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Sunday, September 18, 2022

लाइक करवा लो!

फेसबुक, ट्विटर और दूसरे सोशल मीडिया पर लाइक के बटन का मतलब है बात अच्छी लगी। फेसबुक लेखक अपनी पोस्ट पर विपरीत टिप्पणियाँ पसंद नहीं करते, लाइक पसंद करते हैं। इसकी वजह से अक्सर 'लाइक-बटोर लेखकों' के बीच प्रतियोगिता चलती रहती है।

'लाइक-सहयोग समझौतों' का चलन भी है। तू मेरी लाइक कर मैं तेरी करता हूँ। 'लाइक सहयोग परिषदें' और 'लाइक-मंडलियाँ' बन गईं हैं। अलाँ-फलाँ-लाइक संघ। अलाँ-फलाँ जैकारा समाज। अलाँ-फलाँ गरियाओ समाज भी है।

जब लाइक-प्रिय लेखक को पर्याप्त लाइक नहीं मिलते तो वह अपने भक्तों को ब्लॉक करने की धमकी देने लगता है। लाइक में गुण बहुत हैं। किसी को खुश करना है तो उसकी अल्लम-गल्लम को लाइक कर दीजिए। नाराज़ करना है तो उसकी 'महान-रचना' की अनदेखी कर दीजिए।

एक नया 'लाइक समुदाय' पैदा हो गया है। फेसबुक साहित्य की इस प्रवृत्ति को देखते हुए हिंदी विभागों को चाहिए कि लाइक की अधुनातन प्रवृत्तियों पर शोध कराएं। 'इक्कीसवीं सदी के दशोत्तरी पोस्ट लेखन में लाइक-प्रवणता: झुमरी तलैया के दस फेसबुक लेखकों का एक तुलनात्मक अध्ययन।'

कई साल पहले लिखी यह पोस्ट मामूली संशोधन के साथ फिर से लगा दी है, क्योंकि प्रासंगिक लग रही है। मैं इसमें दो बातें और जोड़ना चाहता हूँ। मैंने कई साल पहले जब यह पोस्ट लिखी थी, तब लाइक के साथ हँसने वाले इमोजी नहीं लगते थे। अब लगने लगे हैं।

इसे पढ़े-लिखों यानी अंग्रेजी के जानकारों की भाषा में lol कहते हैं। आँसू बहाने वाला भी है। यानी कि अब यह केवल इस बात की रसीद नहीं है कि पढ़ लिया या देख लिया। अब का मामला है कि मजा आ गया, परेशान हैं या दुखी हो गए।

फेसबुक और ट्विटर ने अभी तक ऐसा बटन नहीं बनाया है कि बहुत वाहियात बात लिख दी। सत्यानाश हो तेरा वगैरह। बनाया होता, तो न जाने क्या हो जाता। अलबत्ता आज के मार्केटिंग युग में ये लाइक टीआरपी की तरह आपकी बिक्री का पता भी देते हैं। कितना माल उठा?

शायद मंदी का पता भी इसी से लगता है। इस पोस्ट को फेसबुक पर लगाया, तो किसी ने अपनी प्रतिक्रिया में ऊपर वाला कार्टून (चप्पल मारूँ क्या?) लगा दिया। यानी इस विषय पर काफी लोग काम कर भी रहे हैं। चप्पल-जूते, थप्पड़ और लातों की जरूरत भी है। 

Tuesday, April 26, 2022

एलन मस्क ने क्यों किया ट्विटर पर कब्जा?

