Thursday, May 15, 2025

अमेरिकी कोशिशों का स्वागत है, मध्यस्थता का नहीं


दक्षिण एशिया का दुर्भाग्य है कि जिस समय दुनिया के देश, जिनमें भारत भी शामिल है, डॉनल्ड ट्रंप की आक्रामक आर्थिक-नीतियों के बरक्स अपनी नीतियों के निर्धारण में लगे हैं, हमें लड़ाई में जूझना पड़ रहा है. 

इस लड़ाई की पृष्ठभूमि को हमें दो परिघटनाओं से साथ जोड़कर देखना और समझना चाहिए. एक, शनिवार के युद्धविराम की घोषणा भारत या पाकिस्तान के किसी नेता ने नहीं की, बल्कि डॉनल्ड ट्रंप ने की. दूसरे हाल में भारत और ब्रिटेन के बीच मुक्त-व्यापार समझौता हुआ है, जिसकी तरफ किसी ने ध्यान नहीं दिया.  

इसके अलावा हाल के दिनों की भू-राजनीति में महत्वपूर्ण नए मोड़ आए हैं, जिनका भारत पर भी असर पड़ेगा. खबरों के मुताबिक तुर्की और चीन ने पाकिस्तान का एकतरफा समर्थन किया है. 

पाकिस्तान ने आतंकवाद को एक अघोषित नीति के रूप में इस्तेमाल किया है. दूसरी तरफ यह साबित करते हुए कि आतंकवादी हमले की स्थिति में हम पाकिस्तान में घुसकर कार्रवाई कर सकते हैं, मोदी सरकार ने प्रभावी रूप से एक नए सुरक्षा सिद्धांत की घोषणा की है. पाकिस्तान को निर्दोष लोगों की हत्या करने और आतंकवाद को बढ़ावा देने की अनुमति नहीं दी जाएगी. 

ट्रंप की घोषणा

ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर घोषणा की कि भारत और पाकिस्तान ‘पूर्ण और तत्काल संघर्ष विराम’ पर सहमत हो गए हैं. ट्रंप ने अपनी आदत के अनुरूप या शायद जल्दबाज़ी में ऐसा किया. वे साबित करना चाहते हैं कि लड़ाइयों को रोकना उन्हें आता है. 

Wednesday, May 14, 2025

ऑफेंसिव डिफेंस यानी ‘गोली की जवाब गोला’


'ऑपरेशन सिंदूर' के तहत तीन दिन चली लड़ाई के पहले दिन ही भारतीय सेना का लक्ष्य पूरा हो गया था, जब 21 में से नौ ठिकानों पर ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ करके सौ से ज्यादा आतंकियों को मार गिराया गया. 

भारतीय सफलताओं की कहानियाँ सामने आती जाएँगी, पर रविवार की शाम हमारे डीजीएमओ (डायरेक्टर जनरल मिलिट्री ऑपरेशंस) और तीनों सेनाओं के अधिकारियों ने सप्रमाण जो विवरण पेश किए हैं, उन्हें देखते हुए हम आश्वस्त हो सकते हैं कि भविष्य में कोई भी गलत हरकत करने के पहले दस बार सोचेगा. 

ऑपरेशन जारी है

भारत की दिलचस्पी लंबी लड़ाई में थी ही नहीं और पाकिस्तान में लड़ने की कुव्वत नहीं थी. ऐसे में लड़ाई का रुकना सकारात्मक गतिविधि है, पर इसका मतलब यह नहीं है कि अब हम कोई कार्रवाई करेंगे ही नहीं. रविवार को भारतीय वायुसेना ने स्पष्ट कर दिया कि हमारा ऑपरेशन खत्म नहीं हुआ है. 

डीजीएमओ लेफ्टिनेंट जनरल राजीव घई ने बताया कि युद्धविराम के बाद पाकिस्तानी सेना ने कुछ ही घंटों में उसका उल्लंघन शुरू कर दिया था. इसके बाद शनिवार रात और रविवार सुबह तक पश्चिमी सीमा के विस्तार में ड्रोन घुसपैठ हुई. 

Monday, May 12, 2025

आतंकवाद की ‘नाभि’ पर प्रहार का प्रारंभ


'ऑपरेशन सिंदूर' के तहत तीन दिन चली लड़ाई के दीर्घकालीन निहितार्थ बाद में समझे जाएँगे, पहली बात यह है कि लंबे अरसे बाद दोनों देशों में आज 12 मई को बात होगी। भले ही यह बात डायरेक्टर जनरल मिलिट्री ऑपरेशंस के लेवल पर है, इसलिए वह फौजी-गतिविधियों पर केंद्रित होगी। हो सकता है कि इसके भीतर से कोई महत्वपूर्ण सूत्र निकल आए। 

भारत ने अपनी सैनिक-कार्रवाई के जिन उद्देश्यों को शुरू में घोषित किया था, वे काफी हद तक हासिल हो चुके हैं। पाकिस्तान के रक्षा-इंफ्रास्ट्रक्चर का जो नुकसान हुआ है, उसकी जानकारी रविवार को सेना के वरिष्ठ अधिकारियों ने अपनी ब्रीफिंग में दी है। फिलहाल हमें पहलगाम के उन छह या आठ हत्यारों को पाताल से भी खोजकर लाना चाहिए, जो ‘आतंकवाद की नाभि’ में बैठे हैं। उस नाभि पर यह पहला वार है।

10 मई की शाम युद्धविराम की घोषणा होने के बाद देर रात तक संशय बना रहा कि लड़ाई रुकी भी है या नहीं। आखिरकार रुकी। इससे पाकिस्तानी सत्ता-प्रतिष्ठान के भीतर की दरारें दिखाई पड़ रही हैं। यकीनन पाकिस्तान के साथ रिश्तों में बहुत सावधानी बरतने की ज़रूरत है और हम सावधान हैं। 

Saturday, May 10, 2025

लड़ाई रुक गई, पर इससे पाकिस्तान की आंतरिक राजनीति पर गहरा असर होगा


भारत ने 7 मई को नौ स्थानों पर हमले करने के बाद स्पष्ट कर दिया था कि हमारा इरादा और किसी जगह पर हमला करने का नहीं है। हमारा उद्देश्य केवल आतंकी गतिविधियों का संचालन करने वालों को सजा देना है। आज भारत ने उन पाँच बड़े आतंकवादियों की सूची जारी की, जो 'ऑपरेशन सिंदूर' के दौरान मारे गए। पाकिस्तानी सेना ने इस बात को स्वीकार नहीं किया और जवाबी हमले शुरू कर दिए। भारतीय सेना लगातार कह रही थी कि हम अब पाकिस्तानी सेना की कार्रवाई का उसी जगह और उसी गति से जवाब देंगे। आज भारत ने यह बात भी सिद्धांततः घोषित कर दी कि भविष्य में किसी भी आतंकी कार्रवाई को हम  भारत के खिलाफ युद्ध की घोषणा मानेंगे। पाकिस्तानी सेना को लगता था कि जवाब नहीं देंगे, तो नाक कटेगी। अंततः उन्होंने नाक कटवा कर युद्धविराम को स्वीकार कर लिया। 

भारत ने कहा है कि पाकिस्तान के साथ अब केवल युद्धविराम की प्रक्रिया से जुड़े मसलों पर ही बात होगी। शेष किसी भी विषय पर वार्ता नहीं होगी। सबसे बड़ा सवाल सिंधु जल-संधि से जुड़ा है। मुझे लगता है कि भारत अब भारत इस संधि की शर्तों में बदलाव पर जो़र देगा। बहरहाल देखना होगा कि 'ऑपरेशन सिंदूर'  के तहत तीन दिन चली लड़ाई का पाकिस्तानी राजनीति पर क्या असर होगा। उससे भी बड़ा सवाल जनरल आसिम मुनीर के भविष्य का है। लगता है कि पाकिस्तान की सेना के भीतर उनका विरोध हो रहा है।  

विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने शनिवार शाम को पुष्टि की कि पाकिस्तान द्वारा भारत से संपर्क करने के बाद भारत अमेरिका की मध्यस्थता में युद्ध विराम पर सहमत हो गया है। इससे पहले, अमेरिकी राष्ट्रपति  डॉनल्ड ट्रंप ने शनिवार को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'ट्रुथ सोशल' पर एक पोस्ट में कहा, अमेरिका की मध्यस्थता में हुई एक लंबी बातचीत के बाद, मुझे यह घोषणा करते हुए ख़ुशी हो रही है कि भारत और पाकिस्तान ने पूर्ण और तत्काल सीज़फ़ायर पर सहमति जताई है। 

इसके कुछ ही देर बाद भारत के विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने एक संक्षिप्त बयान जारी कर संघर्ष-विराम पर सहमति की जानकारी दी। अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रूबियो ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट कर कहा कि भारत और पाकिस्तान व्यापक मुद्दों पर बातचीत शुरू करने पर राज़ी हो गए हैं। उन्होंने लिखा, “मुझे ये बताते हुए खुशी हो रही है कि भारत और पाकिस्तान तत्काल सीज़फ़ायर करने और एक निष्पक्ष स्थान पर व्यापक मुद्दों पर बातचीत करने के लिए सहमत हो गए हैं। इसके बाद भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने इस विषय पर विस्तृत जानकारी दी। इस ब्रीफिंग में कर्नल सोफिया कुरैशी ने इस दौरान पाकिस्तान के दुष्प्रचार को गलत बताया। 

Friday, May 9, 2025

पकिस्तान ने नागरिक उड़ानों को ढाल बनाया


भारत ने शुक्रवार को कहा कि पाकिस्तान ने 36 स्थानों पर ड्रोन से घुसपैठ की कोशिश की है। विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने सरकारी ब्रीफिंग के दौरान कहा, "300-400 ड्रोन के झुंड ने लेह से सर क्रीक तक भारतीय ठिकानों को निशाना बनाया।" विदेश सचिव मिस्री, कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह ने भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ने के एक दिन बाद मीडिया को संबोधित किया, जिसमें पाकिस्तान ने गुरुवार को तड़के उत्तरी और पश्चिमी सेक्टरों में 15 भारतीय सैन्य प्रतिष्ठानों को निशाना बनाकर मिसाइलों और ड्रोनों से हमला किया।

भारत ने पाकिस्तान के हमले के प्रयास को कैसे विफल किया, इस पर विस्तार से बताते हुए सेना ने कहा: "हमारे सशस्त्र बलों ने गतिज (काइनेटिक) और गैर-गतिज (नॉन-काइनेटिक) साधनों का उपयोग करके कई पाकिस्तानी ड्रोनों को मार गिराया... एक पाकिस्तानी सशस्त्र मानव रहित हवाई वाहन को बठिंडा सैन्य स्टेशन को निशाना बनाने के लिए भेजा गया। इस प्रयास को विफल कर दिया गया।

कर्नल सोफिया कुरैशी ने कहा कि प्रारंभिक जांच में पाकिस्तान सेना द्वारा किए गए हमलों में तुर्की के ड्रोन का मलबा मिला है। उन्होंने यह भी बताया कि पाकिस्तान नागरिक उड़ानों का इस्तेमाल ढाल की तरह कर रहा है। यह ब्रीफिंग गुरुवार रात को भारत द्वारा पाकिस्तान के ड्रोन हमलों को फिर से विफल करने के बाद आई। उन्होंने  बताया, पाकिस्तान ने 7 मई को रात 8.30 बजे बिना उकसावे के ड्रोन और मिसाइल हमला करने के बावजूद अपना नागरिक हवाई क्षेत्र बंद नहीं किया। पाकिस्तान नागरिक विमानों को ढाल के रूप में इस्तेमाल कर रहा है, यह अच्छी तरह से जानते हुए कि भारत पर उसके हमले से भारत को त्वरित हवाई रक्षा प्रतिक्रिया मिलेगी। यह भारत और पाकिस्तान के बीच अंतर्राष्ट्रीय सीमा के पास उड़ान भरने वाले अंतरराष्ट्रीय विमानों सहित नागरिक विमानों के लिए सुरक्षित नहीं है।"

