राजनीति के लिए पैसा चाहिए और आम आदमी पार्टी भी सत्ता के उन स्रोतों तक पहुँच गई, जो प्राणवायु प्रदान करते हैं। यह पार्टी इस प्राणवायु के स्रोत बंद करने के नाम पर आई थी और ख़ुद इस 'ऑक्सीजन' की शिकार हो गई। सब कुछ केवल पार्टी के विरोधियों की साज़िश के कारण नहीं हुआ। ‘आप’ का दोष केवल इतना नहीं है कि उसने एक सुंदर सपना देखा और उसे सच करने में वह नाकामयाब हुई। ऐसा होता तब भी गलत नहीं था। अब हालत यह है कि कोई नया सपना देखने वालों पर जनता भरोसा नहीं करेगी। वस्तुतः ‘आप’ यह साबित करने में फेल हुई कि वह आपकी पार्टी है।
Wednesday, February 12, 2025
आपका स्वप्न-भंग
Wednesday, October 30, 2024
केजरीवाल की नाटकीय-राजनीति की परीक्षा
अरविंद केजरीवाल के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे की घोषणा से बहुत से लोगों को हैरत हुई है, पर आप गहराई से सोचें तो पाएंगे कि वे इसके अलावा कर ही क्या सकते थे। अगले कुछ महीने वे दिल्ली के ‘कार्यमुक्त मुख्यमंत्री’ के रूप में अपने पद पर बने रहते, तो जनता के सामने जो संदेश जाता, उसकी तुलना में ऐसी ‘मुख्यमंत्री के संरक्षक’ के रूप में बने रहना ज्यादा उपयोगी होगा, जिसका ध्येय उनको मुख्यमंत्री की कुर्सी पर वापस लाना है। बावजूद इसके कुछ खतरे अभी बने हुए हैं, जो केजरीवाल को परेशान करेंगे।
आतिशी की
परीक्षा
आतिशी मार्लेना (या सिंह) कार्यकुशल साबित हुईं तब और विफल हुईं तब भी, पहला खतरा उनसे ही है। भले ही वे भरत की तरह कुर्सी पर खड़ाऊँ रखकर केजरीवाल की वापसी का इंतजार करें, पर जनता अब उनके कामकाज को गौर से देखेगी और परखेगी। आतिशी के पास अब भी वे सभी 13 विभाग हैं जो पहले उनके पास थे, जिनमें लोक निर्माण विभाग, बिजली, शिक्षा, जल और वित्त आदि शामिल हैं। इसके विपरीत मुख्यमंत्री के रूप में केजरीवाल के पास कोई भी विभाग नहीं था। आतिशी पर काम का जो दबाव होगा, वह केजरीवाल पर नहीं था और वे राजनीति के लिए काफी हद तक स्वतंत्र थे।
Monday, October 30, 2023
दिल्ली ‘शराब-नीति कांड’ से जुड़ी गिरफ्तारियों की नीति और राजनीति
दिल्ली के शराब घोटाला मामले में सुप्रीम कोर्ट ने भी मनीष सिसोदिया की जमानत पर रिहाई को स्वीकार नहीं किया है। इस मामले की वजह से आम आदमी पार्टी को भविष्य के चुनावों में विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ेगा। अदालत ने कहा, हम बेल के आवेदन को खारिज कर रहे हैं, लेकिन स्पष्ट करते हैं कि अभियोजन पक्ष ने आश्वासन दिया है कि मुकदमा छह से आठ महीने के भीतर समाप्त हो जाएगा। तीन महीने के भीतर यदि केस लापरवाही से या धीमी गति से आगे बढ़ा, तो सिसोदिया जमानत के लिए आवेदन करने के हकदार होंगे।
सुप्रीम कोर्ट की न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और
न्यायमूर्ति एसवीएन भट्टी के पीठ ने यह फैसला सुनाया। पीठ ने दोनों याचिकाओं पर 17
अक्टूबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। अदालत ने 17 अक्टूबर को प्रवर्तन
निदेशालय (ईडी) से कहा था कि अगर दिल्ली आबकारी नीति में बदलाव के लिए कथित तौर पर
दी गई रिश्वत ‘अपराध से आय' का हिस्सा नहीं है, तो संघीय एजेंसी के लिए सिसोदिया के खिलाफ धन शोधन का आरोप साबित
करना कठिन होगा।
सीबीआई ने आबकारी नीति 'घोटाले' में कथित भूमिका को लेकर सिसोदिया को 26 फरवरी को गिरफ्तार किया था। वे तब से हिरासत में हैं। इसके बाद सिसोदिया ने 28 फरवरी को दिल्ली मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया था। ईडी ने सीबीआई की प्राथमिकी पर मनी लाउंडरिंग (धन शोधन) मामले में 9 मार्च को तिहाड़ जेल में पूछताछ के बाद सिसोदिया को गिरफ्तार कर लिया था।
Tuesday, May 23, 2023
विरोधी-एकता की पहली परीक्षा: दिल्ली-अध्यादेश को कानून बनने से क्या रोक पाएंगे विरोधी दल?