यह आलेख जब नवजीवन में प्रकाशित हुआ तब उसका शीर्षक था एलन मस्क ने क्यों की ट्विटर पर कब्जे की कोशिश?पर अब इसका शीर्षक बदल चुका है। औपचारिकताएं होती रहेंगी, पर ट्विटर अब उनका कब्जा हो चुका है या हो जाएगा। सवाल है कि वे अब क्या करेंगे? गत 13 अप्रेल को जब टेस्ला और स्पेस एक्स के बॉस एलन मस्क ने ट्विटर पर कब्जा करने के इरादे से 54.20 डॉलर की दर से शेयर खरीदने की पेशकश की, तो सोशल मीडिया में सनसनी फैल गई। दुनिया का सबसे अमीर आदमी सोशल मीडिया के एक प्लेटफॉर्म की इतनी बड़ी कीमत क्यों देना चाहता है? टेकओवर वह भी जबरन, जिसे रोकने के लिए ट्विटर के प्रबंधन को ‘पॉइज़न पिल’ का इस्तेमाल करना पड़ा। इससे एलन मस्क की कोशिशों को झटका तो लगा है, पर यह खेल फिलहाल खत्म नहीं हुआ है। देखना होगा कि मस्क के इरादे कितने गहरे हैं।

'पॉइज़न पिल' किसी कंपनी को जबरन अधिग्रहण से बचाने का एक तरीक़ा है। एक छोटी अवधि के लिए कम्पनी कुछ दूसरे लोगों को काफी कम कीमत पर शेयर खरीदने की अनुमति दे देती है, ताकि अधिग्रहण की कोशिश करने वाले के शेयरों की कीमत कम पड़ने लगे। यह एक वैध योजना है जो किसी को कम्पनी में 15 प्रतिशत से ज्यादा के शेयर खरीदने से रोकती है। यह योजना एक साल की है। मस्क के पास जितने शेयर हैं वे ट्विटर के संस्थापक जैक डोर्सी के शेयरों से चार गुना ज़्यादा है। डोर्सी ने पिछले साल नवंबर में ट्विटर का सीईओ पद छोड़ दिया था जिसके बाद ये ज़िम्मेदारी अब पराग अग्रवाल संभाल रहे हैं।

फ्री-स्पीच की सदिच्छा

एलन मस्क ट्विटर पर अधिकार क्यों चाहते हैं? उन्होंने अमेरिका की मुख्य वित्तीय नियामक संस्था सिक्योरिटीज़ एंड एक्सचेंज कमीशन को दी गई अर्जी में कहा है कि ट्विटर में ‘फ्री-स्पीच का प्लेटफॉर्म बनने की प्रचुर सम्भावनाएं हैं।’ यह ‘एक सामाजिक-पहल है।’ मैं इस सम्भावना के द्वार खोलना चाहता हूँ। उन्होंने बाद में कहा, मैं यह काम निजी लाभ के लिए नहीं, सार्वजनिक-हित में करना चाहता हूँ।   

Sunday, January 9, 2022

सोशल मीडिया पर नफरत की खेती


बुल्ली बाई प्रकरण ने हमारे जीवन, समाज और संस्कृति की पोल खोली है। इस सिलसिले में अभी तक गिरफ्तार सभी लोग युवा या किशोर हैं, जिनमें एक लड़की भी है। यह बात चौंकाती है। इन युवाओं की दृष्टि और विचारों का पता बाद में लगेगा, पर इसमें दो राय नहीं कि ज़हरीली-संस्कृति को बढ़ावा देने में सोशल मीडिया की भूमिका की अनदेखी करना घातक होगा। इसके पहले जुलाई 2021 में सुल्ली डील्स नाम से गिटहब पर ऐसा ही एक कारनामा किसी ने किया था, जिसमें पकड़-धकड़ नहीं हुई। वजह यह भी थी कि गिटहब अमेरिका से संचालित होता है। अब खबर है कि सुल्ली डील्स मामले में भी एक व्यक्ति की गिरफ्तारी हुई है। गिटहब और बुल्ली बाई को सोशल मीडिया कहा भी नहीं जा सकता, पर इसके सामाजिक प्रभावों से इनकार भी नहीं किया जा सकता। इस सिलसिले में वीडियो गेम्स के पीछे छिपे सामाजिक-टकरावों का अध्ययन करने की जरूरत भी है। इन खेलों में जिसे दुश्मन बताया जाता है, वह हमारी दृष्टि पर निर्भर करता है।

उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने 3 जनवरी को केरल के एक कार्यक्रम में कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने धार्मिक विश्वासों को मानने और प्रचार करने का अधिकार है। अपने धर्म का पालन करें, लेकिन गाली न दें और अभद्र भाषा और लेखन में लिप्त न हों। उन्होंने एक सैद्धांतिक बात कही है, पर मसला धर्म के पालन का नहीं है, बल्कि एक बहुल समाज को समझ पाने की असमर्थता का है।

ज़हरीली भूमिका

विविधता हमारी पहचान है, जिसका सबसे बड़ा मूल्य सहिष्णुता है। यह बात समझने और समझाने की है, पर सोशल मीडिया ने सारी सीमाओं को तोड़ दिया है। बुल्ली मामले ने सोशल मीडिया की जहरीली भूमिका के अलावा सामाजिक रीति-नीति पर रोशनी भी डाली है। स्टैटिस्टा डॉट कॉम के अनुसार दुनियाभर में 3.6 अरब से ज्यादा लोग हर रोज औसतन 145 मिनट यानी सवा दो घंटे सोशल मीडिया पर बिताते हैं। कुछ दशक पहले तक लोग अखबारों और पत्रिकाओं को पढ़ने में जितना समय देते थे, उससे कहीं ज्यादा समय अब लोग सोशल मीडिया को दे रहे हैं। यह मीडिया जानकारियाँ देने, प्रेरित करने और सद्भावना बढ़ाने का काम करता है, वहीं नफरत का ज़हर उगलने और फेक न्यूज देने का काम भी कर रहा है।

Saturday, June 5, 2021

दुधारी तलवार के जोखिम

चाकू डॉक्टर के हाथ में हो, तो वह जान बचाता है। गलत हाथ में हो, तो जान ले लेता है। सोशल मीडिया दुधारी चाकू है। कश्मीरी डॉक्टरों का एक समूह वॉट्सएप के जरिए हृदय रोगों की चिकित्सा के लिए आपसी विमर्श करता है। वहीं आतंकी गिरोह अपनी गतिविधियों को चलाने और किशोरों को भड़काने के लिए इसका सहारा लेते हैं। गुजरे वर्षों में असम, ओडिशा, गुजरात, त्रिपुरा, बंगाल, तेलंगाना, तमिलनाडु, कर्नाटक और महाराष्ट्र से खौफनाक आईं। झूठी खबरों से उत्तेजित भीड़ ने निर्दोष लोगों की हत्याएं कर दीं-मॉब लिंचिंग।

वर्षों पहले ट्विटर ने पाकिस्तानी संगठन लश्करे तैयबा के अमीर हाफिज सईद का ट्विटर अकाउंट सस्पेंड किया। उनके तीन नए अकाउंट तैयार हो गए। आईएस के एक ट्वीट हैंडलर की बेंगलुरु में गिरफ्तारी के बाद पता लगा कि ‘साइबर आतंकवाद’ का खतरा उससे कहीं ज्यादा बड़ा है, जितना सोचा जा रहा था। दुनिया एक तरफ उदात्त मानवीय मूल्यों की तरफ बढ़ रही है, तो दूसरी तरफ कट्टरपंथी संकीर्णताओं के ज्वालामुखी के मुँह भी खुल रहे हैं। 

बिचौलियों का उदय

सूचना-प्रसारण दुनिया का शुरूआती औद्योगिक उत्पाद है। सन 1454 में मूवेबल टाइप के आविष्कार के फौरन बाद अखबारों, पत्रिकाओं और पुस्तकों का प्रकाशन शुरू हो गया था। उसी दौरान यूरोप में साक्षरता बढ़ी जैसा आज हमारे यहाँ हो रहा है। पुराने मीडिया में लेखक-संवाददाता और पत्रकार अपने पाठक को कुछ परोसते थे। सोशल मीडिया पब्लिक का मीडिया है। उसमें पत्रकार गायब है और साथ में गायब है मॉडरेशन। इसमें गाली-गलौज है, अच्छी जानकारियाँ भी हैं और झूठी बातें भी।

