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Wednesday, December 6, 2023

इंडिया गठबंधन की उलझनें बढ़ीं


पाँच राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव परिणाम आने के बाद कांग्रेस पार्टी की परेशानियाँ बढ़ गई हैं। 2018 में जिन तीन हिंदीभाषी राज्यों में उसे जीत मिली थी, उनमें हार से उसके 2024 का गणित उलझ गया है। कम से कम एक राज्य में भी उसे जीत मिलती, तो उसके पास कहने को कुछ था, पर मामूली नहीं मिली, अच्छी-खासी हार मिली है। कांग्रेस इससे बेहतर परिणाम की उम्मीद कर रही थी।

विपक्ष का ‘इंडिया’ गठबंधन बनने के बाद यह बड़ा चुनाव था, जिसमें एक साथ पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे थे। इसका असर इंडी या इंडिया गठबंधन पर पड़ेगा, जिसके केंद्र में हिंदीभाषी राज्य ही हैं। बहरहाल अब गठबंधन की अगली बैठक का इंतज़ार है, जिसमें सीटों के बँटवारे पर बात होगी। सपा ने फैसला किया है कि घटक दलों के पास मजबूत प्रत्याशी होने पर ही वह कोई भी सीट छोड़ेगी।

सीटों के बंटवारे के लिए तृणमूल, सपा और डीएमके जैसी क्षेत्रीय पार्टियां समान फॉर्मूला अपनाने पर सहमत हैं। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने 6 दिसंबर को घटक दलों के नेताओं की बैठक बुलाई थी, जिसे स्थगित कर दिया गया, पर संसद में विपक्ष के नेता दिल्ली में खरगे के आवास पर डिनर में शामिल हो रहे हैं। डिनर के माध्यम से खटास दूर करने की कोशिश होंगी और अगली बैठक के लिए संभावित तारीखों पर विचार भी किया जाएगा।

पांच राज्यों के चुनाव के दौरान ही राजद और जदयू समेत इंडिया के कई घटक दल न सिर्फ एक बड़ी रैली का आयोजन करना चाहते थे, बल्कि सीटों के बंटवारे के फॉर्मूले पर वार्ता करने की भी उनकी योजना थी। लेकिन कांग्रेस ने पांच राज्यों के चुनाव के नतीजों के बाद इस पर विचार करने की बात कहते हुए मामले को टाल दिया था। अब क्षेत्रीय पार्टियों का कांग्रेस पर दबाव बढ़ जाएगा।

Saturday, September 2, 2023

गठबंधन ‘इंडिया’ का सबसे बड़ा काम शुरू होगा अब


भारत के 28 विपक्षी दलों के गठबंधन ‘इंडिया’ ने शुक्रवार को मुंबई में आयोजित बैठक के दौरान आगामी लोकसभा चुनाव से जुड़े कई मुद्दों पर चर्चा करने के बाद तीन प्रस्ताव पास किए। पहला, सीट बँटवारे की प्रक्रिया जल्द ही पूरी की जाएगी, दूसरा, इंडिया के घटक दल जनता के मुद्दों पर देश के अलग-अलग हिस्सों में जनसभाएं करेंगे और तीसरा, इंडिया के सभी घटक दलों का अपना चुनाव अभियान जुड़ेगा भार औरजीतेगा इंडिया की थीम पर होगा। इनमें पहला काम सबसे बड़ा और जरूरी होगा। शेष दो काम किसी न किसी रूप में चल ही रहे हैं।

इस बैठक में चार समितियां बनाने का फ़ैसला किया गया है। ‘इंडिया गठबंधन’ की कोऑर्डिनेशन समिति में 1.केसी वेणु गोपाल, 2.शरद पवार, 3.टीआर बालू, 4.संजय राउत, 5.डी राजा, 6.तेजस्वी यादव, 7.अभिषेक बनर्जी, 8.राघव चड्ढा, 9.जावेद अली ख़ान, 10.ललन सिंह, 11.हेमंत सोरेन, 12.महबूबा मुफ्ती और 13.उमर अब्दुल्ला को जगह दी गई है। सीपीएम अपने प्रतिनिधि का नाम बाद में देगी। इस कमेटी के अलावा चार और कमेटियाँ बनेंगी कैम्पेन कमेटी, मीडिया, सोशल मीडिया और रिसर्च। किसी एक कोऑर्डिनेटर की नियुक्ति फिर भी नहीं हुई है। ऐसा करने के शायद जोखिम हैं।

गठबंधन ने पहले कहा था कि एक लोगो भी जारी किया जाएगा, पर ऐसा किया नहीं गया। तृणमूल कांग्रेस ने एक लोगो का सुझाव दिया था, पर कुछ दलों ने इस प्रस्ताव का समर्थन नहीं किया। इस बैठक में दिग्विजय सिंह ईवीएम को लेकर एक प्रेज़ेंटेशन रखने वाले थे, पर उसे रोक दिया गया। कुछ लोगों ने कहा कि नकारात्मक बातें इस समय करना उचित नहीं होगा। हाल में कांग्रेस की कर्नाटक में भारी जीत हुई है, ईवीएम के बावजूद।

Tuesday, August 29, 2023

गठबंधन ‘इंडिया’ की मुंबई बैठक के मुद्दे


हाल में बने नए राजनीतिक गठबंधन इंडिया (इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इनक्लूसिव एलायंस) की इस हफ्ते मुंबई में होने वाली तीसरी बैठक एक तरफ इसके राजनीतिक विचार को स्पष्ट करने और संगठनात्मक आधार को मजबूत करने का काम करेगी, वहीं इसके अंतर्विरोध भी खुलेंगे। 31 अगस्त और 1 सितंबर को दो दिन चलने वाली इस महाबैठक में गठबंधन के लोगो को लॉन्च करने की योजना भी है। गठबंधन के नाम के बाद इस गतिविधि का महत्व प्रचारात्मक ज्यादा है। ज्यादा बड़ा काम अभी तक नेपथ्य में ही है। वह है उस गणित की रूपरेखा, जिसपर यह गठबंधन खड़ा होने वाला है।

दो महत्वपूर्ण सवालों के जवाब भी इस बैठक में मिलेंगे। क्या यह गठबंधन राजस्थान, मध्य प्रदेश, तेलंगाना और छत्तीसगढ़ में होने वाले विधानसभा चुनावों में एक होकर उतरेगा या यह गठबंधन केवल लोकसभा चुनाव के लिए बन रहा है? दूसरे चुनाव में अलग-अलग चुनाव-चिह्नों के साथ इसकी एकरूपता किस प्रकार से व्यक्त होगी? कुछ पहेलियाँ और हैं। मसलन कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के रिश्ते। क्या आम आदमी पार्टी मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में उतरेगी? अकेले या कांग्रेस के सहयोगी दल के रूप में? क्या लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी गुजरात में उसे सीटें देगी? ऐसे ही सवाल बंगाल की राजनीति को लेकर हैं। महाराष्ट्र में एनसीपी खुद पहेली बनी हुई है।

Tuesday, August 8, 2023

मॉनसून-सत्र और नई रणनीतियाँ


दिल्ली सेवा-विधेयक को लोकसभा ने पास कर दिया और सोमवार 7 अगस्त वह राज्यसभा से भी पास हो गया। लोकसभा में सत्तारूढ़ दल के बहुमत को देखते हुए इसके पास होने में संदेह नहीं था। राज्यसभा में भी उसके पास होने के आसार थे, पर जिस बहुमत से वह पास हुआ है, उससे लगता है कि विरोधी गठबंधन से भी कुछ वोट उसके पक्ष में गए हैं। ऐसा तब हुआ, जब विपक्ष ने अपनी पूरी ताकत लगा दी, यहाँ तक कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ह्वील चेयर पर बैठकर वोट देने आए और शिबू सोरेन भी मौजूद रहे। मतदान के समय गैर-भाजपा पार्टियों का जो रुख रहा है, वह भविष्य की राजनीति की ओर इशारा कर रहा है। इस दौरान आम आदमी पार्टी के राघव चड्ढा का एक प्रस्ताव विवाद का विषय बन गया, जिसी जाँच होगी. 

