ होती जाएगी।


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिका आने के ठीक पहले वॉल स्ट्रीट जनरल के लिए लेख लिखा है। इस लेख में उन्होंने अपने सपनों के भारत का खाका खींचा है साथ ही अमेरिका समेत दुनिया को भारत में निवेश के लिए आमंत्रित किया है। उन्होंने लिखा है, कहते हैं ना काम को सही करना उतना ही महत्वपूर्ण है, जितना सही काम करना। अमेरिका रवाना होने के ठीक पहले दिल्ली में और दुनिया के अनेक देशों में एक साथ शुरू हुए मेक इन इंडिया अभियान की शुरुआत की थी। इस अभियान के ठीक एक दिन पहले भारत के वैज्ञानिकों ने मंगलयान अभियान के सफल होने की घोषणा की। संयोग है कि समूचा भारत पितृ-पक्ष के बाद नव-रात्रि मना रहा है। त्योहारों और पर्वों का यह दौर अब अगले कई महीने तक चलेगा।

Saturday, September 27, 2014

न्यूक्लियर डील के पेचो-ख़म

पहले जापान, फिर चीन और अब अमेरिका के साथ बातचीत की बेला में भारतीय विदेश नीति के अंतर्विरोध नज़र आने लगे हैं। सन 2005 के भारत-अमेरिका सामरिक सहयोग के समझौते के बाद सन 2008 के न्यूक्लियर डील ने दोनों देशों को काफी करीब कर दिया था। इसी डील ने दोनों के बीच खटास पैदा कर दी है। विवाद की जड़ में है सिविल लायबिलिटी फॉर न्यूक्लियर डैमेज एक्ट 2010 की वे व्यवस्थाएं जो परमाणु दुर्घटना की स्थिति में मुआवजा देने की स्थिति में उपकरण सप्लाई करने वाली कम्पनी पर जिम्मेदारी डालती हैं। खासतौर से इस कानून की धारा 17 से जुड़े मसले पर दोनों देशों के बीच सहमति नहीं है। यह असहमति केवल अमेरिका के साथ ही नहीं है, दूसरे देशों के साथ भी है। जापान के साथ तो हमारा कुछ बुनियादी बातों को लेकर समझौता ही नहीं हो पा रहा है।

Tuesday, January 14, 2014

भारत-अमेरिका रिश्तों में बचकाना बातें

देवयानी खोब्रागडे के मामले को लेकर हमारे मीडिया में जो उत्तेजक माहौल बना उसकी जरूरत नहीं थी. इसे आसानी से सुलझाया जा सकता था. इसे भारत-अमेरिका रिश्तों के बनने या बिगड़ने का कारण मान लिया जाना निहायत नासमझी होगी. दो देशों के रिश्ते इस किस्म की बातों से बनते-बिगड़ते नहीं है. भारत में इस साल चुनाव होने हैं और यह मामला बेवजह गले की हड्डी बन सकता है. सच यह है कि यह एक बीमारी का लक्षण मात्र है. बीमारी है संवेदनशील मसलों की अनदेखी. बेहतर होगा कि हम बीमारी को समझने की कोशिश करें. हर बात को राष्ट्रीय अपमान, पश्चिम के भारत विरोधी रवैये और भारत के दब्बूपन पर केंद्रित नहीं किया जाना चाहिए.