कर्नाटक में बीजेपी को परास्त करने के बाद कांग्रेस पार्टी और दूसरे विरोधी दल भविष्य की रणनीति बना रहे हैं। इस सिलसिले में मुलाकातों का सिलसिला चल रहा है। कांग्रेस पार्टी ने कहा है कि शीघ्र ही ‘बड़ी संख्या में’ गैर-बीजेपी दल इस विषय पर विमर्श के लिए एकसाथ मिलकर बैठेंगे। यह बात सोमवार को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी से मुलाकात के बाद कही गई।
कांग्रेस ने इस बात का संकेत भी किया है कि दिल्ली
के प्रशासनिक नियंत्रण के लिए लाए गए अध्यादेश के स्थान पर जब संसद में विधेयक पेश
होगा, तब पार्टी की दृष्टिकोण क्या होगा, इस विषय पर भी विरोधी दलों के नेताओं से
बातचीत की जाएगी। अलबत्ता उसकी तरफ से यह भी कहा गया कि पार्टी ने अभी तक इस विषय
पर कोई फैसला नहीं किया है। पार्टी
के महासचिव केसी वेणुगोपाल ने सोमवार को इस आशय का ट्वीट किया। साथ ही बैठक के बाद
उन्होंने संवाददाताओं को बताया कि इस सिलसिले में विरोधी दलों के नेताओं की बैठक
के स्थान और तारीख की घोषणा एक-दो दिन में कर दी जाएगी।
नीतीश कुमार चाहते हैं कि यह बैठक पटना में हो,
पर कांग्रेस के सूत्रों ने कहा कि दूसरे सभी नेताओं की सुविधा को देखते हुए फैसला
किया जाएगा। कुछ नेता विदेश-यात्रा पर जाने वाले हैं। मसलन तमिलनाडु के
मुख्यमंत्री एमके स्टालिन सिंगापुर और जापान की नौ दिन की यात्रा पर जा रहे हैं। सोनिया
गांधी भी विदेश जा रही हैं। स्टैनफर्ड विवि के एक कार्यक्रम में भाग लेने के लिए राहुल
गांधी भी 28 मई को अमेरिका जा रहे हैं।
नीतीश कुमार ने कांग्रेस के नेताओं से मुलाकात करने के एक दिन पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से मुलाकात की थी। उन्होंने अध्यादेश प्रकरण पर केजरीवाल का समर्थन किया था। नीतीश कुमार ने इस बात पर जोर दिया था कि सभी दलों को एकसाथ मिलकर संविधान के बदलने की केंद्र सरकार की कोशिश का विरोध करना चाहिए। नीतीश के साथ जेडीयू के अध्यक्ष ललन सिंह भी थे। बिहार के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव इस बैठक में शामिल नहीं हो पाए, क्योंकि वे अस्वस्थ थे।
Sunday, December 11, 2022
चुनाव परिणामों में छिपे हैं 2024 के संकेत
गुजरात, हिमाचल प्रदेश विधानसभा और दिल्ली नगर महापालिका के चुनाव परिणामों ने इसमें शामिल तीन पार्टियों को किसी न किसी रूप में दिलासा दी है, पर फौरी तौर पर इनका राष्ट्रीय राजनीति पर कोई बड़ा प्रभाव पड़ने वाला नहीं है। फिर भी कुछ संकेत खोजे जा सकते हैं। इन चुनावों के साथ तीन सवाल जुड़े थे। पहला यह कि नरेंद्र मोदी का जादू कितना बरकरार है। दूसरे, क्या कांग्रेस फिर से अपने पैरों पर खड़े होने की स्थिति में है? और तीसरे क्या केजरीवाल राष्ट्रीय स्तर पर मोदी के मुकाबले विरोधी दलों के नेता बनकर उभरेंगे? बेशक बीजेपी, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी तीनों ने किसी न किसी रूप में अपनी सफलता का दावा किया है, पर बीजेपी और आम आदमी पार्टी की सफलताएं कांग्रेस की तुलना में भारी हैं। वोट प्रतिशत को देखें, तो सबसे सफल पार्टी बीजेपी रही है और उसके बाद आम आदमी पार्टी। कुल राजनीति के लिहाज से देखें, तो कुछ दीर्घकालीन सवाल बनते हैं कि बीजेपी कब तक मोदी के मैजिक के सहारे चलेगी? पार्टी ने उत्तराधिकार की क्या व्यवस्था की है? भारतीय राजनीति में नेता का महत्व क्या हमेशा रहेगा? पार्टी संगठन, वैचारिक आधार और कार्यक्रमों का क्यों महत्व नहीं?
