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Tuesday, October 8, 2024

पश्चिम एशिया में लड़ाई की पहली भयावह-वर्षगाँठ


गज़ा में एक साल की लड़ाई ने इस इलाके में गहरे राजनीतिक, मानवीय और सामाजिक घाव छोड़े हैं. इन घावों के अलावा भविष्य की विश्व-व्यवस्था के लिए कुछ बड़े सवाल और ध्रुवीकरण की संभावनाओं को जन्म दिया है. इस प्रक्रिया का समापन किसी बड़ी लड़ाई से भी हो सकता है.

यह लड़ाई इक्कीसवीं सदी के इतिहास में महत्वपूर्ण मोड़ साबित होगी. कहना मुश्किल है कि इस मोड़ की दिशा क्या होगी, पर इतना स्पष्ट है कि इसे रोक पाने में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय से लेकर संरा सुरक्षा परिषद तक नाकाम हुए हैं. लग रहा है कि यह लड़ाई अपने दूसरे वर्ष में भी बिना किसी समाधान के जारी रहेगी, जिससे इसकी पहली वर्षगाँठ काफी डरावनी लग रही है.

इस लड़ाई के कारण अमेरिका, ब्रिटेन और इसराइल की आंतरिक-राजनीति भी प्रभावित हो रही है, बल्कि दुनिया के दूसरे तमाम देशों की आंतरिक-राजनीति पर इसका असर पड़ रहा है.

Thursday, April 25, 2024

फलस्तीनी-एकता के प्रयास और बाधाएं

इस्माइल हानिये और एर्दोआन

 देस-परदेस

दो लेखों की श्रृंखला का दूसरा भाग। इसका पहला भाग यहाँ पढ़ें

पिछले छह महीने से गज़ा में चल रही लड़ाई में हमास के संगठन और सैनिक-तंत्र को भारी क्षति पहुँची है. वह उसकी भरपाई कर पाएगा या नहीं, यह तो वक्त बताएगा, पर यह देखना ज्यादा महत्वपूर्ण है कि फलस्तीनी एकता को लेकर हमास की राय क्या है. हमास और फतह गुट की प्रतिद्वंद्विता से एक मायने में इसराइल को राहत मिली है, क्योंकि अब उसपर फतह का दबाव कम है.

हमास की स्थापना हालांकि 1987 में हो गई थी, पर उसे लोकप्रियता तब मिली, जब फतह ग्रुप के अधीन फलस्तीन अथॉरिटी अलोकप्रिय होने लगी. उसकी अलोकप्रियता के तमाम कारण थे. उसे इसराइल के प्रति नरम माना गया. प्राधिकरण, भ्रष्टाचार का शिकार भी था. 2004 में यासर अरफात के निधन के बाद फतह गुट के पास करिश्माई नेतृत्व भी नहीं बचा.

एक जमाने तक अरफात का गुट ही फलस्तीनियों का सर्वमान्य समूह था. उसने ही इसराइलियों के साथ समझौता किया था. पर प्रकारांतर से आक्रामक हमास गुट बड़ी तेजी से उभर कर आया, जिसने फतह पर इसराइल से साठगाँठ का आरोप लगाया.

दोनों का फर्क

दोनों में अंतर क्या है?  यह अंतर वैचारिक है और रणनीतिक भी. फतह एक तरह से पुरानी लीक के सोवियत साम्यवादी संगठन जैसा है और हमास का जन्म मुस्लिम-ब्रदरहुड से हुआ है. फतह ने इसराइल को स्वीकार कर लिया है और इसराइल ने उसे. दूसरी तरफ हमास और इसराइल के बीच कोई रिश्ता नहीं है. दोनों एक-दूसरे को स्वीकार नहीं करते.

अभी तक हमास और इसराइल के बीच आमतौर पर मध्यस्थ की भूमिका क़तर ने निभाई है, पर अब क़तर कह रहा है कि हम अपनी भूमिका पर पुनर्विचार करेंगे. लगता यह भी है कि तुर्की की इच्छा इस भूमिका को निभाने में है. पर क्या वह फलस्तीनी गुटों के बीच भी मध्यस्थ की भूमिका भी निभा पाएगा?

