भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने आज 7 नवंबर को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से अपने पीएसएलवी-सी49 प्रक्षेपण यान की सहायता से 10 उपग्रहों को कक्षा में स्थापित किया। इनमें भारत का नवीनतम भू-पर्यवेक्षण उपग्रह ईओएस-01 और नौ विदेशी उपग्रह शामिल हैं। इन्हें प्रक्षेपण के बाद सफलतापूर्वक कक्षा में स्थापित कर दिया गया।
इस साल 23 मार्च को राष्ट्रव्यापी कोरोनावायरस लॉकडाउन शुरू होने के बाद से यह राष्ट्रीय अंतरिक्ष एजेंसी का पहला प्रक्षेपण है। लॉन्च 26 घंटे की उलटी गिनती के बाद दोपहर 3.12 बजे हुआ। उड़ान मार्ग में मलबा आने के कारण प्रक्षेपण में 10 मिनट की देरी हुई।
दोपहर 3.28 बजे
इसरो ने ट्वीट किया कि पीएसएलवी के चौथे चरण ने अब अपना 51 वां लॉन्च पूरा कर लिया
है। इसके चौथे चरण से उपग्रह सफलतापूर्वक अलग हो गया और इसे ग्रह के चारों ओर
कक्षा में इंजेक्ट किया गया। इसरो के अनुसार ईओएश-01 कृषि, वानिकी और आपदा प्रबंधन सहायता में इस्तेमाल
होने वाला एक पृथ्वी का पर्यवेक्षण करने वाला उपग्रह है। इस प्रक्षेपण में जो
विदेशी उपग्रह शामिल थे, उनमें लिथुआनिया का एक, और लक्ज़ेम्बर्ग और अमेरिका के क्रमशः चार-चार उपग्रह शामिल
हैं।
इसके पहले पिछले
साल 11 दिसंबर को इसरो ने इसी प्रकार के ईओएस-01 उपग्रह का प्रक्षेपण किया था। उसके
बाद इस साल जनवरी में इसरो ने संचार उपग्रह जीसैट-30 का प्रक्षेपण किया। वह
प्रक्षेपण यूरोपियन स्पेस एजेंसी के रॉकेट एरियान से फ्रेंच गिनी स्थित प्रक्षेपण
केंद्र से किया गया था। इसरो ने वित्तवर्ष 2020-21 में 20 उपग्रहों के प्रक्षेपण
की योजना बनाई थी। इनमें सूर्य का अध्ययन करने वाला आदित्य-एल1 जैसे महत्वाकांक्षी
कार्यक्रम और मानव रहित गगनयान के प्रक्षेपण की योजना भी थी। गगनयान का यह
प्रक्षेपण देश के पहले समानव गगनयान प्रक्षेपण के पहले का प्रायोगिक कार्यक्रम है।
जितने प्रक्षेपणों
की योजना इस साल थी उनमें से आधे अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट यानी कि पृथ्वी का
पर्यवेक्षण करने वाले उपग्रह हैं, जैसा उपग्रह आज छोड़ा गया है। ईओएस-01 वस्तुतः रेडार
इमेजिंग सैटेलाइट रिसैट हैं। यह उपग्रह रिसैट-2बी और रिसैट 2बीआर1 के साथ मिलकर
काम करेगा, जिनका प्रक्षेपण पिछले साल किया गया था। तीन उपग्रहों का यह मंडल किसी
भी मौसम में अंतरिक्ष से पृथ्वी की हाई रिजॉल्यूशन तस्वीरें भेज सकता है।
ऑप्टिकल इमेजिंग की तुलना में रेडार इमेजिंग की विशेषता यह
होती है कि इन चित्रों पर विपरीत मौसम, कोहरे, बादलों या रोशनी की कमी का असर नहीं
होता। किसी भी परिस्थिति में ये चित्र उच्चस्तरीय होते हैं। रेडार की इलेक्ट्रोमैग्नेटिक
रेडिएशन वेवलेंग्थ के सहारे धरती के विभिन्न क्षेत्रों की साफ तस्वीरें हासिल की
जा सकती हैं। उदाहरण के लिए लो वेवलेंग्थ सिग्नल घने पेड़ों और वनस्पतियों की तस्वीरें
निकाल सकते हैं, जबकि हायर वेवलेंग्थ सिग्नल उन घने पेड़ों के नीचे छिपे धरातल की
ऊँचाई और गहराई की तस्वीर भेज सकते है।
इन उपग्रहों का इस्तेमाल खेती, वानिकी और आपदा प्रबंधन के
अलावा सैनिक इस्तेमाल के लिए भी होता है। भारत ने इसरायल से एक्स बैंड रेडार हासिल
करके अप्रेल 2009 में रिसैट-2 उपग्रह का प्रक्षेपण किया था। उसके बाद रिसैट-1 का
प्रक्षेपण 2012 में किया गया था। ऐसा इसलिए किया गया, क्योंकि नवंबर 2008 में
मुम्बई पर हुए हमले के बाद राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए उसकी जरूरत महसूस की गई थी और
इसरायली रेडार के साथ वह उपग्रह पहले छोड़ा गया। अब भारत इस प्रकार के उपग्रहों की
पूरी सीरीज तैयार कर रहा है।
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