मोदी का जादू
हिमाचल में पराजय के बावजूद गुजरात में बीजेपी
की जीत ने ‘मोदी के जादू’ की पुष्टि की है। फिलहाल राष्ट्रीय
राजनीति में ऐसा कोई चेहरा नहीं है, जो उनका मुकाबला कर सके। गुजरात का चुनाव
परिणाम आने के बाद बीजेपी कार्यकर्ताओं और आम जनता को संबोधित करते हुए नरेंद्र
मोदी ने कहा, ‘युवा भाजपा की विकास की राजनीति चाहते हैं। वे न जातिवाद के बहकावे
में आते हैं न परिवारवाद के। युवाओं का दिल सिर्फ़ विज़न और विकास से जीता जा सकता
है।… मैं बड़े-बड़े एक्सपर्ट को याद
दिलाना चाहता हूं कि गुजरात के इस चुनाव में भाजपा का आह्वान था विकसित गुजरात से
विकसित भारत का निर्माण।’ यह वक्तव्य 2024 के चुनाव का प्रस्थान-बिंदु है। इस साल
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के परिणाम आने के फौरन बाद नरेंद्र मोदी ने गुजरात की
रुख किया था। उनकी विशेषता है एक जीत से दूसरे रणक्षेत्र की ओर देखना।
ऐतिहासिक जीत
गुजरात में लगातार सातवीं बार बीजेपी सत्ता में
आई है, और रिकॉर्डतोड़ विजय के साथ आई है। इससे पहले 1985
में माधव सिंह सोलंकी के नेतृत्व में कांग्रेस ने 149 सीटें जीती थीं। बीजेपी का
सबसे अच्छा प्रदर्शन 2002 में 127 सीटों का था। उसने जिस तरह से एंटी-इनकंबैंसी की
परिभाषा को बदला है, वह विस्मयकारी है। उसका मत प्रतिशत बढ़ कर 52.5 फीसदी हो गया
है। राज्यसभा में गुजरात से बीजेपी के आठ और कांग्रेस के तीन सांसद हैं। अब इस जीत
से 2026 के मध्य तक यहां की सभी 11 राज्यसभा सीटें इसके खाते में होंगी। अप्रैल
2024 में दो सीटों पर बीजेपी अपने और उम्मीदवार भेज सकेगी, वहीं
जून 2026 में आख़िरी बची तीसरी सीट पर भी उसके प्रतिनिधि राज्यसभा में होंगे। यह
जीत विजेता के रूप में मोदी की पहचान को और मज़बूत करेगी।
मत-प्रतिशत में सुधार
एमसीडी में भाजपा की पराजय हुई है, पर उसका मत प्रतिशत सुधरा है। उसे इस बार 39.09 फीसदी वोट मिले हैं, जबकि 2017 में 36.08 प्रतिशत मिले थे। इस चुनाव से आंशिक निष्कर्ष ही निकाले जा सकते हैं। नगरपालिका के काफी मसले स्थानीय होते हैं। लोकसभा चुनाव के मसले राष्ट्रीय होते हैं। यह बात हम 2014 और 2015 के लोकसभा और 2015 और 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनावों में देख चुके हैं। दिल्ली विधानसभा और दिल्ली से लोकसभा सदस्यों की संरचना को देखें, तो अभी तक कहानी एकदम उलट है। 2024 की बातें तभी की जा सकेंगी, पर एक बात स्पष्ट है कि दिल्ली नगरपालिका और विधानसभा में बीजेपी के कोर-वोटर का प्रतिशत बढ़ा है। एमसीडी के चुनाव में फीका मत-प्रतिशत बता रहा है कि बीजेपी के कोर-वोटर की दिलचस्पी स्थानीय मसलों में उतनी नहीं है, जितनी आम आदमी पार्टी के वोटर की है। बीजेपी ने गुजरात और दिल्ली में अपना मत-प्रतिशत बढ़ाया है। हिमाचल में उसका मत प्रतिशत कम हुआ है, पर इस चुनाव में भी वह कांग्रेस के एकदम करीब रही है। भाजपा और कांग्रेस दोनों का मत-प्रतिशत करीब-करीब बराबर है। हिमाचल की परंपरा है कि वहाँ सत्ताधारी दल की वापसी नहीं होती है। बीजेपी की आंतरिक फूट का भी इसमें योगदान रहा होगा। कांग्रेस की जीत का आंशिक श्रेय पुरानी पेंशन योजना को वापस लाने के वादे को भी दिया जा सकता है। हिमाचल में यह बड़ा मुद्दा था।