आज मंगलवार से अविश्वासप्रस्ताव पर भी चर्चा होगी। 10 अगस्त को प्रधानमंत्री जब इसपर हुई बहस का उत्तर देंगे, तब देश की निगाहें बहुत सी बातों पर होंगी। पिछले साढ़े चार या साढ़े नौ साल के प्रसंग उठेंगे। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरनेम मामले में राहुल गांधी की सजा पर रोक लगा दी। उनकी संसद सदस्यता भी बहाल हो गई है। वे भी अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा में भाग लेंगे। सत्र में अब यही हफ्ता शेष है, पर जो भी होगा वह रोचक और सनसनीखेजहोगा। बीजेपी ने लोकसभा सदस्यों को ह्विप जारी कर दिया है, जिसमें उनसे 7 से 11 अगस्‍त के बीच सदन में उपस्थित रहने और सरकार का समर्थन करने के लिए कहा गया है।

Sunday, August 6, 2023

मॉनसून-सत्र और नई रणनीतियाँ


दिल्ली के अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग से जुड़े अध्यादेश के स्थान पर लाए गए विधेयक को लोकसभा ने पास कर दिया है। संभवतः सरकार अब इसे सोमवार 7 अगस्त को राज्यसभा में पेश करेगी। लोकसभा में सत्तारूढ़ दल के बहुमत को देखते हुए इसके पास होने में संदेह नहीं था। राज्यसभा में भी उसके पास होने के आसार हैं, पर देखना होगा कि वहाँ मतदान के समय गैर-भाजपा पार्टियों का रुख क्या रहेगा। यह रुख भविष्य की राजनीति की ओर इशारा करेगा। इस हफ्ते अविश्वास प्रस्ताव पर भी चर्चा होगी। 10 अगस्त को प्रधानमंत्री जब इसपर हुई बहस का उत्तर देंगे, तब देश की निगाहें बहुत सी बातों पर होंगी। पिछले साढ़े चार या साढ़े नौ साल के प्रसंग उठेंगे। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरनेम मामले में राहुल गांधी की सजा पर रोक लगा दी। अब उनकी संसद सदस्यता बहाल हो जानी चाहिए। कब होगी और कैसे होगी, देखना अब यह है। क्या इसी सत्र में उनकी वापसी संभव है? क्या वे अविश्वास प्रस्ताव पर बोलेंगे? ऐसे कुछ सवाल हैं। सत्र में अब यही हफ्ता शेष है, पर जो भी होगा रोचक और सनसनीखेज होगा। बीजेपी ने लोकसभा सदस्यों को ह्विप जारी कर दिया है, जिसमें उनसे 7 से 11 अगस्‍त के बीच सदन में उपस्थित रहने और सरकार का समर्थन करने के लिए कहा गया है।

राज्यसभा में विधेयक

करीब चार घंटे की बहस के बाद दिल्ली सेवा विधेयक लोकसभा से पास हो गया, पर संशय अब सिर्फ राज्यसभा की परिस्थितियों को लेकर है। सदन में एनडीए और विरोधी दलों के गठबंधन 'इंडिया' के पास लगभग बराबर सीटें हैं। ऐसे में गुट-निरपेक्ष पार्टियों की भूमिका महत्वपूर्ण होगी। नवीन पटनायक के बीजू जनता दल और आंध्र प्रदेश की वाईएसआर कांग्रेस ने अपना रुख साफ कर दिया है। दोनों ने गुरुवार को लोकसभा में सरकार का साथ दिया। दोनों के राज्यसभा में नौ-नौ सदस्य हैं। दूसरी तरफ बहुजन समाज पार्टी, जेडीएस और टीडीपी ने अपना रुख साफ नहीं किया है। इन तीनों के राज्यसभा में एक-एक सांसद हैं। ये किस तरफ वोटिंग करेंगे इसपर सबकी नजरें हैं। तेलंगाना की भारत राष्ट्र समिति यानी बीआरएस ने स्पष्ट किया है कि वह बिल के विरोध में है। उसके राज्यसभा में सात सांसद हैं। एनडीए के राज्यसभा में 100 सदस्य हैं। बीजेडी और वाईएसआर कांग्रेस के समर्थन से उसे 118 सदस्यों का साथ मिल गया है। माना जा रहा है कि नामित 5 सदस्य भी सरकार का साथ देंगे और तीन निर्दलीय सांसद भी हैं। गठबंधन 'इंडिया' के साथ राज्यसभा में 101 सदस्य हैं। बीआरएस के सात सांसदों के समर्थन से उसके पास 108 सदस्यों का बल होगा। तराजू का पलड़ा एनडीए की तरफ कुछ झुका हुआ लगता है, पर राजनीति का क्या भरोसा?

गतिरोध जारी

दोनों सदनों में मणिपुर हिंसा मामले पर गतिरोध इस हफ्ते भी जारी रहा। 12 दिन हो चुके हैं और सत्र के पाँच दिन बचे हैं। विपक्ष लगातार मणिपुर हिंसा मामले पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान की मांग कर रहा है। विरोधी दलों की रणनीति है कि बात चाहे दिल्ली के विधेयक पर हो या अविश्वास प्रस्ताव पर, वे मणिपुर के मसले पर सरकार को घेरेंगे। वे इस बात को लेकर नाराज़ है कि सरकार ने राज्यसभा में मणिपुर पर 11 अगस्त यानी सत्र के आखिरी दिन चर्चा कराने की योजना बनाई है। विरोधी दल चाहते हैं कि सोमवार को ही चर्चा हो। शुक्रवार को उन्होंने राज्यसभा के नेता सदन पीयूष गोयल और संसदीय-कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी से मुलाकात की, ताकि गतिरोध खत्म हो। सरकार भी ऐसा संदेश देना नहीं चाहती कि मणिपुर पर वह कुछ छिपाने की मंशा रखती है या बहस से भाग रही है। विरोधी खेमे में भी लोग मानते हैं कि ऐसा संदेश न जाए कि नियमों की आड़ में विपक्ष बहस से भाग रहा है। राज्यसभा में आप के संजय सिंह और लोकसभा में रिंकू सिंह के निलंबन से विरोधी सदस्यों के व्यवहार में बदलाव आया है। सोमवार को पता लगेगा कि वे आसन के पास आकर विरोध प्रदर्शन करेंगे या नहीं। काफी सदस्य वैल में जाने से हिचक रहे हैं और अपनी-अपनी सीट से ही खड़े होकर विरोध व्यक्त कर रहे हैं। कहा जा रहा है कि राज्यसभा में कुछ और सदस्य निलंबित हो गए तो सरकार को वोटिंग के दौरान आसानी हो जाएगी।

Tuesday, August 1, 2023

सत्तापक्ष और विपक्ष की गठबंधन-राजनीति का एक और नया दौर

भारत के 26 प्रमुख विरोधी-दलों ने 18 जुलाई को बेंगलुरु में नए गठबंधन इंडिया की बुनियाद रखते हुए 2024 के लोकसभा चुनाव का एक तरह से बिगुल बजा दिया है। उसी रोज दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में 38 दलों ने शिरकत करके जवाबी बिगुल बजाया। इन दोनों बैठकों का प्रतीकात्मक महत्व ही था, क्योंकि इसके फौरन बाद 20 जुलाई से संसद का सत्र होने के कारण दोनों पक्ष राजनीतिक गतिविधियों में लग गए। मणिपुर में चल रही हिंसक गतिविधियों के बीच एक भयावह वीडियो के वायरल होने के बाद राजनीतिक टकराव और तीखा हो गया, और फिलहाल दोनों पक्ष अपनी एकता के पैतरों को आजमा रहे हैं।

