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Sunday, August 27, 2023

चंद्रयान-3 ने खोले संभावनाओं के द्वार


चंद्रयान-3 की सफलता ने देश-विदेश में करोड़ों भारतीयों को खुशी का मौका दिया है। इतिहास में ऐसे अवसर कभी-कभी आते हैं, जब इस तरह करोड़ों भावनाएं एकाकार होती हैं। दुनिया ने भारत को स्पेस-पावर के रूप में स्वीकार कर लिया है। हालांकि रूस और अमेरिका पाँच दशक पहले चंद्रमा पर विजय प्राप्त कर चुके हैं, फिर भी भारत की यह उपलब्धि बहुत महत्वपूर्ण है। अमेरिका और तत्कालीन सोवियत संघ के संसाधनों को देखते हुए हमारी उपलब्धि हल्की नहीं है। चंद्रयान की इस सफलता के चार दिन पहले ही रूस को चंद्रमा पर निराशा का सामना करना पड़ा। भारत ने जिस तकनीक और किफायत से इस उपलब्धि को हासिल किया, उसपर गौर करने की जरूरत है। किफायती हाई-टेक के क्षेत्र में भारत ने अपने झंडे गाड़े हैं। चंद्रयान-2 की विफलता से हासिल अनुभव का इसरो ने फायदा उठाया और उन सारी गलतियों को दूर कर दिया, जो पिछली बार हुई थीं। उन्नत चंद्रयान-3 लैंडर को आकार देने के लिए 21 उप-प्रणालियों को बदला गया। ऐसी व्यवस्था की गई कि यदि किसी एक पुर्जे या प्रक्रिया में खराबी आ जाए, तो दूसरा उसकी जगह काम संभाल लेगा। लैंडिंग की प्रक्रिया को मिनटों और सेकंडों के छोटे-छोटे कालखंडों में बाँटकर इस तरह से संयोजित किया गया कि अभियान के विफल होने की संभावना ही नहीं बची।

14 दिन का कार्यक्रम

चंद्रयान-3 के तीन बड़े लक्ष्य हैं। इन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए चंद्रयान के पास 14 दिन का समय है। पहला, चंद्र सतह पर सुरक्षित और सॉफ्ट लैंडिंग की क्षमता प्रदर्शित करना। दूसरा, रोवर प्रज्ञान का चंद्रमा की सतह पर भ्रमण और तीसरा वैज्ञानिक प्रयोगों को पूरा करना। इन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए लैंडर व रोवर में सात पेलोड लगे हैं। विक्रम और प्रज्ञान दोनों ही सौर ऊर्जा से संचालित हैं। जिस इलाके में ये उतरे हैं, वहाँ सूरज की रोशनी तिरछी पड़ती है। सूर्य से प्राप्त ऊर्जा का इस्तेमाल करने के लिए इनमें लंबवत यानी खड़े सोलर पैनल लगे हैं। भविष्य में चंद्रमा को डीप स्पेस स्टेशन के तौर पर इस्तेमाल करने के लिहाज से 14 दिन के ये प्रयोग अहम साबित होंगे। इन क्रेटरों में इंसान भविष्य में टेलिस्कोप लगाकर सुदूर अंतरिक्ष का अध्ययन कर सकता है। यहाँ से बहुमूल्य खनिजों को हासिल किया जा सकता है। 

Thursday, August 17, 2023

चंद्रयान और उसके बहाने कुछ यादें

 


चंद्रयान-3 को लेकर एक पोस्ट मैंने फेसबुक पर बुधवार 16 अगस्त को लगाई तो मेरे मित्र संजय श्रीवास्तव ने लिखा कि चंद्रयान-1 ने चंद्रयान-3 के मुकाबले कम समय लगाया, ऐसा क्यों?  साइंस का मेरा ज्ञान सीमित है, जिज्ञासा ज्यादा है। इधर-उधर से पढ़कर मैं जो जान पाता हूँ, उसे ही शेयर करता हूँ। चंद्रयान पर आने से पहले मैं एक निजी अनुभव से शुरुआत करूँगा।