Friday, October 28, 2022
नोटों पर लक्ष्मी-गणेश का सुझाव
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इंडोनेशिया का करेंसी नोट |
आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल करेंसी नोटों पर लक्ष्मी-गणेश की तस्वीरें छापने का जो सुझाव दिया है, उसके पीछे राजनीति है। अलबत्ता यह समझने की कोशिश जरूर की जानी चाहिए कि क्या इस किस्म की माँग से राजनीतिक फायदा संभव है। भारतीय जनता पार्टी के हिंदुत्व को जो सफलता मिली है, उसके पीछे केवल इतनी प्रतीकात्मकता भर नहीं है।
बेशक प्रतीकात्मकता का लाभ बीजेपी को मिला है,
पर राजनीति के भीतर आए बदलाव के पीछे बड़े सामाजिक कारण हैं, जिन्हें कांग्रेस और
देश के वामपंथी दल अब तक समझ नहीं पाए हैं। अब लगता है कि केजरीवाल जैसे राजनेता
भी उसे समझ नहीं पा रहे हैं।
करेंसी पर लक्ष्मी-गणेश की तस्वीरें लगाने का
सांस्कृतिक महत्व जरूर है। जैसे इंडोनेशिया में है, जो मुस्लिम देश है। भारतीय
संविधान की मूल प्रति पर रामकथा और हिंदू-संस्कृति से जुड़े चित्र लगे हैं। इनसे
धर्मनिरपेक्षता की भावना को चोट नहीं लगती है।
केवल केसरिया रंग की प्रतीकात्मकता काम करने
लगेगी, तो केजरीवाल सिर से पैर तक केसरिया रंग का कनस्तर अपने ऊपर उड़ेल लेंगे, पर
उसका असर नहीं होगा। ऐसी बातें करके और उनसे देश की समृद्धि को जोड़कर एक तरफ वे
अपनी आर्थिक समझ को व्यक्त कर रहे हैं, वहीं भारतीय-संस्कृति को समझने में भूल कर
रहे हैं। हिंदू समाज संस्कृतिनिष्ठ है, पर पोंगापंथी और विज्ञान-विरोधी नहीं।
हैरत की बात है कि आम आदमी पार्टी के नेताओं ने
केजरीवाल की मांग का जोरदार तरीके से समर्थन शुरू कर दिया है। केजरीवाल का कहना है
कि नोटों पर भगवान गणेश और लक्ष्मी के चित्र प्रकाशित करने से लोगों को दैवीय
आशीर्वाद मिलेगा, जिससे वे आर्थिक लाभ हासिल कर सकेंगे। इसके
पहले केजरीवाल गुजरात में जाकर कह आए हैं कि मेरे सपने में भगवान आए थे।
हिंदुत्व का लाभ
केजरीवाल ने अप्रेल 2010 से शुरू हुए भ्रष्टाचार विरोधी-आंदोलन की पृष्ठभूमि में भी भारत माता की जय और वंदे मातरम के नारे लगाए थे। हलांकि ये नारे हिंदुत्व के नारे नहीं हैं और हमारे स्वतंत्रता आंदोलन में इनका इस्तेमाल हुआ है, पर स्वातंत्र्योत्तर राजनीति में कांग्रेस ने इन नारों का इस्तेमाल कम करना शुरू कर दिया था। केजरीवाल अलबत्ता हिंदू प्रतीकों का इस्तेमाल इस रूप में करना चाहते हैं, जिससे उन्हें अल्पसंख्यक विरोधी नहीं माना जाए। पर इतना स्पष्ट है कि वे उस हिंदुत्व का राजनीतिक लाभ लेना चाहते हैं, जिसे कांग्रेस ने छोड़ दिया है।
भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति का जिक्र करते हुए केजरीवाल ने कहा था कि देश अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये के लगातार कमजोर होने के कारण नाजुक स्थिति से गुजर रहा है। ऐसे में यह जुगत काम करेगी। इस विचार पर बिजनेस स्टैंडर्ड ने अपने संपादकीय में कहा है कि ‘आर्थिक बहस में समझदारी जरूरी है।’
Sunday, March 13, 2022
‘फूल-झाड़ू’ की सफलता के निहितार्थ