नए गठबंधन इंडियाऔर पुराने गठबंधन एनडीए की इन बैठकों में संख्याओं के प्रदर्शन के पीछे भी कुछ कारण खोजे जा सकते हैं। विरोधी-एकता की पटना बैठक में 15 पार्टियाँ शामिल हुईं थीं। एक सोलहवीं पार्टी भी थी, जिसके नेता जयंत चौधरी किसी वजह से उस बैठक में नहीं आ पाए थे। वे बेंगलुरु में शामिल हुए। बेंगलुरु में जो 16 नई पार्टियाँ आईं, उनमें कोई नई प्रभावशाली पार्टी नहीं थी। तीन तो वाममोर्चा के घटक थे। कुछ तमिल पार्टियाँ थीं, जो कांग्रेस के साथ पहले से गठबंधन में हैं। उधर एनडीए में भी कोई खास नयापन नहीं था। बिहार और उत्तर प्रदेश से जीतन राम मांझी, ओम प्रकाश राजभर चिराग पासवान और उपेंद्र कुशवाहा के शामिल होने से यह संख्या बढ़ी हुई लगती है। इसके अलावा पूर्वोत्तर की अनेक छोटी-छोटी पार्टियाँ हैं, जिनकी लोकसभा में उपस्थिति नहीं है।

दोनों के संशय

इन दोनों बैठकों से एक निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि दोनों गठबंधनों के भीतर असुरक्षा का भाव है। कांग्रेस पार्टी दस साल सत्ता से बाहर रहने के कारण जल बिन मछली बनी हुई है। छोटे क्षेत्रीय दलों की महत्वाकांक्षाएं जाग रही हैं कि शायद उन्हें कुछ मिल जाए। बीजेपी के बढ़ते प्रभाव और ईडी वगैरह के दबाव के कारण इन्हें अस्तित्व का संकट भी नज़र आ रहा है।

दूसरी तरफ यह भी लगता है कि बीजेपी ने 2019 में पीक हासिल कर लिया था। क्या अब ढलान है? इस ढलान से तभी बच सकते हैं, जब नए क्षेत्रों में प्रभाव बढ़े। बीजेपी-समर्थक चाहते है कि उसके एजेंडा को जल्द से जल्द हासिल करने के लिए कम से कम इसबार तो सरकार बननी ही चाहिए। यह एजेंडा एक तरफ हिंदुत्व से जुड़ा है, वहीं राष्ट्रीय-एकता और वैश्विक-मंच पर महाशक्ति के रूप में उभरने पर। उन्हें यह भी दिखाई पड़ रहा है कि पार्टी की ताकत इस समय नरेंद्र मोदी है, पर उसके बाद क्या?

Monday, July 17, 2023

2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारी में सत्तापक्ष और विपक्ष की कवायद शुरू


तकरीबन एक महीने की खामोशी के बाद इस हफ्ते राष्ट्रीय राजनीति में फिर से हलचल शुरू हो रही है। 20 जुलाई से संसद का मानसून सत्र शुरू होगा, जो 11 अगस्‍त तक चलेगा। इस सत्र में सरकार की ओर से 32 अहम बिल संसद में पेश किए जाएंगे। इस दौरान विरोधी दल सरकार को मणिपुर की हिंसा,  यूसीसी और केंद्र-राज्य संबंधों को लेकर घेरने का प्रयास करेंगे। इस दौरान सदन के भीतर और बाहर दोनों जगह विरोधी एकता की परीक्षा भी होगी। सवाल यह भी है कि संसद का सत्र ठीक से चल भी पाएगा या नहीं।

राजनीतिक दृष्टि से 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारी में सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों ने अपने गठबंधनों को मजबूत करने की कवायद शुरू कर दी है। इस दृष्टि से सत्र शुरू होने के ठीक पहले 17 और 18 को बेंगलुरु में हो रही विरोधी-एकता बैठक भी महत्वपूर्ण होगी। इस बैठक में केवल चुनावी रणनीति ही नहीं बनेगी, बल्कि संसद के सत्र में विभिन्न मसलों को लेकर समन्वय पर भी विचार होगा। इस बैठक में शामिल होने के लिए 24 दलों को निमंत्रित किया गया है। इस बैठक को कांग्रेस पार्टी कितना महत्व दे रही है, इस बात का पता इससे भी लगता है कि उसमें सोनिया गांधी भी शामिल होंगी। पटना में 23 जून की बैठक के बाद तय हुआ था कि 10 से 12 जुलाई के बीच शिमला में विपक्षी दलों की दूसरी मीटिंग होगी, जिसमें भविष्य की रणनीति पर चर्चा की जाएगी। इस बैठक की ज़िम्मेदारी कांग्रेस पार्टी पर सौंपी गई थी। कांग्रेस ने शिमला की जगह बेंगलुरु में बैठक बुलाई है।

इस दौरान महाराष्ट्र में एनसीपी के विभाजन, बंगाल के स्थानीय चुनावों में हुई हिंसा, पंजाब में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ओपी सोनी की गिरफ्तारी और बिहार में राजद के नेता तेजस्वी यादव के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल होने से विरोधी-एकता को धक्का भी लगा है, पर इन पार्टियों ने अपने प्रयासों को जारी रखने, बल्कि उसे विस्तार देने का फैसला किया है। पटना में जहाँ 16 पार्टियों को बुलाया गया था (शामिल 15 ही हुई थीं) वहीं बेंगलुरु में 24 दलों को आमंत्रित किया गया है।

इस बैठक में ऐसे दलों को ही न्यौता दिया गया है जो प्रत्यक्ष रूप से भाजपा की राजनीतिक शैली और विचारधारा के खिलाफ मैदान में खड़े होते हैं। एमडीएमके, फॉरवर्ड ब्लॉक,आरएसपी और आईयूएमएल समेत आठ ऐसे दलों को बेंगलुरु बैठक में निमंत्रण दिया गया है, जिन्हें पटना में विपक्षी एकता की पहली बैठक में नहीं बुलाया गया था।

Sunday, July 9, 2023

महाराष्ट्र ने बदला राष्ट्रीय-परिदृश्य


राष्ट्रीय-राजनीति की दृष्टि से देश में उत्तर प्रदेश के बाद महाराष्ट्र सबसे महत्वपूर्ण राज्य है, जहाँ से लोकसभा की 48 सीटें हैं। वहाँ हुआ राजनीतिक-परिवर्तन राष्ट्रीय-राजनीति को दूर तक प्रभावित करेगा। इस घटनाक्रम का गहरा असर विरोधी-एकता के प्रयासों पर भी पड़ेगा। हालांकि अभी स्थिति पूरी तरह स्पष्ट नहीं है, पर लगता है कि अजित पवार ने अपने चाचा शरद पवार को उन्हीं के तौर-तरीकों से मात दे दी है। इस घटना से महा विकास अघाड़ी की राजनीति पर सवालिया निशान लग गए हैं। पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के अनुसार 2019 में शिवसेना ने बीजेपी की पीठ में छुरा घोंपने का जो काम किया था, उसका ‘बदला’ पूरा हो गया है। अजित पवार की बगावत से महाराष्ट्र के महा विकास अघाड़ी गठबंधन की दरारें उजागर होने के साथ ही 2024 के चुनाव के लिए राष्ट्रीय स्तर पर विरोधी-महागठबंधन की तैयारियों को धक्का लगा है।

भविष्य की राजनीति

फिलहाल एनसीपी की इस बगावत की तार्किक-परिणति का इंतज़ार करना होगा। क्या अजित पवार दल-बदल कानून की कसौटी पर खरे उतरते हुए पार्टी के विभाजन को साबित कर पाएंगे? क्या वे एनसीपी के नाम और चुनाव-चिह्न को हासिल करने में सफल होंगे? ऐसा हुआ, तो चाणक्य के रूप में प्रसिद्ध शरद पवार की यह भारी पराजय होगी। कुछ पर्यवेक्षक मानते हैं कि यह शरद पवार का ही डबल गेम है। उनकी राजनीतिक संलग्नता कहीं भी रही हो, वे बीजेपी के संपर्क में हमेशा रहे हैं। बीजेपी ने उनकी मदद से ही राज्य में शिवसेना की हैसियत कमज़ोर करने में सफलता प्राप्त की थी। इस समय उनकी पराजय अपनी बेटी को उत्तराधिकारी बनाने के कारण हुई है। एमवीए की विसंगतियों की पहली झलक पिछले साल शिवसेना में हुए विभाजन के रूप में प्रकट हुई। दूसरी झलक अब दिखाई पड़ी है। ताजा बदलाव का बीजेपी और एकनाथ शिंदे की शिवसेना पर भी असर होगा। तीनों पार्टियाँ इस अंतर्विरोध को किस प्रकार सुलझाएंगी, यह देखना होगा।

बगावत क्यों हुई?