Thursday, May 8, 2025

भारत ने लाहौर की एयर-डिफेंस प्रणाली को ध्वस्त किया


ऐसा समझा जा रहा था कि 6-7 मई की रात में भारत ने पाकिस्तान के नौ आतंकी केंद्रों पर जो कार्रवाई की थी, उससे सबक लेकर पाकिस्तान ऐसा कोई काम नहीं करेगा, जिससे झगड़ा बढ़े, पर ऐसा हुआ नहीं और उसने 7-8 मई की रात भारत के कुछ शहरों पर मिसाइलों से हमले किए। भारतीय सेनाएँ इसका सामना करने के लिए भी तैयार थीं और उन्होंने इन हमलों को न सिर्फ नाकाम किया, बल्कि 8 मई को सुबह से लेकर शाम तक जवाबी हमले किए। इससे दोनों देशों के बीच लड़ाई बढ़ने का खतरा पैदा हो गया है। भारत ने  आज उसी तरह उसी क्षेत्र में और उसी तेजी से जवाब दिया है। इसमें सबसे उल्लेखनीय है लाहौर में चीनी वायु रक्षा प्रणाली एचक्यू-9 को निष्प्रभावी बनाना। 

आज सुबह भारतीय सशस्त्र बलों ने पाकिस्तान में कई स्थानों पर एयर डिफेंस रेडार और सिस्टम को निशाना बनाया। माना जा रहा है कि भारतीय वायुसेना के पास मौजूद इसराइल के नवीनतम हैरॉप लॉइटरिंग म्यूनिशंस का इस्तेमाल भारत ने पाकिस्तानी सैन्य ठिकानों पर हमला करने के लिए किया गया है। ये यूएवी निर्धारित लक्ष्य के करीब हवा में मंडराते रहते हैं और निर्देशित किए जाने पर खुद को नष्ट करके हमला कर सकते हैं। पाकिस्तान के आईएसपीआर ने भी दावा किया है कि भारत ने हैरॉप का इस्तेमाल किया गया है।

ऑपरेशन सिंदूर पर 7 मई को प्रेस ब्रीफिंग के दौरान, भारत ने अपनी प्रतिक्रिया को केंद्रित, संयत और गैर भड़काऊ बताया था। इसमें पाकिस्तानी सैन्य प्रतिष्ठानों को निशाना नहीं बनाने का खासतौर से उल्लेख किया गया था। साथ में यह भी कह दिया था कि भारत में सैन्य ठिकानों पर हमले करने की कोशिश की गई, तो फिर उसका उचित उत्तर दिया जाएगा।

ऑपरेशन सिंदूर पर एक विशेष ब्रीफिंग के दौरान विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने आज कहा, पहलगाम हमला पहला एस्केलेशन था। उन्होंने पाकिस्तान के इस सुझाव की भी असलियत को सबके सामने रखा कि पहलगाम मामले की निष्पक्ष अंतरराष्ट्रीय जाँच  कराई जाए। उन्होंने कहा कि 26/11 और 2016 के पठानकोट हमलों के मामलों में हमने  पाकिस्तान के साथ सहयोग करने का सुझाव दिया था, पर पाकिस्तान ने कोई सहयोग नहीं दिया। विदेश सचिव विक्रम मिस्री, कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह ने उस दिन फिर से मीडिया को संबोधित किया, जिस दिन भारत ने लाहौर में एक वायु रक्षा प्रणाली को बेअसर कर दिया। 

ये जानकारियाँ तेजी से हो रहे घटनाक्रमों के बाद आई हैं, जब भारत ने ओटीटी प्लेटफार्मों, मीडिया स्ट्रीमिंग प्लेटफार्मों और भारत में संचालित बिचौलियों से पाकिस्तान से आने वाली वेब-सीरीज, फिल्म, गाने, पॉडकास्ट और अन्य स्ट्रीमिंग मीडिया सामग्री को बंद करने के लिए कहा था। इससे पहले दिन में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने चेतावनी दी थी कि जो लोग भारत के धैर्य की परीक्षा लेने की कोशिश कर रहे हैं, उन्हें ऑपरेशन सिंदूर के संदर्भ में कल की तरह 'गुणवत्तापूर्ण कार्रवाई' का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए। 

पाकिस्तान ने 7-8 मई की रात ड्रोन और मिसाइलों द्वारा अवंतीपुरा, श्रीनगर, जम्मू, पठानकोट, अमृतसर, कपूरथला, जालंधर, लुधियाना, आदमपुर, भटिंडा, चंडीगढ़, नल, फलोदी, उत्तरलाई और भुज सहित उत्तरी और पश्चिमी भारत में कई सैन्य ठिकानों पर हमला करने का प्रयास किया। भारतीय मीडिया में दिनभर अमृतसर के पास के एक गाँव में खेत से मिले एक मिसाइल के अवशेषों की खबर छाई रही। बहरहाल इन हमलों को भारत के एकीकृत काउंटर यूएएस ग्रिड और वायु रक्षा प्रणालियों ने बेअसर कर दिया। इन हमलों के बाद कई स्थानों से बरामद मिसाइलों के मलबे पाकिस्तानी हमलों की पुष्टि करते हैं।

Wednesday, May 7, 2025

पाकिस्तान ने अब भी समझदारी नहीं दिखाई, तो तबाह हो जाएगा


भारत के इस तीसरे ‘सर्जिकल-स्ट्राइक’ का सबूत कोई नहीं माँगेगा, क्योंकि इसे पाकिस्तान ने खुद स्वीकार किया है. इसबार की स्ट्राइक का लेवल 2016 और 2019 के मुकाबले ज्यादा बड़ा है, जिसकी उम्मीद थी. अब ज्यादा बड़ा सवाल है कि बात कितनी बढ़ेगी? 

कार्रवाई क्या यहीं तक सीमित रहेगी, या आगे बढ़ेगी? बहुत कुछ पाकिस्तानी प्रतिक्रिया पर निर्भर करेगा. सोशल मीडिया पर पाकिस्तानी रक्षामंत्री ख्वाजा आसिफ की एक बात तैर रही है कि भारत यदि और हमले न करे, तो हम भी जवाबी हमला न करने पर विचार कर सकते हैं, पर इस बात की कोई पुष्टि नहीं हुई है. 

प्रेस ब्रीफिंग

‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बारे में विदेश सचिव विक्रम मिस्री के साथ सेना की ओर से कर्नल सोफिया कुरैशी और वायुसेना की ओर से स्क्वॉड्रन लीडर व्योमिका सिंह ने ऑपरेशन की जानकारी दी. प्रेस कॉन्फ्रेंस से पहले एयर स्ट्राइक का दो मिनट का वीडियो प्ले किया गया. इसके साथ ही आज के ऑपरेशन से जुड़े वीडियो प्रमाण भी दिखाए गे. 

विक्रम मिस्री ने इसे आतंक के खिलाफ नपी-तुली कार्रवाई बताया. उन्होंने कहा, पहलगाम में हुए आतंकी हमले की जिम्मेदारी टीआरएफ ने ली है. इस संगठन के बारे में हमने पहले भी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को जानकारी दी थी. सुरक्षा परिषद के वक्तव्य से इस संगठन के नाम को हटाए जाने पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए. 

उन्होंने कहा कि हमलावरों की पहचान भी हुई है. हमारी इंटेलिजेंस ने हमले में शामिल लोगों से जुड़ी जानकारी जुटा ली है. इस हमले का कनेक्शन पाकिस्तान से है.

ऑपरेशन सिंदूर

ऑपरेशन सिंदूर के लक्ष्यों के बारे में केंद्र सरकार द्वारा साझा की गई जानकारी के अनुसार, निम्नलिखित स्थानों पर हमला किया गया: 

सियालकोट में सरजाल कैंप-मार्च 2025 में चार जम्मू-कश्मीर पुलिस कर्मियों की हत्या करने वाले आतंकवादियों ने इसी कैंप में प्रशिक्षण प्राप्त किया था। सियालकोट-पठानकोट वायुसेना बेस कैंप पर हमले की योजना इसी आतंकवादी शिविर में बनाई गई थी और उसे अंजाम दिया गया था।

मुरीद्के में मरकज तैयबा कैंप-2008 के मुंबई आतंकी हमलों में भाग लेने वाले आतंकवादियों को यहीं प्रशिक्षण दिया गया था। अजमल कसाब और डेविड हेडली ने यहीं प्रशिक्षण प्राप्त किया था। 

बहावलपुर में मरकज़ सुभानअल्लाह-यह जैश-ए-मुहम्मद का मुख्यालय है। यहाँ भर्ती, प्रशिक्षण और विचारधारा का प्रचार-प्रसार किया जाता था।

ज़ीरो टॉलरेंस

भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, दुनिया को आतंकवाद के प्रति जीरो टॉलरेंस दिखाना चाहिए. सूत्रों के मुताबिक, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरी रात ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर लगातार नज़र रखी. 

भारत ने इसके माध्यम से संदेश दिया है कि आतंकवादी गतिविधियाँ जारी रहीं, तो हमारी ओर से कार्रवाइयों की कठोरता बढ़ती जाएगी. भारत ने इसबार जो भी कार्रवाई की है, उसे काफी होमवर्क के साथ तैयार किया है, जिसमें प्लान ‘बी’ और ‘सी’ जैसे विचार शामिल हैं. 

पाकिस्तान को समझना चाहिए कि उसका खेल खत्म हो रहा है. भारत की कार्रवाइयाँ तब तक जारी रहेंगी, जब तक हालात किसी निर्णायक मुकाम तक नहीं पहुँचेंगे. खूंरेज़ी और पड़ोस के रिश्ते साथ-साथ नहीं चलेंगे. 

भारत को उकसाया

इसबार की कार्रवाई की तीव्रता बहुत कठोर होने के बजाय कम भी हो सकती थी, पर पाकिस्तानी नेतृत्व ने भड़काऊ बातें करके भारत को उकसाया और एटम बम का इस्तेमाल करने की धमकी तक दे डाली. 

पाकिस्तान के नेतृत्व ने समझदारी का परिचय दिया होता, तो सिंधु जल-संधि के स्थगित होने की नौबत नहीं आती. पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष जनरल आसिम मुनीर को प्रवासी पाकिस्तानियों की सभा में ज़हरीली बातें करने की कोई ज़रूरत नहीं थी. 

ऑपरेशन का नाम रखने और सर्जिकल स्ट्राइक के ठिकानों को तय करने में भारत ने बहुत सावधानी बरती है और उसे पहलगाम हमले पर केंद्रित रखा है. सेना ने पाकिस्तान के किसी भी आधिकारिक सैनिक ठिकाने पर हमला नहीं बोला है, बल्कि जैशे मुहम्मद, लश्करे तैयबा और हिज़्बुल मुज़ाहिदीन के कैंपों को निशाना बनाया है, जो दहशतगर्दी के अड्डे हैं. 

यह अभियान ‘फोकस्ड और सटीक’ था. हमारे पास पहलगाम हमले में पाकिस्तान स्थित आतंकवादियों की संलिप्तता की ओर इशारा करने वाले विश्वसनीय सुराग और सबूत हैं. सटीक हमलों के बाद, भारत ने विश्व के कई देशों से संपर्क किया और वरिष्ठ अधिकारियों को पाकिस्तान के खिलाफ अपनी आतंकवाद विरोधी कार्रवाइयों के बारे में जानकारी दी. 

इन हमलों में नागरिकों को या दूसरे प्रतिष्ठानों को कोई नुकसान नहीं पहुँचा है. अभी तक सेना ने सीमा पार नहीं की है, बल्कि अपनी सीमा के भीतर रहते हुए गाइडेड मिसाइलों, प्रिसीशन बमों और लॉइटरिंग म्यूनिशंस की मदद से हमला किया है. इसका उद्देश्य कार्रवाई को सीमित दायरे में रखना है.   

पाकिस्तान इस समय सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य है, जिससे उसकी जिम्मेदारी बढ़ती है. वह जुलाई में एक महीने के लिए परिषद की अध्यक्षता भी उसे मिलेगी. इसका मतलब यह नहीं है कि वह जो चाहे कर लेगा. 

सबूत चाहिए

पाकिस्तान ने भारत से पहलगाम से जुड़े सबूत पेश करने को और इस प्रकरण की निष्पक्ष जाँच करने को कहा है. वस्तुतः सबूत उसे पेश करने हैं कि जिस टीआरएफ ने पहलगाम हिंसा की जिम्मेदारी ली है, उसका लश्करे तैयबा के साथ कोई रिश्ता नहीं है. और यह भी साबित करना है कि लश्कर के अलावा जैशे मुहम्मद और हिज़्बुल मुज़ाहिदीन के कैंप नहीं हैं. 