Wednesday, April 24, 2024

फलस्तीन-समस्या के समाधान में रुकावटें


दो लेखों की श्रृंखला का पहला भाग

दमिश्क में ईरानी दूतावास पर इसराइली हमले और फिर इसराइल पर ईरानी हमले के बाद अंदेशा था कि पश्चिम एशिया में बड़ी लड़ाई की शुरुआत हो गई है. हालांकि अंदेशा खत्म नहीं हुआ है, फिर भी लगता है कि दोनों पक्ष मामले को ज्यादा बढ़ाने के पक्ष में नहीं हैं. यों तो भरोसे के साथ कुछ भी नहीं कहा जा सकता, पर लगता है कि शुक्रवार 19 अप्रेल को ईरान के इस्फ़हान शहर पर इसराइल के एक सांकेतिक हमले के बाद फिलहाल मामला रफा-दफा हो गया है. 

अमेरिकी मीडिया ने शुक्रवार की सुबह खबर दी कि इसराइल ने ईरान के इस्फ़हान शहर पर जवाबी हमला बोला है. सबसे पहले अमेरिका के दो अधिकारियों ने कहा कि इसराइल ने ईरान पर मिसाइल से हमला किया. अमेरिकी अधिकारियों ने यह जानकारी सीबीएस न्यूज़ को दी.

इस्फ़हान में ईरान की सेना का बड़ा एयर बेस है और इस क्षेत्र में परमाणु हथियारों से जुड़े कई अहम ठिकाने भी हैं. ईरानी स्रोतों ने पहले कहा कि कोई हमला नहीं हुआ है, पर बाद में माना कि उधर कुछ विस्फोट हुए हैं. साथ ही विश्वस्त सरकारी सूत्रों के हवाले से कहा गया कि देश के कई हिस्सों में जो धमाके सुनाई पड़े थे, वे एयर डिफेंस सिस्टम के अज्ञात मिनी ड्रोन्स को निशाना बनाने के कारण हुए थे.

सुरक्षा परिषद में वीटो

शुक्रवार की शाम तक, ईरान के सरकारी मीडिया ने कहा कि इसराइल के इस हमले से ईरान को कोई ख़ास नुक़सान नहीं पहुँचा और ईरान जवाबी कार्रवाई नहीं करेगा. दोनों देशों की इस समझदारी से क्या फलस्तीन-समस्या के बाबत कोई निष्कर्ष निकाला जा सकता है?  क्या किसी दूरगामी समझौते के आसार निकट भविष्य में बनेंगे? उससे पहले सवाल यह भी है कि फलस्तीन मसले में ईरान की क्या कोई भूमिका है?

इन सवालों पर बात करने के पहले पिछले गुरुवार को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में फलस्तीन को संयुक्त राष्ट्र की पूर्ण सदस्यता देने के एक प्रस्ताव पर भी नज़र डालें, जो अमेरिकी वीटो के बाद फिलहाल टल गया है. इस टलने का मतलब क्या है और इसका फलस्तीन-इसराइल समस्या के स्थायी समाधान से क्या कोई संबंध है?

प्रति-प्रश्न यह भी है कि प्रस्ताव पास हो जाता, तो क्या समस्या का समाधान हो जाता और अमेरिकी वीटो का मतलब क्या यह माना जाए कि वह फलस्तीन के गठन का विरोधी है? सबसे बड़ी रुकावट इसराइल को माना जाता है, जिसकी उग्र-नीतियाँ फलस्तीन को बनने से रोक रही हैं. माना यह भी जाता है कि फलस्तीनियों और उनके समर्थक मुस्लिम-देशों की सहमति बन जाए, तो इसराइल पर भी दबाव डाला जा सकता है.

Thursday, February 1, 2024

गज़ा में लड़ाई भले न रुके, पर इसराइल पर दबाव बढ़ेगा


गज़ा में हमास के खिलाफ चल रही इसराइली सैनिक कार्रवाई को लेकर इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस (आईसीजे) का पहला आदेश पहली नज़र में खासा सनसनीख़ेज़ लगता है, पर उसे ध्यान से पढ़ें, तो लगता नहीं कि लड़ाई रोकने में उससे मदद मिलेगी.