Thursday, May 27, 2021

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों के साथ सरकारी टकराव निर्णायक दौर में


भारत सरकार और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों के बीच टकराव अब निर्णायक मोड़ की तरफ बढ़ रहा है। एक तरफ अभिव्यक्ति और प्राइवेसी के अधिकारों की रक्षा का सवाल है, तो दूसरी तरफ सामाजिक जिम्मेदारियों, राष्ट्रीय हितों और पारदर्शिता से जुड़े नियमों का सवाल है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म वॉट्सऐप ने भारत सरकार के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की है, जिसमें नए नियमों पर रोक लगाने की मांग की गई है। सरकार ने सोशल मीडिया कंपनियों को नई गाइडलाइन बनाने के लिए 90 दिन का वक्त दिया था, जिसकी मियाद मंगलवार को खत्म हो चुकी है।

दूसरी तरफ कल भारत सरकार के पत्र सूचना कार्यालय ने एक विज्ञप्ति जारी करके एक लम्बी सफाई दी है कि हम निजता का सम्मान करते हैं, पर किसी एक संदेश लेखक के बारे में जानकारी पाने के पीछे सार्वजनिक हित की कामना है। ऐसी जरूरत सिर्फ उसी मामले में है जब भारत की सम्प्रभुता, अखंडता, राज्य की सुरक्षा, दूसरे देशों के साथ दोस्ताना संबंधों या सार्वजनिक आदेश या उक्त अपराधों को उकसाने से संबंधित बहुत गंभीर अपराधों या बलात्कार, यौन सामग्री या बाल यौन उत्पीड़न सामग्री से संबंधित अपराधों की रोकथाम, जांच या सजा के लिए संदेश की जरूरत होती है

सरकार ने टेक कंपनियों से कोरोना से जुड़ी भ्रामक जानकारियों को भी हटाने को कहा है जिसके बाद आरोप लगाया गया कि सरकार अपनी आलोचना से जुड़ी जानकारी को छुपा रही है। सोशल मीडिया कंपनियों के नई गाइडलाइन बनाने के लिए 90 दिन का वक्त दिया गया था, जिसकी मियाद मंगलवार को खत्म हो चुकी है।

गत 25 मई को दाखिल इस याचिका में कंपनी ने कोर्ट में दलील दी है कि भारत सरकार के नए आईटी नियमों से प्राइवेसी खत्म हो जाएगी। वॉट्सऐप के प्रवक्ता ने कहा कि हमारे मैसेज एनक्रिप्ट किए गए हैं। ऐसे में लोगों की चैट को इस तरह ट्रेस करना वॉट्सऐप पर भेजे गए सभी मैसेज पर नजर रखने के बराबर है जो कि इस प्लेटफॉर्म को इस्तेमाल करने वालों की प्राइवेसी को खत्म कर देगा। कंपनी सिर्फ उन लोगों के लिए नियमन चाहती है, जो प्लेटफॉर्म का गलत इस्तेमाल करते हैं।

उन्होंने कहा कि हम प्राइवेसी के हनन को लेकर दुनियाभर के सिविल सोसाइटी और विशेषज्ञों के संपर्क में हैं। इसके साथ ही लगातार भारत सरकार से चर्चा के जरिए इसका समाधान खोजने में लगे हैं। प्रवक्ता की ओर से कहा गया कि हमारा मकसद लोगों की सुरक्षा और जरूरी कानूनी समस्याओं का हल खोजना है।

Sunday, August 23, 2020

फेसबुक के पीछे क्या है?