पहलगाम की हिंसा के फौरन बाद लश्करे तैयबा के पिट्ठू संगठन रेज़िस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) ने उसकी ज़िम्मेदारी खुद ली थी. पाकिस्तानी नेतृत्व को जब इस बात की गंभीरता का पता लगा, तो उन्होंने कहना शुरू किया कि यह भारत का ‘फॉल्स फ्लैग ऑपरेशन’ है. 

पाकिस्तान की ओर से इस किस्म का बयान आने के अगले ही दिन टीआरएफ ने अपनी बात वापस ले ली और कहा कि हमारे सोशल मीडिया हैंडल को किसी ने हैक कर लिया था. 

राजनयिक खेल

इसके बाद पाकिस्तान ने चीन की सहायता से 25 अप्रैल को सुरक्षा परिषद का बयान जारी करवाया, जिसमें पहलगाम के आतंकवादी हमले की ‘कड़े शब्दों में’ निंदा ज़रूर थी, पर (टीआरएफ) का नाम नहीं लिया, जिसने हमले की जिम्मेदारी ली थी. 

सुरक्षा परिषद ने इस संगठन का नाम नहीं लिया, तो लश्कर-ए-तैयबा के साथ उसके संबंधों का उल्लेख भी नहीं हुआ, जो संरा द्वारा नामित आतंकवादी संगठन है. उसने भारत सरकार के साथ सहयोग की बात भी नहीं की, जैसा कि अतीत में होता रहा है. गैर-मुसलमानों को निशाना बनाए जाने का उल्लेख भी नहीं. 

सुरक्षा परिषद ने पहलगाम के बाद की परिस्थिति पर सोमवार 5 मई को बंद कमरे में विचार-विमर्श किया, जिसमें बढ़ते तनाव पर चर्चा की गई. इस बैठक का आग्रह पाकिस्तान ने ही किया था, पर इसका कोई लाभ उसे नहीं नहीं मिला. 

कठोर सवाल

प्रेस ट्रस्ट की रिपोर्ट के अनुसार बैठक में राजदूतों ने दोनों देशों से तनाव कम करने का आह्वान किया और पाकिस्तान के सामने कुछ ‘कठोर सवाल’ रखे. क्या थे ‘कठोर सवाल’? पहला सवाल यही है कि पहलगाम की हिंसा के पीछे कौन है? 

इस बैठक का अनुरोध पाकिस्तान ने किया था. सुरक्षा परिषद ने बैठक के बाद कोई बयान जारी नहीं किया, लेकिन पाकिस्तान ने दावा किया कि उसके अपने उद्देश्य ‘काफी हद तक पूरे हो गए’.

बंद कमरे में हुई यूएनएससी की बैठक उनके सामान्य बैठने के कमरे में नहीं हुई, बल्कि उसके बगल में बने परामर्श कक्ष में हुई. इससे इस बैठक की अनौपचारिकता ही साबित होती है. कहा जा सकता है कि स्थिति का अंतरराष्ट्रीयकरण करने की पाकिस्तान की कोशिशें सफल नहीं हुईं. 

अगस्त 2019 में जब भारत ने अनुच्छेद 370 को निरस्त किया था, तब भी पाकिस्तान ने चीन की सहायता से सुरक्षा परिषद की बैठक बुलाने का प्रयास किया था. तब भी इसी किस्म की अनौपचारिक बैठक हुई थी और परिषद ने तब भी कोई बयान जारी नहीं किया था.

आर्थिक-दबाव

यह मामला केवल सैनिक (काइनेटिक) कार्रवाई तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि राजनयिक और राजनीतिक-कार्रवाइयाँ भी इसमें शामिल हैं. वैश्विक रेटिंग एजेंसी मूडीज़ ने कहा है कि लड़ाई से पाकिस्तान की आर्थिक गतिविधियों पर जैसा विपरीत प्रभाव पड़ेगा, वैसा भारत की अर्थव्यवस्था पर नहीं पड़ेगा. 

पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था पहले से डगमगा रही है, जिसे थामना अब और मुश्किल होगा. उसे चीन का समर्थन हासिल है, पर उसे आर्थिक सहायता के लिए विश्व बैंक और आईएमएफ के पास ही जाना होता है, जिनकी चाभी अमेरिका के पास है.  

आवाज़ द वॉयस में प्रकाशित




वैश्विक-मंच पर होगी कश्मीर की लड़ाई


पहलगाम-हमले ने एक तरफ कश्मीर की मूल समस्या की ओर हमारा ध्यान खींचा है, वहीं वैश्विक-दृष्टिकोण को भी समझने का मौका दिया है. कौन हमारा साथ देगा, अमेरिका या ब्रिटेन? यूरोप क्या सोचता है या रूसी नज़रिया क्या है वगैरह.  

आतंकवादियों के हमले का जवाब देने के अलावा वैश्विक राजनीति को अपने पक्ष में लाने का प्रयास भी भारत को करना है. साथ ही कश्मीर को लेकर अपने दृष्टिकोण को वैश्विक-मंच पर ज्यादा दृढ़ता से उठाना होगा. 

सवाल केवल प्रतिशोध का नहीं है, बल्कि दीर्घकालीन रणनीति पर चलने का है. एक बड़ा सवाल चीन की भूमिका को लेकर भी है. लड़ाई हुई, तो शायद चीन सीधे उसमें शामिल नहीं होगा, पर परोक्षतः वह पाकिस्तान का साथ देगा. खासतौर से सुरक्षा परिषद की गतिविधियों में. 

वैश्विक-उलझाव

भारत के विभाजन की सबसे बड़ी अनसुलझी समस्या है, कश्मीर. शीतयुद्ध और राजनीतिक गणित के कारण यह मसला उलझा रहा. भारत का नेतृत्व इस समय संज़ीदगी से बर्ताव कर रहा है, वहीं पाकिस्तानी नेतृत्व बदहवास है और एटमी धमकी दे रहा है. 

हमारा विदेश मंत्रालय सुरक्षा परिषद के स्थायी और अस्थायी सदस्यों सहित दुनिया के सभी प्रमुख देशों से संपर्क कर रहा है. सुरक्षा परिषद ने सोमवार 5 मई को बंद कमरे में विचार-विमर्श किया, जिसमें बढ़ते तनाव पर चर्चा की गई. 

प्रेस ट्रस्ट की रिपोर्ट के अनुसार बैठक में राजदूतों ने दोनों देशों से तनाव कम करने का आह्वान किया और पाकिस्तान के सामने ‘कठोर सवाल’ रखे. इस बैठक का अनुरोध पाकिस्तान ने किया था. सुरक्षा परिषद ने बैठक के बाद कोई बयान जारी नहीं किया, लेकिन पाकिस्तान ने दावा किया कि उसके अपने उद्देश्य ‘काफी हद तक पूरे हो गए’.

Monday, May 5, 2025

अमेरिका और ब्रिटेन ने उलझाया कश्मीर का सवाल

पहलगाम पर हुए आतंकी हमले ने कश्मीर की मूल समस्या की ओर हमारा ध्यान फिर से खींचा है। भारत के विभाजन की यह सबसे बड़ी देन है, जिसके कारण दक्षिण एशिया अशांत है और आज दुनिया के सबसे पिछड़े इलाकों में उसका शुमार होता है। प्रश्न है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद इस समस्या का समाधान करने में विफल क्यों रही? 

समस्या का जन्म

अविभाजित भारत में 562 देशी रजवाड़े थे। कश्मीर भी अंग्रेजी राज के अधीन था, पर उसकी स्थिति एक प्रत्यक्ष उपनिवेश जैसी थी और 15 अगस्त 1947 को वह भी स्वतंत्र हो गया। जम्मू-कश्मीर महाराजा हरिसिंह के नेतृत्व में देशी रियासत थी। देशी रजवाड़ों के सामने विकल्प था कि वे भारत को चुनें या पाकिस्तान को। देश को जिस भारत अधिनियम के तहत स्वतंत्रता मिली थी, उसकी मंशा थी कि कोई भी रियासत स्वतंत्र देश के रूप में न रहे। बहरहाल कश्मीर राज के मन में असमंजस था।

इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट 1947 के तहत 15 अगस्त 1947 को जम्मू कश्मीर पर भी अंग्रेज सरकार का आधिपत्य (सुज़रेंटी) समाप्त हो गया। महाराजा के मन में संशय था कि भारत में शामिल हुए, तो राज्य की बहुसंख्यक मुस्लिम आबादी को यह बात पसंद नहीं आएगी और पाकिस्तान में विलय करेंगे, तो हिंदू और सिख नागरिकों को दिक्कत होगी। 

स्टैंडस्टिल समझौता

पाकिस्तान ने कश्मीर के महाराजा को कई तरह से मनाने का प्रयास किया कि वे पकिस्तान में विलय को स्वीकार कर लें। स्वतंत्रता के ठीक पहले जुलाई 1947 में मोहम्मद अली जिन्ना ने महाराजा को पत्र लिखकर कहा कि उन्हें हर तरह की सुविधा दी जाएगी। महाराजा ने भारत और पाकिस्तान के साथ ‘स्टैंडस्टिल समझौते’ की पेशकश की। यानी यथास्थिति बनी रहे। भारत ने इस पेशकश पर कोई फैसला नहीं किया, पर पाकिस्तान ने ‘स्टैंडस्टिल समझौता’ कर लिया। 

Saturday, May 3, 2025

वक़्फ़ कानून का राजनीतिक-माइलेज और अदालती सुनवाई

भारत सरकार की ओर से जवाब मिल जाने के बाद अब 5 मई को सुप्रीम कोर्ट में वक़्फ़ कानून से जुड़ी याचिकाओं पर फिर से सुनवाई होगी। इसके पहले सुप्रीम कोर्ट ने लगातार वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली नई याचिकाओं पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार और केवी विश्वनाथन की पीठ 5 मई को पाँच याचिकाओं पर सुनवाई करेगी। 

इससे पहले कोर्ट ने कहा था कि 70 से ज्यादा याचिकाओं में से केवल पाँच पर सुनवाई होगी। गत 2 मई को फिर कहा कि इस मुद्दे पर कोई और नई याचिका पर विचार नहीं किया जाएगा। मुख्य न्यायाधीश ने याचिकाकर्ता मोहम्मद सुल्तान के वकील से कहा, 'यदि आपके पास कुछ अतिरिक्त आधार हैं, तो आप हस्तक्षेप आवेदन दायर कर सकते हैं।' इससे पहले 29 अप्रैल को पीठ ने अधिनियम की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली 13 याचिकाओं पर विचार करने से इनकार कर दिया था।

पीठ ने कहा, 'हम अब याचिकाओं की संख्या नहीं बढ़ाने जा रहे हैं। यह बढ़ती रहेंगी और इन्हें संभालना मुश्किल हो जाएगा।' 17 अप्रैल को पीठ ने अपने समक्ष प्रस्तुत याचिकाओं में से केवल पाँच पर सुनवाई करने का फैसला किया और मामले का टाइटल रखा 'वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 के संबंध में।'

तब केंद्र ने पीठ को आश्वासन दिया कि वह 5 मई तक 'वक्फ के यूजर्स सहित वक्फ संपत्तियों को न तो गैर-अधिसूचित करेगा और न ही केंद्रीय वक्फ परिषद और बोर्डों में कोई नियुक्ति करेगा। कानून के खिलाफ 72 याचिकाएँ दायर की गईं। इनमें एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी), जमीयत उलमा-ए-हिंद, द्रविड़ मुनेत्र कषगम (डीएमके) और कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी और मोहम्मद जावेद की याचिकाएं शामिल थीं। तीन वकीलों को नोडल वकील नियुक्त करते हुए पीठ ने वकीलों से कहा कि वे आपस में तय करें कि कौन बहस करने जा रहा है। पीठ ने कहा, 'हम स्पष्ट करते हैं कि अगली सुनवाई (5 मई) प्रारंभिक आपत्तियों और अंतरिम आदेश के लिए होगी।'

Friday, May 2, 2025

मानसिक-युद्धों के दौर में खामोशी भी हथियार है



पुलवामा हमला 14 फरवरी को हुआ था और भारत ने बालाकोट पर हमला उसके 12 दिन बाद 26 फरवरी को किया। इसबार कार्रवाई क्या और कब होगी, इसे लेकर अटकलें हैं। ऐसी कार्रवाई किसी भी वक्त हो सकती है, पर ज़रूरी नहीं कि बहुत जल्दी हो। रक्षा-प्रतिष्ठान समय और उसके तरीके पर काफी सोच-विचारकर ही फैसला करेगा। कार्रवाई के संभावित परिणामों पर भी विचार करने की जरूरत होती है। 