बहुत से पर्यवेक्षकों को इस आदेश का मतलब एक राजनीतिक वक्तव्य से ज्यादा नहीं लगता. वस्तुतः अदालत ने इसराइल से लड़ाई रोकने को कहा भी नहीं है, पर जो भी कहा है, उसपर अमल करने के लिए इसराइल के फौजी अभियान की प्रकृति में बदलाव करने होंगे. यकीनन अब इसराइल पर लड़ाई में एहतियात बरतने का दबाव बढ़ेगा.  

अदालत ने कहा है कि दक्षिण अफ्रीका ने इसराइल पर जिन कार्यों को करने और जिनकी अनदेखी करने के आरोप लगाया है, उनमें से कुछ बातें  नरसंहार के दायरे में रखी जा सकती हैं. इसराइल का दावा है कि वह आत्मरक्षा में लड़ रहा है और युद्ध के सभी नियमों का पालन कर रहा है.

यह भी सच है कि आईसीजे के सामने युद्ध-अपराध का मुकदमा नहीं है. उसका रास्ता अलग है, पर इस अदालत ने इसराइल को सैनिक कार्रवाई में सावधानी बरतने के साथ एक महीने के भीतर अपने कदमों की जानकारी देने को भी कहा है.

Wednesday, October 18, 2023

दोतरफा समझदारी से हो सकता है फलस्तीन समस्या का समाधान


आसार इस बात के हैं कि गत 7 अक्तूबर से गज़ा पट्टी में शुरू हुई लड़ाई का दूसरा मोर्चा लेबनॉन में भी खुल सकता है. इसराइली सेना और हिज़्बुल्ला के बीच झड़पें चल भी रही हैं. लड़ाई थम भी जाए, पर समस्या बनी रहेगी. पिछली एक सदी या उससे कुछ ज्यादा समय से फ़लस्तीन की समस्या इतिहास की सबसे जटिल समस्याओं में से एक के रूप में उभर कर आई है.

ज़रूरत इस बात की है कि दुनिया इसके स्थायी समाधान के बारे में विचार करे. पहले राष्ट्र संघ, फिर संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के हस्तक्षेपों के बावजूद समस्या सुलझी नहीं है. जब भी समाधान का रास्ता दिखाई पड़ता है, कहीं न कहीं से व्यवधान पैदा हो जाता है.

समाधान क्या है?

अमेरिकी-पहल पर अरब देशों और इसराइल के बीच जिस समझौते की बातें इन दिनों हो रही हैं, क्या उसमें फलस्तीन के समाधान की भी कोई व्यवस्था है? ऐसा संभव नहीं है कि फलस्तीन की अनदेखी करके ऐसा कोई समझौता हो जाए. फिलहाल समझौते की कोशिश को धक्का लगा है, फिर भी सवाल है कि फलस्तीन की समस्या का समाधान क्या संभव है? संभव है, तो उस समाधान की दिशा क्या होगी?

दो तरह के समाधान संभव हैं. एक, गज़ा, इसराइल और पश्चिमी किनारे को मिलाकर एक ऐसा देश (वन स्टेट सॉल्यूशन) बने जिसमें फलस्तीनी और यहूदी दोनों मिलकर रहें और दोनों की मिली-जुली सरकार हो. सिद्धांततः यह आदर्श स्थिति है, पर इस समाधान के साथ दर्जनों किंतु-परंतु हैं. किसका शासन होगा, क्या अलग-अलग स्वायत्त इलाके होंगे, यरुसलम का क्या होगा वगैरह.