सत्तर के दशक में जब मैंने सबसे पहले लखनऊ के स्वतंत्र भारत में काम करना शुरू किया, तब पहले दिन ही मुझे चीफ सब एडिटर वीरेंद्र सिंह के साथ लगा दिया गया। मेरी राय में वीरेंद्र सिंह निश्चित रूप से अपने दौर के सबसे काबिल पत्रकारों में से एक थे। कई कारणों से उनकी प्रतिभा को सामने आने का मौका मिला नहीं। अलबत्ता जो लोग पुराने जमाने की नवनीत में पुस्तक सार पढ़ते रहे हैं, उनकी जानकारी के लिए बता दूँ कि बड़ी संख्या में पुस्तक सार वीरेंद्र सिंह ने लिखे थे।

मुझे सबसे पहले मिड शिफ्ट में काम करने का मौका मिला, जिसमें तीन से रात के नौ बजे तक काम होता था। वीरेंद्र सिंह ने मुझे स्पेस से जुड़ी पीटीआई की एक खबर पकड़ा दी। खबर काफी लंबी थी और मैंने पूरी खबर बना दी। वह खबर अखबार के आखिरी पेज पर टॉप बॉक्स के रूप में छपी। अपने लिखे अक्षर पहली बार खबर के रूप में देखकर जो खुशी मिलती है, वह खासतौर से पत्रकार दोस्तों को बताने की जरूरत नहीं।

बहरहाल अंतरिक्ष से मेरी दोस्ती की वह शुरुआत थी। मुझे पहली बार यह भी समझ में आया कि हिंदी की पत्रकारिता, मुकाबले अंग्रेजी की पत्रकारिता के, ज्यादा चुनौती भरी क्यों है। नीचे इस आलेख में आप एपोजी और पेरिजी कक्षाओं का जिक्र पढ़ेंगे। मैं अंग्रेजी का पत्रकार होता, तो कॉपी को अपर लोअर (अंग्रेजी के पत्रकार जानते हैं कि यह क्या है) करके छुट्टी कर लेता, पर मुझे एपोजी और पेरिजी को समझना पड़ा। और वह इंटरनेट का ज़माना नहीं था। बहरहाल।

हल्का और भारी पेलोड

संजय के सवाल के सिलसिले में जो जानकारी मैं हासिल कर पाया हूँ, उसके आधार पर मैं कह सकता हूँ कि ऐसा कई कारणों से हो सकता है। चंद्रयान-1 का पेलोड बहुत हल्का था। वह इंपैक्टर था। उसे तो चंद्रमा से टकराना भर था। चंद्रयान-2 उसकी तुलना में काफी भारी थी और चंद्रयान-3 और ज्यादा भारी है। ऐसे में पृथ्वी और चंद्रमा की कक्षा में दायरा बढ़ाने और घटाने की प्रक्रिया चलती है, जिसमें काफी सावधानी बरतनी होती है। चंद्रयान-1 को चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश करने के बाद दायरा छोटा करने में समय लगा। चंद्रयान-2 अंतिम कुछ सेकंडों में अपनी स्पीड को काबू में नहीं रख पाया।

Wednesday, August 16, 2023

चंद्रयान-3 और लूना-25 की रेस

एक हफ्ते बाद संभवतः 23 अगस्त को चंद्रयान-3 की चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग होगी। इसके एक या दो दिन पहले रूसी मिशन लूना-25 चंद्रमा पर उतर चुका होगा। चंद्रयान-3 का प्रक्षेपण 14 जुलाई को हुआ था, जबकि रूसी मिशन का प्रक्षेपण 10 अगस्त को हुआ। आपके मन में सवाल होगा कि फिर भी रूसी यान भारतीय यान से पहले क्यों पहुँचेगा? चंद्रयान-3 चंद्रमा की सतह पर तभी उतरेगा, जब वहाँ की भोर शुरू होगी। चूंकि रूसी लैंडर भी चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरेगा, इसलिए संभवतः रूस इस बात का श्रेय लेना चाहता है कि दक्षिणी ध्रुव पर उतने वाला पहला यान रूसी हो। दक्षिणी ध्रुव पर अभी तक किसी देश का यान नहीं उतरा है।

चंद्रमा का एक दिन धरती के 14 दिन के बराबर होता है। चंद्रयान-3 केवल 14 दिन काम करने के लिए बनाया गया है, जबकि रूसी यान करीब एक साल काम करेगा। लूना-25 जिस जगह उतरेगा वहाँ भोर दो दिन पहले होगी। भोर का महत्व इसलिए है, क्योंकि चंद्रमा की रात बेहद ठंडी होती है। वहाँ दिन का तापमान 140 डिग्री से ऊपर होता है और रात का माइनस 180 से भी नीचे।

Monday, March 1, 2021

मंगल तक जाने की वैश्विक होड़ क्यों?