हमारा सत्ता-प्रतिष्ठान किसी किस्म की बदहवासी व्यक्त नहीं कर रहा है, जैसी पाकिस्तान से दिखाई और सुनाई पड़ रही है। पिछले कुछ वर्षों में युद्ध के दो नए पक्ष और जुड़े हैं। एक है साइबर-युद्ध और दूसरा हाइब्रिड-युद्ध। दोनों एक-दूसरे के साथ मिलकर काम करते हैं। 12 नवंबर, 2021 को हैदराबाद में सरदार वल्लभभाई पटेल राष्ट्रीय पुलिस अकादमी में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने 'नागरिक समाज को युद्ध का नया मोर्चा' कहा था। उनके इस बयान पर काफी हंगामा हुआ। 

वस्तुतः अजित डोभाल ने चेतावनी दी थी कि युद्ध की अवधारणा बदल रही है। ‘राष्ट्रहित को नुकसान पहुँचाने के लिए सिविल सोसाइटी को भ्रष्ट किया जा सकता है, अधीन बनाया जा सकता है, बाँटा जा सकता है, उसे अपने फायदे में इस्तेमाल किया जा सकता है।’ इस बयान से यह अर्थ नहीं निकलता कि समूची सिविल-सोसायटी दुश्मन है। ‘सिविल-सोसायटी मोर्चा है’ कहने का तात्पर्य है कि उसकी आड़ ली जा सकती है। युद्ध के नए हथियार के रूप में सिविल-सोसायटी का इस्तेमाल भी किया जा सकता है।  

जम्मू-कश्मीर को ‘पूर्ण-राज्य’ बनाने में देरी


जम्मू-कश्मीर में हालात काफी हद तक सामान्य हो रहे थे कि पहलगाम पर हमला हो गया, जिसके पीछे इरादा यह भी रहा होगा कि राज्य में स्थितियाँ सामान्य होती नज़र नहीं आएँ। हालांकि इस हमले से राज्य के नागरिकों का मनोबल टूटा नहीं है, पर लगता है कि इससे पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने में कुछ विलंब होगा। 

हमले से कुछ हफ़्ते पहले ही जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मुलाक़ात के बाद जम्मू-कश्मीर के राज्य का दर्जा बहाल होने को लेकर उम्मीद जताई थी। उस समय उन्होंने कहा था, हमें लगता है कि सही समय आ गया है, विधानसभा चुनाव हुए छह महीने बीत चुके हैं। शाह यहाँ आए थे, मैंने उनसे अलग से मुलाक़ात की, जो अच्छी रही... मुझे अब भी उम्मीद है कि जम्मू-कश्मीर को जल्द ही अपना राज्य का दर्जा वापस मिल जाएगा।

Wednesday, April 30, 2025

पाकिस्तान के खिलाफ ‘कठोर-कार्रवाई’ की तैयारी


पहलगाम-हमले के बाद पाकिस्तान को सबसे अच्छा जवाब यही होगा कि हम कश्मीर में शांति और सुरक्षा का माहौल बनाकर रखें. दुनिया का अनुभव है कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई लंबी चलती है. सवाल है कि इस आतंकी हमले की योजना क्यों बनाई गई और यही समय क्यों चुना गया?

फिलहाल कश्मीर में सबसे बड़ी ज़रूरत वहाँ के निवासियों का भरोसा जीतने की और पाकिस्तानी हरकतों का जवाब देने की है. सीमा पार से एटम बम दागने की धमकियाँ दी जा रही हैं. हमें ऐसी रणनीति बनानी होगी, जो कम से कम जोखिम उठाकर पाकिस्तान को ज्यादा से ज्यादा बड़ी सज़ा दे सके. 

हालात जिस मोड़ पर आ गए हैं, उसमें भारत को कार्रवाई करनी ही होगी.  पानी रोकने के अलावा हमारे पास आतंकी केंद्रों पर हमले का विकल्प भी है. सरकार के एक शीर्ष सूत्र ने दिल्ली के एक राष्ट्रीय दैनिक से कहा है कि सैनिक कार्रवाई होगी. हम तैयार हैं और हमले के तरीके पर चर्चा कर रहे हैं. 

सवाल है कि क्या हमारी सेना एलओसी पार करके पीओके में प्रवेश कर सकती है? क्या नौसेना कराची बंदरगाह की नाकेबंदी करेगी? एलओसी पर गोलाबारी रोकने को लेकर 2021 में जो समझौता हुआ था, वह भी अब टूटता हुआ लग रहा है. 

सबसे बड़ा खतरा बैक-चैनल संपर्क टूटने का है. इसे टूटना नहीं चाहिए और उन्मादी बयानों से बचना भी चाहिए. 

Thursday, April 24, 2025

पहलगाम का पहला सबक, पाकिस्तान को कड़वी दवाई


पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद यह स्पष्ट है कि भारत ने अब पाकिस्तान को करारा जवाब देने का फैसला कर लिया है. यह जवाब भविष्य में सैनिक-कार्रवाइयों के रूप में भी हो सकता है, पर इसकी शुरुआत राजनयिक रिश्तों को न्यूनतम स्तर पर पहुँचाते हुए हुई है. सेना को हाई अलर्ट कर दिया गया है. 

पीएम मोदी की अध्यक्षता में बुधवार की शाम हुई सीसीएस की बैठक में कुछ बड़े फैसले हुए हैं. विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने इन फैसलों की जानकारी देते हुए कहा कि 1960 की सिंधु जल संधि को तत्काल प्रभाव से स्थगित तब तक रखा जाएगा, जब तक पाकिस्तान सीमा पार आतंकवाद के लिए अपने समर्थन को त्याग नहीं देता. 

सीमा पार सभी तरह की आवाजाही के लिए अटारी चेक पोस्ट को भी बंद कर दिया है और पाकिस्तानी नागरिकों के लिए सार्क वीजा यात्रा विशेषाधिकारों को निलंबित कर दिया है. सार्क ढांचे के तहत भारत में मौजूद पाकिस्तानी नागरिकों को देश छोड़ने के लिए 48 घंटे का समय दिया गया है. 

भारत-अमेरिका ‘न्यूक्लियर-डील’ से ‘होल्टैक-डील’ तक


वैश्विक व्यापार-युद्ध के बीच भारत और अमेरिका के रिश्तों को लेकर कई तरह के किंतु-परंतु इन दिनों हवा में हैं. ये रिश्ते केवल आर्थिक सतह पर ही नहीं हैं, बल्कि सामरिक और तकनीकी-सहयोग, तथा राजनय और वैश्विक राजनीति की सतह पर भी हैं. 

इन संपर्कों-संबंधों के समानांतर भारत-रूस, भारत-चीन, भारत-ईयू औऱ भारत तथा पश्चिम एशिया के देशों के रिश्ते भी हैं. बहरहाल 2008 का सिविल न्यूक्लियर-डील याददाश्त से मिटता जा रहा था कि हाल में हाल में स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टरों (एसएमआर) को लेकर हुई गतिविधि ने कई बातें एकदम ताज़ा कर दी हैं. 

लग यह भी रहा है कि भारत और अमेरिका के बीच व्यापार का प्रारंभिक समझौता अगले कुछ महीनों में हो जाएगा, पर उसके नाभिकीय ऊर्जा के क्षेत्र में हुई गतिविधि ने लहरें पैदा की हैं.

Wednesday, April 16, 2025

तहव्वुर राणा नहीं, ‘मास्टरमाइंड’ है पाकिस्तानी सेना


तहव्वुर राणा के प्रत्यर्पण के बाद भारत में उसपर मुकदमा चलाने की तैयारियाँ शुरू हो गई हैं, पर अब जो काम है, वह उसे सज़ा दिलाने तक सीमित नहीं है, बल्कि मुंबई हमले कि साज़िश के पीछे पाकिस्तानी-भूमिका का पर्दाफाश करना है. 

सज़ा से ज्यादा महत्वपूर्ण वे तथ्य हैं, जिनसे पता लगेगा कि मुंबई में निर्दोष लोगों की हत्या क्यों की गई. हमारा मीडिया तहव्वुर राणा को उस हमले का ‘मास्टरमाइंड’ बता रहा है, पर गौर से देखेंगे, तो पता लगेगा कि उसकी भूमिका ‘प्यादे’ की थी. 

असली ‘मास्टरमाइंड’ पाकिस्तानी सेना है, जिसकी छत्रछाया में वह हमला हुआ. सवाल यह है कि क्या भारत में मुकदमे के दौरान पाकिस्तान और 26/11 की साज़िश के बीच सीधा संबंध स्थापित किया जा सकेगा? अजमल कसाब और जबीउद्दीन अंसारी उर्फ अबू जुंदाल के बाद यह भारत में इस प्रकरण का यह तीसरा व्यक्तिगत मुकदमा है. 

डेविड कोलमैन हेडली (दाऊद गिलानी) और तहव्वुर हुसैन राणा को अमेरिकी संघीय जाँच ब्यूरो (एफबीआई) द्वारा गिरफ्तार किए जाने और भारत में राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (एनआईए) द्वारा उनके खिलाफ एफआईआर और आरोप-पत्र दायर करने के सोलह साल बाद, राणा को प्रत्यर्पित किया गया है. 

Saturday, April 12, 2025

संघीय-कशमकश और तमिल राजनीति


तमिलनाडु विधानसभा से पास होने के बावज़ूद दस विधेयकों को रोक कर रखने के राज्यपाल आरएन रवि के फैसले को अवैध करार देते हुए उच्चतम न्यायालय ने एक संवैधानिक पेच को दुरुस्त ज़रूर किया है, पर इससे केंद्र-राज्य संबंधों और राज्यपालों की भूमिका से जुड़ी पहेलियों का हल पूरी तरह अब भी नहीं होगा। हाल के वर्षों में कुलपतियों की नियुक्ति, राज्य विधान परिषदों में नामांकन और राज्यपाल द्वारा पारंपरिक अभिभाषण के संपादन या सदन को बुलाने पर दुर्भाग्यपूर्ण रस्साकशी तो हुई ही है, विधानमंडलों से पारित विधेयकों को मंजूरी देने में देरी या इनकार जैसे कार्य भी हुए हैं। 

इस बार के फैसले से राज्यों की प्रशासनिक स्वायत्तता बढ़ेगी और संवैधानिक पदों का कामकाज नियंत्रित होगा, जिसका प्रभाव पूरे देश पर पड़ेगा। यह न्यायिक-हस्तक्षेप ऐसे समय में हुआ है, जब गैर-भाजपा दलों द्वारा शासित राज्यों में राज्यपालों और सरकारों के बीच तनाव चरम पर है। इस संवैधानिक सफलता का राजनीतिक श्रेय एमके स्टालिन की डीएमके सरकार को जाता है, पर वहीं मेडिकल प्रवेश के लिए राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा ‘नीट’ से छूट हासिल करने में तमिलनाडु सरकार को मुँह की खानी पड़ी है।

Wednesday, April 9, 2025

श्रीलंका-यात्रा और बिमस्टेक सम्मेलन के निहितार्थ


भारत और पड़ोसी देशों के रिश्तों के लिहाज से पिछले हफ्ते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की थाईलैंड और श्रीलंका-यात्रा काफी महत्वपूर्ण रही. भारत का उद्देश्य पड़ोसियों के साथ संबंधों को मजबूत करना है. इस यात्रा में देश की ‘एक्ट-ईस्ट’ और दक्षिण-एशिया नीतियों की झलक मिलती है.

उन्होंने थाईलैंड में बिमस्टेक सम्मेलन में भाग लेने के अलावा वहाँ बांग्लादेश की कार्यवाहक सरकार के मुख्य सलाहकार डॉ मुहम्मद यूनुस, म्यांमार की सैन्य सरकार के प्रमुख मिन आंग ह्लाइंग और नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली से भी मुलाकात की. 

ढाका में सत्ता परिवर्तन के बाद युनुस के साथ उनकी यह पहली बैठक थी. इसी तरह पिछले वर्ष नेपाल में ओली के फिर से प्रधानमंत्री बनने के बाद यह पहली मुलाकात थी. उन्होंने भूटान के राष्ट्रपति शेरिंग तोब्गे से भी मुलाकात की.

हालांकि थाईलैंड भारत के पूर्व में बंगाल की खाड़ी और अंडमान सागर से जुड़ा देश है, पर उसे भारतीय विदेश-नीति के नक्शे पर वह महत्व नहीं मिला, जिसका वह हकदार है. दक्षिण पूर्व एशिया में इंडोनेशिया और सिंगापुर के बाद तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है थाईलैंड. 