Friday, October 13, 2023

इसराइल ने 11 लाख लोगों को गज़ा छोड़ने का आदेश दिया


ऐसा लगता है कि इसराइली सेना गज़ा पट्टी में प्रवेश करने वाली है, पर बड़े स्तर पर नरसंहार को रोकने के लिए उसने उत्तरी गज़ा में रहने वाले करीब 11 लाख लोगों को 24 घंटे के भीतर वहाँ से हटने का आदेश जारी किया है। चूंकि संयुक्त राष्ट्र ने नरसंहार का संदेह व्यक्त किया था, संभवतः इसलिए इसराइली सेना ने यह आदेश संयुक्त राष्ट्र संघ को दिया है। इस आदेश का पालन किस तरह संभव होगा, यह देखना है। इस बीच सीरिया से खबर आई है कि गुरुवार को इसराइल ने दमिश्क और उत्तरी शहर अलेप्पो के हवाई अड्डों पर मिसाइलों से हमले किए हैं। ये हमले क्यों किए हैं और वहाँ कितनी नुकसान हुआ है, इसकी ज्यादा जानकारी प्राप्त नहीं है।

बीबीसी के अनुसार संयुक्त राष्ट्र ने इसराइल को उस आदेश को वापस लेने को कहा है, जिसमें उसने 11 लाख लोगों को उत्तरी से दक्षिणी गज़ा जाने के लिए कहा है। यूएन का कहना है कि अगर ऐसा कोई आदेश दिया गया है तो इसे तुरंत रद्द करना चाहिए। अगर ऐसा नहीं होता तो त्रासदी के हालात और भी भयावह हो जाएंगे।

दरअसल इसराइली सेना के प्रतिनिधियों ने गज़ा पट्टी में यूएन का नेतृत्व कर रहे लोगों को इस आदेश की जानकारी दी थी। लेकिन इसराइल के दूतों ने कहा है कि गज़ा पट्टी खाली करने के आदेश पर यूएन की प्रतिक्रिया 'शर्मनाक' है।  संयुक्त राष्ट्र में इसराइल के दूत ने कहा कि इसराइल गज़ा के लोगों को पहले से सावधान कर रहा था ताकि हमास से युद्ध के दौरान उन लोगों को कम से कम नुकसान पहुंचे, जो बेकसूर हैं।

इसराइल के राजदूत ने कहा, ''पिछले कई साल से संयुक्त राष्ट्र हमास को और अधिक हथियारों से लैस करने की कोशिशों से आंखें मूंदे रहा है। उसने हमास की ओर से और आम नागरिकों और गज़ा पट्टी पर होने वाले हमलों पर भी ध्यान नहीं दिया। लेकिन अब वो इसराइल के साथ खड़ा होने के बजाय उसे नसीहत दे रहा है।''

 

इसराइली सेना ने संयुक्त राष्ट्र से कहा है कि गज़ा में रहने वाले 11 लाख लोग अगले 24 घंटों में दक्षिणी गज़ा चले जाएं। संयुक्त राष्ट्र के प्रवक्ता ने बताया कि 11 लाख लोगों की ये आबादी गज़ा पट्टी की आबादी की लगभग आधी है। इसराइली हमले से सबसे ज़्यादा प्रभावित घनी आबादी वाला गज़ा शहर है। इसराइली सेना ने गज़ा और यरुसलम के समय के मुताबिक़ ये चेतावनी आधी रात से पहले दी।

हालांकि संयुक्त राष्ट्र ने एक बयान में कहा है कि उसका मानना है कि इतने लोगों का दक्षिणी गज़ा की ओर जाना इतना आसान नहीं होगा। इसमें लोग हमले के शिकार हो सकते हैं। सेनाधिकारियों ने बयान में कहा है, “गज़ा शहर में आप तब ही वापस लौटकर आएंगे जब दोबारा घोषणा की जाएगी।”

आईडीएफ़ ने कहा है कि हमास चरमपंथी शहर के नीचे सुरंगों और आम लोगों के बीच इमारतों के अंदर हैं। आम लोगों से अपील है कि वो शहर खाली करके ‘अपनी और अपने परिवार की सुरक्षा के लिए चले जाएं और ख़ुद को हमास के आतंकियों से दूर रखें ताकि वो उन्हें मानव ढाल न बना सकें।’ इसमें कहा गया है, “आने वाले दिनों में आईडीएफ़ गज़ा शहर में अपने महत्वपूर्ण ऑपरेशन चलाएगी और पूरी कोशिश करेगी कि आम लोगों को नुक़सान न पहुंचे।”