भारत में अपनी भूमिका को लेकर फेसबुक ने औपचारिक रूप से यह स्पष्ट किया है कि सामग्री को लेकर जो विवाद खड़ा हुआ है, उसका निर्वाह सही तरीके से किया जा रहा है और वह एक खुला, पारदर्शी और पक्षपात- रहित मंच है। फेसबुक के भारत-प्रमुख अजित मोहन ने जो नोट लिखा है, उसके नीचे पाठकों की प्रतिक्रियाएं पढ़ें, तो लगेगा कि फेसबुक पर कम्युनिस्टों और इस्लामिक विचारों के प्रसार का आरोप लगाने वालों की संख्या भी कम नहीं है। फेसबुक ही नहीं ट्विटर, वॉट्सएप और सोशल मीडिया के किसी भी प्लेटफॉर्म पर इन दिनों उन्मादी टिप्पणियों की बहुतायत है। क्यों हैं ये टिप्पणियाँ? क्या ये वे दबी बातें हैं, जिन्हें खुलकर बाहर आने का मौका सोशल मीडिया के कारण मिला है?  

ऐसे में सवाल दो हैं। क्या फेसबुक ने अपने आर्थिक हितों के लिए भारत में सत्ताधारी राजनीतिक दल से कोई गठजोड़ किया है या जो कुछ सामाजिक विमर्श में चलता है, वही सामने आ रहा है? सोशल मीडिया के सामने मॉडरेशन एक बड़ी समस्या है। एक तरफ सामाजिक ताकतें हैं, दूसरी तरफ राजनीतिक शक्तियाँ। कोई भी कारोबारी सरकार से रिश्ते बिगाड़ भी नहीं सकता। आज बीजेपी की सरकार है। जब कांग्रेस की सरकार थी, तब भी फेसबुक ने सरकार के साथ मिलकर काम किया ही था।

Thursday, March 5, 2020

मोदी का ट्वीट और उससे उपजी एक बहस


सोशल मीडिया की ताकत, उसकी सकारात्मक भूमिका और साथ ही उसके नकारात्मक निहितार्थों पर इस हफ्ते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक ट्वीट ने अच्छी रोशनी डाली. हाल में दिल्ली के दंगों को लेकर सोशल मीडिया पर कड़वी, कठोर और हृदय विदारक टिप्पणियों की बाढ़ आई हुई थी. ऐसे में प्रधानमंत्री  के एक ट्वीट ने सबको चौंका दिया. उन्होंने लिखा, 'इस रविवार को सोशल मीडिया अकाउंट फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब छोड़ने की सोच रहा हूं.' उनके इस छोटे से संदेश ने सबको स्तब्ध कर दिया. क्या मोदी सोशल मीडिया को लेकर उदास हैं?   क्या वे जनता से संवाद का यह दरवाजा भी बंद करने जा रहे हैं? या बात कुछ और है?
इस ट्वीट के एक दिन बाद ही प्रधानमंत्री ने अपने आशय को स्पष्ट कर दिया, पर एक दिन में कई तरह की सद्भावनाएं और दुर्भावनाएं बाहर आ गईं. जब प्रधानमंत्री ने अपना मंतव्य स्पष्ट कर दिया है, तब भी जो टिप्पणियाँ आ रही हैं उनमें सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह के दृष्टिकोण शामिल हैं. उनके समर्थक हतप्रभ थे और उनके विरोधियों ने तंज कसने शुरू कर दिए. इनमें राहुल गांधी से लेकर कन्हैया कुमार तक शामिल थे. कुछ लोगों ने अटकलें लगाईं कि कहीं मोदी अपना मीडिया प्लेटफॉर्म लांच करने तो नहीं जा रहे हैं? क्या ऐसा तो नहीं कि अब उनकी जगह अमित शाह जनता को संबोधित करेंगे? 

Sunday, March 24, 2019

दानिस्ता ने वीडियो न बनाया होता तो...?


