दुनिया को धीरे-धीरे समझ में आ रहा है कि पाकिस्तान किसी देश का नाम नहीं, वह एक आंतकी अवधारणा है। उसका प्रधानमंत्री संरा महासभा में ‘खून की नदियाँ’ बहाने और एटम बम चलाने की धमकी दे सकता है। हाल के वर्षों में उसने तुर्की और चीन जैसे दो ऐसे देशों को अपना संरक्षक बनाया है, जो खुद अपनी हिंसक और अराजक गतिविधियों के कारण वैश्विक आलोचना के पात्र बन रहे हैं।
गत 21 से 23
अक्तूबर तक पेरिस में हुई फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) की वर्च्युअल
बैठक में फैसला हुआ कि आतंकी गतिविधियों पर नियंत्रण के लिए पाकिस्तान को जो काम
निर्धारित समय में पूरा करने के लिए कहा गया था, वे पूरे नहीं हो पाए हैं, इसलिए
उसे ‘ग्रे लिस्ट’ में ही रखा जाएगा। पाकिस्तान को अब सुधरने के लिए फरवरी 2021 तक
का समय और दिया गया है।
राष्ट्रीय रणनीति!
अराजकता और आतंक जिस देश की घोषित रणनीति है, उसके सुधरने की क्या उम्मीद की जाए? पाकिस्तान कैसे सुधरेगा? हम जिन्हें आतंकवादी कहते हैं, उन्हें वह राष्ट्रनायक कहता है। अलबत्ता अपनी गतिविधियों के कारण वह चारों तरफ से घिरने लगा है। एफएटीएफ की कार्रवाई के अलावा इसके कुछ और उदाहरण भी सामने हैं।
जम्मू कश्मीर पर
पाक हमले की 73 वीं वर्षगांठ पर यूरोपीय संघ के सदस्यों ने ईयू और फ्रांस से आग्रह
किया है कि पाकिस्तान के खिलाफ सख्त कदम उठाए जाएं। यूरोपियन सांसदों कहना है कि
पाकिस्तान ने अपनी स्थापना के साथ ही आतंकवाद को पनाह देने की नीति को अपना रखा है। अब
उसपर कड़े प्रतिबंध लगने चाहिए। यूरोपियन यूनियन के सांसद रिसजार्ड जारनेकी, फुलवियो मार्सिलो और गियाना गार्सिया ने पत्र
लिखकर कहा है कि दुनिया अब निरीह लोगों ही हत्याओं को बर्दाश्त नहीं कर सकती। ये
हरकतें पाकिस्तान की जमीन से हो रही हैं।
यह पत्र फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों, यूरोपीय परिषद के
अध्यक्ष चार्ल्स मिशेल और यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डी लेयेन को भेजा
गया है। ईयू के इन सदस्यों ने अपने पत्र
में यह भी लिखा है कि हमें नहीं भूलना चाहिए कि 11 सितंबर, 2001 को न्यूयॉर्क पर
हुए हमले का उत्सव पाकिस्तान में मनाया गया था। उस हमले के मास्टरमाइंड ओसामा बिन
लादेन को आखिरकार पाकिस्तान में ही शरण मिली थी। इस साल 25 मई को इमरान खान ने
पाकिस्तान की राष्ट्रीय असेम्बली में ओसामा बिन लादेन को ‘शहीद’ घोषित किया।
इससे पहले 7 जनवरी 2015 को पेरिस
में शार्ली एब्दो के दफ्तर पर हुए हमले में 12 लोगों की हत्या हुई थी। उस
हत्याकांड पर भी पाकिस्तान में उत्सव मनाया गया था। उसी क्रम में हाल में 25
सितंबर को एक प्रवासी पाकिस्तानी ने एक फ्रांसीसी अध्यापक का गला काट दिया। बजाय पश्चाताप के पाकिस्तान सरकार
इस मसले पर फ्रांस को धमकियाँ दे रही है।
नरसंहारों का साजिशकार
पत्र में लिखा गया है कि 1947 में पाकिस्तानी सेना ने हमले की रूपरेखा तैयार
की थी। इस हमले पर कबायली आवरण इसलिए चढ़ाया गया था ताकि दुनिया पाकिस्तान सरकार