घरों की सफाई में काम आने वाली ‘फूल-झाड़ू’ राजनीतिक रूपक बनकर उभरी है। पाँच राज्यों के चुनाव परिणामों से तीन बातें दिखाई पड़ रही हैं। भारतीय जनता पार्टी के लिए यह असाधारण विजय है, जिसकी उम्मीद उसके बहुत से समर्थकों को नहीं थी। वहीं, कांग्रेस की यह असाधारण पराजय है, जिसकी उम्मीद उसके नेतृत्व ने नहीं की होगी। तीसरे, पंजाब में आम आदमी पार्टी की असाधारण सफलता ने ध्यान खींचा है। चार राज्यों में भाजपा की असाधारण सफलता साल के अंत में होने वाले गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनावों को भी प्रभावित और अंततः 2024 के लोकसभा चुनाव को भी। इस परिणाम को मध्यावधि राष्ट्रीय जनादेश माना जा सकता है, खासतौर से उत्तर प्रदेश में। पंजाब में आम आदमी पार्टी के पक्ष में आए इतने बड़े जनादेश के कारण राष्ट्रीय राजनीति में उसकी भूमिका बढ़ेगी। वहीं पुराने राजनीतिक दलों से निराश जनता के सामने उपलब्ध विकल्पों का सवाल खड़ा हुआ है। पंजाब में तमाम दिग्गजों की हार की अनदेखी नहीं की जा सकती। पर आम आदमी पार्टी अपेक्षाकृत नई पार्टी है। क्या वह पंजाब के जटिल प्रश्नों का जवाब दे पाएगी?
उत्तर प्रदेश का ध्रुवीकरण
हालांकि पार्टी को चार राज्यों में सफलता मिली
है, पर उत्तर प्रदेश की सफलता इन सब पर भारी है।
उत्तर प्रदेश से लोकसभा की कुल 80 सीटें हैं, जो
कई राज्यों की कुल सीटों से भी ज्यादा बैठती हैं। उसे यह जीत तब मिली है, जब भाजपा-विरोधी राजनीति ने पूरी तरह कमर कस रखी थी। उसकी विफलता,
बीजेपी की सफलता है। महामारी की तीन लहरों, शाहीनबाग
की तर्ज पर उत्तर प्रदेश के शहरों में चले नागरिकता-कानून विरोधी आंदोलन, किसान आंदोलन, लखीमपुर-हिंसा और आर्थिक-कठिनाइयों से
जुड़ी नकारात्मकता के बावजूद योगी आदित्यनाथ सरकार को लगातार दूसरी बार फिर से
गद्दी पर बैठाने का फैसला वोटर ने किया है। पिछले तीन-चार दशक में ऐसा पहली बार
हुआ है। बीजेपी को मिली सीटों की संख्या में पिछली बार की तुलना में करीब 50 की
कमी आई है। बावजूद इसके कि वोट प्रतिशत बढ़ा है। 2017 में भाजपा को जो वोट प्रतिशत
39.67 था, वह इसबार 41.3 है। समाजवादी पार्टी का वोट
प्रतिशत भी बढ़ा है। उसे 32.1 प्रतिशत वोट मिले हैं, जो
2017 में 21.82 प्रतिशत थे। यह उसके राजनीतिक जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है। इसकी
कीमत बीएसपी और कांग्रेस ने दी है। कांग्रेस का वोट प्रतिशत इस चुनाव में 2.33
प्रतिशत है, जो 2017 में 6.25 प्रतिशत था। बसपा का वोट
प्रतिशत इस चुनाव में 12.8 है, जो 2017 में 22 से ज्यादा था।
राष्ट्रीय लोकदल का प्रतिशत 3.36 प्रतिशत है, जो
2017 में 1.78 प्रतिशत था। ध्रुवीकरण का लाभ सपा+ को मिला जरूर, पर वह इतना नहीं है कि उसे बहुमत दिला सके।
पंजाब का गुस्सा
उत्तर प्रदेश के अलावा उत्तराखंड में भी बीजेपी को लगातार दूसरी बार सफलता मिली है, जो इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि यहाँ सीधे दो दलों के बीच मुकाबला होता है। इसे कांग्रेस के पराभव के रूप में भी देखना होगा, क्योंकि पिछले साल केरल में वाम मोर्चा ने कांग्रेस को हराकर लगातार दूसरी बार जीत हासिल की थी। इसी क्रम में पंजाब, मणिपुर और गोवा में कांग्रेस की पराजय को देखना चाहिए, जहाँ वह या तो सत्ताच्युत हुई है या उसने सबसे बड़े दल की हैसियत को खोया है। आम आदमी पार्टी ने पंजाब की 117 सीटों में से 92 पर जीत हासिल