इसराइल ने ये घोषणा तब की है जब अनुमान है कि उसकी सेना गज़ा में ज़मीनी हमला शुरू कर सकती है क्योंकि उसके हज़ारों सैनिक सीमा पर इकट्ठे हो रहे हैं। वहीं, संयुक्त राष्ट्र ने मज़बूत अपील करते हुए इस फ़ैसले को रद्द करने की अपील की है और कहा है कि इलाक़े को खाली कराने से ‘नुकसानदेह स्थिति’ पैदा हो सकती है।

भारतीय-नीति में बदलाव नहीं

गत 7 अक्तूबर को इसराइल पर हमास के हमले के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ट्वीट से ऐसा लगा कि भारत की फलस्तीन नीति में बदलाव आ गया है। प्रधानमंत्री ने हमास के हमले को आतंकी कार्रवाई बताया था और यह भी कहा था कि हम इसराइल के साथ खड़े हैं। इसमें नई बात इतनी थी कि उन्होंने हमास की कार्रवाई को आतंकी कार्रवाई बताया, पर उन्होंने फलस्तीन को लेकर देश की नीति में किसी प्रकार के बदलाव का संकेत नहीं किया था।

इस ट्वीट के पाँच दिन बाद विदेश मंत्रालय की साप्ताहिक ब्रीफिंग में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा है कि फलस्तीन के बारे में भारत की जो नीति रही है, उसमें कोई बदलाव नहीं है। उन्होंने कहा, अंतरराष्ट्रीय मानवीय-कानूनों के तहत एक सार्वभौमिक-दायित्व है और आतंकवाद के किसी भी तौर-तरीके और स्वरूप से लड़ने की एक वैश्विक-जिम्मेदारी भी है।

Tuesday, October 10, 2023

फलस्तीन में हिंसा पर बदलता भारतीय-दृष्टिकोण


हमास के हमले को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बयान सोशल मीडिया पर जारी किया है, जिसमें कहा गया है कि इसराइल में आतंकवादी हमलों की खबर से गहरा धक्का लगा है. हमारी संवेदनाएं और प्रार्थनाएं निर्दोष पीड़ितों और उनके परिवारों के साथ हैं. हम इस कठिन समय में इसराइल के साथ एकजुटता से खड़े हैं. इस वक्तव्य के जवाब में भारत में इसराइल के राजदूत नाओर गिलोन ने भारत को धन्यवाद कहा है.

भारत की तुरत-प्रतिक्रिया और इसराइली जवाब दोनों बातों का प्रतीकात्मक महत्व है. आमतौर पर ऐसे मसलों पर भारत फौरन अपनी राय व्यक्त नहीं करता है. प्रधानमंत्री ने संभवतः यह बयान वक्त की नज़ाकत को देखते हुए जारी किया है. उनके बयान की दो बातें ध्यान खींचती हैं. एक आतंकवादी हमला और दूसरे इसराइल के साथ एकजुटता. इन दोनों बातों के राजनीतिक निहितार्थ हैं और इनसे बदलता भारतीय दृष्टिकोण भी व्यक्त होता है.

Thursday, June 3, 2021

क्या भारत की फलस्तीन-नीति में बड़ा बदलाव आ रहा है?


हाल में इसराइल और हमस के बीच हुए टकराव के दौरान भारत की विदेश-नीति में जो बदलाव दिखाई पड़ा है, उसकी ओर पर्यवेक्षक इशारा कर रहे हैं। संरा सुरक्षा परिषद में भारत ने जो कहा, वह महासभा की बहस में बदल गया। इसके बाद मानवाधिकार परिषद की बैठक में भारत ने उस प्रस्ताव पर मतदान में हिस्सा नहीं लिया, जिसमें गज़ा में इसराइली कार्रवाई की जाँच की माँग की गई है। भारत की इस अनुपस्थिति पर फलस्तीन के विदेशमंत्री डॉ रियाद मल्की ने कड़े शब्दों में आलोचना की है।

इस आलोचना के जवाब में भारत के विदेश मंत्रालय ने गुरुवार को कहा कि भारत की नीति इस मामले में स्पष्ट रही है। इसके पहले भी हम मतदान से अनुपस्थित होते रहे हैं। जहाँ तक फलस्तीन के विदेशमंत्री के पत्र का सवाल है, उन्होंने यह पत्र उन सभी देशों को भेजा है, जो मतदान से अनुपस्थित रहे। 