अजित पवार, प्रफुल्ल पटेल और छगन भुजबल जैसे बड़े नेताओं की बग़ावत ने उस पार्टी को विभाजित कर दिया है, जिसे शरद पवार ने खड़ा किया था। इसके दो कारण समझ में आते हैं। एक, दीर्घकालीन राजनीतिक हित और दूसरे व्यक्तिगत स्वार्थ। यह विभाजन केवल पार्टी का ही नहीं है, बल्कि पवार परिवार का भी है। शरद पवार ने अपनी विरासत भतीजे को सौंपने के बजाय अपनी बेटी को सौंपने का जो फैसला किया, उसकी यह प्रतिक्रिया है। पार्टी के कार्यकर्ता इस फैसले से आश्वस्त नहीं थे। वे सत्ता के करीब रहना चाहते हैं, ताकि उनके काम होते रहें। अजित पवार, प्रफुल्ल पटेल और अन्य नेताओं के खिलाफ चल रही ईडी वगैरह की कार्रवाई को भी एक कारण माना जा रहा है। प्रफुल्ल पटेल ने एक राष्ट्रीय दैनिक को बताया कि बगावत के दो प्रमुख कारण रहे। एक, शरद पवार स्वयं अतीत में बीजेपी की निकटता के हामी रहे हैं.. और दूसरे उनकी बेटी अब उनके सारे निर्णयों की केंद्र बन गई हैं और वे अपने फैसले को सब पर थोप रहे हैं। ईडी की कार्रवाई के बारे में उन्होंने कहा, एजेंसियों को मेरे खिलाफ कुछ मिला नहीं है। यों भी ईडी के मामलों से सामान्य कार्यकर्ता प्रभावित नहीं होता। उनकी दिलचस्पी तो अपने काम कराने में होती है।

Wednesday, July 5, 2023

विसंगतियों की शिकार विरोधी-एकता

राष्ट्रीय-राजनीति का परिदृश्य अचानक 2019 के लोकसभा-चुनाव के एक साल पहले जैसा हो गया है। मई, 2018 में कर्नाटक विधानसभा के चुनाव परिणामों की शुरुआती गहमागहमी के बाद कांग्रेस के समर्थन से एचडी कुमारस्वामी की सरकार बनी, जिसके शपथ-ग्रहण समारोह में विरोधी दलों के नेताओं ने हाथ से हाथ मिलाकर एकता का प्रदर्शन किया। एकता की बातें चुनाव के पहले तक चलती रहीं। 2014 के चुनाव के पहले भी ऐसा ही हुआ था। और अब गत 23 जून को पटना में हुई विरोधी-दलों की बैठक के बारे में कहा जा रहा है कि इससे भारतीय राजनीति का रूपांतरण हो जाएगा। (यह लेख पाञ्चजन्य में प्रकाशित होने के बाद महाराष्ट्र में राकांपा के अजित पवार एनडीए सरकार में शामिल हो गए हैं। इस परिघटना के दौरान एनसीपी के कुछ अंतर्विरोध भी सामने आए हैं। मसलन माना जा रहा है कि एनसीपी के ज्यादातर विधायक बीजेपी के साथ जाना चाहते थे और यह बात शरद पवार जानते थे। इतना ही नहीं शरद पवार ने भी 2019 के चुनाव के बाद बीजेपी के साथ सरकार बनाने का समर्थन किया था। महाराष्ट्र की इस गतिविधि के बाद अब कहा जा रहा है कि जदयू में भी विभाजन संभव है।)

बैठक के आयोजक नीतीश कुमार को भरोसा है कि वे बीजेपी को 100 सीटों के भीतर सीमित कर सकते हैं। केजरीवाल-प्रसंग पर ध्यान न दें, तो इस बैठक में शामिल ज्यादातर नेता इस बात से खुश थे कि शुरुआत अच्छी है। संभव है कि बंद कमरे में हुई बातचीत में गठजोड़ की विसंगतियों पर चर्चा हुई हो, पर बैठक के बाद हुई प्रेस-वार्ता में सवाल-जवाब नहीं हुए। तस्वीरें खिंचाने और बयान जारी करने के अलावा लिट्टी-चोखा, गुलाब जामुन, राहुल गांधी की दाढ़ी और शादी जैसे विषयों पर बातें हुईं। इसलिए अब 17-18 जुलाई को बेंगलुरु में होने वाली अगली बैठक का इंतजार करना होगा। 

केंद्र में या परिधि में?

पटना और बेंगलुरु, दोनों बैठकों का उद्देश्य एक है, पर इरादों के अंतर को समझने की जरूरत है। पटना-बैठक नीतीश कुमार की पहल पर हुई थी, पर बेंगलुरु का आयोजन कांग्रेसी होगा। दोनों बैठकों का निहितार्थ एक है। फैसला कांग्रेस को करना है कि वह गठबंधन के केंद्र में रहेगी या परिधि में। इस एकता में शामिल ज्यादातर पार्टियाँ कांग्रेस की कीमत पर आगे बढ़ी हैं, या कांग्रेस से निकली हैं। जैसे एनसीपी और तृणमूल। कांग्रेस का पुनरोदय इनमें से कुछ दलों को कमजोर करेगा। फिर यह किस एकता की बात है?

देश में दो राष्ट्रीय गठबंधन हैं। एक, एनडीए और दूसरा यूपीए। प्रश्न है, यूपीए यदि विरोधी-गठबंधन है, तो उसका ही विस्तार क्यों नहीं करें? गठबंधन को नया रूप देने या नाम बदलने का मतलब है, कांग्रेस के वर्चस्व को अस्वीकार करना। विरोधी दलों राय है कि लोकसभा चुनाव में अधिकाधिक संभव स्थानों पर बीजेपी के प्रत्याशियों के खिलाफ एक प्रत्याशी उतारा जाए। इसे लेकर उत्साहित होने के बावजूद ये दल जानते हैं कि इसके साथ कुछ जटिलताएं जुड़ी हैं। बड़ी संख्या में ऐसे चुनाव-क्षेत्र हैं, जहाँ विरोधी-दलों के बीच प्रतिस्पर्धा है। कुछ समय पहले खबरें थीं कि राहुल गांधी का सुझाव है कि सबसे पहले दिल्ली से बाहर तीन-चार दिन के लिए विरोधी दलों का चिंतन-शिविर लगना चाहिए, जिसमें खुलकर बातचीत हो। अनुमान लगाया जा सकता है कि विरोधी-एकता अभियान में कांग्रेस अपनी केंद्रीय-भूमिका पर ज़ोर देगी।

