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Thursday, December 29, 2022

कोरोना को लेकर अब घबराने की जरूरत नहीं


दुनिया में एक बार फिर तेज़ी से कोरोना वायरस का संक्रमण बढ़ने की खबरें हैं। खासतौर से चीन के बारे में कहा जा रहा है कि वहाँ जिस रफ़्तार से वायरस का एक नया वेरिएंट फ़ैल रहा है, वहां इससे पहले देखा नहीं गया। चीन के अलावा अमेरिका, जापान, दक्षिण कोरिया, फ्रांस और यूरोप के कुछ और देशों में कोरोना की नई लहर की खबरें हैं। इन्हें लेकर भारत में भी डर फैल रहा है कि शायद कोई और भयावह लहर आने वाली है। चीन में जिस नए वेरिएंट की खबर है, उसका नाम बीएफ.7 रखा गया है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ भारत में तीन नए मामले ओमिक्रॉन के इस सब-वेरिएंट बीएफ.7 के पाए गए हैं।

भारत सरकार ने अपनी तरफ से इस सिलसिले में एहतियाती कदम उठाए हैं, पर विशेषज्ञों का कहना है कि इन खबरों से न तो परेशान होने की जरूरत है और न सनसनी फैलाने का कोई मतलब है। हवाई अड्डों पर चीन से आने वाले और अन्य विदेशी यात्रियों की रैंडम टेस्टिंग शुरू कर दी गई है। कुछ भारतीय चैनलों ने इसे जरूरत से ज्यादा तूल दिया है, जिसके कारण अनावश्यक सनसनी फैल रही है। यह सच है कि दुनिया से कोविड-19 अभी खत्म नहीं हुआ है, पर उस तरह की खतरनाक लहर की संभावना अब नहीं है, जैसी पहले आ चुकी है।

जीरो-कोविड नीति का परिणाम

चीन में हो रहे संक्रमण की एक वजह यह है कि वहाँ ज़ीरो कोविड नीति के कारण संक्रमण रुका हुआ था। हाल में जनता के विरोध के बाद प्रतिबंध उठा लिए गए हैं, जिसके कारण संक्रमण बढ़ा है। पर यह संक्रमण कितना है और उसका प्रभाव कितना है, इसे लेकर अफवाहें ज्यादा हैं, तथ्य कम। वस्तुतः चीन सरकार बहुत सी बातें बताती भी नहीं है, जिसके कारण अफवाहें फैलती हैं।

Monday, January 17, 2022

ओमिक्रॉन की धुआँधार तेजी के बाद अब बचाव का रास्ता क्या है?

ताजा खबर है कि ओमिक्रॉन के बाद एक नया वेरिएंट और सामने आया है, जो डेल्टा और ओमिक्रॉन का मिला-जुला रूप है। इसकी खबर सायप्रस से आई है। युनिवर्सिटी ऑफ सायप्रस के बायलॉजिकल साइंसेज़ के प्रोफेसर लेंडियस कोस्त्रीकिस ने इसकी जानकारी दी है, जिसके 25 केस सामने आए हैं। इसका नाम इन्होंने डेल्टाक्रॉन रखा है। बहरहाल यह एकदम शुरूआती जानकारी है, जिसकी पुष्टि अगले कुछ दिनों में होगी। कुछ विशेषज्ञों का अनुमान है कि लैब में सैम्पलों की मिलावट से भी ऐसा हो सकता है।

भारत में एक हफ्ते में रोजाना आ रहे संक्रमण दस हजार से बढ़कर एक लाख और फिर देखते ही देखते दो लाख की संख्या पार कर गए हैं। दूसरे दौर के पीक पर यह संख्या चार लाख से कुछ ऊपर तक पहुँची थी। उसके बाद गिरावट शुरू हुई थी। दूसरे देशों में भारत की तुलना में तीन से चार गुना गति से संक्रमण बढ़ रहा है। यह इतना तेज है कि विशेषज्ञों को विश्लेषण करने के लिए पर्याप्त डेटा हासिल करने तक का समय नहीं मिल पाया है। रोजाना तेजी से मानक बदल रहे हैं।

हालात सुधरेंगे या बिगड़ेंगे?

अब तक का निष्कर्ष है कि वेरिएंट बी.1.1.529 यानी ओमिक्रॉन का संक्रमण भले ही तेज है, पर इसका असर कम है। इसका मतलब क्या हुआ?  क्या यह महामारी खत्म होने का लक्षण है या किसी नए वेरिएंट की प्रस्तावना? क्या अगले वेरिएंट का संक्रमण और तेज होगा?  ज्यादातर विशेषज्ञ मानकर चल रहे हैं कि यह पैंडेमिक नहीं एंडेमिक बनकर रहेगा। पिछले दो साल का अनुभव है कि आप मास्क लगाएं, दूरी रखकर बात करें और हाथ धोते रहें, तो बचाव संभव है।

भारत में आईआईटी कानपुर, आईआईटी हैदराबाद तथा कुछ अन्य संस्थाओं के विशेषज्ञ मिलकर गणितीय मॉडल सूत्रपर काम कर रहे हैं। सूत्र का अनुमान है कि इसबार हर रोज की पीक संख्या चार से आठ लाख तक हो सकती है। इससे जुड़े विशेषज्ञ आईआईटी कानपुर के मणीन्द्र अग्रवाल ने कहा है कि इसमें सबसे बड़ी भूमिका दिल्ली और मुम्बई में हो रहे तेज संक्रमण की होगी। इन दोनों शहरों में पीक भी जनवरी के मध्य तक यानी इन पंक्तियों के प्रकाशन तक हो जाना चाहिए, जबकि शेष देश में फरवरी में पीक संभव है।

Tuesday, January 11, 2022

अफरा-तफरी नहीं, धैर्य से सामना कीजिए ओमिक्रॉन का


ओमिक्रॉन-संक्रमण जिस तेजी से बढ़ रहा है, उसे देखते हुए किसी एक संख्या पर उँगली रखना मुश्किल है। कई राज्यों ने आंशिक लॉकडाउन शुरू कर दिया है। दिल्ली में स्कूल, कॉलेज, जिम, सिनेमा हॉल बंद हैं। मेट्रो-बसों में यात्रियों की संख्या सीमित की गई है। रात 10 से सुबह 5 बजे तक नाइट कर्फ्यू है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने रविवार को राज्यों के स्वास्थ्य मंत्रियों के साथ ऑनलाइन बैठक की और नए निर्देश जारी किए हैं।

भारत में ओमिक्रॉन का पहला मरीज दक्षिण अफ्रीका से आया था। इसके कुछ दिन बाद वह दुबई चला गया। इसके बाद यह बात चर्चा का विषय बनी कि जब दक्षिण अफ्रीका की यात्रा पर कई देश रोक लगा चुके हैं तो भारत इसे क्यों नहीं रोक रहा। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के अलावा मुंबई और तेलंगाना समेत कई राज्यों ने जोखिम वाले देशों से यात्रा बंद करने की मांग की। पश्चिम बंगाल सरकार ने ब्रिटेन से कोलकाता आने वाली उड़ानों को निलंबित करने का फैसला किया है।

Monday, January 3, 2022

ओमिक्रॉन की पहेली, कितना खतरनाक?


