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Friday, December 17, 2010
राजदीप सरदेसाई भाग-1
राजदीप इसे मिस-कंडक्ट नहीं मिस-जजमेंट मानते हैं। इसे मानने में दिक्कत नहीं है, पर इसे मानने का मतलब है कि हम इस किस्म की पत्रकारिता से जुड़े आचरण को उचित मानते हैं। इन टेपों को सुनें तो आप समझ जाएंगे कि इन पत्रकारों ने नीरा राडिया से सवाल नहीं किए हैं, बल्कि उनके साथ एक ही नाव की सवारी की है। ये पत्रकार नीरा राडिया से कहीं असहमत नहीं लगते। व्यवस्था की खामियों को वे देख ही नहीं पा रहे हैं। दरअसल पत्रकारिता की परम्परागत समझ उन्हें है ही नहीं और वे अपने सेलेब्रिटी होने के नशे में हैं।
Saturday, December 4, 2010
राडिया प्रकरण पर विनोद मेहता
मीडियाकर्मी अपनी परम्परागत भूमिका को निभाते रहें तो किसी नए ज्ञान की ज़रूरत नहीं है। आज के विवाद इसलिए उठे हैं क्योंकि पत्रकार अपनी भूमिका को भूल गए हैं। वे या तो नींद में हैं या नशे में।
Wednesday, December 1, 2010
अब यह भी तो पता लगाइए कि टेप किसने जारी किए
पत्रकारिता और कारोबारियों के बीच रिश्तों को लेकर हाल में जो कुछ हुआ है उससे हम पार हो जाएंगे। पर शायद अपनी साख को हासिल नहीं कर पाएंगे। यह बात काफी देर बाद समझ में आएगी कि साख का भी महत्व है। और यह भी कि पत्रकारिता दो दिन में स्टार बनाने वाला मंच ज़रूर है, पर कभी ऐसा वक्त भी आता है जब चोटी से जमीन पर आकर गिरना होता है। बहरहाल अभी अराजकता का दौर है।
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