Thursday, June 22, 2023

विरोधी-एकता को लेकर पटना की बैठक के पहले उठते सवाल


अगले आम चुनाव की रणनीति बनाने के लिए 23 जून को पटना में विपक्षी पार्टियों की मीटिंग के लिए जारी तैयारियों के बीच खींचतान के भी संकेत मिल रहे हैं। यह खींचतान कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी से जुड़ी है। आम आदमी पार्टी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने एक चिट्ठी लिख कर कहा है कि मीटिंग में सबसे पहले 'दिल्ली अध्यादेश' पर बात होनी चाहिए। वहीं इस बैठक में ममता बनर्जी के भाषण पर सबका ध्यान रहेगा। इस बैठक में देश भर से 20 विपक्षी पार्टियों के शीर्ष नेता शामिल हो रहे हैं, जिसमें बीजेपी के ख़िलाफ़ एक साझा एक्शन प्लान पर बात होनी है। बीजू जनता दल, तेलुगु देसम, वाईएसआर कांग्रेस, अकाली दल जैसी कुछ पार्टियों ने इस एकता में दिलचस्पी नहीं दिखाई है।

यह बैठक भले ही बुलाई नीतीश कुमार ने है, पर उन्हें ममता बनर्जी ने प्रेरित किया है। विरोधी दलों की एकता पर सभी दलों की सिद्धांततः सहमति है, पर नीतीश कुमार, ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल और के चंद्रशेखर राव के दृष्टिकोण कुछ अलग हैं। चंद्रशेखर राव तो इस बैठक में शामिल ही नहीं हो रहे हैं। सब जानते हैं कि तेलंगाना में उनका मुकाबला कांग्रेस पार्टी से है।

Monday, June 5, 2023

विरोधी-एकता के असमंजस


आगामी 12 जून को पटना में प्रस्तावित विरोधी दलों की एकता-बैठक एक बार फिर से स्थगित हो गई है। हालांकि इसकी अगली तारीख तय नहीं है, पर संभावना है कि अब यह बैठक 23 जून को हो सकती है। इसका स्थान भी पटना के बजाय कहीं और हो सकता है। इसे शिमला में भी किया जा सकता है। कांग्रेस पहले से 23 जून की बात कह रही थी, पर जेडीयू ने 12 जून की घोषणा कर दी थी।

विरोधी-एकता की एक परीक्षा संसद के मॉनसून सत्र में होगी, जब दिल्ली की प्रशासनिक व्यवस्था से जुड़े अध्यादेश का स्थान लेने वाला विधेयक पेश किया जाएगा। बहरहाल 12 जून की बैठक में शामिल होने के लिए 16 पार्टियों ने सहमति दी थी, जिनमें आम आदमी पार्टी भी शामिल है। इस बैठक को लेकर नीतीश कुमार के अलावा अरविंद केजरीवाल, ममता बनर्जी, उद्धव ठाकरे, शरद पवार इसे लेकर काफी उत्साहित हैं।

हिंदी बेल्ट

ममता बनर्जी ने एक वीडियो जारी करके पटना आने और बैठक में शामिल होने का बयान भी दिया है। ममता बनर्जी ने कहा कि पटना में होने वाली विपक्ष की एकता की बैठक से हिंदी बेल्ट में बेहतर असर होगा। हालांकि ममता ने इस बात को खुलकर नहीं कहा है, पर जो बातें सामने आ रही हैं, उनसे संकेत मिलता है कि उन्होंने ही नीतीश कुमार को सलाह दी थी कि आप अपनी तरफ से पहल करें। 12 जून की बैठक उसी पहल का परिणाम थी। ममता बनर्जी सत्तर के दशक में जय प्रकाश नारायण की पहल का इस सिलसिले में उदाहरण देती हैं।

Wednesday, May 24, 2023

नया संसद भवन, विरोधी-एकता और उसके छिद्र


राष्ट्रीय स्तर पर देश के विरोधी दलों की एकता के नए कारण जुड़ते जा रहे हैं। दिल्ली की प्रशासनिक व्यवस्था के लिए जारी केंद्र सरकार के अध्यादेश का विरोध करने के लिए विरोधी एकता के लिए आमराय बन ही रही थी कि कांग्रेस समेत 19 पार्टियों ने संयुक्त बयान जारी कर नए संसद-भवन के 28 मई को होने वाले उद्घाटन समारोह का बहिष्कार करने की घोषणा की है।

28 मई को दोपहर 12 बजे पीएम मोदी नए संसद भवन का उद्घाटन करेंगे। इस पर कांग्रेस नेताओं और कई अन्य विपक्षी नेताओं का मानना है कि पीएम के बजाय राष्ट्रपति को उद्घाटन करना चाहिए। कांग्रेस का कहना है कि नए संसद भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति के हाथों ही होना चाहिए। मुर्मू द्वारा नए संसद भवन का उद्घाटन लोकतांत्रिक मूल्यों और संवैधानिक मर्यादा के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता का प्रतीक होगा। इस बीच सूत्रों ने मंगलवार को कहा कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ उद्घाटन के अवसर पर बधाई संदेश जारी कर सकते हैं।

19 पार्टियों ने अपने संयुक्त बयान में कहा है, "राष्ट्रपति मुर्मू को पूरी तरह से दरकिनार करते हुए, नए संसद भवन का उद्घाटन करने का प्रधानमंत्री मोदी का निर्णय न केवल एक गंभीर अपमान है, बल्कि हमारे लोकतंत्र पर सीधा हमला है, जो इसके अनुरूप प्रतिक्रिया की मांग करता है।" हाल के कुछ महीनों में विरोधी दलों की एकता से जुड़ने वाले दलों की संख्या बढ़ी जरूर है, पर इतनी नहीं बढ़ी है कि उसे किसी निर्णायक स्तर की एकता माना जाए। इस एकता में जो सबसे महत्वपूर्ण नाम उभर कर आया है, वह तृणमूल कांग्रेस का है, जो पिछले कुछ वर्षों में इस एकता के साथ लुका-छिपी खेल रही थी।

Tuesday, May 23, 2023

विरोधी-एकता की पहली परीक्षा: दिल्ली-अध्यादेश को कानून बनने से क्या रोक पाएंगे विरोधी दल?


कर्नाटक में बीजेपी को परास्त करने के बाद कांग्रेस पार्टी और दूसरे विरोधी दल भविष्य की रणनीति बना रहे हैं। इस सिलसिले में मुलाकातों का सिलसिला चल रहा है। कांग्रेस पार्टी ने कहा है कि शीघ्र ही बड़ी संख्या में गैर-बीजेपी दल इस विषय पर विमर्श के लिए एकसाथ मिलकर बैठेंगे। यह बात सोमवार को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी से मुलाकात के बाद कही गई।

कांग्रेस ने इस बात का संकेत भी किया है कि दिल्ली के प्रशासनिक नियंत्रण के लिए लाए गए अध्यादेश के स्थान पर जब संसद में विधेयक पेश होगा, तब पार्टी की दृष्टिकोण क्या होगा, इस विषय पर भी विरोधी दलों के नेताओं से बातचीत की जाएगी। अलबत्ता उसकी तरफ से यह भी कहा गया कि पार्टी ने अभी तक इस विषय पर कोई फैसला नहीं किया है। पार्टी के महासचिव केसी वेणुगोपाल ने सोमवार को इस आशय का ट्वीट किया। साथ ही बैठक के बाद उन्होंने संवाददाताओं को बताया कि इस सिलसिले में विरोधी दलों के नेताओं की बैठक के स्थान और तारीख की घोषणा एक-दो दिन में कर दी जाएगी।

नीतीश कुमार चाहते हैं कि यह बैठक पटना में हो, पर कांग्रेस के सूत्रों ने कहा कि दूसरे सभी नेताओं की सुविधा को देखते हुए फैसला किया जाएगा। कुछ नेता विदेश-यात्रा पर जाने वाले हैं। मसलन तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन सिंगापुर और जापान की नौ दिन की यात्रा पर जा रहे हैं। सोनिया गांधी भी विदेश जा रही हैं। स्टैनफर्ड विवि के एक कार्यक्रम में भाग लेने के लिए राहुल गांधी भी 28 मई को अमेरिका जा रहे हैं।