की है। कांग्रेस 18 सीट के साथ दूसरे स्थान पर रही। मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी दो सीटों से लड़े थे। दोनों में हार गए। उनके प्रतिस्पर्धी नवजोत सिंह सिद्धू भी हार गए। वहीं पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल, अमरिंदर सिंह और राजिंदर कौर भट्टल को भी हार का सामना करना पड़ा। लगता है कि पंजाब की जनता परम्परागत राजनीति को फिर से देखना नहीं चाहती। आम आदमी पार्टी नई पार्टी है। फिलहाल उसकी स्लेट साफ है, पर अब उसकी परख होगी।
Friday, April 23, 2021
मौके-बेमौके तमाशा क्यों बनते हैं केजरीवाल?
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सतीश आचार्य का एक पुराना कार्टून, जो आज भी मौजूं है |
आम आदमी पार्टी और उसके नेता अरविंद केजरीवाल की पहचान अराजक मुख्यमंत्री के रूप में पहले से थी, अब उनकी विश्वसनीयता खत्म होने का खतरा पैदा होता जा रहा है। महामारी के दौर में देश के दस सबसे त्रस्त राज्यों के मुख्यमंत्रियों साथ पीएम मोदी की बैठक के दौरान अरविंद केजरीवाल ने जो बातें कहीं, वे टीवी चैनलों पर लाइव दिखाई गईं। यह सब अनायास ही लाइव नहीं हुआ होगा। कहीं न कहीं उनके प्रचार-तंत्र ने चैनलों के साथ मिलकर काम किया होगा।
बहरहाल उन्होंने प्रोटोकॉल
को तोड़कर जो किया, उससे उन्हें बदनामी ही मिलेगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनके
व्यवहार से नाराज हुए हैं। सम्भव है केजरीवाल को इससे कोई फर्क न पड़े, पर
राजनीतिक रूप से वे विरोधी दलों के बीच भी अविश्वसनीय व्यक्ति बनते जा रहे हैं। केजरीवाल
ने पीएम मोदी से कहा कि कोरोना मरीजों के लिए ऑक्सीजन की कमी होने से बहुत बड़ी
त्रासदी हो सकती है। हालात से निबटने के लिए राष्ट्रीय योजना की आवश्यकता है।
दिल्ली को कम ऑक्सीजन मिल रहा है। साथ ही उन्होंने एक देश एक वैक्सीन प्राइस की
बात कही।
सरकारी सूत्रों के अनुसार पहली बार प्रधानमंत्री के साथ मुख्यमंत्रियों की बातचीत को लाइव टीवी पर दिखाया गया। सरकारी सूत्रों का कहना है कि केजरीवाल ने पीएम-सीएम संवाद का इस्तेमाल राजनीति के लिए किया। केजरीवाल ने तथ्य जानते हुए भी वैक्सीन की कीमत को लेकर झूठ फैलाया। उन्होंने ऑक्सीजन को एयरलिफ्ट करने का मुद्दा उठाया। शायद उन्हें पता नहीं था कि पहले से ही ऑक्सीजन एयरलिफ्ट की जा रही है। उनका पूरा भाषण समस्या के हल को नहीं बता रहा था, बल्कि वह राजनीति से प्रेरित और जिम्मेदारियों से भागने वाला था।
Saturday, January 30, 2021
आम आदमी पार्टी का फिर से विस्तार का इरादा
आम आदमी पार्टी ने घोषणा की है कि वह आने वाले समय में छह राज्यों के विधानसभा चुनावों में भाग लेगी। ये राज्य हैं यूपी, उत्तराखंड, गोवा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश और गुजरात। यह घोषणा दिल्ली के आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने गुरुवार 28 जनवरी को दिल्ली में की। दूसरी तरफ पार्टी ने किसान आंदोलन के दौरान अपनी गतिविधियाँ बढ़ाईं और 29 जनवरी को मुजफ्फरनगर में हुई किसानों की महापंचायत में रालोद के जयंत चौधरी के अलावा आम आदमी पार्टी के संजय सिंह भी मौजूद थे और दोनों ने सभा को संबोधित किया। इसके पहले हाथरस में एक दलित बालिका से हुए बलात्कार और हत्या के बाद भी संजय सिंह उस इलाके में गए थे।