एकसाथ तीन देशों के यान मंगल ग्रह पर जा पहुँचे हैं। बुधवार 10 फरवरी को चीन ने दावा किया कि उसके अंतरिक्षयान तियानवेन-1 ने शाम 7.52 बजे (बीजिंग के समयानुसार) मंगल ग्रह की कक्षा में प्रवेश कर लिया। उसके एक दिन पहले मंगलवार को संयुक्त अरब अमीरात का ऑर्बिटर ‘होप प्रोब’ मंगल की कक्षा में पहुंचा था। चीनी अभियान का दूसरा सबसे महत्वपूर्ण काम मंगल ग्रह पर रोवर को उतारने का है, जिसकी कोशिश मई या जून में की जाएगी। वहाँ उसकी असली परीक्षा है। यदि चीनी रोवर मंगल पर उतरने में कामयाब हुआ, तो वह दुनिया का दूसरा ऐसा देश होगा। अब तक केवल अमेरिका ही नौ बार अपने रोवर मंगल पर उतारने में कामयाब हुआ है।

चीनी सफलता के एक सप्ताह बाद 18 फरवरी को अमेरिकी यान पर्सीवरेंस न केवल मंगल ग्रह की सतह पर उतरा, बल्कि उसके रोवर और एक प्रयोगात्मक हेलीकॉप्टर ने अपना काम भी शुरू कर दिया। पर्सीवरेंस मामूली रोवर मिशन नहीं है, बल्कि अबतक का सबसे उन्नत श्रेणी का अनुसंधान कार्यक्रम है। यह अपने आप में पूरी प्रयोगशाला है। यह अभियान आने वाले समय में मनुष्य के मंगल अभियानों की दिशा निर्धारित करेगा।

यह रेस क्यों?

एकसाथ तीन अभियानों की सफलता के साथ एक सवाल पूछा जा सकता है कि मंगल ग्रह में ऐसा क्या है, जो वहाँ तक जाने की होड़ लगी है? इस सवाल का जवाब देने के पहले यह समझना जरूरी है कि मंगल ग्रह तक जाने के लिए हर दो साल में एकबार ऐसा मौका आता है, जब यह ग्रह धरती के सबसे नजदीक होता है। वहाँ अंतरिक्ष यान भेजने के लिए यह सबसे अच्छा समय होता है। इसलिए हमें एकसाथ तीनों अभियानों की खबरें मिली हैं। पर यह बात केवल  मंगल अभियान से ही नहीं जुड़ी है। अंतरिक्ष कार्यक्रमों पर दुनिया ने अचानक ज्यादा ध्यान देना शुरू कर दिया है।  

Thursday, February 11, 2021

मंगल ग्रह पर तीन देशों के यान


बुधवार 10 फरवरी को चीन ने दावा किया कि उसके अंतरिक्षयान तियानवेन-1 ने शाम 7.52 बजे (बीजिंग के समयानुसार) मंगल ग्रह की कक्षा में प्रवेश कर लिया। करीब साढे़ छह महीने का सफर पूरा करने के बाद मंगल की कक्षा में पहुँचा 240 किलोग्राम वजन का यह यान चीन का पहला स्वतंत्र अभियान है, जिसे मंगल पर रोवर लैंड कराने और वहां के भूजल व पुरातन समय में जिंदगी के संभावित चिन्हों का डेटा एकत्र करने के अभियान पर भेजा गया है। अभी इस अभियान का दूसरा सबसे महत्वपूर्ण काम बाकी है। वह है मंगल ग्रह पर रोवर को उतारना। मंगल पर यान उतारना खासा मुश्किल काम है। चीनी यान को उतारने के लिए पैराशूट, बैकफायरिंग रॉकेट और एयरबैग का इस्तेमाल किया जाएगा। अगले सप्ताह अमेरिकी यान पर्ज़वरेंस मंगल ग्रह पर उतरने वाला है, जिसे लेकर काफी उत्सुकता है।