कोविड-19 के नए वेरिएंट ओमिक्रॉन का असर अब अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका, एशिया और यूरोप समेत करीब 100 देशों पर दिखाई पड़ रहा है। अमेरिका की वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के इंस्टीट्यूट फॉर हैल्थ मीट्रिक्स एंड इवैल्युएशन (आईएचएमई) का अनुमान है कि अगले दो महीने में इससे संक्रमित लोगों की संख्या तीन अरब के ऊपर पहुँच जाएगी। यानी कि दुनिया की आधी आबादी से कुछ कम। यह संख्या पिछले दो साल में संक्रमित लोगों की संख्या से कई गुना ज्यादा होगी।

डरावना माहौल

पता नहीं ऐसा होगा या नहीं, पर सामान्य व्यक्ति के मन में इससे डर पैदा होता है। खतरा इतना बड़ा है, तो वैश्विक आवागमन को फौरन क्यों नहीं रोका जा रहा है? इस दौरान दो तरह की बातें सामने आ रही हैं। विशेषज्ञों का एक वर्ग कह रहा है कि ओमिक्रॉन का दुष्प्रभाव इतना कम है कि बहुत से लोगों को पता भी नहीं लगेगा कि वे बीमार हुए थे। दूसरी तरफ ऐसे विशेषज्ञ भी हैं, जो मानते हैं कि इसे हल्के में नहीं लेना चाहिए। यह भी पहले जैसा खतरनाक है।

इस दौरान वैक्सीन कंपनियाँ भी अपने टीकों में बदलाव कर रही हैं, पर वैक्सीन के वितरण में असमानता बदस्तूर है। क्या पिछले दो साल की तबाही से हमने कोई सबक नहीं सीखा है? कोविड-19 का सबक है कि महामारी जितनी देर टिकेगी, उतने म्यूटेंशंस-वेरिएशंस होंगे। वैक्सीनेशन में देरी का मतलब है म्यूटेशंस बढ़ते जाना। इसमें दो राय नहीं कि ओमिक्रॉन का संक्रमण बहुत तेज है। ब्रिटेन में हर दो दिन में इसके केस दुगने हो रहे हैं। इसका आर-रेट 3.5 है।

Sunday, December 12, 2021

कोरोना और वैश्विक-जागरूकता


संयोग है कि आज अंतर्राष्ट्रीय सार्वभौमिक-स्वास्थ्य कवरेज दिवसहै और हम  ओमिक्रॉन पर चर्चा कर रहे हैं, जो सार्वभौमिक-स्वास्थ्य के लिए नए खतरे के रूप में सामने आ रहा है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित यह दिन हर साल 12 दिसंबर को मनाया जाता है। सार्वभौमिक-स्वास्थ्य वैसा ही एक अधिकार है, जैसे जीवित रहना, शिक्षा प्राप्त करना, रोजगार पाना और विचरण करना जैसे मानवाधिकार हैं। उद्देश्य सार्वभौमिक-स्वास्थ्य कवरेज के बारे में जागरूकता को बढ़ाना है। इस साल की थीम हैकिसी के स्वास्थ्य की उपेक्षा न हो, सबके स्वास्थ्य पर निवेश हो। आइए दुनिया के स्वास्थ्य और उससे जुड़ी जागरूकता पर एक नजर डालें।

गरीबों को मयस्सर नहीं

दूसरे से तीसरे साल में प्रवेश कर रही महामारी और वैश्विक स्वास्थ्य-कवरेज पर विचार के लिए यह उचित समय है। टीकाकरण ठीक से हुआ, तो सार्वभौमिक इम्यूनिटी पैदा हो सकती है। पर इसमें भारी असमानता वैश्विक गैर-बराबरी को रेखांकित कर रही है। टीके कारगर हैं, पर उस स्तर को नहीं छू पा रहे हैं, जिससे हर्ड इम्युनिटी पैदा हो। अमीर देशों में टीके इफरात से हैं और लगवाने वाले उनका विरोध कर रहे हैं। दूसरी तरफ गरीब देशों में लोग टीकों का इंतजार कर रहे हैं, और उन्हें टीके मयस्सर नहीं हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने आगाह किया है कि अमीर देश, वैक्सीन वितरण के लिए यूएन समर्थित ‘कोवैक्स’ पहल में मदद करने के बजाय, टीकों को अपने कब्जे में रखेंगे, तो महामारी का जोखिम बढ़ेगा।

अनैतिक-अत्याचार

तमाम नकारात्मक खबरों के बावजूद विशेषज्ञों को भरोसा है कि आने वाले साल में महामारी पर नियंत्रण पाना संभव है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की मुख्य विशेषज्ञ मारिया वान करखोव ने हाल में पत्रकारों से कहा था, महामारी को रोकने के औजार हमारे हाथों में है। जरूरत ऐसे पड़ाव पर पहुँचने की है जहाँ से कह सकें कि संक्रमण पर नियंत्रण पा लिया गया है। अब तक हम ऐसा कर भी सकते थे, पर कर नहीं पाए। अमीर देशों में करीब 65 प्रतिशत लोग टीके लगवा चुके हैं और गरीब देशों में सात प्रतिशत को टीके की कम से कम एक खुराक मिली है। यह असंतुलन अनैतिक और अत्याचार है। रायटर्स की रिपोर्ट के अनुसार विश्व स्वास्थ्य संगठन ने गुरुवार को अमीर देशों को चेतावनी दी कि वे अपने यहाँ बूस्टर शॉट्स की व्यवस्था के बारे में फिलहाल न सोचें, बल्कि गरीब देशों के लिए टीके भेजें, क्योंकि वहाँ टीकाकरण बहुत धीमा है।

जबर्दस्त असंतुलन

जनसंख्या के आधार पर देखें, तो अमीर देशों में गरीब देशों की तुलना में 17 गुना टीकाकरण हुआ है। पीपुल्स वैक्सीन अलायंस संगठन के अनुसार अकेले ब्रिटेन में तीसरे बूस्टर शॉट्स की संख्या निर्धनतम देशों के कुल वैक्सीनेशन से ज्यादा है। युनिसेफ के अनुसार 10 दिसंबर तक दुनिया के 144 देशों को कोवैक्स के माध्यम से केवल 65 करोड़ से कुछ ऊपर डोज़ मिल पाई हैं। अफ्रीका की 80 फीसदी से ज्यादा आबादी को पहली डोज़ भी नहीं मिल पाई है। ये गरीब देश पूरी तरह से कोवैक्स-व्यवस्था पर ही निर्भर हैं। उदाहरण के लिए हेती में 1.00, कांगो में 0.02 और बुरुंडी में 0.01 फीसदी लोगों को कम से कम एक डोज़ लगी है।

Wednesday, December 8, 2021

नए वेरिएंट के साथ महामारी का तीसरा साल, घबराने की जरूरत नहीं


दुनिया पर छाई महामारी तीसरे साल में प्रवेश कर रही है। आम राय है कि अब इसका असर कम होना चाहिए, पर तीन बातों ने परेशान कर रखा है। यूरोप में एक नई लहर आई है। पश्चिमी देशों में वैक्सीन-विरोधी आंदोलन ने जोर पकड़ लिया है, जिसके कारण बीमारी पर काबू पाने में दिक्कतें पैदा हो रही हैं। और तीसरे वायरस का एक नया वेरिएंट प्रकट हुआ है, जिसने दुनियाभर में दहशत पैदा कर दी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन को इसके पहले मामले की जानकारी 24 नवंबर को दक्षिण अफ्रीका से मिली थी। बोत्सवाना, बेल्जियम, हांगकांग और इसराइल में भी इस वेरिएंट की पहचान हुई है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस नए वेरिएंट को ओमिक्रोन नाम दिया है और इसे  'चिंतनीय वेरिएंट' (वेरिएंट ऑफ़ कंसर्न/वीओसी) की श्रेणी में रखा है। यह काफी तेज़ी से और बड़ी संख्या में म्यूटेट होने वाला वेरिएंट है। महामारी का दो साल का अनुभव है कि जितनी तेजी से काम करेंगे, बीमारी पर काबू पाने में उतनी ही आसानी होगी। सवाल है, क्या इस नए वेरिएंट पर काबू पाया जा सकेगा? क्या यूरोप में इसबार का सर्दी का मौसम शांति से गुजर जाएगा? और क्या इस तीसरे साल यह बीमारी पूरी तरह विदा हो जाएगी?