पार्टी को किसान आंदोलन भी अपने आप को लांच करने का उपयुक्त प्लेटफॉर्म लगता है। उसने किसानों का सड़क से संसद तक समर्थन करने का ऐलान किया है। साथ ही कहा है कि आप कार्यकर्ता बिना पार्टी के झंडे और टोपी के किसानों के साथ खड़े होंगे। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने धरने में किसानों के लिए दिल्ली से पानी और शौचालय की व्यवस्था कराकर हर संभव मदद का आश्वासन दिया है। प्रदेश के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया गाजीपुर बार्डर पहुंचकर हालात का जायजा ले चुके हैं।
Friday, December 18, 2020
पुराने अंदाज में केजरीवाल
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हिन्दू में सुरेन्द्र का कार्टून |
आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल करीब दो साल की खामोशी के बाद फिर से अपनी पुरानी शैली में वापस आते नजर आ रहे हैं। इन दिनों दिल्ली में पंजाब से आए किसानों के समर्थन में दिए गए वक्तव्यों के अलावा गत गुरुवार 17 दिसंबर को दिल्ली विधानसभा में उनके बयानों में उनकी पुरानी राजनीति की अनुगूँज थी।
उन्होंने केंद्र
सरकार को संबोधित करते हुए कहा, कोरोना काल में क्यों ऑर्डिनेंस पास किया? पहली बार राज्यसभा में बिना वोटिंग के 3 बिल को कैसे पास कर
दिया गया? सीएम ने कहा कि दिल्ली विधानसभा केंद्र के कृषि
कानूनों को खारिज कर रही है। केंद्र सरकार कानून वापिस ले।
कृषि कानूनों को लेकर दिल्ली विधानसभा में गुरुवार को एक दिन का विशेष सत्र बुलाया गया था। सत्र की शुरुआत होने पर मंत्री कैलाश गहलोत ने एक संकल्प पत्र पेश किया, जिसमें तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने की बात कही गई। इसके बाद हर वक्ता को बोलने के लिए पांच मिनट का वक्त दिया गया। बाद में विधानसभा ने कृषि कानूनों को निरस्त करने का एक संकल्प स्वीकार कर लिया।
Tuesday, September 10, 2019
आम आदमी पार्टी की बढ़ती मुश्किलें
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Thursday, February 7, 2019
दिल्ली में आप-कांग्रेस और भाजपा
कांग्रेस को उत्तर भारत में अपनी स्थिति को बेहतर बनाना है, तो उसे अपनी स्वतंत्र राजनीति को भी मजबूत करना होगा। उत्तर प्रदेश में नब्बे के दशक में कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी के सामने हथियार डाल दिए थे और मान लिया था कि बीजेपी के खिलाफ लड़ाई में एकमात्र सहारा सपा ही है। उस रणनीति के कारण यूपी में वह अपनी जमीन पूरी तरह खो चुकी है। दिल्ली में अभी उसकी स्थिति इतनी खराब नहीं है। दूसरे उसे भविष्य में खड़े रहना है, तो सबसे पहले आम आदमी पार्टी को किनारे करना होगा। क्योंकि बीजेपी के खिलाफ दो मोर्चे बनाने पर हर हाल में फायदा बीजेपी को होगा। भले ही आज फायदा न मिले, पर दीर्घकालीन लाभ अकेले खड़े रहने में ही है।
Monday, January 21, 2019
‘आप’ की अग्निपरीक्षा होगी अब
प्रमोद जोशी
वरिष्ठ पत्रकार, बीबीसी हिंदी के लिए
पिछले लोकसभा चुनाव के ठीक पहले देश की राजनीति में नरेन्द्र मोदी के 'भव्य-भारत की कहानी' और उसके समांतर आम आदमी पार्टी 'नई राजनीति के स्वप्न' लेकर सामने आई थी.