इससे पहले 2011 में रूस के साथ मिलकर किया गया उसका संयुक्त प्रयास विफल हो गया था। तियानवेन-1 यान मई या जून में मंगल ग्रह पर रोवर का कैप्सूल उतारने का प्रयास करेगा। इसके बाद यह रोवर 90 दिन तक मंगल की सतह का अध्ययन करेगा। यदि चीनी रोवर मंगल पर उतरने में कामयाब हुआ, तो वह दुनिया का दूसरा ऐसा देश होगा। अब तक केवल अमेरिका ही आठ बार अपने रोवर मंगल पर उतारने में कामयाब हुआ है। मंगल ग्रह हरेक दो साल बाद पृथ्वी के करीब आता है। धरती से अभियान भेजने के लिए यह उपयुक्त समय होता है।

चीनी अंतरिक्ष यान से पहले मंगलवार को संयुक्त अरब अमीरात का ऑर्बिटर मंगल की कक्षा में पहुंचा था। अगले सप्ताह 18 फरवरी को अमेरिका भी अपने पर्ज़वरेंस रोवर को मंगल ग्रह की सतह पर उतारने का प्रयास करेगा। तीनों मंगल अभियान पिछले साल जुलाई में भेजे गए थे। रूस की तरफ से 19 अक्तूबर, 1960 को भेजे गए पहले मंगलयान के बाद पिछले 61 साल में अब तक 8 देश 58 बार इस लाल ग्रह के अध्ययन के लिए यान भेज चुके हैं। इनमें सबसे ज्यादा 29 बार अमेरिका ने और 22 बार रूस (पूर्व सोवियत संघ) और तीसरे नंबर पर ईयू ने 4 मिशन भेजे हैं। भारत, जापान, चीन और यूएई ने एक-एक मिशन भेजा है।

Thursday, November 5, 2020

अंतरिक्ष में ऊर्जा का यह विस्फोट कैसा है?


अंतरिक्ष की गतिविधियों पर नजर रखने वाले वैज्ञानिकों ने एकबार फिर से रेडियो इनर्जी की रहस्यमय भारी वर्षा को दर्ज किया है। इसका स्रोत हमारी आकाशगंगा के भीतर ही है। यह पहला मौका है, जब हमारी आकाशगंगा में ऐसा विस्फोट देखा गया है।

अंतरिक्ष में होने वाले फास्ट रेडियो बर्स्ट या एफआरबी आमतौर पर एक सेकेंड से भी छोटी अवधि में होते हैं, पर वे हमारे सूर्य से करोड़ों गुना ज्यादा ऊर्जा पैदा करते हैं। इतने विशाल ऊर्जा स्फोट के बावजूद यह पता नहीं लग पाता है कि उनका स्रोत क्या है।

Wednesday, October 28, 2020

चीन ने छोड़े तीन जासूसी उपग्रह

 


चीन ने 26 अक्तूबर को याओगान-30 रिकोनेसां उपग्रहों के सातवें समूह का प्रक्षेपण किया है, जिसपर अमेरिका और भारत दोनों की निगाहें हैं। इस साल चीन का यह 31वाँ अंतरिक्ष प्रक्षेपण था। आमतौर पर वैज्ञानिक भाषा में इन्हें सुदूर संवेदन उपग्रह (रिमोट सेंसिंग सैटेलाइट) कहा जाता है, जिसे सरल भाषा में जासूसी उपग्रह कह सकते हैं। इनका उद्देश्य दुनियाभर में हो रही गतिविधियों पर नजर रखने का होता है।

इस नवीनतम प्रक्षेपण में चीन के शीचैंग उपग्रह प्रक्षेपण केंद्र के एलसी-3 से लांग मार्च-2 सी रॉकेट पर तीन याओगान-30 उपग्रह छोड़े गए। इनके अलावा एक छोटा व्यावसायिक पेलोड भी इसके साथ छोड़ा गया।

Monday, June 26, 2017

अंतरिक्ष में जीवन की घोषणा होने वाली है?

