Friday, April 29, 2011

संतुलित-संज़ीदा सामाजिक विमर्श का इंतज़ार



करीब 231 साल पहले जनवरी 1780 में जब जेम्स ऑगस्टस हिकी ने देश का पहला अखबार बंगाल गजट निकाला था तब उसकी दिलचस्पी ईस्ट इंडिया कम्पनी के अफसरों की निजी जिन्दगी का भांडा फोड़ने में थी। वह दिलजला था। उसे किसी ने तवज्ज़ो नहीं दी थी। वह देश का पहला मुद्रक था, पर कम्पनी ने उससे तमाम तरह के काम करवा कर पैसा ठीक से नहीं दिया। बहरहाल उसने गवर्नर जनरल वॉरेन हेस्टिंग्स और मुख्य न्यायाधीश तक के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। हिकी को कई बार जेल हुई और अंततः उसे वापस इंग्लैंड भेज दिया गया। आज उसे याद करने की दो वजहें हैं। एक, वह इस देश का पहला व्यक्ति था, जिसने भ्रष्टाचार को लेकर इस तरीके का मोर्चा खोला। हो सकता है मौर्य काल में या अकबर के ज़माने में या किसी और दौर में भी ऐसा काम किसी ने किया हो। पर हिकी के अखबार और उनमें प्रकाशित सामग्री आज भी पढ़ने के लिए उपलब्ध है। दूसरा काम हिकी ने पाठकों के पत्र प्रकाशित करके किया। इस लड़ाई में उसने अपने को अकेला नहीं रखा। पाठकों को भी जोड़ा। इन पत्रों में कम्पनी अफसरों के खिलाफ बातें कहने से ज्यादा कोलकाता की गंदगी और नागरिक असुविधाओं का जिक्र होता था। हिकी ने सार्वजनिक बहस का रास्ता भी खोला।

Thursday, April 28, 2011

वह कौन पत्रकार है?

हिन्दू में छपी जे बालाजी की रपट के अनसार लोकसभा की पब्लिक अकाउंट्स कमेटी के सामने पेश हुए एक पत्रकार ने स्वीकार किया कि दो हुआ वह पत्रकारीय कर्म की भावना के खिलाफ हुआ। टैप की गई बातचीत से स्पष्ट है कि मर्यादा की लक्ष्मण रेखा का उल्लंघन हुआ है।  रपट का एक अश यहाँ प्रस्तुत हैः-


Tuesday, April 26, 2011

महाप्रभुओं की जेल यात्रा


खलील खां के फाख्ते उड़ाने का दौर लम्बा नहीं चलेगा
रुख से नकाबों के हटने की घड़ी
जैसे महाभारत की लड़ाई के दौरान एक से बढ़कर एक हथियार छोड़े जा रहे थे, उसी तरह आज आकाश में कई तरह के इंद्रजाल बन और बिगड़ रहे हैं। सीडब्लूजी मामलों को उठे अभी साल पूरा नहीं हुआ है कि कहानी में सैकड़ों नए पात्र जुड़ गए हैं। इस सोप ऑपेरा के पात्र टीवी सीरियलों से ज्यादा नाटकीय, धूर्त और पेचीदा हैं। राजनीति, प्रशासन, बिजनेस और मीडिया के जाने-अनजाने कलाकारों की इस नौटंकी में कुछ मुख हैं और बाकी मुखौटे। ऐसे में कुछ बड़ी कम्पनियों के अधिकारियों के जेल जाने की खबर सिर्फ एक रोज की सुर्खी बनकर रह गई। बड़ा मुश्किल है यह बताना कि ये मुख हैं या मुखौटे। पर यह आगाज़ है। तिहाड़ की जनसंख्या अभी और बढ़ेगी।