उधर इसराइल में प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू के विरोधियों के बीच गठबंधन सरकार बनाने को लेकर सहमति बन गई है जिसके बाद नेतन्याहू की विदाई का रास्ता साफ़ हो गया है। नेतन्याहू इसराइल में सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहने वाले नेता हैं और पिछले 12 साल से देश की राजनीति उनके ही इर्द-गिर्द घूमती रही है। मार्च में हुए चुनाव में नेतन्याहू की लिकुड पार्टी को बहुमत नहीं मिला था। उन्हें बुधवार 2 जून की मध्यरात्रि तक बहुमत साबित करना था और समय-सीमा समाप्त होने के कुछ ही देर पहले विपक्षी नेता येर लेपिड ने घोषणा की कि आठ दलों के बीच गठबंधन हो गया है और अब वे सरकार बनाएँगे। बहरहाल इस घटनाक्रम से इसराइल-फलस्तीन मसले पर कोई बड़ा फर्क पड़ने वाला नहीं है।

Friday, May 21, 2021

हमस समर्थकों ने जश्न मनाया

 


पश्चिम एशिया में संघर्ष-विराम लागू होने के बाद दुनिया में जो प्रतिक्रियाएं हुई हैं, उन्होंने ध्यान खींचा है। एक तरफ गज़ा और पश्चिमी किनारे पर रहने वाले हमस समर्थकों ने युद्धविराम को अपनी जीत बताया है, वहीं इसराइली प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू पर उनके देश के दक्षिणपंथी सांसदों ने उनकी आलोचना की है। संघर्ष-विराम होते ही बड़ी संख्या में फ़लस्तीनी लोग गज़ा में सड़कों पर आकर  जश्न मनाने लगे। हमस ने चेतावनी दी है, "हमारे हाथ ट्रिगर से हटे नहीं हैं।" यानी कि हमला हुआ, तो वे जवाब देने को तैयार है।

यह प्रतिक्रिया अस्वाभाविक नहीं है, क्योंकि पिछले कुछ समय से हमस समर्थकों की प्रतिक्रिया उग्र रही है। हालांकि उनके इलाके में भारी तबाही हुई है, पर वे अपने समर्थकों का विश्वास जीतने के लिए अपनी जीत का दावा कर रहे हैं। दूसरी तरफ वे दुनिया की हमदर्दी भी हासिल करना चाहते हैं। बहरहाल उधर  टाइम्स ऑफ इसराइल अख़बार के अनुसार युद्धविराम को लेकर दक्षिणपंथी सांसद और नेतन्याहू के कुछ राजनीतिक सहयोगी भी नाराज हैं।

कुरैशी साहब बोले

इस बीच पाकिस्तान के बड़बोले विदेशमंत्री शाह महमूद कुरैशी सीएनएन के एक इंटरव्यू में इसराइल को लेकर एंकर बियाना गोलोद्रिगा के साथ उलझ गए। इस इंटरव्यू में कुरैशी साहब ने अपने पाकिस्तानी अंदाज में कहा कि इसराइल के पास डीप पॉकेट है। इसपर एंकर बियाना ने उनसे पूछा, इसका मतलब क्या हुआ? इसपर कुरैशी ने कहा, मीडिया को इसराइल कंट्रोल करता है। वे बहुत प्रभावशाली लोग हैं। बावजूद इसके वह मीडिया-वॉर में हार रहा है। टाइड इज़ टर्निंग यानी ज्वार उतर रहा है।

आखिरकार लड़ाई रुकी

 