दोनों देशों के बीच फ्री-ट्रेड एग्रीमेंट 2010 में हो गया था. भारतीय यात्रियों के लिए वीज़ा-मुक्त प्रवेश के कारण थाईलैंड, भारतीय मध्यम वर्ग की सैर का प्रमुख गंतव्य बन चुका है. दोनों देश अब रक्षा, हाईटेक और स्पेस रिसर्च में सहयोग पर सहमत हुए हैं. 

अस्थिरता का दौर

यह यात्रा ऐसे समय में हुई, जब एक तरफ बांग्लादेश और म्यांमार में अराजकता है और इलाके में चीन का प्रभाव बढ़ रहा है. पिछले साल अगस्त से बांग्लादेश के साथ रिश्तों में तनाव है.

हाल में डॉ यूनुस ने अपनी पहली राजकीय यात्रा के लिए चीन को चुनकर इतना प्रकट जरूर कर दिया कि बांग्लादेश अब हमारा वैसा मित्र नहीं है, जैसा शेख हसीना के कार्यकाल में था. . 

Sunday, April 6, 2025

भारत के रोम-रोम में बसे राम

भारत की विविधता में एकता को देखना है, तो उसके पर्वों और त्योहारों पर नज़र डालनी होगी। इनका देश की संस्कृति, अर्थव्यवस्था  और समाज के साथ भौगोलिक परिस्थितियों और मौसम के साथ गहरा रिश्ता है। जिस तरह साल के उत्तरार्ध में पावस की समाप्ति और शरद के आगमन के साथ पूरे देश में त्योहारों और पर्वों का सिलसिला शुरू होता है, उसी तरह सर्दियाँ खत्म होने और गर्मियों की शुरुआत के बीच वसंत ऋतु के पर्व हैं। वसंत पंचमी, मकर संक्रांति, होली, नव-संवत्सर, वासंतिक-नवरात्र, रामनवमी और गंगा दशहरा इन पर्वों का समुच्चय है। 

यों तो हमारा हर दिन पर्व है और यह खास तरह की जीवन-शैली है, जो परंपरागत भारतीय-संस्कृति की देन है। जैसा उत्सव-धर्मी भारत है, वैसा शायद ही दूसरा देश होगा। आप भारत और भारतीयता की परिभाषा समझना चाहते हैं, तो इस बात को समझना होगा कि किस तरह से इन पर्वों और त्योहारों के इर्द-गिर्द हमारी राष्ट्रीय-एकता काम करती है। कश्मीर से कन्याकुमारी तक और अटक से कटक तक कुछ खास तिथियों पर अलग-अलग रूप में मनाए जाने वाले पर्वों के साथ एक खास तरह की अद्भुत एकता काम करती है। वह मकर संक्रांति, नव संवत्सर, पोइला बैसाख, पोंगल, ओणम, होली हो या दीपावली और छठ। 

धार्मिक दृष्टि

यह सप्ताह नव संवत्सर और नवरात्र का था, जिसका समापन रामनवमी के साथ होगा। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। हिंदू धर्मशास्त्रों के अनुसार इस दिन मर्यादा-पुरुषोत्तम भगवान श्री राम का जन्म पुनर्वसु नक्षत्र तथा कर्क लग्न में हुआ था। इस पर्व के साथ ही माँ दुर्गा के नवरात्र का समापन भी होता है। धार्मिक-दृष्टि से देखें, तो भगवान श्री राम ने भी देवी दुर्गा की आराधना की थी। उनकी शक्ति-पूजा ने उन्हें युद्ध में विजय प्रदान की। इन दो महत्वपूर्ण पर्वों का एक साथ होना उसकी महत्ता को बढ़ा देता है। इसी दिन गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ भी किया था। रामनवमी का व्रत पापों का क्षय करने वाला और शुभ फल प्रदान करने वाला होता है।

धर्मशास्त्रों के अनुसार त्रेतायुग में रावण के अत्याचारों को समाप्त करने तथा धर्म की पुनर्स्थापना के लिए भगवान विष्णु ने मृत्यु लोक में श्री राम के रूप में अवतार लिया था। यह धार्मिक-दृष्टि है, पर विश्व-साहित्य में शायद ही कोई ऐसा दूसरा पात्र होगा, जिसकी राम से तुलना की जा सके। यह बहस का विषय है कि राम, ऐतिहासिक पात्र हैं या नहीं, पर इसमें दो राय नहीं कि साहित्य, संस्कृति और समाज में राम अतुलनीय हैं। 

Thursday, April 3, 2025

टैरिफ-संग्राम के साथ शुरू हुआ, वैश्विक-चुनौतियों का एक नया दौर


अमेरिका का टैरिफ-युद्ध इस हफ्ते पूरी तरह शुरू हो गया, उसका असर अब चीन, कनाडा और मैक्सिको से आगे निकलकर विश्वव्यापी होगा, जिसमें भारत भी शामिल है. वैश्विक-अर्थव्यवस्था के लिए यह एक नया संधिकाल है. 

भारत के मामले में, 5 अप्रैल को सार्वभौमिक 10 प्रतिशत टैरिफ के पहले चरण के प्रभावी होने के बाद, 9 अप्रैल के बाद 17 प्रतिशत टैरिफ लागू होगा, जिससे कुल शुल्क 27 प्रतिशत हो जाएगा.

भारत पर 27 प्रतिशत की यह दर चीन पर लगाए गए 34 प्रतिशत, वियतनाम पर 46 प्रतिशत, बांग्लादेश पर 37 प्रतिशत और थाईलैंड पर 36 प्रतिशत की तुलना में बहुत कम है, ये सभी भारतीय निर्यातकों के लिए प्रतिस्पर्धी हैं, जबकि वे किसी न किसी कमोडिटी सेगमेंट में अमेरिकी बाजार तक पहुँचते हैं.

भारत पर टैरिफ अन्य एशियाई प्रतिस्पर्धियों की तुलना में भी कम है, जिसमें थाईलैंड पर प्रस्तावित 36 प्रतिशत और इंडोनेशिया पर 32 प्रतिशत शामिल हैं.

मामला केवल आर्थिक-रिश्तों तक सीमित नहीं है. सामरिक, पर्यावरणीय और अंतरराष्ट्रीय-प्रशासन से जुड़े मसले भी इससे जुड़े हैं. अमेरिका की नीतियों को बदलते वैश्विक-संबंधों के लिहाज से देखने की ज़रूरत है, खासतौर से हमें भारत-अमेरिका रिश्तों के नज़रिए से इसे देखना होगा. 

केवल 2 अप्रैल की घोषणाओं से ही नहीं, बल्कि उससे पैदा होने वाली अनुगूँज से भी बहुत कुछ बदलेगा. ट्रंप-प्रशासन ने इसे ‘लिबरेशन डे’ कहा है. रेसिप्रोकल यानी पारस्परिक टैरिफ का मतलब यह कि दूसरे देशों से अमेरिका आने वाले माल पर वही शुल्क वसूला जाएगा, जो वे देश अमेरिकी वस्तुओं पर लगाते हैं. 

अमेरिकी पराभव 

बीसवीं सदी के उत्तरार्ध में सोवियत संघ पर अमेरिकी विजय के पीछे केवल भौतिक-शक्ति ही जिम्मेदार नहीं थी. अमेरिकी संस्कृति की कई आकर्षक विशेषताओं ने उसे सफलता दिलाई थी. 

इसमें सबसे भूमिका थी अमेरिकी समाज के राजनीतिक खुलेपन की. नोम चॉम्स्की जैसे अमेरिका के सबसे बड़े आलोचक भी वहीं रहते हैं, और आदर पाते हैं. अब लगता है कि अमेरिका की उस सॉफ्ट पावर का भी क्षरण हो रहा है. 

Friday, March 28, 2025

फिर क्यों शुरू हो गया, गज़ा के दुःस्वप्न का दौर?


इस साल की शुरुआत में जब 19 जनवरी को इसराइल और हमास ने तीन चरणों में युद्ध-विराम पर सहमति जताई थी, तभी कुछ पर्यवेक्षकों ने कहा था कि  स्थायी-शांति तो छोड़िए, युद्ध-विराम का पहला चरण ही पूरा हो जाए, इसकी दुआ कीजिए. 

किसी तरह से रोते-बिलखते पहला चरण 1 मार्च को पूरा हो गया, पर उसके पहले दूसरे चरण के लिए जो बातचीत होनी थी, वह नहीं हुई. उस बातचीत का उद्देश्य इसराइली सेना की पूरी तरह वापसी और सभी बंधकों की रिहाई के साथ युद्ध को समाप्त करना था. ऐसा नहीं हुआ और गज़ा-पट्टी पर इसराइली बमबारी फिर शुरू हो गई.

मामला केवल हवाई हमलों तक सीमित नहीं रहा. नेत्ज़ारिम कॉरिडोर तक पहुँचने के लिए इसराइली सेना ने ज़मीनी हमला बोलकर कब्ज़ा कर लिया. यह कॉरिडोर गज़ा के उत्तर और दक्षिण को विभाजित करता है. उधर हमास द्वारा संचालित स्वास्थ्य अधिकारियों ने बताया है कि युद्ध शुरू होने के बाद से गज़ा में मरने वालों की कुल संख्या रविवार को 50,000 को पार कर गई. 

Thursday, March 27, 2025

बेहद ज़रूरी है न्याय-व्यवस्था की साख को बचाना


नेशनल ज्यूडीशियल डेटा ग्रिड के अनुसार इस हफ्ते 26 मार्च तक देश की अदालतों में चार करोड़ 54 लाख से ज्यादा मुकदमे विचाराधीन पड़े थे। इनमें 46.43 लाख से ज्यादा केस 10 साल से ज्यादा पुराने हैं। यह मान लें कि औसतन एक मुकदमे में कम से कम दो या तीन व्यक्ति पक्षकार होते हैं तो देश में करीब 10 से 15 करोड़ लोग मुकदमेबाजी के शिकार हैं। यह संख्या लगातार बढ़ रही है। सामान्य व्यक्ति के नजरिए से देखें तो अदालती चक्करों से बड़ा चक्रव्यूह कुछ नहीं है। एक बार फँस गए, तो बरसों तक बाहर नहीं निकल सकते। 

सरकार और न्यायपालिका लगातार कोशिश कर रही है कि कम से कम समय में मुकदमों का निपटारा हो जाए। यह तभी संभव है जब प्रक्रियाएं आसान बनाई जाएँ, पर न्याय व्यवस्था का संदर्भ केवल आपराधिक न्याय या दीवानी मुकदमों तक सीमित नहीं है। व्यक्ति को कारोबार का अधिकार देने, मुक्त वातावरण में अपना धंधा चलाने, मानवाधिकारों तथा अन्य अधिकारों की रक्षा के लिए भी उपयुक्त न्यायिक संरक्षण की जरूरत है। उसके पहले हमें अपनी न्याय-व्यवस्था की सेहत पर भी नज़र डालनी होगी, जिसके उच्च स्तर को लेकर कुछ विवाद खड़े हो रहे हैं। 

इस समय सवाल तीन हैं। न्याय-व्यवस्था को राजनीति और सरकारी दबाव से परे किस तरह रखा जाए? जजों की नियुक्ति को पारदर्शी कैसे बनाया जाए? तीसरे और सबसे महत्वपूर्ण सवाल है कि सामान्य व्यक्ति तक न्याय किस तरह से उपलब्ध कराया जाए? अक्सर कहा जाता है कि देश में न्यायपालिका का ही आखिरी सहारा है। पर पिछले कुछ समय से न्यायपालिका को लेकर उसके भीतर और बाहर से सवाल उठने लगे हैं। उम्मीदों के साथ कई तरह के अंदेशे हैं। कई बार लगता है कि सरकार नहीं सुप्रीम कोर्ट के हाथ में देश की बागडोर है। पर न्यायिक जवाबदेही को लेकर हमारी व्यवस्था पारदर्शी नहीं बन पाई है। 