ज्यादा खतरनाक

शुरूआती अंदेशा था कि मुकाबले डेल्टा के नया वेरिएंट ओमिक्रोन ज्यादा खतरनाक साबित हो सकता है, पर अब खबरें आ रही हैं कि यह तेजी से संक्रमित होता है, पर कम खतरनाक है। इसके लक्षण मामूली हैं और घातक नहीं है। फिर भी एक सवाल है कि डेल्टा पर तो वैक्सीन प्रभावी थीं, क्या ओमीक्रोन के खिलाफ भी वे प्रभावी होंगी? क्या वैक्सीनों में बदलाव लाना होगा? फायज़र और बायोएनटेक ने इसकी जाँच शुरू कर भी दी है। उनका कहना है कि जरूरी हुआ, तो हम छह हफ्ते के भीतर वैक्सीन में बदलाव कर देंगे और 100 दिन के भीतर वैक्सीन के नए बैच जारी कर देंगे।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के डॉक्टर माइक रयान का कहना है कि दुनिया में इस वक्त लगाए जा रहे कोरोना के टीके, कोविड के नए वेरिएंट ओमिक्रोन से लड़ने में समर्थ हैं। डब्लूएचओ ने कहा कि ऐसा कोई संकेत नहीं है कि ओमिक्रोन वेरिएंट पर वैक्सीन का असर, बाकी वेरिएंट की तुलना में कम होगा। डॉक्टर रयान ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया, "हमारे पास बहुत ही प्रभावी टीके हैं जो गंभीर बीमारी और अस्पताल में भरती होने के मामले में अब तक सभी वेरिएंट के ख़िलाफ़ प्रभावी साबित हुए हैं। यह मान लेने का कोई कारण नहीं है कि ओमिक्रोन पर इनका असर कम होगा।"

उन्होंने कहा कि शुरुआती आंकड़ों से पता चलता है कि ओमिक्रॉन ने डेल्टा और अन्य वेरिएंट की तुलना में कम लोगों को संक्रमित किया है। उनके मुताबिक यह बात इसके कम गंभीर होने की दिशा में इशारा करती है। अमेरिका के शीर्ष वैज्ञानिक डॉ एंटनी फाउची ने मंगलवार को कहा कि कोविड-19 का ओमीक्रोन वेरिएंट 'निश्चित' रूप से डेल्टा वेरिएंट से ज्यादा घातक नहीं है। बी.1.1.1.529 वेरिएंट ने बहुत बड़ी संख्या में म्यूटेशन दिखाए हैं। उन्होंने कहा कि कुछ संकेत मिले हैं कि यह कम गंभीर हो सकता है क्योंकि जब आप साउथ अफ्रीका की स्थिति देखते हैं तो पाते हैं कि संक्रमण की संख्या और अस्पताल में भरती होने वाले मामलों की संख्या के बीच का अनुपात डेल्टा की तुलना में कम है।

Friday, December 3, 2021

यूरोप में भयावह लहर, फिर भी कोविड-पाबंदियों का विरोध


कोरोना वायरस ने एक बार फिर यूरोप में कहर मचाना शुरू कर दिया है। ज्यादातर देशों ने कोविड-पाबंदियों को सख्ती से लागू करना शुरू किया है, जिनका विरोध हो रहा है। पाबंदियों का विरोध ही नहीं वैक्सीनेशन का विरोध भी हो रहा है। ऑस्ट्रिया की राजधानी वियना में 40,000 ऐसे लोगों ने विरोध-प्रदर्शन किया है, जिन्होंने टीके नहीं लगवाए। उधर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने यूरोप और मध्य एशिया के 53 देशों को चेतावनी दी है कि इन दो इलाकों में कोविड-19 से फरवरी तक पाँच लाख मौतें हो सकती हैं। संक्रमण की वजह से हो रही मौतों में से करीब आधी यूरोप के देशों में हैं। यूरोप में एक हफ्ते में 20 लाख से ज्यादा नए केस मिल रहे हैं।

टीके की अनिवार्यता

इस लहर की भयावहता को देखते हुए संभवतः ऑस्ट्रिया अगले साल फरवरी से पहला देश बनेगा, जहाँ टीका लगवाना कानूनन अनिवार्य किया जा सकता है। शुक्रवार 19 नवंबर को सरकार ने इस आशय की घोषणा की। इस घोषणा के बाद राजधानी वियना में हजारों लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया। विश्व स्वास्थ्य संगठन के यूरोप में रीजनल डायरेक्टर डॉ हैंस क्लूग का कहना है कि कानूनन वैक्सीनेशन को अनिवार्य बनाना अंतिम उपाय होना चाहिए। अलबत्ता इस विषय पर समाज में व्यापक विचार-विमर्श होना चाहिए।

डॉ क्लूग का कहना है कि मास्क पहनने से संक्रमण को काफी हद तक रोका जा सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि सर्दी का मौसम, टीकाकरण में कमी और बहुत तेजी से फैलने वाले डेल्टा वेरिएंट की उपस्थिति के कारण यूरोप पर खतरा बढ़ा है। यूरोप और मध्य एशिया के देशों में अब तक करीब 14 लाख लोगों की मौतें इस महामारी से हो चुकी हैं। अब यूरोप और मध्य एशिया के देशों में सर्दी शुरू होने के कारण बीमारी के बढ़ने का अंदेशा पैदा हो गया है। पूर्वी यूरोप के देशों में हालात खासतौर से ज्यादा खराब हैं। रोमानिया, एस्तोनिया, लात्विया और लिथुआनिया जैसे देशों में स्थिति खराब है।

लॉकडाउन

ऑस्ट्रिया ने सोमवार 22 नवंबर से देशव्यापी लॉकडाउन लगाया गया। लॉकडाउन अधिकतम 20 दिन तक चलेगा, हालांकि 10 दिन के बाद इसपर पुनर्विचार किया जाएगा। इस दौरान लोगों के अनावश्यक रूप से बाहर जाने पर रोक होगी, रेस्तरां तथा ज्यादातर दुकानें बंद रहेंगी और बड़े आयोजन रद्द रहेंगे। स्कूल और ‘डे-केयर सेंट’ खुले तो रहेंगे, लेकिन अभिभावकों को बच्चों को घर पर रखने की सलाह दी गई है।

इससे एक दिन पहले, रविवार को मध्य वियना के बाजारों में भीड़ उमड़ पड़ी। यह भीड़ लॉकडाउन से पहले जरूरत की चीजों और क्रिसमस की खरीदारी के लिए भी थी। लोगों के मन में भविष्य को लेकर अनिश्चय है। देश के चांसलर अलेक्जेंडर शालेनबर्ग ने शुक्रवार को लॉकडाउन की घोषणा की थी। तब उन्होंने यह भी कहा था कि अगले वर्ष एक फरवरी से यहां लोगों के लिए टीकाकरण अनिवार्य किया जा सकता है।

ऑस्ट्रिया ने शुरू में केवल उन लोगों के लिए राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन की शुरुआत की थी, जिनका टीकाकरण नहीं हुआ है, लेकिन संक्रमण के मामले बढ़ने पर सरकार ने सभी के लिए इसे लागू कर दिया। दो सबसे ज्यादा प्रभावित प्रांत, सॉल्ज़बर्ग और ऊपरी ऑस्ट्रिया ने कहा कि वे अपने यहां लॉकडाउन की शुरुआत करेंगे, जिससे सरकार पर राष्ट्रीय स्तर पर ऐसा करने का दबाव बढ़ेगा। नए प्रतिबंधों की घोषणा और अगले साल टीकों को अनिवार्य बनाने की योजना के बाद 10 हजार से ज्यादा लोगों ने ऑस्ट्रिया की राजधानी वियना में भी विरोध प्रदर्शन किया।