Saturday, April 23, 2011

सुनो समय क्या कहता है



अन्ना हजारे के आंदोलन के बाद अचानक विवादों की झड़ी लग गई है। एक के बाद एक मामले सामने आ रहे हैं। व्यक्ति को पहले बदनाम करने और फिर उसे किनारे लगाने की रणनीति काम करती है। यह स्वाभाविक है। व्यवस्था के साथ तमाम लोगों के हित जुड़े हैं। वे आसानी से हार नहीं मानते। फिर हम जिन्हें अच्छा मानकर चल रहे हैं, उनके बारे में भी पूरी जानकारी मिले तो गलत क्या है। पर हम एक बदलाव को नहीं पकड़ पा रहे हैं। कम्युनिकेशन के नए रास्तों ने एक नया माहौल बनाया है। परम्परागत राजनीति भी इसे ठीक से पढ़ नहीं पाई है। सिविल सोसायटी होती है या नहीं? होती है तो कितनी प्रभावशाली होती है? ऐसे सवालों के जवाबों से हमें नई वास्तविकताओं का पता लगेगा।

Monday, April 18, 2011

एक अन्ना क्या करेगा


देश के सारे रोगों का वन शॉट इलाज सम्भव नहीं फिर भी
जन-भागीदारी है अमृतधारा
आयुर्वेदिक औषधि अमृतधारा एक साथ कई तकलीफों का इलाज करती है। सिर दर्द, पेट-दर्द, कमर दर्द, सर्दी-जुकाम, खारिश-खुजली जैसी तमाम परेशानियों का हल यह एक औषधि है। वास्तव में आपतकाल में यह काम आती है। दवाओं के लिए हमारे पास एक परम्परागत रूपक है रामबाण का। रामबाण यानी दवा लगी और तकलीफ सिरे से गायब। हमारा समाज चमत्कारों में यकीन करता है। हमें लगता है कि आस्था हो तो संतों के हाथ फेरने मात्र से रोग गायब हो जाते हैं। शरीर के रोगों के साथ यह बात सच हो पर जीवन, समाज, राजनीति और राज-काज में भी हमें किसी अमृतधारा की खोज रहती है, जो सारे रोगों का वन शॉट सॉल्यूशन हो। सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के अध्यक्ष प्रताप भानु मेहता ने हाल में लिखा है कि देश की सारे रोगों का वन शॉट इलाज खोजना अपने आप में एक रोग है। हमें पहले समस्या के हर पहलू को समझना चाहिए। फिर यह देखना चाहिए कि हम चाहते क्या हैं। मर्ज क्या है, कहाँ है, लक्षण क्या हैं, रोग कहाँ है वगैरह।

Saturday, April 16, 2011

राजनीति और सुराज के द्वंद



अन्ना हजारे के समानांतर देश में दो और गतिविधियाँ चल रहीं हैं, जिनका हमारे लोकतंत्र से वास्ता है। एक है पाँच राज्यों में विधानसभा के चुनाव और दूसरे टू-जी, सीडब्ल्यूजी और आदर्श सोसायटी जैसे मामलों कर कानूनी कारवाई। देश में लोकतांत्रिक संसदीय व्यवस्था को लेकर कई कोणों से सवाल उठे हैं। अन्ना हजारे ने राजनैतिक प्रतिष्ठान पर हमला करके बर्र के छत्ते में हाथ डाल दिया है। अन्ना ने कहा कि लोग सौ के नोट, साड़ी और दारू की एक बोतल पर वोट देते हैं। मैं नहीं लड़ पाऊँगा चुनाव। इसपर दिग्विजय सिंह ने सवाल पूछा है कि क्या सारे वोटर बेईमान हैं? संयोग है कि विकीलीक्स के सौजन्य से इन्हीं दिनों संसदीय कैश फॉर वोट का मसला भी उठा है। तमिलनाडु के चुनाव में पार्टियों ने जनता को टीवी, मिक्सर-ग्राइंडर, वॉशिंग मशीन से लेकर मंगलसूत्र तक देने का वादा किया है। एक ओर  सिविल सोसायटी बनाम राजनीति का शोर है, दूसरी ओर सब भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारेपुराण का अखंड पाठ चल रहा है, हम सब चोर हैं के सम्पुट के साथ। देश का मस्त-मीडिया विश्व कप क्रिकेट, मोमबत्तियाँ सुलगाती सिविल सोसायटी और आईपीएल को एक साथ निपटा रहा है।

Friday, April 15, 2011

कांग्रेस और भगत सिंह


कांग्रेस संदेश के मुखपत्र कांग्रेस संदेश के मार्च अंक में भगत सिंह और राजगुरु की जातीय पृष्ठभूमि का उल्लेख किए जाने पर अनेक लोगों ने विरोध व्यक्त किया है। श्री गिरिजेश कुमार ने जो विचार व्यक्त किए हैं, यहाँ पेश हैं।