एक हैक्टिविस्ट ग्रुप ने दावा किया है कि अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा को अंतरिक्ष में जीवन के चिह्न मिल गए हैं और जल्द ही यह संस्था इस बात की घोषणा करने वाली है। इस ग्रुप ने यूट्यूब पर एक वीडियो जारी किया है, जिसमें कहा गया है कि हाल में नासा के एक आधिकारिक प्रवक्ता ने अमेरिका की विज्ञान, अंतरिक्ष और तकनीकी समिति की बैठक में कहा कि अंतरिक्ष में जीवन होने के प्रमाण मिल गए हैं। इस हैक्टिविस्ट ग्रुप ने अपनी वैबसाइट में कहा, "Latest anonymous message in 2017 just arrived with a huge announcement about the Intelligent Alien Life! NASA says aliens are coming!"..."Many other planets throughout the universe probably hosted intelligent life long before Earth did."

अप्रेल में एक संसदीय सुनवाई में नासा के साइंस मिशन डायरेक्टरेट के एसोसिएट एडमिनिस्ट्रेटर प्रोफेसर टॉमस जुर्बुचेन ने कहा था कि हम अंतरिक्ष में जीवन की सम्भावनाओं के करीब पहुँच रहे हैं।  
https://www.youtube.com/watch?time_continue=4&v=HGh8n1XxDrg

आईबी टाइम्स में यह खबर पढ़ें
एक और खबर यहाँ पढ़ें

पिछले हफ्ते इस खबर के छपने के बाद नासा ने सफाई दी कि उसकी तरफ से ऐसी कोई घोषणा नहीं होने वाली है। ऐसी एक खबर पढ़ें यहाँ-
Washington:
US space agency NASA said that it has no pending announcement regarding extraterrestrial life, following a wave of media reports that it was about to announce the evidence of alien life.


Thomas Zurbuchen, associate administrator for the agency's Science Mission Directorate, on Monday denied the reports and confirmed that NASA scientists are still looking for proof of alien life, reports Xinhua news agency.

"Are we alone in the universe? While we do not know yet, we have missions moving forward that may help answer that fundamental question," he tweeted
पूरी खबर पढ़ें



Sunday, January 12, 2014

जीएसएलवी :भारतीय विज्ञान-गाथा का एक पन्ना

दुनिया के किसी भी देश के अंतरिक्ष अभियान पर नजर डालेंगे तो पाएंगे कि हर सफलता के पीछे विफलताओं की कहानी छिपी होती। हर विफलता को सीढ़ी की एक पायदान बना लें वह सफलता के दरवाजे पर पहुँचा देती है। यह बात जीवन पर भी लागू होती है। भारत के जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लांच वेहिकल (जीएसएलवी) के इतिहास को देखें तो पाएंगे कि यह रॉकेट कई प्रकार की चुनौतियों का सामना करते हुए तैयार हुआ है। इसकी सफलता-कथा ही लोगों को याद रहेगी, जबकि जिन्हें जीवन में चुनौतियों का सामना करना अच्छा लगता है, वे इसकी विफलता की गहराइयों में जाकर यह देखना चाहेंगे कि वैज्ञानिकों ने किस प्रकार इसमें सुधार करते हुए इसे सफल बनाया।

जीएसएलवी की चर्चा करने के पहले देश के अंतरिक्ष कार्यक्रम पर नजर डालनी चाहिए। यह समझने की कोशिश भी करनी चाहिए कि देश को अंतरिक्ष कार्यक्रम की जरूरत क्या है। कुछ लोग मानते हैं कि जिस देश में सत्तर करोड़ से ज्यादा लोग गरीब हों और जहाँ चालीस करोड़ से ज्यादा लोग खुले में शौच को जाते हों उसे अंतरिक्ष में रॉकेट भेजना शोभा नहीं देता। पहली नजर में यह बात ठीक लगती है। हमें इन समस्याओं का निदान करना ही चाहिए। पर अंतरिक्ष कार्यक्रम क्या इसमें बाधा बनता है? नहीं बनता बल्कि इन समस्याओं के समाधान खोजने में भी अंतरिक्ष विज्ञान मददगार हो सकता है।

Wednesday, December 11, 2013

अंतरिक्ष में कौन रहता है?

