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Thursday, December 16, 2021

बांग्लादेश के 50 वर्ष


दूसरे विश्वयुद्ध के बाद बांग्लादेश पहला ऐसा देश था, जो युद्ध के बाद नए देश के रूप में सामने आया था। इस देश के उदय ने भारतीय भूखंड के धार्मिक विभाजन को गलत साबित किया। पूर्वी पाकिस्तान हालांकि मुस्लिम-बहुत इलाका था, पर वह बंगाली था। यह बात शायद आज भी पाकिस्तान के सूत्रधारों को समझ में नहीं आती है। पाकिस्तान के संस्थापक मुहम्मद अली जिन्ना को भी यह बात समझ में नहीं आई थी। उन्होंने 1948 में ढाका विवि में कहा कि किसी को संदेह नहीं रहना चाहिए, पाकिस्तान की राष्ट्रभाषा उर्दू होगी। उन्होंने उर्दू के साथ बांग्ला को भी देश की राष्ट्रभाषा बनाने की माँग करने वालों को  इस भाषण से बांग्लादेश की नींव उसी दिन पड़ गई थी। यह सब अब इतिहास के पन्नों में दर्ज है, पर बांग्लादेश के पचास वर्ष पूरे होने पर भारतीय भूखंड के विभाजन की याद फिर से ताजा हो रही है।

दक्षिण एशिया में विभाजन की कड़वाहट अभी तक कायम है, पर यह एकतरफा और एक-स्तरीय नहीं है। पाकिस्तान का सत्ता-प्रतिष्ठान भारत-विरोधी है, फिर भी वहाँ जनता के कई तबके भारत में अपनापन भी देखते हैं। बांग्लादेश का सत्ता-प्रतिष्ठान भारत-मित्र है, पर कट्टरपंथियों का एक तबका भारत-विरोधी भी है। भारत में भी एक तबका बांग्लादेश के नाम पर भड़कता है। उसकी नाराजगी ‘अवैध-प्रवेश’ को लेकर है या उन भारत-विरोधी गतिविधियों के कारण जिनके पीछे सांप्रदायिक कट्टरपंथी हैं। पर भारतीय राजनीति, मीडिया और अकादमिक जगत में बांग्लादेश के प्रति आपको कड़वाहट नहीं मिलेगी। शायद इन्हीं वजहों से पड़ोसी देशों में भारत के सबसे अच्छे रिश्ते बांग्लादेश के साथ हैं।

पचास साल का अनुभव है कि बांग्लादेश जब उदार होता है, तब भारत के करीब होता है। जब कट्टरपंथी होता है, तब भारत-विरोधी। शेख हसीना के नेतृत्व में अवामी लीग की सरकार के साथ भारत के अच्छे रिश्तों की वजह है 1971 की वह ‘विजय’ जिसे दोनों देश मिलकर मनाते हैं। वही विजय कट्टरपंथियों के गले की फाँस है। पिछले 12 वर्षों में अवामी लीग की सरकार ने भारत के पूर्वोत्तर में चल रही देश-विरोधी गतिविधियों पर रोक लगाने में काफी मदद की है। भारत ने भी शेख हसीना के खिलाफ हो रही साजिशों को उजागर करने और उन्हें रोकने में मदद की है।