नीतीश कुमार ने कांग्रेस के नेताओं से मुलाकात करने के एक दिन पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से मुलाकात की थी। उन्होंने अध्यादेश प्रकरण पर केजरीवाल का समर्थन किया था। नीतीश कुमार ने इस बात पर जोर दिया था कि सभी दलों को एकसाथ मिलकर संविधान के बदलने की केंद्र सरकार की कोशिश का विरोध करना चाहिए। नीतीश के साथ जेडीयू के अध्यक्ष ललन सिंह भी थे। बिहार के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव इस बैठक में शामिल नहीं हो पाए, क्योंकि वे अस्वस्थ थे।

Monday, May 15, 2023

कांग्रेस की परीक्षा अब शुरू होगी


कर्नाटक के चुनाव परिणामों को तीन नज़रियों से देखने की ज़रूरत है। एक, कांग्रेस की विजय, बीजेपी की पराजय और राष्ट्रीय-राजनीति पर इन दोनों बातों का असर। कांग्रेस के ज्यादातर नेता मानते हैं कि कांग्रेस की यह जीत राहुल गांधी की भारत-जोड़ो यात्रा का सुपरिणाम है। कांग्रेस ने साबित किया है कि बीजेपी अपराजेय नहीं है। और यह भी कि कांग्रेस ने चुनाव में सफल होने का फॉर्मूला खोज लिया है, जो भविष्य के चुनावों में काम आएगा। खासतौर से 2024 में।

हालांकि बीजेपी की तरफ से कोई ऐसी प्रतिक्रिया नहीं आई है, जिससे हार के कारणों पर रोशनी पड़ती हो, पर यह बात समझ में आती है हिंदुत्व के उसके फॉर्मूले की सीमा दिखाई पड़ने लगी है। जहाँ तक राष्ट्रीय राजनीति का प्रश्न है कांग्रेस की इस विजय का विरोधी-दलों की एकता पर क्या असर पड़ेगा, उसे देखने के लिए कुछ समय इंतज़ार करना होगा। कांग्रेस का यह दावा फिलहाल मजबूत हुआ है कि राष्ट्रीय स्तर पर विरोधी गठबंधन का नेतृत्व राहुल गांधी के नेतृत्व में होना चाहिए। क्या इसे बड़े कद वाले क्षेत्रीय-क्षत्रप स्वीकार करेंगे? इस प्रश्न का जवाब अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के ठीक पहले ही मिलेगा।

इस जीत के बाद कांग्रेस का जैकारा सुनाई पड़ा है कि यह राहुल गांधी की जीत है। उनकी भारत-जोड़ो यात्रा की विजय है। यह बात मल्लिकार्जुन खड़गे से लेकर सिद्धरमैया तक ने कही है। ध्यान से देखें तो यह स्थानीय राजनीति और उसके नेतृत्व की विजय है। राज्य के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे का पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर होना महत्वपूर्ण साबित हुआ, पर कांग्रेस की जीत के पीछे राष्ट्रीय नेतृत्व की भूमिका सीमित है। खड़गे को भी कन्नाडिगा के रूप में देखा गया। वे राज्य के वोटरों से कन्नड़ भाषा में संवाद करते हैं।

Thursday, March 30, 2023

सोमवार को चेन्नई में दिखाई पड़ेगी विरोधी दलों की एकता

साभार सतीश आचार्य का पुराना कार्टून

कर्नाटक विधानसभा के चुनाव की घोषणा होने और राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता जाने के साथ विरोधी दलों की एकता के प्रयासों में फिर से तेजी आ गई है। सोमवार 3 अप्रेल को तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने 16 विरोधी दलों की बैठक बुलाई है। जिन दलों को निमंत्रण दिया गया है, उनमें बीजू जनता दल और वाईएसआर कांग्रेस भी शामिल है। वे आएंगे या नहीं इसे लेकर कयास हैं। ये दोनों दल अभी तक विरोधी दलों के किसी भी गठबंधन में शामिल होने से बचते रहे हैं।

वाईएसआर कांग्रेस ने गुरुवार को कहा भी है कि हमें बुलाया नहीं गया है और हम शामिल भी नहीं होंगे। बीजद ने भी बैठक में भाग लेने के बारे में कुछ भी नहीं कहा है। अलबत्ता इस सम्मेलन के आयोजनकर्ताओं का कहना है कि बीजद के राज्यसभा मुख्य सचेतक सस्मित पात्रा बैठक में शामिल होंगे। विरोधी दलों के नेता यह भी मानते हैं कि ये दोनों दल एनडीए के करीब रहते हैं। इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार जब सस्मित पात्रा से संपर्क किया गया, तो उन्होंने कहा कि मैं कह नहीं सकता कि बीजद इस बैठक में शामिल होगा या नहीं। मेरे पास इसमें हिस्सा लेने के बारे में कोई जानकारी नहीं है।

एकता के सूत्र

बहरहाल बैठक के आयोजकों के अनुसार डीएमके की इस बैठक में शामिल होने के लिए कांग्रेस, जेएमएम, राजद, जेडीयू, तृणमूल कांग्रेस, सपा, वाईएसआरसीपी, बीजद, नेकां, बीआरएस, कम्युनिस्ट पार्टी, माकपा, राकांपा, आम आदमी पार्टी, आईयूएमएल, एमडीएमके को आमंत्रित किया गया है। अब पहली बार मोदी विरोध के नाम पर ही सही कम से कम 14 या 15 दल अब एक साथ बैठने को तैयार नज़र आ रहे हैं।

Friday, March 3, 2023

विरोधी-एकता या अनेकता की आहट


कांग्रेस के रायपुर महाधिवेशन और पूर्वोत्तर के तीन राज्यों से मिले चुनाव-परिणामों से आगामी लोकसभा चुनाव से जुड़ी कुछ संभावित प्रवृत्तियों के दर्शन होने लगे हैं। खासतौर से विरोधी दलों की एकता और कांग्रेस की रणनीति स्पष्ट हो रही है। राहुल गांधी की भारत-जोड़ो यात्राके बाद कांग्रेस का उत्साह बढ़ा है, पर इस उत्साह का लाभ चुनावी राजनीति में फिलहाल मिलता दिखाई नहीं पड़ रहा है। सबसे बड़ी बात है कि विरोधी-दलों की एकता के रास्ते में उसी किस्म की बाधाएं दिखाई पड़ रही हैं, जो पिछले कई दशकों में देखी गई हैं।

तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी ने कहा है कि बीजेपी, कांग्रेस और सीपीएम के बीच लेन-देन का रिश्ता कायम हो गया है और आने वाले दिनों में हम इनके राजनीतिक नाटक का पटाक्षेप करेंगे। 2024 के चुनाव में तृणमूल और जनता का सीधा गठबंधन होगा और हम किसी पार्टी के साथ गठबंधन नहीं करेंगे। जनता के समर्थन से हम अकेले लड़ेंगे।

ममता बनर्जी के बयान से यह नहीं मान लेना चाहिए कि भविष्य में वे किसी गठबंधन में शामिल नहीं होंगी। राजनीति में किसी भी वक्त कुछ भी संभव है और चुनाव-24 का असली गठबंधन चुनाव के ठीक पहले ही होगा। दूसरे भारत की राजनीति में अब पोस्ट-पोल गठबंधनों का मतलब ज्यादा होता है। फिर भी कांग्रेस और तृणमूल के बीच बढ़ती बदमज़गी की अनदेखी भी नहीं की जा सकती है।

पूर्वोत्तर के चुनाव

तीन राज्यों के चुनाव पर नज़र डालें, तो साफ दिखाई पड़ता है कि कांग्रेस ने अपनी बची-खुची ज़मीन भी खो दी है। चुनाव के पहले मेघालय में कांग्रेस के भीतर हुई बगावत का परिणाम सामने है। ममता बनर्जी का कहना है कि उनकी पार्टी ने इस राज्य में केवल छह महीने पहले ही प्रवेश किया था, फिर भी उसे 13.78 फीसदी वोट मिले, जो कांग्रेस के 13.14प्रतिशत के करीब बराबर ही हैं। दोनों पार्टियों को पाँच-पाँच सीटें मिली हैं। 2018 के चुनाव में यहाँ से कांग्रेस को 21 सीटें मिली थीं और उसे 28.5 प्रतिशत वोट मिले थे। इन 21 में से 12 विधायकों ने हाल में कांग्रेस को छोड़कर तृणमूल का दामन थाम लिया था।