Friday, March 21, 2025

अपने नागरिक को रिहा कराने अमेरिकी दूत काबुल पहुँचे


अफगानिस्तान में दो साल से अधिक समय तक बंधक रखे जाने के बाद एक अमेरिकी एयरलाइन मिकेनिक को तालिबान ने रिहा कर दिया है। इस सामान्य सी खबर का महत्व इस तथ्य से बढ़ जाता है कि इस रिहाई के लिए बंधक मामलों के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति के दूत एडम बोहलर और अफगानिस्तान के लिए अमेरिका के पूर्व विशेष दूत ज़लमय खलीलज़ाद खासतौर से काबुल गए और उन्होंने तालिबान के विदेशमंत्री से भी मुलाकात की। इस खबर का एक विशेष पहलू यह भी है कि संभवतः अमेरिका ने अपनी इस गतिविधि से पाकिस्तानी सेना को अलग रखा है।  

अमेरिकी नागरिक जॉर्ज ग्लीज़मैन, जिन्हें दिसंबर 2022 में एक पर्यटक के रूप में यात्रा करते समय हिरासत में लिया गया था, अमेरिका वापस जाने से पहले गुरुवार शाम को विमान से कतर पहुँच गए। तालिबान सरकार के विदेशमंत्री ने उनकी रिहाई की पुष्टि की। जनवरी में ट्रंप के पदभार ग्रहण करने से पहले, दो अमेरिकियों, रयान कॉर्बेट और विलियम वालेस मैकेंटी को अमेरिका में कैद एक अफगान के बदले में अफगानिस्तान से रिहा किया गया था।

तालिबान के विदेश मंत्रालय ने कहा कि ग्लीज़मैन की रिहाई "मानवीय आधार पर" और "सद्भावनापूर्ण कदम" है, जबकि अमेरिकी विदेशमंत्री मार्को रूबियो ने इस समझौते को "सकारात्मक और रचनात्मक कदम" बताया। अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल और तालिबान के बीच यह बैठक जनवरी में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के शपथ ग्रहण के बाद से दोनों पक्षों के बीच उच्चतम स्तर की प्रत्यक्ष वार्ता थी। 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद से दोनों सरकारों के बीच संपर्क आमतौर पर अन्य देशों में हुआ है। कतर ने कहा है कि उसने ग्लीज़मैन की रिहाई के लिए समझौते में मदद की।

Wednesday, March 19, 2025

पाकिस्तान के गले की हड्डी बना बलोचिस्तान




बलोचिस्तानी-आंदोलन ने पाकिस्तानी सिस्टम का पर्दाफाश कर दिया है. हाल में हुए ट्रेन अपहरण से जुड़ी ‘आतंकी-गतिविधियों’ को लेकर हालाँकि सरकारी तौर पर दावा किया गया है कि उनका दमन कर दिया गया है, पर इस सरकारी दावे पर विश्वास नहीं किया जा सकता है.  

बलोच आतंकवादी समूहों ने एक ‘राष्ट्रीय सेना’ शुरू करने की घोषणा की है. इनकी मजीद ब्रिगेड आत्मघाती हमले कर रही है. पहले, उनके पास आत्मघाती हमलों की ऐसी क्षमता नहीं थी. 

11 मार्च को अपहरण हुआ और करीब 48 घंटे तक मोर्चाबंदी जारी रही, फिर भी अभी तक स्पष्ट नहीं है कि ट्रेन में कुल कितने यात्री थे और कितने वापस आए. कई संख्याएँ मीडिया में तैर रही हैं. 

सेना कहती है कि सारे बंधक ‘छुड़ा’ लिए गए हैं, वहीं दूसरे सूत्र बता रहे हैं कि बड़ी तादाद में पाकिस्तानी फौजियों को बलोच लिबरेशन आर्मी ने बंधक बना लिया है. या उनकी हत्या कर दी गई है. इन बंधकों की संख्या सौ से ढाई सौ के बीच बताई गई है. बलोच विद्रोहियों का दावा है कि उन्होंने बंधक बनाए गए 200 से ज्यादा जवानों की हत्या कर दी है.

बलोच आंदोलन

बलोच लिबरेशन आर्मी या बीएलए पाकिस्तान के बलोचिस्तान प्रांत में सक्रिय उग्रवादी अलगाववादी समूह है, जो एक स्वतंत्र बलोच राज्य की वकालत करता है. बलोच (या बलूच) लोग पाकिस्तान के बलोचिस्तान प्रांत, दक्षिण-पूर्वी ईरान और दक्षिणी अफ़गानिस्तान में फैले क्षेत्र के मूल निवासी एक जातीय समूह हैं. उनकी एक अलग भाषाई, सांस्कृतिक और जनजातीय पहचान है, उनकी अपनी भाषा बलोची है, जो ईरानी भाषा परिवार से संबंधित है.

Tuesday, March 11, 2025

तमिलनाडु के चुनाव का प्रस्थानबिंदु है 'भाषा' और 'परिसीमन' का मुद्दा


सत्तारूढ़ भाजपा और द्रमुक के बीच चल रहे वाग्युद्ध के कारण सोमवार को लोकसभा में व्यवधान पैदा हुआ और तमिलनाडु के सांसदों के विरोध के बाद केंद्रीय शिक्षामंत्री धर्मेंद्र प्रधान को अपने बयान से एक शब्द वापस लेना पड़ा। प्रश्नकाल में बहस के दौरान प्रधान ने तमिलनाडु की डीएमके सरकार पर ‘बेईमान’ होने और राज्य के छात्रों के भविष्य के साथ ‘राजनीति’ करने का आरोप लगाया। राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) के प्रति डीएमके सरकार के विरोध की आलोचना करते हुए उन्होंने पीएम-श्री स्कूलों को लेकर ‘यू-टर्न’ लेने का भी आरोप लगाया, जिसके कारण तकरार बढ़ी। लगता है कि यह तकरार अभी बढ़ेगी और ‘भाषा’ और खासतौर से ‘उत्तर-दक्षिण’ के सवालों पर केंद्रित होगी, जो 2026 में तमिलनाडु विधानसभा चुनाव में बड़े मसले बनकर उभरेंगे। 

संसदीय झड़प के तुरंत बाद तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने सोशल मीडिया पर पोस्ट जारी कर प्रधान पर ‘अहंकार’ का आरोप लगाया। स्टालिन ने लिखा, ‘केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, जो अहंकार से ऐसे बात करते हैं जैसे कि वे राजा हों, उन्हें अपने शब्दों पर ध्यान देने की ज़रूरत है!...’आप तमिलनाडु के उचित फंड को रोक रहे हैं और हमें धोखा दे रहे हैं, फिर भी आप तमिलनाडु के सांसदों को असभ्य कहते हैं?... क्या माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसे मंज़ूरी देते हैं?’  स्टालिन ने लिखा कि तमिलनाडु सरकार ने कभी पीएम-श्री (स्कूल फॉर राइजिंग इंडिया) योजना को लागू करने पर सहमति नहीं जताई। 

Friday, March 7, 2025

भारत-तालिबान रिश्तों का द्वार खुलने के आसार


वैश्विक-राजनीति में यूक्रेन और पश्चिम एशिया में शांति-प्रयासों ने एक कदम आगे बढ़ाया है वहीं दक्षिण एशिया में भारत और अफ़ग़ान तालिबान के बीच रिश्तों का नया अध्याय शुरू होने की संभावनाएँ दिखाई पड़ रही हैं. 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार वैश्विक-वास्तविकताओं को देखते हुए बड़ी तेजी से कदम बढ़ा रही है. अनुमान है कि प्रधानमंत्री मोदी की हाल की वाशिंगटन-यात्रा के दौरान भारत ने अमेरिकी-प्रशासन के सामने भी स्पष्ट किया कि हमारी अफ़ग़ान-नीति राष्ट्रीय हितों के अनुरूप है.

तथ्य यह है कि चालीस से अधिक देश, तालिबान के साथ किसी न किसी रूप में संपर्क में है या वे काबुल में राजनयिक रूप से प्रतिनिधित्व करते हैं. इस तथ्य ने भारत के संपर्कों के लिए आधार प्रदान किया. भारत इस इलाके के महत्वपूर्ण शक्ति है और उसे इस मामले में पिछड़ना नहीं चाहिए. 

दूसरी तरफ ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, जापान, दक्षिण कोरिया, फ्रांस समेत कम से कम 16 देशों ने तालिबान-नामित व्यक्तियों को अस्वीकार कर दिया है, और उनके यहाँ अब भी पुराने राजदूत काम कर रहे हैं. 

विदेश सचिव की भेंट

गत 8 जनवरी को भारत के विदेश-सचिव विक्रम मिस्री और तालिबान सरकार के विदेशमंत्री आमिर खान मुत्तकी के बीच हुई बैठक ने एक साथ कई तरह की संभावनाओं ने जन्म दिया था. काबुल में तालिबान के सत्ता में आने के बाद से भारत सरकार का तालिबान के साथ वह उच्चतम स्तर का आधिकारिक-संपर्क था. 

उसी बातचीत की परिणति है कि अब खबरें हैं कि दिल्ली में अफगानिस्तान का दूतावास खुलने वाला है, जिसका परिचालन दिसंबर 2023 से बंद है. मुंबई और हैदराबाद में भी अफ़ग़ान वाणिज्य दूतावास हैं. 

भारत, यदि तालिबान-नामित व्यक्ति को दिल्ली में अफ़ग़ान दूतावास का प्रमुख बनने की अनुमति देगा, तो वह चीन, पाकिस्तान, रूस, ईरान, यूएई, कतर और मध्य एशियाई देशों और कुछ अन्य देशों में सूची में शामिल हो जाएगा. 

साउथ चायना मॉर्निंग पोस्ट के अनुसार तालिबान के नेतृत्व वाली सरकार ने दिल्ली में अफगान दूतावास का प्रभार संभालने के लिए दो संभावित उम्मीदवारों की पहचान की है. उसके पहले फरवरी के आखिरी हफ्ते में अफ़ग़ान मीडिया अमू टीवी ने खबर दी थी कि तालिबान विदेश मंत्रालय और भारत सरकार एक समझौते के करीब हैं, जिसके तहत नई दिल्ली में अफगानिस्तान के दूतावास का नियंत्रण तालिबान को सौंप दिया जाएगा. 

Wednesday, March 5, 2025

स्टालिन ने कहा परिसीमन को तीस साल के लिए ‘फ़्रीज़’ करो


1965 में केंद्र सरकार ने दक्षिण भारत के राज्यों को आश्वासन दिया था कि अब अंग्रेजी अनंतकाल तक हिंदी के साथ भारत की राजभाषा बनी रहेगी। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन को यदि दक्षिण भारतीय जनमत का प्रतिनिधि माना जाए, तो नई माँग यह है कि 2026 के बाद लोकसभा की सीटों का परिसीमन 30 साल तक के लिए ‘फ़्रीज़’ कर दिया जाए। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने आज 5 मार्च को इस विषय पर सर्वदलीय बैठक बुलाई थी, जिसमें 2026 में प्रस्तावित संसदीय निर्वाचन क्षेत्र परिसीमन प्रक्रिया को सर्वसम्मति से खारिज कर दिया गया।

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ने इस लड़ाई को अन्य दक्षिणी राज्यों तक बढ़ाने की माँग करते हुए कहा कि परिसीमन तमिलनाडु को 'कमजोर' करेगा और 'भारत के और ‘भारत के संघीय ढाँचे के लिए खतरा’ होगा। 

इस बैठक में सत्तारूढ़ द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम, अखिल भारतीय द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम, कांग्रेस, विदुथलाई चिरुथिगल काची, तमिलगा वेत्री कषगम और कम्युनिस्ट पार्टियों सहित राजनीतिक दलों ने भाग लिया। भारतीय जनता पार्टी और नाम तमिलार काची और तमिल मानीला कांग्रेस ने इस बैठक का बहिष्कार किया। 

बैठक में पारित प्रस्ताव के अनुसार, आगामी जनगणना के आँकड़ों के आधार पर परिसीमन, विशेष रूप से तमिलनाडु और अन्य दक्षिण भारतीय राज्यों के राजनीतिक प्रतिनिधित्व अधिकारों को प्रभावित करेगा।…तमिलनाडु और अन्य दक्षिण भारतीय राज्यों का संसदीय प्रतिनिधित्व केवल इसलिए कम करना पूरी तरह से अनुचित है क्योंकि उन्होंने राष्ट्रीय हित में जनसंख्या नियंत्रण उपायों को सक्रिय रूप से लागू किया है।