के क्रूर चेहरे को देख न पाए। उस हमले के दौरान 35,000 कश्मीरी
मुस्लिम,
हिंदू और सिख नागरिकों का नरसंहार किया गया और हजारों महिलाएं और बच्चों का
बलात्कार किया गया और मार डाला गया।
इसी पत्र में पाकिस्तान द्वारा पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में किए गए
नरसंहार का भी उल्लेख किया गया। पाकिस्तानी सेना ने बांग्लादेश में 300,000 से 30,00,000
के बीच लोगों की हत्या की थी और 2,00,000 से 4,00,000 महिलाओं का बलात्कार किया था।
पत्र में कहा गया कि बांग्लादेश अभी भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त
नरसंहार के लिए इंसाफ का इंतजार कर रहा है।
हाल में यूरोपियन फाउंडेशन फॉर
साउथ एशियन स्टडीज ने अपनी एक टिप्पणी में
22 अक्तूबर को जम्मू कश्मीर के इतिहास का सबसे काला दिन बताया था। पिछले साल अगस्त
में भारत में अनुच्छेद 370 की वापसी के बाद 18 सितंबर को यूरोपियन संसद की बैठक
में कश्मीर की स्थिति पर जब विचार हो रहा था, तब पोलैंड के प्रतिनिधि ज़ार्नेकी ने
कहा कि भारत दुनिया का महानतम लोकतांत्रिक देश हैं। ऐसे देश की शांति को आतंकवादी
भंग कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि ये आतंकवादी चंद्रमा से नहीं आते हैं, बल्कि
पड़ोसी देश पाकिस्तान से आते हैं। इटली के सदस्य मार्तुसिएलो ने कहा कि पाकिस्तान
ने एटम बम की धमकी दी है, जो हमारी चिंता का विषय है। पाकिस्तानी आतंकवादी यूरोप
पर हमलों की साजिशें भी करते रहते हैं।
एक तरफ दुनिया भर में पाकिस्तानी
आतंकवाद की खबरें हैं, दूसरी तरफ यह देश खुद को आतंकवाद से पीड़ित देश घोषित करना
चाहता है। पाकिस्तान के बलोच, पश्तून और सिंध नागरिक अत्याचारों से पीड़ित हैं।
इनके अलावा हिंदू, अहमदिया और शिया अल्पसंख्यकों पर अत्याचारों की खबरें भी आए दिन
मिलती रहती हैं।
आतंकी फंडिंग के उस्ताद
जर्मनी के मनी लाउंडरिंग
विशेषज्ञ ग्राहम बैरो का कहना है कि पाकिस्तान अब ज्यादा समय तक बच नहीं पाएगा।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई बार सिद्ध हो चुका है कि अल-कायदा, हिज़्बुल्ला और तालिबान जैसे संगठनों को पाकिस्तान
से लगातार फंडिंग की जा रही है। ड्रग माफियाओं को भी धन भिजवाया जाता है। इसका
खुलासा फिनसेन मामले से हुआ है।
इंटरनेशनल
कंसोर्शियम फॉर इनवेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स (आईसीआईजे) द्वारा उपलब्ध कराए गए डेटा
के अनुसार सन 2011-12 के दौरान पाकिस्तान के छह बैंकों से हुए 29 विवादास्पद
अंतरणों के माध्यम से 25 लाख अमेरिकी डॉलर का रकम इधर से उधर हुई थी। अमेरिका
सरकार ने वित्तीय अपराधों के नेटवर्क (फिनसेन) की जो पड़ताल की है, उसमें यह
जानकारी सामने आई है। इन पड़तालों से यह भी पता चला कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काले
धन का नेटवर्क चलाने वाला पाकिस्तान का अल्ताफ खनानी ड्रग माफियाओं और आतंकियों को