ये शहीदों का अपमान है

जिन्होंने अपना जीवन, अंग्रेजी साम्राज्य  से मुक्ति के लिए देश को समर्पित कर दिया उन्हें जाति जैसी संकीर्ण सोच की मानसिकता में बांधना कहाँ तक उचित है? वह भी उस राजनीतिक पार्टी के द्वारा जो राष्ट्रीय पटल पर देश का नेतृत्व कर रही है, या यों कहें कि जिसकी सरकार केन्द्र में है| भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु जैसे देश के महानायकों की जाति का उल्लेख कर कांग्रेस ने अपना असली चेहरा उजागर कर दिया है| हालाँकि देश में एक के बाद एक भ्रष्टाचार के तमाम मामले उजागर होने के बाद लोगों का विश्वास केन्द्र सरकार और कांग्रेस से पहले ही उठ चुका था लेकिन इस घृणित  कदम के बाद रही सही कसर भी समाप्त हो गयी|  सवाल है जब देश का नेतृत्व  करने वाली राजनीतिक पार्टी देश के लिए शहीद हुए शहीदों का अपमान करती है तो फिर आम आदमी से क्या अपेक्षा की जाए?

दरअसल कांग्रेस  यह भूल गयी कि जिस आजाद भारत की दुहाई देकर वह आज शासन सत्ता का सुख भोग रही है उसकी बुनियाद, भगत सिंह जैसे कई शहीदों के खून से लिखी गई है| ये लोग किसी जाति, धर्म या संप्रदाय से सम्बन्ध नहीं रखते थे, इनकी जाति मानवता थी और इंसानियत धर्म|  इन्होने कागज के चन्द टुकड़ों के लिए अपने ईमान को नहीं बेचा| लालच के समंदर में फँसकर निजीहित के लिए देशहित की बलि चढ़ाने वाली कांग्रेस पार्टी और उसके करता धर्ता को  भगत सिंह जैसे महानायकों पर जाति का ठप्पा लगाने  का अधिकार किसने दिया?

Monday, April 11, 2011

हमें भी मध्य-वर्गीय क्रांति चाहिए


शहरी नखलिस्तान नहीं, खुशहाल हिन्दुस्तान
अन्ना हजारे के आंदोलन को इतनी सफलता मिलेगी, इसकी कल्पना बहुत से लोगों ने नहीं की थी। इतिहास की विडंबना है कि कई बार पूर्वानुमान गलत साबित होते हैं। जयप्रकाश नारायण के 1974 के आंदोलन के डेढ़-दो साल पहले लखनऊ के अमीनाबाद में गंगा प्रसाद मेमोरियल हॉल में जेपी की एक सभा थी, जिसमें पचासेक लोग भी नहीं थे। और आंदोलन जब चरम पर था, तब लखनऊ विश्वविद्यालय के कला संकाय के बराबर वाले बड़े मैदान में हुई सभा में अपार भीड़ थी। जंतर-मंतर के पास हुई रैली के कुछ महीने पहले इसी तरह की रैली, इसी माँग को लेकर हुई थी। उसका नेतृत्व अन्ना हजारे नहीं कर रहे थे। उस रैली का सीधा प्रसारण मीडिया ने नहीं किया। केवल एक धार्मिक चैनल पर उसका प्रसारण हुआ। अन्ना हजारे और युवा वर्ग की जबर्दस्त भागीदारी से बात बदल गई। हालांकि मसला करीब-करीब वही था।

Sunday, April 10, 2011

विज्ञापनों में झलकता रंग-रंगीला देश



पिछले एक साल में टी-ट्वेंटी वर्ल्ड कप, विश्व कप फुटबॉल, कॉमनवैल्थ गेम्स और विश्व कप क्रिकेट की तुलना करें तो क्रिकेट सबसे भारी बैठेगा। कवरेज के लिहाज से, दर्शकों की संख्या और कमाई के लिहाज से भी। चूंकि टीम चैम्पियन हो गई है इसलिए इस विश्व कप से बनी लहरें दूर तक जाएंगी। सोने पे सुहागा आईपीएल करीब है। विश्व कप के फाइनल और सेमी फाइनल मैच मीडिया के लिहाज से तमाम बातों के लिए याद किए जाएंगे, पर सबसे खास बात थी, इन दोनों मैचों में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर लगी पाबंदी।