ट्रंप ने कहा, भारत को टैरिफ में कोई रियायत नहीं

अमेरिकी संसद के संयुक्त अधिवेशन में ट्रंप

अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने मंगलवार को एक बार फिर भारत पर उसके ऊँचे टैरिफ को लेकर निशाना साधा और संकेत दिया कि व्यापार समझौते के लिए बातचीत में पारस्परिक टैरिफ जैसे व्यापक शुल्कों पर नई दिल्ली को रियायतें नहीं मिलेंगी, जो 2 अप्रैल से प्रभावी होने वाले हैं। उन्होंने ऑटो सेक्टर का विशेष उल्लेख किया, जहाँ उन्होंने कहा कि भारत 100 प्रतिशत से अधिक टैरिफ वसूलता है।

अमेरिकी कांग्रेस के संयुक्त सत्र को संबोधित करते हुए ट्रंप ने कहा, भारत हमसे 100 प्रतिशत टैरिफ वसूलता है; यह व्यवस्था अमेरिका के लिए उचित नहीं है, कभी थी ही नहीं। 2 अप्रैल से पारस्परिक टैरिफ लागू हो जाएंगे। वे हम पर जो भी टैक्स लगाएंगे, हम उन पर लगाएंगे। अगर वे हमें अपने बाजार से बाहर रखने के लिए गैर-मौद्रिक टैरिफ का इस्तेमाल करेंगे, तो हम उन्हें अपने बाजार से बाहर रखने के लिए गैर-मौद्रिक बाधाओं का इस्तेमाल करेंगे। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका-यात्रा के बाद भारतीय उद्योग जगत में यह उम्मीद जागी थी कि अमेरिका के साथ व्यापार समझौता नई दिल्ली को भारत में अमेरिकी उत्पादों के लिए बाजार पहुँच के बदले में व्यापक टैरिफ से राहत दिलाने में मदद करेगा। भारत ने बातचीत शुरू होने से पहले ही बोरबॉन ह्विस्की जैसी कई वस्तुओं पर टैरिफ में कटौती कर दी थी।

संसदीय-सीटों के परिसीमन पर बहस

परिसीमन के बाद संभावित तस्वीर
केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद से देश के राजनेताओं और विश्लेषकों के एक तबके ने दो-तीन बातों पर ज़ोर देना शुरू कर दिया है। वे कहते हैं कि भारत में संविधान खतरे में है, लोकतंत्र विफल हो रहा है और यह भी कि लोकतंत्र का मतलब चुनाव जीतना भर नहीं होता। लोकतंत्र ही नहीं संघवाद को भी खतरे में बताया जा रहा है। बीजेपी के हिंदू-राष्ट्रवाद की अतिशय केंद्रीय-सत्ता को लेकर भी उनकी आपत्तियाँ हैं। 

इधर तमिलनाडु से हिंदी-साम्राज्यवाद को लेकर बहस फिर से शुरू हुई है, जिसमें संसदीय-सीटों के परिसीमन को लेकर आपत्तियाँ भी शामिल हैं। दक्षिण के नेताओं का तर्क है कि यदि जनसंख्या के आधार पर परिसीमन होगा, तब दक्षिण के राज्य नुकसान में रहेंगे, जबकि जनसंख्या-नियंत्रण में उनका योगदान उत्तर के राज्यों से बेहतर रहा है। उनका सुझाव है कि संसदीय परिसीमन में संघवाद के मूल्यों का अनुपालन होना चाहिए।

परिसीमन से जुड़े इन्हीं सवालों को लेकर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने 5 मार्च को चेन्नई में सर्वदलीय बैठक बुलाई है। उन्होंने कहा: तमिलनाडु अपने अधिकारों के लिए बड़ी लड़ाई लड़ने के लिए मजबूर है। परिसीमन का खतरा दक्षिणी राज्यों पर डैमोक्लीज़ की तलवार की तरह मंडरा रहा है। मानव विकास सूचकांक में अग्रणी तमिलनाडु के सामने गंभीर खतरा खड़ा है। 

Saturday, March 1, 2025

ट्रंप-ज़ेलेंस्की संवाद जो टीवी का तमाशा बन गया


शुक्रवार को अमेरिकी राष्ट्रपति के ओवल ऑफिस में हुई तनावपूर्ण मुलाकात में, यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की ने यूक्रेन में जारी युद्ध को लेकर  राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप से समर्थन पाने की मिन्नत की, लेकिन उन्हें मुखर गुस्से और प्रतिरोध का सामना करना पड़ा। यह बैठक अंततः तमाशा साबित हुई, जो इस स्तर के राजनय से मेल नहीं खाता है। दुनिया भर के टीवी पर्दों पर इस मुठभेड़ में संज़ीदगी नज़र ही नहीं आई। इस बैठक ने, जो कभी गरम और कभी नरम में बदलती रही, दोनों के बीच बढ़ती दरार को उजागर कर दिया और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की जटिलता को रेखांकित किया।

इस बैठक में ट्रंप ने बार-बार युद्ध को खत्म करने पर जोर दिया और अमेरिकी भागीदारी पर सवाल उठाए। उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि वे त्वरित समाधान चाहते हैं, जबकि ज़ेलेंस्की ने चेतावनी दी कि अचानक युद्ध विराम रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को फिर से हथियारबंद होने और संघर्ष को फिर से भड़काने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है। ट्रंप ने ज़ेलेंस्की इस बात के लिए दबाव डाला कि शांति समझौता अनिवार्य है। वह भी ऐसी शर्तों पर जो मॉस्को के प्रति बहुत नरम होंगी।

शुक्रवार को ट्रंप और ज़ेलेंस्की के बीच हुई मुलाक़ात पारंपरिक राजनय से एकदम अलग थी। यूक्रेन को अमेरिकी सैन्य सहायता और रूस के साथ चल रहे युद्ध को लेकर महीनों तक तनाव के बाद, ज़ेलेंस्की आश्वासन पाने के लिए वाशिंगटन गए थे। ट्रंप रूस और यूक्रेन के बीच समझौते पर मध्यस्थता करने पर अड़े रहे, जिसे उन्होंने ‘सदी का सौदा’कहा है। उन्हें उम्मीद थी कि यह उनकी शर्तों पर होगा।

आर्टेमिस कार्यक्रम

बाहरी अंतरिक्ष में अनुसंधान के लिए अमेरिका की पहल पर शुरू हुआ यह अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम है। इसमें 2027 तक चंद्रमा पर मनुष्य की यात्रा का प्रयास शामिल है। इसके अलावा इसका लक्ष्य मंगल ग्रह और उससे आगे अंतरिक्ष अन्वेषण का विस्तार करना है। 21 जनवरी 2025 को इस समझौते में फिनलैंड के प्रवेश के साथ, 53 देशों ने हस्ताक्षर किए हैं। इनमें यूरोप के 27, एशिया के नौ, दक्षिण अमेरिका के सात, उत्तरी अमेरिका के  पाँच, अफ्रीका के तीन और ओसनिया के दो देश शामिल हैं। समझौते पर मूल रूप से 13 अक्तूबर 2020 को आठ देशों की राष्ट्रीय अंतरिक्ष एजेंसियों के प्रतिनिधियों ने हस्ताक्षर किए गए थे। ये देश हैं ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, इटली, जापान, लक्ज़ेम्बर्ग, संयुक्त अरब अमीरात, यूनाइटेड किंगडम और अमेरिका। जून 2023 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान भारत ने भी इस समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस कार्यक्रम के समांतर चीन और रूस के नेतृत्व में इंटरनेशनल ल्यूनर रिसर्च स्टेशन (आईआरएलएस) नाम से एक और समझौता भी है। इसका इरादा भी चंद्र सतह पर या चंद्र कक्षा में व्यापक वैज्ञानिक अन्वेषण करना है। इसमें 13 सदस्य देश हैं। भारत इसमें शामिल नहीं है।

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 1 मार्च, 2025 को प्रकाशित


Thursday, February 27, 2025

भाजपा और ‘फासिज़्म’ को लेकर वामपंथी खेमे में नई बहस


भारत के वामपंथियों और कांग्रेस पार्टी के बीच एक नई बहस शुरू हो गई है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार ‘फासिस्ट’ या ‘नव-फासिस्ट’ है या नहीं। अब ‘फासिज्म’ की भारतीय परिभाषा को लेकर भी बहस होगी। इसकी वजह यह है कि मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की अप्रैल में होने वाली 24वीं पार्टी कांग्रेस की बैठक से पहले राज्य इकाइयों को भेजे गए राजनीतिक प्रस्तावों में एक यह भी है कि पार्टी केंद्र सरकार को ‘फासिस्ट’ या ‘नव-फासिस्ट’ क्यों नहीं मानती। 

सीपीआई (एम) ने हाल में 24वीं पार्टी कांग्रेस के लिए अपना मसौदा राजनीतिक प्रस्ताव जारी किया है-जो 2 से 6 अप्रैल तक मदुरै में आयोजित किया जाना है। इसमें कहा गया है कि (मोदी सरकार का) प्रतिक्रियावादी हिंदुत्व एजेंडा थोपने का प्रयास और विपक्ष और लोकतंत्र को दबाने का सत्तावादी अभियान नव-फासीवादी विशेषताओं को प्रदर्शित करता है...। मोदी सरकार के लगभग ग्यारह वर्षों के शासन के परिणामस्वरूप नव-फासीवादी विशेषताओं के साथ दक्षिणपंथी, सांप्रदायिक, सत्तावादी ताकतों का एकीकरण हुआ है। 

नव-फासीवाद के लक्षण

गत 17-19 जनवरी के दौरान कोलकाता में आयोजित पार्टी की केंद्रीय समिति की बैठक में मसौदा राजनीतिक प्रस्ताव को अपनाया गया था। इसमें कहा गया है, हालाँकि मोदी सरकार ‘नव-फासीवादी विशेषताओं’ को प्रदर्शित करती है, लेकिन उसे ‘फासीवादी या नव-फासीवादी सरकार’ कहना उचित नहीं।

Wednesday, February 26, 2025

हिंदी का विस्तार और उसकी विसंगतियाँ


हिंदी ।।चार।। संपर्क-भाषा.1

हिंदी के विस्तार, यानी अखिल-भारतीय स्वरूप के साथ, उसकी स्वीकृति और विरोध की दोतरफा प्रवृत्तियाँ एक साथ जन्म ले रही हैं। ये प्रवृत्तियाँ भी भारत में हिंदी के हृदय-क्षेत्र, परिधि-क्षेत्र और परिधि के पार वाले क्षेत्रों में अलग-अलग तरह की हैं। खबरिया और मनोरंजन चैनलों की वजह से हिंदी जानने वालों की तादाद बढ़ी है। हिंदी सिनेमा की वजह से तो वह थी ही। सच यह भी है कि हिंदी की आधी से ज्यादा ताकत गैर-हिंदी भाषी जन के कारण है। गुजराती, मराठी, पंजाबी, बांग्ला और असमिया इलाकों में हिंदी को समझने वाले काफी पहले से हैं। 

हिंदी का यह विस्तार उसे एक धरातल पर ऊपर ले गया है, पर वह बोलने, संपर्क करने, बाजार से सामान या सेवा खरीदने, मनोरंजन करने की भाषा तक सीमित है। विचार-दर्शन, ज्ञान-विज्ञान, कला-संस्कृति और साहित्यिक हिंदी का बाजार छोटा है। हिंदी-राष्ट्रवाद का भौगोलिक-आधार अब वही नहीं है, जो सौ साल पहले था. तब हिंदी का हृदय-क्षेत्र बनारस, इलाहाबाद, लखनऊ, आगरा और बरेली जैसे शहर थे।

थरूर का महत्व और सम्मान बढ़ेगा, कम नहीं होगा


शशि थरूर के विचारों को लेकर कांग्रेस के भीतर और बाहर की अटकलों से लगता है कि वे अंततः पार्टी छोड़ देंगे। मुझे नहीं लगता कि वे पार्टी छोड़ेंगे, पर भारतीय-राजनीति में भरोसे के साथ कुछ भी कहना ठीक नहीं। जैसा भी हो, वे पार्टी छोड़ें या नहीं छोड़ें, उनका महत्व कम नहीं होगा, बल्कि बढ़ेगा। अलबत्ता कांग्रेस के आंतरिक-लोकतंत्र को लेकर जो बातें हैं, वे खत्म नहीं होंगी। 2022 में जब मल्लिकार्जुन कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने थे, तब भी दो-तीन बातों की तरफ राजनीतिक-पर्यवेक्षकों का ध्यान गया था। करीब 24 साल बाद कांग्रेस की कमान किसी गैर-गांधी के हाथ में आई थी, पर जिस बदलाव की आशा पार्टी के भीतर और बाहर से की जा रही है, वह केवल इतनी ही नहीं थी। पार्टी के असंतुष्टों की, जिसे जी-23 के नाम से पहचाना गया था, माँग थी कि पार्टी में आंतरिक चुनाव कराए जाएँ। खरगे जी के चुनाव ने एक औपचारिकता को पूरा किया, पर यह सिर्फ औपचारिकता थी। सब जानते थे कि वे ‘परिवार’ के प्रत्याशी हैं। 

