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Sunday, October 21, 2018

सबरीमलाई का राजनीतिक संदेश

हाल में हुए अदालतों के दो फैसलों के सामाजिक निहितार्थों को समझने की जरूरत है। इनमें एक फैसला उत्तर भारत से जुड़ा है और दूसरा दक्षिण से, पर दोनों के पीछे आस्था से जुड़े प्रश्न हैं। पिछले कुछ समय में गुरमीत राम रहीम और आसाराम बापू को अदालतों ने सज़ाएं सुनाई। अब बाबा रामपाल को दो मामलों में उम्रकैद की सज़ा सुनाई है। तीनों मामले अपराधों से जुड़े है। पिछले साल अगस्त में जैसी हिंसा राम रहीम समर्थकों ने की, तकरीबन वैसी ही हिंसा उसके पहले मथुरा के जवाहर बाग की सैकड़ों एकड़ सरकारी जमीन पर कब्जा जमाए बैठे रामवृक्ष यादव और उनके हजारों समर्थकों और पुलिस के बीच हिंसक भिड़ंत में हुई थी। बहरहाल बाबा रामपाल प्रकरण में ऐसा नहीं हो पाया।

पिछले हफ्ते केरल के सबरीमलाई (या सबरीमाला) मंदिर में कपाट खुलने के बाद के घटनाक्रम ने देश का ध्यान खींचा है। 12वीं सदी में बने भगवान अयप्पा के इस मंदिर में परम्परा से 10-50 साल की उम्र की स्त्रियों के प्रवेश पर रोक है। हाल में कुछ सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रतिबंध को हटा दिया और सभी महिलाओं के प्रवेश की अनुमति दे दी। केरल के परम्परागत समाज ने अदालत की इस अनुमति को धार्मिक मामलों में राज-व्यवस्था का अनुचित हस्तक्षेप माना।