Saturday, November 27, 2021

पहले से ज्यादा घातक है कोरोना का नया वेरिएंट


विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक सलाहकार समिति ने दक्षिण अफ्रीका में पहली बार सामने आए कोरोना वायरस के नए वेरिएंट को ओमीक्रोन (Omicron)  नाम दिया है। यह एक ग्रीक शब्द है। डब्लूएचओ ने इस नए वेरिएंट को तकनीकी शब्दावली में 'चिंतनीय वेरिएंट' (वेरिएंट ऑफ़ कंसर्न/वीओसी) बताया है। डब्लूएचओ ने कहा कि यह काफी तेज़ी से और बड़ी संख्या में म्यूटेट होने वाला वेरिएंट है। इस वेरिएंट के कई म्यूटेशन चिंता पैदा करने वाले हैं, जिसके कारण संक्रमण का ख़तरा बढ़ गया है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन को इसके पहले मामले की जानकारी 24 नवंबर को दक्षिण अफ्रीका से मिली थी। इसके अलावा बोत्सवाना, बेल्जियम, हांगकांग और इसराइल में भी इस वेरिएंट की पहचान हुई है। इस वेरिएंट के सामने आने के बाद दुनिया के कई देशों ने दक्षिणी अफ्रीका से आने-जाने पर प्रतिबंध लगाने का फ़ैसला किया है। दक्षिण अफ्रीका, नामीबिया, जिम्बाब्वे, बोत्सवाना, लेसोथो और इस्वातिनी से आने वाले लोग ब्रिटेन में प्रवेश नहीं कर पाएंगे, बशर्ते वे ब्रिटेन या आयरलैंड के नागरिक या ब्रिटेन के निवासी न हों।

अमेरिकी अधिकारियों ने भी दक्षिण अफ्रीका, बोत्सवाना, जिम्बाब्वे, नामीबिया, लेसोथो, इस्वातिनी, मोज़ाम्बीक और मलावी से आने वाली उड़ानों को रोकने का फ़ैसला किया है। यह प्रतिबंध सोमवार से लागू हो जाएगा। यूरोपीय संघ के देशों और स्विट्ज़रलैंड ने भी कई दक्षिणी अफ्रीकी देशों से आने-जाने वाले विमानों पर अस्थायी रोक लगा दी है।

कोरोना के नए वेरिएंट मिलने की ख़बर से दुनिया भर के शेयर बाज़ारों में शुक्रवार को तेज़ गिरावट दर्ज की गई. ब्रिटेन के प्रमुख शेयरों के सूचकांक 'एफ़टीएसई 100' में क़रीब चार फ़ीसदी की गिरावट हुई। मुम्बई शेयर बाजार  1688 अंक गिर गया। जर्मनी, फ्रांस और अमेरिका के बाज़ार भी टूटने की खबरें हैं।

Saturday, November 20, 2021

कोरोना की दवाओं की ईज़ाद से बँधी एक और उम्मीद


अमेरिका की दो दवा कंपनियों ने एकसाथ कोरोना की दवाइयों की ईज़ाद का ऐलान करके कोविड-19 संक्रमण का सामना कर रही दुनिया को राहत दी है। ये दवाएं महंगी हैं, पर दुनिया को इनसे उम्मीद बँधी है। दोनों दवाएं गोलियों की शक्ल में हैं। इनमें से एक को ब्रिटेन की मेडिसंस एंड हैल्थकेयर प्रोडक्ट्स रेगुलेटरी एजेंसी (एमएचआरए) ने स्वीकृति दे दी है। दोनों को ही अमेरिकी फूड एंड ड्रग्स एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) की मंज़ूरी भी मिलने की संभावना है। दावा किया गया है कि दोनों दवाएं वायरस को शरीर के भीतर बढ़ने से रोकती और उसके असर को खत्म करती हैं।

हालांकि इसके पहले भी कोविड-19 की दवाओं को तैयार किए जाने का दावा किया गया है, पर यह पहली बार है कि किसी सरकारी संस्थान ने दवा को मंजूरी दी है। इन दवाओं की प्रभावोत्पादकता पक्के तौर स्थापित हुई, तो कोविड-19 के विरुद्ध वैश्विक प्रयासों को यकीनन बड़ी सफलता मिलेगी। वैक्सीन के साथ-साथ अब ये दवाएं भी हमारे पास हैं।

गेम चेंजर

ब्रिटिश वायरोलॉजिस्ट स्टीफन ग्रिफिन का कहना है कि इन दवाओं की सफलता से सार्स-कोव2 के संक्रमण के घातक परिणामों को रोकने में काफी मदद मिलेगी। बीबीसी के अनुसार ब्रिटेन के स्वास्थ्य मंत्री साजिद जावेद ने इसे 'गेमचेंजर' बताया है। उन्होंने कहा, 'आज का दिन हमारे देश के लिए ऐतिहासिक है, क्योंकि ऐसे एंटी वायरल को मंजूरी देने वाला यूके विश्व का पहला देश बना गया है, जिसे घर पर लिया जा सकता है।'

अभी तक कोरोना का सबसे बेहतर इलाज सिंथेटिक-एंटीबॉडीज़ या मोनोक्लोनल एंटीबॉडी कॉकटेल के रूप में उपलब्ध था, जिसे इंजेक्शन के सहारे दिया जाता था। अब जो दवाएं सामने आई हैं, उन्हें गोलियों के रूप में लिया जा सकता है। दावा यह भी किया गया है कि इनके साइड इफेक्ट भी नहीं हैं। दवा कंपनी मर्क ने बताया है कि उसकी दवाई मोलनुपिराविर को ब्रिटिश औषधि नियामक की स्वीकृति मिल गई है और अब अमेरिकी एफडीए से स्वीकृति देने का अनुरोध किया गया है। यूरोपियन मेडिसिन एजेंसी भी कुछ औषधियों को स्वीकृति देने पर विचार कर रही है।

जोखिम कम हुआ

मर्क की घोषणा के अगले ही दिन फायज़र ने भी अपनी दवा पैक्सलोविड की सफलता की घोषणा की। दोनों ही एंटी-वायरल दवाएं हैं, जो वायरस की शरीर के भीतर वृद्धि को रोकने की क्षमता रखती हैं। दोनों कंपनियों का दावा है कि इनके सेवन से संक्रमित व्यक्ति को अस्पताल में भरती करने की जरूरत बहुत कम रह जाएगी। दवा को ब्रिटिश-स्वीकृति मिलने के पहले ही मर्क और अमेरिकी सरकार के बीच मोलनुपिराविर के 17 लाख कोर्सों की सप्लाई का सौदा हो चुका है। कोर्स यानी पाँच दिन की पूरी दवाई।

फायज़र ने बताया कि पैक्सलोविड ब्रांड नाम की इस गोली को मरीज को दिन में दो बार देना होता है। शर्त है कि उसे एफडीए की स्वीकृति मिल जाए। कंपनी का कहना है कि साल के अंत तक हम दवाई के एक करोड़ कोर्स तैयार कर लेंगे और 2022 में हमारा लक्ष्य दो करोड़ कोर्स तैयार करने का है। मर्क ने इसे बनाने का लाइसेंस कुछ दूसरी कंपनियों को भी दिया है।

भारत में भी इसका ट्रायल चल रहा है और संभव है कि किसी कंपनी को इसके उत्पादन का लाइसेंस मिले। गेट्स फाउंडेशन के ग्लोबल हैल्थ कार्यक्रम के अध्यक्ष ट्रेवर मंडेल ने कहा है कि अपेक्षाकृत कम अमीर देशों में जेनरिक दवाएं बनाने वाली कई कंपनियाँ मोलनुपिराविर की माँग का इंतजार कर रही हैं, इसलिए फाउंडेशन ने 12 करोड़ डॉलर इस मद में रख दिए हैं, ताकि उत्पादन-व्यवस्था के लिए उनकी मदद की जा सके।  