दोनों की अग्नि-परीक्षा अब इस साल लोकसभा चुनावों में होगी. दोनों की रणनीतियाँ इसबार बदली हुई होंगी.
ज़्यादा बड़ी परीक्षा 'आप' की है, जिसका मुक़ाबला बीजेपी के अलावा कांग्रेस से भी है. दिल्ली और पंजाब तक सीमित होने के कारण उसका अस्तित्व भी दाँव पर है.
आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने पिछले रविवार को बरनाला से पंजाब में पार्टी के लोकसभा चुनाव अभियान की शुरूआत की है. उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी राज्य की सभी 13 सीटों पर अकेले अपने दम पर चुनाव लड़ेगी.
पार्टी का फोकस बदला
हाल में हुई पार्टी की कार्यकारिणी और राष्ट्रीय परिषद की बैठकों में फ़ैसला किया गया कि 2014 की तरह इस बार हम सभी सीटों पर चुनाव नहीं लड़ेंगे.
पार्टी का फोकस अभी सिर्फ़ 33 सीटों पर है (दिल्ली में 7, पंजाब में 13, हरियाणा में10, गोवा में 2 और चंडीगढ़ में एक ). ज्यादातर जगहों पर उसका बीजेपी के अलावा कांग्रेस से भी मुक़ाबला है.
कुछ महीने पहले तक पार्टी कोशिश कर रही थी कि किसी तरह से कांग्रेस के साथ समझौता हो जाए, पर अब नहीं लगता कि समझौता होगा. दूसरी तरफ़ वह बीजेपी-विरोधी महागठबंधन के साथ भी है, जो अभी अवधारणा है, स्थूल गठबंधन नहीं.
Sunday, August 26, 2018
जनता के भरोसे को कायम नहीं रख पाई ‘आप’
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पार्टी के हमदर्द कह सकते हैं कि गिरावट है ही नहीं और जो हो रहा है, वह सामान्य राजनीतिक प्रक्रिया है। सभी पार्टियों में ऐसा होता है। बात सही है, पर इसे क्या दूसरे दलों की तरह होना चाहिए? आने-जाने की भी कोई इंतहा है। पिछले कुछ समय में इसकी भीतरी खींचतान कुछ ज्यादा ही मुखर हुई है। पार्टी से हटने की प्रवृत्तियाँ अलग-अलग किस्म की हैं। कुछ लोग खुद हटे और कुछ हटाए गए। योगेन्द्र यादव, प्रशांत भूषण और आनन्द कुमार का हटना बड़ी परिघटना थी, जिससे पार्टी टूटी तो नहीं, पर उससे इतना जाहिर जरूर हुआ कि इसकी राजनीति इतनी ‘नई’ नहीं है, जितनी बताई जा रही है। पार्टी ने इस प्रकार के प्रश्नों पर विचार करने के लिए जो व्यवस्था बनाई थी, वह विफल हो गई। वस्तुतः पार्टी की एक केन्द्रीय हाईकमान नजर आने लगी।
Thursday, August 23, 2018
नकारात्मक खबरें और बढ़ता ‘आप’ का क्षरण
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Thursday, August 16, 2018
‘आप’ में बार-बार इस्तीफे क्यों होते हैं?
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Saturday, June 16, 2018
दिल्ली में ‘धरना बनाम धरना’
Thursday, June 14, 2018
लम्बी चुप्पी के बाद ‘आप’ के तेवर तीखे क्यों?
Thursday, June 7, 2018
क्या ‘आप’ से हाथ मिलाएगी कांग्रेस?
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सतीश आचार्य का कार्टून साभार |