हर साल अरबों डॉलर की रकम मुहैया कराता है। वैश्विक आतंकवादी फंडिंग पर नजर रखने
वाला एफएटीएफ इस मामले को भी देख रहा है।
अल्ताफ खनानी और
पाकिस्तान में बैठे उसके राजनीतिक संरक्षकों का नाम एफएटीएफ की जानकारी में सन 2008
में ही आ गया था, उसके बाद 2012 में पाकिस्तान को पहली बार ‘ग्रे लिस्ट’ में डाला
गया था। माना जाता है कि इस शख्स ने पाकिस्तानी बैंकिंग प्रणाली के मार्फत करीब 12
अरब डॉलर की धनराशि इधर से उधर की है।
सन 2015 में एक
अमेरिकी अदालत ने उसे पाँच साल की कैद की सजा दी थी। वह हाल में रिहा हुआ है। अब
वह कहाँ है किसी को पता नहीं। पर यह बात छिपी नहीं है कि दुनियाभर में भूमिगत होने
वाले अपराधी पाकिस्तान में नमूदार होते हैं। ओसामा बिन लादेन को सुरक्षित रहने के
लिए पाकिस्तान ही मिला था। सन 2009 में तालिबान सरगना बैतुल्लाह मसूद अमेरिकी
ड्रोन हमले में पाकिस्तान में ही मारा गया था। इस साल फरवरी में एफएटीएफ की बैठक
के ठीक पहले पाकिस्तान से दो खूंखार आतंकवादी एहसानुल्ला एहसान और मौलाना मसूद अज़हर
'लापता' हो गए। ये दोनों सेना की हिरासत में थे।
दुनिया की नजरों
में धूल झोंकने में पाकिस्तान को महारत हासिल है। पिछले साल उसके विदेश मंत्री शाह
महमूद कुरैशी ने कहा था कि मसूद अज़हर इतना बीमार है कि घर से बाहर भी नहीं निकल
सकता। एहसानुल्ला का इस्तेमाल वहां की सेना भारत-विरोधी प्रचार में करती रही है।
एकबार उससे कहलवाया गया कि मैं भारत की खुफिया एजेंसियों के लिए काम करता हूँ। पाकिस्तानी
सेना के सुरक्षित घेरे से वह कैसे गायब हो गया, इस सवाल की जवाब किसी के पास नहीं
है।
‘कश्मीर का काला
दिन’
कश्मीर पर
पाकिस्तानी हमले के 73 साल बाद हमने इस साल 22 अक्तूबर को ‘कश्मीर का काला दिन’
मनाया। इस काले दिन का केवल प्रतीकात्मक महत्व ही नहीं है। इसके तीन संदेश हैं।
पहला संदेश दुनिया के नाम है कि हिंसा, मारकाट और अराजकता के जोर पर सांप्रदायिक
जुनून को कितना बर्दाश्त किया जाए? दूसरा संदेश पाकिस्तान
के नाम है। जिस देश ने अस्तित्व में आते ही खूंरेज़ी को राष्ट्रीय रणनीति बना
लिया, उससे निपटने की रणनीति अब हमें भी बनानी होगी। तीसरा संदेश भारत के लोगों के
नाम है। जब हम भारत को परिभाषित करते हैं, तब ‘कश्मीर से कन्याकुमारी’ का नाम लेते हैं। कश्मीर हमारे राष्ट्रीय संकल्प का
महत्वपूर्ण हिस्सा है।
22 अक्तूबर 1947
को पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर पर हमला बोला था। पाकिस्तानी लुटेरों ने भारी लूटमार
मचाई थी, जिसमें हजारों लोग मारे
गए थे। बारामूला के समृद्ध शहर को कबायलियों, रज़ाकारों ने कई दिन तक घेरकर रखा था। इस हमले के बाद
कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने 26 अक्तूबर 1947 को भारत के साथ विलय पत्र पर
हस्ताक्षर किए थे। तभी भारत ने अपने सेना कश्मीर भेजी थी। जम्मू-कश्मीर के भारत
में विलय की वैध संधि की अनदेखी दुनिया नहीं कर सकती।
भारत के प्रति
द्वेष और द्रोह की आग में जलता पाकिस्तान कश्मीर में बड़ी फौजी कार्रवाई की हिम्मत