Friday, April 8, 2011

समस्या नहीं समाधान बनिए




अन्ना हजारे के अनशन ने अचानक सारे देश का ध्यान खींचा है। यही अनशन आज से दो साल पहले होता तो शायद इसे इतनी प्रसिद्धि न मिली होती। देश का राजनैतिक-सामाजिक माहौल एजेंडा तय करता है। पिछले एक साल में भ्रष्टाचार से जुड़े मसले तमाम मसले सामने आने के बाद लोगों को नियम-कानूनों का मतलब समझ में आया है। जो भी पकड़-धकड़ हुई है वह इसी कानून-व्यवस्था के तहत हुई है। और जो कुछ सम्भव है वह इसी व्यवस्था के तहत होगा। इसलिए दो बातों को समझना चाहिए। एक, यह आंदोलन व्यवस्था विरोधी नहीं है, बल्कि व्यवस्था को पुष्ट करने वाला है। दूसरे यह देश की सिविल सोसायटी के विकसित होने की घड़ी है। अरविन्द केजरीवाल, किरन बेदी, संतोष हेगडे और प्रशांत भूषण जैसे लोग इसी व्यवस्था का हिस्सा रहे हैं और आज भी हैं।

विदेशी मीडिया में अन्ना हजारे

अमेरिकी अखबार वॉशिंगटन पोस्ट ने अन्ना हजारे पर कुछ सामग्री छापी है। एपी की रपट में लिखा हैः- Public anger with corruption has been growing in the wake of recent scandals, including an investigation into the sale of cell phone spectrum in 2008 that reportedly cost the country tens of billions of dollars in lost revenue. The telecoms minister had to resign and is currently in jail pending a probe into the losses.


वॉशिंगटन पोस्ट में एलिजाबेथ फ्लॉक के ब्लॉग पोस्ट में लिखा गया है -
Corruption has long been a serious problem within the Indian government. In 2008, The Washington Post reported that nearly a fourth of the 540 Indian Parliament members faced criminal charges, “including human trafficking immigration rackets, embezzlement, rape, and even murder.” In 2010, Transparency International found India to be the ninth-most corrupt country in the world, with 54 percent of Indians having paid a bribe in the past year.

But Hazare’s protest is particularly timely in a year in which three major corruption scandals rocked the Indian government, the scandals prompting even the stoic Supreme Court to ask: “What the hell is going on in this country?”



वॉशिंगटन पोस्ट में रपट

Thursday, April 7, 2011

जंतर-मंतर पर पीपली लाइव

मीडिया ब्लॉल सैंस सैरिफ के अनुसार दिल्ली के जंतर मंतर पर पीपली लाइव शो चल रहा है। मौके पर 42 ओबी वैन तैनात हैं। इंडिया टुडे से जुड़े अंग्रेजी चैनल ने वहाँ वॉक इन स्टूडियो बना दिया है। वजह सब जानते हैं कि वहाँ अन्ना हजारे का अनशन चल रहा है।

अन्ना हजारे के अनशन पर आज इंडियन एक्सप्रेस की लीड का शीर्षक है Cracks appear in Anna's team, Govt plans to reach out. इस खबर से लगता है जैसे अन्ना की कोई मंडली आपसी विवाद में उलझ गई है। लीड का शीर्षक थोड़ा सनसनीखेज है, जबकि खबर के अनुसार कर्नाटक के लोकायुक्त जस्टिस संतोष हेगडे अपने ही प्रस्तावित बिल के प्रारूप से सहमत नहीं हैं। एक्सप्रेस ने सम्पादकीय लिखा है दे, पीपुल

Monday, April 4, 2011

इस कप में भारत के लिए भी कुछ है?