Monday, October 18, 2021

सावधान! महामारी का सबसे नाज़ुक दौर है अब


कोविड-19 को लेकर दो तरह के परिदृश्य हमारे सामने हैं। दूसरी लहर के भयानक हाहाकार के बाद कम से कम भारत में स्थितियाँ सुधरती हुई लग रही हैं। देश के काफी राज्यों में जन-जीवन अपेक्षाकृत सामान्य हो चला है, स्कूल-कॉलेज खुलने लगे हैं, सरकारी दफ्तरों में काम होने लगा है, बाजार, मॉल और सिनेमाघर तक खुलने लगे हैं। पर तस्वीर का दूसरा पहलू भी है। महामारी कहीं गई नहीं है, वह अभी हमारे बीच है। उसके कई वेरिएंट विचरण कर रहे हैं।  पिछले दो साल में यह सबसे नाज़ुक मौका है। अब हम उसे दबोच सकते हैं और बीमारी भी हमें दबोच सकती है। खासतौर से भारत में इस वक्त सबसे ज्यादा सजग रहने की जरूरत है।

48 लाख से ज्यादा मौतें

दुनिया भर में कुल केस इस हफ्ते 23 करोड़ 90 लाख के आसपास पहुँच चुके हैं। एक करोड़ 80 लाख से ज्यादा एक्टिव केस हैं, जिनमें से करीब 83 हजार गम्भीर स्थिति में हैं। 48 लाख 70 हजार से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं। भारत में कुल मामले तीन करोड़ 40 लाख के आसपास हैं और कुल मौतें साढ़े चार लाख से ज्यादा हो चुकी हैं। 12 अक्तूबर की सुबह तक देश में कुल 3 करोड़, 39 लाख, 84 हजार से ज्यादा केस हो चुके हैं। इनमें एक्टिव मरीजों की संख्या 2,07,937 थी।

दुनिया में भारत दूसरे नम्बर पर है। सिर्फ अमेरिका में ही भारत से ज्यादा मामले हैं। वहां कोरोना संक्रमणों की संख्या चार करोड़ से ऊपर है मौतों की संख्या सात लाख से ऊपर। ब्राजील में दो करोड़ के ऊपर केस हुए हैं और इससे हुई मौतों की संख्या 6 लाख से ज्यादा है। इन तीनों देशों में दुनिया के आधे से ज्यादा कोरोना मरीज हैं। यूके में 79 लाख, रूस में 75 लाख, तुर्की में 72 और फ्रांस में 70 लाख मामले सामने आए हैं। यह लम्बी सूची है।

भारत में महाराष्ट्र सबसे ज्यादा प्रभावित राज्य है, जहाँ कुल मामले 65 लाख से ज्यादा हैं। वहाँ पूरे देश की एक चौथाई यानी एक लाख से ज्यादा मौतें हुई हैं। केरल में 48 लाख से ज्यादा, कर्नाटक में 29, तमिलनाडु में 26 लाख, आन्ध्र प्रदेश में 20 लाख, उत्तर प्रदेश में 17 लाख, पश्चिम बंगाल 15 लाख और दिल्ली में 14 लाख से ऊपर मामले आ चुके हैं।

त्योहारों का मौका

भारत और खासतौर से उत्तर भारत में, यह सबसे नाज़ुक समय है। लड़कों पर भीड़ बढ़ गई है। त्योहारों के कारण अब जनवरी के पहले हफ्ते तक हमें खासतौर से सावधान रहने की जरूरत है। इस दौरान कई लम्बे वीकेंड आएंगे। कई दिन की छुट्टियाँ पड़ेंगी। पिछले दो साल से लोग अपने घरों में कैद हैं। ऐसे में लोग घूमने के लिए निकल पड़ते हैं। इस साल भी संयम बरतें। विशेषज्ञों का कहना है कि पर्यटकों की संख्या में वृद्धि और सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक या धार्मिक सभाओं के कारण जनसंख्या के घनत्व में अचानक वृद्धि से कोरोना वायरस संक्रमण के मामले बढ़ सकते है।

Friday, October 1, 2021

कब मिलेगा छुटकारा महामारी के इस दानव से?

कोरोना वायरस से उत्पन्न महामारी को इस साल के अंत तक दो साल पूरे हो जाएंगे, पर लगता नहीं कि इससे हमें छुटकारा मिलेगा। अभी तो तीसरी और चौथी लहरों की बात हो रही है। वैज्ञानिकों की मोटी राय है कि यह रोग सबको करीब से छू लेगा, तभी जाएगा। छूने का मतलब यह नहीं है कि सबको होगा। इसका मतलब है कि या तो वैक्सीनेशन से या संक्रमण से प्राप्त इम्यूनिटी ही सामान्य व्यक्ति को इस रोग का मुकाबला करने लायक बनाएगी। कुछ लोगों को दूसरी बार संक्रमण भी होगा। वैक्सीन लगने के बाद भी होगा। वायरस नहीं मिटेगा, पर उसका असर काफी कम हो जाएगा। हमारे शरीरों का प्राकृतिक प्रतिरक्षण बढ़ जाएगा।

डब्ल्यूएचओ के यूरोप मामलों के प्रमुख हैंस क्लूग ने महामारी को नियंत्रित करने के प्रयासों के परिणामों पर निराशा जाहिर की है। उनका मानना ​​​​है कि वायरस का कोई तत्काल इलाज नहीं है, क्योंकि वायरस के नए वेरिएंट हर्ड इम्युनिटी को हासिल करने की उम्मीदों को धराशायी कर रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के निदेशक ने मई में कहा था कि जब टीकाकरण 70 प्रतिशत तक पूरा हो जाएगा तो ज्यादातर देशों में कोरोना वायरस महामारी खत्म हो जाएगी। ऐसा नहीं हुआ है और एक नई लहर का खतरा खड़ा है।

सहारा टीके का

विशेषज्ञ मानते हैं कि दुनिया की 90-95 फीसदी आबादी को टीका लग जाए, तो इसे रोका जा सकता है। ब्लूमबर्ग वैक्सीन ट्रैकर के अनुसार करीब छह अरब डोज़ दुनिया भर में लगाई जा चुकी हैं। अमेरिका में 64, ईयू 67, ब्रिटेन 73, जर्मनी 67, फ्रांस 77, इटली 73, यूएई 84,  दक्षिण कोरिया 71, रूस 32, जापान 66 और भारत में करीब 44 फीसदी आबादी को कम से कम एक टीका लग गया है। अब दूसरी तरफ देखें। म्यांमार 9.4, बांग्लादेश 13.5, वियतनाम 28.6, इराक 10.7, अफगानिस्तान 2.6, सूडान 1.5, यमन 1.0, केमरून 1.5। बहुत से देशों में टीकाकरण शुरू ही नहीं हुआ है।

Wednesday, September 15, 2021

स्कूल खोलने के खतरे हैं, पर उनकी जरूरत भी है


हालांकि महामारी की तीसरी और चौथी लहरों का खतरा सिर पर है, फिर भी दुनियाभर में स्कूल फिर से खुल रहे हैं। दूसरी तरफ बच्चों के संरक्षकों की चिंताएं बढ़ रही हैं, अदालतों ने कई तरह के एहतियात बरतने के निर्देश दिए हैं, फिर भी बहुत से लोग सवाल कर रहे हैं कि जल्दी क्या है? कुछ समय और रुक जाते, तो क्या हो जाता?  बेशक स्कूलों को खोलने के खतरे हैं, पर कम से कम तीन बड़े कारणों से उन्हें अब खोलने की जरूरत है।

स्कूलों के बंद होने से पूरी एक पीढ़ी समय से पीछे चली गई है, उसे और पीछे धकेलना ठीक नहीं। दूसरे, स्कूलों यानी शिक्षा का रिश्ता पूरी सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था से है। पिछले साल के शटडाउन के बाद जब शेष व्यवस्था को खोला गया, तो स्कूलों को भी देर-सबेर खोलना होगा। जितनी देर लगाएंगे, नुकसान उतना ज्यादा होगा। तीसरे, बड़ी संख्या में बहुत से लोगों की रोजी-रोटी स्कूलों के साथ जुड़ी हुई है। इनमें शिक्षकों, शिक्षा-सामग्री तैयार करने वालों, बच्चों की यूनिफॉर्म तैयार करने वालों, रिक्शा चालकों से लेकर बस ड्राइवरों, आयाओं और ऐसे तमाम लोगों की रोजी-रोटी का सवाल है। उनका जीवन दूभर हुआ जा रहा है।

