म्यांमार की फौज ने लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार का तख्ता-पलट करके दुनियाभर का ध्यान अपनी तरफ खींचा है। सत्ता सेनाध्यक्ष मिन आंग लाइंग के हाथों में है और देश की सर्वोच्च नेता आंग सान सू ची तथा राष्ट्रपति विन म्यिंट समेत अनेक राजनेता नेता हिरासत में हैं। सत्ताधारी नेशनल लीग फ़ॉर डेमोक्रेसी (एनएलडी) के ज्यादातर नेता गिरफ्तार कर लिए गए हैं या घरों में नजरबंद हैं। दूसरी तरफ सिविल नाफरमानी जैसे आंदोलन की आहट सुनाई पड़ने लगी है।
एक साल का
आपातकाल घोषित करने के बाद सेना ने कहा है कि साल भर सत्ता हमारे पास रहेगी। फिर चुनाव कराएंगे। विदेश-नीति
से जुड़े अमेरिकी थिंकटैंक कौंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस की वैबसाइट पर जोशुआ कर्लांज़िक ने लिखा है कि सेना एक साल की बात कह तो रही
है, पर अतीत का अनुभव है कि यह अवधि कई साल तक खिंच सकती है। सेना ने अपने लिखे
संविधान में लोकतांत्रिक सरकार का तख्ता-पलट करके सैनिक शासन लागू करने की व्यवस्था
कर रखी है।
सेना का अंदेशा
शायद सेना को डर था कि आंग सान सू ची के नेतृत्व में एनएलडी इतनी ताकतवर हो जाएगी कि हमारी ताकत को सांविधानिक तरीके से खत्म कर देगी। विडंबना है कि सू ची ने भी शक्तिशाली नेता होने के बावजूद सेना को हाशिए पर लाने और लोकतांत्रिक सुधारों को तार्किक परिणति तक पहुँचाने का काम नहीं किया। उन्होंने अपनी जगह तो मजबूत की, पर लोकतांत्रिक संस्थाओं का तिरस्कार किया। रोहिंग्या मुसलमानों पर अत्याचार करने वाली सेना की तरफदारी की।