Thursday, February 23, 2023

विरोधी-एकता और कांग्रेस का वैचारिक-मंथन



कांग्रेस पार्टी के महासचिव केसी वेणुगोपाल ने माना है कि कांग्रेस अकेले मोदी सरकार को नहीं हरा सकती। रायपुर में 24 फरवरी से होने वाले कांग्रेस के महाधिवेशन के सिलसिले में पिछले सोमवार को संवाददाताओं से बात करते हुए उन्होंने कहा कि भाजपा के विरोध में पड़ने वाले वोटों को बिखरने से रोकने के लिए विपक्षी दलों की एकजुटता बहुत जरूरी है। इससे आगे जाकर वे यह नहीं बता पाए कि यह एकता किस तरीके से संभव होगी और कांग्रेस की भूमिका इसमें क्या होगी।

वेणुगोपाल के इस बयान के साथ पार्टी के एक और महासचिव जयराम रमेश के बयान को भी पढ़ें, तो स्पष्ट होता है कि पार्टी विरोधी-एकता को महत्वपूर्ण मानती है। साथ में यह भी कहती है कि राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी का सामना करने की सामर्थ्य केवल कांग्रेस के पास ही है। दूसरी तरफ क्षेत्रीय दलों की राय है कि बीजेपी का उभार कांग्रेस को कमज़ोर करके हुआ है, क्षेत्रीय दलों की कीमत पर नहीं। उनका वैचारिक-मुकाबला बीजेपी से है, पर अस्तित्व रक्षा का प्रश्न कांग्रेस के सामने है। कांग्रेस अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए विरोधी-एकता चाहती है। 

विरोधी एकता को लेकर इस विमर्श की शुरुआत पिछले हफ्ते पटना में हुए भाकपा माले की रैली से हुई, जिसमें बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विपक्षी दलों की एकजुटता के लिए कांग्रेस को जल्द से जल्द पहल करने की बात कही थी। नीतीश ने रैली में मौजूद कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद को संकेत करते हुए कहा कि कांग्रेस हमारी बात माने, तो 2024 में बीजेपी को 100 से भी कम सीटों पर रोका जा सकता है। नीतीश कुमार के बयान से स्पष्ट नहीं है कि उनके पास कौन सा फॉर्मूला है, पर ज़ाहिर है कि वे उस महागठबंधन के हवाले से बात कर रहे हैं, जो बिहार में 2015 के विधानसभा चुनाव में बनाया गया था और कमोबेश आज उसी गठबंधन की बिहार में सरकार है।

Tuesday, February 21, 2023

संगठन, नेतृत्व और गठबंधन: रायपुर महाधिवेशन में होंगे कांग्रेस के सामने तीन बड़े विषय


आगामी 24 से 26 फरवरी तक छत्तीसगढ़ के रायपुर में होने वाला 85वाँ कांग्रेस महाधिवेशन बेहद महत्वपूर्ण होने वाला है। 2024 के चुनाव के पहले की सबसे बड़ी संगठनात्मक गतिविधि है। इस साल के अंत में छत्तीसगढ़ विधानसभा के चुनाव भी होने वाले हैं। कांग्रेस पार्टी की इस समय छत्तीसगढ़, राजस्थान और हिमाचल प्रदेश में सरकार है। छत्तीसगढ़ के अलावा इस साल राजस्थान में भी चुनाव होने वाले हैं। इसमें नीचे से ऊपर तक का समूचा पार्टी-नेतृत्व एक जगह पर बैठकर महत्वपूर्ण मसलों पर विचार करेगा।

कांग्रेस महासमिति का महाधिवेशन हरेक तीन साल बाद होता है। मल्लिकार्जुन खड़गे की अध्यक्षता में यह पहला अधिवेशन है। महाधिवेशन में राजनीतिक, आर्थिक, अंतरराष्ट्रीय संबंध, कृषि, सामाजिक न्याय, शिक्षा और रोजगार से जुड़े विषयों पर प्रस्ताव पास किए जाएंगे। पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी को अलावा प्रदेश कांग्रेस समितियों के पदाधिकारी, उनके सदस्य और अन्य कार्यकर्ता शामिल होंगे, जिनकी संख्या करीब 4,000 होगी। अन्य अतिथियों तथा मीडिया-प्रतिनिधियों को जोड़कर करीब 14-15 हजार व्यक्ति इस अधिवेशन में उपस्थित रहेंगे।

माना जा रहा है कि अधिवेशन में खासतौर से तीन बड़े विषयों पर विचार होगा और फैसले किए जाएंगे। इनमें सबसे पहला विषय है संगठनात्मक सुधार। अधिवेशन में नई कार्यसमिति का गठन भी होना है, क्योंकि मल्लिकार्जुन खड़गे के चुनाव के बाद से एक अस्थायी संचालन-समिति काम कर रही है। इसकी शुरुआत कार्यसमिति के गठन से तो होगी ही, साथ ही गठन की प्रक्रिया पर विचार भी होगा। यानी कि उसके सदस्यों का चयन चुनाव के आधार पर हो या अध्यक्ष द्वारा मनोनयन की व्यवस्था को जारी रखा जाए।

Thursday, January 19, 2023

विरोधी-एकता का एक और मोर्चा


तेलंगाना में सत्तारूढ़ तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) अब भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) है। गत बुधवार को तेलंगाना के खम्मम में हुई बीआरएस प्रमुख के चंद्रशेखर राव की रैली कई वजह से चर्चा में है। केसीआर ने राष्ट्रीय शक्ति के रूप में उभरने के अपने लक्ष्य के तहत पड़ोसी राज्य आंध्र प्रदेश में महत्वपूर्ण चुनावी उपस्थिति बनाने के लिए इसके सीमावर्ती शहर खम्मम को चुना। बीआरएस, तत्कालीन तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) 2018 में संयुक्त खम्मम जिले की 10 में से केवल एक विधानसभा सीट ही जीत सकी। बाद में कांग्रेस के छह और तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) के दो विधायक बीआरएस में शामिल हो गए थे। चंद्रशेखर राव यहां अपना आधार बनाना चाहते हैं, ताकि पड़ोसी आंध्र प्रदेश में उनके कदम मजबूत करने में मदद देगा। साथ ही उनकी महत्वाकांक्षा राष्ट्रीय नेता बनने की भी है। दिल्ली के चैनलों पर आप आजकल तेलंगाना से जुड़े पेड कार्यक्रम देख रहे होंगे।

बुधवार को खम्मम में हुई रैली में के चंद्रशेखर राव के अलावा पिनाराई विजयन, अरविंद केजरीवाल, भगवंत, अखिलेश यादव और कम्युनिस्ट पार्टी के डी राजा शामिल हुए। एक तरह से 2024 के चुनाव के पहले विरोधी एकता का यह एक प्रयास है। रैली में समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो अखिलेश यादव ने कहा कि मोदी सरकार अब जाने वाली है। अब उसके पास केवल 399 दिन बचे हैं। अखिलेश ने बीजेपी पर विरोधी दलों को परेशान करने और किसानों के साथ छल करने का आरोप लगाया।

उन्होंने यह भी कहा कि बीआरएस अध्यक्ष के चंद्रशेखर राव ने खम्मम की इस ऐतिहासिक धरती पर इतनी भारी भीड़ इकट्ठी की है और पूरे देश को एक संदेश दिया है। उत्तर प्रदेश की जनता द्वारा भी अंततः सत्तारूढ़ भाजपा को खारिज किए जाने का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, ‘आज हम इतनी बड़ी संख्या में एकत्र हुए हैं। इस सभा के सामने, मैं कह सकता हूं कि अगर तेलंगाना में भाजपा को खारिज किया जा रहा है, तो उत्तर प्रदेश भी पीछे नहीं रहेगा।’