एहतियात की जरूरत

स्कूल खोले जाएंगे, तब साथ में कई प्रकार की एहतियात भी बरती जाएंगी। सच यह भी है कि बच्चे अब घरों से बाहर निकलने लगे हैं। मसलन काफी बच्चों ने ट्यूशन पढ़ना शुरू कर दिया है। अपने अपार्टमेंट, कॉलोनी या गाँव में वे खेल भी रहे हैं। दूसरी सामूहिक गतिविधियों में भी शामिल होने लगे हैं। पर औपचारिक स्कूलिंग का अपना महत्व है।

स्कूलों की बंदी का प्रभाव अलग-अलग देशों पर अलग-अलग तरीके से पड़ा है। भारत उन देशों में है, जहाँ स्कूल सबसे लम्बे समय तक बंद रहे हैं। इसका सबसे बड़ा असर ग्रामीण क्षेत्रों पर पड़ा है। उन गरीब घरों के बच्चे कई साल पीछे चले गए हैं, जिन्हें शिक्षा की मदद से आगे आने का मौका मिलता। काफी बच्चों की शिक्षा के दरवाजे हमेशा के लिए बंद हो गए हैं। इस साल जुलाई तक दुनिया के करीब 175 देशों में स्कूल फिर से खुल गए थे। भारत भी कब तक उन्हें बंद रखेगा? कुछ देशों में जैसे कि फ्रांस, डेनमार्क, पुर्तगाल और नीदरलैंड्स में ज्यादातर, खासतौर से प्राइमरी स्कूल उस वक्त भी खुले रहे, जब महामारी अपने चरम पर थी।

Tuesday, September 7, 2021

ब्रेकथ्रू-इंफेक्शन और वैक्सीन को लेकर उठे नए सवाल


देश में कोरोना के नए मामलों की संख्या में आ रही गिरावट में उतार-चढ़ाव देखने को मिल रहा है। उत्तर भारत में गिरावट जारी है, पर केरल में एक नई प्रवृत्ति देखने को मिल रही है। वहाँ नौ जिलों में वैक्सीन की दोनों डोज ले चुके लोग बड़ी संख्या में कोविड पॉजिटिव पाए गए हैं। पिछले कुछ दिनों में संक्रमण के ऐसे 40,000 केस सामने आ चुके हैं। इनमें भी पथनामथिट्टा की रिपोर्ट बहुत चिंताजनक है। वायनाड में करीब-करीब सौ फीसदी टीकाकरण हुआ है, पर ब्रेकथ्रू के मामले वहां भी हैं।

दूसरी डोज के बाद कुल ब्रेकथ्रू इंफेक्शन के 46 प्रतिशत केस केरल में आए हैं।  केरल में करीब 80 हजार ब्रेकथ्रू इंफेक्शन (टीका लेने के बाद संक्रमण) के मामले सामने आए हैं। इनमें करीब 40 हजार दूसरी डोज के बाद के हैं। इतने ज्यादा मामलों को देखते हुए केंद्र ने राज्य सरकार से सभी मामलों की जीनोम सीक्वेंसिंग कर पता लगाने को कहा कि कहीं नया वेरिएंट तो यह सब नहीं कर रहा।

ब्रेकथ्रू-इंफेक्शन

अमेरिका के सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) के अनुसार, ब्रेकथ्रू इंफेक्शन उसे कहते हैं जब वैक्सीन की दोनों डोज लेने के 14 दिन या उससे ज्यादा समय बाद कोई व्यक्ति कोरोना पॉजिटिव पाया जाए। ऐसे में पहला शक होता है कि कहीं ऐसा कोई वेरिएंट तो नहीं फैल रहा जो टीके से हासिल इम्यूनिटी को ध्वस्त कर रहा हो। केरल में छह सदस्यीय केंद्रीय टीम भेजी गई थी जिसने अपने शुरुआती आकलन में बताया कि ब्रेकथ्रू इंफेक्शन कोवैक्सीन और कोवीशील्ड दोनों ही वैक्सीन लगवाने वाले लोगों में मिले हैं।

Tuesday, August 3, 2021

कम होता वैक्सीन-भय और दुनियाभर में बढ़ता तीसरी-चौथी लहर का खतरा


कोरोना वायरस से बचाव के लिए दुनिया टीकाकरण पूरा होने का इंतज़ार कर रही है। डॉक्टरों, वैज्ञानिकों और महामारी विशेषज्ञों के बड़े हिस्से का मानना है कि कोरोना के मुकम्मल इलाज के लिए वैक्सीन के अलावा और कोई विकल्प नहीं है, फिर भी एक तबका ऐसा हो, जो टीका लगवाना नहीं चाहता। कुछ लोग ऐसे हैं, जो टीका लगवाने से घबराते हैं। वे उन खबरों को गौर से सुनते हैं, जिनमें टीका लगवाने के बाद पैदा हुई परेशानियों का विवरण हो। दूसरी तरफ कुछ लोग ऐसे हैं, जो टीके के सख्त विरोधी हैं। कुछ वैज्ञानिक सिद्धांतों का हवाला देते हैं और कुछ धार्मिक विश्वासों का।

पिछले साल दुनिया में कोविड-19 से सबसे ज्यादा संक्रमण अमेरिका में हो रहे थे और वहाँ मौतें भी सबसे ज्यादा हुई थीं। पर जैसे ही टीके लगने शुरू हुए वहाँ बीमारी पर काफी हद तक काबू पा लिया गया। जहाँ इस साल 12 जनवरी को साढ़े चार हजार के ऊपर मौतें हुई थीं, वहीं अब यह संख्या सौ से डेढ़ सौ के बीच है। पर ज्यादा महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि मरने वालों में करीब 90 फीसदी ऐसे हैं, जिन्होंने टीका नहीं लगवाया है।

वैक्सीन-विरोध

दुनियाभर में ऐसे संगठित समूह हैं, जो हर तरह की वैक्सीन के विरोधी हैं। वे अनिवार्य टीकाकरण को नागरिक अधिकारों, वैयक्तिक स्वतंत्रता और स्वायत्तता का उल्लंघन मानते हैं। उनके अनुसार वैक्सीन से कोई फ़ायदा नहीं। यह इंसान के प्राकृतिक-प्रतिरक्षण के साथ दखलंदाजी है। इन्हें एंटी-वैक्स कहा जाता है। कुछ धार्मिक समूह हैं, कुछ वैकल्पिक मेडिसिन के समर्थक। कुछ मानते हैं कि वैक्सीन कुछ नहीं बड़ी कम्पनियों की कमाई का धंधा है। एक प्रकार की विश्व-व्यापी साजिश।

Thursday, July 29, 2021

प्रवासी-कामगारों पर खतरे की 'कोविड-लहरें'


ओलिम्पिक खेल चल रहे हैं और एक नया खतरा सामने है कि कहीं कोविड-19 के संक्रमण पर इसका असर तो नहीं पड़ेगा। 23 जुलाई से शुरू हुई इन प्रतियोगिताओं में तोक्यो और उसके तीन पड़ोसी प्रांतों सैतामा, चिबा और कानागावा में दर्शकों का प्रवेश नहीं होगा। अलबत्ता शिजुओका, इबाराकी, फुकुशिमा और मियागी प्रान्तों में होने वाली प्रतियोगिताओं में दर्शक आ सकेंगे, पर उनकी अधिकतम संख्या 10,000 या स्टेडियम बैठने की क्षमता के 50 प्रतिशत तक सीमित होगी। खतरा फिर भी सिर पर है कि कहीं ये खेल कोरोना की एक नई लहर लेकर न आएं। दर्शक नहीं होंगे, पर दुनियाभर से आए खिलाड़ी तो मैदान में होंगे।