हमारे अपार्टमेंट के कम्युनिटी हॉल में बड़े स्क्रीन पर मैच दिखाने की व्यवस्था थी। बाहर छोले-भटूरे, पकौड़ियों, कोल्ड और कॉफी का इंतजाम था। बच्चों के स्कूलों की छुट्टी थी। साहब लोगों में से ज्यादातर की छुट्टी थी। जिनकी नहीं थी उन्होंने ले ली थी। उनके साहबों ने भी ली थी। शोर से पता लग जाता था श्रीलंका का एक और गया। बाद में खामोशी से पता लग गया कि जयवर्धने ने कैसी ठुकाई की है। सब्जी लेने गए तो वहाँ ठेले के बराबर टीवी लगा था। दवाई की दुकान में भी था। मदर डेयरी में भी लगा था। घर आते-आते रास्ते में एक-एक रन का हिसाब मिल रहा था। स्पोर्ट्स चैनल से हटाकर न्यूज़ चैनल लगाया तो उसमें धोनी और संगकारा के बीच टॉस की कंट्रोवर्सी पर डिस्कशन चल रहा था। टू-जी स्पेक्ट्रम पर सीबीआई की चार्जशीट पर किसी की निगाहें नहीं थीं।

Sunday, April 3, 2011

विश्व-विजय के अखबार

भारत की टीम क्रिकेट के मैदान में कुछ कर डाले तो समूचा मीडिया झूम पड़ता है। मार्केट की मजबूरी है कि इनमें एक से बढ़कर एक कुछ करने की ललक रहती है। अगली सुबह हर दफ्तर में लहक-लहक कर अपनी तारीफ और दूसरों की कमियों पर इशारा करने का माहौल रहता है। बहरहाल अखबारों के पहले सफे से माहौल का पता लगता हो तो कुछ तस्वीरे लगा रहा हूँ। एक कोलाज मीडिया ब्लॉग चुरुमुरी से लिया है।


Saturday, April 2, 2011

ब्लीडिंग ब्लू

31 मार्च के टाइम्स ऑफ इंडिया और दक्षिण के प्रसिद्ध अखबार हिन्दू के सारे शीर्षक नीले रंग में थे। दोनों अखबारों को जर्मन ऑटो कम्पनी फोक्स वैगन ने विशेष विज्ञापन दिया था। फोक्स वैगन इसके पहले पिछले साल 21 सितम्बर को दोनों अखबार फोक्स वैगन के विशेष टॉकिंग एडवर्टाइज़मेंट का प्रकाशन कर चुके थे।  उसमें अखबार के पन्ने पर करीब दस ग्राम का स्पीकर चिपका था। रोशनी पड़ते ही उस स्पीकर से कम्पनी का संदेश बजने लगता था।

फोक्स वैगन इन दिनों भारत के ऑटो बाज़ार में जमने का प्रयास कर रही है। उसके इनोवेटिव विज्ञापनों में कोई दोष नहीं है, पर अखबारों में विज्ञापन किस तरह लिए जाएं, इस पर चर्चा ज़रूर सम्भव है। 31 मार्च के थिंक ब्लू विज्ञापन का एक पहलू यह भी है कि टाइम्स ने उसके लिए अपने मास्टहैड में ब्लू शब्द हौले से शामिल भी किया है। हिन्दू ने मास्टहैड में विज्ञापन का शब्द शामिल नहीं किया।


टाइम्स इसके पहले कम से कम दो बार और मास्टहैड में विज्ञापन सामग्री जोड़ चुका है।


Friday, April 1, 2011

दक्षिण एशिया में क्रिकेट


हर तोड़ का सुपर जोड़

सुबह पहला टेक्स्ट मैसेज आया, चलो मुम्बई...रावण वेट कर रहा है....सैटरडे को दशहरा है...-)। पिछले कुछ दिनों से फेसबुक, ट्विटर और टीवी पर तीसरे और चौथे विश्वयुद्ध की घोषणाएं हो रहीं थीं। ऊँचे-ऊँचे बोलों, उन्मादों, रंगीनियों, शोर-गुल, धूम-धड़ाके के बाद भारत फाइनल में पहुँच गया है। भारत-ऑस्ट्रेलिया मैच को हमारे मीडिया ने सेमी फाइनल माना था। भारत-पाकिस्तान मैच फाइनल था। और अब शायद भारत-श्रीलंका मैच साउथ एशिया कप का फाइनल है।