21 मार्च को होली के दिन गुरुग्राम के भूपसिंह नगर के रहने वाले मोहम्मद साजिद के परिवार ने अपने आसपास के समाज का ऐसा भयानक चेहरा देखा जिससे वे ख़ौफ़ में हैं. इस खौफ के खिलाफ नागरिक समाज ने अपनी नाराजगी व्यक्त की है. यह नाराजगी इतनी असरदार नहीं होती या शायद होती ही नहीं, अगर इस हिंसा का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल न हुआ होता. इस वीडियो के कारण बड़ी संख्या में लोगों की अंतरात्मा को ठेस लगी. यह क्या हो रहा है?  

मीडिया का असर है कि हमारी भावनाएं भड़कने में देर नहीं लगती है. और हमें मानवीयता का एहसास भी किसी दूसरे वीडियो से होता है. नब्बे के दशक में जब महम की हिंसा का वीडियो पहली बार सामने आया था, तब हमें लगा कि राजनीति में यह क्या हो रहा है. वस्तुतः हमने पहली बार उसकी तस्वीरें देखी थीं, हो तो वह काफी पहले से रहा था. आरक्षण के विरोध में आत्मदाह करने की पहले वीडियो ने काफी बड़े वर्ग को व्यथित कर दिया था. फिर हाल के वर्षों में हमें दलितों की पिटाई के वीडियो देखने को मिले हैं. गोरक्षकों की हिंसा और मॉब लिंचिंग के वीडियो भी बड़ी संख्या में सामने आए हैं. इन वीडियो के राजनीतिक प्रभाव को देखते हुए ऐसे फर्जी वीडियो भी सामने आए हैं, जिनका उद्देश्य किसी एक खास तबके की भावनाओं को भड़काना होता है. यह खेल अभी चलेगा, क्योंकि चुनाव करीब हैं.

Sunday, October 8, 2017

गालियों का ट्विटराइज़ेशन

चौराहों, नुक्कड़ों और भिंडी-बाजार के स्वर और शब्दावली विद्वानों की संगोष्ठी जैसी शिष्ट-सौम्य नहीं होती। पर खुले गाली-गलौज को तो मछली बाजार भी नहीं सुनता। वह भाषा हमारे सोशल मीडिया में प्रवेश कर गई है। हम नहीं जानते कि क्या करें। जरूरत इस बात की है कि हम देखें कि ऐसा क्यों है और इससे बाहर निकलने का रास्ता क्या है? सोशल मीडिया की आँधी ने सूचना-प्रसारण के दरवाजे अचानक खोल दिए हैं। तमाम ऐसी बातें सामने आ रहीं हैं, जो हमें पता नहीं थीं। कई प्रकार के सामाजिक अत्याचारों के खिलाफ जनता की पहलकदमी इसके कारण बढ़ी है। पर सकारात्मक भूमिका के मुकाबले उसकी नकारात्मक भूमिका चर्चा में है। 

Saturday, August 27, 2016

संवाद




गांधी!
सावरकर!

नेहरू जी!
गुरु जी!


मोदी!
केजरीवाल!


इडली!
ऑमलेट!


रोटी!
बोटी!



पेप्सी!
लस्सी!


 पप्पू!
गप्पू!


कश्मीर!
बलूचिस्तान!


सैमसंग!
आईफोन!


एलोपैथी!
होम्योपैथी!


हॉलीवुड!
बॉलीवुड!


विकास!
सत्यानाश!


रेड!
भगवा!


शांति!
क्रांति!

  
चुप!
धत!


ट्रॉल!
ठुल्ला!


पाजी!
नालायक!


शट अप!
खामोश!


तू!
तड़ाक!


फूँ!
फटाक!


ब्लॉक!
डबल ब्लॉक! !

