पुलवामा कांड पर देश में दो तरह की प्रतिक्रियाएं हैं। पहली है, ‘निंदा नहीं, एक भी आतंकी जिंदा
नहीं चाहिए...याचना नहीं, अब रण
होगा...आतंकी ठिकानों पर हमला करो’ वगैरह। दूसरी है, ‘धैर्य रखें, बातचीत से ही हल निकलेगा।’ दोनों बातों के निहितार्थ समझने चाहिए। धैर्य रखने का सुझाव उचित है, पर
लोगों का गुस्सा भी गलत नहीं है। जैशे मोहम्मद ने इस हमले की जिम्मेदारी ली है,
जिसमें उसने बिलकुल भी देर नहीं लगाई है। उसके हौसले बुलंद हैं। जाहिर है कि उसे
पाकिस्तान में खुला संरक्षण मिल रहा है। नाराजगी के लिए क्या इतना काफी नहीं है? अब आप किससे बात करने का सुझाव दे रहे हैं? जैशे-मोहम्मद से?
पुलवामा कांड में हताहतों की संख्या बहुत बड़ी है, इसलिए इसकी आवाज
बहुत दूर तक सुनाई पड़ रही है। जाहिर है कि हम इसका निर्णायक समाधान चाहते हैं।
भारत सरकार ने बड़े कदम उठाने का वादा किया है। विचार इस बात पर होना चाहिए कि ये
कदम सैनिक कार्रवाई के रूप में होंगे या राजनयिक और राजनीतिक गतिविधियों के रूप
में। सारा मामला उतना सरल नहीं है, जितना समझाया जा रहा है। अफ़ग़ानिस्तान में
तालिबान के पुनरोदय से भी इसका रिश्ता है।