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Wednesday, November 30, 2022

भारत का निजी क्षेत्र स्पेस-रेस में शामिल

विक्रम रॉकेटों की सीरीज़ और अग्निबाण

गत 18 नवंबर को भारत के निजी क्षेत्र के पहले अंतरिक्ष रॉकेट के प्रक्षेपण के साथ इसरो और हैदराबाद की कंपनी स्काईरूट ने इतिहास रच दिया। स्काईरूट एयरोस्पेस के रॉकेट विक्रम-एस की यह परीक्षण उड़ान थी। इसे नाम दिया गया मिशन प्रारंभ। इस मिशन के तीन पेलोड थे और यह सब ऑर्बिटल मिशन था। इसके बाद 28 नवंबर को देश के
प्राइवेट सेक्टर के पहले लांचपैड का श्रीहरिकोटा में उद्घाटन हुआ। चेन्नई के स्टार्टअप अग्निकुल कॉस्मॉस ने सतीश धवन स्पेस सेंटर, श्रीहरिकोटा में इस लांचपैड और मिशन कंट्रोल सेंटर की स्थापना की है। इसका उद्घाटन 28 नवंबर को इसरो के ध्यक्ष एस सोमनाथ ने किया।

इस व्यवस्था के दो अंग हैं। एक, अग्निकुल लांचपैड और दूसरा अग्निकुल मिशन कंट्रोल सेंटर। दोनों के बीच चार किलोमीटर की दूरी है। लांचपैड में लिक्विड स्टेज-कंट्रोल्ड लांच किए जा सकते हैं। अग्निकुल ने यहाँ से अग्निबाण रॉकेटों के प्रक्षेपण की योजना बनाई है। अग्निकुल स्टार्टअप की योजना भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान-मद्रास में बनाई गई थी और इससे, यह साल खत्म होने से पहले अग्निबाण रॉकेट को प्रक्षेपित करने की भी योजना है।

कंपनी ने ट्वीट किया, ‘‘श्रीहरिकोटा में हमारे पहले लांचपैड और मिशन नियंत्रण केंद्र के निर्माण का अवसर पाकर हम सम्मानित और प्रसन्न हैं जिसका उद्घाटन इसरो अध्यक्ष ने किया है। यहां से अग्निकुल के प्रक्षेपण किए होंगे। इसरो और इनस्पेस का इस मूल्यवान सहयोग के लिए शुक्रिया।’’

सोमनाथ ने कहा, ‘‘सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र में एक निजी प्रक्षेपण यान के लिए पहला विशेष लांचपैड तैयार किया गया है। अब, भारत एक और अंतरिक्ष प्लेटफॉर्म से अंतरिक्ष की यात्रा कर सकता है। इसके लिए अग्निकुल का शुक्रिया।’’ अग्निकुल के सह-संस्थापक और मुख्य कार्यपालन अधिकारी (सीईओ) श्रीनाथ रविचंद्रन ने कहा, ‘‘हमारे अंतरिक्ष यानों को उस केंद्र से प्रक्षेपित करना अग्निकुल में हम सभी के लिए सपने के सच होने जैसा है जिसे हमने डिजाइन किया है और खुद बनाया है।’’

स्टार्टअप के एक बयान के अनुसार, इस पैड से अग्निकुल का पहला प्रक्षेपण नियंत्रित और दिशा-निर्देशित मिशन होगा। अग्निबाण ऐसा दो स्तर वाला रॉकेट है जिसे अपनी जरूरत के हिसाब से बदला जा सकता है। इसमें 100 किलोग्राम तक पेलोड को करीब 700 किलोमीटर ऊंचाई तक कक्षाओं में ले जाने की क्षमता है।

चेन्नई से संचालित स्टार्टअप ने दुनिया का पहला एक भाग वाला 3डी प्रिंट इंजन अग्निलेट भी विकसित किया है। रविचंद्रन ने 2017 में मोइन एसपीएम और आईआईटी मद्रास के प्रोफेसर एस आर चक्रवर्ती के साथ मिलकर अग्निकुल की स्थापना की थी।

देश के निजी क्षेत्र का पहला उपग्रह विक्रम-एस उप-कक्षीय उड़ान में चेन्नई के स्टार्टअप स्पेस किड्ज, आंध्र प्रदेश के स्टार्ट-अप एन-स्पेस टेक और आर्मेनियाई स्टार्ट-अप बाजूमक्यू स्पेस रिसर्च लैब के तीन पेलोड ले गया था। यानी पृथ्वी की सतह से 69.5 किलोमीटर की अधिकतम ऊँचाई तक रॉकेट समुद्र में गिर गया। इसरो ने इस मिशन के प्रक्षेपण के लिए स्काईरूट एयरोस्पेस को 12 नवंबर से 16 नवंबर का विंडो दिया था, लेकिन मौसम को देखते हुए इसका प्रक्षेपण 18 नवंबर को सुबह 11.30 बजे किया गया।

Friday, November 18, 2022

विक्रम-एस के साथ भारत के निजी क्षेत्र की अंतरिक्ष में लंबी छलाँग

 