दुनिया का सबसे बड़ा अनुत्तरित सवाल

अमेरिका से एक साप्ताहिक पत्रिका निकलती थी वीकली वर्ल्ड न्यूज। इस पत्रिका की खासियत थी ऊल-जलूल, रहस्यमय, रोमांचकारी और मज़ाकिया खबरें। इन खबरों को वड़ी संजीदगी से छापा जाता था। यह पत्रिका सन 2007 में बंद हो गई, पर आज भी यह एक टुकड़ी के रूप में लोकप्रिय टेब्लॉयड सन के इंसर्ट के रूप में वितरित होती है। अलबत्ता इसकी वैबसाइट लगातार सक्रिय रहती है। इस अखबार की ताजा लीड खबर हैएलियन स्पेसशिप टु अटैक अर्थ इन डेसेम्बर दिसम्बर में धरती पर हमला करेंगे अंतरिक्ष यान। खबर के अनुसार सेटी (सर्च फॉर एक्स्ट्रा टेरेस्ट्रियल इंटेलिजेंस) के वैज्ञानिकों ने घोषणा की है कि सुदूर अंतरिक्ष से तीन यान धरती की ओर बढ़ रहे हैं, जो दिसम्बर तक धरती के पास पहुँच जाएंगे। इनमें सबसे बड़ा यान तकरीबन 200 मील चौड़ा है। बाकी दो कुछ छोटे हैं। इस वक्त तीनों वृहस्पति के नजदीक से गुजर रहे हैं और अक्टूबर तक धरती से नजर आने लगेंगे। यह खबर कोरी गप्प है, पर इसके भी पाठक हैं। पश्चिमी देशों में अंतरिक्ष के ज़ीबा और गूटान ग्रहों की कहानियाँ अक्सर खबरों में आती रहतीं हैं, जहाँ इनसान से कहीं ज्यादा बुद्धिमान प्राणी निवास करते हैं। अनेक वैबसाइटें दावा करती हैं कि दुनिया के देशों की सरकारें इस तथ्य को छिपा रही हैं कि अंतरिक्ष के प्राणी धरती पर आते हैं। आधुनिक शिक्षा के बावजूद दुनिया में जीवन और अंतरिक्ष विज्ञान को लेकर अंधविश्वास और रहस्य ज्यादा है, वैज्ञानिक जानकारी कम।

Saturday, September 14, 2013

सैर करनी है तो अंतरिक्ष में आइए

 आपकी जेब में पैसा है तो अगले साल गर्मियों की छुट्टियाँ अंतरिक्ष में बिताने की तैयारी कीजिए। रिचर्ड ब्रॉनसन की कम्पनी वर्जिन एयरलाइंस ने पिछले शुक्रवार को अपने स्पेसक्राफ्ट वर्जिन गैलेक्टिकका दूसरा सफल परीक्षण कर लिया। वर्जिन गैलेक्टिक पर सवार होकर अंतरिक्ष में जाने वालों की बुकिंग शुरू हो गई है। एक टिकट की कीमत ढाई लाख डॉलर यानी कि तकरीबन पौने दो करोड़ रुपए है, जो डॉलर की कीमत के साथ कम-ज्यादा कुछ भी हो सकती है। वर्जिन गैलेक्टिक आपको किसी दूसरे ग्रह पर नहीं ले जाएगा। बस आपको सब ऑर्बिटल स्पेस यानी कि पृथ्वी की कक्षा के निचले वाले हिस्से तक लेजाकर वापस ले आएगा। कुल जमा दो घंटे की यात्रा में आप छह मिनट की भारहीनता महसूस करेंगे। जिस एसएस-2 में आप विराजेंगे उसमें दो पायलट होंगे और आप जैसे छह यात्री। लगे हाथ बता दें कि इस यात्रा के लिए जून के महीने तक 600 के आसपास टिकट बिक चुके हैं। वर्जिन गैलेक्टिक की तरह कैलीफोर्निया की कम्पनी एक्सकोर ने लिंक्स रॉकेट प्लेन तैयार किया है। यह भी धरती से तकरीबन 100 किलोमीटर की ऊँचाई तक यात्री को ले जाएगा।