युद्ध-विराम की घोषणा करते हुए जो बाइडेन

इसराइल और फ़लस्तीनी चरमपंथी हमस के बीच संघर्ष-विराम हो गया। दोनों पक्षों ने 11 दिन की लड़ाई के बाद आपसी सहमति से यह फ़ैसला किया। बताया जाता है कि इस संघर्ष-विराम के पीछे अमेरिका की भूमिका है, जिसने इसराइल पर युद्ध रोकने के लिए दबाव बनाया था। इसराइल की रक्षा-कैबिनेट ने गुरुवार 20 मई की रात 11 बजे हमले रोकने का फैसला किया, जिसके तीन घंटे बाद रात दो बजे युद्ध-विराम लागू हो गया। हमस के एक अधिकारी ने भी पुष्टि की कि यह संघर्ष-विराम आपसी रज़ामंदी से और एक साथ हुआ है, जो शुक्रवार तड़के स्थानीय समय के अनुसार दो बजे से लागू हो गया।

10 मई से शुरू हुई रॉकेट-वर्षा और जवाबी बमबारी में 240 से ज़्यादा लोग मारे गए जिनमें 12 इसराइली हैं और शेष ज़्यादातर मौतें गज़ा में हुईं। 7 मई को अल-अक़्सा मस्जिद के पास यहूदियों और अरबों में झड़प हुई। इसके बाद इस इलाके में प्रदर्शन हुए और इसराइली पुलिस ने अल अक़्सा मस्जिद में प्रवेश किया। इसके दो दिन बाद हमस ने इसराइल पर रॉकेट-वर्षा की जिसका जवाब इसराइली वायुसेना के हमले से हुआ।

गज़ा में कम-से-कम 232 लोगों की जान जा चुकी है। गज़ा पर नियंत्रण करने वाले हमस के स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार मारे गए लोगों में लगभग 100 औरतें और बच्चे हैं। इसराइल का कहना है कि गज़ा में मारे गए लोगों में कम-से-कम 150 चरमपंथी हैं। हमस ने अपने लोगों की मौत के बारे में कोई आँकड़ा नहीं दिया है।

Wednesday, May 19, 2021

पश्चिम एशिया में भारत किसके साथ है?

हिन्दू में वासिनी वर्धन का कार्टून

गज़ा पट्टी में चल रहे टकराव को रोकने के लिए संरा सुरक्षा परिषद की खुली बैठक में की जा रही कोशिशें अभी तक सफल नहीं हो पाई हैं, क्योंकि ऐसा कोई प्रस्ताव अभी तक सामने नहीं आया है, जिसपर आम-सहमति हो। नवीनतम समाचार यह है कि फ्रांस ने संघर्ष-विराम का एक प्रस्ताव आगे बढ़ाया है, जिसकी शब्दावली पर अमेरिका की राय अलग है। हालांकि राष्ट्रपति जो बाइडेन ने औपचारिक रूप से जो बयान जारी किया है, उसमें दोनों पक्षों से संघर्ष-विराम की अपील की है, पर अमेरिका का सुझाव है कि इसपर सुरक्षा परिषद की खुली बैठक के बजाय बैकरूम बात की जाए। एक तरह से उसने सुप को बयान जारी करने से रोका है।

अब फ्रांस ने कहा है कि हम अब बयान नहीं एक प्रस्ताव लाएंगे, जो कानूनन लागू होगा। इसपर सदस्य मतदान भी करेंगे। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने यह बात मिस्र और जॉर्डन के राष्ट्राध्यक्षों से बात करने के बाद कही है। अनुमान है कि इस प्रस्ताव में केवल संघर्ष-विराम की पेशकश ही नहीं है, बल्कि गज़ा में हालात का अध्ययन करने और मानवीय-सहायता पहुँचाने की पेशकश भी है। सम्भवतः अमेरिका को इसपर आपत्ति है। देखना होगा कि ऐसी स्थिति आई, तो अमेरिका उसे वीटो करेगा या नहीं।  

भारत किसके साथ?

उधर इस संघर्ष के दौरान भारत में बहस है कि हम संयुक्त राष्ट्र में किसका साथ दे रहे हैं, इसराइल का या फलस्तीनियों का? भारतीय प्रतिनिधि टीएस त्रिमूर्ति ने रविवार को सुरक्षा परिषद में जो बयान दिया था, उसे ठीक से पढ़ें, तो वह फलस्तीनियों के पक्ष में है, जिससे इसराइल को दिक्कत होगी। साथ ही भारत ने हमस के रॉकेट हमले की भी भर्त्सना की है।