कांग्रेस नेता बीके
हरिप्रसाद ने पिछले गुरुवार को कहा कि पुलवामा आतंकी हमला प्रधानमंत्री नरेंद्र
मोदी और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान के बीच ‘मैच फिक्सिंग’ का नतीजा है।
उनका कहना था कि पुलवामा हमले के बाद के घटनाक्रम पर यदि आप नजर डालेंगे तो पता
चलता है कि यह पीएम नरेंद्र मोदी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के बीच
मैच फिक्सिंग थी। हरिप्रसाद कांग्रेस के
बहुत बड़े नहीं, तो छोटे नेता भी नहीं हैं। पिछले साल राज्यसभा के उप सभापति के
चुनाव में पार्टी ने कर्नाटक के इस सांसद को अपना प्रत्याशी बनाया था। हालांकि कांग्रेस
प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी ने बाद में सफाई दी, बीके हरिप्रसाद ने जो भी कहा है
कि वह पार्टी का स्टैंड नहीं है, उनकी अपनी राय है। पर कैसी राय? उन्होंने
मामूली बात नहीं कही है। साफ है कि पार्टी ने उनके बयान की अनदेखी की। यह अनदेखी
सायास थी या अनायास?
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Saturday, March 9, 2019
Sunday, October 9, 2016
‘सर्जिकल स्ट्राइक’ पर सियासत
सेना ने जब ‘सर्जिकल स्ट्राइक’
की घोषणा की थी तो एकबारगी देश के सभी राजनीतिक दलों ने उसका स्वागत किया था। इस
स्वागत के पीछे मजबूरी थी और अनिच्छा भी। मजबूरी यह कि जनमत उसके साथ था। पर परोक्ष रूप से यह मोदी सरकार का समर्थन था, इसलिए अनिच्छा भी थी। भारतीय जनता पार्टी ने संयम बरता होता और इस कार्रवाई को भुनाने की कोशिश नहीं की होती तो शायद विपक्षी प्रहार इतने तीखे नहीं होते। बहरहाल अगले दो-तीन दिन में जाहिर
हो गया कि विपक्ष बीजेपी को उतनी स्पेस नहीं देगा, जितनी वह लेना चाहती है। पहले अरविन्द केजरीवाल ने पहेलीनुमा सवाल फेंका। फिर कांग्रेस के संजय निरूपम
ने सीधे-सीधे कहा, सब फर्जी है। असली है तो प्रमाण दो। पी चिदम्बरम, मनीष तिवारी
और रणदीप सुरजेवाला बोले कि स्ट्राइक तो कांग्रेस-शासन में हुए थे। हमने कभी श्रेय
नहीं लिया। कांग्रेस सरकार
ने इस तरह कभी हल्ला नहीं मचाया। पर धमाका राहुल गांधी ने किया। उन्होंने नरेन्द्र मोदी पर ‘खून की दलाली’
का आरोप जड़ दिया।
इस राजनीतिकरण की जिम्मेदारी बीजेपी पर भी है।
सर्जिकल स्ट्राइक की घोषणा होते ही उत्तर प्रदेश के कुछ शहरों में पोस्टर लगे।
हालांकि पार्टी का कहना है कि यह सेना को दिया गया समर्थन था, जो देश के किसी भी
नागरिक का हक है। पर सच यह है कि पार्टी विधानसभा चुनाव में इसका लाभ उठाना चाहेगी।
कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दलों के लिए यह स्थिति असहनीय है। वे बीजेपी के लिए
स्पेस नहीं छोड़ना चाहते। हालांकि अभी यह बहस छोटे दायरे में है, पर बेहतर होगा कि हमारी संसद इन सवालों पर गम्भीरता से विचार करे। बेशक देश की सेना या सरकार कोई भी जनता के सवालों के दायरे से बाहर नहीं है, पर सवाल किस प्रकार के हैं और उनकी भाषा कैसी है यह भी चर्चा का विषय होना चाहिए। साथ ही यह भी देखना होगा कि सामरिक दृष्टि से किन बातों को सार्वजनिक रूप से उजागर किया जा सकता है और किन्हें नहीं किया जा सकता।
Saturday, October 8, 2016
‘सर्जिकल स्ट्राइक’ पर कांग्रेसी दुविधा
कांग्रेस पार्टी ने कहा है कि हम सर्जिकल स्ट्राइक के मामले
में भारतीय जवानों के साथ हैं, लेकिन इसे लेकर क्षुद्र राजनीति नहीं की जानी
चाहिए। रणदीप सुरजेवाला का कहना है, ‘ हम सर्जिकल स्ट्राइक पर कोई सवाल नहीं उठा रहे हैं, लेकिन
यह कोई पहला सर्जिकल स्ट्राइक नहीं है।’ कांग्रेस के शासनकाल में 1 सितंबर 2011, 28 जुलाई 2013 और 14 जनवरी 2014 को 'शत्रु को मुंहतोड़ जबाव' दिया गया था। परिपक्वता, बुद्धिमत्ता और राष्ट्रीय सुरक्षा के मद्देनज़र
कांग्रेस सरकार ने इस तरह कभी हल्ला नहीं मचाया।
भारतीय राजनीति में युद्ध की
महत्वपूर्ण भूमिका रही है। सन 1962 की लड़ाई से नेहरू की लोकप्रियता में कमी आई
थी। जबकि 1965 और 1971 की लड़ाइयों ने लाल बहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी का कद
काफी ऊँचा कर दिया था। करगिल युद्ध ने अटल बिहारी वाजपेयी को लाभ दिया। इसीलिए
28-29 सितम्बर की ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ के निहितार्थ ने देश के राजनीतिक
दलों एकबारगी सोच में डाल दिया। सोच यह है कि क्या किसी को इसका फायदा मिलेगा? और क्या कोई घाटे में रहेगा?
Wednesday, October 5, 2016
सर्जिकल स्ट्राइक का विवरण जो प्रवीण स्वामी ने दिया
इन लोगों ने उन जगहों के बारे में जानकारी दी है, जिनका जिक्र भारतीय सेना ने किया है, पर जिनका विवरण नहीं दिया। अलबत्ता इनसे जो विवरण प्राप्त हुआ है उससे लगता है कि मरने वालों की तादाद भारत की अनुमानित संख्या 38-50 से कम है और जेहादियों के ढाँचे को उतना नुकसान नहीं हुआ, जितना बताया जा रहा है।
सर्जिकल स्ट्राइक का विवरण जो प्रवीण स्वामी ने दिया
इन लोगों ने उन जगहों के बारे में जानकारी दी है, जिनका जिक्र भारतीय सेना ने किया है, पर जिनका विवरण नहीं दिया। अलबत्ता इनसे जो विवरण प्राप्त हुआ है उससे लगता है कि मरने वालों की तादाद भारत की अनुमानित संख्या 38-50 से कम है और जेहादियों के ढाँचे को उतना नुकसान नहीं हुआ, जितना बताया जा रहा है।
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