भले ही न करे,
पर अपने
छाया-युद्ध को जरूर संचालित करता रहेगा। दूसरी तरफ वह कश्मीर मामले के
अंतरराष्ट्रीयकरण पर पूरी ताकत से जुट गया है। हाल में सुरक्षा परिषद में भारतीय
प्रतिनिधि टीएस तिरुमूर्ति ने कहा कि कश्मीर के ‘आउटडेटेड एजेंडा’ को परिषद की सूची से
हटा देना चाहिए। पाकिस्तान के इस कश्मीर राग को हमेशा के लिए खत्म होना चाहिए। अब
हमें पाक अधिकृत कश्मीर और गिलगित-बल्तिस्तान की आजादी के लिए प्रयास करना चाहिए।
सच यह है कि सन
1947-48 में संयुक्त राष्ट्र पूरी तरह ब्रिटिश-अमेरिकी प्रभाव में था। ब्रिटिश
सरकार ने उस समय पाकिस्तान का साथ दिया। इसके राजनीतिक निहितार्थ पर भी कभी चर्चा
होनी चाहिए। पर यह तो साफ है कि संरा प्रस्ताव इसलिए लागू नहीं हुआ, क्योंकि पाकिस्तान को पहले कदम के रूप में
अपनी सेना और कबायलियों को कश्मीर से हटाना था। प्रस्ताव को लागू होने से
पाकिस्तान ने ही रोका था।
पिछले साल
संयुक्त राष्ट्र महासभा में जब इमरान खान ने भारत और कश्मीर के बारे में अनाप-शनाप
बोला, तब भारत के विदेश मंत्रालय की प्रथम सचिव विदिशा मित्रा ने ‘उत्तर देने के
अधिकार’ का इस्तेमाल करते हुए पूछा था कि क्या पाकिस्तान इस बात को नहीं मानेगा कि
वह दुनिया का अकेला ऐसा देश है, जो संयुक्त
राष्ट्र द्वारा घोषित आतंकवादी को पेंशन देता है? यह इशारा लश्करे तैयबा के सरगना हाफिज सईद के संदर्भ में
था। उन्होंने यह भी पूछा कि क्या इमरान खान न्यूयॉर्क शहर से नहीं कहेंगे कि उन्होंने
ओसामा बिन लादेन का खुलकर समर्थन किया है?
इमरान खान ने पिछले
साल अमेरिकी इंस्टीट्यूट ऑफ पीस में कहा था कि सन 2011 में जब अमेरिकी सेना ने
पाकिस्तान में घुसकर ओसामा बिन लादेन को मारा था, तो उन्होंने अपमानित महसूस किया था। विदिशा मित्रा ने यह भी
कहा कि इमरान क्या इस बात की पुष्टि करेंगे कि संरा द्वारा घोषित 130 आतंकवादी और
25 आतंकवादी संगठनों का डेरा पाकिस्तान में है?
पाकिस्तानी
व्यवस्था में कई प्रकार के झोल हैं। इस साल पाकिस्तान
सरकार ने एफएटीएफ की बैठक के ठीक पहले अपनी संसद में एक नया वित्तीय अपराध विधेयक
पेश किया था। इस विधेयक का उद्देश्य एफएटीएफ के सामने जाकर यह दावा करना था कि हम
तो आतंकी फंडिंग के खिलाफ कड़े कानून बना रहे हैं। हालांकि देश के विरोधी दलों ने
इस कानून को लेकर कई प्रकार के संशय व्यक्त किए थे, पर अंततः यह पास कर दिया गया,
क्योंकि सरकार ने जोर देकर कहा कि यह राष्ट्रीय हितों का मामला है। हम फँस जाएंगे।
कहना मुश्किल है
कि यह कानून पर्याप्त है या नहीं, जैसा की कभी पाकिस्तान की संघीय जाँच एजेंसी के
एक अधिकारी ने कहा था कि देश के इस कानून में इतने छिद्र हैं कि लगता है कि इसे
किसी ‘मनी लाउंडरर’ ने तैयार किया है। माना जाता है कि पाकिस्तान
में एक ‘डीप स्टेट’ है, जो राज-व्यवस्था के सिर पर बैठकर राज करता
है। पारदर्शी लोकतंत्र की स्थापना से इसे डर लगता है।
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