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Tuesday, January 6, 2015

संरचनात्मक निरंतरता की देन है ‘नीति आयोग’

नीति आयोग बन जाने के बाद जो शुरुआती प्रतिक्रियाएं हैं उनके राजनीतिक आयाम को छोड़ दें तो ज्यादातर राज्य अभी इसके व्यावहारिक स्वरूप को देखना चाहते हैं। इस साल वार्षिक योजनाओं पर विचार-विमर्श नहीं हुआ है। असम सरकार ने छठी अनुसूची के तहत आने वाले क्षेत्रों के लिए साधनों को लेकर चिंता व्यक्त की है। वहीं आंध्र सरकार अपनी नीति आयोग बनाने की योजना बना रहा है। तेलंगाना सरकार की समझ कहती है कि अब राज्य को बगैर किसी योजना आयोग की शर्तों से बँधे सीधे धनराशि मिलेगी। देखना यह है कि नीति आयोग का नाम ही बदला है या काम भी बदलेगा। केंद्र सरकार के वित्त मंत्रालय में भी भारी बदलाव होने जा रहे हैं। नए मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रह्मण्यम आर्थिक सर्वेक्षण का रंग-रूप पूरी तरह बदलने की योजना बना रहे हैं। अब सर्वेक्षण के दो खंड होंगे। पहले खंड में अर्थ-व्यवस्था का विश्लेषण और विवेचन होगा। साथ ही इस बात पर जोर होगा कि किन क्षेत्रों में सुधार की जरूरत है। दूसरा खंड पिछले वर्षों की तरह सामान्य तथ्यों से सम्बद्ध होगा।

Monday, December 8, 2014

योजना आयोग : काम बदलें या नाम?

कांग्रेसी 'योजना' बनाम भाजपाई 'आयोग'

  • 1 घंटा पहले
भारत संघ के राज्यों के मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ.
भारत संघ के राज्यों के मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ.
रविवार को दिल्ली में हुई मुख्यमंत्रियों की बैठक में योजना आयोग को लेकर मचे घमासान और राजनीति का पटाक्षेप नहीं हुआ.
बल्कि लगता है कि इसे लेकर राजनीति का नया दौर शुरू होगा.
यह संस्था जवाहरलाल नेहरू ने शुरू ज़रूर की थी लेकिन इसके रूपांतरण की बुनियाद साल 1991 में बनी कांग्रेस सरकार ने ही डाली थी.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व्यक्ति और विचारक के रूप में नेहरूवादी विरोधी के रूप में उभरे हैं.

कांग्रेस का मोह

राहुल गांधी, सोनिया गांधी
उन्होंने इस साल लाल किले की प्राचीर से स्वतंत्रता दिवस के अपने पहले संदेश में योजना आयोग को समाप्त करने की घोषणा करके व्यवस्था-परिवर्तन के साथ-साथ प्रतीक रूप में अपने नेहरू विरोध को भी रेखांकित किया था.
लगता यह भी है कि कांग्रेस को इसके नाम से मोह है.
वह शायद चाहती है कि इसका काम बदल जाए, पर नाम न बदले. दूसरी ओर सारी कवायद नाम की लगती है. काम घूम-फिरकर फिर वैसा ही रहेगा.

Sunday, August 17, 2014

एक था योजना आयोग

योजना आयोग खत्म करने की खबर पर आज के टेलीग्राफ ने अपना पूरा पहला पेज इस खबर को समर्पित कर दिया। इस पेज में काफी रोचक जानकारियाँ हैं।

ONE DINO DOWN

- Jurassic plan panel set to be replaced

New Delhi, Aug. 16: The Narendra Modi government plans to transform the Soviet-era Planning Commission into a Chinese-style National Development Reforms Commission.

The proposed commission will act not only as an economic and human development think tank but also as a body that plans and monitors the implementation of mega projects and industrial areas, liaising with state governments to get the projects up and running within a timeframe.

Modi feels the plan panel — a Jurassic-era relic of the command economy — has outlived its utility in the new age where the larger chunk of the economy is in private hands, and where the State’s role is that of a catalyst rather than a Soviet-style target setter.

Read full news in Telegraph

Those days of commanding heights
- Species that towered over the economy is finally being declared extinct
JAYANTA ROY CHOWDHURY

Yojana Bhavan, which houses the Planning Commission. Picture by Ramakant Kushwaha
An apocryphal story: Raj Krishna, the economist who coined the phrase “Hindu rate of growth”, was a member of the Planning Commission when it was formulating the Sixth Five-Year Plan. Someone asked him what the approach to the Sixth Plan would be. Krishna replied: “This is not the approach to the Sixth Plan. This is the Sixth approach to the same Plan.”
Like other relics of the Nehruvian era — smoke-belching Ambassador cars, unwieldy Murphy radio sets, urban sprawls of ugly, box-like, post-World War flats, the fashion statement of the Nehru jacket and Godrej typewriters — the Planning Commission, housed just three buildings away from Parliament, is now destined for history’s dustbin.


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Saturday, August 9, 2014

योजना आयोग रहे न रहे, राज्यों की भूमिका बढ़नी चाहिए

यूपीए सरकार और उसकी राजनीति में अंतर्विरोध था। सरकार आर्थिक उदारीकरण पर कटिबद्ध थी और पार्टी नेहरूवादी सोच में कैद थी। मोदी सरकार के सामने भी अंतर्द्वंद है। पर मनमोहन सरकार के मुकाबले वह ज्यादा खुलकर काम कर सकती है। यह बात योजना आयोग को लेकर चल रही अटकलों के संदर्भ में कही जा सकती है। योजना मंत्री राव इंद्रजीत सिंह ने पिछले हफ्ते राज्यसभा में लिखित उत्तर में कहा कि आयोग को फिलहाल खत्म करने या उसके मौजूदा स्वरूप को युक्तिसंगत बनाने का कोई प्रस्ताव सरकार के विचाराधीन नहीं है। पर इस बार के बजट का साफ संकेत है कि आयोग के पर कतरे जाएंगे।
योजनागत और गैर-योजनागत व्यय में अंतर पिछली सरकार ने अपने अंतरिम बजट में ही कर दिया था। सरकारी विभागों को दो तरीके से धनराशि आवंटित होती है। एक, वित्त मंत्रालय के जरिए और दूसरे योजना आयोग से। इस विसंगति को दूर किया जा रहा है। यह अवधारणा मोदी सरकार की देन नहीं है। इसकी सिफारिश रंगराजन समिति ने की थी। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह बरसों से इसकी बात करते रहे हैं। उन्होंने अपने विदाई भाषण में लगातार खुलती जा रही अर्थव्यवस्था में योजना आयोग की भूमिका की समीक्षा करने की सलाह दी थी। भाजपा के चुनाव घोषणापत्र में भी आयोग के पुनर्गठन की बात कही गई है। अलबत्ता वामपंथी दलों को यह विचार पसंद नहीं आएगा।