Tuesday, October 22, 2013

सोशल मीडिया का हस्तक्षेप यानी, ठहरो कि जनता आती है

ग्वालियर में राहुल गांधी की रैली खत्म ही हुई थी कि मीनाक्षी लेखी का ट्वीट आ गया माँ की  बीमारी का नाम लेने पर तीन कांग्रेसी सस्पेंड कर दिए गए, अब राहुल गांधी वही कर रहे हैं। उधर दिग्विजय सिंह ने ट्विटर पर नरेन्द्र मोदी को चुनौती दी, मुझसे बहस करो। रंग-बिरंगे ट्वीटों की भरमार है। माना जा रहा है कि सन 2014 के लोकसभा चुनाव में पहली बार सोशल मीडिया का असर देखने को मिलेगा। इस साल अप्रेल में 'आयरिस नॉलेज फाउंडेशन और 'इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया' ने 'सोशल मीडिया एंड लोकसभा इलेक्शन्स' शीर्षक से एक अध्ययन प्रकाशित किया था, जिसमें कहा गया था कि भारत की 543 में से 160 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जिनके नतीजों पर सोशल मीडिया का प्रभाव पड़ेगा। सोशल मीडिया का महत्व इसलिए भी है कि चुनाव से 48 घंटे पहले चुनाव प्रचार पर रोक लगने के बाद भी फेसबुक, ट्विटर और ब्लॉग सक्रिय रहेंगे। उनपर रोक की कानूनी व्यवस्था अभी तक नहीं है। दिल्ली में आप के पीछे सोशल मीडिया की ताकत भी है।

Sunday, April 21, 2013

पप्पू बनाम फेकू यानी ट्विटरगढ़ की जंग


इस महीने चार अप्रेल को राहुल गांधी के सीआईआई भाषण के बाद ट्विटर पर पप्पूसीआईआई के नाम से कुछ हैंडल तैयार हो गए। इसके बाद 8 अप्रेल को नरेन्द्र मोदी की फिक्की वार्ता के बाद फेकूइंडिया जैसे कुछ हैंडल तैयार हो गए। पप्पू और फेकू का संग्राम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुँच गया और तमाम अंतरराष्ट्रीय वैबसाइटों पर पप्पू और फेकू का मतलब बताने वालों की लाइन लगी रही। ट्विटर से फेसबुक पर और फेसबुक से ब्लॉगों पर राजनीतिक घमासान शुरू हो गया है। लगता है अगली चुनावी लड़ाई सोशल मीडिया पर ही लड़ी जाएगी। वोटरों, लेखकों और पत्रकारों के नज़रिए से देखें तो ऐसा ही लगता है। पर राजनेता शायद अभी इसके लिए तैयार नहीं हैं।

Saturday, January 29, 2011

अरब देशों में लोकतांत्रिक क्रांति की बयार

ट्यूनीशिया ने दी प्रेरणा

हाल में अमेरिकी विदेशमंत्री हिलेरी क्लिंटन ने क़तर में कहा कि जनता भ्रष्ट संस्थाओं और जड़ राजनैतिक व्यवस्था से आज़िज़ आ चुकी है। उन्होंने इशारा किया कि इस इलाके की ज़मीन हिल रही है। हिलेरी क्लिंटन ट्यूनीशिया के संदर्भ में बोल रहीं थीं. उनकी बात पूरी होने के कुछ दिन के भीतर ही मिस्र से बगावत की खबरें आने लगीं हैं। मिस्र में लोकतांत्रिक आंदोलन भड़क उठा है। राष्ट्रपति हुस्नी मुबारक ने अपनी सरकार को बर्खास्त करके जिम्मेदारी अपने हाथ में ले ली है। पिछले दो-तीन हफ्तों से काहिरा और स्वेज में प्रदर्शन हो रहे थे. प्रधानमंत्री अहमद नज़ीफ ने हर तरह के प्रदर्शनों पर पाबंदी लगा दी थी, पर प्रदर्शन रुक नहीं रहे थे।