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Monday, October 2, 2017

साख कायम रखनी है तो फर्जी खबरों से निपटना होगा

चुनींदा-2
समाचार मीडिया को तलाशने होंगे फर्जी खबरों से निपटने के तरीके

बिजनेस स्टैंडर्ड में वनिता कोहली-खांडेकर / 

September 29, 2017
फेसबुक ने अंग्रेजी, गुजराती और कुछ अन्य भाषाओं में जारी विज्ञापनों में फर्जी खबर की पहचान करने के बारे में सुझाव दिए हैं। इस विज्ञापन को देखकर ऐसा लगता है कि फेसबुक अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर फर्जी खबरों का प्रसार रोकने की अपनी जिम्मेदारी को लेकर आखिरकार सचेत हुआ है। यह एक ऐसे 'इको-चैम्बर' की तरह हो चुका है जिसके भीतर करीब 2 अरब लोग अपनी राय जाहिर करते हैं, दूसरे लोगों के विचारों, खबरों, तस्वीरों या वीडियो पर टिप्पणी करते हैं और सूचनाओं को साझा करते हैं। सोशल मीडिया का लोगों के मतदान व्यवहार, उनके खानपान और खरीदारी के तरीके तय करने में भी बड़ी भूमिका होती है। लोग इस पर भरोसा करते हैं और उनके इस भरोसे की ही वजह से फेसबुक को मोटी कमाई होती है। गूगल के साथ मिलकर फेसबुक पूरी दुनिया में डिजिटल विज्ञापन हासिल करने वाली सबसे बड़ी कंपनी है। इसके नाते उसकी जिम्मेदारी भी बनती है।

Saturday, September 30, 2017

असमानता भरा विकास

चुनींदा-1
बिजनेस स्टैंडर्ड के सम्पादक टीएन नायनन के साप्ताहिक कॉलम में इस बार टॉमस पिकेटी और लुकास चैसेल के एक ताजा शोधपत्र का विश्लेषण किया गया है। टॉमस पिकेटी हाल के वर्षों में पूँजीवादी अर्थव्यवस्था के संजीदा विश्लेषकों में शामिल किए जा रहे हैं। नायनन के आलेख का यह हिंदी अनुवाद है जो बिजनेस स्टैंडर्ड के हिंदी संस्करण में प्रकाशित हुआ है। पूरे लेख का लिंक नीचे दिया हैः-

सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की धीमी प्रगति को लेकर मोदी सरकार गंभीर आलोचनाओं के घेरे में है। इस चर्चा से यह भी साफ होता है कि मुखर जनता की राय में जीडीपी वृद्धि ही ïराष्ट्रीय उद्देश्य के लिहाज से केंद्र में होनी चाहिए। बढ़ती असमानता के बारे में हाल में प्रकाशित एक शोधपत्र पर चर्चा न होना भी इतना ही महत्त्वपूर्ण है। थॉमस पिकेटी (कैपिटल के चर्चित लेखक) और सह-लेखक लुकास चैंसेल ने 'फ्रॉम ब्रिटिश राज टू बिलियनरी राज?' शीर्षक वाला यह पत्र पेश किया है।