खरगे जी के आने के बाद ऐसा कभी नहीं हुआ कि पार्टी की कमान उनके हाथों में आ गई हो। राहुल गांधी निर्विवाद रूप से पार्टी के नेता हैं। अध्यक्ष पद का चुनाव हो गया, पर कार्यसमिति का नहीं हुआ। अब 14 फरवरी को पार्टी ने एक बड़ा संगठनात्मक फेरबदल फिर किया है, जिसमें वरिष्ठ नेता राहुल गांधी की छाप देखी जा सकती है। राहुल गांधी इस समय अजा-जजा, ओबीसी और मुसलमानों पर आधारित राजनीति  पर चल रहे हैं। यह राह उन्हें उत्तर भारत में सपा और राजद जैसी पार्टियों की प्रतिस्पर्धा में ले जाएँगी, जो सही राह है। बहरहाल इस आलेख का उद्देश्य पार्टी के आंतरिक-लोकतंत्र पर या पार्टी के राजनीतिक एजेंडा पर विचार करना नहीं है, बल्कि शशि थरूर की वह टिप्पणी है, जो उन्होंने केरल की वाममोर्चा सरकार के बारे में लिखे गए अपने एक लेख में की है। 

इस लेख में उन्होंने राज्य में कारोबारियों को दी जा रही सुविधाओं की तारीफ करते हुए लिखा है कि भारत की, और खासतौर से केरल की अर्थव्यवस्था स्टार्टअप छा गए हैं। 2024 ग्लोबल स्टार्टअप इकोसिस्टम रिपोर्ट के अनुसार, जिसने 300 से ज़्यादा उद्यमी नवाचार पारिस्थितिकी तंत्रों में 4.5 मिलियन से ज़्यादा कंपनियों के डेटा का विश्लेषण किया, केरल ने एक स्टार्टअप इकोसिस्टम बनाया है, जिसका पिछले साल 18 महीने की अवधि के अंत में मूल्य 1.7 अरब डॉलर था, जो इसी अवधि के दौरान वैश्विक औसत से पाँच गुना ज़्यादा था। 1 जुलाई, 2021 और 31 दिसंबर, 2023 के बीच, जबकि दुनिया भर में औसत वृद्धि 46 प्रतिशत थी, केरल ने 254 प्रतिशत की चौंका देने वाली चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर दर्ज की: अभूतपूर्व उपलब्धि।

यूक्रेन-वार्ता से आगे जाएँगे दुनिया के ज्वलंत-प्रश्न


उम्मीद पहले से थी कि राष्ट्रपति की कुर्सी पर बैठने के बाद डॉनल्ड ट्रंप यूक्रेन की लड़ाई को रुकवाने के लिए हस्तक्षेप करेंगे, पर सब कुछ इतनी तेजी से होगा, इसका अनुमान नहीं था. दुनिया ‘मनमौजी’ मानकर उनकी बातों की अनदेखी करती रही है, पर अब सब मज़ाक नहीं लग रहा है.

इस हफ्ते दुनिया यूक्रेन की लड़ाई के तीन साल पूरे हो रहे हैं. इस लड़ाई में करीब दस लाख लोग मारे गए या घायल हुए हैं, जिससे यह द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सबसे खूनी यूरोपीय युद्ध बन गया है. यह लड़ाई गहरे धार्मिक, जातीय और सांस्कृतिक संबंधों की कहानी कहती है, पर इसने दुनिया की अर्थव्यवस्था को जो घाव लगाए हैं, उन्हें भरने की जरूरत है.  

अगले कुछ दिनों में नज़र आने लगेगा कि वैश्विक-राजनीति में अमेरिका और रूस एक-दूसरे के साथ खड़े हैं. सवाल है कि क्या चीन की भी इसमें कोई भूमिका होगी या चीन का दबदबा रोकने की यह कोशिश है? सामने की बातों में तो चीन ने अमेरिकी पहल की तारीफ की है. 

लगता है कि बहुत कुछ उल्टा-पुल्टा होने वाला है. भारत को ऐसे में अपने हितों की रक्षा करनी होगी. इस लड़ाई के दौरान भारत ने अपने दीर्घकालिक संबंधों को देखते हुए रूस की निंदा करने से परहेज किया है.  

Sunday, February 23, 2025

दिल्ली में एक सपने का टूटना, और नई सरकार के सामने खड़ी चुनौतियाँ

आम आदमी पार्टी की हार और भाजपा की जीत का असर दिल्ली से बाहर देश के दूसरे इलाकों पर भी होगा। हालाँकि दिल्ली बहुत छोटा बल्कि आधा, राज्य है, फिर भी राष्ट्रीय-राजधानी होने के नाते सबकी निगाहों में चढ़ता है। वहाँ एक ऐसी पार्टी का शासन था, जिसके जन्म और सफलता के साथ पूरे देश के आम आदमी के सपने जुड़े हुए थे। उन सपनों को टूटे कई साल हो गए हैं, पर जिस वाहन पर वे सवार थे, वह अब जाकर ध्वस्त हुआ। बेशक, केंद्र की शक्तिशाली सत्तारूढ़ पार्टी ने उन्हें पराजित कर दिया, लेकिन अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी के राजनीतिक पतन के पीछे तमाम कारण ऐसे हैं, जिन्हें उन्होंने खुद जन्म दिया। 

नतीजे भाजपा की विजय के बारे में कम और ‘आप’ के पतन के बारे में ज्यादा हैं। यह बदलाव राजनीतिक परिदृश्य में अचानक नहीं हुआ है, बल्कि इसके पीछे 2014 से चल रही कशमकश है। केंद्र सरकार ने उपराज्यपाल, नगर निगमों, केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय और दिल्ली पुलिस के माध्यम से शासन पर नकेल डाल रखी थी। आम आदमी पार्टी की सरकार ने भी अपने पूरे समय में केंद्र के साथ तकरार जारी रखी। इसके नेता केजरीवाल की राष्ट्रीय-महत्वाकांक्षाएँ कभी छिपी नहीं रहीं। उनकी महत्वाकांक्षाएँ जितनी निजी थीं, उतनी सार्वजनिक नहीं। 

मोदी की सफलता

बीजेपी ने इससे पहले दिल्ली विधानसभा का चुनाव 1993 में जीता था। पिछले दो चुनावों में केंद्र में अपनी सरकार होने के बावजूद वह जीत नहीं पाई। इसका एक बड़ा कारण राज्य स्तर पर कुशल संगठन की कमी थी। इसबार पार्टी ने न केवल पूरी ताकत से यह चुनाव लड़ा, साथ ही संगठन का पूरा इस्तेमाल किया। ऐसा करते हुए उसने किसी नेता को संभावित मुख्यमंत्री का चेहरा बनाने की कोशिश भी नहीं की, बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आगे रखा। प्रधानमंत्री ने भी दिल्ली के प्रचार को पर्याप्त समय दिया और आम आदमी पार्टी को ‘आपदा’ बताकर एक नया रूप भी दिया। उन्होंने जिस तरह से प्रचार किया, उससे समझ में आ गया था कि वे दिल्ली में सत्ता-परिवर्तन को कितना महत्व दे रहे हैं। 

Saturday, February 22, 2025

तमिलनाडु में क्या फिर से शुरू होगा हिंदी-विरोधी आंदोलन?

नई शिक्षा-नीति और केंद्र की तीन-भाषा नीति के खिलाफ सड़कों पर लिखे नारे


हिंदी की पढ़ाई को लेकर तमिलनाडु में एकबार फिर से तलवारें खिंचती दिखाई पड़ रही हैं। राज्य के उपमुख्यमंत्री उदयनिधि स्टालिन ने मंगलवार को एक विशाल विरोध-प्रदर्शन में चेतावनी दी कि हिंदी थोपने वाली केंद्र सरकार के खिलाफ एक और विद्रोह जन्म ले सकता है। उनके पहले मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने राज्यों पर शिक्षा-निधि के मार्फत दबाव बनाने का आरोप लगाया था। राज्य में अगले साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में द्रमुक ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) और तीन-भाषा फॉर्मूले की आलोचना करके माहौल को गरमा दिया है। 

तमिलनाडु में भाषा केवल शिक्षा या संस्कृति का विषय नहीं है। द्रविड़-राजनीति ने इसके सहारे ही सफलता हासिल की है। द्रविड़ आंदोलन, जिसने डीएमके और एआईएडीएमके दोनों को जन्म दिया, भाषाई आत्मनिर्णय के सिद्धांत पर आधारित था। राष्ट्रीय आंदोलन के कारण इस राज्य में भी कांग्रेस, मुख्यधारा की पार्टी थी, पर भाषा पर केंद्रित द्रविड़ आंदोलन ने राज्य से कांग्रेस को सत्ता से बेदखल कर दिया और आज तमिलनाडु में कांग्रेस द्रमुक के सहारे है।  

इस राज्य में भाषा-विवाद लगातार उठते रहते हैं। पिछले साल संसदीय शीत-सत्र में 5 दिसंबर को विरोधी दलों के सदस्यों ने ‘भारतीय न्याय संहिता’ के हिंदी और संस्कृत नामों के विरोध में सरकार पर हमला बोला। उन्होंने सरकार पर ‘हिंदी इंपोज़ीशन’ का आरोप लगाया। एक दशक पहले तक ऐसे आरोप आमतौर पर द्रमुक-अद्रमुक और दक्षिण भारतीय सदस्य लगाते थे। अब ऐसे आरोप लगाने वालों में कांग्रेस पार्टी भी शामिल है।

Thursday, February 20, 2025

हिंदी या उर्दू?


हिंदी ।।तीन।।

पिछले कुछ समय से फेसबुक पर मेरी पोस्ट में जब कोई अरबी-फारसी मूल का शब्द आ जाता था, तो एक सज्जन झिड़की भरे अंदाज़ में लिखते थे कि उर्दू के शब्दों का इस्तेमाल मत कीजिए। एक और सज्जन ने करीब दो-तीन सौ शब्दों की सूची जारी कर दी, जिनके बारे में उनका कहना था कि संस्कृत-मूल के शब्द लिखे जाएँ। मैं ऐसे मित्रों से अनुरोध करूँगा कि पहले तो वे लिपि और भाषा के अंतर को समझें और दूसरे हिंदी के विकास का अध्ययन करें। बहरहाल तंग आकर मैंने उन साहब को अपनी मित्र सूची से हटा दिया। फेसबुक में जिसे मित्र-सूची कहते हैं, वह मित्र-सूची होती भी नहीं है। मित्र होते तो कम से कम कुछ बुनियादी बातें, तो मेरे बारे में समझते होते, ख़ैर। 

उर्दू से कुछ लोगों का आशय होता है, जिस भाषा में अरबी-फारसी के शब्द बहुतायत से हों और जो नस्तालिक लिपि में लिखी जाती हो। उर्दू साहित्य के शीर्ष विद्वानों में से एक शम्सुर्रहमान फारुकी ने लिखा है कि भाषा के नाम की हैसियत से 'उर्दू' शब्द का इस्तेमाल पहली बार 1780 के आसपास हुआ था। उसके पहले इसके हिंदवी, हिंदी और रेख़्ता नाम प्रचलित थे। आज के दौर में उर्दू और हिंदी, मोटे तौर पर एक ही भाषा के दो नाम हैं। उर्दू में अरबी-फारसी शब्दों को शामिल करने की वज़ह से और नस्तालिक-लिपि के कारण तलफ़्फ़ुज़ का अंतर है, पर बुनियादी वाक्य-विन्यास एक है। 

आधुनिक हिंदी और उर्दू का विकास वस्तुतः हिंदी और उर्दू का विकास है। इन दोनों भाषाओं का विभाजन आज से करीब दो-ढाई सौ साल पहले होना शुरू हुआ था, जो हमारे सामाजिक-विभाजन का भी दौर है। इस विभाजन ने 1947 में राजनीतिक-विभाजन की शक्ल ले ली, तो यह और पक्का हो गया। भाषा की सतह पर भी दोनों के बुनियादी अंतरों को समझे बिना इस विकास को समझना मुश्किल है।