एक साल स्थगित रहने के बाद ये प्रतियोगिताएं हो तो रही हैं, पर कई प्रकार की आशंकाएं हैं। ओलिम्पिक के अलावा क्रिकेट, फुटबॉल, हॉकी, एथलेटिक्स, बैडमिंटन और टेनिस की वैश्विक प्रतियोगिताएं धीरे-धीरे शुरू हो रही हैं। दुनिया का प्रयास है कि कोरोना को परास्त करने के बाद दुनिया का कार्य-व्यवहार जल्द से जल्द फिर से ढर्रे पर वापस आ जाए। यह सब इसलिए जरूरी है, ताकि हमारी खुशियाँ फिर से वापस आ सकें। यह सिर्फ खेल की बात नहीं है। इसके साथ रोजी-रोजगार, खान-पान, आवागमन, पर्यटन, प्रवास जैसी तमाम बातें जुड़ी हैं, जो इनसान के जीवन को चलाए रखने के लिए जरूरी हैं।

ब्रिटेन में फ्रीडम-डे

ब्रिटेन के अधिकतर हिस्सों में सोमवार 19 जुलाई से लॉकडाउन की पाबंदियां हटा ली गई हैं। सरकार ने सोशल डिस्टेंसिंग के अनिवार्य पालन संबंधी आदेश भी वापस ले लिया है। नाइट क्लब्स को खोल दिया गया है। इनडोर गतिविधियों को पूरी क्षमता के साथ खोलने की अनुमति दे दी गई है। फेस मास्क की अनिवार्यता खत्म, वर्क फ्रॉम होम भी जरूरी नहीं। प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन का कहना है, इस समय नहीं तो फिर ये पाबंदियाँ सर्दी में ही हटेंगी। सर्दी में वायरस का असर ज्यादा होगा। स्कूलों की छुट्टियाँ एक अवसर है। अब नहीं तो कब खोलेंगे? ब्रिटिश मीडिया ने इसे फ्रीडम-डेका नाम दिया है, पर वैज्ञानिकों ने सवाल उठाए हैं। यह फैसला लागू होने के दो दिन पहले शनिवार को ब्रिटेन में 54,000 से ज्यादा नए मामले आए थे, जो जनवरी के बाद सबसे बड़ा नम्बर है। विशेषज्ञों के अनुसार पाबंदियों में छूट वैश्विक स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है।

Tuesday, July 20, 2021

कृपया तीसरी और चौथी लहरों को मत बुलाइए!


हमें लगता है कि कोरोना की दूसरी लहर उतार पर है, पर दूसरे देशों की तस्वीर अच्छी नहीं है। कहीं दूसरी लहर चल रही है और कहीं तीसरी। कुछ देश चौथी का इंतजार कर रहे हैं। नए संक्रमितों की संख्या चार हफ्तों से बढ़ रही है। अमेरिका सबसे ज्यादा संक्रमित देश है, पर तेज टीकाकरण के कारण वहाँ की स्थिति बेहतर हुई है, पर तमाम देशों में प्रतिबंधों के बावजूद संक्रमण में गिरावट नहीं हो रही है। हमारे लिए सबक है कि लापरवाही का मतलब है तबाही को दावत देना।

ऑस्ट्रेलिया, यूरोप, इंडोनेशिया, क्यूबा, ब्रिटेन, रूस और दक्षिण कोरिया में स्थिति बिगड़ रही है। बुधवार 7 जुलाई को दुनिया में कोविड-19 से हुई मौतों की संख्या 40 लाख से ऊपर चली गई थी। जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के डैशबोर्ड के अनुसार 13 जुलाई की सुबह मरने वालों की संख्या 40 लाख 36 हजार से ऊपर हो गई। वैश्विक कोरोना के कुल मामले 18 करोड़ 71 लाख से ऊपर हैं।

लैटिन अमेरिका में हाहाकार

रोजाना मौतों की संख्या में गिरावट है, फिर भी 6 से 8 हजार मौतें रोज हो रही हैं। अमेरिका में छह लाख, ब्राजील में पाँच लाख और भारत में चार लाख से ऊपर यह संख्या हो गई है। ब्राजील और मैक्सिको में मृत्यु दर बहुत ज्यादा है। कुछ महीनों से पेरू, कोलम्बिया और अर्जेंटाइना में मृत्यु दर बढ़ी है। पेरू में प्रति दस लाख आबादी पर 6,000 मौतों का औसत है, जबकि वैश्विक औसत 51 है। इससे फर्क पता लगता है। भारत में यह औसत 300 और अमेरिका में 1800 है। ब्राजील और कोलम्बिया में 2000 के ऊपर है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुखिया टेड्रॉस गैब्रेसस ने जिनीवा से प्रसारित वर्चुअल प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि वायरस के डेल्टा वेरिएंट का खतरनाक प्रसार हो रहा है। जिन देशों में टीकाकरण का दायरा सीमित है, वहाँ खासतौर से दशा बहुत ख़राब है। डेल्टा वेरिएंट 104 से ज़्यादा देशों में मौजूद है और यह जल्द ही दूसरे देशों में फैल जाएगा। जिन देशों ने शुरुआती दौर में, वायरस की लहर पर क़ाबू पाने में कामयाबी हासिल की थी, वहाँ भी नई लहर का विनाशकारी रूप देखने को मिल रहा है।

Monday, July 5, 2021

महामारी ने दुनिया की शैक्षिक-तस्वीर भी बदली

कोविड-19 ने केवल वैश्विक-स्वास्थ्य की तस्वीर को ही नहीं बदला है, बल्कि खान-पान, पहनावे, रहन-सहन, रोजगार, परिवहन और शहरों की प्लानिंग तक को बदल दिया है। इन्हीं बदलावों के बीच एक और बड़ा बदलाव वैश्विक स्तर पर चल रहा है। वह है शिक्षा-प्रणाली में बदलाव। यह बदलाव प्रि-स्कूल से लेकर इंजीनियरी, चिकित्सा और दूसरे व्यवसायों की शिक्षा और छात्रों के मूल्यांकन तक में देखा जा रहा है।

भारत के सुप्रीम कोर्ट में इन दिनों एक याचिका पर सुनवाई हो रही है, जिसमें राज्य सरकारों को महामारी के मद्देनज़र बोर्ड परीक्षाएं आयोजित नहीं करने का निर्देश देने की मांग की गई थी। अदालत को सूचित किया गया कि 28 राज्यों में से छह ने बोर्ड की परीक्षाएं पहले ही करा ली हैं, 18 राज्यों ने उन्हें रद्द कर दिया है, लेकिन चार राज्यों (असम, पंजाब, त्रिपुरा और आंध्र प्रदेश) ने अभी तक उन्हें रद्द नहीं किया है। बाद में आंध्र ने भी परीक्षा रद्द कर दी। सीबीएसई समेत ज्यादातर राज्यों ने परीक्षाएं रद्द कर दी हैं। अब मूल्यांकन के नए तरीकों को तैयार किया जा रहा है, पर प्याज की परतों की तरह इस समस्या के नए-नए पहलू सामने आते जा रहे हैं, जो ज्यादा महत्वपूर्ण हैं।

160 करोड़ बच्चे प्रभावित

महामारी का असर पूरी दुनिया की शिक्षा पर पड़ा है। खासतौर से उन बच्चों पर जो संधि-स्थल पर हैं। मसलन या तो डिग्री पूरी कर रहे हैं या नौकरी पर जाने की तैयारी कर रहे हैं या स्कूली पढ़ाई पूरी करके ऊँची कक्षा में जाना चाहते हैं। तमाम अध्यापकों का रोजगार इस दौरान चला गया है। बहुत छोटी पूँजी से चल रहे स्कूल बंद हो गए हैं। ऑनलाइन पढ़ाई का प्रचार आकर्षक है, पर व्यावहारिक परिस्थितियाँ उतनी आकर्षक नहीं हैं।