निजी क्षेत्र के पहले अंतरिक्ष रॉकेट के प्रक्षेपण के साथ इसरो और हैदराबाद की कंपनी स्काईरूट ने इतिहास रच दिया। स्काईरूट एयरोस्पेस के रॉकेट विक्रम-एस की यह परीक्षण उड़ान थी। इसे नाम दिया गया मिशन प्रारंभ। इस मिशन के तीन पेलोड थे और यह सब ऑर्बिटल मिशन था। विक्रम-एस उप-कक्षीय उड़ान में चेन्नई के स्टार्टअप स्पेस किड्ज, आंध्र प्रदेश के स्टार्ट-अप एन-स्पेस टेक और आर्मेनियाई स्टार्ट-अप बाजूमक्यू स्पेस रिसर्च लैब के तीन पेलोड ले गया था। यानी पृथ्वी की सतह से 89.5 किलोमीटर की अधिकतम ऊँचाई तक जाने के बाद रॉकेट समुद्र में गिर गया। इसरो ने इस मिशन के प्रक्षेपण के लिए स्काईरूट एयरोस्पेस को 12 नवंबर से 16 नवंबर का विंडो दिया था, लेकिन मौसम को देखते हुए इसका प्रक्षेपण 18 नवंबर को सुबह 11.30 बजे किया गया।

इसरो ने किया प्रक्षेपण

यह पहली बार था जब इसरो ने किसी निजी कंपनी के मिशन का अपने लॉन्चिंग पैड से प्रक्षेपण किया है। इसकी वजह है कि भारतीय निजी क्षेत्र अभी इतना सबल नहीं है कि अपने प्रक्षेपण स्थल विकसित कर सके। स्काईरूट एयरोस्पेस एक स्टार्टअप है, जो चार साल से काम कर रहा है। उसने इस अभियान के साथ अपनी महत्वाकांक्षा को उजागर कर दिया है। अब जब भी भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम में निजी क्षेत्र का जिक्र होगा, उसका नाम सबसे पहले लिया जाएगा।

इसरो के पूर्व वैज्ञानिक पवन कुमार चंदन और नागा भारत डाका ने 2018 में स्टार्टअप के रूप में स्काईरूट एयरोस्पेस की स्थापना की थी। इसके सीईओ पवन कुमार चंदन ने बताया कि इस मिशन के लिए इसरो की ओर से कई तकनीकी सुविधाएं मुहैया कराई गईं। वे कहते हैं, इसरो ने इसके लिए बहुत ही मामूली फ़ीस ली है। अगले एक दशक में कंपनी ने 20,000 छोटे सैटेलाइट छोड़ने का लक्ष्य रखा है। कंपनी की वेबसाइट पर लिखा है कि “अंतरिक्ष में सैटेलाइट भेजना अब टैक्सी बुक करने जैसा, तेज़, सटीक और सस्ता हो जाएगा।” 

भारत सरकार इन दिनों हर क्षेत्र में निजी क्षेत्र को बढ़ावा दे रही है और जल्द ही अंतरिक्ष अनुसंधान में निजी क्षेत्र की भूमिका के सिलसिले में नई नीतियों की घोषणा करने वाली है। जून 2020 में मोदी सरकार ने इस क्षेत्र में बदलाव की शुरुआत की थी, जिसके बाद निजी कंपनियों के लिए रास्ता खुला। इसके लिए इन-स्पेस ई नामक एक नई संस्था बनाई गई जो इसरो और स्पेस कंपनियों के बीच पुल का काम करती है। सरकार चाहती है कि छोटे मिशनों का भार, जो इसरो पर रहा है वह अब प्राइवेट सेक्टर को दिया जाए, ताकि इसरो बड़े मिशनों पर फोकस कर सके। भारत में कॉमर्शियल मार्केट भी बढ़ेगा, जिससे इसरो को अपने बड़े मिशन पर काम करने का वक्त मिल पाएगा।

Thursday, December 18, 2014

India's GSLV Mk.III with prototype crew capsule


India debuts GSLV Mk.III with prototype crew capsule

no altThe Indian Space Research Organisation has launched the first test flight of its newest rocket – the GSLV Mk.III – on Thursday, conducting a suborbital flight that also demonstrated a prototype crew capsule (CARE) for India’s proposed manned missions. Liftoff from the Satish Dhawan Space Centre occurred at 09:30 local time (04:00 UTC).

ISRO Launch:
India’s new rocket, which the Indian Space Research Organisation (ISRO) refers to by the names GSLV Mk.III and LVM3, is a completely new vehicle marking the third generation for India’s orbital launch systems.
The two-stage rocket is designed to place around 10 tonnes (9.8 Imperial tons, 11 US tons) of payload into low earth orbit or four tonnes (3.9 Imperial tons, 4.4 US tons) to a geosynchronous transfer orbit.
2014-12-18 01_00_29-LIVE_ GSLV Mk-3 1st test launch (X1) December 18, 2014 (ETD 0400UTC)For Thursday’s mission only the first stage and boosters were live, while the inert second stage was loaded with liquid nitrogen to simulate propellant.