के चंद्रशेखर राव ने देश की जनता को आगाह किया कि हमें धार्मिक उन्माद से बचना होगा। देश भर में सभी सेक्युलर ताकतों को मिलकर भाजपा को सत्ता से हटाना होगा। बीआरएस के सत्ता में आने पर देशभर के किसानों को फ्री बिजली दिया जाएगा। प्रत्येक घर में शुद्ध पेय जल सुविधा दी जाएगी। इसके बाद देश में रायतुबंधु योजना लागू किया जाएगा। इस योजना के तहत प्रत्येक किसान को दस हजार रुपए प्रति एकड़ प्रति वर्ष फ्री सहायता राशि दी जाएगी। केंद्र में सत्ता परिवर्तन होने पर अग्निपथ भर्ती योजना को समाप्त कर दिया जाएगा। साथ ही देश में प्रत्येक वर्ष पच्चीस लाख परिवारों को दलित बंधु सुविधा दी जाएगी। इस योजना में दलित युवा को दस लाख रुपए स्वरोजगार के लिए दिया जाएगा। कोई राशि सरकार को लौटानी नहीं होगी।

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि पहली बार कई मुख्यमंत्री इकट्ठा होकर काम कर रहे हैं, हम सब एक साथ बैठकर राजनीति की बातें नहीं करते हैं बल्कि देश में किसानों और मजदूरों के हालत को बेहतर बनाने पर विचार करते हैं। अगले वर्ष सभी को मिलकर भाजपा को उखाड़ फेंकना है। केजरीवाल ने कहा कि तेलंगाना के राज्यपाल यहां के मुख्यमंत्री केसीआर को तंग करते हैं, पंजाब के राज्यपाल भी मुख्यमंत्री भगवंत मान को तंग करते हैं, दिल्ली के एलजी मुझे तंग करते हैं, तमिलनाडु के राज्यपाल मुख्यमंत्री को तंग करते हैं, ये सभी राज्यपाल तंग नहीं कर रहे हैं, मोदी साहब तंग कर रहे हैं।

जिस देश का प्रधानमंत्री दिनभर यह सोचे कि किसे तंग करना है तो देश तरक्की कैसे करेगा। प्रधानमंत्री सोचते हैं कि कहां सीबीआई भेजनी है और कहां ईडी भेजना है, किस पार्टी का विधायक खरीदना है। इससे देश तरक्की नहीं कर सकता है। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने कहा कि भाजपा जुमला पार्टी है। दो करोड़ रोजगार का वादा, महंगाई हटाने का वादा, किसान की आय दोगुना करने का वादा जुमला साबित हुआ है।

केरल के मुख्यमंत्री पिनरायी विजयन ने कहा कि केन्द्र की भाजपा सरकार राज्य के अंतर्गत आने वाले विषयों पर भी बिना राज्य सरकार से सलाह लिए कानून में परिवर्तन कर रही है। अब केन्द्र सरकार ही कानून व्यवस्था, कृषि और बिजली जैसे राज्य सरकार के विषयों पर बिना राज्य सरकार की सलाह लिए कानून बना रही है। यह संघीय ढांचे पर सीधा प्रहार है। राज्य सरकार के विधायी शक्ति को छीना जा रहा है। अब समय आ गया है कि हम सभी एकजुट होकर केन्द्र के इस रवैये का विरोध करें।

Sunday, January 8, 2023

विरोधी दलों को कितना जोड़ पाए राहुल?


राहुल गांधी की भारत-जोड़ो यात्रा का दूसरा चरण शुरू हो गया है। अब यात्रा का काफी छोटा हिस्सा शेष रह गया है, जिसमें उत्तर प्रदेश की सीमा को तो वे छूकर ही चले गए हैं। यूपी से ज्यादा समय वे हरियाणा और पंजाब को दे रहे हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव के नगाड़े बजने लगे हैं। राहुल गांधी की यह यात्रा प्रकारांतर से लोकसभा-अभियान की शुरुआत है। उधर अमित शाह पूर्वोत्तर में चुनाव-अभियान शुरू कर चुके हैं। यह अभियान त्रिपुरा, मेघालय और नगालैंड को लेकर है, जहाँ अगले महीने चुनाव हैं। इसके बाद नवंबर में मिजोरम में चुनाव होंगे। पूर्वोत्तर में एक जमाने में बीजेपी का नामोनिशान नहीं था, पर अब वह उसका गढ़ बन गया है। अभी दोनों, तीनों तरफ के पत्ते फेंटे जा रहे हैं। राजनीति का पर्दा धीरे-धीरे खुलेगा।

तीन सवाल

कुल मिलाकर राष्ट्रीय राजनीति के तीन सवाल उभर कर आ रहे हैं। भारत-जोड़ो यात्रा से कांग्रेस ने क्या हासिल किया? दूसरा सवाल है कि क्या विरोधी दल इसबार एक मोर्चा बनाकर बीजेपी का मुकाबला करेंगे? तीसरा सवाल है कि बीजेपी की रणनीति उपरोक्त दोनों सवालों के बरक्स क्या है? राहुल गांधी की यात्रा के उद्देश्य और निहितार्थ भी अब उतने महत्वपूर्ण नहीं रहे, जितना महत्वपूर्ण यह सवाल है कि कांग्रेस की रणनीति अब क्या होने वाली है? यात्रा का दूसरा चरण शुरू करने के पहले राहुल गांधी ने शनिवार 31 दिसंबर को दिल्ली में जो प्रेस कांफ्रेंस की, उससे कुछ संकेत मिलते हैं। इससे पता लग सकता है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस किस रणनीति के साथ उतरने वाली है। इस रणनीति में दूसरे विरोधी दलों के साथ कांग्रेस का समन्वय किस प्रकार से होगा और इस एकता का आधार क्या होगा?

विरोधी एकता

राहुल गांधी ने विरोधी दलों की एकता से जुड़ी तीन महत्वपूर्ण बातों को रेखांकित करने का प्रयास किया। उन्होंने कहा एक, विपक्ष के तमाम नेता कांग्रेस से वैचारिक तौर पर जुड़े हैं। दो, ये अपने प्रभाव वाले राज्यों में क्षेत्रीय स्तर पर बीजेपी को चुनौती जरूर दे सकते हैं, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी के लिए वैचारिक चुनौती कांग्रेस ही खड़ी कर सकती है। तीन, यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी कांग्रेस की ही है कि विरोधी दल न केवल आरामदेह महसूस करें बल्कि उन्हें उचित सम्मान मिले। इसमें तीसरा बिंदु सबसे महत्वपूर्ण है। राहुल गांधी ने खासतौर से समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव के एक बयान के संदर्भ में कहा कि उनकी विचारधारा उत्तर प्रदेश तक सीमित है, जबकि हम राष्ट्रीय विचारधारा के साथ हैं। यह बात गले से उतरती नहीं है। यह माना जा सकता है कि समाजवादी पार्टी की रणनीति उत्तर प्रदेश केंद्रित है, पर वैचारिक आधार पर वह भी राष्ट्रीय होने का दावा कर सकती है। केंद्र में जब जनता पार्टी की सरकार बनी थी, वह इसी विचारधारा से जुड़ी थी। प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने यात्रा में शामिल न होने के अखिलेश यादव और मायावती के फैसले को तूल न देते हुए बताया कि वे यात्रा में शामिल हों या न हों, विपक्ष की राजनीति में उनका अहम स्थान है। इसके बाद उन्होंने उत्तर प्रदेश के नेताओं को पत्र भी लिखा। वे भले ही यात्रा में शामिल नहीं हुए, पर मान लेते हैं कि राहुल गांधी ने अपने व्यवहार से उन्हें खुश किया होगा।