गरीब परिवारों में एक भी स्मार्टफोन नहीं है। जिन परिवारों में हैं भी, तो महामारी के कारण आर्थिक विपन्नता ने घेर लिया है और वे रिचार्ज तक नहीं करा पा रहे हैं। यह हमारे और हमारे जैसे देशों की कहानी है। ऑनलाइन शिक्षा लगती आकर्षक है, पर बच्चों और शिक्षकों के आमने-समाने के सम्पर्क से जो बात बनती है, वह इस शिक्षा में पैदा नहीं हो सकती।

Monday, June 28, 2021

कोरोना के इलाज में ‘एंटीबॉडी-कॉकटेल’ से उम्मीदें

कोविड-19 के मोर्चे से मिली-जुली सफलता की खबरें हैं। जहाँ इसकी दूसरी लहर उतार पर है, वहीं तीसरी का खतरा सिर पर है। दूसरे, दुनिया में टीकाकरण की प्रक्रिया तेज है रही है। और तीसरे, मोनोक्लोनल एंटीबॉडी कॉकटेल के रूप में एक उल्लेखनीय दवाई सामने आई है। ब्रिटेन के ऑक्सफोर्ड विवि में हुए क्लिनिकल परीक्षणों में रिजेन-कोव2 नाम की औषधि ने कोविड-19 संक्रमित मरीजों के इलाज में अच्छी सफलता हासिल की है। यह मोनोक्लोनल एंटीबॉडी कॉकटेल है, जो इसके पहले कैंसर, एबोला और एचआईवी के इलाज में भी सफल हुई हैं। पिछले साल जब अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को कोरोना हुआ, तब उन्हें भी यह दवा दी गई थी।

यह दवा नहीं रोग-प्रतिरोधक है, जो शरीर का अपना गुण है, पर किसी कारण से जो रोगी कोविड-19 का मुकाबला कर नहीं पा रहे हैं, उन्हें इसे कृत्रिम रूप से देकर असर देखा जा रहा है। इसकी तुलना प्लाज़्मा थिरैपी से भी की जा सकती है। परीक्षण अभी चल ही रहे हैं। यह तय भी होना है कि यह दवा मरीजों के किस तबके के लिए उपयोगी है। पिछले साल इसी किस्म के परीक्षणों में ब्रिटिश वैज्ञानिकों ने डेक्सामैथासोन (स्टीरॉयड) को उपयोगी पाया था।

कॉकटेल क्यों?

अमेरिकी फार्मास्युटिकल कम्पनी रिजेनेरॉन की रिजेन-कोवमें दो तरह की एंटीबॉडी 'कैसिरिविमैब' और 'इमडेविमैब' का कॉम्बीनेशन है। ये एंटीबॉडी शरीर में रोगाणु को घेरती है। दो किस्म की एंटीबॉडी का इस्तेमाल इसलिए किया जाता है, ताकि वायरस किसी एक की प्रतिरोधी क्षमता विकसित करने न पाए। पिछले एक साल में इस दवाई की उपयोगिता तो काफी हद तक साबित हुई है, पर इसका व्यापक स्तर पर इस्तेमाल अभी शुरू नहीं हुआ है।

Monday, June 21, 2021

दुनिया पर भारी पड़ेगी वैक्सीन-असमानता


ब्रिटेन के कॉर्नवाल में हुए शिखर सम्मेलन में जी-7 देशों ने घोषणा की है कि हम गरीब देशों के 100 करोड़ वैक्सीन देंगे। यह घोषणा उत्साहवर्धक है, पर 100 करोड़ वैक्सीन ऊँट में मुँह में जीरा जैसी बात है। दूसरी तरफ खबर यह है कि दक्षिण अफ्रीका में आधिकारिक रूप से कोविड-19 की तीसरी लहर चल रही है। वहाँ अब एक्टिव केसों की संख्या एक महीने के भीतर दुगनी हो रही है और पॉज़िटिविटी रेट 16 प्रतिशत के आसपास पहुँच गया है, जो कुछ दिन पहले तक 9 प्रतिशत था। सारी दुनिया में तीसरी लहर को डर पैदा हो गया है। ब्रिटेन में भी तीसरी लहर के शुरूआती संकेत हैं।

इतिहास बताता है कि महामारियों की लहरें आती हैं। आमतौर पर पहली के बाद दूसरी लहर के आने तक लोगों का इम्यूनिटी स्तर बढ़ जाता है। पर दक्षिण अफ्रीका और भारत में यह बात गलत साबित हुई। चूंकि अब दुनिया के पास कई तरह की वैक्सीनें भी हैं, इसलिए भावी लहरों को रोकने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका है। दुनिया की बड़ी आबादी को समय रहते टीके लगा दिए जाएं, तो सम्भव है कि वायरस के संक्रमण क्रमशः कम करने में सफलता मिल जाए, पर ऐसा तभी होगा, जब वैक्सीनेशन समरूप होगा।

टीकाकरण की विसंगतियाँ

दुनिया में टीकाकरण इस साल जनवरी से शुरू हुआ है। इसकी प्रगति पर नजर डालें, तो वैश्विक-असमानता साफ नजर आएगी। दुनिया के 190 से ज्यादा देशों में इस हफ्ते तक 2.34 अरब से ज्यादा टीके लग चुके हैं। वैश्विक आबादी को करीब 7.7 अरब मानें तो इसका मतलब है कि करीब एक तिहाई आबादी को टीके लगे हैं। पर जब इस डेटा को ठीक से पढ़ें, तो पता लगेगा कि टीकाकरण विसंगतियों से भरा है।

Sunday, June 20, 2021

सावधान, कोरोना कहीं गया नहीं है!


दिल्ली में अनलॉक के दौरान कोरोना प्रोटोकॉल के उल्लंघन पर हाईकोर्ट ने नाराजगी जाहिर की है और सरकार को तथा जनता को सावधान करते हुए कहा है कि छोटी सी गलती भी तीसरी लहर को बुलावा देगी। अदालत ने केंद्र और दिल्ली सरकार से मामले की रिपोर्ट भी मांगी है। दिल्ली में अनलॉक के बाद से ही बाजारों में उमड़ी भारी भीड़ के फोटो वॉट्सऐप पर प्रसारित हो रहे हैं। लोग बिना मास्क लगाए घूम रहे हैं और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन भी नहीं किया जा रहा है। कोरोना की दूसरी लहर में हम बड़ी कीमत अदा कर चुके हैं। ऐसा कोई घर नहीं बचा, जो दूसरी लहर की चपेट में न आया हो।

हाईकोर्ट ने इन तस्वीरों का स्वत: संज्ञान लेकर जनहित याचिका शुरू करते हुए केंद्र, दिल्ली सरकार व दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी करते हुए स्टेटस रिपोर्ट तलब की है और सुनवाई के लिए 9 जुलाई की तारीख तय की है। अदालत ने कहा है कि लोगों में डर होना चाहिए, लेकिन डर भीतर से आना चाहिए। यह चेतावनी केवल दिल्ली के लिए नहीं, पूरे देश के लिए है। इस साल जनवरी-फरवरी में हम इसी तरह से निर्द्वंद होकर मान बैठे थे कि कोरोना तो गया। पर वह धोखा था। उधर भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार सहित स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने तीसरी लहर की चेतावनी दी है। विशेषज्ञों ने कहा है कि  लोग एहतियात नहीं बरतेंगे, तो हालात फिर से खराब हो जाएंगे।

दूसरी लहर काबू में

सच यह भी है कि कोरोना की दूसरी लहर कमजोर पड़ी है। इस हफ्ते नए मामलों का साप्ताहिक औसत साठ हजार के आसपास है, जो अगले हफ्ते पचास हजार के आसपास आने की उम्मीदें हैं। सक्रिय केसों की देश में संख्या साढ़े सात लाख के आसपास है, जिसमें तेज गिरावट है। उत्तर भारत में संक्रमण का असर काफी कम हुआ है, पर दक्षिण में अभी असर है। पर यह गिरावट लॉकडाउन और एहतियात का परिणाम है। हम फिर से बेखबर होंगे, तो महामारी का अगला हमला और ज्यादा खतरनाक हो सकता है।